Friday, 14 June 2019

[ मौसम और विज्ञान या मौसमविज्ञान ?



इनका क्षेत्र अत्यंत विस्तारी भारतवर्ष में पूर्वानुमान लगाकर चलने की अनंत काल से परंपरा रही है
                               [  मौसम और विज्ञान या मौसमविज्ञान ? 


पूर्वानुमान
     पूर्वानुमान में प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा अप्रत्यक्ष का ज्ञान करना होता है !केवल आँखों से देखी हुई वस्तु आदि ही प्रत्यक्ष होता है ऐसा नहीं माना जाना चाहिए अपितु  प्रत्यक्ष का ज्ञान पाँच ज्ञानेंद्रियाँ के द्वारा होता है ! मानव शरीर में त्वचा, आँख, कान, नाक और जिह्वा आदि पाँच प्रकार की ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं !स्पर्श का अनुभव त्वचा के द्वारा होता है, दृश्य का अनुभव आँखें करवाती हैं,शब्द का ज्ञान कानों से होता है,गंध का अनुभव नासिका और स्वाद का अनुभव जिह्वा के द्वारा प्राप्त किया जाता है !
      किसी विषय का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने के लिए केवल आँखों को ही नहीं अपितु इन पाँचों इंद्रियों को सक्रिय रखना होता है और इन सबके द्वारा प्राप्त अनुभवों का तर्कपूर्ण आकलन करके अज्ञात स्थितियों के विषय में पूर्वानुमान किया जाताहै !पूर्वानुमान के साथ अनिश्चितता प्रायः बनी ही रहती है क्योंकि इसके गलत होने की संभावना हमेंशा रहती है !इसलिए पूर्वानुमान को अधिक से अधिक सटीक बनाने के लिए उससे संबंधित सभी विधाओं का उपयोग किया जाना चाहिए !क्योंकि किसी पूर्वानुमान के गलत होने पर केवल वो पूर्वानुमान ही गलत नहीं होता है अपितु उस पूर्वानुमान पर विश्वास करके उसके आधार पर बनाई गई संपूर्ण योजनाओं का भविष्य संदिग्ध हो जाता है !  
  गणित और विज्ञान 
   गणित मानव मस्तिष्क की उपज है। मानव की गतिविधियों एवं प्रकृति के निरीक्षण द्वारा ही गणित का उद्भव हुआ है ।गणित वास्तविक जगत को नियमित करने वाली मूर्त धारणाओं के पीछे काम करने वाले नियमों का अध्ययन करता है।गणित वास्तविक जीवन के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि उसी से इसकी उत्पत्ति भी हुई है।जीवन तथा ज्ञान के हर क्षेत्र में गणित की उपयोगिता है। यह केवल संयोग नहीं है कि आर्किमिडीज, न्यूटन, गौस और लैगरांज जैसे महान वैज्ञानिकों ने विज्ञान के साथ-साथ गणित में भी अपना महान योगदान दिया है।
       मानव ज्ञान की कुछ प्राथमिक विधाओं में गणित भी आता है और यह मानव सभ्यता जितना ही पुराना है।मानव ज्ञान-विज्ञान की एक व्यापक एवं समृद्ध शाखा के रूप में गणित का विकास भी हुआ है।वैज्ञानिक, गणितज्ञ, प्रौद्योगिकीविद्, अर्थशास्त्री एवं कई अन्य विशेषज्ञ रोजमर्रा के जीवन में गणित की समुन्नत प्रणालियों का किसी न किसी रूप में एक विशाल, अकल्पनीय पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं। कुलमिलाकर गणित दैनिक जीवन के साथ सर्वव्यापी रूप में समाया हुआ दिखता है।
       बताया जाता है कि आज के लगभग 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएँ गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील नदी में बाढ़ आएगी   आदि ! मिलेटस निवासी थेल्स (645-546 ईसा पूर्व) को सैद्धांतिक गणितज्ञ माना जाता है।बताया जाता है कि गणित के आधार पर ही उसने एक सूर्य ग्रहण के होने के बारे में भी भविष्यवाणी की थी। 
     महान गणितज्ञ गाउस ने कहा था कि गणित सभी विज्ञानों की रानी है। गणित, विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण उपकरण (टूल) है। भौतिकी, रसायन विज्ञान, खगोल विज्ञान आदि गणित के बिना नहीं समझे जा सकते। ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो वास्तव में गणित की अनेक शाखाओं का विकास ही इसलिए किया गया कि प्राकृतिक विज्ञान में इसकी आवश्यकता आ पड़ी थी।इसीलिए कहा भी गया है कि -
    बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचरारे।यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥
अर्थात बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु है  उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता है !
      विश्व के प्राचीनतम ग्रंथ वेद संहिताओं से गणित तथा ज्योतिष को अलग-अलग शास्त्रों के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी।जिनका इतिहास लाखों वर्ष पुराना है ! यजुर्वेद में खगोलशास्त्र (ज्योतिष) के विद्वान् के लिये ‘नक्षत्रदर्श’ का प्रयोग किया है सृष्टि के आदिकाल से ही हैं और यजुर्वेद में गणित का वर्णन  मिलता है।नवग्रह विज्ञान के जो रहस्य अब खोलने का दावा किया जा रहा है वेद विज्ञान ने उसे सृष्टि के आरंभ होते समय ही परिभाषित कर दिया था ! 

      मौसम पूर्वानुमान में गणित का योगदान -
     सिद्धांतगणित के द्वारा ग्रहों और नक्षत्रों की गति युति आदि को जानने का प्रयास किया जाता है इसके द्वारा भविष्य के ग्रहों नक्षत्रों के संचार का आगे से आगे अनुमान लगाया जा सकता है !हजारों वर्ष पहले के ग्रह नक्षत्र आदि परिस्थितियों को समझना हो तो गणित के द्वारा समझा जा सकता है !
     ग्रहों नक्षत्रों  की गति युति आदि का प्रभाव प्रकृति से लेकर जीवन तक सभी पर पड़ता है आकाश में अनेकों प्रकार की अनजान आकृतियाँ दिखाई पड़ने लगती हैं चंद्रमा का रंग स्वरूप यहाँ तक कि उसका चिन्ह भी दृश्य अदृश्य होने लगता है बार बार बिजली कड़कती है भूकंप आते हैं आकाश से पाताल तक सभी जगहों पर बदलाव दिखाई पड़ने लगते हैं !ग्रह जनित ऐसी परिस्थितियों में पहाड़ अपना रंग बदलने लग जाते  हैं !समुद्रों नदियों नहरों तालाबों कुओं आदि के जलों के स्वाद आदि में अंतर आने लगता है !वृक्षों बनौषधियों में आश्चर्य जनक अभूत पूर्व परिवर्तन होने लगते हैं !सच्चाई ये है कि समय के बदलाव के साथ ही साथ इन सबों में बदलाव आता ही है !  
         जब जैसे बदलाव समय में आते हैं उसी प्रकार की ग्रह गति युति आदि गृह संचार होने लगता है !उसी गति से प्रकृति में परिवर्तन होने लगते हैं समय का आदेश ग्रहों से लेकर प्रकृति तक सब पर सामान रूप से चलता है !समय के प्रभाव से जहाँ एक ओर राशियों ग्रहों नक्षत्रों आदि की गति युति जैसी स्थितियों में विकार आने से ऋतुविप्लव होने लगता है वहीँ दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं एवं शारीरिक रोगों की भी संभावनाएँ बनने लगती हैं !सर्दी की ऋतु में बहुत अधिक सर्दी का होना या सर्दी का बिल्कुल न होना इसी प्रकार से गर्मियों में बहुत अधिक गर्मी होना या गरमी बिल्कुल न होना ऐसे ही वर्षात में बहुत अधिक वर्षा का होना या फिर वर्षा का बिल्कुल न होना अर्थात सूखा पड़ जाना आदि ऋतु विप्लव तभी होता है जब ग्रहों नक्षत्रों आदि की गति युति जैसी स्थितियों में उस प्रकार का वातावरण बनने लगता है तभी प्रकृति में विकार आने लगते हैं !प्रकृति में विकार होते ही भूकंप आना तथा आँधी तूफान चक्रवात अधिकवर्षा बाढ़ सूखा ओले गिरना बादल फटना की घटनाएँ घटित होने लगती हैं वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है !
      ऐसे सभी प्रकार के समयजनित प्राकृतिक विकारों के दुष्प्रभाव से वायु जल खाद्य पदार्थ आदि सभी दूषित होने लगते हैं !जिसके कारण  इस संसार में तरह तरह की बीमारियाँ महामारियाँ आदि बढ़ते देखी जाती हैं इसके अतिरिक्त और भी अनेकों प्रकार के रोग दोष दुःख आदि घटित होते देखे जाते हैं !ऐसे समय में जिस प्रकार के रोग होते हैं उनमें लाभ करने वाली जो बनौषधियाँ होती हैं उनमें भी विकार आने लगते हैं वो निर्वीर्य अर्थात गुणहीन होने लगती हैं !वृक्षों में बिना ऋतु के फूल फल लगने लगते हैं !पुष्पों की सुगंध में परिवर्तन होने लगता है ! खाद्यपदार्थों के स्वाद बदलने लगते हैं !नीम की पत्तियाँ एवं मिर्च जैसी चीजें अपना कडुआपन छोड़ने लगती हैं ईख अपनी मधुरता का त्याग करने लगता है !
   ऐसे समय जनित प्राकृतिक विकारों का असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता है अपितु इससे चिंतन दूषित होता है लोगों की सहनशीलता घटने लगती है धैर्य टूटने लगता है !उन्माद की भावना पैदा होने लगती है पतिपत्नी भाई भाई पिता पुत्र आदि पारिवारिक संबंधों में तनाव बढ़ने लगता है !समाज में आंदोलन आतंक एवं संघर्ष की भावना पनपने लगती है लोग एक दूसरे को मरने मार डालने पर उतारू हो जाते हैं !राष्ट्रों में युद्ध छिड़ जाता है यहाँ तक कि विश्व युद्ध की भूमिका भी समय जनित प्राकृतिक विकारों के कारण ही घटित होती है !
     इस प्रकार से समय जनित प्राकृतिक विकारों का प्रभाव पशु पक्षी आदि सभी प्रकार के जीव जंतुओं पर पड़ता है ये अपने स्वभाव से अलग हटकर या स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने लगते हैं ! जैसा कि भूकंप आदि आने से पहले कुछ लोगों के द्वारा अनुभव भी किया जाता है जिसे भूकंप से जोड़कर देखा जाने लगा है कुछ वैज्ञानिक इसके आधार पर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का अध्ययन करते देखे सुने जाते हैं  जबकि ऐसे स्वभाव परिवर्तनों का प्रमुखकारण  समयजनित प्राकृतिक विकार ही होते हैं !ऐसे समय में घरों में बनों उपबनों जंगलों आदि में अजीब  अजीब से शब्द सुनाई पड़ने लगते हैं !
      इसलिए ऐसे प्रकरणों में सभी प्रकार के पूर्वानुमान जानने के लिए सबसे पहले समय की चाल को समझना होता है !इसके लिए ग्रहों नक्षत्रों का संचार गति युति आदि परिस्थितियों  का परीक्षण करना चाहिए !क्योंकि समय का ज्ञान केवल ग्रह नक्षत्रों के संचार से ही किया जा सकता है !इसलिए गणित के द्वारा ग्रहों नक्षत्रों राशियों आदि की गति युति आदि का पूर्वानुमान लगाया जाता है ! चाहिए कि भविष्य में ग्रहों नक्षत्रों राशियों आदि की दृष्टि से कब कैसी परिस्थितियाँ पैदा होंगी !उसका प्रभाव समस्त चराचर जगत पर कब कैसा पड़ेगा !उस संभावित असर के कारण आकाश से पाताल तक एवं वृक्षों बनस्पतियों आदि सभी चराचर जगत पर प्रकट होने वाले चिन्हों का  अनुसंधान किया जाना चाहिए !इसके अतिरिक्त मनुष्यों समेत समस्त पशु पक्षियों जीव जंतुओं आदि में आने वाले परिवर्तनों का ग्रहों नक्षत्रों राशियों आदि के संचार आदि के साथ मिलान किया जाना चाहिए जिससे गणितागत परिवर्तनों के विषय में  दृढ़ विश्वास  होता चलता है !ऐसे संयुक्त अनुसंधान के आधार पर न केवल मौसम अपितु संभावित सभी प्रकार की परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !ऋतुविज्ञान को भली भाँति समझा जा सकता है !भविष्य में कब कब आँधी तूफ़ान आदि के घटित होने की संभावना अधिक होगी कब वर्षा बाढ़ सूखा आदि की संभावना अधिक होगी !कब कब वायु प्रदूषण अधिक बढ़ सकता है  तथा कब कब भूकंप आदि हिंसक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है !कब कब मनुष्यों आदि समस्त जीव जंतुओं के स्वभाव में किस किस प्रकार के परिवर्तन हो सकते हैं !समाज को कब किस प्रकार की प्राकृतिक सामाजिक शारीरिक मानसिक आदि परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है !ऐसी सभी बातों का ग्रहगणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
    इसके द्वारा जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनों लानीना पश्चिमीविक्षोभ से संबंधित कब किस प्रकार के बदलाव किस दिशा में होंगे आदि परिस्थितियों का ग्रहगणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है!        
आधुनिक मौसम विज्ञान - 
     कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है। मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के केन्द्रबिन्दु होते हैं।
मौसम विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन समय और दूरी के सापेक्ष बहुत हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं। 
    ऋतुवैज्ञानिक तत्व (एलिमेंट्स)
ऋतु संबंधी प्रेक्षणों में, जिनसे वायुमंडल की दशा का ज्ञान मिलता है, निम्नलिखित बातें देखी जाती हैं :
ताप-
वायु का ताप तापमापी (थरमामीटर) द्वारा नापा जाता है। इस थरमामीटर को सौर विकिरणों से अप्रभावित रखा जाता है। वायु की आर्द्रता ज्ञात करने के लिए गीले तापमापी (वेट बल्ब थरमामीटर) का उपयोग किया जाता है।
वायुदाब-
यह वायुदाबमापी (बैरोमीटर) द्वारा मापा जाता है और इससे पृथ्वी पर वायु का भार (प्रति इकाई क्षेत्रफल) विदित होता है।
पवन-
पवन की दिशा तथा वेग का प्रेक्षण किया जाता है। दिशा वह ली जाती है जिस ओर से पवन आता है पवन-वेगमापी (ऐनिमोमीटर) द्वारा मापा जाता है और मील प्रति घंटा या किलोमीटर प्रति घंटा या मीटर प्रति सेकंड में व्यक्त किया जाता है।
आर्द्रता
आर्द्रता से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा का ज्ञान होता है और, जैसा पहले कहा जा चुका है, यह सूखे तथा गीले थरमामीटरों द्वारा नापी जाती है।
संघनन के रूप -
इसमें वायुमंडलीय संघनन के सब प्रकार के द्रव एवं ठोस उत्पादन संमिलित हैं। बादलों की मात्रा तथा उनके प्रकार, कुहरा तथा वर्षा, हिम (बर्फ), ओला आदि, का प्रेक्षण किया जाता है।
दृश्यता (विज़िबिलिटी)
उस क्षैतिज दूरी को कहते हैं जहाँ तक की बड़ी और स्पष्ट वस्तुएँ दिखाई दे सकती हों।
छादन (सीलिंग)
ऊर्ध्वाधर दृश्यता (वर्टिकल विज़िबिलिटी) से संबंध रखती है और मेघतल की ऊँचाई से मापी जाती है। 
        इसके अलावा भी जलवायुपरिवर्तन  ग्लोबलवार्मिंग  अलनीनों और लानीना जैसी अनेकों कहानियाँ गढ़ लेने के बाद भी उससे लाभ क्या हुआ !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कहा जाता है ऐसी सभी घटनाओं का असर मौसम पर पड़ता है इसलिए इनका भी अध्ययन साथ साथ किया जाता है  !हो सकता है कि ऐसी काल्पनिक कहानियों का मौसम पर कुछ असर पड़ता भी हो तो उसमें आपत्ति किस बात की है मौसमसंबंधी अनुसंधान करते समय ऐसी सभी कथा कहानियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की घोषणा करने से पूर्व  इनसे प्राप्त अनुभव भी इसी में सम्मिलित किए जाने चाहिए !किंतु यह सब होना तभी तक चाहिए जब तक कि भविष्यवाणी न की गई हो !एकबार भविष्यवाणी कर देने के बाद लीपा पोती करने के लिए उछाल कूद नहीं करनी चाहिए यदि बहुत आवश्यक न हो ! यह कतई नहीं स्वीकार्य है कि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की गई भविष्यवाणी गलत होने के बाद जलवायुपरिवर्तन  ग्लोबलवार्मिंग  अलनीनों और लानीना जैसी कहानियों का ढाल की तरह उपयोग किया जाए !इससे समाज का विश्वास टूटने लगता है ! 
      इसमें विशेष बात  यह है कि इतने सारे प्रकारों से परीक्षण करने के बाद भी मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाया जाता है वह सही ही होगा इसकी कोई विश्वसनीयता नहीं  होती है मौसमविज्ञान के द्वारा लगाया जाने वाला दीर्घावधि पूर्वानुमान तो अक्सर गलत निकलता  है ही उसके अलावा भी जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं !उनमें से भी सही होने का अनुपात बहुत कम ही होता है !दूसरी बात वो अनुमान अत्यंत कम दिनों पहले के होते हैं इसलिए कृषि कार्यों आदि में इनका उपयोग उस प्रकार से नहीं हो पाता है जितनी कि आवश्यकता है !   
     मौसम विज्ञान के विषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने की पद्धति भले न विकसित की जा सकी हो जिससे इस बात का पता लगाना आज भी कठिन हो रहा है कि वर्षा होने का समय कब होगा या कौन सा आँधी तूफ़ान अथवा चक्रवात कब आएगा किंतु रडारों और उपग्रहों से प्राप्त चित्रों से मौसम संबंधी वे घटनाएँ जो बन चुकी हैं जैसे आँधी तूफ़ान बादलों आदि को देखकर उनकी निगरानी करना आसान होता है कि वे कब किस दिशा में जा रहे हैं उनकी गति क्या है वे कितने समय में किस देश प्रदेश या शहर में पहुँच सकते हैं ! उसके आधार पर उन उन जगहों के लोगों को सावधान कर दिया जाता है !उससे कृषि कार्यों में लाभ भले ही न मिल पाता हो और प्राकृतिक आपदाओं से बहुत अधिक बचाव भले ही न हो पाता हो तथा कुछ बचाव तो हो ही जाता है !इसलिए आधुनिक विज्ञान के द्वारा जितना जो कुछ हो पा  रहा है वो ठीक है इसके अतिरिक्त दीर्घावधि पूर्वानुमानों का लाभ कैसे होगा उसे भी याद रखा जाना चाहिए !

    सूर्यचंद्र ग्रहण का विज्ञान यदि उस युग में खोजा न गया होता तो आज उसके भी मौसम विज्ञान जैसे ही हालात होते  -  
      ग्रहणविज्ञान पूर्वानुमान का सबसे सटीक उदाहरण है!इससे संबंधित पूर्वानुमान किसी ग्रहण के घटित होने से हजारों वर्ष पहले गणित के द्वारा लगा लिया जाता है !पूर्वजों ने यदि ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान उसी युग में न खोज लिया होता तब तो इस युग में ग्रहण संबंधी अनुसंधान की भी मौसमविज्ञान और भूकंप विज्ञान की तरह ही बड़ी छीछालेदर हो जाती !
      ग्रहणसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकार को एक अलग से ग्रहणमंत्रालय बनाना पड़ता उसके बाद किसी को ग्रहणमंत्री भी बनाया जाता !इसके भी सचिव निदेशक आदि नियुक्त किए जाते !अलनीनों लानीना की थ्योरी अंतरिक्ष में भी फिट की जाती वहाँ का भी तापमान नापने की व्यवस्था की जाती और उस वर्ष ग्रहण पड़ने की संभावना पर उसका भी असर बताया जाता !इसके लिए भी सुपरकंप्यूटर  रडार और उपग्रह आदि का ताना बाना  बुना जाता उनसे आकाशीय चित्र देखे जाते जिनके आधार पर ग्रहण संबंधी बुलेटिन जारी किए जाते कि अमुक तारीख़ को ग्रहण पड़ने की ग्रहण वैज्ञानिकों को शंका हो रही है !इसलिए ग्रहण पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है और ग्रहण न पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है ग्रहण थोड़ा पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है और अधिक पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है !बाद में जितने प्रतिशत पड़ जाता उसी को अपनी भविष्यवाणी बता दिया जाता ! 
        इसी प्रकार से मानसून के समय की तरह ही ग्रहणों का भी कोई तारीख समय आदि निश्चित कर दिया जाता जो ग्रहण उस  समय के पहले पड़ जाते उन्हें प्रिमानसून ग्रहण बताया जाता और जो उन लोगों के द्वारा निश्चित किए गए समय के बाद पड़ते उन्हें उतनी  देर से पहुँचा बता दिया जाता !सूर्य और चंद्र मंडलों  में जिस ओर से बार बार ग्रहण पड़ता वहाँ टैक्टॉनिक प्लेटों की कल्पना कर जाती और ग्रहण पड़ने का कारण टैक्टॉनिक प्लेटों का आपस में टकराना या सूर्य चंद्र मंडलों में भरी गैसों का दबाव घट बढ़ जाना बता दिया जाता !पृथ्वी की तरह ही सूर्य चंद्र मंडलों को भी खतरों की संभावना के हिसाब से पाँच सात जोनों में बाँट दिया जाता !कहने का मतलब बाकी सारे नाटक नौटंकी होते रहते किंतु ग्रहणों का पूर्वानुमान लगपना उनके लिए हमेंशा असंभव ही बना रहता ! इसी प्रकार की निरर्थक गुणा गणित में बहुत सारा समय एवं सरकार का धन बर्बाद कर दिया जाता जिसका ग्रहण विज्ञान से कोई लेना देना ही नहीं होता !
       जिस अमावस्या या पूर्णिमा में सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि तीनों एक सीध में आते दिखाई पड़ते और लगता कि अब दो तीन दिन में ग्रहण पड़ने वाला है तो ग्रहण संबंधी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी जाती कि अबकी अमावस्या या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ने की ग्रहणविभाग के वैज्ञानिकों को आशंका है या संभावना है !इसका मतलब ये होता कि ग्रहण पड़ भी सकता है और नहीं भी पड़ सकता है !जिस अमावस्या या पूर्णिमा में ग्रहण पड़ने की भविष्यवाणी ग्रहण वैज्ञानिक करते किंतु उस बार ग्रहण न पड़ पाता जिससे उनकी भविष्यवाणी गलत हो जाती तो वो भी अपनी भविष्यवाणी को गलत नहीं मानते और न ही अपनी गलती मानते अपितु ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी गलत होने का कारण  बताने के लिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई कहानियाँ गढ़ दी जातीं और सारी जिम्मेदारी उसी के मत्थे मढ़ दिया करते !
        जिस अमावस्या या पूर्णिमा में ग्रहण पड़ता तो उसके पड़ने के बाद बताया जाता कि अबकी बार इतना ग्रहण पड़ा है साथ ही यह भी बताया जाता कि इस ग्रहण ने कितने वर्ष के ग्रहणों का रिकार्ड तोड़ा है !जो ग्रहण कुछ जगहों पर दिखता और कुछ जगहों पर नहीं दिखाई देता उसके लिए ग्रहण वैज्ञानिकों के द्वारा बताया जाता कि ग्रहण का वितरण ठीक नहीं हुआ !जिस वर्ष में अधिक ग्रहण पड़ जाते तो उसके लिए बढ़ते प्रदूषण और कार्वन उत्सर्जन को  जिम्मेदार ठहरा दिया जाता उसी के साथ ही लगे हाथ यह भी भविष्यवाणी कर दी जाती कि बढ़ते प्रदूषण को यदि रोका न गया तो भविष्य में सौ दो सौ वर्ष बाद प्रतिदिन ग्रहण पड़ने लगेंगे !उसके कुछ सौ वर्ष बाद इस पृथ्वी पर स्थाई रूप से ग्रहण पड़ जाएगा जिससे सूर्य चंद्र निस्तेज हो जाएँगे अंधकार उनको ढक लेगा और सारा ब्रह्मांड भयंकर अंधकार में विलीन हो जाएगा !इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं को रोके जाने की आवश्यकता है !इस प्रकार से ग्रहण वैज्ञानिकों का सारे विश्व में एकाधिकार होता  ! ग्रहण वैज्ञानिकों की ऐसी धमकियाँ सुन सुन कर हैरान परेशान वैश्विक सरकारें ऐसे लोगों के सामने नतमस्तक होकर इनकी आज्ञा का पालन करती दिखतीं !ये जैसा जैसा कहते जाते सरकारें वैसा वैसा करती जातीं !ग्रहण रोकने के लिए बड़े बड़े सभा सम्मेलन आयोजित किए जाते भारी भरकम फंड पास किया जाता वो उन लोगों के कथनानुसार खर्च किया जाता !
      ऐसे ग्रहण वैज्ञानिक ग्रहणसंबंधी  सटीक भविष्यवाणियाँ  करने के लिए कभी चंद्रमा पर टावर लगाने की बातें की जातीं और  कभी सूरज पर !इस प्रकार से सरकारों के सामने ऐसी ऐसी शर्तें रखते जिन्हें सरकारें न कभी पूरी कर पातीं और न ही ग्रहण संबंधी सटीक भविष्यवाणियाँ कर पाने की ग्रहण वैज्ञानिकों की  कभी कोई जिम्मेदारी होती !
        इसके बाद भी ग्रहणसंबंधी पूर्वानुमानों हेतु रिसर्च करने वाले ग्रहण वैज्ञानिकों की सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाओं पर भारी भरकम जो धन खर्च किया जा रहा होता एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों के लिए संसाधनों पर जो धन खर्च किया जा रहा होता वो उस टैक्स का अंश होता जो  देश वासियों के खून पसीने की कठोर कमाई से देश के विकास के लिए लिया जाता है !इसके बदले में जनता को जो कुछ मिलने का आश्वासन दिया जाता वो सब कुछ हवा में ही होता !क्योंकि ऐसे अनुसंधानों के लिए कोई समय सीमा होती नहीं है कि इतने समय तक करना ही है ये तो अंत हीन  यात्रा ऐसे ही निरर्थक बातें बना बना कर सैकड़ों वर्षों तक चलाई जा सकती थी !
     इसी पद्धति को ग्रहण विज्ञान कहा जाता इसी को ग्रहण विज्ञान के रूप में स्कूलों कालेजों में पढ़ाया जा रहा होता जिसे पढ़कर छात्र परीक्षाएँ देते पास होते वैज्ञानिक बनते सैलरी पाते रिटायर हो जाते फिर नई नियुक्तियाँ होतीं !ये ऐसा ही गर्मी वर्षा सर्दी बसंत जैसा क्रम चला करता ! इसप्रकार से ग्रहण विज्ञान भी मौसमविज्ञान  और  भूकंपविज्ञान की तरह ही जंजाल में हमेंशा फँसा रहता !
     ये तो भारत के निवासियों का भाग्य ही है कि उनके पूर्वजों ने इतने विशाल ग्रहणविज्ञान को न केवल खोज निकाला अपितु उसका  गणित भी खोज निकाला उसके रहस्यों को समझने के लिए सूत्र बना डाले जिसके आधार पर गणित के द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन ग्रहण कब पड़ेगा !
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               पूर्वानुमान की कसौटी पर खरा उतरा है ग्रहण विज्ञान -
     किसी भी विषय से संबंधित विज्ञान उस विषय के स्वभाव को समझने में कितनी बड़ी भूमिका निभा सकता है इसके लिए हमें अपने सामने ग्रहण विज्ञान को रखकर सोचना चाहिए !वर्तमान चिंतन के अनुशार यदि सोचा जाए तो जिस युग में यांत्रिक विज्ञान इतना विकसित नहीं था दूरभाष के साधन नहीं थे !दूरबीन आदि व्यवस्थाएँ नहीं थीं ,अंतरिक्ष में आवागन आसान नहीं था ऐसी सभी बाधाओं के होते हुए भी उस युग के महान वैज्ञानिकों ने आकाशीय अनुसंधान के विषय में जो उपलब्धियाँ प्राप्त की थीं वो अतुलनीय हैं !उन्होंने ने यहीं बैठे बैठे सुदूर आकाश में स्थित सूर्य ,चन्द्र और पृथ्वी के मंडलों को नाप लिया उनकी गति युति आदि का सटीक पूर्वानुमान लगा लिया ये छोटी सफलता तो नहीं थी !दूसरी ओर जो लोग बादलों के स्वभाव को अभीतक समझ नहीं पाए उनके ये ग्रहणों का पूर्वानुमान लगा पाना  कितना कठिन होता !
     वर्तमान युग के वैज्ञानिकों की दृष्टि से देखा जाए तो ग्रहणविज्ञान खोजने लायक उस युग में परिस्थितियाँ नहीं रही होंगी !उस युग में यातायात के अच्छे साधन न होने के कारण पृथ्वी पर भी  एक कोने से दूसरे कोने की जानकारी जुटा पाना कठिन होता था ऐसी परिस्थिति में सुदूर आकाश में स्थित सूर्य और चन्द्रमा से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कल्पना करना भी संभव नहीं था फिर भी  उन्होंने पहले खगोल विज्ञान की खोज की फिर उस विज्ञान को गणित के सूत्रों में पिरोया इसके बाद उन्हीं सूत्रों के आधार पर कठोर परिश्रम साधना स्वाध्याय आदि के द्वारा न केवल ग्रहण अपितु समस्त खगोलीय परिस्थितियों ग्रहों नक्षत्रों आदि से संबंधित रहस्यों आदि का उद्घाटन कर दिया !जिसके आधार पर बिना कहीं आए गए किसी एकांत स्थान पर बैठकर केवल कलम और कागज के माध्यम से समस्त ग्रहों नक्षत्रों आदि के स्वभाव गति पथ आदि का न केवल पता लगाया जा सकता है अपितु उनके विषय में पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है कि भविष्य में इन ग्रहों नक्षत्रों आदि की कहाँ कब कितने समय तक उपस्थिति रहेगी !
      केवल इतना ही नहीं अपितु इसी खगोल विज्ञान के द्वारा इस विषय का भी पता लगा लिया गया कि सूर्य और चंद्रमा से संबंधित कब कौन ग्रहण कितनी देर तक पड़ेगा !इतना ही नहीं अपितु भविष्य में कब कौन ग्रहण कितने बजकर कितने मिनट से प्रारंभ होकर कितने बजकर कितने मिनट  तक रहेगा वो भी कहाँ कहाँ दिखाई देगा कहाँ नहीं दिखाई देगा !उसका ग्रास कितना होगा आदि बातों का पूर्वानुमान उसी खगोल विज्ञान के द्वारा ग्रहण पड़ने से सैकड़ों वर्ष पहले लगा लिया जाता है और वो बिल्कुल सही एवं सटीक घटित होता है ! ऐसा तब संभव हो पाया है जब पहले ग्रहण से संबंधित विज्ञान की खोज की गई उसमें सफलता मिलने के बाद उन्हीं सूत्रों सिद्धांतों नियमों के आधार पर ग्रहण संबंधी रहस्यों को सुलझा लिया गया और उसी आधार पर सैकड़ों हजारों वर्ष पहले भविष्य में घटित होने वाले ग्रहणों से संबंधित पूर्वानुमान लगाना आसान हो गया !
     मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर मौसम भविष्य वक्ता लोग प्रायः घबड़ा जाते हैं  इसीलिए कोई भविष्यवाणी  करते समय अक्सर दो तरह की बातें बोलते हैं दो दोनों प्रकार की भविष्यवाणियों में फिट बैठ जाएँ ऐसे ऐसे शब्दों का चयन किया जाता है क्योंकि  यह विज्ञान नहीं है यदि ये विज्ञान होता तो इन्हेंप्राप्त आंकड़ों के आधार पर अपने द्वारा की हुई भविष्यवाणियों पर भरोसा होता !वहीं दूसरी तरफ ग्रहण विज्ञान है इसका विज्ञान चूँकि खोजा जा चुका है इसीलिए ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी करते समय न कोई घबड़ाहट और न कोई हिचकिचाहट न कोई किंतु परंतु और  न हीं ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी के गलत होने की कोई आशंका !उस ग्रहण विज्ञान के द्वारा आज भी पूरी निडरतापूर्वक  ग्रहण संबंधी भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं जो एक एक मिनट सेकेंड तक सही एवं सटीक घटित होती हैं !इसे कहा जाता है पूर्वानुमान का ग्रहणसंबंधी  विज्ञान !
     ये तो सभी लोग जानते हैं कि ग्रहण के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए आज तक न कहीं कोई रडार लगाने की आवश्यकता पड़ी और न ही कोई उपग्रह लगाए गए !न किसी पश्चिमी विक्षोभ की कहानी गढ़नी पड़ी !इसके अतिरिक्त अलनीनों लानीना जैसी कोई  निराधार कल्पनाएँ भी नहीं करनी पड़ीं ! ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी काल्पनिक कहानियाँ भी नहीं गढ़नी पड़ीं और कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि ग्रहणसंबंधी भविष्यवाणियाँ गलत हुई हों जिससे किसी ग्रहणवैज्ञानिक को लज्जित ही  होना पड़ा हो और अपनी भविष्यवाणी गलत होने पर भी उस गलती को न मानकर केवल अपनी झेंप मिटाने के लिए किसी ग्रहण वैज्ञानिक को ग्लोबल वार्मिंग ,जलवायु परिवर्तन,अलनीनों, लानीना जैसी मिथ्या कल्पनाएँ करनी पड़ी हों ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है !
      वर्तमान समय जिस  प्रकार से मौसम वैज्ञानिकों के बश की बात ही नहीं थी कि वे ग्रहण संबंधीविज्ञान की खोज कर पाते और अपने  राडार एवं उपग्रहों के बल पर ग्रहणसंबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाते!जब वो हवा बादलों आँधी तूफानों के विज्ञान को अभी तक नहीं खोज पाए तो उनसे ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान लगाने की कोई अपेक्षा कैसे की जा सकती थी !जो आधुनिक विज्ञान भूकंप अर्थात  पृथ्वी के कंपन का पूर्वानुमान लगा पाने में अभी तक असफल रहा वो इतने इतने विशालकाय सूर्य चंद्र आदि ग्रहों की गति का पूर्वानुमान कैसे लगा सकता है !वर्तमान समय उड़ते हुए बादलों और आँधी तूफानों को आता देखकर भविष्यवाणियाँ कहीं के लिए की जाती हैं वो घटित कहीं दूसरी जगह हो रही होती हैं !कई बार तो भविष्यवाणियाँ पूरी तरह गलत हो जाती हैं !जिस विज्ञान के द्वारा हवा और  बादलों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगा जा सका  उसके बल पर सूर्य चंद्र गहणों का पूर्वानुमान लगा पाना कभी संभव ही न था !
     किसी भी ग्रहण में जिन तीन विषयों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है वे  सूर्य चंद्र और पृथ्वी हैं इन तीनों की एक दूसरे से दूरी बहुत अधिक है इनका वजन बहुत अधिक है !इसलिए इन्हें अपनी इच्छा के अनुशार हिलाना डुलाना तो संभव नहीं है !इसीलिए कोई भी वैज्ञानिक ये दावा नहीं कर सकता है कि उसने कृत्रिम ग्रहण पड़वा लिया है जबकि कृत्रिम बारिस होते तो देखी सुनी जाती है !इसलिए ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान लगाने की अपेक्षा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाना अत्यधिक आसान होना चाहिए !किंतु ऐसा नहीं  हो सका !इसका कारण है कि ग्रहण संबंधी विज्ञान की खोज भारतीयों के पूर्वजों ने तपस्या अनुभव अध्ययन आदि के आधार पर न केवल कर ली थी अपितु उसे गणित के सूत्रों में बाँध लिया था जिसके आधार पर आज भी सैकड़ों हजारों वर्ष पहले के ग्रहणों का भी सटीक  पूर्वानुमान कर लिया जाता है जबकि मौसम के विषय में पूर्वजों ने जो कुछ किया था उसे अंधविश्वास बताकर भुला दिया गया अब मौसम की दिशा दशा समझना भारी पड़ रहा है !
      जिस गणित विज्ञान  के द्वारा इतने कठिन ग्रहण जैसी आकाशीय घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है उस गणित विज्ञान के द्वारा  यदि पृथ्वी पर घटित होने वाले वर्षा संबंधी या  पृथ्वी के अंदर घटित होने वाले भूकंप संबंधी और वायु मंडल में घटित  होने वाले आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के विषय में भी अनुसंधान किया जा सकता था !यदि कोई विधा या सूत्र इस प्रकार के खोजे जा सके होते तो आज ग्रहण विज्ञान की तरह ही मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी और अधिक सटीक विधि से लगाए जा सकते थे !
 प्राचीन मौसम  विज्ञान की विशेषता -
       प्राचीनयुग में  पूर्वज ऋषियों ने ग्रहण विज्ञान की तरह ही मौसम संबंधी विज्ञान की भी खोज कर ली थी जिसके बिषय में प्रमाण जहाँ तहाँ  मिलते हैं उस  विज्ञान के द्वारा दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता था जिसके आधार पर महीनों वर्षों पहले मौसम संबंधी घटनाओं  का पूर्वानुमान लगाया जा सकता था !ऐसा पूर्वानुमान लगाने वाले लोग उस युग में प्रायः कुछ साधू संत एवं ऐसे विद्वान लोग हुआ करते थे जो वर्ष भर की मौसमी घटनाएँ एक बार ही लिखकर रखलिया करते थे उसे भारतीय भाषा में पंचांग या पत्रा कहा जाता था जो आज भी इसी नाम से प्रकाशित किया जाता है !किंतु सरकारी उपेक्षा के कारण उसमें उस प्रकार के अनुसंधान का आज अभाव है प्रायः खानापूर्ति की जा रही है !
       पहली बात तो परतंत्रता के समय में इससे संबंधित बहुत सारे ग्रंथ नष्ट कर दिए गए थे !उसके बाद भी जो बचे उनमें भी ऐसे बिषयों में महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं जिनमें से काफी कुछ ऐसी हैं जो क्रमवद्ध नहीं हैं और कुछ जो क्रम बद्ध है भी वे संपूर्ण नहीं है !ऐसी परिस्थिति में इसे क्रमबद्ध और संपूर्ण करने के लिए इसमें गहन परिश्रम अध्ययन और अनुसंधान आदि की आवश्यकता है !
      संभवतः इसीलिए ज्योतिष तंत्र योग और आयुर्वेद जैसे विषयों को पढ़ाने की व्यवस्था  सरकारी विश्व विद्यालयों में भी की गई है  कक्षाएँ चलती हैं परीक्षाएँ होती हैं रिजल्ट निकलते हैं बच्चे अच्छे नंबरों से पास भी होते हैं !शोध होते हैं शोधप्रबंध लिखे जाते हैं फिर ऐसे विषयों के इनके रीडर प्रोफेसर आदि तैयार होते हैं वे सभी लोग योग्य भी होते होंगे !शासन प्रशासन के हिसाब से कुलपति कुलाधिपति आदि होते हैं किंतु क्या कारण है कि प्राचीन विज्ञान से संबंधित अध्ययन अनुसंधान आदि में कोई प्रगति नहीं हो पा रही है ! जबकि प्राचीन विज्ञान की  समृद्धता के विषय में  ऐसे लोगों के द्वारा दावे तो बड़े बड़े कर लिए जाते हैं बड़े बड़े भाषण दिए जाते  हैं  किंतु  जाने क्यों वैदिक विज्ञान से संबंधित किसी भी विषय को आज तक समाज के सामने प्रमाणिकता पूर्वक प्रस्तुत नहीं किया जा सका !ऐसे अध्ययनों और अनुसंधानों से क्या लाभ जिनसे जुड़े लोग अपने विषयों से संबंधित वैज्ञानिकता सिद्ध कर पाने में ही अभी तक असफल रहे हों !
      वर्षाविज्ञान आँधी तूफ़ान भूकंप जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग आदि बड़ी बड़ी बातें आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार की जा रही हैं !उनकी बातों में सच्चाई कितनी है ये तो वही जानते होंगे किंतु वे अपने अपने विषयों में कुछ तो कर रहे हैं  सरकारी आजीविका पाकर कम से कम चुप तो नहीं बैठे हैं किंतु दूसरी ओर वैदिक विज्ञान से जुड़े लोग हैं जिनका ऐसे वैज्ञानिक  विषयों में  मत क्या है  पता ही नहीं लग पाता है कि ऐसे वैज्ञानिक विषयों के रहस्यों  को सुलझाने में वैदिकवैज्ञानिक अपनी भूमिका का निर्वहन किस प्रकार से कर रहे हैं !यदि नहीं तो उनके होने का औचित्य ही क्या है !
         वर्षा कब कहाँ कितनी होगी या नहीं होगी सूखा पड़ेगा या बाढ़ आएगी ,ऐसे ही आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि आने की  संभावना कब होगी ,भूकंप आने की संभावना कब बनेगी ,किस वर्ष कृषि में किस प्रकार के आनाज अधिक  उत्पन्न होंगे !किस महीने दिन आदि में किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने की संभावना अधिक है !किस क्षेत्र में कब किस प्रकार के रोग फैलने की संभावना अधिक है !किस क्षेत्र में किस समय हिंसा आंदोलन आदि भड़कने की या आतंक वादी  घटनाएँ घटित होने की संभावना अधिक है आदि पूर्वानुमानों  का आगे से आगे पता लगाने के लिए वैदिक विज्ञान में  कई विधियाँ बताई गई हैं !जिनके आधार पर वैदिक विज्ञान से जुड़े लोग दावे तो बड़े बड़े करते हैं किंतु उनके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाकर घोषित क्यों नहीं किया जाता है कि भविष्य में मौसम कब कैसा रहेगा ?
          इसी प्रकार से तंत्र और योग आदि के क्षेत्र में  वर्षा रोकने एवं वर्षा कराने के लिए बड़े बड़े दावे तो किए जाते हैं प्राकृतिक आपदाओं की रोक थाम के लिए बड़े बड़े उपाय बताए गए हैं !शत्रुओं को नष्ट करने के लिए या उन्हें सम्मोहित करने के लिए वैदिक विज्ञान में अनेकों उपाय बताए गए हैं !आखिर क्या कारण है कि आतंकवादी समस्याओं से भारत परेशान है वो लोग कभी भी कहीं भी हमला कर देते हैं जिससे भारत वर्ष की जन धन की भारी हानि होती है !ऐसे शत्रुओं के संहार के लिए या उन्हें सम्मोहित करने  के लिए वैदिकवैज्ञानिक अनुसंधान पूर्वक कोई रास्ता क्यों नहीं निकालते हैं !जिससे आतंकियों के हाथों से मारे जाने वाले सैनिकों एवं आम समाज के बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सके ! इसके साथ ही ऐसे देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मोहन करके उन्हें भारत के हितचिंतन की ओर प्रेरित क्यों नहीं किया जा सकता जो भारत के विरोधी देशों को भारत के विरुद्ध भड़काया करते हैं !कश्मीर समस्या दिनों दिन खिंचती जा रही है !यदि वैदिक विज्ञान में ऐसी समस्याओं के समाधान के उपाय जो बताए गए हैं तो उन पर अनुसंधान करने एवं प्रयोग करके सही सिद्ध करने की जिम्मेदारी तो उन्हीं की है सरकार ने ऐसे  विश्व विद्यालयों में इस कार्य के लिए जिन्हें नियुक्त किया है यदि वे अपना काम जिम्मेदारी से न करें तो किसी दूसरे को या सरकार को कोसने से भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान की प्रामाणिकता  कैसे  सकती है !
  भारतीय प्राचीन  मौसम विज्ञान की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन ?
     वेदविज्ञान  से संबंधित  विश्वविद्यलयों के वेदवैज्ञानिक रीडर प्रोफेसर आदि ज्योतिष तंत्र आदि विषयों में ऐसे अनुसंधान क्यों नहीं कर पाते हैं ?वैदिक विज्ञान में वेदवैज्ञानिक पद्धति से प्रकृति और जीवन से संबंधित लगभग सभी विषयों में भविष्यवाणियाँ करने की विधियाँ बताई गई हैं !ऐसे वैज्ञानिक विषयों को विश्व विद्यालयों में पढ़ाने वाले रीडर प्रोफेसर आदि वेद वैज्ञानिकों को क्या वेद विज्ञान पर विश्वास नहीं है या उन्होंने उन पर अनुसंधान करके देख लिया है जिसमें वे गलत पायी गई हैं !या उन बिषयों की उन्हें  जानकारी ही नहीं है !आखिर क्या कारण है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे विषयों से संबंधित कोई प्रमाणित अनुसंधान अभी तक देश और समाज के सामने वेद वैज्ञानिकों के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सका है जबकि सरकार ऐसे लोगों को अनुसंधान करने के लिए समस्त सुख सुविधाओं समेत सरे संसाधन उपलब्ध करवाती है इसलिए सरकार का भी यह दायित्व बन जाता है कि वो ऐसे विभागों से संबंधित सच्चाई समाज के सामने प्रस्तुत करे कि इस भारतीय विज्ञान के विषय में वे क्या कर सकते हैं !देश की जनता को सरकार से यह जानने के अधिकार तो है कि सरकार जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई का धन जिन लोगों पर खर्च करती है उससे समाज को लाभ क्या होता है !
      वेद वैज्ञानिक कहलाने वाले लोगों के लिए उचित है कि वे वैज्ञानिक विषयों से संबंधित ग्रंथों श्लोकों मंत्रों आदि को ही न केवल दोहराते सुनाते या दिखाते रहें !अपितु इन् विषयों पर अनुसंधान करके पारदर्शिता पूर्वक समाज के सामने प्रस्तुत करें !ऐसे विषयों पर भाषण प्रवचन देने वाले लोगों से समाज को निराशा मिली है ! इन विषयों में वेदों में तो बहुत कुछ लिखा है ही किंतु वेदविज्ञान से संबंधित वर्तमान लोग इस विषय को वो सम्मान नहीं दिला सके जिसका यह विषय अधिकारी था !किंतु सच्चाई ये भी है कि इससे संबंधित अनुसंधान भी केवल वही लोग कर सकते हैं जो इन विषयों के विद्वान् हैं यदि वही ऐसा कुछ नहीं कर पाएँगे तो ऐसे अनुसंधानों से संबंधित विषयों के केवल स्कूलों में पठन पाठन से क्या और कितना लाभ हो पाएगा ! 
      वेद विज्ञान  विभाग कई विश्वविद्यालयों में खोले गए हैं वेद विज्ञान प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय भी बनाए जाने के विषय में अत्यंत सुदृढ़ प्रयास किए जा रहे हैं यदि वो बन भी गए तो उससे ऐसे वैज्ञानिक विषयों के अनुसंधान में कोई नया अध्याय जोड़ा जा सकेगा क्या ?क्योंकि इसके लिए शिक्षक तो वही या उसी प्रकार के लोग होंगे जो उन विश्व विद्यालयों में अभी तक कुछ नहीं कर पाए वो ऐसे नए संस्थानों में कुछ कर पाएँगे ऐसी आशा कैसे की जा सकती है ऐसा कुछ कर पाना यदि उनके बश का ही होता तो अभी तक जिन सरकारी विश्व विद्यालयों में ऐसे लोग सुशोभित हो रहे हैं वहीँ पर उन्होंने बहुत कुछ कर लिया होता !
      इसलिए ऐसे विश्व विद्यालयों या विभागों को बनाकर सरकार ऐसे लोगों को अपनी वेदवैज्ञानिक प्रतिभा को विस्तार देने के लिए एक और अवसर प्रदान कर सकती है किंतु वो लोग इसका उपयोग कितना कर पाएँगे इस पर विचार किया जाना बहुत आवश्यक है !कहीं ऐसा न हो कि वेदविज्ञान पर अनुसंधान के नाम पर कुछ और शोध प्रबंध लिखकर सरकारी गोदामों में जमा कर के इति श्री कर ली जाए !
     इसलिए उचित ये होगा कि वेद विज्ञान विभागों या विश्व विद्यालय बनाने के लिए कुछ ऐसे विद्वानों का संग्रह किया जाए जिन्होंने ऐसे विषयों पर पहले कभी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान किया हो जिसे समाज के सामने सही सिद्ध करने की क्षमता रखते हों !
        सच्चाई ये है कि भारत का जो प्राचीन विज्ञान है वो निरंतर उपेक्षा का शिकार है इसलिए इससे संबंधित विद्वान् उस प्रकार के अनुसंधानों में परिश्रम नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि इसके आधार पर यदि कोई खोज कर भी ली तो उसे वैज्ञानिक मान्यता मिलेगी नहीं वो भले कितनी भी सच क्यों न हो !क्योंकि इस  विषय में वैज्ञानिक मान्यता देने के लिए सरकारों ने जिन्हें अधिकार दे रखे हैं वे ऐसे विषयों को मानते ही नहीं हैं!
      दूसरी बात कुछ संस्कृत के विद्वान जो ऐसे प्राचीन मौसम विज्ञान से संबंधित विषय में कुछ भी नहीं जानते हैं किंतु संस्कृत जानते हैं वेदादि भी पढ़ रखे हैं उसके आधार पर सरकारों के द्वारा उन्हें संस्कृत उत्थान संबंधी महत्त्वपूर्ण पदों पर बैठा दिया जाता है किंतु उनके विषयों के प्रति उनकी जवाबदेही बिलकुल नहीं होती है ! सरकार ऐसे लोगों को वेदों में सन्निहित प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधान की जिम्मेदारी सौंपती है किंतु ऐसे लोग संस्कृत तो पढ़े हैं यहां तक कि कुछ लोगों ने वेद भी पढ़े होंगे तो उसका अर्थ नहीं समझते हैं जो अर्थ भी समझते हैं वे उसमें छिपे विज्ञान को नहीं समझते इसलिए ऐसे विषयों पर अनुसंधान करना करवाना उनके बश का होता नहीं है !इसलिए ऐसे लोग वेदों के वैज्ञानिक  अनुसंधान के नाम पर कुछ शोध प्रबंध लिखवा कर सरकारों को सौंप देते हैं !जिनमें विज्ञान या वैज्ञानिक अनुसंधानों जैसा कुछ भी नहीं होता है केवल खानापूर्ति मात्र होती है और वेद वेदांग जैसे विषयों के अनुसंधान के लिए स्वीकृत धन राशि उसी में समाप्त कर दी जाती है !इसलिए वेदविज्ञान के अनुसंधान और उत्थान के नाम पर अभी तक जो भी प्रयास सरकारों की ओर से किए भी गए हैं उनका दुरुपयोग जिस प्रकार से संस्कृत से जुड़े लोगों के द्वारा किया गया है ऐसे लोग वेद विज्ञान की उपेक्षा के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार हैं !सच्चाई यह है कि भारत का प्राचीन विज्ञान अत्यंत समृद्ध है किंतु संस्कृत पठन पाठन की जिम्मेदारी सँभालने वाले लोगों ने ही अपनी निष्क्रियता के कारण इसे बेचारा बना दिया है !
    घाघ का मौसम विज्ञान - 
     महाकवि घाघ जिनका पूरा नाम देवकली दुबे था जो मूलतः कृषि वैज्ञानिक थे उन्हें कृषि के प्रत्येक पक्ष की अत्यंत उत्तम जानकारी थी ! चूँकि कृषि वर्षा के आधीन होती है इसलिए वर्षा संबंधी सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में वो अत्यंत सफल वैज्ञानिक थे जिनके द्वारा लिखी गई सूक्तियाँ आज भी लोगों की वाणी पर विराज मान रहती हैं विशेष कर कृषक  वर्ग उनकी सूक्तियों पर मंत्र की तरह विश्वास करता है !
     महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से पथप्रदर्शन करते आयी हैं। बिहार व उत्‍तरप्रदेश के गाँवों में ये कहावतें आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहाँ वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्‍य साबित होती हैं। उनकी कहावतों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं --
  1. यदि रोहिणी और मूल नक्षत्र में खूब  गर्मी हो और ज्येष्ठ महीने की प्रतिपदा तिथि में भी खूब  गर्मी हो  तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।अर्थात वर्षा अच्छी होगी !
  2. यदि शुक्रवार के दिन बादल आ जाएँ और शनिवार को छाए रह जाएँ तो घाघ कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाता है ।
  3. यदि भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की छठ तिथि को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस वर्ष अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है क्योंकि उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है !
   4. यदि द्वितीया तिथि का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे अर्थात वर्षा अच्छी होगी ।
   5. यदि पौष की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी नहीं दिखाई पड़ेगा वर्षा अच्छी होगी ।
   6. यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणीनक्षत्र  हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
   7. यदि पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियों में बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् अच्छी वर्षा होगी ।
 8. यदि वैशाख में अक्षय  तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।अर्थात वर्षा अच्छी होगी !
9.यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी। 
11. यदि पौष कृष्णपक्ष की दशमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन कृष्ण पक्ष की दशमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।  
12.आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।वर्षा अच्छी होगी !
13.यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएँगे और नहीं खाएँगे। 
14.यदि आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को अंधकार छाया हुआ हो और चंद्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनंददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनंद की बाढ़-सी आ जाएगी।         
          इसप्रकार से महाकवि घाघ ने समय और वर्षा संबंधी लक्षणों का आपसी तालमेल बैठाकर जो वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बताया है उसमें कुछ अल्पावधि तो कुछ दीर्घावधि  की मौसम भविष्यवाणियाँ भी बताई गई हैं !ये किसानों का अपना मौसम विज्ञान माना जाता है किसानों ने जब तक इस प्राकृतिक मौसम विज्ञान के सहारे अपने कार्यों का संचालन किया तब तक किसी किसान को आत्महत्या करनी पड़ी हो ऐसा कभी देखा सुना नहीं गया !वर्तमान मौसम वैज्ञानिकों के तो कोई निश्चित नियम ही नहीं हैं वर्षा होते देखि तो वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी आँधी तूफान आते देखा तो आँधी तूफ़ान की भविष्यवाणी कर दी किंतु इसमें विज्ञान कहाँ है !
     इसीलिए तो महाकवि घाघ की कहावतें  आज भी उतनी ही लोकप्रिय बनी हुई हैं !यही उनकी सच्चाई का प्रमाण है !चूँकि ये सही होती रही हैं इसीलिए ऐसी कहावतों पर आज भी समाज को भारी विश्वास है तभी तो हिंदी भाषी प्रदेशों में  जन जन के मुख से बात बात में ये कहावतें बोलते सुनी जाती हैं !
      इतनी लोकप्रियता होने के बाद भी यदि कोई इसे विज्ञान नहीं मानता है तो यह उसकी अपनी बात है !बाकी समाज को इसकी वैज्ञानिकता पर कोई संदेह नहीं होता है !
     आँकड़ा हो या अंदाजा किंतु ये पूर्वानुमान नहीं है !  
        पूर्वानुमान का आधार कोई न कोई वैज्ञानिक पद्धति होनी चाहिए जिसके द्वारा ग्रहण संबंधी भविष्यवाणियों की तरह ही कोई भी घटना घटित होने से काफी पहले पूर्वानुमान लगाया जा सके ! मौसम विज्ञान कहने से कई बार लगता है कि संभवतः यही वो विज्ञान है जिसके द्वारा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु इस सच्चाई का ज्ञान बहुत कम लोगों को होगा कि हम जिस  विषय को मौसमविज्ञान के रूप में जानते हैं उसमें विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं !वह तो मौसम संबंधी  गतिविधियों को अत्यंत नजदीक आ जाने पर देखने में सहायक हो सकता है किंतु इसका मौसम संबंधी विज्ञान से कोई संबंध नहीं है!
     यदि कहीं धुआँ उठता दिखाई पड़ता है तो उससे ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि वहाँ आग जल रही होगी !किंतु धुआँ उठता हुआ देखकर आग जलने का अंदाजा लगाने की प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है !
      इसीप्रकार से किसी नहर में जब पानी छोड़ा जाता है या गंगा आदि नदियों में जब अचानक बाढ़ का पानी आ जाता है तो ऐसे दोनों प्रकार के पानी की दिशा और उसकी गति देख कर ये अनुमान कर लिया जाता है कि यह जल बहकर किस दिन कहाँ पहुँच सकता है !इसी प्रकार से कोई ट्रेन दिल्ली से हाबड़ा जा रही हो तो उसकी गति और दिशा देख कर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बीच में पड़ने वाले किन किन  स्टेशनों  पर  किस किस समय पहुँच सकती है !ऐसे ही अबकी बार भारत में चुनाव हो रहे थे इसी बिषय में कुछ लोग बैठकर किसी चाय की  दूकान में चुनावी चर्चा कर रहे थे तभी उनमें से एक बोला कि 23 मई के बाद डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ जाएँगे लोग उसके मुख की ओर देखने लगे किसी ने उससे पूछा ऐसा क्यों कह रहे हो तो उसने बताया कि तब तक चुनाव हो चुके होंगे !इसलिए कीमतें तो बढ़ेंगी ही अन्यथा चुनावों का खर्च कहाँ से निकलेगा आदि आदि !इस प्रकार के अंदाजे तो बहुत सारे क्षेत्रों में लगभग सभी लोग लगा ही लेते हैं किंतु जीवन के किसी भी क्षेत्र में अंदाजा लगाने वाली इस प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही कोई मानता है !ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी अंदाजों को विज्ञान कैसे माना जा सकता है !
      मौसम से संबंधित भविष्यवाणी करने वाले लोग अपने इस प्रकार के अंदाजों को भी विज्ञान कहते देखे सुने जाते हैं जो विज्ञानभावना के साथ अन्याय है !यदि मौसम पूर्वानुमान से संबंधित कोई तीर तुक्का सही बैठ भी जाता है तो भी वो रहता तुक्का ही है !क्योंकि वो तुक्का वैज्ञानिक नहीं है केवल अंदाजा है !अंदाजे को यदि विज्ञान माना जाने लगेगा तो जीवन में या प्रकृति में अंदाजा तो हर पल लगाना पड़ता है हर काम के विषय में लगाना पड़ता है जीवन और प्रकृति के विषय में लगाना पड़ता है संबंधों व्यापारों पद प्रतिष्ठाओं के मिलने और छूटने के विषय में लगाया जा सकता है !चुनावों के समय में प्रत्याशियों पार्टियों के चुनाव हारने और जीतने के विषय में लगाया जाने वाला पूर्वानुमान  या किए जाने वाले एक्जिटपोल को क्या चुनावविज्ञान मान लिया जाएगा !एक्जिटपोल तो एक्जिटपोल ही होते हैं इनके सही होने की गारंटी नहीं होती फिर भी इनमें  से बहुतों को सही होते भी देखा जाता है किंतु कई बार ये बिलकुल उलटे भी निकल जाते हैं सारे आँकड़े अंदाजे झूठे होते देखे जाते हैं ! हमें याद रखना चाहिए कि ये विज्ञान नहीं अपितु अंदाजा है इसके सच होने की उम्मींद भी हमें बहुत ज्यादा नहीं रखनी चाहिए !चुनावी आँकड़ों और मौसम संबंधी आँकड़ों में अंतर क्या है चुनावी आँकड़ों में समाज से सैंपल उठाए जाते हैं जबकि मौसमी आंकड़ों में प्राकृतिक वातावरण से सैंपल उठाए जाते हैं इन्हीं के आधार पर आँकड़े लगाए जाते हैं !इसलिए यदि चुनाव विज्ञान नहीं तो मौसम विज्ञान कैसे हो सकता है !
       अंदाजा तो गाँवों और जंगलों में रहने वाले लोग किसान आदि भी लगा लेते हैं कुछ प्रतिशत तो उनका भी सही हो जाता है !कहा तो यहाँ तक जाता है कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों आदि को भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी पूर्वाभाष  हो जाता है !इसीलिए भूकंप  आने से पहले वे वह क्षेत्र छोड़ जाते हैं जहाँ भूकंप आना होता है !ऐसा पूर्वाभाष कई पशु पक्षियों आदि जीव जंतुओं को भी हो जाता है इसलिए भूकंप  आने से पहले वे अपनी अपनी गतिविधियाँ बदलने लगते हैं उनके स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव आने लगता है !कुछ पक्षियों की बोली भाषा समझने वाले लोग उनकी अलग अलग प्रकार की बोलियों को सुन कर वर्षा से लेकर प्रकृति और जीवन से संबंधित तथा कई अन्य प्रकार के भी पूर्वानुमान लगा लेते हैं !यदि उनकी बोली भाषा व्यवहार आदि को समझना किसी को आता है तो उन पूर्वानुमानों में से भी बहुत सही निकलते देखे जाते हैं ! किंतु हम उन आदि वासियों किसानों ग्रामीणों आदि को जिस प्रकार से मौसम वैज्ञानिक नहीं कह सकते तो किसी और दूसरे को मौसम संबंधी किस योग्यता के कारण मौसम वैज्ञानिक मान लिया जाए !हमें याद रखना चाहिए कि ये विज्ञान नहीं अपितु अंदाजा मात्र है जो विज्ञान का मुख्यस्वरूप  भले ही न हों किंतु ऐसे विषयों के अनुसंधान में सहायक हो सकते हैं !
        कुलमिलाकर अंदाजा तो अंदाजा ही रहता है जबकि विज्ञान  में पारदर्शिता होती है दृढ़ता होती है निर्भयता होती है हर बात तर्क की कसौटी पर कसी जा सकती है !इसीलिए तो अंदाजे की अपेक्षा विजान पर अधिक विश्वास किया जाता है !
       किसी विषय का विज्ञान क्या है ये केवल उस शब्द के साथ विज्ञान जोड़ लेने मात्र से थोड़ा विज्ञान हो जाएगा अपितु उसकी वैज्ञानिकता सिद्ध करनी पड़ेगी  तब वो विज्ञान होगा !सिद्धांततः तो जिस बिषय का स्वभाव समझने में तथा उसका रहस्य उद्घाटित करने में एवं उससे संबंधित पूर्वानुमान देने में जो पद्धति जितनी अधिक सफल होती दिखाई दे वही उस विषय का विज्ञान माना जाना चाहिए !इस दृष्टि से यदि देखा जाए तो मौसम एवं भूकंपों से संबंधित अभी तक ऐसा कोई विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है जो अपने बल पर मौसम या भूकंपों से संबंधित घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगा सके !  
बादलों हवाओं की जासूसी को क्यों मान लिया जाए मौसम विज्ञान ?
     वर्षा आँधी तूफानों आदि को  रखा कर बैठना पड़ता है !प्रारंभिक अवस्था में ही देख लेने के लिए सरकारों ने राडार उपग्रह आदि की व्यवस्था कर रखी है जिसके द्वारा आँधी तूफ़ान या बरसने वाले बादलों की निगरानी की जाती है !इनसे मिले चित्रों के माध्यम से इस बात की जासूसी की जाती है आँधी तूफ़ान या बरसने वाले बादल किस दिशा में कितनी गति से भागे जा रहे हैं उसी के आधार पर इस बात का अंदाजा लगाने का प्रयास किया जाता है कि ये उस दिशा में पड़ने वाले किन किन देशों प्रदेशों शहरों आदि में किस किस समय में पहुँच सकते हैं !ये अंदाजा कभी कभी ठीक बैठ जाता है और कभी कभी कुछ आगे पीछे भी होता है तथा कभी कभी तो बिल्कुल विपरीत निकल जाता है !बरसने को कहा जाए और बादल भी न आवें या आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाए और तेज हवा का एक झोंका भी न आवे !क्योंकि जासूसी तो केवल जासूसी होती है कोई भी जासूस संबंधित व्यक्ति से ये पूँछ तो नहीं सकता कि अगला कदम तुम्हारा क्या होगा उसे तो केवल पीछे चलकर ही जितनी संभव हो उतनी जानकारी जुटानी होती है! इस आधी अधूरी जानकारी के आधार पर ही कड़ियाँ जोड़कर संबंधित विषय में अगले कदम का अंदाजा लगाना होता है !
   इसी प्रकार की जासूसी करके अपना आस्तित्व  बचाने के प्रयास में लगी हुई हैं देश विदेश की मौसम संबंधी जासूसी संस्थाएँ !आश्चर्य तो तब होता है कि जब कोई उसे मौसम विज्ञान कहता है क्योंकि मौसमविज्ञान कहे जाने वाले विषय में विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं !
        किसी  जंगल के पास के किसी गाँव में हाथियों के  झुंड जंगल से निकल कर अचानक गाँव में घुस आते थे और उत्पात मचाकर काफी नुकसान कर दिया करते थे इसके बाद जंगल में वापस फिर लौट जाया करते थे !ग़ाँव वालों को बचाव के लिए समय ही नहीं मिल पाता था !इससे तंग होकर गाँववालों ने गाँव के बाहर चारों ओर कैमरे लगवा लिए जिनसे हाथियों के गाँव में घुसने की जासूसी कर ली जाती थी !जब जब हाथियों के झुण्ड जंगलों से निकलकर गाँव की ओर बढ़ने लगते तब तब गाँव के लोग कैमरों से देख लिया करते थे और संगठित होकर हाथियों को खदेड़ दिया करते थे !
       कुल मिलाकर कैमरों की मदद से हाथियों के आने की सूचना प्राप्त कर लेने वाले ग्रामीणों का इससे कुछ मात्रा में बचाव तो हो जाया करता था किंतु ये एक तुक्का था अंदाजा था जुगाड़ था इसे विज्ञान विज्ञान शब्द का मजाक होगा ! इसीलिए यह कभी सफल हो जाता था कभी नहीं भी होता था किंतु इस प्रक्रिया के द्वारा हाथियों से अपना बहुत बचाव कर लेने वाले ग्रामीणों को हाथीवैज्ञानिक तो नहीं कहा जा सकता है ! ऐसी परिस्थिति में रडारों और उपग्रहों के माध्यम से  बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी जासूसी करके मौसम संबंधी अंदाजा लगा लेने वाले मौसमभविष्य वक्ताओं को  मौसम वैज्ञानिक किस योग्यता के आधार पर माना जा सकता है ! 
        मौसम संबंधी अधिकाँश प्राकृतिक घटनाओं की जन्मस्थली समुद्र ही है!इसलिए अधिकाँश वर्षा या आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित शुरुआती घटनाएँ समुद्र में ही बनती हुई दिखाई पड़ती हैं इसके बाद वहीँ से चारों ओर जाती हैं !कई बार जिस दिशा में ये घटनाएँ मुड़ जाती हैं उधर कोई देश प्रदेश आदि काफी अधिक  दूरी पर होता है तो वहाँ ऐसी घटनाओं को पहुँचने में कुछ दिन लग जाते हैं !ऐसे समय में तो आधुनिक अनुमानों के द्वारा  सँभलने के लिए कुछ दिनों का समय मिल जाता है किंतु  कई बार गंतव्य स्थान नजदीक होता है है तब तो पता लगते लगते ही घटनाएँ घटित होने लगती हैं! वे तुरंत उड़कर किसी भी दिशा या देश में चली जाती हैं वहाँ उनसे लाभ या हानि दोनों प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !आवश्यकतानुशार वर्षा होने से लाभ होता है वह तो ठीक है किंतु अधिक वर्षा होने से बाढ़ आदि के कारण हानि भी  होते देखी जाती है!इसी प्रकार से आँधी तूफान आदि घटनाएँ  घटित होती हैं !ऐसी घटनाओं से भारी जन धन की हानि होते देखी जाती है !मौसम संबंधी विज्ञान न होने  के कारण ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव हो नहीं पाया है !
       इसलिए मौसमपूर्वानुमान से संबंधित विज्ञान  के अभाव में ऐसी घटनाओं से होने वाली जन धन की हानि को कम करने के लिए कुछ काम चलाऊ वैकल्पिक व्यवस्थाएँ कर रखी हैं !जिनसे प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भले न संभव हो पाया हो किंतु प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन की हानि में कभी कभी कुछ कमी अवश्य लाई जा सकती है !यद्यपि कभी कभी इस प्रक्रिया से नुक्सान भी होता है इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है फिर भी लाभ के लोभ में ही ऐसी प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है ! 
            मौसम से संबंधित विज्ञान यदि खोजा जा सका होता तो क्या होता ?
     मौसम का संबंध यदि विज्ञान से होता या यूँ कह लें कि यदि मौसम संबंधी विज्ञान को खोजने में सफलता पायी जा सकी होती तो उस विज्ञान के द्वारा ही मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान किया जा सकता था उसके लिए रडारों उपग्रहों सुपर कंप्यूटरों की आवश्यकता ही नहीं पड़ती !क्योंकि किसी भी विषय का विज्ञान अपने विषय को समझने में स्वयं सक्षम होता है उसे उपग्रहों एवं सुपर कंप्यूटरों की वैशाखी की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ! इसी विशेषता के कारण  ही तो इसे उस विषय का विज्ञान माना जाता है !ग्रहण भी तो सुदूर आकाश में कभी कभी, अलग अलग प्रकार से, भिन्न भिन्न मात्रा में घटित होने वाली घटना है!उसका सैकड़ों हजारों वर्ष पहले ग्रहण विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जिसके लिए कभी किसी उपग्रह या सुपर कंप्यूटर की आवश्यकता ही नहीं पड़ी ! ऐसा होने पर भी ग्रहण संबंधी कभी ढुलमुल भविष्यवाणियाँ नहीं करनी पड़ीं !प्रत्येक भविष्यवाणी बिल्कुल सटीक उतरती है इसे कहते हैं विज्ञान !इसी प्रकार से मौसम विज्ञान के नाम पर समाज को जिस प्रकार से मूर्ख बनाया जा रहा है !उसमें विज्ञान तो कुछ है ही नहीं और न ही कोई अनुसंधान हैं !ये तो समुद्रों में या अन्य स्थलों पर जिस तरह की घटना घटती देखी गईं उसी के अनुसार दूसरी जगह के विषय में अनुमान लगाकर भविष्यवाणी कर दी गई वो सही हो गलत हो अपनी बला  से !मौसम के विषय में वैज्ञानिक दृष्टि से यदि कुछ भी अनुसंधान हुआ होता तो उन लोगों को मौसम के स्वभाव की जानकरी होनी चाहिए थी जिसके आधार पर वो भविष्यवाणियाँ कर सकते थे किंतु ऐसा कुछ होते दिखाई नहीं पड़ता है !आज मौसमी घटनाओं की ऐसे भविष्यवाणी की जाती है जैसे किसी गाँव में कोई भेड़िया अचानक घुस आया हो तो पूरा गाँव एक साथ हो हल्ला मचाने लग पड़ा हो !जब कि जिस दिन जो प्राकृतिक घटना घटित होती दिख रही है उसका होना ग्रहण की तरह ही हजारों वर्ष पहले निश्चित हो चुका था फिर उसे खोज पाने में इतनी देरी क्यों हुई और उसे अचानक जैसा क्यों प्रस्तुत किया जाता है !यदि किसी की अज्ञानता के कारण उसे ऐसी कोई प्राकृतिक घटना पहले से पता नहीं लगी और वह अपने क्रम से अपने समय से घटित हो गई जिन अज्ञानी लोगों को अचानक पता लगी वो उसे अचानक घटित हुई घटना मानते हैं! जबकि सच्चाई ऐसी नहीं है !
       इस सूक्ष्म अंतर को समझने के लिए सूर्योदय का उदाहरण लेते हैं - जो सूर्य वैज्ञानिक लोग सूर्य के गति विज्ञान को जानते समझते हैं उन्हें सूर्य को देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती वो सूर्य विज्ञान संबंधित गणित के सूत्रों के द्वारा कागज़ पर गणित करके कभी भी किसी भी दिन के विषय में पता लगा लेते हैं कि किस दिन का सूर्योदय कब अर्थात कितने बजकर कितने मिनट पर होगा !ऐसा महीनों वर्षों पहले का निकाल सकते हैं जबकि यदि इसी को आधुनिक मौसमी दृष्टि से  देखा जाए तो इसके लिए भी राडार और उपग्रहों से चित्र प्राप्त किए जाते और सुबह होने पर जैसे जैसे प्रकाश बढ़ते जाता वैसे वैसे  आधुनिक सौर वैज्ञानिक लोग सूर्योदय होने की आशंका आदि व्यक्त करते जाते !इन्हीं आशंकाओं को वो लोग कभी संभावना कभी पूर्वानुमान कभी भविष्यवाणियाँ कहते सुने जाते हैं जबकि है इनमें से कुछ भी नहीं !वस्तुतः ये केवल आत्मबंचना है !         
    विज्ञान का अर्थ ही है किसी विषय के स्वभाव की समझ !-
      जिसके स्वभाव की समझ जिसको हो वो उसका वैज्ञानिक और यदि न हो तो किस बात का वैज्ञानिक !भूकंप जैसी घटनाओं के स्वभाव की समझ होना तो दूर अपितु भूकंप के विषय में जिन्हें सबसे प्रारंभिक जानकारी भी नहीं है वे भी भूकंप वैज्ञानिक बन कर सुशोभित होते हैं !जिन्हें मौसम के स्वभाव की समझ नहीं वे मौसम वैज्ञानक मान लिए जाते हैं !अरे ये तो साधारण सी बात है कि जो हार्ट सर्जरी न जानता हो वो हार्टसर्जन कैसा !किसी विषय की विशेषज्ञता के अभाव में भी उसे विशेषज्ञ मानकर पूजने वाला समाज कभी भी विकसित नहीं होता उन्नति नहीं कर पाता है क्योंकि विशेषज्ञता के नाम पर वो केवल अज्ञान का पूजन कर रहा होता है उसे ही प्रोत्साहित कर रहा होता है इसलिए उस पर कृपा भी अज्ञान की ही होती है !यही कारण है कि भूकंप और मौसम संबंधी घटनाओं का अभी तक कोई विज्ञान नहीं खोजा  जा सका है ऐसे प्राकृतिक विषयों के अनुसंधान अभी तक  सुयोग्य वैज्ञानिकों के अभाव में अनाथ हैं ! 
   समय के प्रवाह में सब कुछ बहता जा रहा है -
      ब्रह्मांड में कोई घटना अचानक नहीं घटित होती है यहाँ सब कुछ एक क्रम से चल रहा है समय बीतता जा रहा है घटनाएँ घटती जा रही हैं क्योंकि  घटनाओं का सीधा संबंध समय के साथ होता है ! ब्रह्मांड का भी अपना स्वभाव है उसकी अपनी गति है उसका अपना पथ है प्रक्रिया है सिद्धांत है समय है नियम हैं जिनमें ब्रह्मांड में घटित होने वाली प्रत्येक गतिविधि अत्यंत दृढ़ता पूर्वक गुँथी हुई है और उसी  ब्रह्मांडीय प्रवाह में सब कुछ बहता चला जा रहा है जो प्रकृति से लेकर जीवन तक ऐसी प्रत्येक जगह में हो रहे बदलाव के स्वरूप में दिखाई पड़ रहा है !उसी में स्थित संपूर्ण प्रकृति भी  उसी के साथ साथ उसी ब्रह्मांडीय गति में सम्मिलित होकर बहती जा रही है !
      उसी ब्रह्मांडीयप्रवाह के क्रम में शरीरों में जब विकार आते हैं तब  शरीर रोगी होते हैं इसी प्रकार से प्रकृति में जब विकार आते हैं तब प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं !वो भी अनिश्चित और अचानक नहीं है अपितु वह भी उसी स्वभाव का एक हिस्सा है !इसीलिए शारीरिकरोग या प्राकृतिकआपदाओं के  विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए रोगों और प्राकृतिकआपदाओं पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा ब्रह्मांडीय प्रवाह के विषय में अनुसंधान किया जाना चाहिए जिससे जीवन एवं प्रकृति से संबंधित संपूर्ण रहस्य स्वयं ही खुलते चले जाएँगे ! यही पूर्ण अनुसंधान माना जाएगा !
      किसी को जुकाम हो जाए उसके कारण उसकी नाक बहने लगे तो नाक बहने न बहने के विषय में उसकी नाक में दूरबीन लगाकर देखते रहने से जुकाम के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है !
     मनुष्य कुछ करे या न करे समय के प्रवाह से जो बदलाव होने हैं वे तो होते ही रहेंगे मनुष्यकृत प्रयासों से उनका प्रकार कुछ बदल जाएगा ! प्रकृति या जीवन में घटित होने वाला सब कुछ उसी प्रवाह के छोटे बड़े बदलाव हैं जीवन और प्रकृति में होने  बदलाव उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह के अभिन्न अंग हैं !कोई जीव जब जन्म लेता है तो बच्चा होता है फिर जवान होता है उसके बाद बूढ़ा होता है और फिर मर जाता है ये सारी  प्रक्रिया  उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह से संचालित होते रहती  है किसी भी व्यक्ति की खान पान आदि की परिस्थितियाँ कितनी भी भिन्न भिन्न क्यों न हों कैसी भी संपन्नता या विपन्नता क्यों न हो किंतु ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ साथ चलने वाला जीवन का क्रम कभी रुकता नहीं है कभी थकता नहीं है ये अपनी चाल से हमेंशा चला करता है !
     इसी प्रकार से कोई बीज अंकुरित होकर पौधा बनता है फिर वृक्ष बनता है इसके बाद फूलता फलता और सूख जाता है !इसमें किसी के प्रयास की कोई आवश्यकता नहीं होती है ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ साथ सब कुछ अपने आप से घटित होता चला जा रहा है! ब्रह्मांडीय क्रम में समय के साथ होने वाले ऐसे परिवर्तनों को संपूर्ण प्रयास करके भी किसी एक अवस्था में स्थिर नहीं रखा जा सकता है !
      कोई व्यक्ति जब मर जाता है तो उसके शरीर की शव संज्ञा हो जाती है उसमें भी परिवर्तन होते रहते हैं पहले शव  रहता है फिर उसमें विकार आने लगते हैं इसलिए वह दुर्गंध देने लगता है इसके बाद वही शव सड़कर मिट्टी बन जाता है यह स्वरूप परिवर्तन कभी भी बंद नहीं होता है!ये तो ब्रह्मांडीय प्रवाह की एक प्रक्रिया है इसमें आकार प्रकार बनते  बिगड़ते जा रहे हैं !
      इसीप्रकार से किसी वृक्ष के सूखने के बाद भी उस लकड़ी में परिवर्तन होते रहते हैं उसे तमाम प्रकार के आकार प्रकार दिए जाते हैं क्रमशः विभिन्न स्वरूपों में परिवर्तित होते हुए वह लकड़ी अंततः एक दिन नष्ट हो जाती है ! 
     जीवन और वृक्षों में होने वाले ऐसे सभी परिवर्तन ब्रह्मांडीय प्रवाह में अपने आप से होते रहते हैं बिल्कुल उसी प्रकार से जैसे किसी नदी की धारा में सबकुछ बहता चला जा रहा हो बहने वाली प्रत्येक वस्तु प्रतिपल एक नए प्रकार की दिखाई पड़ती है जिस पर उसका अपना बस नहीं होता है कि वो अपने को किसी एक ही आकार प्रकार स्वरूप आदि में स्थापित रख सके !
       ऐसी परिस्थिति में यदि कोई पूँछे कि यह सब कुछ बहकर कहाँ जाएगा तो ये केवल उस नदी को पता होना चाहिए किंतु नदी में भी बाढ़ हो या न हो इस पर उसका कोई बश नहीं है इसीलिए नदी किसी को कुछ  बताती नहीं है ! नदी में बाढ़ का कारण वर्ष है वर्षा का कारण बादल हैं बादलों का कारण सूर्य चंद्रादि आकाशीय परिस्थितियाँ हैं उनका कारण समय है वह भी उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह में बहती जा रही हैं ! 
      इसलिए  विषय का अनुसंधान  करना हो तो नदी में बहती हुई चीजों की गति को  देखकर उसके आधार पर इस बात की भविष्यवाणी करना ठीक नहीं होगा कि यह सब कुछ बहकर कहाँ जाएगा! क्योंकि यह जानने के लिए केवल गति ही नहीं अपितु अवरोधों एवं  अवरोधप्रकारों को भी ध्यान में रखना होगा कि आगे किस किस प्रकार के अवरोध मिलेंगे जिनसे कुछ वस्तुएँ निकल सकती हैं और कुछ अपने बड़े आकार के कारण नहीं भी निकल सकती हैं !बहने वाली कुछ वस्तुएँ निर्जीव हैं इसलिए वो तो प्रवाह के साथ  बहेंगी ही उनमें जो सजीव होंगी वो स्वयं तैर कर भी अपना मार्ग चुन सकती हैं !इसलिए उचित यह होगा है कि नदी के गंतव्यस्थान बहाव तथा बीच में अचानक आ जाने वाले अवरोधों एवं बीच में मिलकर उस प्रवाह को बढ़ा देने वाले नदी नालों आदि के प्रभाव का अनुसंधान भी उसी के साथ किया जाए जो जो नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं!नदी के स्वभाव और परिस्थितियों का अच्छी प्रकार से अनुसंधान  करके ही इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि इस नदी के प्रवाह में बह रही वस्तुओं में से कौन कहाँ तक कितने समय में पहुँच सकती है ! अनुसंधान की इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकप्रक्रिया माना जा सकता है क्योंकि इसमें नदी के स्वभाव परिस्थितियों प्रवाह आदि का सम्यक अनुसंधान किया जाता है यही इस विषय का विज्ञान है ! 
     इसके अलावा नदी में बहती हुई चीजों की गति देखकर उसके आधार पर इस बात की भविष्यवाणी कर देना ये ये कब कितनी दूरी पर पहुँचेंगी इसमें विज्ञान कहीं नहीं है अपितु यह तो न केवल तीर तुक्का है अपितु विज्ञान शब्द का भी उपहास है !यही कारण है कि इसके आधार पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ मौसम भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों की तरह हमेंशा दुविधा पूर्ण ही बनी  रहती हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में विज्ञान के दर्शन ही नहीं  होते हैं !
        व्रह्मांड अनंत काल से  चला आ रहा है !उसी के अनुसार  सभी ऋतुएँ प्रतिवर्ष अपने अपने समय पर आती जाती रहती हैं !समय पर अपना प्रभाव फैलाती हैं और समय बीतते  ही अपना प्रभाव समेटकर आगे बढ़ जाती हैं उसके बाद दूसरी ऋतु आती है वो भी अपना प्रभाव फैलाती समेटती और निकल लेती है !इसी प्रकार से सर्दी गर्मी वर्षा आदि  सभी ऋतुएँ आती जाती रहती हैं सब कुछ यूँ ही बड़ी तेजी से बीतता जा रहा है !
       सूर्य चंद्रमा प्रतिदिन अपने अपने नियमों सिद्धांतों आदि के आधार पर आकाश में उगते हैं और अपनी अपनी भूमिका का निर्वाह करते हुए अपना अपना प्रभाव छोड़ते हैं उसे विस्तारित करते हैं और अंत में अपने विस्तार को समेटते हुए अस्त हो जाते हैं !
       इनके उस प्रभाव की न्यूनाधिकता के कारण जीव जंतुओं में अनेकों प्रकार का पोषण प्राप्त होता है एवं उन्हीं विकारों से रोग आदि भी पैदा होते हैं !प्रकृति में अनेकों प्रकार की प्राकृतिक अच्छाइयाँ बुराइयाँ दिखाई पड़ती हैं उन्हीं  से प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेती हैं!इसलिए इनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए इससे संबंधित विज्ञान की खोज की जानी चाहिए !
     जिम्मेदारियों से भागते मौसम विज्ञान का सच ! 
                    
      मौसम  और विज्ञान दोनों को एक साथ लाया जाए -
        मौसम संबंधी वातावरण का भी अपना एक स्वभाव होता है उसके भी कुछ नियम सिद्धांत आदि होते हैं !जिनके आधार पर संपूर्ण प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं मौसमसंबंधी वातावरण भी तो उसी प्रकृति का ही अंग है इसलिए वह भी उन्हीं प्राकृतिक नियमों सिद्धांतों के अनुशार ही चलता है !अतएव  मौसम को समझने के लिए आवश्यक है कि प्रकृति के उन सिद्धांतों की खोज की जाए जिनके अनुसार वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित घटनाएँ घटित होती रहती हैं !इसके आधार पर दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान भी निकाले जा सकते हैं !जो कृषि आदि से संबंधित कार्यों में  एवं फसल योजना बनाने की दृष्टि से बहुत सहायक होते हैं ! इससे प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित होने वाले संभावित वर्ग के बचाव कार्यों में बहुत मदद मिल जाती है !
        मौसम संबंधी अनुसंधान की दृष्टि से वर्तमान समय में मौसम विज्ञान के नाम पर जो विषय परोसा जा रहा है उसको पढ़कर उसके विद्वान बनने के बाद भी उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसके माध्यम से प्राकृतिक वातावरण को सही सही समझा जा सके और उसके आधार पर मौसम संबंधी चक्र की सुव्यवस्थित व्याख्या की जा सके !यही कारण है कि उन तथाकथित मौसम वैज्ञानिक विषयों के जो लोग विद्वान कहे जाते हैं वे भी अभी तक खाली हाथ हैं उनके पास भी कुछ ऐसा नहीं है जिससे वे मौसम को वास्तविक स्वरूप में परिभाषित कर सकें !इसलिए ऐसे बिषयों को पढ़ने पढ़ाने वाले लोगों की परिस्थिति को कैसे समझा जाए !मुख्य रूप से किसी विषय में निरर्थक आधारहीन गुणागणित लगाते  रहने वाले किसी व्यक्ति को उस विषय का विज्ञानविद कैसे माना जा सकता है ! 
      मौसम संबंधी घटनाओं का समयचक्र आम लोगों की तो छोड़िए मौसम वालों को ही  अभी तक समझ में नहीं आ सका है !इसीलिए तो किसी वर्षा को प्रिमानसून बताते हैं तो किसी को देर से आया मानसून बताते हैं !विज्ञान के नाम पर ये सब कैसा आडंबर है !वर्षा विज्ञान के अनुसार वर्षा शुरू होने का प्रतिवर्ष अलग अलग समय होता है कुछ दिन  आगे  पीछे होता जाता है इसीलिए वर्षा हमेंशा अपने समय से होती है किंतु जो लोग वर्षा विज्ञान  की समझ नहीं रखते हैं उन्हें लगता है कि मानसून अबकी बार जल्दी आ गया या अबकी बार देर से आया !उसकी तारीखें निश्चित किए पड़े हैं ऐसा लगता है कि जैसे मानसून तारीख देखकर आता है तभी तो कहते हैं कि पिछले वर्ष मानसून इतनी तारीख़ को आया था अबकी बार इतनी तारीख़ को आ रहा है हर घटना की टाइमिंग पर उसके क्रम पर उसके वेग पर सवाल उठाते रहना ही ऐसे लोगों की वैज्ञानिकता है !ऐसे लोग प्राकृतिक वातावरण के विषय में केवल अफवाहें फैलाते रहने में ही लगे रहते हैं मौसम वैज्ञानिक अनुसंधान कर पाना इनके वश का है ही नहीं !
      यही कारण है कि मौसम संबंधी सभी घटनाएँ ऐसे लोगों को प्रायः नई लगती हैं हर घटना को वे आश्चर्य की दृष्टि से देखते हैं अबकी बार इतनी तारीख़ को आया !पिछली बार इस महीने में आया था !इस वर्ष वहाँ उतने सेंटीमीटर  वर्षा हुई जबकि पिछली बार तो इतने सेंटीमीटर हुई थी !पिछली बार सितंबर की इतनी तारीख़ तक वर्षा हुई थी अबकी इतनी तारीख़ तक ही हुई !पिछली बार जिन जिन जगहों पर बारिश हुई थी अबकी बार उन सभी जगहों पर बारिश नहीं हुई इसलिए वर्षा का वितरण ठीक नहीं रहा !अबकी बार कुछ जगहों पर कम या अधिक बारिश हो गई आदि आदि !इसी प्रकार से सर्दी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा गर्मी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है ऐसी बातें बोलने वाले लोग भी अपने को वैज्ञानकों की  श्रेणी में सम्मिलित मानते हैं यही तो बिडंबना है !ऐसी बातें बोलने का उद्देश्य क्या है और इनसे लाभ क्या है !इसमें विज्ञान कहाँ है और वैज्ञानिक अनुसंधान क्या हैं क्या यही सब सुनने के लिए ऐसे अनुसंधानों पर जनता के खून पसीने की कमाई  खर्च की जाती है !
      चूँकि बारिश के कम या अधिक होने का अंदाजा हम नहीं लगा सके इसमें कमी हमारी है हम उस विज्ञान को खोज ही नहीं सके इसलिए ऐसा हुआ किंतु अपनी कमी को न स्वीकार करते हुए ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन या ग्लोबलवार्मिंग को बता दिया जाता है !ये कौन सा सिद्धांत या कैसा विज्ञान है !इसीप्रकार से चूँकि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष तूफान चक्रवात आदि अधिक संख्या में आए इसका मतलब है कि ग्लोबलवार्मिंग का असर बढ़ रहा है !धीरे धीरे तूफ़ान आने की संख्या बढ़ रही है अतिवर्षा और बाढ़ जैसी घटनाओं की संख्या बढ़ रही है इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को मानलिया जाता है !कुलमिलाकर इस प्रकार की निरर्थक और प्रयोजन विहीन बातों में वो समय और धन बर्बाद किया जा रहा है जो मौसम संबंधी विज्ञान को खोजने के लिए सरकारें अनुसंधान हेतु देती हैं !
     ऐसी भ्रम की स्थिति केवल इसलिए बनी हुई है क्योंकि मौसम से  संबंधित विज्ञान को अभी तक खोजा ही नहीं जा सका है इसलिए प्राकृतिक चक्र का क्रम किसी को समझ  में आ नहीं रहा है इसीलिए मौसम के विषय में अनेकों निरर्थक बातें करके केवल समय पास किया जा रहा है ! मौसम संबंधी घटनाओं को ट्रेन की टाईमिंग की तरह से सेट करने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं !पिछले वर्ष ऐसा इतनी तारीख को हुआ था इस वर्ष ऐसा क्यों नहीं हो रहा है !
      ग्रहण भी प्राकृतिक घटना है किसी वर्ष किसी अमावस्या या पूर्णिमा को पड़ता है तो किसी वर्ष नहीं पड़ता है !कभी सूर्यग्रहण पड़ता है कभी चंद्रग्रहण इनका भी कोई ऐसा निश्चित नियम तो नहीं होता  है कि इस वर्ष के इस महीने में इतनी तारीख को इतनी देर तक प्रतिवर्ष ग्रहण पड़ेगा ही !यह सब कुछ अनिश्चित होने के बाद भी जिस पद्धति या प्रक्रिया से  ग्रहण पड़ने न पड़ने का न केवल पूर्वानुमान लगा लिया जाता है अपितु यह भी पता लगा लिया जाता है कि यह ग्रहण पड़ना कब शुरू होगा कितनी देर पड़ेगा और कब समाप्त होगा !इसके साथ ही वह कहाँ दिखाई देगा और कहाँ नहीं दिखाई देगा इसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है !तभी तो वह पद्धति या प्रक्रिया उसका विज्ञान है !
      यहाँ वशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक ग्रहण एक दूसरे से बिल्कुल अलग होता है उसका कुछ भी एक दूसरे के साथ मिलाकर नहीं चला जा सकता कि पिछली बार जैसा हुआ था अबकी बार वैसा क्यों नहीं हो रहा है ! ग्रहण में तो हर कुछ हर बार नया होता है इसके बाद भी उस नयेपन का भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता है और वह भी सटीक बैठता है ! इसमें तो ग्रहण पड़ने से पहले ही नाप कर बता दिया जाता है कि इस बार यह ग्रहण कितना पड़ेगा !जबकि वर्षा हो चुकने  के बाद बताया जाता है कि  आज इतने सेंटीमीटर तक बारिश हुई !इसी वर्षा को यदि ग्रहण पद्धति से निकाला जाता है तो वर्षा होने से पूर्व ही अनुसंधान के द्वारा यह भी पता लगाया जा सकता है कि कब कितनी मात्रा में पानी बरस  सकता है !
        इसीलिए लोगों को ग्रहण की प्रक्रिया बार बार बदलते रहने पर भी उसके पूर्वानुमान पर इतना बड़ा विश्वास होता है इसीलिए तो लोग ग्रहण से संबंधित अपने कार्यक्रम महीनों पहले बना लेते हैं कहीं जाना आना होता है तो टिकटें बुक करवा लेते हैं !ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी पर उन्हें कभी कोई आश्चर्य भी नहीं होता है और न ही भ्रम !क्योंकि ग्रहण विज्ञान के विषय में लोग सुपरिचित हैं कि यदि बोल दिया गया है तो उसी समय ग्रहण पड़ेगा ही !जब लोग ग्रहण विज्ञान से परिचित नहीं रहे होंगे उस समय इस विषय में भी भ्रम का वातावरण रहा होगा जैसा वर्तमान समय में मौसम के विषय में दिखाई सुनाई  पड़  रहा है !

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