आपदा प्रबंधन
सूखा, बाढ़, चक्रवाती तूफानों, भूकंप, भूस्खलन, वनों में लगनेवाली आग,ओलावृष्टि और ज्वालामुखी फटने जैसी विभिन्न प्राकृतिक आपदाओं का
पूर्वानुमान लगाए बिना आपदाप्रबंधन की प्रक्रिया अधूरी है |सही एवं सटीक पूर्वानुमानों के अभाव में आपदाओं से होने वाली जनधन की हानि को कुछ घटाया तो जा सकता है किंतु प्रभावी नियंत्रण नहीं हो सकता है |
पूर्वानुमान की जानकारी के बिना कोई प्राकृतिक घटना अचानक घटित होने पर उससे होने वाला संभावित नुक्सान तो घटना घटित होने के साथ ही तुरंत हो चुका होता है जिसे रोक पाना अत्यंत सतर्क आपदा प्रबंधन के लिए भी संभव नहीं हो पाता है किंतु घटना घटित होने के बाद जितने बड़े नुक्सान की संभावना होती है आपदा प्रबंधन के प्रशंसनीय प्रयासों से उस नुक्सान को यथा संभव कम कर लिया जाता है |कितना अच्छा होता कि यदि प्राकृतिक घटनाओं से संभावित पूर्वानुमान पहले से पता हों तो कुछ सावधानी समाज स्वयं बरते और कुछ सतर्कता आपदा प्रबंधन की हो तो प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले संभावित नुक्सान को बहुत कम किया जा सकता है |
प्राकृतिक घटनाओं को लेकर वैज्ञानिकों ने अलनीनों
ला-नीना, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन जैसी कुछ ऐसी परिकल्पनाएँ की हैं उनमें कुछ सच्चाई भी है या नहीं ये केवल उन वैज्ञानिकों को ही पता होगा जो इन विषयों पर काम कर रहे हैं |मौसमसंबंधी घटनाओं से आम जनता सबसे अधिक प्रभावित होती है वो तब तक वैज्ञानिकों की अलनीनों
ला-नीना, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन जैसी कल्पनाओं की सच्चाई पर विश्वास नहीं कर सकती है जब तक वैज्ञानिक लोग उन्हें वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान उपलब्ध करवाने में सफल नहीं होते हैं जिस लक्ष्य से अभी तक वे लोग लाखों कोस दूर हैं | ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिकों की ऐसी काल्पनिक कथा कहानियों पर भरोसा करने का मतलब मौसमसंबंधी पूर्वानुमानों लो लगाने की वैज्ञानिक क्षमता के अभाव में अलनीनों
ला-नीना, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन जैसे अंधविश्वास को स्वीकार करने के लिए विवश किया जा रहा है जबकि उसका मौसम संबंधी घटनाओं से अभी तक कोई संबंध सिद्ध नहीं हुआ है |
वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता किसानों को होती है क्योंकि उनका संपूर्ण कृषि कार्य वर्षा के ही आधीन होता है |यहाँ तक कि अपनी उपज को संरक्षित करने के लिए भी किसानों को वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | मार्च अप्रैल में तैयार होने वाली फसल से प्राप्त हुए अनाज आदि को संरक्षित रखने या बेचने का निर्णय लेने के लिए किसानों को मार्च अप्रैल के महीने में ही जुलाई अगस्त में तैयार होने वाली फसलों का पूर्वानुमान लगाना होता है यदि जुलाई अगस्त में अच्छी फसलें होने का अनुमान होता है तो किसान लोग आनाज या पशुओं के लिए भूसा आदि कम मात्रा में संरक्षित करके बाकी बेच लेते हैं जिससे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और आने वाली भावी फसलों से उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है |
इसके अतिरिक्त कृषि योजना बनाने के लिए किसानों को यह जानना आवश्यक होता है कि इस वर्ष कहाँ कब कैसी वर्षा होगी उसी के अनुशार वे फसल बोने की योजना बनाते हैं | कुछ फसलों को कम वर्षा की आवश्यकता होती है कुछ को अधिक !यदि वर्षा ऋतु में संभावित वर्षा संबंधी पूर्वानुमान पहले से पता होता है तो किसान उसी हिसाब से अपनी कृषि योजना बनाते हैं |क्योंकि प्रत्येक फसल के अनुशार अलग अलग प्रकार से खेत तैयार करना होता है किसानों को यह तैयारी फसल बोने के महीनों पहले से करनी होती है किंतु वर्षा ऋतु में संभावित वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की स्पष्ट जानकारी के अभाव में किसान अंत तक दुविधा में बने रहते हैं |इसीलिए किसान लोग निरंतर गलत होते रहने वाली मौसम भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों पर भरोसा नहीं करते हैं अपितु जब जैसी वर्षा होते देखते हैं तब तैसी कृषि योजना किसान लोग स्वयं बना लिया करते हैं |यदि तीर तुक्का सही बैठ गया तो किसान लोग लाभान्वित हो जाते हैं यदि सही न बैठा तो हानि हो जाती है प्राचीन समय की तरह वर्तमान समय के किसान वर्षा वैज्ञानिक नहीं होते हैं इसीलिए वे जिन्हें वर्षा वैज्ञानिक समझकर उनके द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियों पर भरोसा कर लेते हैं दुर्भाग्य से वे भी वर्षा विज्ञान से अपरिचित होते हैं इसीलिए मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान पता न होने से किसानों का नुक्सान अधिक होते देखा जाता है | पहले किसान स्वतः वर्षा वैज्ञानिक हुआ करते थे आधुनिकता की होड़ में उसे तो भुला दिया गया किंतु आधुनिक मौसम वैज्ञानिक पद्धति से लगाए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमान प्रायः गलत होते हैं जिनके परिणाम स्वरूप किसानों के द्वारा की जाने वाली आत्महत्या जैसी अत्यंत दुखद घटनाओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है |इस सच्चाई को नजरंदाज करते हुए मौसम भविष्यवक्ता लोग अपनी पीठ थपथपाया करते हैं प्रायः सरकारें भी बिना बिचारे ही उस झूठ को प्रोत्साहित किया करती हैं इसके अलावा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के क्षेत्र में सरकारों के पास कोई और दूसरा विकल्प भी नहीं होता है अन्यथा इतना तो सरकारें भी सोच सकती हैं कि वर्षा संबंधी पूर्वानुमान यदि सही ही हो रहे होते तो किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी क्यों होती जा रही है !
किसानलोग प्रसन्न होकर तो प्राणत्याग नहीं ही कर रहे होंगे कम से कम सरकारों को तो इस बात पर भरोसा करना ही चाहिए |अब समय आ गया है जब किसानों की आत्महत्याओं से व्यथित सरकारों को ईमानदारी पूर्वक वर्तमान मौसम भविष्यवक्ताओं के विकल्प पर विचार करना चाहिए |अनेकों धर्मों संप्रदायों परंपराओं में वर्षा या आँधी तूफ़ान से संबंधित घटनाओं के पूर्वानुमान लगाने संबंधी पद्धतियों का अनेकों प्रकार से वर्णन मिलता है जिन्हें किसी प्रकार का अनुसंधान किए बिना ही छोड़ दिया गया था उन्हीं पर पुनः अनुसंधान प्रारंभ करवाए जाने चाहिए ताकि मौसम संबंधी गलत भविष्यवाणियों के कारण होने वाली किसानों की आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोका जा सके |
वैज्ञानिकों की अलनीनों ला-नीना, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन जैसी कल्पनाओं
जिनका आधार क्या है ये उन्हीं को पता होगा |
उनका प्रभाव क्या और कैसे पड़ता है ये भी उन्हीं को पता है इनका प्राकृतिक घटनाओं के साथ कोई संबंध है भी या नहीं ये अभी तक प्रमाणित नहीं हो सका है यदि ये कल्पनाएँ सच हैं तो ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान पता लगना चाहिए था किंतु अभी तक ऐसा कुछ हो नहीं सका है इतना अवश्य है कि जब कोई अच्छी या बुरी प्राकृतिक घटना घटित हो जाती है तो उन घटनाओं के साथ अपनी निराधार कल्पनाओं को चिपकाया जाता है इसी कला को कुछ लोग विज्ञान मान लेते हैं किंतु मौसम संबंधी विषयों में विज्ञान है कहाँ और मौसम संबंधी अध्ययनों में उसका उपयोग क्या है उस विज्ञान से मौसम संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों को लाभ क्या हुआ है और वो पूर्वानुमान लगाने में सहायक किस प्रकार होता है ये सब कुछ सिद्ध होना अभी तक बाकी है |
वैज्ञानिकों ने कल्पना की है कि पृथ्वी के अंदर गंभीर गहराई में स्थित भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से या गैसों के दबाव से भूकंप आता है | किंतु जिस प्रकार से भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने या गैसों के दबाव के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है कि इनमें कब बदलाव आएगा कब नहीं इसीकारण तो भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाया है |
भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने या गैसों के दबाव जैसी कल्पना की तरह ही मौसमसंबंधी अध्ययनों के नाम पर कुछ कल्पनाएँ की गई हैं उन कल्पनाओं का वैसे तो शिर पैर कहीं नहीं मिलता है और न ही उनके आस्तित्व को आज तक प्रमाणित ही किया जा सका है मौसम संबंधी घटनाओं के साथ उनकी कोई कड़ियाँ जुड़ती भी नहीं हैं |इसके बाद भी मौसमसंबंधी भविष्यवाणियाँ गलत हो जाने पर वे भविष्यवक्ताओं की प्रतिष्ठा की रक्षा करने में बहुत सहायक होती हैं |
अलनीनों ला-नीना,ग्लोबलवार्मिंग,जलवायुपरिवर्तन जैसी कुछ ऐसी परिकल्पनाएँ हैं प्राकृतिक परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगा पाना जब तक संभव नहीं हो पाता है तब तक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाना कैसे संभव माना जा सकता है !यही कारण है कि मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |
इसीलिए पूर्वानुमानों के विषय में श्रद्धेय वैज्ञानिकों ने जो भी प्रयास किए हैं उन प्रयासों के परिणाम अभी तक प्राप्त नहीं हो पाए हैं तभी तो प्राकृतिक घटनाओं का विश्वसनीय पूर्वानुमान लगा पाना हो सका है | अभी हाल के कुछ वर्षों घटित हुई प्राकृतिक घटनाएँ इसके उचित एवं प्रेरक उदाहरण हैं और वे घटनाएँ इस बात के लिए प्रेरित करती हैं कि मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने किसी अन्य विकल्प की खोज की जनि चाहिए क्योंकि वर्तमान समय में जो विधा प्रचलन में है जिसे मौसमविज्ञान के नाम पर जाना जाता है किंतु दुर्भाग्य से उस विधा में ऐसे कोई लक्षण चिन्हित नहीं किए जा सके हैं जिन्हें मौसम से संबंधित घटनाओं से साथ जोड़कर सही सिद्ध किया जा सके |इसीलिए प्रत्येक भविष्यवाणी के गलत होने पर अलनीनों ला-नीना,ग्लोबलवार्मिंग,जलवायुपरिवर्तन जैसा कोई न कोई बहाना लेकर मौसम विज्ञान की प्रतिष्ठा बचानी पड़ती है |
विषय वस्तुतः मौसमसंबंधी सभीप्रकार की गतिविधियाँ प्रकृति के जिन लक्षणों से प्रभावित होती हैं उन लक्षणों से संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना असंभव है |
वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता किसानों को होती है क्योंकि उनका संपूर्ण कृषि कार्य वर्षा के ही आधीन होता है |यहाँ तक कि अपनी उपज को संरक्षित करने के लिए भी किसानों को वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | मार्च अप्रैल में तैयार होने वाली फसल से प्राप्त हुए अनाज आदि को संरक्षित रखने या बेचने का निर्णय लेने के लिए किसानों को मार्च अप्रैल के महीने में ही जुलाई अगस्त में तैयार होने वाली फसलों का पूर्वानुमान लगाना होता है यदि जुलाई अगस्त में अच्छी फसलें होने का अनुमान होता है तो किसान लोग आनाज या पशुओं के लिए भूसा आदि कम मात्रा में संरक्षित करके बाकी बेच लेते हैं जिससे अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और आने वाली भावी फसलों से उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति होती रहती है |
इसके अतिरिक्त कृषि योजना बनाने के लिए किसानों को यह जानना आवश्यक होता है कि इस वर्ष कहाँ कब कैसी वर्षा होगी उसी के अनुशार वे फसल बोने की योजना बनाते हैं | कुछ फसलों को कम वर्षा की आवश्यकता होती है कुछ को अधिक !यदि वर्षा ऋतु में संभावित वर्षा संबंधी पूर्वानुमान पहले से पता होता है तो किसान उसी हिसाब से अपनी कृषि योजना बनाते हैं |क्योंकि प्रत्येक फसल के अनुशार अलग अलग प्रकार से खेत तैयार करना होता है किसानों को यह तैयारी फसल बोने के महीनों पहले से करनी होती है किंतु वर्षा ऋतु में संभावित वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की स्पष्ट जानकारी के अभाव में किसान अंत तक दुविधा में बने रहते हैं |इसीलिए किसान लोग निरंतर गलत होते रहने वाली मौसम भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों पर भरोसा नहीं करते हैं अपितु जब जैसी वर्षा होते देखते हैं तब तैसी कृषि योजना किसान लोग स्वयं बना लिया करते हैं |यदि तीर तुक्का सही बैठ गया तो किसान लोग लाभान्वित हो जाते हैं यदि सही न बैठा तो हानि हो जाती है प्राचीन समय की तरह वर्तमान समय के किसान वर्षा वैज्ञानिक नहीं होते हैं इसीलिए वे जिन्हें वर्षा वैज्ञानिक समझकर उनके द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियों पर भरोसा कर लेते हैं दुर्भाग्य से वे भी वर्षा विज्ञान से अपरिचित होते हैं इसीलिए मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान पता न होने से किसानों का नुक्सान अधिक होते देखा जाता है | पहले किसान स्वतः वर्षा वैज्ञानिक हुआ करते थे आधुनिकता की होड़ में उसे तो भुला दिया गया किंतु आधुनिक मौसम वैज्ञानिक पद्धति से लगाए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमान प्रायः गलत होते हैं जिनके परिणाम स्वरूप किसानों के द्वारा की जाने वाली आत्महत्या जैसी अत्यंत दुखद घटनाओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी होती जा रही है |इस सच्चाई को नजरंदाज करते हुए मौसम भविष्यवक्ता लोग अपनी पीठ थपथपाया करते हैं प्रायः सरकारें भी बिना बिचारे ही उस झूठ को प्रोत्साहित किया करती हैं इसके अलावा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के क्षेत्र में सरकारों के पास कोई और दूसरा विकल्प भी नहीं होता है अन्यथा इतना तो सरकारें भी सोच सकती हैं कि वर्षा संबंधी पूर्वानुमान यदि सही ही हो रहे होते तो किसानों की आत्महत्या की घटनाओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तरी क्यों होती जा रही है !
किसानलोग प्रसन्न होकर तो प्राणत्याग नहीं ही कर रहे होंगे कम से कम सरकारों को तो इस बात पर भरोसा करना ही चाहिए |अब समय आ गया है जब किसानों की आत्महत्याओं से व्यथित सरकारों को ईमानदारी पूर्वक वर्तमान मौसम भविष्यवक्ताओं के विकल्प पर विचार करना चाहिए |अनेकों धर्मों संप्रदायों परंपराओं में वर्षा या आँधी तूफ़ान से संबंधित घटनाओं के पूर्वानुमान लगाने संबंधी पद्धतियों का अनेकों प्रकार से वर्णन मिलता है जिन्हें किसी प्रकार का अनुसंधान किए बिना ही छोड़ दिया गया था उन्हीं पर पुनः अनुसंधान प्रारंभ करवाए जाने चाहिए ताकि मौसम संबंधी गलत भविष्यवाणियों के कारण होने वाली किसानों की आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को रोका जा सके |
वैज्ञानिकों की अलनीनों ला-नीना, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन जैसी कल्पनाओं
जिनका आधार क्या है ये उन्हीं को पता होगा |
उनका प्रभाव क्या और कैसे पड़ता है ये भी उन्हीं को पता है इनका प्राकृतिक घटनाओं के साथ कोई संबंध है भी या नहीं ये अभी तक प्रमाणित नहीं हो सका है यदि ये कल्पनाएँ सच हैं तो ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान पता लगना चाहिए था किंतु अभी तक ऐसा कुछ हो नहीं सका है इतना अवश्य है कि जब कोई अच्छी या बुरी प्राकृतिक घटना घटित हो जाती है तो उन घटनाओं के साथ अपनी निराधार कल्पनाओं को चिपकाया जाता है इसी कला को कुछ लोग विज्ञान मान लेते हैं किंतु मौसम संबंधी विषयों में विज्ञान है कहाँ और मौसम संबंधी अध्ययनों में उसका उपयोग क्या है उस विज्ञान से मौसम संबंधी अध्ययनों अनुसंधानों को लाभ क्या हुआ है और वो पूर्वानुमान लगाने में सहायक किस प्रकार होता है ये सब कुछ सिद्ध होना अभी तक बाकी है |
वैज्ञानिकों ने कल्पना की है कि पृथ्वी के अंदर गंभीर गहराई में स्थित भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने से या गैसों के दबाव से भूकंप आता है | किंतु जिस प्रकार से भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने या गैसों के दबाव के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है कि इनमें कब बदलाव आएगा कब नहीं इसीकारण तो भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाया है |
भूमिगत प्लेटों के आपस में टकराने या गैसों के दबाव जैसी कल्पना की तरह ही मौसमसंबंधी अध्ययनों के नाम पर कुछ कल्पनाएँ की गई हैं उन कल्पनाओं का वैसे तो शिर पैर कहीं नहीं मिलता है और न ही उनके आस्तित्व को आज तक प्रमाणित ही किया जा सका है मौसम संबंधी घटनाओं के साथ उनकी कोई कड़ियाँ जुड़ती भी नहीं हैं |इसके बाद भी मौसमसंबंधी भविष्यवाणियाँ गलत हो जाने पर वे भविष्यवक्ताओं की प्रतिष्ठा की रक्षा करने में बहुत सहायक होती हैं |
अलनीनों ला-नीना,ग्लोबलवार्मिंग,जलवायुपरिवर्तन जैसी कुछ ऐसी परिकल्पनाएँ हैं प्राकृतिक परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगा पाना जब तक संभव नहीं हो पाता है तब तक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाना कैसे संभव माना जा सकता है !यही कारण है कि मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |
इसीलिए पूर्वानुमानों के विषय में श्रद्धेय वैज्ञानिकों ने जो भी प्रयास किए हैं उन प्रयासों के परिणाम अभी तक प्राप्त नहीं हो पाए हैं तभी तो प्राकृतिक घटनाओं का विश्वसनीय पूर्वानुमान लगा पाना हो सका है | अभी हाल के कुछ वर्षों घटित हुई प्राकृतिक घटनाएँ इसके उचित एवं प्रेरक उदाहरण हैं और वे घटनाएँ इस बात के लिए प्रेरित करती हैं कि मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने किसी अन्य विकल्प की खोज की जनि चाहिए क्योंकि वर्तमान समय में जो विधा प्रचलन में है जिसे मौसमविज्ञान के नाम पर जाना जाता है किंतु दुर्भाग्य से उस विधा में ऐसे कोई लक्षण चिन्हित नहीं किए जा सके हैं जिन्हें मौसम से संबंधित घटनाओं से साथ जोड़कर सही सिद्ध किया जा सके |इसीलिए प्रत्येक भविष्यवाणी के गलत होने पर अलनीनों ला-नीना,ग्लोबलवार्मिंग,जलवायुपरिवर्तन जैसा कोई न कोई बहाना लेकर मौसम विज्ञान की प्रतिष्ठा बचानी पड़ती है |
सन 2013 में घटित हुई केदार नाथ जी में सैलाव की घटना हो या सन 2015
में 22 अप्रैल का तूफ़ान या 25 अप्रैल को आया भूकंप हो या अक्टूबर 2015 में
मद्रास में आई भीषण बाढ़ हो या अप्रैल 2016 में अचानक गर्मी बढ़ने सूखा
पड़ने की समस्या हो जब ट्रेन से पानी लातूर भेजना पड़ा था | इसी प्रकार 2016
के अप्रैल मई में आग लगने की इतनी भीषण दुर्घटनाएँ घटित हुई थीं कि बिहार
सरकार ने दिन में चूल्हा न जलाने एवं हवन न करने की अपील की थी | 2018 के
मई जून में आए भीषण आँधी तूफान हों या अगस्त 2018 में केरल आदि में घटित
हुई भीषण बाढ़ या दिसंबर 2018 में वायुप्रदूषण बढ़ने से संबंधित अपातकाल हो
या 2019 सितंबर में बिहार में घटित हुई भीषण बाढ़ तथा और भी ऐसी तमाम
प्राकृतिक घटनाएँ हैं जिनके विषय में पूर्वानुमानों की आवश्यकता सबसे अधिक
थी सटीक पूर्वानुमानों के सहयोग से आपदा प्रबंधन को और अधिक प्रभावी बनाया
जा सकता था किंतु पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके थे |
पूर्वानुमान के विषय में अभीतक किए गए अनुसंधानों की उपलब्धियों को
यदि उद्दृत करना हो तो प्रयासों के परिणाम स्वरूप प्राकृतिक घटनाओं का
पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | इसीलिए दिसंबर 2018
में वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण धुआँ धूल आदि को मान लेना पड़ता है | 2016 के
अप्रैल मई में आग लगने की इतनी भीषण दुर्घटनाओं को या 2018 के मई जून में
आए भीषण आँधी तूफानों को रिसर्च का बिषय बताना पड़ता है| बाढ़ की घटनाओं को
जलवायुपरिवर्तन के कारण घटित हुई अप्रत्याशित वर्षा मानना पड़ता है | भूकंप
आने के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले निर्जीव काल्पनिक कारणों को आधार
मानकर उन्हें केवल चर्चा तक ही सीमित रखा गया है | ऐसे काल्पनिक कारणों
पर पूर्वानुमान जैसा इतना बड़ा बोझ डाला जाना उचित नहीं समझा गया |ऐसी
परिस्थिति में सटीक पूर्वानुमानों के अभाव में आपदा प्रबंधन की प्रभावी
परिकल्पना कैसे की जा सकती है |
रडारों उपग्रहों के द्वारा बादलों एवं आँधी तूफानों को आगे से आगे देखा जा सकता है उनकी गति और दिशा के आधार पर इसबात का अंदाजा लगाकर इस बात की भविष्यवाणी भी की जा सकती है कि ये बादल या आँधी तूफान आदि किस दिन किस देश प्रदेश या शहर आदि में
किंतु हवा का रुख कब कितना बदल जाएगा जिससे आँधी तूफ़ान और बादल उड़कर उस दिशा में चले जाएँगे इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है ऐसी परिस्थिति में इस अंदाजा या अनुमान को पूर्वानुमान के रूप में कैसे स्वीकार किया जा सकता है |
रडारों उपग्रहों के द्वारा बादलों एवं आँधी तूफानों को आगे से आगे देखा जा सकता है उनकी गति और दिशा के आधार पर इसबात का अंदाजा लगाकर इस बात की भविष्यवाणी भी की जा सकती है कि ये बादल या आँधी तूफान आदि किस दिन किस देश प्रदेश या शहर आदि में
किंतु हवा का रुख कब कितना बदल जाएगा जिससे आँधी तूफ़ान और बादल उड़कर उस दिशा में चले जाएँगे इस बात का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है ऐसी परिस्थिति में इस अंदाजा या अनुमान को पूर्वानुमान के रूप में कैसे स्वीकार किया जा सकता है |
विषय वस्तुतः मौसमसंबंधी सभीप्रकार की गतिविधियाँ प्रकृति के जिन लक्षणों से प्रभावित होती हैं उन लक्षणों से संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना असंभव है |
ऐसी परिस्थिति में वास्तविक पूर्वानुमानों की खोज करने के लिए हमें रडारों उपग्रहों के अलावा भी किसी ऐसी पद्धति का विकल्प तलाशना होगा जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के किसी भी रूप में(रडारों उपग्रहों आदि से भी) दिखाई पड़ने से पूर्व उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके वे घटनाएँ यदि उसी पूर्वानुमान के अनुरूप घटित हो जाती हैं तो उसे पूर्वानुमान मान लिया जाएगा |
पूर्वानुमान और समयविज्ञान -
प्रकृति में या जीवन में समय के अनुशार ही सब कुछ घटित होता है
अधिकतर खोज और अविष्कार जिन पर आज यूरोप को इतना गर्व है, एक विकसित
गणितीय पद्धति के बिना असंभव थे।इसमें कोई मतभेद नहीं कि भारत में गणित की
उच्चकोटि की परंपरा थी।
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