विज्ञान का अधूरापन !
प्राकृतिक घटनाएँ -
प्रकृति में अनेकों प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना तो कठिन है ही सबसे बड़ी बात ये है कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ किस कारण से घटित होती हैं इस विषय में कहा सुना तो बहुत कुछ जाता है जिसको जो समझ में आता है वो वही बोलता है या यूँ कह लें जिसके मुख में जो आता है वो वही बोल देता है | यदि वो ख्याति प्राप्त अच्छी पद प्रतिष्ठा पाया हुआ वैज्ञानिक है तो उसकी बातों को सही मान लिया जाता है यदि ऐसा नहीं है तो उसे उतनी मान्यता नहीं मिल पाती है ,किंतु छोटे बड़े सभी वैज्ञानिकों के लिये प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अभीतक प्रमाणित रूप से कुछ सिद्ध कर पाना संभव नहीं है |
सूखा वर्षा बाढ़ या आँधी तूफान जैसी घटनाओं के विषय में भविष्यवाणी या तो की नहीं जाती है और यदि की जाती है अपनी सुरक्षा के लिए सतर्कता शुरू से ही बरती जाती है | इतना जुगाड़ तो लगाकर चला ही जाता है कि कौन सी भविष्यवाणी गलत हो जाने पर दोष किसके मत्थे मढ़कर अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाएगी |
मौसम भविष्यवक्ताओं को मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करना तो पड़ता ही है चूँकि उन भविष्यवाणियों का कोई प्रमाणित और विश्वसनीय आधार नहीं होता है इसलिए मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने की संभावना हमेंशा बनी रहती है कभी भी कोई भी भविष्यवाणी गलत हो सकती है | इसीलिए कोई भविष्यवाणी सही होगी तब तो प्रतिष्ठा बने और बढ़ेगी ही किंतु यदि वो भविष्यवाणी पूरी तरह गलत भी हो जाए तो भी अपनी प्रतिष्ठा सुरक्षित बनी रहे इसका इंतजाम साथ साथ करके चलना पड़ता है |
यही कारण है कि मौसमसंबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणी करते समय अलनीनों और ला नीना जैसी काल्पनिक आशंकाओं को उस भविष्यवाणी के साथ ही चिपका लिया जाता है यदि भविष्यवाणी सही हुई तब तो मौसमविज्ञान और वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला मौसम संबंधी पूर्वानुमान और यदि वह भविष्यवाणी गलत निकल गई तो अलनीनों और ला नीना जैसी घटनाओं का प्रभाव बता कर अपनी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा को बड़ी चतुराई पूर्वक बचा लिया जाता है |
इसी प्रकार से वर्षा संबंधी पूर्वानुमान के लिए अल्पावधि भविष्यवाणी करते समय जलवायु परिवर्तन को साथ ही चिपका लिया जाता है भविष्यवाणी सही हो जाए तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाए तो जलवायु परिवर्तन !
ऐसे ही आँधी तूफानों या वायु प्रदूषण से संबंधित कोई भविष्यवाणी करते समय ग्लोबल वार्मिंग को साथ में चिपका लिया जाता है !भविष्यवाणी सही हो जाए तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाए तो ग्लोबल वार्मिंग !
उसके लिए कोई व्यक्ति किसी मौसम भविष्यवक्ता की मौसम पूर्वानुमान लगाने की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह न खड़ा कर दे इसलिए इतने सारे इंतजाम करके ही मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करके चलना पड़ता है |
मौसम स्वतंत्र नहीं है !मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं पर अलनीनो,ला-नीनो,जलवायुपरिवर्तन' 'ग्लोबलवार्मिंग' आदि का बहुत बड़ा प्रभाव माना जाता है मौसम के रुख को बदलने के पीछे इन्हीं के प्रभाव को जिम्मेदार बताया जाता है !पूर्वानुमानों के गलत हो जाने में इन्हें कारण के रूप में चिन्हित किया जाता है |
एल नीनो और ला-नीनो-
"अलनीनो की सक्रियता बढ़ने से पृथ्वी के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्से अकाल की मार सहते हैं।"
"ला-नीनो के प्रभाव से पश्चिमी प्रशांत महासागर में अत्यधिक बारिश होने से पानी का स्तर बढ़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ पूर्वी प्रशांत महासागर में वर्षा बहुत कम होती है।बताया जाता है कि ला नीना एल नीनो से ठीक विपरीत प्रभाव रखती है।ला नीना परिघटना कई बार दुनिया भर में बड़ी बाढ़ की सामान्य वजह बन जाती है।"
कुलमिलाकर अलनीनो और लानीना का प्रभाव पड़ने से कहीं वर्षा बहुत अधिक होती है और कहीं सूखा पड़ जाता है !
एल नीनो आदि का सटीक कारण, तीव्रता ,अवधि एवं इससे संबंधित पूर्वानुमान की सही-सही जानकारी नहीं की जा सकती है।
बताया जाता है कि पीटा बंदरगाह के समुद्री मछुआरों ने ही सबसे पहले इसे अल–नीनो नाम दिया था !ये समुद्री मछुआरों का पारंपरिक अनुभव था उन्हीं समुद्री मछुआरों के दिखाए रास्ते पर चल रहा है मौसम विज्ञान !
विशेष बात - सृष्टि जब से बनी है तब से ही वर्षा का वितरण समान कभी नहीं रहा और न रहना संभव ही है समान वर्षा हो समान बदल आवें समान आँधी तूफ़ान आवें सभी जगह एक सामान भूकंप आवें ऐसा कैसे हो सकता है | ऐसा न होने की आशंकाओं से ही अलनीनो और लानीना जैसी धारणाओं का उद्गम हुआ है जो तर्क के धरातल पर कहीं नहीं टिकती हैं|क्योंकि सारी पृथ्वी पर एक जैसी वर्षा होते तो कभी नहीं देखा जाता है |
इसलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की दिशा में अलनीनो और लानीना जैसी कल्पनाओं की कहीं कोई भूमिका नहीं दिखाई देती है |फिर भी मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए ऐसी कल्पनाएँ कई बार उनकी अपनी प्रतिष्ठा बचने में बड़ी मददगार सिद्ध हो जाती हैं |
अलनीनो और लानीना के असर के विषय में बताया जाता है कि इनके कारण कहीं अधिक वर्षा होती है और कहीं कम वर्षा होती है | ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा यदि कम वर्षा की भविष्यवाणी की गई और वर्षा हुई भी कम तब तो भविष्यवाणी सच हो ही गई किंतु यदि कम वर्षा की भविष्यवाणी करने के बाद अधिक वर्षा हो गई तो ऐसे समय अलनीनो और लानीना जैसे शब्दों को सामने करके अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाती है | कह दिया जाता है कि वर्षा तो कम ही होनी थी किंतु अचानक अलनीनो या लानीना जैसे प्रभाव से वर्षा अधिक हो गई है | ऐसा ही अधिक वर्षा होने की भविष्यवाणी करने के बाद कम वर्षा हो जाने पर भी ऐसे काल्पनिक शब्दों को आगे करके अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाती है |
जलवायुपरिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी काल्पनिक घटनाओं का उपयोग भी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इसी प्रकार से अत्यंत चतुराई पूर्वक किया जाता है |
मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा सामान्यवर्षा होने की भविष्यवाणी करने के बाद यदि बहुत अधिक वर्षा या बाढ़ हो जाए तो जलवायु परिवर्तन का ढिंढोरा पीट दिया जाता है |ऐसे ही यदि कहीं अचानक आँधी तूफ़ान या वायु प्रदूषण बढ़ने की घटनाएँ घटित होने लगें तो ग्लोबल वार्मिंग की डुगडुगी बजाई जाने लगती है |
प्राचीन काल में राजा महाराजा लोग समय समय पर मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियों का परीक्षण इसलिए किया करते थे ताकि मौसमभविष्यवक्ता लोग निरंकुश होकर भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर कुछ भी बोलने बकने न लगें जिनका मौसम संबंधी घटनाओं से कोई संबंध ही न हो | उस युग में ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओंको छोटे बड़े पद राजा लोग स्वयं नहीं दिया करते थे अपितु उन लोगों को अपने द्वारा की जाने वाली सही भविष्यवाणियों के द्वारा अपनी योग्यता सिद्ध करनी पड़ती थी |उसी के अनुशार उनका प्रत्साहन होता था और उन्हें पद प्रतिष्ठा प्रदान की जाती थी |
ऐसी परिस्थिति में वर्तमान सरकारों को भी केवल मूकदर्शी बनकर बैठा नहीं रहना चाहिए अपितु उन्हें अपने कर्तव्य का पालन करते हुए प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों का सतर्कता पूर्वक निष्पक्ष भाव से परीक्षण करवाना चाहिए और मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर अपने देश की क्षमता को परखते रहना चाहिए | सरकारें यदि पारदर्शिता पूर्वक विचार करना चाहें तो मौसम संबंधी पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सही हुए कितने प्रतिशत गलत और गलत होने के कारण क्या हैं उनका सुधार कैसे होगा उसके लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए | सरकारें समाज के धन से ऐसे विभागों का संचालन करती हैं उनकी सुख सुविधाओं से लेकर अनुसंधान संबंधी संसाधनों पर जो धन खर्च करती हैं वो जिस जनता का होता है उसे भी तो यह पता लग्न चाहिए कि मौसम संबंधी अनुसंधानों पर खर्च किए जाने वाले उनके धन का कितने प्रतिशत सदुपयोग हो रहा है |
जलवायु परिवर्तन- ग्लोबल वार्मिंग
जलवायु परिवर्तनऔसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। भारत में मानसून की आँख मिचौली और पूरी दुनियाँ में जलवायु का अनिश्चित व्यवहार इसके प्रमाण हैं।गर्मियाँ लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियाँ छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन | धरती का तापमान बढ़ रहा है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है ! सृष्टि जब से बनी है तबसे यही सब होता चला आ रहा है मौसम संबंधी ढुलमुल भविष्यवाणियों के किए जाने पर भी मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए प्रतिष्ठा बचाने में बहुत मददगार सिद्ध होते हैं ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिकशब्द !
प्राकृतिक घटनाएँ -
प्रकृति में अनेकों प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना तो कठिन है ही सबसे बड़ी बात ये है कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ किस कारण से घटित होती हैं इस विषय में कहा सुना तो बहुत कुछ जाता है जिसको जो समझ में आता है वो वही बोलता है या यूँ कह लें जिसके मुख में जो आता है वो वही बोल देता है | यदि वो ख्याति प्राप्त अच्छी पद प्रतिष्ठा पाया हुआ वैज्ञानिक है तो उसकी बातों को सही मान लिया जाता है यदि ऐसा नहीं है तो उसे उतनी मान्यता नहीं मिल पाती है ,किंतु छोटे बड़े सभी वैज्ञानिकों के लिये प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अभीतक प्रमाणित रूप से कुछ सिद्ध कर पाना संभव नहीं है |
सूखा वर्षा बाढ़ या आँधी तूफान जैसी घटनाओं के विषय में भविष्यवाणी या तो की नहीं जाती है और यदि की जाती है अपनी सुरक्षा के लिए सतर्कता शुरू से ही बरती जाती है | इतना जुगाड़ तो लगाकर चला ही जाता है कि कौन सी भविष्यवाणी गलत हो जाने पर दोष किसके मत्थे मढ़कर अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाएगी |
मौसम भविष्यवक्ताओं को मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करना तो पड़ता ही है चूँकि उन भविष्यवाणियों का कोई प्रमाणित और विश्वसनीय आधार नहीं होता है इसलिए मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत होने की संभावना हमेंशा बनी रहती है कभी भी कोई भी भविष्यवाणी गलत हो सकती है | इसीलिए कोई भविष्यवाणी सही होगी तब तो प्रतिष्ठा बने और बढ़ेगी ही किंतु यदि वो भविष्यवाणी पूरी तरह गलत भी हो जाए तो भी अपनी प्रतिष्ठा सुरक्षित बनी रहे इसका इंतजाम साथ साथ करके चलना पड़ता है |
यही कारण है कि मौसमसंबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणी करते समय अलनीनों और ला नीना जैसी काल्पनिक आशंकाओं को उस भविष्यवाणी के साथ ही चिपका लिया जाता है यदि भविष्यवाणी सही हुई तब तो मौसमविज्ञान और वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला मौसम संबंधी पूर्वानुमान और यदि वह भविष्यवाणी गलत निकल गई तो अलनीनों और ला नीना जैसी घटनाओं का प्रभाव बता कर अपनी वैज्ञानिक प्रतिष्ठा को बड़ी चतुराई पूर्वक बचा लिया जाता है |
इसी प्रकार से वर्षा संबंधी पूर्वानुमान के लिए अल्पावधि भविष्यवाणी करते समय जलवायु परिवर्तन को साथ ही चिपका लिया जाता है भविष्यवाणी सही हो जाए तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाए तो जलवायु परिवर्तन !
ऐसे ही आँधी तूफानों या वायु प्रदूषण से संबंधित कोई भविष्यवाणी करते समय ग्लोबल वार्मिंग को साथ में चिपका लिया जाता है !भविष्यवाणी सही हो जाए तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाए तो ग्लोबल वार्मिंग !
उसके लिए कोई व्यक्ति किसी मौसम भविष्यवक्ता की मौसम पूर्वानुमान लगाने की योग्यता पर प्रश्नचिन्ह न खड़ा कर दे इसलिए इतने सारे इंतजाम करके ही मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करके चलना पड़ता है |
मौसम स्वतंत्र नहीं है !मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं पर अलनीनो,ला-नीनो,जलवायुपरिवर्तन' 'ग्लोबलवार्मिंग' आदि का बहुत बड़ा प्रभाव माना जाता है मौसम के रुख को बदलने के पीछे इन्हीं के प्रभाव को जिम्मेदार बताया जाता है !पूर्वानुमानों के गलत हो जाने में इन्हें कारण के रूप में चिन्हित किया जाता है |
एल नीनो और ला-नीनो-
"अलनीनो की सक्रियता बढ़ने से पृथ्वी के कुछ हिस्सों में भारी वर्षा होती है तो कुछ हिस्से अकाल की मार सहते हैं।"
"ला-नीनो के प्रभाव से पश्चिमी प्रशांत महासागर में अत्यधिक बारिश होने से पानी का स्तर बढ़ जाता है, वहीं दूसरी तरफ पूर्वी प्रशांत महासागर में वर्षा बहुत कम होती है।बताया जाता है कि ला नीना एल नीनो से ठीक विपरीत प्रभाव रखती है।ला नीना परिघटना कई बार दुनिया भर में बड़ी बाढ़ की सामान्य वजह बन जाती है।"
कुलमिलाकर अलनीनो और लानीना का प्रभाव पड़ने से कहीं वर्षा बहुत अधिक होती है और कहीं सूखा पड़ जाता है !
एल नीनो आदि का सटीक कारण, तीव्रता ,अवधि एवं इससे संबंधित पूर्वानुमान की सही-सही जानकारी नहीं की जा सकती है।
बताया जाता है कि पीटा बंदरगाह के समुद्री मछुआरों ने ही सबसे पहले इसे अल–नीनो नाम दिया था !ये समुद्री मछुआरों का पारंपरिक अनुभव था उन्हीं समुद्री मछुआरों के दिखाए रास्ते पर चल रहा है मौसम विज्ञान !
विशेष बात - सृष्टि जब से बनी है तब से ही वर्षा का वितरण समान कभी नहीं रहा और न रहना संभव ही है समान वर्षा हो समान बदल आवें समान आँधी तूफ़ान आवें सभी जगह एक सामान भूकंप आवें ऐसा कैसे हो सकता है | ऐसा न होने की आशंकाओं से ही अलनीनो और लानीना जैसी धारणाओं का उद्गम हुआ है जो तर्क के धरातल पर कहीं नहीं टिकती हैं|क्योंकि सारी पृथ्वी पर एक जैसी वर्षा होते तो कभी नहीं देखा जाता है |
इसलिए मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की दिशा में अलनीनो और लानीना जैसी कल्पनाओं की कहीं कोई भूमिका नहीं दिखाई देती है |फिर भी मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए ऐसी कल्पनाएँ कई बार उनकी अपनी प्रतिष्ठा बचने में बड़ी मददगार सिद्ध हो जाती हैं |
अलनीनो और लानीना के असर के विषय में बताया जाता है कि इनके कारण कहीं अधिक वर्षा होती है और कहीं कम वर्षा होती है | ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा यदि कम वर्षा की भविष्यवाणी की गई और वर्षा हुई भी कम तब तो भविष्यवाणी सच हो ही गई किंतु यदि कम वर्षा की भविष्यवाणी करने के बाद अधिक वर्षा हो गई तो ऐसे समय अलनीनो और लानीना जैसे शब्दों को सामने करके अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाती है | कह दिया जाता है कि वर्षा तो कम ही होनी थी किंतु अचानक अलनीनो या लानीना जैसे प्रभाव से वर्षा अधिक हो गई है | ऐसा ही अधिक वर्षा होने की भविष्यवाणी करने के बाद कम वर्षा हो जाने पर भी ऐसे काल्पनिक शब्दों को आगे करके अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाती है |
जलवायुपरिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी काल्पनिक घटनाओं का उपयोग भी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इसी प्रकार से अत्यंत चतुराई पूर्वक किया जाता है |
मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा सामान्यवर्षा होने की भविष्यवाणी करने के बाद यदि बहुत अधिक वर्षा या बाढ़ हो जाए तो जलवायु परिवर्तन का ढिंढोरा पीट दिया जाता है |ऐसे ही यदि कहीं अचानक आँधी तूफ़ान या वायु प्रदूषण बढ़ने की घटनाएँ घटित होने लगें तो ग्लोबल वार्मिंग की डुगडुगी बजाई जाने लगती है |
प्राचीन काल में राजा महाराजा लोग समय समय पर मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियों का परीक्षण इसलिए किया करते थे ताकि मौसमभविष्यवक्ता लोग निरंकुश होकर भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर कुछ भी बोलने बकने न लगें जिनका मौसम संबंधी घटनाओं से कोई संबंध ही न हो | उस युग में ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओंको छोटे बड़े पद राजा लोग स्वयं नहीं दिया करते थे अपितु उन लोगों को अपने द्वारा की जाने वाली सही भविष्यवाणियों के द्वारा अपनी योग्यता सिद्ध करनी पड़ती थी |उसी के अनुशार उनका प्रत्साहन होता था और उन्हें पद प्रतिष्ठा प्रदान की जाती थी |
ऐसी परिस्थिति में वर्तमान सरकारों को भी केवल मूकदर्शी बनकर बैठा नहीं रहना चाहिए अपितु उन्हें अपने कर्तव्य का पालन करते हुए प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों का सतर्कता पूर्वक निष्पक्ष भाव से परीक्षण करवाना चाहिए और मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर अपने देश की क्षमता को परखते रहना चाहिए | सरकारें यदि पारदर्शिता पूर्वक विचार करना चाहें तो मौसम संबंधी पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सही हुए कितने प्रतिशत गलत और गलत होने के कारण क्या हैं उनका सुधार कैसे होगा उसके लिए जवाबदेही तय की जानी चाहिए | सरकारें समाज के धन से ऐसे विभागों का संचालन करती हैं उनकी सुख सुविधाओं से लेकर अनुसंधान संबंधी संसाधनों पर जो धन खर्च करती हैं वो जिस जनता का होता है उसे भी तो यह पता लग्न चाहिए कि मौसम संबंधी अनुसंधानों पर खर्च किए जाने वाले उनके धन का कितने प्रतिशत सदुपयोग हो रहा है |
जलवायु परिवर्तन- ग्लोबल वार्मिंग
जलवायु परिवर्तनऔसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं। भारत में मानसून की आँख मिचौली और पूरी दुनियाँ में जलवायु का अनिश्चित व्यवहार इसके प्रमाण हैं।गर्मियाँ लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियाँ छोटी. पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है. यही है जलवायु परिवर्तन | धरती का तापमान बढ़ रहा है. इसे आमतौर पर ग्लोबल वार्मिंग या जलवायु परिवर्तन कहा जाता है ! सृष्टि जब से बनी है तबसे यही सब होता चला आ रहा है मौसम संबंधी ढुलमुल भविष्यवाणियों के किए जाने पर भी मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए प्रतिष्ठा बचाने में बहुत मददगार सिद्ध होते हैं ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिकशब्द !
ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन का प्रभाव !
इनके प्रभाव के विषय में कहा जाता है कि जलवायु परिवर्तन का असर मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों और जीव जंतुओं
पर देखने को मिल सकता है. पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लग सकते हैं
और जानवर अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं.कभी कभी बर्फ बहुत अधिक जम जाएगी तो कभी हिमखंड और
ग्लेशियर्स पिघलते देखे जाएँगे |कभी कभी वर्षा बहुत अधिक हो जाएगी कभी कभी सूखा पड़ जाएगा | ये सब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव हैं जो दिखते रहेंगे ! इस बारे में निश्चित तौर पर कुछ कहना तो मुश्किल
है. लेकिन इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में
कमी आ सकती है, भीषण बाढ़, आँधी तूफ़ान चक्रवात , सूखा और गर्म हवाएँ चलने की घटनाएँ बढ़ सकती
हैं | इंसानों और जीव जंतुओं की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम
में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा | इसको लेकर 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह
खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेराॅइड) के पृथ्वी से
टकराने से भी बड़ा माना जा रहा है।
ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वाले वही लोग हैं जो वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के विषय की सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ दो चार दिन पहले नहीं कर पाते हैं करते हैं तो कितने हिचकोले खा रहे होते हैं कितने बार उन्हें रिपीट करते हैं कितने बार उनमें संशोधन करते हैं फिर भी वे गलत निकल जाती हैं दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान सही नहीं हो पाता है ! मानसून आने जाने का पूर्वानुमान लगा पाने में असफल रहने के कारण ऐसे लोग अब मानसून आने जाने की तारीखें आगे पीछे करके प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं |
ऐसे लोग ग्लोबलवार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बताने के नाम पर आज से सौ सौ दो दो सौ वर्ष बाद में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अफवाहें फैलाते देखे जा रहे हैं उन्हें लगता है कि तब तो हम होंगे नहीं इसलिए तब तो हमारी जवाबदेही बिलकुल नहीं रहेगी !
कुलमिलाकर ऐसी निरर्थक बातें बता बताकर अनुसंधान के नाम पर हम अपना समय ऊर्जा एवं संसाधन निरर्थक बर्बाद करते जा रहे हैं ऐसी बातों पर विश्वास करने का औचित्य भी क्या है |
जिनका कोई आस्तित्व नहीं है इनमें कोई सच्चाई नहीं है जिन्हें हम प्रमाणित नहीं कर सकते हैं !अतिशीघ्र सच्चाई सामने आते ही ये सब बहुत जल्दी सबको समझ में आ जाएगा ! ये आशंकाएँ हमारी निराधार थीं |
फिर भी सूखा वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं जिसे अच्छे प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए | इसके लिए शहर शहर गाँव गाँव घर घर में भी मौसम संबंधी घटनाओं पर अनुसंधान करने के नाम पर चित्र लेने के लिए उस प्रकार के यंत्र लगाए जा रहे हैं ये भी उत्तम प्रयास है | ऐसे प्रयासों से जिन प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण हो चुका है वे तो देखी जा सकती हैं उनके विषय में अंदाजा भी लगाया जा सकता है किंतु उन वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का निर्माण कब तथा प्रकृति की किस प्रकार की परिस्थतियों में होता है|वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान आदि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना घटित होने से पहले प्रकृति के किन किन तत्वों में किस किस प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाते हैं और ऐसे परिवर्तन होने का कारण क्या होता है इस प्रकार की मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण करने वाली शक्तियों पर पर्याप्त अनुसंधान न होने के कारण प्राकृतिकघटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना अभीतक असंभव सा ही बना हुआ है | ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों रडारों के सहयोग से संभावित प्राकृतिकघटनाओं के विषय में कुछ अंदाजा जरूर लगा लिया जाता है कुछ तीर तुक्के कभी कभी सही भी हो जाते हैं किंतु अधिक नहीं !इसका कारण है वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ जब जहाँ बनती हैं उनके निर्माण के बाद उन्हें उपग्रहों रडारों आदि से देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से ये अंदाजा लगा लेना कि ये किस किस दिन किस किस देश या शहर आदि में पहुँच सकती हैं यही अनुमान यदि ऐसी घटनाओं के निर्माण से पूर्व लगा लिया जाए कि उस महीने दिनों आदि में वर्षा बाढ़ या आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित हो सकती हैं तब तो इसे पूर्वानुमान माना जा सकता है अन्यथा नहीं |
उपग्रहों रडारों आदि से देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से लगाया गया अंदाजा के सही होने की संभावनाएँ अत्यंत कम इसलिए होती हैं क्योंकि वायु का रुख कभी स्थायी नहीं होता है वो कभी भी बदल सकता है तो प्राकृतिकघटनाओं से संबंधित अंदाजा भी गलत हो जाता है |
वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण कई बार समुद्र के सुदूर क्षेत्रों में होता है ऐसे समय में उपग्रहों रडारों के सहयोग से प्राप्त होने वाली जानकारी उससे होने वाली जन धन संबंधी हानि को कम कर देने में बहुत सहायक होती है क्योंकि बचाव कार्यों के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है किंतु जब ऐसी घटनाएँ समुद्र में बहुत नजदीकी क्षेत्रों में निर्मित होती हैं तब इनका अंदाजा लग पाने के बाद बचाव कार्यों के लिए समय बहुत कम बच पाता है |
उपग्रहों रडारों आदि से देखकर उनकी दिशा एवं गति के हिसाब से लगाया गया अंदाजा के सही होने की संभावनाएँ अत्यंत कम इसलिए होती हैं क्योंकि वायु का रुख कभी स्थायी नहीं होता है वो कभी भी बदल सकता है तो प्राकृतिकघटनाओं से संबंधित अंदाजा भी गलत हो जाता है |
वर्षा या आँधी तूफ़ान जैसी प्राकृतिक घटनाओं का निर्माण कई बार समुद्र के सुदूर क्षेत्रों में होता है ऐसे समय में उपग्रहों रडारों के सहयोग से प्राप्त होने वाली जानकारी उससे होने वाली जन धन संबंधी हानि को कम कर देने में बहुत सहायक होती है क्योंकि बचाव कार्यों के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है किंतु जब ऐसी घटनाएँ समुद्र में बहुत नजदीकी क्षेत्रों में निर्मित होती हैं तब इनका अंदाजा लग पाने के बाद बचाव कार्यों के लिए समय बहुत कम बच पाता है |
दूसरी बात समुद्र के किसी भाग में निर्मित होते वर्षा के वातावरण को देखकर उसकी गति या दिशा के अनुशार बादल कब कहाँ पहुँचेंगे यदि इस बात का अंदाजा लगा भी लिया जाए और वे वहाँ पहुँच भी जाएँ तो भी वे बादल कहाँ बरसेंगे कहाँ नहीं बरसेंगे या कहाँ कितना बरसेंगे कहाँ कितने दिनों तक बरसेंगे इस बात का अंदाजा लगा पाना संभव नहीं होता है |कभी कभी किसी एक ही स्थान पर कई कई दिनों तक बारिश चला करती है ऐसे समय में मौसमी पूर्वानुमानों के नाम पर जो अंदाजा लगाया जाता है वो अक्सर दो तीन दिन पहले का होता है फिर जैसे जैसे वर्षा बढ़ती जाती है वैसे वैसे अंदाजा लगाने वाले लोग भी एक एक दो दो दिन करके आगे बढ़ाते चले जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में वे क्षेत्र बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं बाढ़ में फँसे लोग बेबश एवं लचार होते देखे जाते हैं ये पूर्वानुमान यदि उन्हें पहले से पता हों कि यहाँ इतने दिनों तक इतनी अधिक हो सकती है तो ऐसे क्षेत्रों के लोग अपने बचाव कार्यों के लिए अपने स्तर से प्रयास कर सकते हैं अपनी आवश्यकता के अनुशार उतने समय के लिए खाद्य पदार्थों का संग्रह पर सकते हैं |आपदा प्रबंधन की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोग शुरू से ही सतर्कता बरत सकते हैं वर्षा जनित पानी की निकासी की जिम्मेदारी सँभालने वाले लोग अपनी जिम्मेदारी सतर्कता पूर्वक निभा सकते हैं ताकि जलजमाव या बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न होने पर जनधन की हानि को कम किया जा सकता है |
ऐसी परिस्थिति में समस्या तब पैदा होती है जब किसी क्षेत्र में पहले एक दो दिन बारिश होती है तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है फिर मौसम भविष्यवक्ताओं से पता लगता है कि 24, 48 या 72 घंटे और बरसेगा तो लोग समझ लेते हैं बस इतना ही और बरसेगा तो उतने दिनों के लिए वे अपने जीवनोपयोगी आवश्यक संसाधन जुटा लेते हैं | किंतु उतना समय बीत जाने के बाद जब मौसम भविष्यवक्ता लोग 24, 48 या 72 घंटे और बरसेगा ऐसी भविष्यवाणी दोबारा तिबारा आदि तब तक करते चले जाते हैं जब तक वर्षा होती रहती है | ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर जो कुछ भी कहा या बताया जाता है उससे लाभ की संभावना बिलकुल नहीं रह जाती है वो खानापूर्ति मात्र होता है | ऐसी परिस्थिति में बाढ़ प्रभावित लोगों को लगने लगता है कि यदि पहले 24, 48 या 72 घंटे तक और बरसेगा ऐसी भविष्यवाणियाँ न की गई होतीं तो यह क्षेत्र छोड़कर अपने संसाधनों से हम कहीं जा तो सकते थे किंतु मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर जो कुछ भी कहा गया उसे मानने के कारण अब तो हम पूरी तरह से दूसरों के ही आधीन हो गए हैं |मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक विधा न होने के कारण ही इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा होती हैं |इस प्रकार से बादलों को देख देखकर लगाया जाने वाला अंदाजा पूर्वानुमान कैसे सकता है |
कुलमिलाकर अभीतक ऐसी कोई विधा विकसित नहीं की जा सकी है जिससे इस बात का अनुमान लगाया जा सके कि ये बारिश कितने दिनों तक होगी | ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं की प्रतिष्ठा को बचाए रखने में जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिक शब्द अत्यंतमहत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |इनका अपना कोई आधार प्रमाण प्रभाव पहिचान उपयोग आदि भले ही न हो किंतु मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर गढ़े जाने वाले वर्षा संबंधी तीर तुक्के गलत होते ही सारी जिम्मेदारी जिस किसी एक शब्द पर डाल दी जाती है वो है जलवायुपरिवर्तन |
मानसून कब आएगा कब जाएगा इसके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक किसी वैज्ञानिक तकनीक का आविष्कार ही नहीं हुआ है जो मौसम भविष्यवक्ता लोग भी मानसून जाने के लिए को एक तारीख निश्चित करते हैं ये उन्हें भी पता है कि मानसून आजतक लगातार किन्हीं 5 वर्षों में किसी एक निश्चित तारीख को आया गया ही नहीं है इसके बाद भी केवल गलत होने के लिए ही तो प्रतिवर्ष मानसून के आने जाने की तारीखों की भविष्यवाणी की जाती है जब वे लगातार गलत होती रहती हैं तब मानसून के आने जाने की तारीखें ही बदल दी जाती हैं | कुलमिलाकर कभी किसी एक निश्चित तारीख़ को मानसून आया या गया ही नहीं है फिर भी मानसून के आने जाने की स्वयं तारीखें निश्चित करना फिर उसके गलत हो जाने पर मानसून के आने जाने के समय में परिवर्तन होने का ढिंढोरा पीटना विज्ञान सम्मत है ही नहीं |इसलिए ऐसे अंधविश्वासों से ऊपर उठकर पहले तो इस बात की खोज होनी चाहिए कि क्या मानसून के आने जाने की तारीखें निश्चित की जा सकती हैं यदि हाँ तो कैसे ?इसका अनुसंधान हो जाने के बाद पहले कुछ वर्ष उनका परीक्षण चाहिए उसके सही घटित होने पर ही इसे मौसम संबंधी पूर्वानुमानों को लगाने की प्रक्रिया में प्रमाण पूर्वक प्रस्तुत किया जाना चाहिए |
इसी प्रकार से वर्षा आदि मौसम के विषय में दीर्घावधि के लिए की जाने वाली भविष्यवाणियाँ करने के लिए अभी तक कोई भी तकनीक विकसित ही नहीं की जा सकी है ये बात इससे और अधिक प्रमाणित हो जाती है कि किसी क्षेत्र में जब बाढ़ आती है उसके चार दिन पहले भी उसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकी होती है !जैसे जैसे बारिस होते जाती है वैसे वैसे मौसम भविष्यवक्ता लोग अपनी वर्षा संबंधी भविष्यवाणियाँ भी 24, 48 या 72 घंटे आदि आगे बढ़ाते चले जाते हैं| इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि दस -बीस दिन आगे की वर्षा आदि से संबंधित मौसमभविष्यवाणी करने की जब अभी तक कोई विकसित तकनीक ही नहीं है तब महीनों पहले की जाने वाली मौसमसंबंधी दीर्घावधि की भविष्यवाणियों के सही होने का प्रश्न ही कैसे उठ सकता है |फिर भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान के नाम पर मौसम भविष्यवक्ता लोग जो कुछ भी तीर तुक्के लगाते हैं उनके गलत हो जाने पर उसकी सारी जिम्मेदारी मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर गढ़े जाने वाले अलनीनों- ला-नीना जैसे शब्दों पर डाल दी जाती है जो गलत है |
ऐसे ही आँधी तूफानों या चक्रवातों के विषय में भी पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित ही नहीं की जा सकी है |आँधीतूफानों जैसी जिन घटनाओं का निर्माण हो चुका होता है वे जहाँ से उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से देख ली जाती हैं उनकी दिशा और गति देखकर इस बात का अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि इनके कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँचने की संभावना है किंतु इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | कई बार एक के बाद एक ऐसे कई कई तूफ़ान एक दो दिनों के अंतराल में आते देखे जाते हैं !ऐसे संभावित तूफानों के विषय में अंदाजा लगाने की कोई विधा न होने के कारण इनके विषय में कुछ भी बता पाना असंभव होता है कि ऐसी घटनाएँ कितने दिनों सप्ताहों तक और घटित होती रहेंगी | ऐसी घटनाओं से समाज का चिंतित होना स्वाभाविक है |किंतु इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है कि ऐसा कब तक होता रहेगा !इसलिए ऐसी भविष्यवाणियों के गलत हो जाने के लिए 'ग्लोबलवार्मिंग' नामक एक काल्पनिक शब्द गढ़ा गया और सारी जिम्मेदारी इसी शब्द पर डाल कर अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाती है | इसीलिए या प्रमाणित रूप से कहा जा सकता है कि आँधी तूफानों या चक्रवातों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक तकनीक विकसित ही नहीं हुई है |
ऐसी परिस्थिति में समस्या तब पैदा होती है जब किसी क्षेत्र में पहले एक दो दिन बारिश होती है तो उसे गंभीरता से नहीं लिया जाता है फिर मौसम भविष्यवक्ताओं से पता लगता है कि 24, 48 या 72 घंटे और बरसेगा तो लोग समझ लेते हैं बस इतना ही और बरसेगा तो उतने दिनों के लिए वे अपने जीवनोपयोगी आवश्यक संसाधन जुटा लेते हैं | किंतु उतना समय बीत जाने के बाद जब मौसम भविष्यवक्ता लोग 24, 48 या 72 घंटे और बरसेगा ऐसी भविष्यवाणी दोबारा तिबारा आदि तब तक करते चले जाते हैं जब तक वर्षा होती रहती है | ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर जो कुछ भी कहा या बताया जाता है उससे लाभ की संभावना बिलकुल नहीं रह जाती है वो खानापूर्ति मात्र होता है | ऐसी परिस्थिति में बाढ़ प्रभावित लोगों को लगने लगता है कि यदि पहले 24, 48 या 72 घंटे तक और बरसेगा ऐसी भविष्यवाणियाँ न की गई होतीं तो यह क्षेत्र छोड़कर अपने संसाधनों से हम कहीं जा तो सकते थे किंतु मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर जो कुछ भी कहा गया उसे मानने के कारण अब तो हम पूरी तरह से दूसरों के ही आधीन हो गए हैं |मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक विधा न होने के कारण ही इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा होती हैं |इस प्रकार से बादलों को देख देखकर लगाया जाने वाला अंदाजा पूर्वानुमान कैसे सकता है |
कुलमिलाकर अभीतक ऐसी कोई विधा विकसित नहीं की जा सकी है जिससे इस बात का अनुमान लगाया जा सके कि ये बारिश कितने दिनों तक होगी | ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं की प्रतिष्ठा को बचाए रखने में जलवायुपरिवर्तन जैसे काल्पनिक शब्द अत्यंतमहत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं |इनका अपना कोई आधार प्रमाण प्रभाव पहिचान उपयोग आदि भले ही न हो किंतु मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर गढ़े जाने वाले वर्षा संबंधी तीर तुक्के गलत होते ही सारी जिम्मेदारी जिस किसी एक शब्द पर डाल दी जाती है वो है जलवायुपरिवर्तन |
मानसून कब आएगा कब जाएगा इसके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक किसी वैज्ञानिक तकनीक का आविष्कार ही नहीं हुआ है जो मौसम भविष्यवक्ता लोग भी मानसून जाने के लिए को एक तारीख निश्चित करते हैं ये उन्हें भी पता है कि मानसून आजतक लगातार किन्हीं 5 वर्षों में किसी एक निश्चित तारीख को आया गया ही नहीं है इसके बाद भी केवल गलत होने के लिए ही तो प्रतिवर्ष मानसून के आने जाने की तारीखों की भविष्यवाणी की जाती है जब वे लगातार गलत होती रहती हैं तब मानसून के आने जाने की तारीखें ही बदल दी जाती हैं | कुलमिलाकर कभी किसी एक निश्चित तारीख़ को मानसून आया या गया ही नहीं है फिर भी मानसून के आने जाने की स्वयं तारीखें निश्चित करना फिर उसके गलत हो जाने पर मानसून के आने जाने के समय में परिवर्तन होने का ढिंढोरा पीटना विज्ञान सम्मत है ही नहीं |इसलिए ऐसे अंधविश्वासों से ऊपर उठकर पहले तो इस बात की खोज होनी चाहिए कि क्या मानसून के आने जाने की तारीखें निश्चित की जा सकती हैं यदि हाँ तो कैसे ?इसका अनुसंधान हो जाने के बाद पहले कुछ वर्ष उनका परीक्षण चाहिए उसके सही घटित होने पर ही इसे मौसम संबंधी पूर्वानुमानों को लगाने की प्रक्रिया में प्रमाण पूर्वक प्रस्तुत किया जाना चाहिए |
इसी प्रकार से वर्षा आदि मौसम के विषय में दीर्घावधि के लिए की जाने वाली भविष्यवाणियाँ करने के लिए अभी तक कोई भी तकनीक विकसित ही नहीं की जा सकी है ये बात इससे और अधिक प्रमाणित हो जाती है कि किसी क्षेत्र में जब बाढ़ आती है उसके चार दिन पहले भी उसकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकी होती है !जैसे जैसे बारिस होते जाती है वैसे वैसे मौसम भविष्यवक्ता लोग अपनी वर्षा संबंधी भविष्यवाणियाँ भी 24, 48 या 72 घंटे आदि आगे बढ़ाते चले जाते हैं| इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि दस -बीस दिन आगे की वर्षा आदि से संबंधित मौसमभविष्यवाणी करने की जब अभी तक कोई विकसित तकनीक ही नहीं है तब महीनों पहले की जाने वाली मौसमसंबंधी दीर्घावधि की भविष्यवाणियों के सही होने का प्रश्न ही कैसे उठ सकता है |फिर भी दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान के नाम पर मौसम भविष्यवक्ता लोग जो कुछ भी तीर तुक्के लगाते हैं उनके गलत हो जाने पर उसकी सारी जिम्मेदारी मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर गढ़े जाने वाले अलनीनों- ला-नीना जैसे शब्दों पर डाल दी जाती है जो गलत है |
ऐसे ही आँधी तूफानों या चक्रवातों के विषय में भी पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई तकनीक विकसित ही नहीं की जा सकी है |आँधीतूफानों जैसी जिन घटनाओं का निर्माण हो चुका होता है वे जहाँ से उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से देख ली जाती हैं उनकी दिशा और गति देखकर इस बात का अंदाजा तो लगाया जा सकता है कि इनके कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँचने की संभावना है किंतु इनके विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | कई बार एक के बाद एक ऐसे कई कई तूफ़ान एक दो दिनों के अंतराल में आते देखे जाते हैं !ऐसे संभावित तूफानों के विषय में अंदाजा लगाने की कोई विधा न होने के कारण इनके विषय में कुछ भी बता पाना असंभव होता है कि ऐसी घटनाएँ कितने दिनों सप्ताहों तक और घटित होती रहेंगी | ऐसी घटनाओं से समाज का चिंतित होना स्वाभाविक है |किंतु इसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं होता है कि ऐसा कब तक होता रहेगा !इसलिए ऐसी भविष्यवाणियों के गलत हो जाने के लिए 'ग्लोबलवार्मिंग' नामक एक काल्पनिक शब्द गढ़ा गया और सारी जिम्मेदारी इसी शब्द पर डाल कर अपनी प्रतिष्ठा बचा ली जाती है | इसीलिए या प्रमाणित रूप से कहा जा सकता है कि आँधी तूफानों या चक्रवातों के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक तकनीक विकसित ही नहीं हुई है |
वायुप्रदूषण कभी बढ़ता है कभी नहीं बढ़ता किसी स्थान पर बढ़ता है किसी स्थान पर नहीं बढ़ता जबकि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार माने जाने वाले बहुत सारे कारण हमेंशा लगभग एक जैसे ही चला करते हैं निर्माणकार्य हों या उद्योगधंधे वाहनों का चलना जैसी घटनाएँ लगभग एक जैसी हमेंशा ही चला करती हैं | कई बार कुछ देशों या शहरों में वायुप्रदूषण एक समय में ही बढ़ते देखा जाता है जबकि उन दोनों के बीच आपसी अंतराल बहुत अधिक होता है इसलिए दोनों स्थानों पर वायुप्रदूषण बढ़ने का एक समान कारण हो यह संभव नहीं है | सभी देशों में दीवाली दशहरा आदि नहीं मनाया जाता है पराली आदि फसलों के अवशेष भी सभी देशों में नहीं जलाए जाते हैं ऐसी परिस्थिति में वायुप्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण क्या है दूसरी बात वायुप्रदूषण के एक ही समय पर बढ़ने का कारण क्या है इसे परिभाषित करने के लिए कुछ काल्पनिक कारणों के अतिरिक्त अभी तक कोई ऐसी वैज्ञानिक तकनीक नहीं खोजी जा सकी है जिसके आधार पर प्रमाण पूर्वक ये कहा जा सके कि वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण ये है और जब तक कारण का पता लगाने की तकनीक विकसित नहीं तक वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाना भी होगा |
भूकंप-
अभी तक ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है जिसके द्वारा भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाया जा सके !वस्तुतः भूकंप आने का वास्तविक कारण क्या है अभी तक इसका भी कोई प्रमाणित उत्तर नहीं खोजा जा सका है | पृथ्वी के अंदर भरी हुई गैसों के दबाव को कारण बताया गया हो या फिर भूकंप आने का कारण पृथ्वी के अंदर अत्यंत गहराई में स्थित टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को माना गया हो किंतु ऐसी सभी बातें तब तक कोरी कल्पना मात्र हैं जब तक ऐसा घटित होते किसी ने देखा न हो या फिर ऐसी कल्पनाओं के आधार पर भूकंपों से संबंधित लगाया गया कोई पूर्वानुमान ही सही निकला हो | ऐसे बिना किसी प्रमाणित आधार के भूकंप आने का कारण यही है ऐसा किसी भी काल्पनिक कहानी के विषय में कैसे स्वीकार किया जा सकता है |किसी भी विषय से संबंधित कारण का ज्ञान हुए बिना पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाता है |
कई बार किसी स्थान विशेष में बार बार भूकंप आते देखे जाते हैं जिनके विषय में बताया जाता है कि यहाँ गैसों का दबाव बहुत अधिक है किंतु एक बार भूकंप आने के बाद भी वहाँ भूकंप आते रहते हैं |कई जगहों पर तो पहले भूकंप के बाद ही कई जगह धरती फट जाया करती है ऐसी परिस्थिति में उन दरारों से गैसें निकल जाती हैं उसके बाद उसी स्थान पर जो दोबारा भूकंप आते हैं उनका कारण क्या होता है ?
विशेषबात- आँधी-तूफ़ान ,वर्षा- बाढ़, वायुप्रदूषण या भूकंप आदि से संबंधित पूर्वानुमान खोजने से पहले उस घटना के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत कारणों की खोज होनी चाहिए | प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने के पीछे कुछ कारणों की कल्पना करके उन्हें उसप्रकार की घटनाएँ घटित होने के लिए जिम्मेदार मान लेना विज्ञान सम्मत हो ही नहीं सकता है क्योंकि संबंधित घटनाएँ घटित होने के साथ उन कारणों का कोई संबंध तो सिद्ध होना ही चाहिए !बिना किसी प्रमाणित आधार के उन्हें कारण के स्वरूप में स्वीकार कर लेना विज्ञानं भावना के साथ खिलवाड़ है जो नहीं होना चाहिए |
भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है क्यों ?
सर्दी गर्मी वर्षा आदि की अपनी अपनी ऋतुएँ होती हैं और भूकंपों की अपनी कोई ऋतु नहीं होती है इसलिए भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर झूठ नहीं बोलै जा सकता है यदि बोलै भी जाए तो तुरंत पकड़ जाता है इसलिए कह दिया गया है कि भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणियाँ नहीं की जा सकती हैं | इसका मतलब आँधी तूफ़ान एवं वर्षा बाद आदि से संबंधित भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं किंतु यदि ऐसा ही होता तो इनसे संबंधित भविष्यवाणियाँ इतने बड़े अनुपात में गलत कैसे हो जाती हैं |
सर्दी गर्मी वर्षा आदि के विषय में भविष्यवाणी करना इसलिए सुविधाजनक होता है क्योंकि सभी ऋतुओं में उनके स्वभाव के अनुसार प्रभाव पड़ता ही है सर्दी में सर्दी होगी ही कुछ कम या अधिक हो यह और बात है ऐसे ही गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ हैं | गर्मी में आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी जाए या गर्मी और अधिक बढ़ने की भविष्यवाणी कर दी जाए ऐसे ही वर्षा ऋतु में वर्षा होने संबंधी भविष्यवाणी कर दी जाए तो उसके पूरी तरह गलत हो जाने पर भी जवाब देने लायक परिस्थिति बनी रहती है यहाँ नहीं तो वर्षा होगी ज्यादा नहीं तो कम होगी कुछ नहीं तो बादल तो आ ही जाएँगे | ऐसी परिस्थिति में अपने द्वारा की गई भविष्यवाणी सही न होने पर भी थोड़ा बहुत ऊपर नीचे सिद्ध कर ली जाती है |
भूकंपों के विषय में ऋतुसुविधा न होने के कारण इसमें गलत भविष्यवाणियों को सही करने की सुविधा नहीं होती है | इसमें जब भूकंप आने की बात कही जाएगी तब भूकंप आना चाहिए उसका ऐसा अर्थ निकाला जाएगा |
उसमें बादल आने या पश्चिमी विक्षोभ या वायुदाब आदि का नाम ले लेकर अपने द्वारा की गई भविष्यवाणियों के नाम पर उन्हें जबर्दश्ती सही नहीं सिद्ध किया जा सकता है |
पूर्वानुमान विश्वास करने योग्य होने चाहिए -
वर्षा के विषय में कुछ तीर तुक्के भिड़ाए जाते हैं यदि वे एक प्रतिशत भी सही निकल जाते हैं तब तो उन्हें पूर्वानुमान मान लिया जाता है यदि वे पूर्वानुमान गलत निकल गए अर्थात मौसम भविष्यवक्ताओं ने जैसे बताए वैसे नहीं निकले या उससे विपरीत निकल गए तो उस विषय में अपने से हुई गलती खोजकर दोबारा उसमें सुधार करने के बजाए अपने को सही सिद्ध करते हुए मौसम संबंधी घटनाओं को ही गलत सिद्ध कर दिया जाता है |कहते हैं मानसून समय पर नहीं आया !अरे यह भी तो हो सकता है कि मानसून आने और जाने की तारीखों का पूर्वानुमान लगाने में ही असफल रहे हों |
कहीं कम समय में अधिक वर्षा हो जाए जिसका पूर्वानुमान लगा पाने में मौसमवैज्ञानिक कहे जाने वाले लोग यदि असफल सिद्ध हो जाएँ तो अपने द्वारा लगाए गए उन पूर्वानुमानों के गलत होने के कारण खोजने की बजाए सारा दोष जलवायु परिवर्तन पर मढ़ दिया जाता है |
ऐसा कहने के पीछे एक चतुराई छिपी होती है कि हम और हमारे द्वारा की गई मौसम संबंधी भविष्यवाणी गलत नहीं हो सकती है अपितु प्रकृति ही भटक रही है जिसके कारण जो घटनाएँ जब घटित होनी चाहिए तब नहीं घटित हो पा रही हैं आगे पीछे घटित होने लगी हैं ऐसा जलवायुपरिवर्तन होने लगा है |
अब प्रश्न उठता है कि जलवायुपरिवर्तन है क्या ? इसके लक्षण क्या होते हैं इसकी पहचान क्या है ?ऐसा होने क्यों लगा है इसका अनुभव कैसे किया जा सकता है ऐसे प्रश्नों के कोई सटीक प्रमाणित उत्तर हैं ही नहीं फिर भी उसके कुछ लक्षण बता दिए जाते हैं जिनका सच्चाई से कोई संबंध प्रमाणित नहीं सिद्ध होता है| इसके लिए विषम वर्षा जैसे जो भी कारण गिनाए जाते हैं वे हमेंशा हर युग में घटित होते रहे हैं |इसमें कुछ नया नहीं हो रहा है | ऐसी परिस्थिति में ऐसा क्या नया होने लगा है जो पहले नहीं होता था जिसके कारण इस बात का अनुभव किया जाने लगे कि अब जलवायु परिवर्तन होने लगा है |इसके अतिरिक्त किसी के कह देने मात्र से ऐसी बातों पर तब तक विश्वास नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसके प्रमाण अनुभव न किए जाएँ !
वर्षा होने संबंधी या मानसून आने और जाने के विषय में कुछ तीर तुक्के भिड़ाए जाएँ यदि वे सही निकल जाएँ तब तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाएँ तो जलवायु परिवर्तन !
वर्षा संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान सही निकल जाएँ तो पूर्वानुमान और यदि गलत निकल जाएँ तो अलनीनों लानीना जैसी परिकल्पनाएँ कर ली जाती हैं |
वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान सही निकल जाए तो पूर्वानुमान और यदि गलत निकल जाए तो हल और धुआँ उड़ाने वाले तमाम कारण गिना दिए जाते हैं |
इसीप्रकार से मौसम भविष्य वक्ताओं के द्वारा किए जाने वाले आँधी तूफानों से संबंधित पूर्वानुमान सही निकल जाएँ तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाएँ तो ग्लोबलवार्मिंग !
सबसे महत्वपूर्ण -
मौसम भविष्यवक्ताओं को इस बात का निर्णय करना चाहिए कि वे मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगा सकते हैं या नहीं यदि लगा सकते हैं तो मौसम संबंधी प्रत्येक गतिविधि को समझकर ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यदि 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी काल्पनिक घटनाओं के घटित होने का कारण एवं इनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है तो इनके प्रभाव से प्रभावित होने वाले वर्षा अतिवर्षा संबंधी पूर्वानुमान या दीर्घावधिपूर्वानुमान ,आँधीतूफानों से संबंधित पूर्वानुमानों पर भरोसा कैसे किया जा सकता है |
इसका कारण यह है कि मौसम भविष्यवक्ताओं ने 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी घटनाओं को ऐसा कारण मान रखा है कि ये वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों जैसी प्राकृतिक घटनाओं को प्रभावित किया करते हैं तो इनका पूर्वानुमान लगाए बिना मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | चूँकि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा आजतक कोई ऐसी तकनीक नहीं खोजी जा सकी है जिसके द्वारा 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग'का पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो और इनके विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना मौसमसंबंधी किसी भी घटना का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है यदि लगाया भी जाए तो उसके सही होने की संभावना अत्यंत कम होगी क्योंकि भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया है वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों जैसी प्राकृतिक घटनाओं को 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी प्रकृति घटनाएँ प्रभावित किया करती हैं |
यही स्थिति तो भूकंप जैसी घटनाओं की भी है तभी तो उनके पूर्वानुमान नहीं लगाए जा पाते हैं क्योंकि पृथ्वी के अंदर भरी हुई गैसों के दबाव को भूकंप घटित होने का कारण बताया गया है या फिर पृथ्वी के अंदर अत्यंत गहराई में स्थित टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को भूकंप आने का कारण माना गया है ऐसी परिस्थिति में भूकंप की घटना पृथ्वी के अंदर भरी हुई गैसों के दबाव के कारण घटित होती है तो भूकंप का पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं है अपितु गैसों के दबाव के बढ़ने घटने की सीमाओं का अनुसंधान होना चाहिए और इसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए कि गैसों का कितना दबाव होने पर किस प्रकार का भूकंप आ सकता है उसी के आधार पर भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए |
ऐसे ही चूँकि पृथ्वी के अंदर अत्यंत गहराई में स्थित टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को भूकंप आने का कारण माना गया है इसलिए भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने के विषय में पूर्वानुमान लगाना चाहिए क्योंकि भूकंपों के घटित होने का कारण टैक्टॉनिक प्लेटों का आपस में टकराना है इसका पूर्वानुमान लगाए बिना भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
जिस प्रकार से भूकंप आने के कारणों के विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है उसी प्रकार से 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाए बिना वर्षा बाढ़ आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाओं का सही एवं सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
प्रस्तुत हैं कुछ सन 2010 से 2019 के बीच में घटित हुई कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -
केदारनाथ जी में आया भीषण सैलाव - 16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए | इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को घटाया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! बाद में कारण बताते हुए कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हुआ है |
21 अप्रैल 2015 को बिहार और नेपाल में में भीषण तूफ़ान आया था उससे जनधन की भारी हानि हुई थी किंतु इसका कहीं कोई पूर्वानुमान किसी भी रूप में घोषित नहीं किया जा सका था !
2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी जबकि 7और 8 मई को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई थी इसलिए स्कूल तक बंद कर दिए गए थे बाद में हवा का एक झोंका तक नहीं आया था |
17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !
इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है किंतु ऐसी कोई रिसर्च हुई भी है तो उसके क्या परिणाम निकले यह भी तो समाज को बताया जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ !
इसी विषय में दूसरी बड़ी बात यह है कि आँधी तूफानों का पूर्वानुमान बता पाने में असमर्थ रहे ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं ने ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं नेअंत में 7 और 8-मई -2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी थी उस पर सरकारों ने भरोसा करके दिल्ली के आसपास के सभी स्कूल कालेज बंद करवा दिए गए किंतु उस दिन हवा का झोंका भी नहीं आया !
अंत में उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी भविष्यवाणी मौसम संबंधी भविष्यवाणी भविष्यवाणी गलत निकल जाने के बाद उन्हीं भविष्यवक्ताओं को स्वीकार करना पड़ा कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण घटित होने वाले ऐसे आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान लगाना अत्यंत कठिन क्या असंभव सा ही है इस लाचारी को किसी समाचार पत्र में छापा गया था जिसकी हेडिंग थी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"चूँकि भविष्यवक्ताओं के तीर तुक्के इस पर नहीं चले इसका मतलब उनकी अयोग्यता नहीं अपितु "चक्रवात चुपके चुपके से आते हैं" ऐसा लिखा गया !
मद्रास में भीषण बाढ़ -
सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ के कारण त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !मौसम भविष्यवक्ताओं ने वर्षा होने की संभावनाओं को दो दो दिन आगे बढ़ाते बढ़ाते मद्रास को बाढ़ तक पहुँचा दिया था इसके विषय में कभी कोई स्पष्ट भविष्य वाणी नहीं की गई कि वर्षा वर्षा वर्षा आखिर होगी किस तारीख तक !
केरल की भीषण बाढ़ -
3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग ने अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की थी किंतु उनकी भविष्यवाणी के विपरीत 7 अगस्त से ही केरल में भीषण बरसात शुरू हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा !जिसकी कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी यह बात केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार की थी !बाद में सरकारी मौसम भविष्यवक्ता ने एक टेलीवीजन चैनल के इंटरव्यू में कहा कि "केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसीलिए इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका वस्तुतः इसका कारण जलवायु परिवर्तन था !"
अधिक वर्षा के विषय में - इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सरकार के मौसमभविष्यवक्ताओं को यदि वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाना आता है और वो सही भी होता है तो उन्होंने अपनी भूमिका का निर्वाह क्यों नहीं किया ?
प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! अखवारों में प्रकाशित समाचारों के अनुशार उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाई गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
ऐसी परिस्थिति में जिस मौसमविज्ञान के द्वारा दस पाँच दिन पहले घटित होने वाली मौसमसंबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है उसी मौसमविज्ञान के द्वारा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग के कारण भविष्य में किस किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ या आपदाएँ घटित होंगी इस बात का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |
भूकंप-
अभी तक ऐसी कोई तकनीक विकसित नहीं हुई है जिसके द्वारा भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाया जा सके !वस्तुतः भूकंप आने का वास्तविक कारण क्या है अभी तक इसका भी कोई प्रमाणित उत्तर नहीं खोजा जा सका है | पृथ्वी के अंदर भरी हुई गैसों के दबाव को कारण बताया गया हो या फिर भूकंप आने का कारण पृथ्वी के अंदर अत्यंत गहराई में स्थित टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को माना गया हो किंतु ऐसी सभी बातें तब तक कोरी कल्पना मात्र हैं जब तक ऐसा घटित होते किसी ने देखा न हो या फिर ऐसी कल्पनाओं के आधार पर भूकंपों से संबंधित लगाया गया कोई पूर्वानुमान ही सही निकला हो | ऐसे बिना किसी प्रमाणित आधार के भूकंप आने का कारण यही है ऐसा किसी भी काल्पनिक कहानी के विषय में कैसे स्वीकार किया जा सकता है |किसी भी विषय से संबंधित कारण का ज्ञान हुए बिना पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं हो पाता है |
कई बार किसी स्थान विशेष में बार बार भूकंप आते देखे जाते हैं जिनके विषय में बताया जाता है कि यहाँ गैसों का दबाव बहुत अधिक है किंतु एक बार भूकंप आने के बाद भी वहाँ भूकंप आते रहते हैं |कई जगहों पर तो पहले भूकंप के बाद ही कई जगह धरती फट जाया करती है ऐसी परिस्थिति में उन दरारों से गैसें निकल जाती हैं उसके बाद उसी स्थान पर जो दोबारा भूकंप आते हैं उनका कारण क्या होता है ?
विशेषबात- आँधी-तूफ़ान ,वर्षा- बाढ़, वायुप्रदूषण या भूकंप आदि से संबंधित पूर्वानुमान खोजने से पहले उस घटना के घटित होने के लिए जिम्मेदार आधारभूत कारणों की खोज होनी चाहिए | प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने के पीछे कुछ कारणों की कल्पना करके उन्हें उसप्रकार की घटनाएँ घटित होने के लिए जिम्मेदार मान लेना विज्ञान सम्मत हो ही नहीं सकता है क्योंकि संबंधित घटनाएँ घटित होने के साथ उन कारणों का कोई संबंध तो सिद्ध होना ही चाहिए !बिना किसी प्रमाणित आधार के उन्हें कारण के स्वरूप में स्वीकार कर लेना विज्ञानं भावना के साथ खिलवाड़ है जो नहीं होना चाहिए |
भूकंप का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है क्यों ?
सर्दी गर्मी वर्षा आदि की अपनी अपनी ऋतुएँ होती हैं और भूकंपों की अपनी कोई ऋतु नहीं होती है इसलिए भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर झूठ नहीं बोलै जा सकता है यदि बोलै भी जाए तो तुरंत पकड़ जाता है इसलिए कह दिया गया है कि भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणियाँ नहीं की जा सकती हैं | इसका मतलब आँधी तूफ़ान एवं वर्षा बाद आदि से संबंधित भविष्यवाणियाँ की जा सकती हैं किंतु यदि ऐसा ही होता तो इनसे संबंधित भविष्यवाणियाँ इतने बड़े अनुपात में गलत कैसे हो जाती हैं |
सर्दी गर्मी वर्षा आदि के विषय में भविष्यवाणी करना इसलिए सुविधाजनक होता है क्योंकि सभी ऋतुओं में उनके स्वभाव के अनुसार प्रभाव पड़ता ही है सर्दी में सर्दी होगी ही कुछ कम या अधिक हो यह और बात है ऐसे ही गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ हैं | गर्मी में आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी जाए या गर्मी और अधिक बढ़ने की भविष्यवाणी कर दी जाए ऐसे ही वर्षा ऋतु में वर्षा होने संबंधी भविष्यवाणी कर दी जाए तो उसके पूरी तरह गलत हो जाने पर भी जवाब देने लायक परिस्थिति बनी रहती है यहाँ नहीं तो वर्षा होगी ज्यादा नहीं तो कम होगी कुछ नहीं तो बादल तो आ ही जाएँगे | ऐसी परिस्थिति में अपने द्वारा की गई भविष्यवाणी सही न होने पर भी थोड़ा बहुत ऊपर नीचे सिद्ध कर ली जाती है |
भूकंपों के विषय में ऋतुसुविधा न होने के कारण इसमें गलत भविष्यवाणियों को सही करने की सुविधा नहीं होती है | इसमें जब भूकंप आने की बात कही जाएगी तब भूकंप आना चाहिए उसका ऐसा अर्थ निकाला जाएगा |
उसमें बादल आने या पश्चिमी विक्षोभ या वायुदाब आदि का नाम ले लेकर अपने द्वारा की गई भविष्यवाणियों के नाम पर उन्हें जबर्दश्ती सही नहीं सिद्ध किया जा सकता है |
पूर्वानुमान विश्वास करने योग्य होने चाहिए -
वर्षा के विषय में कुछ तीर तुक्के भिड़ाए जाते हैं यदि वे एक प्रतिशत भी सही निकल जाते हैं तब तो उन्हें पूर्वानुमान मान लिया जाता है यदि वे पूर्वानुमान गलत निकल गए अर्थात मौसम भविष्यवक्ताओं ने जैसे बताए वैसे नहीं निकले या उससे विपरीत निकल गए तो उस विषय में अपने से हुई गलती खोजकर दोबारा उसमें सुधार करने के बजाए अपने को सही सिद्ध करते हुए मौसम संबंधी घटनाओं को ही गलत सिद्ध कर दिया जाता है |कहते हैं मानसून समय पर नहीं आया !अरे यह भी तो हो सकता है कि मानसून आने और जाने की तारीखों का पूर्वानुमान लगाने में ही असफल रहे हों |
कहीं कम समय में अधिक वर्षा हो जाए जिसका पूर्वानुमान लगा पाने में मौसमवैज्ञानिक कहे जाने वाले लोग यदि असफल सिद्ध हो जाएँ तो अपने द्वारा लगाए गए उन पूर्वानुमानों के गलत होने के कारण खोजने की बजाए सारा दोष जलवायु परिवर्तन पर मढ़ दिया जाता है |
ऐसा कहने के पीछे एक चतुराई छिपी होती है कि हम और हमारे द्वारा की गई मौसम संबंधी भविष्यवाणी गलत नहीं हो सकती है अपितु प्रकृति ही भटक रही है जिसके कारण जो घटनाएँ जब घटित होनी चाहिए तब नहीं घटित हो पा रही हैं आगे पीछे घटित होने लगी हैं ऐसा जलवायुपरिवर्तन होने लगा है |
अब प्रश्न उठता है कि जलवायुपरिवर्तन है क्या ? इसके लक्षण क्या होते हैं इसकी पहचान क्या है ?ऐसा होने क्यों लगा है इसका अनुभव कैसे किया जा सकता है ऐसे प्रश्नों के कोई सटीक प्रमाणित उत्तर हैं ही नहीं फिर भी उसके कुछ लक्षण बता दिए जाते हैं जिनका सच्चाई से कोई संबंध प्रमाणित नहीं सिद्ध होता है| इसके लिए विषम वर्षा जैसे जो भी कारण गिनाए जाते हैं वे हमेंशा हर युग में घटित होते रहे हैं |इसमें कुछ नया नहीं हो रहा है | ऐसी परिस्थिति में ऐसा क्या नया होने लगा है जो पहले नहीं होता था जिसके कारण इस बात का अनुभव किया जाने लगे कि अब जलवायु परिवर्तन होने लगा है |इसके अतिरिक्त किसी के कह देने मात्र से ऐसी बातों पर तब तक विश्वास नहीं किया जा सकता है जब तक कि उसके प्रमाण अनुभव न किए जाएँ !
वर्षा होने संबंधी या मानसून आने और जाने के विषय में कुछ तीर तुक्के भिड़ाए जाएँ यदि वे सही निकल जाएँ तब तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाएँ तो जलवायु परिवर्तन !
वर्षा संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान सही निकल जाएँ तो पूर्वानुमान और यदि गलत निकल जाएँ तो अलनीनों लानीना जैसी परिकल्पनाएँ कर ली जाती हैं |
वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान सही निकल जाए तो पूर्वानुमान और यदि गलत निकल जाए तो हल और धुआँ उड़ाने वाले तमाम कारण गिना दिए जाते हैं |
इसीप्रकार से मौसम भविष्य वक्ताओं के द्वारा किए जाने वाले आँधी तूफानों से संबंधित पूर्वानुमान सही निकल जाएँ तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाएँ तो ग्लोबलवार्मिंग !
सबसे महत्वपूर्ण -
मौसम भविष्यवक्ताओं को इस बात का निर्णय करना चाहिए कि वे मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगा सकते हैं या नहीं यदि लगा सकते हैं तो मौसम संबंधी प्रत्येक गतिविधि को समझकर ही पूर्वानुमान लगाया जा सकता है यदि 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी काल्पनिक घटनाओं के घटित होने का कारण एवं इनका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है तो इनके प्रभाव से प्रभावित होने वाले वर्षा अतिवर्षा संबंधी पूर्वानुमान या दीर्घावधिपूर्वानुमान ,आँधीतूफानों से संबंधित पूर्वानुमानों पर भरोसा कैसे किया जा सकता है |
इसका कारण यह है कि मौसम भविष्यवक्ताओं ने 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी घटनाओं को ऐसा कारण मान रखा है कि ये वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों जैसी प्राकृतिक घटनाओं को प्रभावित किया करते हैं तो इनका पूर्वानुमान लगाए बिना मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | चूँकि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा आजतक कोई ऐसी तकनीक नहीं खोजी जा सकी है जिसके द्वारा 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग'का पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो और इनके विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना मौसमसंबंधी किसी भी घटना का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है यदि लगाया भी जाए तो उसके सही होने की संभावना अत्यंत कम होगी क्योंकि भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस बात को स्वीकार किया गया है वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों जैसी प्राकृतिक घटनाओं को 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी प्रकृति घटनाएँ प्रभावित किया करती हैं |
यही स्थिति तो भूकंप जैसी घटनाओं की भी है तभी तो उनके पूर्वानुमान नहीं लगाए जा पाते हैं क्योंकि पृथ्वी के अंदर भरी हुई गैसों के दबाव को भूकंप घटित होने का कारण बताया गया है या फिर पृथ्वी के अंदर अत्यंत गहराई में स्थित टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को भूकंप आने का कारण माना गया है ऐसी परिस्थिति में भूकंप की घटना पृथ्वी के अंदर भरी हुई गैसों के दबाव के कारण घटित होती है तो भूकंप का पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता ही नहीं है अपितु गैसों के दबाव के बढ़ने घटने की सीमाओं का अनुसंधान होना चाहिए और इसी के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए कि गैसों का कितना दबाव होने पर किस प्रकार का भूकंप आ सकता है उसी के आधार पर भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए |
ऐसे ही चूँकि पृथ्वी के अंदर अत्यंत गहराई में स्थित टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने को भूकंप आने का कारण माना गया है इसलिए भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने के विषय में पूर्वानुमान लगाना चाहिए क्योंकि भूकंपों के घटित होने का कारण टैक्टॉनिक प्लेटों का आपस में टकराना है इसका पूर्वानुमान लगाए बिना भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
जिस प्रकार से भूकंप आने के कारणों के विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है उसी प्रकार से 'जलवायुपरिवर्तन' 'अलनीनोंलानीना' 'ग्लोबलवार्मिंग' जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाए बिना वर्षा बाढ़ आँधी तूफान जैसी प्राकृतिक घटनाओं का सही एवं सटीक पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |
प्रस्तुत हैं कुछ सन 2010 से 2019 के बीच में घटित हुई कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -
केदारनाथ जी में आया भीषण सैलाव - 16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए | इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन की हानि को घटाया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! बाद में कारण बताते हुए कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हुआ है |
21 अप्रैल 2015 को बिहार और नेपाल में में भीषण तूफ़ान आया था उससे जनधन की भारी हानि हुई थी किंतु इसका कहीं कोई पूर्वानुमान किसी भी रूप में घोषित नहीं किया जा सका था !
2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी जबकि 7और 8 मई को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई थी इसलिए स्कूल तक बंद कर दिए गए थे बाद में हवा का एक झोंका तक नहीं आया था |
17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !
इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है किंतु ऐसी कोई रिसर्च हुई भी है तो उसके क्या परिणाम निकले यह भी तो समाज को बताया जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ !
इसी विषय में दूसरी बड़ी बात यह है कि आँधी तूफानों का पूर्वानुमान बता पाने में असमर्थ रहे ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं ने ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं नेअंत में 7 और 8-मई -2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी थी उस पर सरकारों ने भरोसा करके दिल्ली के आसपास के सभी स्कूल कालेज बंद करवा दिए गए किंतु उस दिन हवा का झोंका भी नहीं आया !
अंत में उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी भविष्यवाणी मौसम संबंधी भविष्यवाणी भविष्यवाणी गलत निकल जाने के बाद उन्हीं भविष्यवक्ताओं को स्वीकार करना पड़ा कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण घटित होने वाले ऐसे आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान लगाना अत्यंत कठिन क्या असंभव सा ही है इस लाचारी को किसी समाचार पत्र में छापा गया था जिसकी हेडिंग थी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"चूँकि भविष्यवक्ताओं के तीर तुक्के इस पर नहीं चले इसका मतलब उनकी अयोग्यता नहीं अपितु "चक्रवात चुपके चुपके से आते हैं" ऐसा लिखा गया !
मद्रास में भीषण बाढ़ -
सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ के कारण त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !मौसम भविष्यवक्ताओं ने वर्षा होने की संभावनाओं को दो दो दिन आगे बढ़ाते बढ़ाते मद्रास को बाढ़ तक पहुँचा दिया था इसके विषय में कभी कोई स्पष्ट भविष्य वाणी नहीं की गई कि वर्षा वर्षा वर्षा आखिर होगी किस तारीख तक !
केरल की भीषण बाढ़ -
3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग ने अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की थी किंतु उनकी भविष्यवाणी के विपरीत 7 अगस्त से ही केरल में भीषण बरसात शुरू हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा !जिसकी कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी यह बात केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार की थी !बाद में सरकारी मौसम भविष्यवक्ता ने एक टेलीवीजन चैनल के इंटरव्यू में कहा कि "केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसीलिए इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका वस्तुतः इसका कारण जलवायु परिवर्तन था !"
अधिक वर्षा के विषय में - इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सरकार के मौसमभविष्यवक्ताओं को यदि वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाना आता है और वो सही भी होता है तो उन्होंने अपनी भूमिका का निर्वाह क्यों नहीं किया ?
प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! अखवारों में प्रकाशित समाचारों के अनुशार उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाई गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
ऐसी परिस्थिति में जिस मौसमविज्ञान के द्वारा दस पाँच दिन पहले घटित होने वाली मौसमसंबंधी वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है उसी मौसमविज्ञान के द्वारा जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग के कारण भविष्य में किस किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ या आपदाएँ घटित होंगी इस बात का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |
प्राकृतिक घटनाओं पर समय का असर -
समय प्रतिपल बदल रहा है समय के साथ साथ सारा संसार बदलता जा रहा है प्रत्येक वस्तु में या जीवन में कुछ न कुछ छोटे या बड़े बदलाव होते जा रहे हैं जिसका जो स्वरूप आदि पहले था वो अब नहीं है जो अब है वो आगे नहीं रहेगा इसलिए बदलाव तो प्रतिपल होंगे ही ये सृष्टि का नियम है !समय का संचार अच्छा और बुरा दो प्रकार का होता है जब जब समय का संचार अच्छा होता है तब प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी ओर अच्छी अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं सभी लोग स्वस्थ प्रसन्न होते हैं सारा समाज प्रेम पूर्वक परिवार भावना से आपस में वर्ताव करने लगता है |
ऐसे अच्छे समय में प्रकृति में वर्षा सर्दी गर्मी आदि का प्रभाव अपनी अपनी ऋतुओं में निर्धारित समय सीमा में उचित मात्रा में होता है | स्वच्छ सुगंधित ठंढी धीमी वायु बहने लगती है नदियों तालाबों आदि में पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ जल संगृहीत होता है | बादल उचित मात्रा में सभी जगह आवश्यकतानुसार जल वृष्टि करते हैं | स्वास्थ्य के लिए हितकर आनाज फल फूल दूध आदि सभी उचित मात्रा में उपलब्ध होते हैं ये सभी अच्छे समय के कारण होते हैं |
इसी प्रकार से बुरे समय में लोगों की स्वास्थ्य समस्याएँ एवं मानसिक असंतोष बढ़ने लगता है समाज में वैमनस्य का भाव प्रबल होता है परिवारों से लेकर समाज तक संपूर्ण विश्व के लोगों में देशों में आपसी संबंध बिगड़ने लगते हैं|आतंकवाद उग्रवाद बमविस्फोट दो देशों में युद्ध या विश्वयुद्ध जैसी घटनाएँ घटित होने की परिस्थितियाँ बुरे समय के प्रभाव के कारण बनने लगती हैं |
बुरे समय के प्रभाव से प्रकृति में भी सब कुछ बिपरीत अर्थात अहित कर घटित होने लगता है ऋतुएँ अपनी मर्यादा भूलकर वर्ताव करने लगती हैं सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव अपने निर्धारित समय की अपेक्षा आगे पीछे होने लगता हैऋतुओं का प्रभाव घटने बढ़ने लगता है |ऋतुओं केप्रभाव में असमानता आने लगती है ! ऐसे समय में कहीं सूखा कहीं बाढ़,ओले पड़ना,बिजली गिरना,जल प्रदूषणबढ़ना,नदियों की धाराएँ रुकने लगना आदि इसी के उदाहरण हैं |मानसून का निश्चित तारीखों से आगेपीछे होना या ग्लेशियर पिघलना आदि बुरे समय के प्रभाव से घटित होने वाली जल जनित आपदाएँ हैं |
इसीप्रकार से वायु का प्रदूषित होना आँधी तूफ़ान आदि घटित होना ये सब बुरे समय के प्रभाव से घटित होने वाली वायुजनित प्राकृतिक आपदाएँ हैं |
ऐसे ही भूकंप सुनामी या पर्वत शिखरों का टूटना आदि ये सब पृथ्वी पर पड़ने वाले बुरे समय का प्रभाव है |
आकाश का धूलि धूसरित हो जाना, बिना धूल के भी आकाश में धुँधलापन बहुत अधिक बढ़ जाना आदि आकाश पर पड़ने वाले बुरे समय का प्रभाव है |
किसी समय विशेष में ऋतुओं की मर्यादा के विरुद्ध अकारण ही गर्मी का प्रभाव बहुत अधिक बढ़ जाना !अत्यंत सावधानी बरतने के बाद भी एक ही समय में बहुत जगहों पर आग लगने की घटनाएँ घटित होना ,ज्वालामुखी फूटना आदि अग्नि तत्व पर पड़ने वाले बुरे समय का प्रभाव है |
ऐसी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ जिन्हें प्राकृतिक आपदा माना जाता है वे सभी बुरे समय के प्रभाव के कारण ही घटित होते देखी जाती हैं |
इस प्रकार से कुछ बदलाव प्रकृति या जीवन के लिए हितकर होते हैं जबकि कुछ बदलाव अहितकर होते हैं जो बदलाव अहितकर होते हैं उन्हें हम आपत्ति या आपदा मानते हैं !ये प्रकृति और जीवन दोनों से संबंधित होती हैं शरीर रोगी होता है तो शारीरिक आपदा और मन तनावग्रस्त होता है तो मानसिक आपदा कहा जाता है | इसी प्रकार से जब प्रकृति भी अस्वस्थ होती है तब प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं |
प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य कितना जिम्मेदार -
प्राकृतिक आपदाओं के लिए मनुष्य कितना जिम्मेदार -
प्रकृति हो या जीवन उसमें घटित होने वाली प्रत्येक गतिविधि उस समय चल
रहे समय के अनुसार घटित हो रही होती है |इन्हीं बदलावों में कुछ बदलाव ऐसे होते हैं जो हमारे लिए हितकर होते हैं जिनके लिए हम स्वयं भी प्रयासरत होते हैं यदि वे समय के बदलावक्रम में वैसे हो जाते हैं जैसे कि हम चाहते हैं या जैसा करने का हम भी प्रयास कर रहे होते हैं वैसा ही हो जाने पर हमें ऐसा लगने लगता है कि ये हमने
किया है या हमारे प्रयासों का फल है या हमारे भाग्य में बदा है आदि
बिचारों से हम अपने को सब कुछ कर लेने वाला या बदल लेने वाला मानने लगते
हैं जबकि ऐसा है नहीं इसीलिए तो समय जैसे जैसे बीतता जाता है समय के अनुसार ही सभी घटनाएँ घटित
होती जाती हैं |
वर्षा बाढ़ सूखा तथा आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुशार ही घटित होती हैं जब जैसा समय चल रहा होता है तब तैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं |सब कुछ समय के साथ साथ होता चलता है कुल मिलाकर प्रकृति या जीवन में होने वाले सभी प्रकार के बदलावों के पीछे समय ही सबसे महत्त्वपूर्ण कारण होता है | वर्षा आदि सभी प्रकार की ऋतुएँ समय के ही आधीन हैं वर्षा ऋतु का जब समय आता है तो वर्षा होने लगती है शीतऋतु का समय आता है तो सर्दी होने लगती है ग्रीष्मऋतु का समय आता है तो गर्मी होने लगती है | कुल मिलाकर प्राकृतिक घटनाएँ समय के साथ साथ घटित होती जाती हैं |इसीलिए मौसमसंबंधी सभीप्रकार की गतिविधियाँ प्रकृति के जिन लक्षणों
से प्रभावित होती हैं उन लक्षणों से संबंधित पूर्वानुमान लगा पाना असंभव
है |ऐसी परिस्थिति में वास्तविक पूर्वानुमानों की खोज करने के लिए हमें
रडारों उपग्रहों के अलावा भी किसी ऐसी पद्धति का विकल्प तलाशना होगा जिसके
द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के किसी भी रूप में(रडारों उपग्रहों आदि से
भी) दिखाई पड़ने से पूर्व उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके वे घटनाएँ
यदि उसी पूर्वानुमान के अनुरूप घटित हो जाती हैं तो उसे पूर्वानुमान मान
लिया जाएगा |
पूर्वानुमान और समयविज्ञान -
प्रकृति में या जीवन में समय के अनुशार ही सब कुछ घटित होता है
अधिकतर खोज और अविष्कार जिन पर आज यूरोप को इतना गर्व है, एक विकसित
गणितीय पद्धति के बिना असंभव थे।इसमें कोई मतभेद नहीं कि भारत में गणित की
उच्चकोटि की परंपरा थी।
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