इनका क्षेत्र अत्यंत विस्तारी भारतवर्ष में पूर्वानुमान लगाकर चलने की अनंत काल से परंपरा रही है
[ मौसम और विज्ञान या मौसमविज्ञान ?
पूर्वानुमान
पूर्वानुमान में प्रत्यक्ष ज्ञान के द्वारा अप्रत्यक्ष का ज्ञान करना होता है !केवल आँखों से देखी हुई वस्तु आदि ही प्रत्यक्ष होता है ऐसा नहीं माना जाना चाहिए अपितु प्रत्यक्ष का ज्ञान पाँच ज्ञानेंद्रियाँ के द्वारा होता है ! मानव शरीर में त्वचा, आँख, कान, नाक और जिह्वा आदि पाँच प्रकार की ज्ञानेंद्रियाँ होती
हैं !स्पर्श का अनुभव त्वचा के द्वारा होता है, दृश्य का अनुभव आँखें
करवाती हैं,शब्द का ज्ञान कानों से होता है,गंध का अनुभव नासिका और स्वाद
का अनुभव जिह्वा के द्वारा प्राप्त किया जाता है !
किसी विषय का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करने के लिए केवल आँखों को ही
नहीं अपितु इन पाँचों इंद्रियों को सक्रिय रखना होता है और इन सबके द्वारा
प्राप्त अनुभवों का तर्कपूर्ण आकलन करके अज्ञात स्थितियों के विषय में पूर्वानुमान
किया जाताहै !पूर्वानुमान के साथ अनिश्चितता प्रायः बनी ही रहती है
क्योंकि इसके गलत होने की संभावना हमेंशा रहती है !इसलिए पूर्वानुमान को
अधिक से अधिक सटीक बनाने के लिए उससे संबंधित सभी विधाओं का उपयोग किया
जाना चाहिए !क्योंकि किसी पूर्वानुमान के गलत होने पर केवल वो पूर्वानुमान
ही गलत नहीं होता है अपितु उस पूर्वानुमान पर विश्वास करके उसके आधार पर बनाई गई संपूर्ण योजनाओं का भविष्य संदिग्ध हो जाता है !
गणित और विज्ञान
गणित मानव मस्तिष्क की उपज है। मानव की गतिविधियों एवं प्रकृति के
निरीक्षण द्वारा ही गणित का उद्भव हुआ है ।गणित वास्तविक जगत को नियमित करने वाली मूर्त
धारणाओं के पीछे काम करने वाले नियमों का अध्ययन करता है।गणित
वास्तविक जीवन के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा ही नहीं है, बल्कि
उसी से इसकी उत्पत्ति भी हुई है।जीवन तथा ज्ञान के हर क्षेत्र में गणित
की उपयोगिता है। यह केवल संयोग नहीं है
कि आर्किमिडीज, न्यूटन, गौस और लैगरांज जैसे महान वैज्ञानिकों ने विज्ञान के साथ-साथ गणित में भी अपना महान योगदान दिया है।
मानव ज्ञान की कुछ प्राथमिक विधाओं में गणित भी आता है और यह मानव
सभ्यता जितना ही पुराना है।मानव ज्ञान-विज्ञान की एक व्यापक
एवं समृद्ध शाखा के रूप में गणित का विकास भी हुआ है।वैज्ञानिक, गणितज्ञ,
प्रौद्योगिकीविद्, अर्थशास्त्री एवं
कई अन्य विशेषज्ञ रोजमर्रा के जीवन में गणित की समुन्नत प्रणालियों का
किसी न किसी रूप में एक विशाल, अकल्पनीय पैमाने पर इस्तेमाल करते हैं।
कुलमिलाकर गणित दैनिक जीवन के साथ सर्वव्यापी रूप में समाया हुआ दिखता है।
बताया जाता है कि आज के लगभग 4000 वर्ष पहले बेबीलोन तथा मिस्र सभ्यताएँ
गणित का इस्तेमाल पंचांग (कैलेंडर) बनाने के लिए किया करती थीं जिससे
उन्हें पूर्व जानकारी रहती थी कि कब फसल की बुआई की जानी चाहिए या कब नील
नदी में बाढ़ आएगी आदि ! मिलेटस
निवासी थेल्स
(645-546 ईसा पूर्व) को सैद्धांतिक गणितज्ञ माना जाता है।बताया जाता है कि
गणित के आधार पर ही उसने एक सूर्य ग्रहण के होने के बारे में भी
भविष्यवाणी की थी।
महान गणितज्ञ गाउस ने कहा था कि गणित सभी विज्ञानों की रानी है। गणित,
विज्ञान और प्रौद्योगिकी का एक महत्वपूर्ण उपकरण (टूल) है। भौतिकी, रसायन
विज्ञान, खगोल विज्ञान
आदि गणित के बिना नहीं समझे जा सकते। ऐतिहासिक रूप से देखा जाय तो वास्तव
में गणित की अनेक शाखाओं का विकास ही इसलिए किया गया कि प्राकृतिक विज्ञान
में इसकी आवश्यकता आ पड़ी थी।इसीलिए कहा भी गया है कि -
बहुभिर्प्रलापैः किम्, त्रयलोके सचरारे।यद् किंचिद् वस्तु तत्सर्वम्, गणितेन् बिना न हि ॥
अर्थात बहुत प्रलाप करने से क्या लाभ है ? इस चराचर जगत में जो कोई भी वस्तु
है उसको गणित के बिना नहीं समझा जा सकता है !
विश्व
के प्राचीनतम ग्रंथ वेद संहिताओं से गणित तथा ज्योतिष को अलग-अलग
शास्त्रों के रूप में मान्यता प्राप्त हो चुकी थी।जिनका इतिहास लाखों वर्ष पुराना है ! यजुर्वेद में
खगोलशास्त्र (ज्योतिष) के विद्वान् के लिये ‘नक्षत्रदर्श’ का प्रयोग किया
है सृष्टि के आदिकाल से ही हैं और यजुर्वेद में गणित का वर्णन मिलता
है।नवग्रह विज्ञान के जो रहस्य अब खोलने का दावा किया जा रहा है वेद विज्ञान
ने उसे सृष्टि के आरंभ होते समय ही परिभाषित कर दिया था !
मौसम पूर्वानुमान में गणित का योगदान -
सिद्धांतगणित के द्वारा ग्रहों और नक्षत्रों की गति युति आदि को
जानने का प्रयास किया जाता है इसके द्वारा भविष्य के ग्रहों नक्षत्रों के
संचार का आगे से आगे अनुमान लगाया जा सकता है !हजारों वर्ष पहले के ग्रह
नक्षत्र आदि परिस्थितियों को समझना हो तो गणित के द्वारा समझा जा सकता है !
ग्रहों नक्षत्रों की गति युति आदि का प्रभाव प्रकृति से लेकर जीवन तक
सभी पर पड़ता है आकाश में अनेकों प्रकार की अनजान आकृतियाँ दिखाई पड़ने लगती
हैं चंद्रमा का रंग स्वरूप यहाँ तक कि उसका चिन्ह भी दृश्य अदृश्य होने लगता है
बार बार बिजली कड़कती है भूकंप आते हैं आकाश से पाताल तक सभी जगहों पर बदलाव
दिखाई पड़ने लगते हैं !ग्रह जनित ऐसी परिस्थितियों में पहाड़ अपना रंग बदलने
लग जाते हैं !समुद्रों नदियों नहरों तालाबों कुओं आदि
के जलों के स्वाद आदि में अंतर आने लगता है !वृक्षों बनौषधियों में
आश्चर्य जनक अभूत पूर्व परिवर्तन होने लगते हैं !सच्चाई ये है कि समय के बदलाव के साथ ही साथ इन सबों में बदलाव आता ही है !
जब जैसे बदलाव समय में आते हैं उसी प्रकार की ग्रह गति युति आदि गृह संचार
होने लगता है !उसी गति से प्रकृति में परिवर्तन होने लगते हैं समय का आदेश ग्रहों से लेकर प्रकृति तक
सब पर सामान रूप से चलता है !समय के प्रभाव से जहाँ एक ओर राशियों ग्रहों
नक्षत्रों आदि की गति युति जैसी स्थितियों में
विकार आने से ऋतुविप्लव होने लगता है वहीँ दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं एवं
शारीरिक रोगों की भी संभावनाएँ बनने लगती हैं !सर्दी की ऋतु में बहुत अधिक
सर्दी का
होना या सर्दी का बिल्कुल न होना इसी प्रकार से गर्मियों में बहुत अधिक
गर्मी होना या गरमी बिल्कुल न होना ऐसे ही वर्षात में बहुत अधिक वर्षा का
होना या फिर वर्षा का बिल्कुल न होना अर्थात सूखा पड़ जाना आदि ऋतु विप्लव
तभी होता है जब ग्रहों
नक्षत्रों आदि की गति युति जैसी स्थितियों में उस प्रकार का वातावरण बनने
लगता है तभी प्रकृति में विकार आने लगते हैं !प्रकृति में विकार होते ही
भूकंप आना तथा आँधी तूफान चक्रवात अधिकवर्षा बाढ़ सूखा ओले गिरना बादल फटना की घटनाएँ घटित होने लगती हैं वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है !
ऐसे सभी प्रकार के समयजनित प्राकृतिक विकारों के दुष्प्रभाव से वायु जल खाद्य
पदार्थ आदि सभी दूषित होने लगते हैं !जिसके कारण इस संसार में तरह तरह की
बीमारियाँ महामारियाँ आदि बढ़ते देखी जाती हैं इसके अतिरिक्त और भी अनेकों
प्रकार के रोग दोष दुःख आदि घटित होते देखे जाते हैं !ऐसे समय में जिस
प्रकार के रोग होते हैं उनमें लाभ करने वाली जो बनौषधियाँ होती हैं
उनमें भी विकार आने लगते हैं वो निर्वीर्य अर्थात गुणहीन होने लगती हैं
!वृक्षों में बिना ऋतु के फूल फल लगने लगते हैं !पुष्पों की सुगंध में
परिवर्तन होने लगता है ! खाद्यपदार्थों के स्वाद बदलने लगते हैं !नीम की
पत्तियाँ एवं मिर्च जैसी चीजें अपना कडुआपन छोड़ने लगती हैं ईख अपनी
मधुरता का त्याग करने लगता है !
ऐसे समय जनित प्राकृतिक विकारों का असर केवल स्वास्थ्य पर ही नहीं पड़ता है
अपितु इससे चिंतन दूषित होता है लोगों की सहनशीलता घटने लगती है धैर्य
टूटने लगता है !उन्माद की भावना पैदा होने लगती है पतिपत्नी भाई भाई पिता
पुत्र आदि पारिवारिक संबंधों में तनाव बढ़ने लगता है !समाज में आंदोलन आतंक
एवं संघर्ष की भावना पनपने लगती है लोग एक दूसरे को मरने मार डालने पर उतारू
हो जाते हैं !राष्ट्रों में युद्ध छिड़ जाता है यहाँ तक कि विश्व युद्ध की
भूमिका भी समय जनित प्राकृतिक विकारों के कारण ही घटित होती है !
इस प्रकार से समय जनित प्राकृतिक विकारों का प्रभाव पशु
पक्षी आदि सभी प्रकार के जीव जंतुओं पर पड़ता है ये अपने स्वभाव से अलग
हटकर या स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने लगते हैं ! जैसा कि भूकंप आदि आने से
पहले कुछ लोगों के द्वारा अनुभव भी किया जाता है जिसे भूकंप से जोड़कर देखा
जाने लगा है कुछ वैज्ञानिक इसके आधार पर भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का
अध्ययन करते देखे सुने जाते हैं जबकि ऐसे स्वभाव परिवर्तनों का
प्रमुखकारण समयजनित प्राकृतिक विकार ही होते हैं !ऐसे समय में घरों में बनों उपबनों जंगलों आदि में अजीब अजीब से शब्द सुनाई पड़ने लगते हैं !
इसलिए ऐसे प्रकरणों में सभी प्रकार के पूर्वानुमान जानने के लिए सबसे
पहले समय की चाल को समझना होता है !इसके लिए ग्रहों नक्षत्रों का संचार गति युति आदि परिस्थितियों का परीक्षण करना चाहिए !क्योंकि समय का ज्ञान केवल ग्रह नक्षत्रों के संचार से ही किया जा सकता है !इसलिए गणित के द्वारा ग्रहों नक्षत्रों राशियों आदि की गति युति आदि का
पूर्वानुमान लगाया जाता है ! चाहिए कि भविष्य में ग्रहों नक्षत्रों राशियों आदि की दृष्टि से कब कैसी परिस्थितियाँ पैदा होंगी !उसका प्रभाव समस्त चराचर जगत पर
कब कैसा पड़ेगा !उस संभावित असर के कारण आकाश से पाताल तक एवं वृक्षों
बनस्पतियों आदि सभी चराचर जगत पर प्रकट होने वाले चिन्हों का अनुसंधान
किया जाना चाहिए !इसके अतिरिक्त मनुष्यों समेत समस्त पशु पक्षियों जीव
जंतुओं आदि में आने वाले परिवर्तनों का ग्रहों नक्षत्रों राशियों आदि के संचार आदि के
साथ मिलान किया जाना चाहिए जिससे गणितागत परिवर्तनों के विषय में दृढ़
विश्वास होता चलता है !ऐसे संयुक्त अनुसंधान के आधार पर न केवल मौसम अपितु
संभावित सभी प्रकार की परिस्थितियों का
पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !ऋतुविज्ञान को भली भाँति समझा जा सकता है
!भविष्य में कब कब आँधी तूफ़ान आदि के घटित होने की संभावना अधिक होगी कब
वर्षा बाढ़ सूखा आदि की संभावना अधिक होगी !कब कब वायु प्रदूषण अधिक बढ़ सकता
है तथा कब कब भूकंप आदि हिंसक प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ सकता है
!कब कब मनुष्यों आदि समस्त जीव जंतुओं के स्वभाव में किस किस प्रकार के
परिवर्तन हो सकते हैं !समाज को कब किस प्रकार की प्राकृतिक सामाजिक
शारीरिक मानसिक आदि परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है !ऐसी सभी बातों
का ग्रहगणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
इसके द्वारा जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनों लानीना
पश्चिमीविक्षोभ से संबंधित कब किस प्रकार के बदलाव किस दिशा में होंगे आदि
परिस्थितियों का ग्रहगणित के द्वारा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है!
आधुनिक मौसम विज्ञान -
कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है।
मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के
केन्द्रबिन्दु होते हैं।
मौसम
विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का
प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या
आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन समय और दूरी के सापेक्ष बहुत
हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं।
ऋतुवैज्ञानिक तत्व (एलिमेंट्स)
ऋतु संबंधी प्रेक्षणों में, जिनसे वायुमंडल की दशा का ज्ञान मिलता है, निम्नलिखित बातें देखी जाती हैं :
ताप-
वायु
का ताप तापमापी (थरमामीटर) द्वारा नापा जाता है। इस थरमामीटर को सौर
विकिरणों से अप्रभावित रखा जाता है। वायु की आर्द्रता ज्ञात करने के लिए
गीले तापमापी (वेट बल्ब थरमामीटर) का उपयोग किया जाता है।
वायुदाब-
यह वायुदाबमापी (बैरोमीटर) द्वारा मापा जाता है और इससे पृथ्वी पर वायु का भार (प्रति इकाई क्षेत्रफल) विदित होता है।
पवन-
पवन
की दिशा तथा वेग का प्रेक्षण किया जाता है। दिशा वह ली जाती है जिस ओर से
पवन आता है पवन-वेगमापी (ऐनिमोमीटर) द्वारा मापा जाता है और मील प्रति घंटा या
किलोमीटर प्रति घंटा या मीटर प्रति सेकंड में व्यक्त किया जाता है।
आर्द्रता
आर्द्रता
से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा का ज्ञान होता है और, जैसा पहले कहा जा
चुका है, यह सूखे तथा गीले थरमामीटरों द्वारा नापी जाती है।
संघनन के रूप -
इसमें
वायुमंडलीय संघनन के सब प्रकार के द्रव एवं ठोस उत्पादन संमिलित हैं।
बादलों की मात्रा तथा उनके प्रकार, कुहरा तथा वर्षा, हिम (बर्फ), ओला आदि,
का प्रेक्षण किया जाता है।
दृश्यता (विज़िबिलिटी)
उस क्षैतिज दूरी को कहते हैं जहाँ तक की बड़ी और स्पष्ट वस्तुएँ दिखाई दे सकती हों।
छादन (सीलिंग)
ऊर्ध्वाधर दृश्यता (वर्टिकल विज़िबिलिटी) से संबंध रखती है और मेघतल की ऊँचाई से मापी जाती है।
इसके अलावा भी जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग अलनीनों और लानीना
जैसी अनेकों कहानियाँ गढ़ लेने के बाद भी उससे लाभ क्या हुआ !मौसम
भविष्यवक्ताओं के द्वारा कहा जाता है ऐसी सभी घटनाओं का असर मौसम पर पड़ता
है इसलिए इनका भी अध्ययन साथ साथ किया जाता है !हो सकता है कि ऐसी
काल्पनिक कहानियों का मौसम पर कुछ असर पड़ता भी हो तो उसमें आपत्ति किस बात
की है मौसमसंबंधी अनुसंधान करते समय ऐसी सभी कथा कहानियों को सम्मिलित किया
जाना चाहिए और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की घोषणा करने से पूर्व इनसे
प्राप्त अनुभव भी इसी में सम्मिलित किए जाने चाहिए !किंतु यह सब होना तभी
तक चाहिए जब तक कि भविष्यवाणी न की गई हो !एकबार भविष्यवाणी कर देने के बाद
लीपा पोती करने के लिए उछाल कूद नहीं करनी चाहिए यदि बहुत आवश्यक न हो !
यह
कतई नहीं स्वीकार्य है कि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की गई भविष्यवाणी
गलत होने के बाद
जलवायुपरिवर्तन
ग्लोबलवार्मिंग अलनीनों और लानीना जैसी कहानियों का ढाल की तरह उपयोग
किया जाए !इससे समाज का विश्वास टूटने लगता है !
इसमें विशेष बात यह है कि इतने सारे प्रकारों से परीक्षण करने के बाद
भी मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाया जाता है वह सही ही होगा इसकी कोई
विश्वसनीयता नहीं होती है मौसमविज्ञान के द्वारा लगाया जाने वाला
दीर्घावधि पूर्वानुमान तो अक्सर गलत निकलता है ही उसके अलावा भी जो
पूर्वानुमान लगाए जाते हैं !उनमें से भी सही होने का अनुपात बहुत कम ही
होता है !दूसरी बात वो अनुमान अत्यंत कम दिनों पहले के होते हैं
इसलिए कृषि कार्यों आदि में इनका उपयोग उस प्रकार से नहीं हो पाता है जितनी
कि आवश्यकता है !
मौसम विज्ञान के विषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने की पद्धति भले न विकसित की जा सकी हो
जिससे इस बात का पता लगाना आज भी कठिन हो रहा है कि वर्षा होने का समय कब
होगा या कौन सा आँधी तूफ़ान अथवा चक्रवात कब आएगा किंतु रडारों और उपग्रहों
से प्राप्त चित्रों से मौसम संबंधी वे घटनाएँ जो बन चुकी हैं जैसे आँधी
तूफ़ान बादलों आदि को देखकर उनकी निगरानी करना आसान होता है कि वे कब किस
दिशा में जा रहे हैं उनकी गति क्या है वे कितने समय में किस देश प्रदेश या
शहर में पहुँच सकते हैं ! उसके आधार पर उन उन जगहों के लोगों को सावधान कर
दिया जाता है !उससे कृषि कार्यों में लाभ भले ही न मिल पाता हो और
प्राकृतिक आपदाओं से बहुत अधिक बचाव भले ही न हो पाता हो तथा कुछ बचाव तो
हो ही जाता है !इसलिए आधुनिक विज्ञान के द्वारा जितना जो कुछ हो पा रहा
है वो ठीक है इसके अतिरिक्त दीर्घावधि पूर्वानुमानों का लाभ कैसे होगा उसे
भी याद रखा जाना चाहिए !
सूर्यचंद्र ग्रहण का विज्ञान यदि उस युग में खोजा न गया होता तो आज उसके भी मौसम विज्ञान जैसे ही हालात होते -
ग्रहणविज्ञान पूर्वानुमान का सबसे सटीक उदाहरण है!इससे
संबंधित पूर्वानुमान किसी ग्रहण के घटित होने से हजारों वर्ष पहले गणित
के द्वारा लगा लिया जाता है !पूर्वजों ने यदि ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने
का विज्ञान उसी युग में न खोज लिया होता तब तो इस युग में ग्रहण संबंधी
अनुसंधान की भी मौसमविज्ञान और भूकंप विज्ञान की तरह ही बड़ी छीछालेदर हो
जाती !
ग्रहणसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकार को एक अलग से ग्रहणमंत्रालय बनाना पड़ता उसके बाद किसी को ग्रहणमंत्री भी बनाया जाता !इसके भी सचिव निदेशक आदि नियुक्त किए जाते !अलनीनों
लानीना की थ्योरी अंतरिक्ष में भी फिट की जाती वहाँ का भी तापमान नापने की
व्यवस्था की जाती और उस वर्ष ग्रहण पड़ने की संभावना पर उसका भी असर बताया
जाता !इसके लिए भी सुपरकंप्यूटर
रडार और उपग्रह आदि का ताना बाना बुना जाता उनसे आकाशीय
चित्र देखे जाते जिनके आधार पर ग्रहण संबंधी बुलेटिन जारी किए जाते कि
अमुक तारीख़ को ग्रहण पड़ने की ग्रहण वैज्ञानिकों को शंका हो रही है !इसलिए ग्रहण पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है और ग्रहण न पड़ने की
संभावना इतने प्रतिशत है ग्रहण थोड़ा पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है और
अधिक पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है !बाद में जितने प्रतिशत पड़ जाता उसी
को अपनी भविष्यवाणी बता दिया जाता !
इसी प्रकार से मानसून के समय की तरह ही ग्रहणों का भी कोई तारीख समय
आदि निश्चित कर दिया जाता जो ग्रहण उस समय के पहले पड़ जाते उन्हें प्रिमानसून
ग्रहण बताया
जाता और जो उन लोगों के द्वारा निश्चित किए गए समय के बाद पड़ते उन्हें
उतनी देर से
पहुँचा बता दिया जाता !सूर्य और चंद्र मंडलों में जिस ओर से बार बार ग्रहण
पड़ता वहाँ टैक्टॉनिक प्लेटों की कल्पना कर जाती और ग्रहण पड़ने का कारण टैक्टॉनिक प्लेटों का आपस में टकराना या सूर्य चंद्र मंडलों में भरी गैसों का दबाव घट बढ़ जाना बता दिया जाता !पृथ्वी की तरह ही सूर्य
चंद्र मंडलों को भी खतरों की संभावना के हिसाब से पाँच सात जोनों में बाँट
दिया जाता !कहने का मतलब बाकी सारे नाटक नौटंकी होते रहते किंतु ग्रहणों
का पूर्वानुमान लगपना उनके लिए हमेंशा असंभव ही बना रहता ! इसी प्रकार की निरर्थक गुणा गणित में बहुत सारा समय
एवं सरकार का धन बर्बाद कर दिया जाता जिसका ग्रहण विज्ञान से कोई लेना देना
ही नहीं होता !
जिस अमावस्या या पूर्णिमा में सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि तीनों एक सीध में
आते दिखाई पड़ते और लगता कि अब दो तीन दिन में ग्रहण पड़ने वाला है तो ग्रहण
संबंधी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी जाती कि अबकी अमावस्या या पूर्णिमा को
ग्रहण पड़ने की ग्रहणविभाग के वैज्ञानिकों को आशंका है या संभावना है !इसका
मतलब ये होता कि ग्रहण पड़ भी सकता है और नहीं भी पड़ सकता है !जिस
अमावस्या या पूर्णिमा में ग्रहण पड़ने की भविष्यवाणी ग्रहण वैज्ञानिक करते
किंतु उस बार ग्रहण न पड़ पाता जिससे उनकी भविष्यवाणी गलत हो जाती तो वो भी
अपनी भविष्यवाणी को गलत नहीं मानते और न ही अपनी गलती मानते अपितु ग्रहण
संबंधी भविष्यवाणी गलत होने का कारण
बताने के लिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई कहानियाँ गढ़ दी जातीं और सारी जिम्मेदारी उसी के मत्थे मढ़ दिया करते !
जिस अमावस्या या पूर्णिमा में ग्रहण पड़ता तो उसके पड़ने के बाद बताया
जाता कि अबकी बार इतना ग्रहण पड़ा है साथ ही यह भी बताया जाता कि इस ग्रहण
ने कितने वर्ष के ग्रहणों का रिकार्ड तोड़ा है !जो ग्रहण कुछ जगहों पर दिखता
और कुछ जगहों पर नहीं दिखाई देता उसके लिए ग्रहण वैज्ञानिकों के द्वारा
बताया जाता कि ग्रहण का वितरण ठीक नहीं हुआ !जिस वर्ष में अधिक ग्रहण पड़ जाते
तो उसके लिए बढ़ते प्रदूषण और कार्वन उत्सर्जन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता
उसी के साथ ही लगे हाथ यह भी भविष्यवाणी कर दी जाती कि बढ़ते प्रदूषण को
यदि रोका न गया तो भविष्य में सौ दो सौ वर्ष बाद प्रतिदिन ग्रहण पड़ने
लगेंगे !उसके कुछ सौ वर्ष बाद इस पृथ्वी पर स्थाई रूप से ग्रहण पड़ जाएगा
जिससे सूर्य चंद्र निस्तेज हो जाएँगे अंधकार उनको ढक लेगा और सारा
ब्रह्मांड भयंकर
अंधकार में विलीन हो जाएगा !इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं को रोके
जाने की आवश्यकता है !इस प्रकार से ग्रहण वैज्ञानिकों का सारे विश्व में
एकाधिकार होता ! ग्रहण वैज्ञानिकों की ऐसी धमकियाँ सुन सुन कर हैरान परेशान
वैश्विक सरकारें ऐसे लोगों के सामने नतमस्तक होकर इनकी आज्ञा का पालन करती
दिखतीं !ये जैसा जैसा कहते जाते सरकारें वैसा वैसा करती जातीं !ग्रहण रोकने के लिए
बड़े बड़े सभा सम्मेलन आयोजित किए जाते भारी भरकम फंड पास किया जाता वो उन लोगों के
कथनानुसार खर्च किया जाता !
ऐसे ग्रहण वैज्ञानिक ग्रहणसंबंधी सटीक भविष्यवाणियाँ करने के लिए कभी
चंद्रमा पर टावर लगाने की बातें की जातीं और कभी सूरज पर !इस प्रकार से
सरकारों के सामने ऐसी ऐसी शर्तें रखते जिन्हें सरकारें न कभी पूरी कर पातीं
और न ही ग्रहण संबंधी सटीक भविष्यवाणियाँ कर पाने की ग्रहण वैज्ञानिकों की कभी कोई जिम्मेदारी होती !
इसके बाद भी ग्रहणसंबंधी पूर्वानुमानों हेतु रिसर्च करने वाले ग्रहण
वैज्ञानिकों की सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाओं पर भारी भरकम जो धन खर्च
किया जा रहा होता एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों के लिए
संसाधनों पर जो धन खर्च किया जा रहा होता वो उस टैक्स का अंश होता जो
देश वासियों के खून पसीने की कठोर कमाई से देश के विकास के लिए लिया जाता
है !इसके बदले में जनता को जो कुछ मिलने का आश्वासन दिया जाता वो सब कुछ
हवा में ही होता !क्योंकि ऐसे अनुसंधानों के लिए कोई समय सीमा होती नहीं है
कि इतने समय तक करना ही है ये तो अंत हीन यात्रा ऐसे ही निरर्थक बातें बना बना कर सैकड़ों वर्षों तक चलाई जा सकती थी !
इसी पद्धति को ग्रहण विज्ञान कहा जाता इसी को ग्रहण विज्ञान के रूप में
स्कूलों कालेजों में पढ़ाया जा रहा होता जिसे पढ़कर छात्र परीक्षाएँ देते पास
होते वैज्ञानिक बनते सैलरी पाते रिटायर हो जाते फिर नई नियुक्तियाँ होतीं
!ये ऐसा ही गर्मी वर्षा सर्दी बसंत जैसा क्रम चला करता ! इसप्रकार से ग्रहण
विज्ञान भी मौसमविज्ञान और भूकंपविज्ञान की तरह ही जंजाल में हमेंशा फँसा रहता !
ये तो भारत के निवासियों का भाग्य ही है कि उनके पूर्वजों ने इतने
विशाल ग्रहणविज्ञान को न केवल खोज निकाला अपितु उसका गणित भी खोज निकाला
उसके रहस्यों को समझने के लिए सूत्र बना डाले जिसके आधार पर गणित के द्वारा
इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन ग्रहण कब पड़ेगा !
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पूर्वानुमान की कसौटी पर खरा उतरा है ग्रहण विज्ञान -
किसी भी विषय से संबंधित विज्ञान उस विषय के स्वभाव को समझने में कितनी
बड़ी भूमिका निभा सकता है इसके लिए हमें अपने सामने ग्रहण विज्ञान को रखकर
सोचना चाहिए !वर्तमान चिंतन के अनुशार यदि सोचा जाए तो जिस युग में
यांत्रिक विज्ञान इतना विकसित नहीं था दूरभाष के साधन नहीं थे !दूरबीन आदि
व्यवस्थाएँ नहीं थीं ,अंतरिक्ष में आवागन आसान नहीं था ऐसी सभी बाधाओं के
होते हुए भी उस युग के महान वैज्ञानिकों ने आकाशीय अनुसंधान के विषय में जो
उपलब्धियाँ प्राप्त की थीं वो अतुलनीय हैं !उन्होंने ने यहीं बैठे बैठे सुदूर
आकाश में स्थित सूर्य ,चन्द्र और पृथ्वी के मंडलों को नाप लिया उनकी गति
युति आदि का सटीक पूर्वानुमान लगा लिया ये छोटी सफलता तो नहीं थी !दूसरी ओर
जो लोग बादलों के स्वभाव को अभीतक समझ नहीं पाए उनके ये ग्रहणों का
पूर्वानुमान लगा पाना कितना कठिन होता !
वर्तमान युग के वैज्ञानिकों की दृष्टि से देखा जाए तो ग्रहणविज्ञान खोजने लायक उस युग
में परिस्थितियाँ नहीं रही होंगी !उस युग में यातायात के अच्छे साधन न होने
के कारण पृथ्वी पर भी एक कोने से दूसरे कोने की जानकारी जुटा पाना कठिन
होता था ऐसी परिस्थिति में सुदूर आकाश में स्थित सूर्य और चन्द्रमा से
संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कल्पना करना भी संभव नहीं
था फिर भी उन्होंने पहले खगोल विज्ञान की खोज की फिर उस विज्ञान को गणित
के सूत्रों में पिरोया इसके बाद उन्हीं सूत्रों के आधार पर कठोर परिश्रम
साधना स्वाध्याय आदि के द्वारा न केवल ग्रहण अपितु समस्त खगोलीय
परिस्थितियों ग्रहों नक्षत्रों आदि से संबंधित रहस्यों आदि का उद्घाटन कर
दिया !जिसके आधार पर बिना कहीं आए गए किसी एकांत स्थान पर बैठकर केवल कलम
और कागज के माध्यम से समस्त ग्रहों नक्षत्रों आदि के स्वभाव गति पथ आदि का न
केवल पता लगाया जा सकता है अपितु उनके विषय में पूर्वानुमान भी लगाया जा
सकता है कि भविष्य में इन ग्रहों नक्षत्रों आदि की कहाँ कब कितने समय तक
उपस्थिति रहेगी !
केवल
इतना ही नहीं अपितु इसी खगोल विज्ञान के द्वारा इस विषय का भी पता लगा
लिया गया कि सूर्य और चंद्रमा से संबंधित कब कौन ग्रहण कितनी देर तक पड़ेगा
!इतना ही नहीं अपितु भविष्य में कब कौन ग्रहण कितने बजकर कितने मिनट से
प्रारंभ होकर कितने
बजकर कितने मिनट तक रहेगा वो भी कहाँ कहाँ दिखाई देगा कहाँ नहीं दिखाई
देगा !उसका ग्रास कितना होगा आदि बातों का पूर्वानुमान उसी खगोल विज्ञान के
द्वारा ग्रहण पड़ने से सैकड़ों वर्ष पहले लगा लिया जाता है और वो बिल्कुल
सही एवं सटीक घटित होता है ! ऐसा तब संभव हो पाया है जब पहले ग्रहण से
संबंधित विज्ञान की खोज की गई उसमें सफलता मिलने के बाद उन्हीं सूत्रों
सिद्धांतों नियमों के आधार पर ग्रहण संबंधी रहस्यों को सुलझा लिया गया और
उसी आधार पर सैकड़ों हजारों वर्ष पहले भविष्य में घटित होने वाले ग्रहणों से
संबंधित पूर्वानुमान लगाना आसान हो गया !
मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने के नाम पर मौसम भविष्य वक्ता लोग प्रायः घबड़ा जाते हैं इसीलिए कोई भविष्यवाणी
करते समय अक्सर दो तरह की बातें बोलते हैं दो दोनों प्रकार की
भविष्यवाणियों में फिट बैठ जाएँ ऐसे ऐसे शब्दों का चयन किया जाता है
क्योंकि यह विज्ञान नहीं है यदि ये विज्ञान होता तो इन्हेंप्राप्त आंकड़ों
के आधार पर अपने द्वारा की हुई भविष्यवाणियों पर भरोसा होता !वहीं दूसरी
तरफ ग्रहण विज्ञान है इसका
विज्ञान चूँकि खोजा जा चुका है इसीलिए ग्रहण
संबंधी भविष्यवाणी करते समय न कोई घबड़ाहट और न कोई हिचकिचाहट न कोई किंतु
परंतु और न हीं ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी के गलत होने की कोई आशंका !उस
ग्रहण विज्ञान के द्वारा आज भी पूरी निडरतापूर्वक ग्रहण संबंधी
भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं जो एक एक मिनट सेकेंड तक सही एवं सटीक घटित
होती हैं !इसे कहा जाता है पूर्वानुमान का ग्रहणसंबंधी विज्ञान !
ये तो सभी लोग जानते हैं कि ग्रहण के विषय में पूर्वानुमान
लगाने के लिए आज तक न कहीं कोई रडार लगाने की आवश्यकता पड़ी और न ही कोई
उपग्रह लगाए गए !न किसी पश्चिमी विक्षोभ की कहानी गढ़नी पड़ी !इसके अतिरिक्त
अलनीनों लानीना जैसी कोई निराधार
कल्पनाएँ भी नहीं करनी पड़ीं ! ग्लोबलवार्मिंग या जलवायु परिवर्तन जैसी
काल्पनिक कहानियाँ भी नहीं गढ़नी पड़ीं और कभी ऐसा भी नहीं हुआ कि
ग्रहणसंबंधी भविष्यवाणियाँ गलत हुई हों जिससे किसी ग्रहणवैज्ञानिक को
लज्जित ही होना पड़ा हो और अपनी भविष्यवाणी गलत होने पर भी उस गलती को न
मानकर केवल अपनी झेंप मिटाने के लिए किसी ग्रहण वैज्ञानिक को ग्लोबल वार्मिंग ,जलवायु परिवर्तन,अलनीनों, लानीना जैसी मिथ्या कल्पनाएँ करनी पड़ी हों ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है !
वर्तमान समय जिस प्रकार से मौसम वैज्ञानिकों के बश की बात ही नहीं थी कि
वे ग्रहण संबंधीविज्ञान की खोज कर पाते और अपने राडार एवं उपग्रहों के बल
पर ग्रहणसंबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगा पाते!जब वो हवा बादलों आँधी
तूफानों के विज्ञान को अभी तक नहीं खोज पाए तो उनसे ग्रहण संबंधी
पूर्वानुमान लगाने की कोई अपेक्षा कैसे की जा सकती थी !जो आधुनिक विज्ञान
भूकंप अर्थात पृथ्वी के कंपन का पूर्वानुमान लगा पाने में अभी तक असफल रहा
वो इतने इतने विशालकाय सूर्य चंद्र आदि ग्रहों की गति का पूर्वानुमान कैसे
लगा सकता है !वर्तमान समय उड़ते हुए बादलों और आँधी तूफानों को आता देखकर
भविष्यवाणियाँ कहीं के लिए की जाती हैं वो घटित कहीं दूसरी जगह हो रही होती
हैं !कई बार तो भविष्यवाणियाँ पूरी तरह गलत हो जाती हैं !जिस विज्ञान के
द्वारा हवा और बादलों के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगा जा सका उसके बल
पर सूर्य चंद्र गहणों का पूर्वानुमान लगा पाना कभी संभव ही न था !
किसी भी ग्रहण में जिन तीन विषयों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है वे
सूर्य
चंद्र और पृथ्वी हैं इन तीनों की एक दूसरे से दूरी बहुत अधिक है इनका वजन
बहुत अधिक है !इसलिए इन्हें अपनी इच्छा के अनुशार हिलाना डुलाना तो संभव
नहीं है !इसीलिए कोई भी वैज्ञानिक ये दावा नहीं कर सकता है कि उसने
कृत्रिम ग्रहण पड़वा लिया है जबकि कृत्रिम बारिस होते तो देखी सुनी जाती है
!इसलिए ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान लगाने की अपेक्षा मौसम संबंधी
पूर्वानुमान लगाना अत्यधिक आसान होना चाहिए !किंतु ऐसा नहीं हो सका !इसका
कारण है
कि ग्रहण संबंधी विज्ञान की खोज भारतीयों के पूर्वजों ने तपस्या अनुभव
अध्ययन आदि के आधार पर न केवल कर ली थी अपितु उसे गणित के सूत्रों में बाँध
लिया था जिसके आधार पर आज भी सैकड़ों हजारों वर्ष पहले के ग्रहणों का भी
सटीक पूर्वानुमान कर लिया जाता है जबकि मौसम के विषय में पूर्वजों ने जो
कुछ किया था उसे अंधविश्वास बताकर भुला दिया गया अब मौसम की दिशा दशा समझना
भारी पड़ रहा है !
जिस गणित विज्ञान के द्वारा इतने कठिन ग्रहण जैसी आकाशीय घटनाओं का
पूर्वानुमान लगा लिया जाता है उस गणित विज्ञान के द्वारा यदि पृथ्वी पर
घटित होने वाले वर्षा संबंधी या पृथ्वी के अंदर घटित होने वाले भूकंप
संबंधी और वायु मंडल में घटित होने वाले आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं का
पूर्वानुमान लगाने के विषय में भी अनुसंधान किया जा सकता था !यदि कोई विधा
या सूत्र इस प्रकार के खोजे जा सके होते तो आज ग्रहण विज्ञान की तरह ही
मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी और अधिक सटीक विधि से लगाए जा सकते थे !
प्राचीन मौसम विज्ञान की विशेषता -
प्राचीनयुग में पूर्वज ऋषियों ने ग्रहण विज्ञान की तरह ही मौसम संबंधी
विज्ञान की भी खोज कर ली थी जिसके बिषय में
प्रमाण जहाँ तहाँ मिलते हैं उस विज्ञान के द्वारा दीर्घावधि मौसम
पूर्वानुमान भी लगा लिया जाता था जिसके आधार पर महीनों वर्षों पहले मौसम
संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता था !ऐसा पूर्वानुमान लगाने
वाले लोग उस युग में प्रायः कुछ साधू संत एवं ऐसे विद्वान लोग हुआ करते थे
जो वर्ष भर की मौसमी घटनाएँ एक बार ही लिखकर रखलिया करते थे उसे भारतीय
भाषा में पंचांग या पत्रा कहा जाता था जो आज भी इसी नाम से प्रकाशित किया
जाता है !किंतु सरकारी उपेक्षा के कारण उसमें उस प्रकार के अनुसंधान का आज अभाव है प्रायः
खानापूर्ति की जा रही है !
पहली बात तो परतंत्रता के समय में इससे संबंधित बहुत
सारे ग्रंथ नष्ट कर दिए गए थे !उसके बाद भी जो बचे उनमें भी ऐसे बिषयों में
महत्वपूर्ण जानकारियाँ हैं जिनमें से काफी कुछ ऐसी हैं जो क्रमवद्ध नहीं
हैं और कुछ जो क्रम बद्ध है भी वे संपूर्ण नहीं है !ऐसी परिस्थिति में इसे
क्रमबद्ध और संपूर्ण करने के लिए इसमें गहन परिश्रम अध्ययन और अनुसंधान आदि
की आवश्यकता है !
संभवतः इसीलिए ज्योतिष तंत्र योग और आयुर्वेद जैसे विषयों को पढ़ाने की
व्यवस्था सरकारी विश्व
विद्यालयों में भी की गई है कक्षाएँ चलती हैं परीक्षाएँ होती हैं रिजल्ट
निकलते हैं बच्चे अच्छे नंबरों से पास भी होते हैं !शोध होते हैं
शोधप्रबंध लिखे जाते हैं फिर ऐसे विषयों के इनके रीडर प्रोफेसर आदि तैयार
होते हैं वे सभी लोग योग्य भी होते होंगे !शासन प्रशासन के हिसाब से
कुलपति कुलाधिपति आदि होते हैं किंतु क्या कारण है कि प्राचीन विज्ञान से संबंधित अध्ययन अनुसंधान
आदि में कोई प्रगति नहीं हो पा रही है ! जबकि प्राचीन विज्ञान की समृद्धता
के विषय में ऐसे
लोगों के द्वारा दावे तो बड़े बड़े कर लिए जाते हैं बड़े बड़े भाषण दिए जाते
हैं किंतु जाने क्यों वैदिक विज्ञान से संबंधित किसी भी विषय को आज
तक समाज के सामने प्रमाणिकता पूर्वक प्रस्तुत नहीं किया जा सका !ऐसे
अध्ययनों और अनुसंधानों से क्या लाभ जिनसे जुड़े लोग अपने विषयों से
संबंधित वैज्ञानिकता सिद्ध कर पाने में ही अभी तक असफल रहे हों !
वर्षाविज्ञान आँधी तूफ़ान भूकंप जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग
आदि बड़ी बड़ी बातें आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा लगातार की जा रही हैं !उनकी बातों
में सच्चाई कितनी है ये तो वही जानते होंगे किंतु वे अपने अपने विषयों में कुछ तो कर रहे हैं सरकारी आजीविका पाकर कम से कम
चुप तो नहीं बैठे हैं किंतु दूसरी ओर वैदिक विज्ञान से जुड़े लोग हैं जिनका
ऐसे वैज्ञानिक विषयों में मत क्या है पता ही नहीं लग पाता है कि ऐसे वैज्ञानिक विषयों के रहस्यों को सुलझाने में
वैदिकवैज्ञानिक अपनी भूमिका का निर्वहन किस प्रकार से कर रहे हैं !यदि नहीं
तो उनके होने का औचित्य ही क्या है !
वर्षा कब कहाँ कितनी होगी या नहीं होगी सूखा पड़ेगा या बाढ़ आएगी
,ऐसे ही आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि आने की संभावना कब होगी ,भूकंप आने की
संभावना कब बनेगी ,किस वर्ष कृषि में किस प्रकार के आनाज अधिक उत्पन्न
होंगे !किस महीने दिन आदि में किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने की
संभावना अधिक है !किस क्षेत्र में कब किस प्रकार के रोग फैलने की संभावना
अधिक है !किस क्षेत्र में किस समय हिंसा आंदोलन आदि भड़कने की या आतंक
वादी घटनाएँ घटित होने की संभावना अधिक है आदि पूर्वानुमानों का आगे से
आगे पता लगाने के लिए वैदिक विज्ञान में कई विधियाँ बताई गई हैं !जिनके
आधार पर वैदिक विज्ञान से जुड़े लोग दावे तो बड़े बड़े करते हैं किंतु उनके
द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाकर घोषित क्यों नहीं किया
जाता है कि भविष्य में मौसम कब कैसा रहेगा ?
इसी प्रकार से तंत्र और योग आदि के क्षेत्र में वर्षा रोकने एवं वर्षा
कराने के लिए बड़े बड़े दावे तो किए जाते हैं प्राकृतिक आपदाओं की रोक थाम के
लिए
बड़े बड़े उपाय बताए गए हैं !शत्रुओं को नष्ट करने के लिए या उन्हें
सम्मोहित करने के लिए वैदिक विज्ञान में अनेकों उपाय बताए गए हैं !आखिर
क्या कारण है कि आतंकवादी समस्याओं से भारत परेशान है वो लोग कभी भी कहीं
भी हमला कर देते हैं जिससे भारत वर्ष की जन धन की भारी हानि होती है !ऐसे
शत्रुओं के संहार के लिए या उन्हें सम्मोहित करने के लिए वैदिकवैज्ञानिक
अनुसंधान पूर्वक कोई रास्ता क्यों
नहीं निकालते हैं !जिससे आतंकियों के हाथों से मारे जाने वाले सैनिकों एवं
आम समाज के बहुमूल्य जीवन को बचाया जा सके ! इसके साथ ही ऐसे देशों के
राष्ट्राध्यक्षों का सम्मोहन करके उन्हें भारत के हितचिंतन की ओर प्रेरित
क्यों नहीं किया जा सकता जो भारत के विरोधी देशों को भारत के विरुद्ध
भड़काया करते हैं !कश्मीर समस्या दिनों दिन खिंचती जा रही है !यदि वैदिक
विज्ञान में ऐसी समस्याओं के समाधान के उपाय जो बताए गए हैं तो उन पर
अनुसंधान करने एवं प्रयोग करके सही सिद्ध करने
की जिम्मेदारी तो उन्हीं की है सरकार ने ऐसे विश्व विद्यालयों में इस
कार्य के लिए जिन्हें नियुक्त किया है यदि वे अपना काम जिम्मेदारी से न
करें तो किसी दूसरे को या सरकार को कोसने से भारत के प्राचीन ज्ञान विज्ञान
की प्रामाणिकता कैसे सकती है !
भारतीय प्राचीन मौसम विज्ञान की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन ?
वेदविज्ञान से संबंधित
विश्वविद्यलयों के वेदवैज्ञानिक रीडर प्रोफेसर आदि ज्योतिष तंत्र आदि
विषयों में ऐसे अनुसंधान क्यों नहीं कर पाते हैं ?वैदिक विज्ञान में
वेदवैज्ञानिक पद्धति से प्रकृति और जीवन से संबंधित लगभग सभी विषयों में
भविष्यवाणियाँ करने की विधियाँ बताई गई
हैं !ऐसे वैज्ञानिक विषयों को विश्व विद्यालयों में पढ़ाने वाले रीडर
प्रोफेसर आदि वेद वैज्ञानिकों को क्या वेद विज्ञान पर विश्वास नहीं है या
उन्होंने उन पर अनुसंधान करके देख लिया है जिसमें वे गलत पायी गई हैं !या
उन बिषयों की उन्हें जानकारी ही नहीं है !आखिर क्या कारण है कि वर्तमान
परिप्रेक्ष्य में ऐसे विषयों से संबंधित कोई प्रमाणित अनुसंधान अभी तक देश
और समाज के सामने वेद वैज्ञानिकों के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया जा सका है
जबकि सरकार ऐसे लोगों को अनुसंधान करने के लिए समस्त सुख सुविधाओं समेत सरे
संसाधन उपलब्ध करवाती है इसलिए सरकार का भी यह दायित्व बन जाता है कि वो
ऐसे विभागों से संबंधित सच्चाई समाज के सामने प्रस्तुत करे कि इस भारतीय विज्ञान के विषय में वे क्या कर सकते हैं !देश की जनता
को सरकार से यह जानने के अधिकार तो है कि सरकार जनता के खून पसीने की गाढ़ी
कमाई का धन जिन लोगों पर खर्च करती है उससे समाज को लाभ क्या होता है !
वेद वैज्ञानिक कहलाने वाले लोगों के लिए उचित है कि वे वैज्ञानिक विषयों से संबंधित ग्रंथों श्लोकों
मंत्रों आदि को ही न केवल दोहराते सुनाते या दिखाते रहें !अपितु इन्
विषयों पर अनुसंधान करके पारदर्शिता पूर्वक समाज के सामने प्रस्तुत करें
!ऐसे विषयों पर भाषण प्रवचन देने वाले लोगों से समाज को निराशा मिली है !
इन विषयों में वेदों में तो बहुत कुछ लिखा है ही किंतु वेदविज्ञान से
संबंधित वर्तमान लोग इस विषय को वो सम्मान नहीं दिला सके जिसका यह विषय
अधिकारी था !किंतु सच्चाई ये भी है कि इससे संबंधित अनुसंधान भी केवल वही
लोग कर सकते हैं जो इन विषयों के विद्वान् हैं यदि वही ऐसा कुछ नहीं कर
पाएँगे तो ऐसे अनुसंधानों से संबंधित विषयों के केवल स्कूलों में पठन पाठन
से क्या और कितना लाभ हो पाएगा !
वेद विज्ञान विभाग कई विश्वविद्यालयों में खोले गए हैं वेद विज्ञान
प्रौद्योगिकी विश्व विद्यालय भी बनाए जाने के विषय में अत्यंत सुदृढ़ प्रयास
किए जा रहे हैं यदि वो बन भी गए तो उससे ऐसे वैज्ञानिक विषयों के
अनुसंधान में कोई नया अध्याय जोड़ा जा सकेगा क्या ?क्योंकि इसके लिए शिक्षक
तो वही या उसी प्रकार के लोग होंगे जो उन विश्व विद्यालयों में अभी तक कुछ
नहीं कर पाए वो ऐसे नए संस्थानों में कुछ कर पाएँगे ऐसी आशा कैसे की जा
सकती है ऐसा कुछ कर पाना यदि उनके बश का ही होता तो अभी तक जिन सरकारी
विश्व विद्यालयों में ऐसे लोग सुशोभित हो रहे हैं वहीँ पर उन्होंने बहुत
कुछ कर लिया होता !
इसलिए ऐसे विश्व विद्यालयों या विभागों को बनाकर सरकार ऐसे लोगों को अपनी वेदवैज्ञानिक प्रतिभा को
विस्तार देने के लिए एक और अवसर प्रदान कर सकती है किंतु वो लोग इसका
उपयोग कितना कर पाएँगे इस पर विचार किया जाना बहुत आवश्यक है !कहीं ऐसा न
हो कि वेदविज्ञान पर अनुसंधान के नाम पर कुछ और शोध प्रबंध लिखकर सरकारी
गोदामों में जमा कर के इति श्री कर ली जाए !
इसलिए उचित ये होगा कि वेद विज्ञान विभागों या विश्व विद्यालय बनाने के
लिए कुछ ऐसे विद्वानों का संग्रह किया जाए जिन्होंने ऐसे विषयों पर पहले
कभी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान किया हो जिसे समाज के सामने सही सिद्ध करने की क्षमता
रखते हों !
सच्चाई
ये है कि भारत का जो प्राचीन विज्ञान है वो निरंतर उपेक्षा का शिकार है
इसलिए इससे संबंधित विद्वान् उस प्रकार के अनुसंधानों में परिश्रम नहीं
करना चाहते क्योंकि उन्हें पता है कि इसके आधार पर यदि कोई खोज कर भी ली तो
उसे वैज्ञानिक मान्यता मिलेगी नहीं वो भले कितनी भी सच क्यों न हो
!क्योंकि इस विषय में वैज्ञानिक मान्यता देने के लिए सरकारों ने जिन्हें अधिकार दे रखे हैं वे ऐसे विषयों को मानते ही नहीं हैं!
दूसरी बात कुछ संस्कृत के विद्वान जो ऐसे प्राचीन मौसम विज्ञान से
संबंधित विषय में कुछ भी नहीं जानते हैं किंतु संस्कृत जानते हैं वेदादि भी
पढ़ रखे हैं उसके
आधार पर सरकारों के द्वारा उन्हें संस्कृत उत्थान संबंधी महत्त्वपूर्ण
पदों पर बैठा
दिया जाता है किंतु उनके विषयों के प्रति उनकी जवाबदेही बिलकुल नहीं होती
है ! सरकार ऐसे लोगों को वेदों में सन्निहित प्राचीन विज्ञान से संबंधित
अनुसंधान की जिम्मेदारी सौंपती है किंतु ऐसे लोग संस्कृत तो पढ़े हैं यहां
तक कि कुछ लोगों ने वेद भी पढ़े होंगे तो उसका अर्थ नहीं समझते हैं जो अर्थ
भी समझते हैं वे उसमें छिपे विज्ञान को नहीं समझते इसलिए ऐसे विषयों पर
अनुसंधान करना करवाना उनके बश का होता नहीं है !इसलिए ऐसे लोग वेदों के वैज्ञानिक अनुसंधान के नाम पर कुछ शोध
प्रबंध लिखवा कर सरकारों को सौंप देते हैं !जिनमें विज्ञान या वैज्ञानिक
अनुसंधानों जैसा कुछ भी नहीं होता है केवल खानापूर्ति मात्र होती है और
वेद वेदांग जैसे विषयों के अनुसंधान के लिए स्वीकृत धन राशि उसी में
समाप्त कर दी जाती है !इसलिए
वेदविज्ञान के अनुसंधान और उत्थान के नाम पर अभी तक जो भी प्रयास सरकारों
की ओर से किए भी गए हैं उनका दुरुपयोग जिस प्रकार से संस्कृत से जुड़े
लोगों के द्वारा किया गया है ऐसे लोग वेद विज्ञान की उपेक्षा के लिए सबसे
अधिक जिम्मेदार हैं !सच्चाई यह है कि भारत का प्राचीन विज्ञान अत्यंत
समृद्ध है किंतु संस्कृत पठन पाठन की जिम्मेदारी सँभालने वाले लोगों ने ही
अपनी निष्क्रियता के कारण इसे बेचारा बना दिया है !
घाघ का मौसम विज्ञान -
महाकवि घाघ जिनका
पूरा नाम देवकली दुबे था जो मूलतः कृषि वैज्ञानिक थे उन्हें कृषि के
प्रत्येक पक्ष की अत्यंत उत्तम जानकारी थी ! चूँकि कृषि वर्षा के आधीन होती
है इसलिए वर्षा संबंधी सभी प्रकार का पूर्वानुमान लगाने में वो अत्यंत सफल
वैज्ञानिक थे जिनके द्वारा लिखी गई सूक्तियाँ आज भी लोगों की वाणी पर विराज मान रहती हैं विशेष कर कृषक वर्ग उनकी सूक्तियों पर मंत्र की तरह विश्वास करता है !
महान किसान कवि घाघ व भड्डरी की कहावतें खेतिहर समाज का पीढि़यों से
पथप्रदर्शन करते आयी हैं। बिहार व उत्तरप्रदेश के गाँवों में ये कहावतें
आज भी काफी लोकप्रिय हैं। जहाँ वैज्ञानिकों के मौसम संबंधी अनुमान भी गलत
हो जाते हैं, ग्रामीणों की धारणा है कि घाघ की कहावतें प्राय: सत्य साबित होती हैं। उनकी कहावतों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं --
1. यदि रोहिणी और मूल नक्षत्र में खूब गर्मी हो और ज्येष्ठ महीने की प्रतिपदा तिथि में भी खूब गर्मी हो तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।अर्थात वर्षा अच्छी होगी !
2. यदि शुक्रवार के दिन बादल आ जाएँ और शनिवार को छाए रह जाएँ तो घाघ कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाता है ।
3. यदि
भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की छठ तिथि को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो
ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस वर्ष अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है
क्योंकि उस वर्ष वर्षा अच्छी होती है !
4. यदि
द्वितीया तिथि का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में
अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे अर्थात वर्षा अच्छी होगी ।
5. यदि पौष की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी नहीं दिखाई पड़ेगा वर्षा अच्छी होगी ।
6. यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणीनक्षत्र हो तो समझ लेना चाहिए
अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
7. यदि पौष शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अष्टमी और नवमी तिथियों में बदली और गर्जना हो तो सब काम सुफल होगा अर्थात् अच्छी वर्षा होगी ।
8. यदि वैशाख में अक्षय तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।अर्थात वर्षा अच्छी होगी !
9.यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा
पड़ेगा; रेवती नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे
तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
11. यदि पौष कृष्णपक्ष की दशमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन कृष्ण पक्ष की दशमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।
12.आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजे, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।वर्षा अच्छी होगी !
13.यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो
धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएँगे और
नहीं खाएँगे।
14.यदि आषाढ़ कृष्ण अष्टमी को अंधकार छाया हुआ हो और चंद्रमा बादलों को फोड़कर
निकले तो बड़ी आनंददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनंद की बाढ़-सी आ
जाएगी।
इसप्रकार से महाकवि घाघ ने समय और वर्षा संबंधी लक्षणों का आपसी तालमेल
बैठाकर जो वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बताया है उसमें कुछ अल्पावधि तो कुछ
दीर्घावधि की मौसम भविष्यवाणियाँ भी बताई गई हैं !ये किसानों का अपना मौसम विज्ञान माना जाता है किसानों ने जब तक इस प्राकृतिक मौसम विज्ञान के सहारे अपने कार्यों का संचालन किया तब तक किसी किसान को आत्महत्या करनी
पड़ी हो ऐसा कभी देखा सुना नहीं गया !वर्तमान मौसम वैज्ञानिकों के तो कोई
निश्चित नियम ही नहीं हैं वर्षा होते देखि तो वर्षा होने की भविष्यवाणी कर
दी आँधी तूफान आते देखा तो आँधी तूफ़ान की भविष्यवाणी कर दी किंतु इसमें
विज्ञान कहाँ है !
इसीलिए तो महाकवि घाघ की कहावतें आज भी उतनी ही लोकप्रिय बनी हुई हैं !यही उनकी सच्चाई का प्रमाण है !चूँकि ये सही होती रही हैं इसीलिए ऐसी कहावतों पर आज भी समाज को भारी विश्वास है तभी तो हिंदी भाषी प्रदेशों में जन जन के मुख से बात बात में ये कहावतें बोलते सुनी जाती हैं !
इतनी लोकप्रियता होने के बाद भी यदि कोई इसे विज्ञान नहीं मानता है तो
यह उसकी अपनी बात है !बाकी समाज को इसकी वैज्ञानिकता पर कोई संदेह नहीं
होता है !
आँकड़ा हो या अंदाजा किंतु ये पूर्वानुमान नहीं है !
पूर्वानुमान
का आधार कोई न कोई वैज्ञानिक पद्धति होनी चाहिए जिसके द्वारा ग्रहण संबंधी
भविष्यवाणियों की तरह ही कोई भी घटना घटित होने से काफी पहले
पूर्वानुमान लगाया जा सके ! मौसम विज्ञान कहने से कई बार लगता है कि संभवतः
यही वो विज्ञान है जिसके द्वारा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है
किंतु इस सच्चाई का ज्ञान बहुत कम लोगों को होगा कि हम जिस विषय को
मौसमविज्ञान के रूप में जानते हैं उसमें विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं !वह
तो मौसम संबंधी गतिविधियों को अत्यंत नजदीक आ जाने पर देखने में सहायक हो
सकता है किंतु इसका मौसम संबंधी विज्ञान से कोई संबंध नहीं है!
यदि कहीं धुआँ उठता दिखाई पड़ता है तो उससे ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि
वहाँ आग जल रही होगी !किंतु धुआँ उठता हुआ देखकर आग जलने का अंदाजा लगाने
की प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है !
इसीप्रकार से किसी
नहर में जब
पानी छोड़ा जाता है या गंगा आदि नदियों में जब अचानक बाढ़ का पानी आ जाता है
तो ऐसे दोनों प्रकार के पानी की दिशा और उसकी गति देख कर ये अनुमान कर लिया
जाता है कि
यह जल बहकर किस दिन कहाँ पहुँच सकता है !इसी प्रकार से कोई ट्रेन दिल्ली से
हाबड़ा जा रही हो तो उसकी गति और दिशा देख कर इस बात का अंदाजा लगा लिया
जाता है कि ये बीच में पड़ने वाले किन किन स्टेशनों पर किस किस समय पहुँच सकती है !ऐसे
ही अबकी बार भारत में चुनाव हो रहे थे इसी बिषय में कुछ लोग बैठकर किसी
चाय की दूकान में चुनावी चर्चा कर रहे थे तभी उनमें से एक बोला कि 23 मई
के बाद डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ जाएँगे लोग उसके मुख की ओर देखने लगे किसी
ने उससे पूछा ऐसा क्यों कह रहे हो तो उसने बताया कि तब तक चुनाव हो चुके
होंगे !इसलिए कीमतें तो बढ़ेंगी ही अन्यथा चुनावों का खर्च कहाँ से निकलेगा
आदि आदि !इस
प्रकार के अंदाजे तो बहुत सारे क्षेत्रों में लगभग सभी लोग लगा ही लेते
हैं किंतु जीवन के किसी भी क्षेत्र में अंदाजा लगाने वाली इस प्रक्रिया
को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही कोई मानता है !ऐसी परिस्थिति में
मौसम संबंधी अंदाजों को विज्ञान कैसे माना जा सकता है !
मौसम से संबंधित भविष्यवाणी करने वाले लोग अपने इस प्रकार के अंदाजों को
भी विज्ञान कहते देखे सुने जाते हैं जो विज्ञानभावना के साथ अन्याय है !यदि
मौसम पूर्वानुमान से संबंधित कोई तीर तुक्का सही बैठ भी जाता है तो भी वो
रहता तुक्का ही है !क्योंकि वो तुक्का वैज्ञानिक नहीं है केवल अंदाजा है
!अंदाजे को यदि विज्ञान माना जाने लगेगा तो जीवन में या प्रकृति में अंदाजा
तो हर पल लगाना पड़ता है हर काम के विषय में लगाना पड़ता है जीवन और प्रकृति
के विषय में लगाना पड़ता है संबंधों व्यापारों पद प्रतिष्ठाओं के मिलने और
छूटने के विषय में लगाया जा सकता है !चुनावों के समय में प्रत्याशियों
पार्टियों के चुनाव हारने और जीतने के विषय में लगाया जाने वाला
पूर्वानुमान या किए जाने वाले एक्जिटपोल को क्या चुनावविज्ञान मान लिया
जाएगा !एक्जिटपोल तो एक्जिटपोल ही होते हैं इनके सही होने की गारंटी नहीं होती फिर भी इनमें
से बहुतों को सही होते भी देखा जाता है किंतु कई बार ये बिलकुल उलटे भी
निकल जाते हैं सारे आँकड़े अंदाजे झूठे होते देखे जाते हैं ! हमें याद रखना
चाहिए कि ये विज्ञान नहीं अपितु अंदाजा है इसके सच होने की उम्मींद भी हमें
बहुत ज्यादा नहीं रखनी चाहिए !चुनावी आँकड़ों और मौसम संबंधी आँकड़ों में
अंतर क्या है चुनावी आँकड़ों में समाज से सैंपल उठाए जाते हैं जबकि मौसमी
आंकड़ों में प्राकृतिक वातावरण से सैंपल उठाए जाते हैं इन्हीं के आधार पर
आँकड़े लगाए जाते हैं !इसलिए यदि चुनाव विज्ञान नहीं तो मौसम विज्ञान कैसे
हो सकता है !
अंदाजा तो गाँवों और जंगलों में रहने वाले लोग किसान आदि भी लगा लेते हैं
कुछ प्रतिशत तो उनका भी सही हो जाता है !कहा तो यहाँ तक जाता है कि जंगल
में रहने वाले आदिवासियों आदि को भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी
पूर्वाभाष हो जाता है !इसीलिए भूकंप आने से पहले वे वह क्षेत्र छोड़ जाते
हैं जहाँ भूकंप आना होता है !ऐसा पूर्वाभाष कई पशु पक्षियों आदि जीव जंतुओं
को भी हो जाता है इसलिए भूकंप आने से पहले वे
अपनी अपनी गतिविधियाँ बदलने लगते हैं उनके स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव
आने लगता है !कुछ पक्षियों की बोली भाषा समझने वाले लोग उनकी अलग अलग
प्रकार की बोलियों को सुन कर वर्षा से लेकर प्रकृति और जीवन से संबंधित तथा
कई अन्य प्रकार के भी पूर्वानुमान लगा लेते हैं !यदि उनकी बोली भाषा
व्यवहार आदि को समझना किसी को आता है तो उन पूर्वानुमानों में से भी बहुत सही निकलते देखे जाते हैं !
किंतु हम उन आदि वासियों किसानों ग्रामीणों आदि को जिस प्रकार से मौसम
वैज्ञानिक नहीं कह सकते तो किसी और दूसरे को मौसम संबंधी किस योग्यता के
कारण मौसम वैज्ञानिक मान लिया जाए !हमें याद रखना चाहिए कि ये विज्ञान नहीं
अपितु अंदाजा मात्र है जो
विज्ञान का मुख्यस्वरूप भले ही न हों किंतु ऐसे विषयों के अनुसंधान में
सहायक हो सकते हैं !
कुलमिलाकर अंदाजा तो अंदाजा ही रहता है जबकि विज्ञान में
पारदर्शिता होती है दृढ़ता होती है निर्भयता होती है हर बात तर्क की कसौटी
पर कसी जा सकती है !इसीलिए तो अंदाजे की अपेक्षा विजान पर अधिक विश्वास
किया जाता है !
किसी विषय का विज्ञान क्या है ये केवल उस शब्द के साथ विज्ञान जोड़
लेने मात्र से थोड़ा विज्ञान हो जाएगा अपितु उसकी वैज्ञानिकता सिद्ध करनी पड़ेगी तब
वो विज्ञान होगा !सिद्धांततः तो जिस बिषय का स्वभाव समझने में तथा उसका रहस्य
उद्घाटित करने में एवं उससे संबंधित पूर्वानुमान देने में जो पद्धति जितनी
अधिक सफल होती दिखाई दे वही उस विषय का विज्ञान माना जाना चाहिए !इस
दृष्टि से यदि देखा जाए तो मौसम एवं भूकंपों से संबंधित अभी तक ऐसा कोई
विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है जो अपने बल पर मौसम या भूकंपों से संबंधित
घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगा सके !
बादलों हवाओं की जासूसी को क्यों मान लिया जाए मौसम विज्ञान ?
वर्षा आँधी तूफानों
आदि को रखा कर बैठना पड़ता है !प्रारंभिक अवस्था में ही देख लेने के लिए सरकारों ने राडार उपग्रह
आदि की व्यवस्था कर रखी है जिसके द्वारा आँधी तूफ़ान या बरसने वाले बादलों की निगरानी की
जाती है !इनसे मिले चित्रों के माध्यम से इस बात की जासूसी की जाती है
आँधी तूफ़ान या बरसने वाले बादल किस दिशा में कितनी गति से भागे जा रहे हैं
उसी के आधार पर इस बात का अंदाजा लगाने का प्रयास किया जाता है कि ये उस
दिशा में पड़ने वाले किन किन देशों प्रदेशों शहरों आदि में किस किस समय में
पहुँच सकते हैं !ये अंदाजा कभी कभी ठीक बैठ जाता है और कभी कभी कुछ आगे पीछे
भी होता है तथा कभी कभी तो बिल्कुल विपरीत निकल जाता है !बरसने को कहा जाए और
बादल भी न आवें या आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाए और तेज हवा का एक
झोंका भी न आवे !क्योंकि जासूसी तो केवल जासूसी होती है कोई भी जासूस
संबंधित व्यक्ति से ये पूँछ तो नहीं सकता कि अगला कदम तुम्हारा क्या होगा
उसे तो केवल पीछे चलकर ही जितनी संभव हो उतनी जानकारी जुटानी होती है! इस
आधी अधूरी जानकारी के आधार पर ही कड़ियाँ जोड़कर संबंधित विषय में अगले कदम
का अंदाजा लगाना होता है !
इसी प्रकार की जासूसी करके अपना आस्तित्व बचाने के प्रयास में लगी हुई
हैं देश विदेश की मौसम संबंधी जासूसी संस्थाएँ !आश्चर्य तो तब होता है कि
जब कोई उसे मौसम विज्ञान कहता है क्योंकि मौसमविज्ञान कहे जाने वाले विषय
में विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं !
किसी जंगल के पास के किसी गाँव में हाथियों के झुंड जंगल से निकल कर अचानक
गाँव में घुस आते थे और उत्पात मचाकर काफी नुकसान कर दिया करते थे इसके
बाद जंगल में वापस फिर
लौट जाया करते थे !ग़ाँव वालों को बचाव के लिए समय ही नहीं मिल पाता था
!इससे तंग होकर गाँववालों ने गाँव के बाहर चारों ओर कैमरे लगवा लिए जिनसे
हाथियों के गाँव में घुसने की जासूसी कर ली जाती थी !जब जब हाथियों के
झुण्ड जंगलों से निकलकर गाँव की ओर बढ़ने लगते तब तब गाँव के लोग कैमरों से देख लिया करते थे और संगठित होकर हाथियों को खदेड़ दिया करते थे !
कुल मिलाकर कैमरों की मदद से हाथियों के आने की सूचना प्राप्त कर लेने
वाले ग्रामीणों का इससे कुछ मात्रा में बचाव तो हो जाया करता था किंतु ये
एक तुक्का था अंदाजा था जुगाड़ था इसे विज्ञान विज्ञान शब्द का मजाक होगा ! इसीलिए यह कभी
सफल हो जाता था कभी नहीं भी होता था किंतु इस प्रक्रिया के द्वारा हाथियों
से अपना बहुत बचाव कर लेने वाले ग्रामीणों को हाथीवैज्ञानिक तो नहीं कहा जा
सकता है ! ऐसी परिस्थिति में रडारों और उपग्रहों के माध्यम से बादलों या आँधी
तूफानों को देखकर उनकी जासूसी करके मौसम संबंधी अंदाजा लगा लेने वाले मौसमभविष्य
वक्ताओं को मौसम वैज्ञानिक किस योग्यता के आधार पर माना जा सकता है !
मौसम संबंधी अधिकाँश प्राकृतिक घटनाओं की जन्मस्थली समुद्र ही है!इसलिए
अधिकाँश वर्षा या आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित शुरुआती घटनाएँ समुद्र में ही
बनती हुई दिखाई पड़ती हैं इसके बाद वहीँ से चारों ओर जाती हैं !कई बार
जिस दिशा में ये घटनाएँ मुड़ जाती हैं उधर कोई देश प्रदेश आदि काफी अधिक
दूरी पर होता है तो वहाँ ऐसी घटनाओं को पहुँचने में कुछ दिन लग जाते हैं
!ऐसे समय में तो आधुनिक अनुमानों के द्वारा सँभलने के लिए कुछ दिनों का
समय मिल जाता है किंतु कई बार गंतव्य स्थान नजदीक होता है है तब तो पता
लगते लगते ही घटनाएँ घटित होने लगती हैं! वे तुरंत उड़कर किसी भी दिशा या देश
में चली जाती हैं वहाँ उनसे लाभ या हानि दोनों प्रकार की घटनाएँ घटित होते
देखी जाती हैं !आवश्यकतानुशार वर्षा होने से लाभ होता है वह तो ठीक है
किंतु अधिक वर्षा होने से बाढ़ आदि के कारण हानि भी होते देखी जाती है!इसी
प्रकार से आँधी तूफान आदि घटनाएँ घटित होती हैं !ऐसी घटनाओं से भारी जन धन
की हानि होते देखी जाती है !मौसम संबंधी विज्ञान न होने के कारण ऐसी
घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव हो नहीं पाया है !
इसलिए मौसमपूर्वानुमान से संबंधित विज्ञान के अभाव में ऐसी घटनाओं
से होने वाली जन धन की हानि को कम करने के लिए कुछ काम चलाऊ वैकल्पिक
व्यवस्थाएँ कर रखी हैं !जिनसे प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भले न
संभव हो पाया हो किंतु प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन की हानि में
कभी कभी कुछ कमी अवश्य लाई जा सकती है !यद्यपि कभी कभी इस प्रक्रिया से
नुक्सान भी होता है इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है फिर भी लाभ के
लोभ में ही ऐसी प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है !
मौसम से संबंधित विज्ञान यदि खोजा जा सका होता तो क्या होता ?
मौसम का संबंध यदि विज्ञान
से होता या यूँ कह लें कि यदि मौसम संबंधी विज्ञान को खोजने में सफलता
पायी जा सकी होती तो उस विज्ञान के द्वारा ही मौसम संबंधी घटनाओं का
पूर्वानुमान किया जा सकता था उसके लिए रडारों उपग्रहों सुपर कंप्यूटरों की
आवश्यकता ही नहीं पड़ती !क्योंकि किसी भी विषय का विज्ञान अपने विषय को
समझने में स्वयं सक्षम होता है उसे उपग्रहों एवं सुपर कंप्यूटरों की वैशाखी
की आवश्यकता ही नहीं पड़ती ! इसी विशेषता के कारण ही तो इसे उस विषय का
विज्ञान माना जाता है !ग्रहण भी तो सुदूर आकाश में कभी कभी, अलग अलग प्रकार
से, भिन्न भिन्न मात्रा में घटित होने वाली घटना है!उसका सैकड़ों हजारों
वर्ष पहले ग्रहण विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जिसके लिए
कभी किसी उपग्रह या सुपर कंप्यूटर की आवश्यकता ही नहीं पड़ी ! ऐसा होने पर
भी ग्रहण संबंधी कभी ढुलमुल भविष्यवाणियाँ नहीं करनी पड़ीं !प्रत्येक
भविष्यवाणी बिल्कुल सटीक उतरती है इसे कहते हैं विज्ञान !इसी प्रकार से
मौसम विज्ञान के नाम पर समाज को जिस प्रकार से मूर्ख बनाया जा रहा है
!उसमें विज्ञान तो कुछ है ही नहीं और न ही कोई अनुसंधान हैं !ये तो
समुद्रों में या अन्य स्थलों पर जिस तरह की घटना घटती देखी गईं उसी के
अनुसार दूसरी जगह के विषय में अनुमान लगाकर भविष्यवाणी कर दी गई वो सही हो
गलत हो अपनी बला से !मौसम के विषय में वैज्ञानिक दृष्टि से यदि कुछ भी
अनुसंधान हुआ होता तो उन लोगों को मौसम के स्वभाव की जानकरी होनी चाहिए थी
जिसके आधार पर वो भविष्यवाणियाँ कर सकते थे किंतु ऐसा कुछ होते दिखाई नहीं
पड़ता है !आज मौसमी घटनाओं की ऐसे भविष्यवाणी की जाती है जैसे किसी गाँव में
कोई भेड़िया अचानक घुस आया हो तो पूरा गाँव एक साथ हो हल्ला मचाने लग पड़ा
हो !जब कि जिस दिन जो प्राकृतिक घटना घटित होती दिख रही है उसका होना
ग्रहण की तरह ही हजारों वर्ष पहले निश्चित हो चुका था फिर उसे खोज पाने में
इतनी देरी क्यों हुई और उसे अचानक जैसा क्यों प्रस्तुत किया जाता है !यदि
किसी की अज्ञानता के कारण उसे ऐसी कोई प्राकृतिक घटना पहले से पता नहीं लगी
और वह अपने क्रम से अपने समय से घटित हो गई जिन अज्ञानी लोगों को अचानक
पता लगी वो उसे अचानक घटित हुई घटना मानते हैं! जबकि सच्चाई ऐसी नहीं है !
इस सूक्ष्म अंतर को समझने के लिए सूर्योदय का उदाहरण लेते हैं - जो
सूर्य वैज्ञानिक लोग सूर्य के गति विज्ञान को जानते समझते हैं उन्हें सूर्य
को देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती वो सूर्य विज्ञान संबंधित गणित के सूत्रों
के द्वारा कागज़ पर गणित करके कभी भी किसी भी दिन के विषय में पता लगा लेते
हैं कि किस दिन का सूर्योदय कब अर्थात कितने बजकर कितने मिनट पर होगा !ऐसा
महीनों वर्षों पहले का निकाल सकते हैं जबकि यदि इसी को आधुनिक मौसमी
दृष्टि से देखा जाए तो इसके लिए भी राडार और उपग्रहों से चित्र प्राप्त
किए जाते और सुबह होने पर जैसे जैसे प्रकाश बढ़ते जाता वैसे वैसे आधुनिक
सौर वैज्ञानिक लोग सूर्योदय होने की आशंका आदि व्यक्त करते जाते !इन्हीं
आशंकाओं को वो लोग कभी संभावना कभी पूर्वानुमान कभी भविष्यवाणियाँ कहते
सुने जाते हैं जबकि है इनमें से कुछ भी नहीं !वस्तुतः ये केवल आत्मबंचना है
!
विज्ञान का अर्थ ही है किसी विषय के स्वभाव की समझ !-
जिसके स्वभाव की समझ जिसको हो वो उसका वैज्ञानिक और यदि न हो तो किस बात
का वैज्ञानिक !भूकंप जैसी घटनाओं के स्वभाव की समझ होना तो दूर अपितु भूकंप
के विषय में जिन्हें सबसे प्रारंभिक जानकारी भी नहीं है वे भी भूकंप
वैज्ञानिक बन कर सुशोभित होते हैं !जिन्हें मौसम के स्वभाव की समझ नहीं वे
मौसम वैज्ञानक मान लिए जाते हैं !अरे ये तो साधारण सी बात है कि जो हार्ट
सर्जरी न जानता हो वो हार्टसर्जन कैसा !किसी विषय की विशेषज्ञता के अभाव
में भी उसे विशेषज्ञ मानकर पूजने वाला समाज कभी भी विकसित नहीं होता उन्नति
नहीं कर पाता है क्योंकि विशेषज्ञता के नाम पर वो केवल अज्ञान का पूजन कर
रहा होता है उसे ही प्रोत्साहित कर रहा होता है इसलिए उस पर कृपा भी अज्ञान
की ही होती है !यही कारण है कि भूकंप और मौसम संबंधी घटनाओं का अभी तक कोई
विज्ञान नहीं खोजा जा सका है ऐसे प्राकृतिक विषयों के अनुसंधान अभी तक
सुयोग्य वैज्ञानिकों के अभाव में अनाथ हैं !
समय के प्रवाह में सब कुछ बहता जा रहा है -
ब्रह्मांड
में कोई घटना अचानक नहीं घटित होती है यहाँ सब कुछ एक क्रम से चल रहा है
समय बीतता जा रहा है घटनाएँ घटती जा रही हैं क्योंकि घटनाओं का सीधा संबंध
समय के साथ होता है !
ब्रह्मांड का भी अपना स्वभाव है उसकी अपनी गति है उसका अपना पथ है
प्रक्रिया है सिद्धांत है समय है नियम हैं जिनमें ब्रह्मांड में घटित होने
वाली प्रत्येक गतिविधि अत्यंत दृढ़ता पूर्वक गुँथी हुई है और उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह
में सब कुछ बहता चला जा रहा है जो प्रकृति से लेकर जीवन तक ऐसी प्रत्येक
जगह में हो रहे बदलाव के स्वरूप में दिखाई पड़ रहा है !उसी में स्थित संपूर्ण प्रकृति भी उसी के साथ साथ उसी ब्रह्मांडीय गति में सम्मिलित होकर बहती जा रही है !
उसी ब्रह्मांडीयप्रवाह
के क्रम में शरीरों में जब विकार आते हैं तब शरीर रोगी होते हैं इसी
प्रकार से प्रकृति में जब विकार आते हैं तब प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं
!वो भी अनिश्चित और अचानक नहीं है अपितु वह भी उसी स्वभाव का एक हिस्सा है
!इसीलिए शारीरिकरोग या प्राकृतिकआपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के
लिए रोगों और प्राकृतिकआपदाओं पर ध्यान केंद्रित करने की अपेक्षा ब्रह्मांडीय प्रवाह
के विषय में अनुसंधान किया जाना चाहिए जिससे जीवन एवं प्रकृति से संबंधित
संपूर्ण रहस्य स्वयं ही खुलते चले जाएँगे ! यही पूर्ण अनुसंधान माना जाएगा !
किसी को जुकाम हो जाए उसके कारण उसकी नाक बहने लगे तो नाक बहने न बहने
के विषय में उसकी नाक में दूरबीन लगाकर देखते रहने से जुकाम के विषय में
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है !
मनुष्य कुछ करे या न करे समय के प्रवाह से जो बदलाव होने हैं वे तो होते
ही रहेंगे मनुष्यकृत प्रयासों से उनका प्रकार कुछ बदल जाएगा !
प्रकृति या जीवन में घटित होने वाला सब कुछ उसी प्रवाह के छोटे बड़े बदलाव
हैं जीवन और प्रकृति में होने बदलाव उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह के अभिन्न अंग हैं !कोई
जीव जब जन्म लेता है तो बच्चा होता है फिर जवान होता है उसके बाद बूढ़ा होता
है और फिर मर जाता है ये सारी प्रक्रिया उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह से
संचालित होते रहती है किसी भी व्यक्ति की खान पान आदि की परिस्थितियाँ
कितनी भी भिन्न भिन्न क्यों न हों कैसी भी संपन्नता या विपन्नता क्यों न हो
किंतु ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ साथ चलने वाला जीवन का क्रम कभी रुकता नहीं है कभी थकता नहीं है ये अपनी चाल से हमेंशा चला करता है !
इसी प्रकार से कोई बीज अंकुरित होकर पौधा बनता है फिर वृक्ष बनता है इसके
बाद फूलता फलता और सूख जाता है !इसमें किसी के प्रयास की कोई आवश्यकता नहीं
होती है ब्रह्मांडीय प्रवाह के साथ साथ सब कुछ अपने आप से घटित होता चला जा रहा है!
ब्रह्मांडीय क्रम में समय के साथ होने वाले ऐसे परिवर्तनों को संपूर्ण
प्रयास करके भी किसी एक अवस्था में स्थिर नहीं रखा जा सकता है !
कोई व्यक्ति जब मर जाता है तो उसके शरीर की शव संज्ञा हो जाती है उसमें भी
परिवर्तन होते रहते हैं पहले शव रहता है फिर उसमें विकार आने लगते हैं
इसलिए वह दुर्गंध देने लगता है इसके बाद वही शव सड़कर मिट्टी बन जाता है
यह स्वरूप परिवर्तन कभी भी बंद नहीं होता है!ये तो ब्रह्मांडीय प्रवाह की
एक प्रक्रिया है इसमें आकार प्रकार बनते बिगड़ते जा रहे हैं !
इसीप्रकार से किसी वृक्ष के सूखने के बाद भी उस लकड़ी में परिवर्तन होते रहते हैं उसे
तमाम प्रकार के आकार प्रकार दिए जाते हैं क्रमशः विभिन्न स्वरूपों में
परिवर्तित होते हुए वह लकड़ी अंततः एक दिन नष्ट हो जाती है !
जीवन और वृक्षों में होने वाले ऐसे सभी परिवर्तन ब्रह्मांडीय प्रवाह में अपने आप से होते रहते हैं बिल्कुल उसी प्रकार से जैसे किसी नदी की धारा में सबकुछ
बहता चला जा रहा हो बहने वाली प्रत्येक वस्तु प्रतिपल एक नए प्रकार की
दिखाई पड़ती है जिस पर उसका अपना बस नहीं होता है कि वो अपने को किसी एक ही
आकार प्रकार स्वरूप आदि में स्थापित रख सके !
ऐसी परिस्थिति में यदि कोई पूँछे कि यह सब कुछ बहकर कहाँ जाएगा तो ये
केवल उस नदी को पता होना चाहिए किंतु नदी में भी बाढ़ हो या न हो इस पर उसका
कोई बश नहीं है इसीलिए नदी किसी को कुछ बताती नहीं है ! नदी में बाढ़ का
कारण वर्ष है वर्षा का कारण बादल हैं बादलों का कारण सूर्य चंद्रादि आकाशीय
परिस्थितियाँ हैं उनका कारण समय है वह भी उसी ब्रह्मांडीय प्रवाह में बहती जा रही हैं !
इसलिए विषय का अनुसंधान करना हो तो नदी में बहती हुई चीजों की गति को
देखकर उसके आधार पर इस बात की भविष्यवाणी करना ठीक नहीं होगा कि यह सब कुछ बहकर कहाँ जाएगा!
क्योंकि यह जानने के लिए केवल गति ही नहीं अपितु अवरोधों एवं
अवरोधप्रकारों को भी ध्यान में रखना होगा कि आगे किस किस प्रकार के अवरोध
मिलेंगे जिनसे कुछ वस्तुएँ निकल सकती हैं और कुछ अपने बड़े आकार के कारण
नहीं भी निकल सकती हैं !बहने वाली कुछ वस्तुएँ निर्जीव हैं इसलिए वो तो
प्रवाह के साथ बहेंगी ही उनमें जो सजीव होंगी वो स्वयं तैर कर भी अपना
मार्ग चुन सकती हैं !इसलिए उचित यह होगा है कि नदी के गंतव्यस्थान बहाव तथा
बीच में अचानक आ जाने वाले अवरोधों एवं बीच में मिलकर उस प्रवाह को बढ़ा
देने वाले नदी नालों आदि के प्रभाव का अनुसंधान भी उसी के साथ किया जाए जो जो नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकते हैं!नदी के स्वभाव और परिस्थितियों का
अच्छी प्रकार से अनुसंधान करके ही इस बात का अनुमान लगाया जा सकता है कि
इस नदी के प्रवाह में बह रही वस्तुओं में से कौन कहाँ तक कितने समय में
पहुँच सकती है ! अनुसंधान की इस प्रक्रिया को वैज्ञानिकप्रक्रिया
माना जा सकता है क्योंकि इसमें नदी के स्वभाव परिस्थितियों प्रवाह आदि का
सम्यक अनुसंधान किया जाता है यही इस विषय का विज्ञान है !
इसके अलावा नदी
में बहती हुई चीजों की गति देखकर उसके आधार पर इस बात की भविष्यवाणी कर
देना ये ये कब कितनी दूरी पर पहुँचेंगी इसमें विज्ञान कहीं नहीं है अपितु
यह तो न केवल तीर तुक्का है अपितु विज्ञान शब्द का भी उपहास है !यही कारण
है कि इसके आधार
पर की जाने वाली भविष्यवाणियाँ मौसम भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों की
तरह हमेंशा दुविधा पूर्ण ही बनी रहती हैं क्योंकि इस प्रक्रिया में
विज्ञान के दर्शन ही नहीं होते हैं !
व्रह्मांड अनंत काल से चला आ रहा है !उसी के अनुसार सभी ऋतुएँ
प्रतिवर्ष अपने अपने समय पर आती जाती रहती हैं !समय पर अपना प्रभाव फैलाती
हैं और समय बीतते ही अपना प्रभाव समेटकर आगे बढ़ जाती हैं उसके बाद दूसरी
ऋतु आती है वो भी अपना प्रभाव फैलाती समेटती और निकल लेती है !इसी प्रकार
से सर्दी गर्मी वर्षा आदि सभी ऋतुएँ आती जाती रहती हैं सब कुछ यूँ ही बड़ी
तेजी से बीतता जा रहा है !
सूर्य चंद्रमा प्रतिदिन अपने अपने नियमों सिद्धांतों आदि के आधार पर
आकाश में उगते हैं और अपनी अपनी भूमिका का निर्वाह करते हुए अपना अपना
प्रभाव छोड़ते हैं उसे विस्तारित करते हैं और अंत में अपने विस्तार को
समेटते हुए अस्त हो जाते हैं !
इनके उस प्रभाव की न्यूनाधिकता के कारण जीव जंतुओं में अनेकों प्रकार
का पोषण प्राप्त होता है एवं उन्हीं विकारों से रोग आदि भी पैदा होते हैं
!प्रकृति में अनेकों प्रकार की प्राकृतिक अच्छाइयाँ बुराइयाँ दिखाई पड़ती
हैं उन्हीं से प्राकृतिक आपदाएँ जन्म लेती हैं!इसलिए इनसे संबंधित
पूर्वानुमान लगाने के लिए इससे संबंधित विज्ञान की खोज की जानी चाहिए !
जिम्मेदारियों से भागते मौसम विज्ञान का सच !
मौसम और विज्ञान दोनों को एक साथ लाया जाए -
मौसम
संबंधी वातावरण का भी अपना एक स्वभाव होता है उसके भी कुछ नियम सिद्धांत
आदि
होते हैं !जिनके आधार पर संपूर्ण प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखी जाती
हैं मौसमसंबंधी वातावरण भी तो उसी प्रकृति का ही अंग है इसलिए वह भी उन्हीं
प्राकृतिक नियमों सिद्धांतों के अनुशार ही चलता है !अतएव मौसम को समझने
के लिए आवश्यक है कि प्रकृति के उन
सिद्धांतों की खोज की जाए जिनके अनुसार वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से
संबंधित घटनाएँ घटित होती रहती हैं !इसके आधार पर दीर्घावधि मौसम
पूर्वानुमान भी निकाले जा सकते हैं !जो कृषि आदि से संबंधित कार्यों में
एवं फसल योजना बनाने की दृष्टि से बहुत सहायक होते हैं ! इससे प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित होने वाले संभावित वर्ग के बचाव कार्यों में बहुत मदद मिल जाती है !
मौसम संबंधी अनुसंधान की दृष्टि से वर्तमान समय में मौसम
विज्ञान के नाम पर जो विषय परोसा जा रहा है उसको पढ़कर उसके विद्वान बनने के
बाद भी उसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसके माध्यम से प्राकृतिक वातावरण को सही सही समझा जा
सके और उसके आधार पर मौसम संबंधी चक्र की सुव्यवस्थित व्याख्या की जा सके
!यही कारण है कि उन तथाकथित मौसम वैज्ञानिक विषयों के जो लोग विद्वान कहे
जाते हैं वे भी अभी तक खाली हाथ हैं उनके पास भी कुछ ऐसा नहीं है जिससे वे
मौसम को वास्तविक स्वरूप में परिभाषित कर सकें !इसलिए
ऐसे बिषयों को पढ़ने पढ़ाने वाले लोगों की परिस्थिति को कैसे समझा जाए
!मुख्य रूप से किसी विषय में निरर्थक आधारहीन गुणागणित लगाते रहने वाले
किसी व्यक्ति को उस विषय का विज्ञानविद कैसे माना जा सकता है !
मौसम संबंधी घटनाओं का समयचक्र आम लोगों की तो छोड़िए मौसम
वालों को ही अभी तक समझ में नहीं आ सका है !इसीलिए तो किसी वर्षा को
प्रिमानसून बताते हैं तो किसी को देर से आया मानसून बताते हैं !विज्ञान के
नाम पर ये सब कैसा आडंबर है !वर्षा विज्ञान के अनुसार वर्षा शुरू होने का प्रतिवर्ष
अलग अलग समय होता है कुछ दिन आगे पीछे होता जाता है इसीलिए वर्षा हमेंशा
अपने समय से होती है किंतु जो लोग वर्षा विज्ञान की समझ नहीं रखते हैं
उन्हें लगता है कि मानसून अबकी बार जल्दी आ गया या अबकी बार देर से आया !उसकी
तारीखें निश्चित किए पड़े हैं ऐसा लगता है कि जैसे मानसून तारीख देखकर आता
है तभी तो कहते हैं कि पिछले वर्ष मानसून इतनी तारीख़ को
आया था अबकी बार इतनी तारीख़ को आ रहा है हर घटना की टाइमिंग पर उसके क्रम
पर उसके वेग पर सवाल उठाते रहना ही ऐसे लोगों की वैज्ञानिकता है !ऐसे लोग
प्राकृतिक वातावरण के विषय में केवल अफवाहें फैलाते रहने में ही लगे रहते
हैं मौसम वैज्ञानिक अनुसंधान कर पाना इनके वश का है ही नहीं !
यही कारण है कि मौसम संबंधी सभी घटनाएँ ऐसे लोगों को प्रायः नई लगती
हैं हर घटना को वे आश्चर्य की दृष्टि से देखते हैं अबकी बार इतनी तारीख़ को
आया !पिछली बार इस महीने में आया था !इस वर्ष वहाँ उतने सेंटीमीटर वर्षा
हुई जबकि पिछली बार तो इतने सेंटीमीटर हुई थी !पिछली बार सितंबर की इतनी
तारीख़ तक वर्षा हुई थी अबकी इतनी तारीख़ तक ही हुई !पिछली बार जिन जिन जगहों
पर बारिश हुई थी अबकी बार उन सभी जगहों पर बारिश नहीं हुई इसलिए वर्षा का
वितरण ठीक नहीं रहा !अबकी बार कुछ जगहों पर कम या अधिक बारिश हो गई आदि
आदि !इसी प्रकार से सर्दी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा गर्मी ने इतने
वर्षों का रिकार्ड
तोड़ा है ऐसी बातें बोलने वाले लोग भी अपने को वैज्ञानकों की श्रेणी में
सम्मिलित मानते हैं यही तो बिडंबना है !ऐसी बातें बोलने का उद्देश्य क्या
है और इनसे लाभ क्या है !इसमें विज्ञान कहाँ है और वैज्ञानिक अनुसंधान क्या
हैं क्या यही सब सुनने के लिए ऐसे अनुसंधानों पर जनता के खून पसीने की
कमाई खर्च की जाती है !
चूँकि बारिश के कम या अधिक होने का अंदाजा हम नहीं लगा सके इसमें कमी
हमारी है हम उस विज्ञान को खोज ही नहीं सके इसलिए ऐसा हुआ किंतु अपनी कमी
को न स्वीकार करते हुए ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन या
ग्लोबलवार्मिंग को बता दिया जाता है !ये कौन सा सिद्धांत या कैसा विज्ञान
है !इसीप्रकार से चूँकि पिछले वर्ष की अपेक्षा इस वर्ष तूफान चक्रवात आदि
अधिक संख्या में आए इसका मतलब है कि ग्लोबलवार्मिंग का असर बढ़ रहा है
!धीरे धीरे तूफ़ान आने की संख्या बढ़ रही है अतिवर्षा और बाढ़ जैसी घटनाओं की
संख्या बढ़ रही है इसका कारण ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को मानलिया
जाता है !कुलमिलाकर इस प्रकार की निरर्थक और प्रयोजन विहीन बातों में वो
समय और धन बर्बाद किया जा रहा है जो मौसम संबंधी विज्ञान को खोजने के लिए
सरकारें अनुसंधान हेतु देती हैं !
ऐसी भ्रम की स्थिति केवल इसलिए बनी हुई है क्योंकि मौसम से संबंधित
विज्ञान को अभी तक खोजा ही नहीं जा सका है इसलिए प्राकृतिक चक्र का क्रम
किसी को समझ में आ नहीं रहा है इसीलिए मौसम के विषय में अनेकों निरर्थक
बातें करके केवल समय पास किया जा रहा है ! मौसम संबंधी घटनाओं को ट्रेन की
टाईमिंग की तरह से सेट करने के प्रयास क्यों किए जा रहे हैं !पिछले वर्ष
ऐसा इतनी तारीख को हुआ था इस वर्ष ऐसा क्यों नहीं हो रहा है !
ग्रहण भी प्राकृतिक घटना है किसी वर्ष किसी अमावस्या या पूर्णिमा को पड़ता
है तो किसी वर्ष नहीं पड़ता है !कभी सूर्यग्रहण पड़ता है कभी चंद्रग्रहण इनका
भी कोई ऐसा निश्चित नियम तो नहीं होता है कि इस वर्ष के इस महीने में
इतनी तारीख को इतनी देर तक प्रतिवर्ष ग्रहण पड़ेगा ही !यह सब कुछ अनिश्चित
होने के बाद भी जिस पद्धति या प्रक्रिया से ग्रहण पड़ने न पड़ने का न केवल
पूर्वानुमान लगा लिया जाता है अपितु यह भी पता लगा लिया जाता है कि यह
ग्रहण पड़ना कब शुरू होगा कितनी देर पड़ेगा और कब समाप्त होगा !इसके साथ ही
वह कहाँ दिखाई देगा और कहाँ नहीं दिखाई देगा इसका भी पूर्वानुमान लगा लिया
जाता है !तभी तो वह पद्धति या प्रक्रिया उसका विज्ञान है !
यहाँ वशेष ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रत्येक ग्रहण एक दूसरे से
बिल्कुल अलग होता है उसका कुछ भी एक दूसरे के साथ मिलाकर नहीं चला जा सकता
कि पिछली बार जैसा हुआ था अबकी बार वैसा क्यों नहीं हो रहा है ! ग्रहण में
तो हर कुछ हर बार नया होता है इसके बाद भी उस नयेपन का भी पूर्वानुमान लगा
लिया जाता है और वह भी सटीक बैठता है ! इसमें तो ग्रहण पड़ने से पहले ही नाप
कर बता दिया जाता है कि इस बार यह ग्रहण कितना पड़ेगा !जबकि वर्षा हो
चुकने के बाद बताया जाता है कि आज इतने सेंटीमीटर तक बारिश हुई !इसी
वर्षा को यदि ग्रहण पद्धति से निकाला जाता है तो वर्षा होने से पूर्व ही
अनुसंधान के द्वारा यह भी पता लगाया जा सकता है कि कब कितनी मात्रा में
पानी बरस सकता है !
इसीलिए लोगों को ग्रहण की प्रक्रिया बार बार बदलते रहने पर भी उसके
पूर्वानुमान पर इतना बड़ा विश्वास होता है इसीलिए तो लोग ग्रहण से संबंधित
अपने कार्यक्रम महीनों पहले बना लेते हैं कहीं जाना आना होता है तो टिकटें
बुक करवा लेते हैं !ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी पर उन्हें कभी कोई आश्चर्य भी
नहीं होता है और न ही भ्रम !क्योंकि ग्रहण विज्ञान के विषय में लोग
सुपरिचित हैं कि यदि बोल दिया गया है तो उसी समय ग्रहण पड़ेगा ही !जब लोग
ग्रहण विज्ञान से परिचित नहीं रहे होंगे उस समय इस विषय में भी भ्रम का
वातावरण रहा होगा जैसा वर्तमान समय में मौसम के विषय में दिखाई सुनाई पड़
रहा है !
जलवायु परिवर्तन -
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का क्रम तो सुनिश्चित है किंतु इनका प्रभाव
प्रत्येक बार अलग अलग तिथियों से प्रारंभ होता है और अलग अलग तिथियों तक
रहता है इसमें दो चार दसबीस दिन आगे पीछे होता रहता है !क्योंकि प्रकृति
का वातावरण पूरी तरह से एक दूसरे से जुड़ा हुआ है !उदाहरण स्वरूप में देखा
जाए तो फरवरी मार्च में जब सर्दी लगभग समाप्त प्राय हो जाए उसके बाद यदि
वर्षा होने लगे ओले गिरने लगें तो सर्दी की मात्रा कुछ दिन और आगे तक बढ़
जाएगी !इसी प्रकार से अक्टूबर नवंबर में यदि वर्षा बर्फवारी ओले आदि गिरने
की घटनाएँ घटित हो जाएँ तो वहीँ से सर्दी की मात्रा बढ़ने लगेगी !
इससे इस बात की पुष्टि नहीं मानी जानी चाहिए कि सर्दियाँ अब पहले से शुरू
होने लगीं हैं या बाद तक रहने लगी हैं !इसमें सर्दियों के बढ़ाने घटने का
कारण तो वर्षा और बर्फवारी ओले आदि को माना जाएगा !जिनके कारण सर्दी कुछ
दिन आगे से शुरू होने लगी या फिर कुछ समय पीछे तक रहने लगी है !इसी प्रकार
से वर्षा ऋतु का समय शुरू हो जाने पर भी वर्षा होने का समय कुछ बाद में
आता है तब पानी बरसना प्रारंभ होता है !किंतु जबतक पानी बरसना प्रारंभ नहीं
होता है तब तक तो गर्मी पूरी बनी रहती है इसलिए यह समय भी गर्मी की ऋतु
में ही जोड़ लिया जाता है और मान लिया जाता है कि गर्मियाँ अब आगे बढ़ती जा
रही हैं जबकि गर्मियाँ आगे बढ़ने का कारण उस समय वर्षा का न होना है !और
वर्षा न होने के कई कारण हो सकते हैं यह जानते हुए भी मौसमी लोगों ने यह
कहना प्रारंभ कर दिया है कि मौसम चक्र बदल रहा है !अरे इसमें नया क्या है
और आश्चर्य की बात क्या है ये तो प्रकृति का नियम है !
जहाँ तक बात जलवायु परिवर्तन की है तो जल और वायु में परिवर्तन हो
ही नहीं सकते यदि होंगे तो उन परिवर्तनों को जीवन सह कैसे पाएगा क्योंकि जल
और वायु के बिना जीवन संभव ही नहीं है और इस जल और वायु का जो स्वभाव है
और जो गुण हैं उसी स्वरूप में शरीरों को या जीवन को स्वीकार्य होंगे !जल का
स्वभाव है कि इसका स्पर्श ठंडा रहेगा !इसलिए जल को गर्म किया जाए किंतु
वह कुछ समय बाद ठंडा ही हो जाएगा क्योंकि शीतलता उसका स्वभाव है !इसी
प्रकार से वायु का लक्षण आकार रहित होकर स्पर्श करना है वो लक्षण आज भी
वायु में है इसलिए न तो जल में बदलाव हुआ है और न ही वायु में कोई बदलाव
हुए हैं ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन की कहानी को कैसे स्वीकार किया
जा सकता है !
इतना अवश्य है कि जल में 20 प्रकार के विकार होते हैं जबकि वायु में 80 प्रकार के विकार माने
गए हैं इसलिए जब जल और वायु में विकार बढ़ जाते हैं तब लोगों को लगता है कि
जलवायु परिवर्तन हो रहा है जबकि वो जलवायु परिवर्तन नहीं होता है अपितु जल
और वायु में विकार बढ़ जाते हैं !विकारों को बदलाव नहीं माना जा सकता है
!किसी के चोट लग जाए उससे उसका स्वरूप बिगड़ जाए तो इसे विकार माना जाएगा
बदलाव नहीं !
इसमें
जलवायु परिवर्तन तो समय से संबंधित घटना है जैसे जैसे समय बीतता जाता है
वैसे वैसे संसार की प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन आते जाते हैं किंतु उनका स्वभाव वही रहता है उसमें बदलाव नहीं होते हैं !कोई बच्चा
जन्म लेता है जवान होता है बूढ़ा होता है फिर ख़त्म हो जाता है इसी प्रकार से
कोई
पेड़ उगता है बड़ा होता है फूलता है फलता है इसके बाद सूख जाता है समाप्त हो
जाता है !इस प्रकार से बच्चे में और वृक्ष में जो भी बदलाव आते हैं
इन बदलावों को कोई विज्ञान रोक नहीं सकता है ये तो होने ही हैं हमेंशा से
होते ही रहे हैं और हमेंशा तक होते ही रहेंगे!उनका कारण समय है समय बीतता
गया और बदलाव होते चले गए ये बदलाव प्रयास पूर्वक भी रोके नहीं जा सकते
हैं!इसी प्रकार से ऋतुएँ बदलती रहती हैं कुछ महीनों तक सर्दी होती है फिर
क्रमशः सर्दी घटती और गर्मी बढ़ती चली जाती है धीरे धीरे कुओं नदियों
तालाबों झीलों आदि का पानी सूखता चला जाता है! पेड़ पौधे मुरझाने लग जाते
हैं! इसके बाद वर्षा ऋतु आती है उसमें पानी बरसने लगता है कुओं नदियों तालाबों झीलों आदि
में पुनः पानी भर जाता है पृथ्वी की प्यास तृप्त हो जाती है पेड़ पौधे फिर
हरे भरे हो उठते हैं !ये क्रम हमेंशा से चलता चला आ रहा है और हमेंशा तक
चलता रहेगा !ऋतुओं को न तो कोई बुलाने जाता है और न ही कोई बिदा करने जाता
है ऋतुओं में ये परिवर्तन समय के साथ साथ होते चलते हैं !ऐसे ही कोई
व्यक्ति एक समय में स्वस्थ होता है फिर अस्वस्थ हो जाता है वही फिर स्वस्थ
हो जाता है ! इस प्रकार से समय बीतता जा रहा है और समय के साथ साथ घटनाएँ घटित
होती चली जाती हैं !कोई व्यक्ति आज सुखी होता है कल दुखी हो जाता है फिर
सुखी हो जाता है ये भी समय के साथ साथ होने वाले बदलाव हैं !ऐसे ही संबंधों
के विषय में है !एक समय में जो संबंध सुख दे रहे होते हैं वही संबंध
उन्हीं लोगों को दूसरे समय में दुःख देने लगते हैं !कोई नई से नई वस्तु
लाकर घर में रख दी जाए उसका उपयोग किया जाए या न किया जाए किंतु उसमें धीरे
धीरे बिकार आने लगते हैं और वो ख़राब होने लगती है उसमें समय कम या ज्यादा
लगे किंतु समय के साथ साथ उसमें विकार आने ही लगते हैं !
संसार में ऐसी अनेकों प्रकार की अवस्थाएँ परिस्थितियाँ आकार प्रकार
आदि हैं जो समय के साथ साथ बनते बिगड़ते देखे जा सकते हैं समय बीतता जा रहा
है सभी में सभी जगहों पर परिवर्तन होते जा रहे हैं
इन परिवर्तनों को देखकर ही हमें इस बात का अंदाजा लगता है कि समय बीत
रहा है !ये बदलाव समय के बीतने की सूचना दे रहे होते हैं!इसलिए परिवर्तन का
कारण समय का स्वभाव है समय बदल रहा है उस कारण प्रत्येक वस्तु में बदलाव
होते दिखाई दे रहे हैं! नाव में बैठा हुआ व्यक्ति नौका के डगमगाने से भी
हिलता है इसलिए उस हिलने को उस व्यक्ति का हिलना न मानकर अपितु नौका का
हिलना माना जाएगा !वैसे भी यदि वो व्यक्ति हिलता तो अकेला हिलता किंतु यदि
नाव में बैठा हर कोई हिल रहा है सारा सामान हिल रहा है इसका मतलब उस हिलने
के लिए वह व्यक्ति जिम्मेदार नहीं अपितु वह नौका जिम्मेदार है !
इसीप्रकार से परिवर्तन केवल जल और वायु में होते तब तो जलवायु
परिवर्तन कहा जा सकता था किंतु सभी चराचर जगत में हो रहे हाँ सभी रहे
हैं प्रतिपल हो रहे हैं ऐसे में केवल जलवायु परिवर्तन को ही क्यों विषय
बनाया जाए !इसी से इतनी आपत्ति क्यों हो रही है !वैसे भी बदलाव यदि सभी जगह
और सभी वस्तुओं में हो रहे हैं तो जल और वायु में होने वाले परिवर्तनों
को रोक कर कैसे और कब तक रखा जा सकता है !नौका में बैठा व्यक्ति नौका के
हिलने पर भी न हिले ऐसा कैसे हो सकता है !
समय का असर तो प्रत्येक व्यक्ति वस्तु परिस्थिति आदि
पर पड़ता जा रहा है और सब में बदलाव होते जा रहे हैं !ऐसे बदलाव कोई आज से
नहीं हैं अपितु जब से सृष्टि का उदय हुआ है उसके पहले से और जब तक सृष्टि
रहेगी उसके बाद तक समय के कारण ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु में बदलाव तो
होते ही रहेंगे !क्योंकि सृष्टि का बनना बिगड़ना आदि प्रलय पर्यंत सब जितना
जो कुछ भी देखा सुना जाता है या कल्पना की जा सकती है उस सब में होने वाले
परिवर्तनों का कारण समय ही है !इसलिए इस सृष्टि में जब जीवन का पदार्पण ही नहीं हुआ था तब भी ऐसे परिवर्तन होते रहते थे!
ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन यदि हो भी रहा है तो वो समय प्रेरित है
उसमें जीवधारियों का कोई योगदान नहीं हो सकता है तथा मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के गलत होने में उसकी भूमिका भी नहीं है !
ग्लोबल वार्मिंग - गर्मी से संबंधित 40 प्रकार के विकार होते हैं !
अलनीनों और लानीना
-समुद्र के अंदर ये अग्नि होती ही नहीं है उसमें जो अग्नि होती है उसका
स्वभाव ही दूसरा होता है वो पानी से बुझती नहीं अपितु धधकती है !
अचानक घटित हुई कुछ प्राकृतिक घटनाएँ
प्रकृति होने घटित वाली सन 2018 के मई जून में चक्रवात आँधी
तूफ़ान आदि बहुत आए ऐसा क्यों हुआ इसका कारण किसी वैज्ञानिक के द्वारा नहीं
बताया जा सका और जो बताए गए वे विश्वसनीय नहीं थे इसलिए अंत में सच्चाई
कबूल करनी पड़ी कि "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात " अर्थात चक्रवात आने की
घटनाएँ उनके सिर के ऊपर से निकल रही थीं उन्हें समझ पाना वैज्ञानिकों के
बश की बात नहीं थी !
इसी प्रकार से 3-5-2019 को उड़ीसा के तट से टकराने वाले 'फनी' नामक
चक्रवात की टाइमिंग से वैज्ञानिक परेशान थे ऐसा सुना गया क्योंकि उन्होंने
चक्रवात आने के लिए उपयुक्त जिन कारणों को माना गया था एवं चक्रवातों के
लिए जिस समय की कल्पना की थी प्रकृति ने आचरण किया तो वैज्ञानिक परेशान थे
जबकि उन वैज्ञानिकों को मौसम विज्ञान की यदि थोड़ी भी समझ होती तो उन्हें
इस पर आश्चर्य नहीं होता !
7अगस्त 2018 से केरल में भीषण बारिश होनी शुरू हुई जिसमें केरल का एक भाग उस बाढ़ से अत्यंत पीड़ित हुआ जिसके
विषय में मौसम वालों ने कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की थी अपितु उन्होंने तो
अगस्त सितम्बर में सामान्य वर्षा की भविष्यवाणी की थी किंतु जब इतनी अधिक
वर्षा हो गई तब उन्होंने सच्चाई स्वीकार करते हुए कहा कि बारिश अप्रत्याशित
होने के कारण उनकी समझ से बाहर थी !इसका कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है !
जलवायुपरिवर्तन ग्रहण संबंधी भविष्यवाणियों पर तो कभी कोई असर नहीं
डाल पाता है पहर मौसम संबंधी घटनाओं पर ही उसका असर बार बार क्यों दिखाई
पड़ता है !
इसी प्रकार से 2013 में केदार नाथ जी में घटित हुई घटना के विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका किंतु जब घटना घटित हो गई तो उसका कारण ग्लोबल वार्मिंग को बता दिया गया !
ऐसे ही और भी घटनाएँ हैं जिनके विषय में कुछ न कह पाने की स्थिति में खड़े वैज्ञानिकों को जलवायुपरिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग को कारण बताकर अपनी प्रतिष्ठा बचानी पड़ती है !
इसलिए विश्वास पूर्वक यह कहा जा सकता है कि ग्रहण की तरह ही यदि मौसम
संबंधी विज्ञान की भी यदि खोज करने में सफलता मिली होती तो ग्रहण की तरह
ही इसकी भी सटीक भविष्यवाणियाँ की जा सकती थीं !
वर्तमान समय में आँधी तूफ़ान चक्रवात वर्षा आदि से संबंधित प्राकृतिक
घटनाएँ जब निर्मित हो जाती हैं तब मौसम वाले अपने रडारों एवं उपग्रहों के
माध्यम से देख पाते हैं तब शोर मचाते हैं चक्रवात इधर आ रहा है उधर आ रहा
है वहाँ घूम गया यहाँ ठहर गया आदि उनकी सुन सुन कर मीडिया वाले भी उसी प्रकार का हुल्लड़ मचाने लग जाते हैं ऐसी
बातें सुन सुन कर जो वातावरण तैयार होता है वो ऐसा लगता है कि जैसे कोई
पागल हाथी किसी गाँव में घुस आया हो और उससे भयभीत होकर गाँव वाले हुल्लड़
मचा रहे हों !
मौसम संबंधी ऐसी बातों से समाज का लाभ बहुत अधिक लाभ नहीं हो पाता है
क्योंकि समय इतना कम मिल पाता है कई बार तो बताया जाता है कि आज पानी
बरसेगा आज तूफ़ान आएगा आदि !कई बार समुद्र के सुदूर क्षेत्रों में यदि ऐसी
किसी प्राकृतिक घटना का निर्माण हो गया है तब तो कुछ बचाव के लिए कुछ समय
मिल भी जाता है अन्यथा नहीं !
इसलिए
मौसम संबंधी अनुसंधान के नाम पर जनता का धन और समय बर्बाद
करने से अच्छा है कि मौसम का विज्ञान खोजने के लिए प्रयास किए जाएँ अन्यथा
केवल विज्ञान विज्ञान कहने से मौसम विज्ञान नहीं हो जाएगा !इसलिए ऐसा उपाय
किया जाए ताकि हमेंशा के लिए भ्रम के वातावरण को समाप्त करने में मदद मिले
और समाज
को विश्वसनीय मौसम पूर्वानुमान उपलब्ध करवाए जा सकें !
विज्ञान और भ्रम -
संसार के व्यक्ति वस्तु स्थान विषय आदि जो कुछ भी जहाँ तक भी दिखाई सुनाई
पड़ता है या निराकार होकर केवल अनुभव के द्वारा जाना जा सकता है ऐसा
प्रत्येक विषय विंदु भाव आदि संसार में यदि अपनी
उपस्थिति बनाए हुए है या उसका अपना आस्तित्व है इसका मतलब है कि उसका कोई न
कोई निश्चित नियम सिद्धांत स्वभाव आदि अवश्य होगा जिसके अनुशार वो
संचालित होता है !किसी विषय के वही निश्चित नियम
सिद्धांत स्वभाव आदि को जिस ज्ञान के द्वारा सही सही समझा जा सके वही उस
विषय का विज्ञान होता है और जो व्यक्ति संबंधित विषय को समझ सके वही उस
विषय वैज्ञानिक !
आखिर क्या कारण है कि मौसम से संबंधित विज्ञान को न तो अभी तक खोजा जा
सका है और न ही खोजने की दिशा! में कोई काम ही हो रहा है इसे मौसमविज्ञान
केवल कहा जा रहा है इस कहे जाने को ही इसकी वैज्ञानिकता मान लिया जाएगा
क्या ? मौसम भविष्यवक्ताओं की कार्यशैली में विज्ञान तो कहीं दिखता नहीं
है केवल काम चलाऊ व्यवस्थाओं से समय पास करने की तैयारी चल रही है ! कुछ
राडार या उपग्रह यदि और भी लगा लिए जाएँगे तो वो पृथ्वी के किसी भाग में
उठे बादलों आँधी तूफानों के केवल चित्र ही तो भेज सकेंगे उसके बाद उन्हीं
चित्रों को देख देख कर वर्षा और आँधी तूफ़ान संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर
तीर तुक्के दौड़ाए जाते रहेंगे !ये तो उसी प्रकार की कला है कि जैसे ट्रेन
का मुख जिस ओर है और उसकी स्पीड जितनी है उस हिसाब से गुणागणित करके बताया
जा सकता है कि यह कितने बजे किस स्टेशन पर पहुँचेगी !यही ढंग तो मौसम
भविष्यवक्ताओं ने अपना रखा है !यही करने में उपग्रह और रडारों की मदद ली जा
रही है उपग्रह
और रडार तो मौसम भविष्यवक्ताओं के लिए केवल चश्मे का काम करते हैं जिसके
माध्यम से वो सुदूर क्षेत्रों में घटित हो रही वर्षा या आँधी देख पाते हैं
कि कब कहाँ कैसा मौसम बन रहा है उसके आधार पर
अंदाजा लगाया जाता है कि अब ये मौसम उड़कर किधर जाएगा उधर के लिए भविष्यवाणी
कर दी जाती है किंतु इसमें विज्ञान का उपयोग कहाँ है इसलिए इसे मौसम
विज्ञान कैसे माना जा सकता है !
जहाँ तक बात सुपर कंप्यूटर की है किंतु
सुपर कंप्यूटर रख भी लिए जाएँगे तो वर्तमान व्यवस्था को ही आगे बढ़ाने में
सहायक होंगे इसके अतिरिक्त मौसम के विषय में उनका वैज्ञानिक उपयोग और कैसे
किया जा सकेगा !उनसे यही होगा कि अधिक से अधिक डेटा संचित किया जा सकता है
उसके द्वारा डेटा शीघ्रता पूर्वक उपलब्ध किया जा सकता
है इसके बाद उस डेटा का मौसम वाले करेंगे क्या ? उनके पास इस डेटा की
उपयोगिता अनुसंधान की दृष्टि से तो है ही नहीं !उसके आधार पर यही बता सकते
हैं कि गर्मी ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा सर्दी ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा और वर्षा ने कितने वर्षों का
रिकार्ड तोड़ा !किस सन में कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिश हुई !किस वर्ष में
किस महीने की किस तारीख को मानसून कहाँ पहुँच गया था अबकी कितनी देरी से मानसून कहाँ पहुँच रहा है !किस वर्ष के किस महीने में कहाँ कितने सेंटीमीटर बारिश हुई थी !इस वर्ष कितने सेंटीमीटर हुई !
ऐसी निरर्थक बातों का किसानों या आम समाज के हित में क्या उपयोग है जनता
का ऐसी बातों से क्या लेना देना है !इसलिए अभी तक मौसम विज्ञान के
क्षेत्र में खोजने पर भी विज्ञान का कोई अंश नहीं मिलता है !आवश्यकता इस
बात की है कि मौसम विज्ञान के वैज्ञानिक सिद्धांतों को कैसे खोजा जाए
!उससे ध्यान भटकाने के लिए मौसम से संबंधित अनेकों प्रकार की कथा कहानियाँ
गढ़ी जा रही हैं जो गलत है !इसमें वैज्ञानिकता का प्रवेश होना बहुत आवश्यक
है !
कई बार कोई व्यक्ति किसी भी विषय में अनुसंधान कर लेने का दावा करने
लगता है और अपने को प्रमाणित वैज्ञानिक सिद्ध करने के लिए वो उस विषय की
गतिविधियों स्वभावों नियमों सिद्धांतों के बिषय में कोई कहानी सुनाने लगता
है !किंतु उसके द्वारा सुनाई जाने वाली वो कहानी सच है या नहीं उसका उस
संबंधित विषय से कोई संबंध है भी या नहीं इसका निर्णय कैसे किया जा सकता है
और कौन कर सकता है !क्योंकि जो विषय ही बिल्कुल नया है उसके विषय में किसी
ने पहली बार अनुसंधान किया है इसलिए स्वाभाविक है कि उस विषय में किसी
दूसरे को और कुछ भी नहीं पता होगा !इसलिए अनुसंधान करने वाला भी वही होगा
और उसका परीक्षण करने वाला भी वही होगा और उसके सही या गलत होने का निर्णय
देने वाला जज भी वही होगा !जो अनुसंधान प्रक्रिया के सिद्धांत की दृष्टि से
गलत है !
ऐसी परिस्थिति में उचित तो यह है कि अनुसंधान करने वाले को चाहिए कि वो
संबंधित विषय में कुछ ऐसी बातें बतावे जो किसी दूसरे को बिल्कुल पता ही न
हों !उनके अनुशार संबंधित विषय में कुछ ऐसी भविष्यवाणियाँ करे जो बाद में
सही एवं सटीक घटित हों !
यदि ऐसा होता है तब तो दावा करने वाले का अनुसंधान वास्तव में सच है और दावा करने वाला व्यक्ति उस विषय का वास्तव में वैज्ञानिक है !किंतु यदि ऐसा नहीं होता है तब
उसके द्वारा किसी भी बिषय के अनुसंधान से संबंधित जो भी दावा किए जा रहे
हैं वे सच नहीं हैं अपितु उसकी वो सारी केवल कोरी कल्पनाएँ ही हैं जिनका उस
रिसर्च से कोई संबंध नहीं है !भूकंपविज्ञान,
मौसमविज्ञान, ग्लोबलवार्मिंग, जलवायुपरिवर्तन, अलनीनो आदि से संबंधित
विज्ञान के नाम पर की जाने वाली निराधार कल्पनाएँ इसी श्रेणी में आती हैं
जिनका सत्य से दूर दूर तक कोई संबंध नहीं है !यदि
ऐसा न होता तो इन्हें आधार मानकर की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ
सच होनी चाहिए थीं जबकि व्यवहार में ऐसा होते नहीं देखा जाता है !प्रकृति
संबंधी घटनाएँ एक ओर घट रही होती हैं तो भविष्यवाणियाँ दूसरी ओर जा रही
होती हैं न इसमें कोई अनुसंधान है और न ही विज्ञान !ये तो एक जुगाड़ है जो
एक जगह किसी प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखकर दूसरी जगह वैसी ही घटनाएँ
होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है !
इसमें यदि विज्ञान का अंश होता तो उसके द्वारा अवश्य कोई ऐसा तरीका
खोजा गया होता जिससे किसी प्राकृतिक घटना के विषय में प्रत्यक्ष या
अप्रत्यक्ष कोई लक्षण प्रकट हुए बिना ही ,यंत्र या राडार आदि से प्राप्त
चित्रों को देखे बिना भी केवल विज्ञान के उन सिद्धांतों के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने की सटीक भविष्यवाणी की जा सकी होती तब तो वो विज्ञान माना जा सकता था अन्यथा किस बात का विज्ञान !
प्राकृतिक
घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों के लिए दो सबसे बड़ी बाधाएँ हैं किस घटना
के घटित होने के कारण भविष्य में लगभग कितने समय बाद दूसरी किस प्रकार की
घटना घटित होगी इस विषय पर अभी तक कोई सटीक अनुसंधान नहीं हुआ है जबकि यदि
ये विज्ञान है तो इस प्रकार के अनुसंधान होने चाहिए थे जो नहीं हुए हैं
!इसलिए ऐसी भविष्यवाणियों के किए जाने में केवल कुछ जुगाड़ों से काम चलाया
जा रहा है जबकि इनमें विज्ञानभावना का कहीं अता पता ही नहीं है !
प्राकृतिक घटनाओं का विज्ञान क्या है ?
वर्तमान समय में मौसम संबंधी प्राकृतिक अनुसंधानों के नाम पर केवल तापमान के बढ़ने घटने का डेटा संग्रह किया जाता है उसी तापमान के आधार पर अलनीनों
लानीना
जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी कुछ कल्पनाएँ की गई हैं जिनके अपने
अनुशार अलग अलग नाम रख लिए गए हैं उनके कुछ कुछ लक्षण भी बता दिए गए हैं
उन लक्षणों का मौसम पर पड़ने वाला असर भी बता दिया गया है !उसी
असर के आधार पर वर्षा आँधी तूफ़ान आदि के विषय में मौसम वाले लोग कुछ तीर
तुक्के लगाते भी हैं जिन्हें वे लोग मौसम संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ
बताते हैं यदि वो सच निकलतीं तब तो इस गुणागणित को आधार बनाकर इसे
वैज्ञानिक अनुसंधान का स्वरूप दिया भी जा सकता था किंतु मौसम वालों की मौसम
संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ हमेंशा गलत ही निकलती हैं यदि सौ में दस
बीस बार सही हो भी जाए तो वो केवल तुक्का बैठ गया
होता है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसमें सब कुछ केवल काल्पनिक है विज्ञान का कहीं कोई अंश नहीं होता है !
तापमान के बढ़ने घटने के
आधार पर की जाने वाली मौसमी भविष्यवाणियाँ आधार रहित एवं अवैज्ञानिक हैं
!ऐसे लोगों को यदि पूर्ण विश्वास है कि मौसम में आनेवाले बदलावों का कारण
तापमान का बढ़ना घटना ही है तब तो प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के आसपास
अलनीनों और लानीना की खोज में टकटकी लगाए बैठे रहने से अच्छा है कि अनुसंधान
सूर्य और उसके प्रभाव पर होना चाहिए जिससे इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा
सके कि पृथ्वी पर या समुद्रों में सूर्य का प्रभाव कब कैसा पड़ेगा !इससे इस
बात का भी पता लग जाएगा कि भूमध्य रेखा के आसपास प्रशांत महासागर में सूर्य का प्रभाव कब कैसा पड़ेगा !पृथ्वी का तापमान
बढ़ने का आधार भी तो सूर्य ही है यदि मुख्य कारण सूर्य ही है तब तो
अलनीनों लानीनों या ग्लोबल वार्मिंग का शोर शराबा करने से अच्छा है कि
सूर्य के पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव पर ही वैज्ञानिक अनुसंधान करने की ही
कोई वैज्ञानिक विधि खोज ली जाए उससे तो अलनीनों
लानीना जैसी परिस्थितियाँ पैदा होने की भी भविष्यवाणी की जा सकती है यदि
वो सही निकल जाए तो उसके आधार पर मौसमसंबंधी पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता
है इस प्रक्रिया के अनुशार भविष्यवाणी करने का कोई वैज्ञानिक आधार तो बनेगा
!
वर्तमान समय में मौसम वालों की मौसम संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ तो सच होती नहीं हैं और जो अल्पावधि की मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ दो चार दिन पहले की जाती हैं उनमें विज्ञान होता कहाँ है
!वो तो एक संगति है मौसम की संपूर्ण गतिविधि वायुसंचार पर आश्रित होती है
!वायु ही बादलों को एक जगह से दूसरी जगह उड़ाकर ले जाती है और आँधी तूफ़ान
तो स्वयं में ही वायु है ! ऐसी परिस्थिति में किसी क्षेत्र में घिरे बादल
उड़कर किधर जाएँगे और कहाँ कब पहुँचेगें इसी प्रकार से एक जगह पर उठा आँधी
तूफ़ान किस देश या प्रदेश में कब कब पहुँचेगा इसका अंदाजा वायु के रुख के
आधार पर लगा लिया जाता है ! वायु जिस दिशा की ओर जितनी गति से बह रही है
यदि उसी दिशा की ओर उतनी ही गति से चलती रहेगी तो यह वायु किस देश या
प्रदेश में किस दिन किस समय पहुँच सकती है उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया
जाता है कि एक स्थान पर उठे बादल या आँधी तूफ़ान आदि कब कहाँ पहुँच सकते
हैं !चूँकि वायु की दिशा और गति निश्चित तो होती नहीं है वो तो कभी भी अपनी
दिशा और गति बदल सकती है ऐसी परिस्थिति में उसके आधार पर लगाया जाने वाला
वर्षा बाढ़ और आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित अंदाजा गलत होने की पूरी संभावना
हमेंशा बनी रहती है ! इसलिए ऐसे लगाए जाने वाले मौसम संबंधी अंदाजों को
विज्ञान कैसे माना जा सकता है !आखिर विज्ञान इसमें है क्या ? यदि किसी नदी
में अचानक बाढ़ आ जाए तो वो बाढ़ संबंधी जल आगे कब किस देश प्रदेश या शहर आदि
में पहुँचेगा इसका अंदाजा उस नदी में आए हुए बाढ़ के जल की गति के आधार पर लगा लिया जाता है !किंतु इसमें विज्ञान तो कुछ भी नकोई भविष्यवाणी करना वो भी तो इसी प्रकार का अंदाजा ही है !
मनुष्य का स्वभाव है कि वो प्रकृति और जीवन संबंधी सभी विषयों में
सभी प्रकार का अंदाजा लगाकर ही आगे बढ़ता है !कोई चिकित्सक किसी रोगी की
चिकित्सा करता है तो उस रोगी के स्वस्थ होने का अंदाजा लगाकर ही चलता है
!किसान फसल योजना बनाते समय या व्यापारी व्यापार योजना बनाते समय उस विषय
से संबंधित अंदाजा लगाकर तो चलते ही हैं !
सीमित विषय वस्तु का अंदाजा लगाना हो तो आँकड़े भी सीमित जुटाने
पड़ते हैं किंतु यदि विषय वस्तु का क्षेत्र विस्तारित है तो आँकड़े जुटाने
में भी उस विस्तार को ध्यान में रखकर चलना होगा !अब समुद्र में यदि आँधी
तूफ़ान उठता है या बादलों का समूह इकठ्ठा होता है तो इनसे संबंधित भावी
अंदाजा लगाने के लिए समुद्र की सीमा में आए बादलों और आँधी तूफानों के
आँकड़े तो जुटाने ही होंगे !किंतु उस आँकड़े जुटाने की उस प्रक्रिया को या
उनके आधार पर वर्षा और आँधी तूफ़ान संबंधी लगाए जाने वाले अंदाजे को विज्ञान
कैसे माना जा सकता है !
समुद्र के विस्तारित क्षेत्र में घटने वाली मौसम संबंधी घटनाओं को
देखने के लिए कोई साधन तो बनाना ही पड़ेगा वो भले कोई उपग्रह या राडार ही
क्यों न हो !उससे देखने का मतलब भी तो देखना ही होता है इसलिए उसे विज्ञान
कैसे माना जा सकता है उसमें दूरस्थ घटनाओं को देखने का साधन कोई भी हो
किंतु जो मौसम संबंधी अंदाजा लगाया जाता है उसमें विज्ञान तो कहीं नहीं है !
कल्पना कीजिए कि यदि वर्षा और आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं से
संबंधित कोई लक्षण दूर दूर तक किसी भी रूप में कहीं प्रकट ही न हुए हों
तो ऐसी परिस्थिति में यदि सूखा वर्षा ,आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं से संबंधित किसी
पूर्वानुमान का पता लगाना हो तो किस आधार पर लगाया जा सकता है !इसका यदि
कोई आधार खोज लिया जाए तो उसे विज्ञान सम्मत माना जा सकता है !
मौसम के विषय की वैज्ञानिक पद्धति -
प्राकृतिक वातावरण को देखकर, सुनकर,सूँघकर,चखकर,
छूकर प्रकृति का अध्ययन किया जा सकता है क्योंकि प्राकृतिक परिवर्तनों के
कारण सभी में बदलाव होते रहते हैं !देखे जा सकने योग्य प्रकृति के लक्षणों
को एवं पशु पक्षियों के व्यवहार को देखकरके उसके आधार पर मौसम संबंधी कुछ घटनाओं
का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !इसके लिए आँखें प्रमाण होती हैं क्योंकि
देखने का काम आँखों से ही होता है !सुनने का काम कानों से होता है इसलिए
प्रकृति में सुनाई पड़ने वाले विभन्न प्रकार के शब्द ,बादलों का गर्जन बिजली
की कड़क, पशु पक्षियों की बोलियाँ भविष्य में मौसम में आने वाले बदलाओं
की पूर्व सूचना दे रहे होते हैं !इसी प्रकार से सूँघने का काम नासिका का
होता है इसलिए नासिका को प्रमाण मानकर प्रकृति में अनुभव की जाने वाली
गंध,मिट्टी की सुगंध,पेड़ पौधों एवं पशु पक्षियों की गंध, द्रव्यों आदि की
गंध में बदलाव समय समय पर होते रहते हैं जिनका अनुसंधान करके भविष्य में
मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं !ऐसे ही चखने का काम जिह्वा
का है प्रत्येक द्रव्य का स्वाद समय और स्थान के अनुसार बदलता रहता है
जिसका अनुसंधान करके ऐसे क्षेत्रों में घटित होने वाले प्राकृतिक
परिवर्तनों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !इसी प्रकार से प्रकृति में
दिखाई देने वाली बहुत सारी ऐसी वस्तुएँ पेड़ पौधे फल फूल और जीव जंतु आदि
होते हैं जिनका स्पर्श करके उसकी मृदुता कठोरता आदि के आधार पर भविष्य में
प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
मौसम बदलने से कुछ दिन,कुछ सप्ताह कुछ महीने पहले यहाँ तक कि भूकंप जैसी
कुछ प्राकृतिक आपदाओं में 6 महीने पहले तथा प्रकृति में होने वाले कुछ बड़े
बदलावों से कुछ वर्ष पहले एवं कुछ दीर्घ प्राकृतिक बदलाव होने से कुछ दशक
या कुछ शताब्दियाँ पहले से प्राकृतिक तत्वों में उस प्रकार के बदलाव आने
लगते हैं !किसी के स्वरूप एवं आचार व्यवहार में बदलाव आने लगते हैं
!प्रकृति में घटित होने वाले कुछ अव्यक्त या व्यक्त शब्दों निर्जीवों या
सजीवों के द्वारा प्रकट हुए शब्दों में बदलाव आने लगता है !इसी प्रकार से प्रकृति में व्याप्त निर्जीवों और सजीवों से
निकलने वाली गंध में परिवर्तन होने लगता है !कुछ खाद्य पदार्थों का स्वाद
बदलने लगता है वो जिस स्वाद के लिए जाने जाते हैं उनमें उस स्वाद की मात्रा
घट या बढ़ जाती है !जो खाद्य पदार्थ मीठे स्वाद के लिए जाने जाते हैं उनमें
मधुरता की कमी हो जाती हैं ऐसे ही अन्य स्वादों को समझा जाना चाहिए !इसी
प्रकार से कुछ सजीवों निर्जीवों का स्पर्श बदलाव आने लग जाता है !
इसी प्रकार से प्रकृति में और बहुत सारी चीजें हैं जो अपने अपने गुण
धर्म छोड़ने लग जाती हैं ! मिर्च अपना कटु स्वभाव छोड़ने लगता है गन्ना अपनी
मधुरता इमली अपनी खटास एवं कुछ पौधों के पुष्प अपनी सुगंध छोड़ने लगते हैं
!कुछ जीव जंतुओं को सर्दी की ऋतु आनंद होता है कुछ को गर्मी में कुछ को
वर्षात में किंतु प्रकृति में बदलाव आते ही इनके स्वभाव में भी बदलाव होने
लगता है ! सामान्यतः बरगद के पेड़ की छाया ,कुएँ का पानी और ईंट का घर
सर्दी में गरम एवं गर्मी में ठंडे रहते हैं ये इनका सामान्य स्वभाव है
किंतु जब मौसम बिगड़ने वाला होता है तो इनके स्वभाव भी कुछ समय पहले से
बदलने लगते हैं !आम जैसे कुछ वृक्षों में दूसरी ऋतुओं में भी फल फूल होते
अचानक और अकारण ही देखे जाते हैं !जिस क्षेत्र में भूकंप जैसी या किसी अन्य प्रकार की बड़ी प्राकृतिक घटना का निर्माण होने लगता है तो उससे काफी पहले से प्रकृति धीरे धीरे अपने गुण धर्म छोड़ने लगती है !
वस्तुतः समय
का स्वाद भी होता है सुगंध भी होती है शब्द भी होते हैं स्वरूप भी होता है
और स्पर्श भी होता है इसी प्रकार से विभिन्न समयों से संबंधित हवाएँ होती
हैं !विभिन्न ऋतुओं के अनुशार हवाओं का भी स्वाद सुगंध आदि बदलता रहता है
!सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का समय तथा प्रतिदिन सुबह दोपहर और शाम आदि
का समय अपने अपने गुण धर्म के कारण पहचान लिया जाता है!प्रत्येक
समय का दृश्य अलग होता है जिसे देखकर हर समय के शब्द अलग होते हैं जिन्हें
सुनकर हर समय की सुगंध अलग होती है जिसे सूँघकर प्रत्येक ऋतु का स्वाद अलग
होता है जिसे चखकर,
प्रत्येक ऋतु का स्पर्श अलग होता है जिसे स्पर्श करके सभी जीव जंतु पेड़
पौधे आदि अपने अपने समय को पहचान लिया करते हैं और उसी के अनुशार वो
व्यवहार करने लगते हैं !
वृक्ष बारहों महीने खुले आसमान में खड़े रहते हैं सर्दी गर्मी वर्षा
आदि सब कुछ सहते हैं किंतु फूल और फल तभी देते हैं जब उनकी ऋतु आती है !इसी
प्रकार से खेत में कुछ बीज गिर जाते हैं पड़े रहते हैं उसमें खाद पाँस पानी
आदि सब कुछ दिया जाता है जोताई निराई आदि सब कुछ किया जाता है किंतु में
अंकुर तभी फूटता है जब उनकी अपनी ऋतु आती है तब तक वो बीज वैसे ही जमीन
में पड़े रहते हैं यहाँ तक कि बथुआ खरथुआ जैसी घासों के बीज खेतों पड़े पड़े
पूरी बरसात सहते हैं किंतु न अंकुर देते हैं और न ही सड़ते हैं किंतु उनका
समय आते ही वो उगने लगते हैं !इसी प्रकार से सभी फसलों की अपनी अपनी ऋतुएँ
होती हैं उसी समय के अनुसार उन फसलों का व्यवहार देखा जाता है !
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र विशेष में कुछ पक्षी विदेशों या सुदूर
स्थानों से उड़कर वर्ष में एक बार निश्चित समय पर आते हैं और एक निश्चित समय
तक रहकर फिर वापस चले जाते हैं इसके बाद फिर अगले वर्ष उसी समय में आ जाते
हैं !अक्सर
देखा जाता है कि सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय पर आती हैं
सुबह शाम दोपहर आदि अपने अपने समय पर आती है किंतु ये केवल समय ही नहीं
अपितु इन अलग अलग समयों के अलग अलग गुण धर्म स्वाद और सुगंध आदि होती है
!इसी प्रकार से विभिन्न ऋतुओं में अलग अलग दिशाओं से चलने वाली हवाओं के
अलग अलग गुण
धर्म स्वाद और सुगंध आदि होते हैं !ये सब उन क्षेत्रों के प्राकृतिक
वातावरण के अनुशार होते हैं जिनके अनुशार जीवन जीने वाले पेड़ पौधे जीवन
जंतु आदि उसी रूप में चला करते हैं !बसंत में पतझड़ होता है कोयल कूकती है
!प्रातः काल में मुर्गे बोलने लगते हैं सूर्योदय होते ही कमल खिलने लगते
हैं सूरज मुखी के पुष्प सूर्य की ओर देखने लगते हैं रात्रि में कुमुदिनीको मुकुलित होती है !
ऐसे ही प्राकृतिक वातावरण में बहुत सारे पेड़- पौधे ,जीव - जंतु आदि हैं जो
ऋतु और समय के अनुसार अपनी अपनी दिनचर्या बदलते रहते हैं जबकि उन्हें न
तो उन ऋतुओं का ज्ञान होता है और न ही उस समय का !उनके पास ऋतुएँ देखने के
लिए कोई पंचांग या कैलेंडर आदि नहीं होता है और न ही इसकी समझ ही होती है
!इस विषय में वे
न ही किसी से पूछते हैं और न ही उन्हें कोई बताता है इसी प्रकार से सुबह
दोपहर शाम आदि का समय देखने के लिए इनके पास कोई घड़ी भी नहीं होती है
!इसके बाद
भी उन पेड़ पौधों से लेकर जीव जंतुओं तक को विभिन्न ऋतुओं का तथा सुबह
दोपहर और शाम आदि समय का
ज्ञान कैसे हो जाता है !
विज्ञान क्या है ?
किसी
भी विषय की प्रकृति अर्थात स्वभाव को समझने का प्रयास करना ही उस विषय
का अनुसंधान है और जिस पद्धति प्रक्रिया या ज्ञान आदि के द्वारा उस विषय को
समझा जा सके वही उस विषय का विज्ञान है !जिस व्यक्ति को अपनी विद्या
बुद्धि विवेक आदि के द्वारा उस विषय के स्वभाव को समझने में सफलता मिली हो
वही उस विषय का वैज्ञानिक माना जाएगा !
इसके अलावा जिस विषय के स्वभाव को अभी तक समझा ही न जा सका हो इसका मतलब
है कि उस विषय का विज्ञान क्या है ये अभी तक किसी को पता ही नहीं है
क्योंकि जिस दिन जिस विषय का विज्ञान किसी को पता लग जाता है उसके बाद उस
विषय के रहस्यों को समझना आसान हो जाता है !इसलिए जिस विषय का विज्ञान ही न
खोजा जा सका हो उस विषय का वैज्ञानिक कोई कैसे हो सकता है ! वैसे भी किसी
भी पद्धति प्रक्रिया या ज्ञान आदि के द्वारा जिस विषय को समझना संभव ही न
हो सका हो ऐसी किसी पद्धति प्रक्रिया ज्ञान आदि को उस विषय का विज्ञान नहीं
माना जा सकता है !
प्रकृति या जीवन से संबंधित किसी विषय में रिसर्च करना आवश्यक हो और
रिसर्च के नाम पर कुछ किया भी जा रहा हो किंतु वो रिसर्च है या नहीं इसकी
समीक्षा भी तो की जाती होगी !क्योंकि रिसर्च का मतलब ही अँधेरे में तीर
मारना होता है किंतु अँधेरा इतना भी न हो कि अनुसंधान का कोई आधार ही न हो
!इसलिए समीक्षा इस बात की हमेंशा की जानी चाहिए कि कहीं उसमें समय और
संसाधनों का ब्यर्थ में ही दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है ! कई बार सरकारी
कामकाज की दृष्टि से कुछ करते दिखने के लिए कुछ कुछ करते रहा जाता है !उसी
तरह से रिसर्च के नाम पर कुछ न कुछ करते रहना पड़ता है भले ही उस किए जाने
का संबंध उस विषय से हो ही न जिस विषय का रिसर्च किया जा रहा हो !ऐसी
परिस्थिति में रिसर्च के नाम पर कुछ न कुछ करते हुए केवल समय ही पास करना
होता है !ऐसा होते कई बार देखा जाता है !
कई बार तो प्राकृतिक विषयों पर रिसर्च करने का दावा करने वाले लोग संबंधित
विषय का रहस्य खोल पाने में निरंतर असफल होते चले जा रहे होते हैं उन्हें
विषय को समझने में किंचित मात्र भी सफलता नहीं मिल पाई होती है !ऐसी
परिस्थिति में कुछ लोग अपनी असफलता को छिपाने के लिए उस विषय में कोई
कहानी गढ़ लेते हैं ऐसे लोग उस कल्पित कहानी के आधार पर यह प्रदर्शित करना
चाहता है कि उन्होंने उस विषय को समझ लिया है तो क्या ऐसे लोगों की झूठी
बातों पर विश्वास करके बिना किसी सत्य साक्ष्य के ही उन्हें वैज्ञानिक मान
लिया जाना चाहिए ?भूकंप के विषय में चाहें टैक्टॉनिक प्लेटों की बात हो या
पृथ्वी के अंदर संचित गैसों के दबाव से भूकंप आने की इन्हें अभी तक
सत्यापित नहीं किया जा सका है !
किसी भी विषय में रिसर्च करने से पहले प्रत्येक व्यक्ति को उस विषय में एक
काल्पनिक ढाँचा तैयार करना होता है वो रिसर्च जैसे जैसे आगे बढ़ता जाता है
वैसे वैसे उसका बहुत सारा अंश अप्रासंगिक होने के नाते छूटता जाता है
इसीप्रकार से बहुत सारा अंश नया जुड़ता चला जाता है और वह रिसर्च जैसे जैसे
सफलता की ओर बढ़ता जाता है वैसे वैसे उसके विश्वसनीय अंश उस रिसर्च का
महत्वपूर्ण रहस्य समेटे हुए प्रकट हो जाते हैं !
किसी भी विषय का अनुद्घाटित रहस्य खोलने के लिए ही उस विषय के रिसर्च की
आवश्यकता पड़ती है इसमें लक्ष्य उस विषय का रहस्य खोलना होता है प्रक्रिया
कोई भी क्यों न अपनानी पड़े !यह बिल्कुल उस प्रकार की व्यवस्था होती है जैसे
किसी बंद ताले की चाभी किसी बहुत बड़े चाभियों के समूह में खो गई हो जिसे
खोजकर वह ताला खोलने की चुनौती हो इसके लिए उन चाभियों में से इस ताले की
चाभी का अनुसंधान करने का लक्ष्य लेकर यदि रिसर्च प्रारंभ किया गया हो ऐसी
परिस्थिति में उस टेल की चाभी खोजने के लिए चाभियों के समूह से एक एक
चाभी उठाकर उस प्रत्येक चाभी से ताला खोलने का प्रयास करना होगा यह
प्रक्रिया तब तक चालू रहेगी जब तक वह ताला खोलने में सफलता नहीं मिल जाती
है !ऐसा तभी संभव हो पाएगा जब उस ताले की अपनी चाभी खोजने में सफलता मिल
जाएगी चाभी मिलते ही ताला खोल लेने के साथ ही यह रिसर्च पूर्ण मान लिया
जाएगा और जिससे ताला खुल जाएगा उसी चाभी को उस ताले की वास्तविक चाभी मान
लिया जाएगा !क्योंकि रिसर्च का लक्ष्य ताला खोलने के लिए उसकी चाभी खोजना
है !चाभी मिल जाने के बाद वो उस ताले की चाभी है कि नहीं इसका परीक्षण किए
बिना ये कैसे मान लिया जाएगा कि उस ताले की यही चाभी है !इसके लिए इस चाभी
से उस ताले का खुलना ही एक मात्र विकल्प है !
संसार में प्रत्येक रिसर्च का विषय एक ताले के समान होता है उस रिसर्च
की पद्धति सूत्र प्रक्रिया आदि इसी संसार में विद्यमान है जिसके द्वारा उस
रहस्य को खोलना है !वस्तुतः रिसर्च का उद्देश्य निर्माण नहीं होता है अपितु
निर्मित वस्तु की खोज करना होता है !संसार में जितने भी रिसर्च हो रहे हैं
उसमें केवल उन्हीं वस्तुओं की रिसर्च की जा रही है जो प्रकृति में पहले से
ही निर्मित की जा चुकी हैं !रिसर्च करने वाले का काम केवल उस प्रक्रिया को
खोजना होता है !जो जिस विषय से संबंधित स्वभाव प्रक्रिया या विधि विधान
आदि को समझने में सफल हो जाता है वही उस विषय का वैज्ञानिक मान लिया जाता
है !
आखिर क्या कारण है कि प्राकृतिक घटनाओं या प्राकृतिक
आपदाओं से संबंधित विषय रूपी ताले को खोलने के लिए अभी तक उसकी चाभी नहीं
खोजी जा सकी है उसका कारण यही है कि ताला जब एक चाभी से नहीं खुलता है तो
दूसरी तीसरी चौथी आदि चाभी बदल बदल कर ताला को खोलने का प्रयास करना होता
है किंतु प्राकृतिक घटनाओं के रहस्य बिना खुले ही कुछ कथा कहानियाँ गढ़ कर
बिना किसी परीक्षण के अपनी कल्पनाओं को ही चाभी मान लिया गया है !उसे ही
विज्ञान बताया जा रहा है उसी कल्पना प्रसूत विषय को विज्ञान की तरह
प्रस्तुत किया जा रहा है जिसके कभी भी गलत होने की संभावना बनी हुई है
!सच्चाई ये है कि भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात वायु प्रदूषण जैसे
किसी भी विषय से संबंधित रहस्य को सुलझाने में अभी तक सफलता नहीं मिली है
ऐसी परिस्थिति में इनसे संबंधित रिसर्च प्रक्रिया को बदल बदल कर प्रकारांतर
से आगे बढ़ने का प्रयास किया जाना चाहिए !इसके अलावा यह कतई उचित नहीं है
बिना निष्कर्ष पर पहुँचे ही रिसर्च के नाम पर की गई किसी भी गतिविधि को
रिसर्च मान लिया जाए !
प्रकृति में अनेकों प्रकार की घटनाएँ घटित होती रहती हैं किंतु उधर
सहसा हर किसी का ध्यान ही नहीं जाता है !इसी प्रकार से सामान्यसूखा या
पानी बरसने तथा न बरसने आदि के विषय में हर कोई न सोचता है न अनुभव करता है
और न यह जानने का प्रयास ही करता है क्योंकि उससे किसी का अधिक हानि लाभ
नहीं हो रहा होता है इसलिए समाज के आम लोग उधर ध्यान भी नहीं दे रहे होते हैं !किंतु प्रकृति से संबंधित जब कोई
बड़ी घटना घटित होती है तब तो सबका ध्यान उधर चला ही जाता है !क्योंकि
अक्सर लोग उस तरह की घटनाओं के भुक्त भोगी रहे होते हैं !ऐसी बड़ी
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में समाज के प्रत्येक वर्ग का चिंतित होना
स्वाभाविक ही है !
जिस विषय को समझने से मेरा आशय यह है कि जो जिस विषय को समझकर अपने को उस
बिषय का वैज्ञानिक होने का दावा करे वो व्यक्ति उस विषय में कुछ ऐसे नए
तथ्य पूर्वानुमान आदि बतावे जिसके विषय में किसी को कुछ न पता हो और जो सही
घटित हों !
विज्ञान के विषय में कहा जाता है कि विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन,
अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो प्रयास किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या
सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग
और परिकल्पना से स्थापित एवं व्यवस्थित करता है।वस्तुतः किसी भी विषय के क्रमबद्ध ज्ञान को विज्ञान कह सकते है। किसी
विषय की प्रकृति का विशेष ज्ञान ही विज्ञान है।प्रकृति का अर्थ स्वभाव
होता है किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान घटना आदि के स्वभाव को समझ लेना ही
विज्ञान है !इसलिए किसी भी चीज के बारे में विज्ञान के नाम पर यों ही कुछ
बोलने व तर्क-वितर्क करने से अच्छा है कि उस पर कुछ प्रयोग
किये जायें और उसका सावधानी पूर्वक निरीक्षण किया जाय।
ध्यान रहे कि कभी-कभी किसी वस्तु के विषय में मस्तिष्क में पहले से
कुछ धारणा बनी रहती
है, जो निष्पक्ष निरीक्षण में बहुत बाधक होती है। इसलिए निरीक्षण के समय इस
प्रकार की धारणाओं से उन्मुक्त होकर कार्य करना चाहिए। अनुसंधान का मतलब है कि ब्रह्माण्ड के किसी घटक या घटना का निरीक्षण किया जाए फिर एक संभावित परिकल्पना की जाए जो प्राप्त आकडों से मेल खाती हो इस परिकल्पना के आधार पर कुछ भविष्यवाणियाँ की जाएँ !प्रयोग से
प्राप्त आँकडों से वे भविष्यवाणियाँ यदि सत्य सिद्ध होती हैं तो ठीक और यदि नहीं होती हैं तो आँकडे और प्राक्कथन में
कुछ असहमति तो परिकल्पना को तदनुसार परिवर्तित किया जा सकता है !जब तक सिद्धान्त और प्रयोग से प्राप्त आँकडों में पूरी सहमति न हो जाय तब तक उसे सच न माना जाए !ये विज्ञान का सिद्धांत है !
जब जैसा मौसम तब तैसी भविष्यवाणियाँ -
मौसम भविष्यवाणियाँ जितनी हिचकिचाहट के साथ की जाती हैं उससे सुनने
वालों को विश्वास ही नहीं होता है कि इनमें कुछ सच भी होगा !लोगों को लगता
है कि मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर कुछ तीर
तुक्के बैठाए जा रहे हैं जो सही हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं
!यही कारण है कि कुछ तो भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं इसीलिए कुछ पर जनता
का भरोसा नहीं बन पाता है !कई बार पूर्वानुमान के नाम पर वर्षा होने की
तारीखें दो दो दिन आगे बढ़ाते जाते हैं तब तक वह प्रदेश बाढ़ में फँस जाता है
लोगों को अपने बचाव के लिए वह स्थान छोड़ने लायक भी नहीं रह पाता है !
ऐसे में मौसम भविष्यवक्ता लोग कहते हैं कि मैंने तो भविष्यवाणी की थी
!किंतु सच्चाई तो ये है कि आपने दो दिन तक वर्षा होने की भविष्यवाणी की थी
जनता ने सोचा दो दिन बाद वर्षा रुक जाएगी भविष्यवाणी
का मतलब ही यही था किंतु तब तक कह दिया गया कि दो दिन और बरसेगा !जनता ने
दो दिन की और हिम्मत बाँध ली उसके बाद तीन दिन तक वर्षा होने की
भविष्यवाणी कर दी गई !तब तक जनता का भरोसा ऐसी भविष्यवाणियों से उठ चुका
होता है किंतु अब यदि वो आत्म रक्षा के लिए कहीं जाना भी चाहें तो घर से
लेकर रोड तक पानी इतना अधिक भर चुका होता है
कि उन्हें मज़बूरी में छतों पर समय पास करना होता है !ऐसी परिस्थिति में ये
भविष्यवाणियाँ समाज को कितना लाभ पहुँचा पाती हैं इनका चिंतन भी तो किया
जाना चाहिए !
ऐसी भविष्यवाणियों में प्रायः विज्ञान
कम अपितु तीर तुक्के ज्यादा काम किया करते हैं !जिनमें एक जगह आँधी तूफ़ान
उठा देखकर किसी दूसरे स्थान पर
आँधी तूफ़ान आने की घोषणा कर दी जाती है !इसी प्रकार से कहीं एक जगह बादल
उठे देखकर किसी दूसरे स्थान
पर वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है !इस प्रकार की घटनाएँ कहीं एक
जगह घटित होती देखने के लिए रडार आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है जिनसे
देखकर जैसा एक जगह हो रहा होता है उसकी गति और दिशा देखकर दूसरी जगह वैसा
होने का अनुमान लगा लिया जाता है किंतु इसमें विज्ञान कहाँ है ये तो तीर
तुक्का है इसीलिए ऐसे में पहली बात तो पूर्वानुमान गलत होने की संभावना
बहुत अधिक बनी रहती है और दूसरी बात ऐसे पूर्वानुमान लगाने में अधिक से
अधिक तीन चार दिन पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसमें भी यदि घटना की
गति और दिशा वही बनी रही तब पूर्वानुमान सही घटित होने की संभावना बन पाती
है अन्यथा नहीं !
इसी प्रकार से कहीं भूकंप आया देखकर पृथ्वी के
अंदर की प्लेटों के टकराने की या धरती के अंदर बढ़े
गैसों के दबाव की कहानियाँ
सुनाने में विज्ञान कहाँ है !जब तक ऐसी किसी भी परिकल्पना के आधार पर लगाए
जाने वाली घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान सही नहीं होने लगते हैं तब तक तो वे सब केवल कोरी कल्पनाएँ ही हैं जिन्हें कोई कैसे भी कर सकता है!
कई बार देखा जाता है कि जब किसी क्षेत्र में कोई भूकंप आता है तब जो लोग
अपने काल्पनिक विज्ञान के आधार पर भूकंप आने के विषय में किसी भी प्रकार का
कोई पूर्वानुमान करके नहीं बता पाए थे! वही लोग भूकंप आने के बाद अचानक
इतना अधिक सक्रिय हो उठते हैं मानों उनका तीसरा नेत्र ही खुल गया है !वो
तरह तरह से और अधिक बड़े बड़े भूकंपों के आने का अंधविश्वास फ़ैलाते देखे
जाते हैं!अक्सर कहते सुने जाते हैं कि अभी और झटके लगेंगे! आप लोग घरों
के बाहर निकलकर खुले स्थान में आ जाएँ !किंतु बेचार यह नहीं बता पाते हैं
कि कब तक के लिए लोग घरों से बाहर आ जाएँ !इसीलिए ये विज्ञान नहीं अपितु
विज्ञान की काल्पना है !
ऐसे प्रकरणों में देखा जाए तो भूकंपों के विषय में कोई वैज्ञानिक दृष्टि
कहाँ झलकती है इसमें खोज क्या है अनुसंधान किस बात का किया गया है और
खोजने से मिला क्या है कुछ भी तो पारदर्शी नहीं है सारा कुछ गोलमाल है
!आखिर भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों का उद्देश्य केवल ऐसी सलाहें देना ही
तो नहीं था !
वर्षा होने लगे तो पीछे पीछे कहने लगना अभी और वर्षा होगी अभी दो
दिन बरसेगा, चार दिन और बरसेगा, इसी बीच धूप निकल आवे तो कहने लगना अब गर्मी
पड़ेगी तापमान बढ़ जाएगा आदि !आँधी तूफ़ान आवे तो अभी और आँधी तूफ़ान आने जैसी
रट लगाने लगना !वायु प्रदूषण बढ़ने लगे तो अभी और बढ़ने की भविष्यवाणियाँ
करने लगना और घटने लगे तो घटने की भविष्यवाणियाँ करने लगना !ऐसी काल्पनिक
बातों में विज्ञान के तो दर्शन भी नहीं होते और न ही ऐसा कहने के पीछे कोई वैज्ञानिक सिद्धांत
ही होता है इसीलिए ऐसी बातों का सच्चाई से कोई संबंध भी नहीं होता है !
वस्तुतः ऐसी बातों को विज्ञान तो तब माना जा सकता है जब वर्षा आँधी
तूफ़ान आदि बिषयों पर एक बार भविष्यवाणी करके शांत हो जाए इसके बाद बिना
किसी पूर्वाग्रह के उन भविष्यवाणियों के सही या गलत होने का निरीक्षण परीक्षण किया जाए उनमें अंतर आने पर उनके विषय में अनुसंधान किया जाए कि ऐसा क्यों हुआ! भविष्यवाणियों और घटनाओं में तारतम्य बनाया जाए तब तो विज्ञान अन्यथा कहीं भविष्यवाणियाँ जा रही हैं
तो कहीं घटनाएँ घट रही हैं बीच बीच में भविष्यवक्ता लोग उछल कूद करके गैप को
रफू करने में लगे रहते हैं ऐसी परिस्थिति में इस बात का अंदाजा ही नहीं लग पाता है
कि भविष्यवाणी की आखिर क्या गई थी और वो सही कितनी हुई है तथा जो गलत हुई है उसमें गलत होने का कारण क्या है!विज्ञान के
क्षेत्र में ऐसा घालमेल नहीं चलता है !
कई बार ऐसी भविष्यवाणियाँ गलत होती हैं उसमें आवश्यकता इस बात के
अनुसंधान की होती है कि आखिर ये भविष्यवाणियाँ गलत क्यों हुईं उनका कारण
क्या था !उसे खोजकर दोबारा उनका ध्यान रखा जाए ताकि वैसी गलतियाँ दोबारा न
हों !किंतु ऐसे प्रकरणों में गलतियाँ खोजने के बजाए उसमें अचानक पश्चिमी
विक्षोभ के सक्रिय होने की कहानी गढ़ लेना, जलवायुपरिवर्तन या
ग्लोबलवार्मिंग जैसी बातों को घुसा लाने से उस समय बेशक अपने को वह गलत
भविष्यवाणी करने के बाद भी निर्दोष सिद्ध कर लिया जाता है किंतु उस प्रकार
की गलती दूसरी बार भी होने की संभावना बनी रहती है !इसप्रकार से आवश्यक
अनुसंधान में ताला लगा लिया जाता है !
इस विषय में यदि वास्तव में जिम्मेदारी निभाई जाए तो आवश्यकता इस बात
की होती है कि भविष्यवाणी करने से पूर्व उन सभी बातों के विषय में पहले
अनुसंधान कर लिया जाए जिन जिनका असर मौसम संबंधी घटनाओं के बनने बिगड़ने पर पड़ता है यही तो रिसर्च है अन्यथा रिसर्च किस बात का !
पश्चिमी विक्षोभ ,जलवायुपरिवर्तन या ग्लोबलवार्मिंग या इसके अलावा भी जो
ऐसे प्रभाव हों जिनसे मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के प्रभावित होने की
संभावना हो उन्हें भविष्यवाणियाँ गलत होने पर आगे कर देने के बजाए इनके
संभावित प्रभाव को भविष्यवाणियाँ करने से पहले ही उस अनुसंधान में
सम्मिलित किया जाना चाहिए !ताकि बाद में इनके विषय में बताने की नौबत न आवे
क्योंकि समाज तो ऐसी बातों को जानने के बिषय में रूचि नहीं रखता है और न
ही उसे इन पर अनुसंधान ही करना होता है उसे तो केवल सही सटीक एवं दीर्घावधि
मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है जिससे समाज के जीवन में हानि लाभ
संभव होता है !
मौसम पूर्वानुमान जनता की आवश्यक आवश्यकता है क्योंकि मौसमीघटनाओं पर
उनका जीवन निर्भर है किसानों का तो सब कुछ मौसम के ऊपर ही आश्रित होता है
किसानों को कुछ महीने पहले फसल योजना बनानी पड़ती है कुछ फसलें कम वर्षा
में भी की जाती हैं जबकि कुछ फसलों को अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है !मक्का जैसी फसलों को कम पानी की आवश्यकता होती है जबकि धान जैसी फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है !इसलिए जिस वर्ष जैसी वर्षा होने की संभावना होती है उस वर्ष उस प्रकार की फसलें बोने की योजना बनानी पड़ती है !
इसी प्रकार से मार्च अप्रैल के महीने में जब गेहूँ चना मटर सरसों अलसी आदि
की फ़सल तैयार होती है !उसी समय पशुओं के लिए भूसा आदि तैयार होता है
जिसके ऊपर किसानों को पूरे वर्ष तक निर्भर रहना होता है !किसानों की आर्थिक
परिस्थिति अक्सर कमजोर रहती है इसलिए फसल तैयार होते ही उसे बेचने उनकी
मज़बूरी होती है ऐसी आवश्यकताएँ होती हैं फसलों की लागत लगाने के लिए लिया
हुआ ऋण फसल तैयार होने पर चुकाना होता है !जुलाई अगस्त में मका धान आदि की
फसलें की जाती हैं जिस वर्ष जैसी वर्षा होगी उस वर्ष वैसी वे फसलें होंगी
!जिस प्रकार की फसलें होने की संभावना होती है किसान उस प्रकार की उपज की
आशा लगाते हैं !यदि फसलें अच्छी होने की संभावना होती हैं !तो किसान अप्रैल
मई में तैयार आनाज भूसा आदि बेचकर कुछ पैसे तैयार कर लेते हैं जिससे उनकी
उस समय की उस प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है !यदि जुलाई अगस्त में मका धान आदि की फसलें अच्छी होने की संभावना कमजोर होती है तो अप्रैल मई के महीने में ही पूरे वर्ष के लिए आनाज एवं भूसा आदि संरक्षित कर के रखना पड़ता है इसलिए अप्रैल मई के महीने में ही अगस्त
सितंबर में कैसी वर्षा होगी किसानों को इसके विषय में सटीक पूर्वानुमानों
की आवश्यकता होती है !यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो किसानों के द्वारा इस
समय लिए गए निर्णय यदि गलत हो जाते हैं तो उसके परिणाम उन्हें पूरे वर्ष
भुगतने पड़ते हैं !
इसलिए किसानों की ऐसी आवश्यकताओं की आपूर्ति की अपेक्षा मौसम संबंधी
भविष्यवाणी करने वालों से होती है !इसके लिए मौसम संबंधी दीर्घावधि की
भविष्यवाणियाँ सच होनी आवश्यक हैं किंतु वर्तमान परिस्थितियों में ऐसे
पूर्वानुमान सच प्राप्त होने बहुत कठिन हैं !
परिस्थितियाँ
ये हैं कि पिछले तेरह वर्षों में जो वर्षा संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ
की गईं उनमें केवल पाँच वर्षों की भविष्यवाणियाँ ही सही निकल सकी हैं
!इससे अधिक तो किसानों के अपने द्वारा लगाए गए वे तीर तुक्के भी सही हो
जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में जहाँ इतना अधिक घालमेल हो ऐसे पूर्वानुमानों
को विज्ञान सम्मत कैसे कहा जा सकता है !
मौसम संबंधी चिंता -
17 अप्रैल 2019 को भीषण बारिश आँधी तूफ़ान बिजली गिरने आदि की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी तैयार गेहूँ भीग गया !लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हुई !
इस विषय में जो भी पूर्वानुमान बताए गए वो इतने ढुलमुल थे कि लोगों
का उन पर विश्वास नहीं हो सका !दूसरा पूर्वानुमान में और घटना घटित होने
में अंतराल इतना कम था कि चाहकर भी बचाव कार्य कर पाना संभव न था !संभवतः
यही कारण रहा है लोग चाहकर भी अपनी उपज का संरक्षण नहीं कर सके !जबकि वो
ऐसा करना चाह रहे थे !ऐसी परिस्थिति में जो नुक्सान होना था जब वो हो ही
गया तो ऐसे पूर्वानुमान किसानों के लिए किस काम के !
ऐसी परिस्थिति में एक प्रश्न तो उठता है कि मौसम संबंधी ऐसी भविष्यवाणी
करने का क्या लाभ जिनका जनता लाभ ही न उठा सके !यदि जनता के लिए
भविष्यवाणियाँ की जाती हैं तो जनता के काम भी तो आनी चाहिए !जनता की
जरूरतों पर यदि खरी न उतरें तो ऐसी भविष्यवाणियाँ किस काम की !जो समाज के
लिए उपयोगी नहीं हो पाती हैं !ऐसा अधिकतर होता रहता है !
सही और सटीक मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर एक ओर तो समाज मौसम संबंधी इस प्रकार की परेशानियाँ सह रहा होता है दूसरी ओर मौसम भविष्यवाणियाँ करने वाले लोग बता रहे होते हैं इस वर्ष गर्मी ने इतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा, सर्दी ने उतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा,वर्षा
इतने सेंटीमीटर हुई ! वो लोग ऐसी बातें अक्सर बताया करते हैं जिनसे
किसानों को या समाज को क्या लाभ !समय पास करने के लिए की जाने वाली ऐसी
निरर्थक बातों में जनता का समय नहीं बर्बाद किया जाना चाहिए !
अभी अप्रैल 2019 में जून से सितंबर के बीच सामान्य वर्षा होने का
पूर्वानुमान बताया गया !ये भविष्यवाणी सच होने की संभावना 39 प्रतिशत बताई
गई है ! इसके साथ ही सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना 32 प्रतिशत बताई
गई है सामान्य से अधिक होने की संभावना 10 प्रतिशत बताई गई है !अत्यंत कम
होने की संभावना 17 प्रतिशत और अत्यधिक वर्षा होने की संभावना 2 प्रतिशत
बताई गई है !इसमें 5 प्रतिशत कम या अधिक होने की बात भी कही गई है !इसके
बाद इसी समय के विषय में जून में एक और भविष्यवाणी की जाएगी !इसके बाद
तीसरी भविष्यवाणी अगस्त के पहले सप्ताह में की जाएगी !
भविष्यवाणी करने का सिद्धांत है कि जो भविष्यवाणी
50 प्रतिशत से अधिक सही सिद्ध होगी वही भविष्यवाणी मानी जा सकती है इससे
कम सही होने तीर तुक्के लगा सकता है कई बार वो भी 50
प्रतिशत या उससे भी अधिक सही सिद्ध होते देखे जाते हैं !दूसरा सामान्य और
सामान्य से कम वर्षा होने का प्रतिशत लगभग एक है किंतु इनकार सूखा के लिए
भी नहीं किया गया है उसे भी 17 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर रखा गया है
!सामान्य से अधिक वर्षा होगी इसे 10 प्रतिशत के साथ इसे चौथे स्थान पर रखा गया है !ऐसी ढुलमुल भविष्यवाणियों का अर्थ किसान क्या निकालें !उसमें भी अभी जून में एक और भविष्यवाणी का पेंच फँसा हुआ है !ऐसी परिस्थिति में इस दीर्घावधि भविष्यवाणी के आधार पर किसान अग्रिम फसल योजना किस प्रकार से बनावें और कैसे उसका लाभ लें जहाँ कुछ निश्चित ही नहीं है !
मौसम संबंधी ऐसी कुछ घटनाएँ जिनकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकी -
मौसम
संबंधी कुछ घटनाएँ ऐसी भी घटीं जो मौसम भविष्यवक्ताओं को या तो समझ में
नहीं आईं या उन्होंने उधर ध्यान ही नहीं दिया या फिर ऐसे विषयों पर
विज्ञान की कोई गति ही नहीं है !
ऐसी परिस्थिति में अपने द्वारा पूर्व में बोली गई परस्पर विरोधी बातों में से तत्कालीन घटित परिस्थिति के
अनुकूल कोई एक बात पकड़ कर बैठ जाना और कहना कि मैंने तो इसकी भविष्यवाणी
पहले ही कर दी थी ये ठीक नहीं है ! 3 अगस्त 2018 को भारतसरकार के द्वारा अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा
होने की भविष्य वाणी की गई थी किंतु 7 अगस्त 2018 को केरल में भीषण
वर्षात शुरू हुई जो 14 अगस्त तक चली जिसमें केरल डूबने उतराने लगा !यहाँ तक कि बाढ़पीड़ित
केरल के मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि मुझे इस विषय में सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के
द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई थी और ही ऐसी कोई भविष्यवाणी ही की गई थी !
इसी प्रकार से सन 2018 में
11 अप्रैल और 2 मई को आए तूफान की वजह से जन धन का भारी नुकसान हुआ था।
तूफान में हजारों पेड़ टूट गए थे।मई जून में आँधी तूफ़ान की कई बड़ी घटनाएँ
घटित
हुईं जिनके विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई अग्रिम अनुमान नहीं
बताया गया था !उधर जब घटनाएँ घटित होने लगीं जनधन की हानि भी काफी मात्रा
में
होने लगी तो मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी बहते पानीमें हाथ धोने की
कोशिश की गई उनके द्वारा भी आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणियाँ
भी की जाने लगीं जो गलत निकलत चली गईं !7-8 मई के विषय में सरकारी मौसम
भविष्य
वक्ताओं ने भीषण तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई कुछ प्रदेशों में
सरकारों के द्वारा सतर्कता बरतते हुए स्कूल कालेज बंद कर दिए गए ! जबकि उस
दिन हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसी घटनाएँ पूरे समय में घटित होती रहीं
और
इनका पूर्वानुमान देने में भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती
चली गईं !छोटी मोटी घटनाएँ तो अक्सर घटित होती रहती हैं उनकी
भविष्यवाणियाँ तो लीपापोती करके सही सिद्ध कर ली जाती हैं किंतु
भविष्यवाणियां करने की योग्यता अयोग्यता तो बड़ी प्राकृतिक घटनाओं में ही
सामने आती है !बड़ी घटनाओं के विषय में तो सभी चिंतित
होते हैं इसलिए उधर सबका ध्यान जाता है !ऐसे समय झूठ को सच नहीं सिद्ध किया
जा सकता है इसीलिए ऐसे समय में मौसम भविष्यवक्ताओं की सच्चाई सामने आ ही जाती है !
इसी प्रकार से 16
जून 2013
को केदारनाथ जी में आए सैलाव के विषय में भी यही हुआ था ! उस आपदा में
4,400 से अधिक लोग मारे
गए या लापता हो गए। 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया। इनमें 991
स्थानीय लोग अलग-अलग जगहों पर मारे गए। 11,091 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बह
गए या मलबे में दबकर मर गए। ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह
गई। 2,141 भवनों का नामों-निशान मिट गया। 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल
ध्वस्त हो गए। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30
हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट
हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या
क्षतिग्रस्त हो गए।मौसम विभाग के द्वारा इस विषय में भी कोई स्पष्ट
पूर्वानुमान नहीं बताया गया था ! ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ता
देश के किस काम आ सके !
ऐसे ही सन 2016 में 10 अप्रैल के बाद से शुरू होकर मई जून तक आधे भारत
में भीषण गर्मी होती रही इसी समय में आग लगने की हजारों घटनाएँ
घटित हुईं यहाँ तक कि बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में
चूल्हा न जलाएँ और हवन न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से
सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ इसी कारण से ट्रेन से पानी की
सप्लाई करनी पड़ी थी ! ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ
तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !इस वर्ष ऐसा होगा इस विषय में सरकारी मौसम
भविष्यवक्ताओं के
द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था देश आग लगने संबंधी भीषण
दुर्घटनाओं से जूझता रहा !मौसम भविष्यवक्ता न इसकी भविष्यवाणी कर सके थे और
इसी वर्ष ऐसा क्यों हुआ इसका कोई समुचित उत्तर भी नहीं दे सके थे !
इसी प्रकार से प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू
के
ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग
रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !
इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती
रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !
प्रधानमंत्री
जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी
संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने
सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि मौसमविभाग ने अपनी
भूमिका का निर्वाह किस प्रकार से किया !
प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए
एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से
बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाइ गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात
काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की
सोलिंग और बालू का
इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम
खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा
इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम विभाग के द्वारा इस विषय में भी कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों से देश किस प्रकार से लाभान्वित हो पा रहा है !
भूकंप के विषय में भविष्यवाणी का क्या मतलब ?
जो लोग भूकंपों के विषय में अक्सर कहते सुने जाते हैं कि हमें भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने में सफलता नहीं मिली है उनके द्वारा धरती के अंदर के गैसों के दबाव की बात हो या फिर
धरती के नीचे बारह टैक्टॉनिक के आपस में टकराकर भूकंप आने की बात हो ऐसी
बातें अभी तो केवल कोरी कल्पनाएँ हैं ये सच हैं या नहीं इस बात का
प्रमाणित अभी बाकी है !जिन कल्पनाओं के आधार पर भविष्य में भूकंप आने के विषय में पूर्वानुमान किए जाएँ और वे सही घटित भी हों तब तो धरती के अंदर की गैसों के दबाव की बात या धरती के नीचे बारह टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराकर भूकंप आने की बात पर भरोसा करना पड़ेगा !इसके अलावा केवल काल्पनिक कहानियों को विज्ञान मानकर उन पर इतना विश्वास नहीं किया जा सकता है !
वैसे भी जब ऐसे भविष्यवक्ताओं को पता है कि उन्हें भूकंपों के
पूर्वानुमान के विषय में कोई जानकारी नहीं है ऐसा वे स्वीकार भी करते हैं
तो उन्हें भूकंपों
के विषय में आधार विहीन झूठी भविष्यवाणियाँ करके समाज में अफवाहें नहीं
फैलानी चाहिए !यदि उन्हें रिसर्च ही करनी है तो करें किंतु उस रिसर्च को
भविष्यवाणी बनाकर तब तक प्रस्तुत करने की गलती न करें जब तक वो सही होंगी
ऐसा विश्वास न हो !
मौसम भविष्यवाणी करने वाले लोग जब जैसा मौसम देखते हैं तब तैसी
भविष्यवाणियाँ करते हैं बादल उठे देखते हैं तो पानी बरसाने की भविष्यवाणी
कर देते हैं आँधी तूफ़ान उठा देखते हैं तो आँधी उफान आने की भविष्यवाणी कर
देते हैं वही भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणियाँ करने में भी अपनाई जाने
लगी है !
25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भूकंप आया ही था उसमें जनधन की भारी हानि
हुई थी जनता भयभीत थी ही ऐसे समय जनता का मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता थी ताकि
भूकंपों के बिषय में समाज का डर कुछ कम हो वो तो किया नहीं गया अपितु उसके
दो महीने के बाद ही भविष्यवाणी करने वालों के द्वारा इतने बड़े महा भूकंप
के आने की भविष्यवाणी कर दी गई कि जो न मरता हो वो भी ऐसी भविष्यवाणी सुनते
ही डर कर मर जाए वो झूठी भविष्यवाणी !ऐसा विज्ञान किस काम का जिसका उपयोग
लोगों में अफवाह फैलाने के लिए किया जाता हो ! आप स्वयं देखिए -
भूकंप की भविष्यवाणी से संबंधित हिंदुस्तान हिंदी दैनिक में एक भविष्यवाणी प्रकाशित की गई -
नई दिल्ली, एजेंसी Last updated: Sun, 15 Jul 2018 02:59 PM IST
"चेतावनी: भारत में आ सकता है बड़ा भूकंप, तहस-नहस हो जाएगा सब कुछ
भूगर्भीय
हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों
ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की
तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ से भी ज्यादा हो सकती है और तब जान माल की
भीषण तबाही होगी। यह अध्ययन देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन
जियोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद, नेशनल सेंटर फॉर
अर्थ सीस्मिक स्टडीज, केरल और आईआईटी खड़गपुर ने किया है।
भविष्यवाणी के विषय में विशेष बात-
इस भविष्यवाणी को ठीक से पढ़ने से ज्ञात होता है कि इस भविष्यवाणी के
माध्यम से अफवाह फैलाने का काम अधिक किया जा रहा है इसके अलावा दूसरी बात
जो है वो ये की सरकार के सलाहकार की भूमिका अदा की जा रही है किंतु इन
दोनों कामों में विज्ञान की तो कोई भूमिका ही नहीं है !इतने संस्थानों की
सहमति से जो अनुसंधान हुआ उसमें यह भी नहीं बताया जा सका कि इतना बड़ा
भूकंप कब आएगा कहाँ आएगा ?यदि स्थान और समय बताया गया होता तो उस स्थान से
सौ दो सौ किलोमीटर आगे पीछे आ जाता और समय बताया गया होता तो उससे चार छै
महीने आगे पीछे आ जाता तब भी ऐसे वक्तव्यों की कुछ प्रासंगिकता होती यहाँ
तो निराधार ऐसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं आखिर क्यों ?
25
अप्रैल 2015 को नेपाल में भयानक भूकंप आया था जिससे सभी लोग डरे हुए थे
ऐसी परिस्थिति में उसी के दो महीने बाद इस प्रकार की निराधार अफवाहें
फैलाने से देश और समाज का शिवाय नुक्सान के और लाभ क्या हो सकता है
!वस्तुतः देश और समाज हिट में ऐसी अफवाहों पर रोक लगाई जानी चाहिए !
इसी प्रकार से इसीप्रकार से इंडिया टीवी ने भी एक भविष्यवाणी प्रकाशित की थी जिसका संक्षिप्त रूप यहाँ उद्दृत करते हैं -
"वैज्ञानिकों की सबसे डरावनी चेतावनी, 2018 में भूकंप से मचेगी तबाही !"
Updated on: January 31, 2018 13:10 IST
महीना बदलेगा और भूकंप
आएगा। ये बात हम किसी को डराने के लिए नहीं कह रहे हैं बल्कि ये दावा उस
रिसर्च में किया गया है जिसे अमेरिका की दो बड़ी यूनिवर्सिटीज के 2
प्रोफेसर्स ने किया है। उन वैज्ञानिकों के मुताबिक 2018 में कई बड़े भूकंप
के झटके आ सकते हैं। वो जलजला इतना तेज़ होगा कि बड़ी तबाही मच सकती है।
रिसर्च के मुताबिक आने वाले महाभूकंप का अलर्ट धरती ने भेजना शुरु भी कर
दिया है। बताया जा रहा है कि पिछले 4 साल से हर दिन पृथ्वी की रफ्तार कम हो
रही है और यही आने वाले साल में दुनिया के कई देशों में बड़े भूकंप की वजह
बन सकती है जिसमें हिंदुस्तान भी शामिल है।
महाभूकंप को लेकर जो दावा किया जा रहा है उसके मुताबिक - "2018 में अब तक के सबसे बड़े भूकंप आ सकते हैं भूकंप की तीव्रता 7.5 मैग्नीट्यूड से ज्यादा हो सकती है महाभूकंप दुनिया के किसी भी हिस्से में आ सकता हैहिंदुस्तान के कई इलाकों पर भी बड़े भूकंप का खतरा पृथ्वी के घूमने की रफ्तार कम होने से भूकंप का खतरा "
मोंटाना
यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी के घूमने की स्पीड हर
रोज़ कुछ मिलीसेकेंड्स में घट रही है और यही सेकेंड्स धरती के अंदर पैदा हो
रही एनर्जी को बाहर आने में बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं और नतीजा एक
विनाशकारी भूकंप के तौर पर सामने आ सकता है। क्योंकि अगर 2018 में भूकंप आया और उसकी
तीव्रता 7.5 मैग्नूीट्यूड से ज्यादा हुई तो ऐसी तबाही मचेगी जिसकी कल्पना
भी नहीं की जा सकती है।अगर कहीं भूकंप का एपीसेंटर समंदर के अंदर
हुआ तो सुनामी भी आ सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के रोजर बिल्हम और
यूनिवर्सिटी ऑफ मोंटाना की रेबेका बेंडिक ने भूकंप के बारे में रिसर्च किया
हालांकि इस रिसर्च में ये नहीं बताया गया कि वो कौन से इलाके हैं जहां
भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि जब पृथ्वी
की रफ्तार में फर्क आता है तो दिन छोटे या बड़े होने लगते हैं। इसका सबसे
ज्यादा असर भूमध्य रेखा यानी इक्वेटर के आसपास वाले इलाकों में देखा जाता
है।भूमध्य जैसा की नाम से पता चलता है ये रेखा पृथ्वी को दो बराबर
हिस्सों में बांटती है। भूमध्य रेखा दुनिया के 13 देशों से गुजरती है
जिसमें इक्वाडोर, कोलंबिया, ब्राजील, रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, केन्या,
मालद्वीव्स और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। यानी अगर वैज्ञानिकों की बात
सच निकलती है तो भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा इन्हीं देशों पर मंडरा रहा है।
हालांकि भारतीय भू-वैज्ञानिक ये भी दावा कर रहे हैं कि खतरा हिंदुस्तान के
इलाकों को भी है। महाभूकंप को लेकर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अपने इस दावे
का एक और आधार बताया है। उनके मुताबिक साल 1900 के बाद आए ऐसे भूकंप की स्टडी की गई जो 7 मैग्नीट्यूड से ज्यादा थे तो हैरान करने वाला सच सामने आया।
"पिछली सदी में पांच बार 7 मैग्नीट्यूड से ज्यादा के भूकंप आएहर बार भूकंप का संबंध पृथ्वी घूमने की रफ्तार से जुड़ा मिलापृथ्वी के किनारों पर छोटे बदलाव भी भूकंप से जुड़े हो सकते हैंइसी रिसर्च पर वैज्ञानिक 2018 में बड़े भूकंप की बात कर रहे हैं "
दुनिया
के किन देशों पर खतरा ज्यादा है, इसका सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है
लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि हिमालय के नीचे हलचल तेज़ है जो किसी भी
दिन बड़े भूकंप की वजह बन सकती है।
विशेष बात - इस
प्रकार से भूकंपों के आने का प्रमाणित कारण क्या है ये अभी तक किसी को
नहीं पता है तथा भूकंपों का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ये किसी को
नहीं पता है
!भूकंपों के विषय में अनुसंधान शुरू कहाँ से किया जाए ये किसी को नहीं
पता !भूकंपों के आने के लिए जिम्मेदार आकाश है या पाताल या पृथ्वी का ऊपरी
तल या फिर वायु मंडल में व्याप्त कोई परिस्थिति !
वस्तुतः भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने में जब तक सफलता
नहीं मिलती है तब तक भूकंपों के विषय में किसी की कल्पनाओं को गलत नहीं
कहा जा सकता है !जो लोग ऐसा मानते हैं कि हम तो भूकंप वैज्ञानिक हैं इसलिए
हम जो कहते हैं उसे ही प्रमाण माना जाना चाहिए किंतु ये बात
गलत है !यदि अभी तक ज्ञान की किसी धारा के द्वारा भूकंपों से संबंधित
पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिल पाती तो वो उस ज्ञान धारा को भूकंपों का
विज्ञान माना जा सकता था और उस ज्ञान धरा को खोजने वालों को वैज्ञानिक माना
जा सकता था !किंतु जब तक ऐसी किसी भी ज्ञानधारा का खोजना ही संभव नहीं हो
पाया तो किस बात का भूकंपविज्ञान और किस बात के भूकंप वैज्ञानिक !निरर्थक
ऐसी उपाधियों से किसी को अलंकृत करना स्वयं विज्ञान का भी अपमान है !
विज्ञान में पारदर्शिता बहुत आवश्यक है-
वस्तुतः
जिस किसी भी विषय के द्वारा किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान द्रव्य भाव आदि
के स्वभाव को समझ कर उस विषयी से संबंधित रहस्यों को खोल सकने में जो विषय
सक्षम हो वही उस विषय का
विज्ञान माना जाना चाहिए !इसके अलावा और किसी अन्य प्रकार का पूर्वाग्रह
इसमें
स्वीकार्य नहीं होना चाहिए !
चिकित्सा के क्षेत्र में ही लें तो किसी रोगी के शरीर की स्थिति का अध्ययन
,रोक के स्वभाव का अध्ययन उसके घटने बढ़ने का पूर्वानुमान एवं उस रोग से
मुक्ति दिलाने के लिए दी जाने वाली औषधियों के प्रभाव का अनुमान लगा लेने
की संपूर्ण ज्ञान धारा के संयुक्त स्वरूप को चिकित्सा विज्ञान कहा जाता है !
इसके अलावा रोग को जानने का दावा करने वाले एवं रोग से मुक्ति दिलाने
का दावा करने वाले लोगों को तब तक चिकित्सा वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता जब
तक वे इन विषयों को संपूर्ण रूप से समझ न पाते हों और ऐसे रोगों से मुक्ति
दिलाने में पारदर्शिता पूर्वक सक्षम न हों !
किसी रोगी को स्वस्थ करने का दावा करने वाले तो बहुत लोग हैं जादू
टोना करने वाले बाबा लोग,झाड़ फूँक करने वाले मुल्ला मौलवी लोग एवं और बहुत
सारे टोने टोटके करने वाले लोग बड़े बड़े
रोगों से मुक्ति दिलाने का दावा करते देखे जाते हैं किंतु उनके पास रोगों
को समझने की न कोई प्रक्रिया होती हैं और न ही कोई चिकित्सकीय प्रक्रिया ही
होती है !भूकंप वैज्ञानिकों की तरह वे भी केवल अपनी काल्पनिक बातों को ही
सबके मत्थे मढ़ना चाहते हैं !इसलिए उनकी तुलना चिकित्सावैज्ञानिकों से नहीं
की जा सकती है !चूँकि चिकित्सावैज्ञानिकों के
काम
में पारदर्शिता है उनकी औषधियों एवं आपरेशन आदि प्रक्रियाओं के परिणाम
विश्वसनीय हैं !इसीलिए इसे चिकत्सा की इस प्रक्रिया को विज्ञान मानने में
कहीं किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है !चिकित्सा पर सबका भरोसा है !इसके
अलावा जादू टोना आदि जो अन्य प्रक्रियाएँ हैं उनमें पारदर्शिता और
प्रमाणिकता का अभाव है हो सकता है कुछ हद तक वो चीजें भी सच हों किंतु उन
सच बातों को पारदर्शिता पूर्वक प्रस्तुत करने से पहले उन्हें विज्ञान नहीं
माना जा सकता अपितु उसे अंधविश्वास बताया जाता है !
यदि इसी प्रकार की कठोर कसौटी पर मौसम विज्ञान और भूकंप विज्ञान को
भी यदि कसा जाए तो ये विषय भी अभी तक विज्ञान की श्रेणी में आने योग्य नहीं
हैं अपितु ये भी अंधविश्वास ही हैं !
इसलिए सच यही है कि जो ज्ञान सिद्धांत
सूत्र या
प्रक्रिया आदि जिस विषय को समझने में सफलता दिला सके वही उस विषय का
विज्ञान होता है !इसके अतिरिक्त किसी विषय को विज्ञान कह देने या मान लेने
मात्र से वो विज्ञान नहीं हो जाता है वो तो अंधविश्वास है !यदि उस माने हुए
काल्पनिक विज्ञान से संबंधित विषय को समझने में उसका रहस्य खोलने में
सफलता मिल जाती है तब वो विषय विज्ञान की श्रेणी में स्थापित हो जाता है और
उस विषय को जानने वाले लोग उस विषय के वैज्ञानिक मान लिए जाते हैं !
इसके अतिरिक्त भूकंप जैसे जो ऐसे प्राकृतिक विषय हैं जिनके रहस्य खोलने के
लिए विद्वानों ने अनेकों प्रकार की प्रक्रियाएँ अपना रखी हैं तमाम प्रकार
के तीर तुक्के लगाए जा चुके हैं तरह तरह की काल्पनिक विधियाँ अपनाई जा रही
हैं तरह तरह की संभावनाएँ आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं !एक ओर तो धरती के
अंदर की गैसों के दबाव की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर पृथ्वी के अंदर
लावा पर तैरती बारह टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने
की काल्पनिक कहानियों की बात है ऐसी बातों को तब तक विज्ञान कैसे माना जा
सकता है जबतक ऐसी
कल्पनाएँ भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का निश्चित कारण खोजने में सहायक न
हों ! इससे भी बड़ी बात यह है कि उसके आधार पर भावी भूकंपों का
पूर्वानुमान लगाने में सफलता न मिल सके !यदि ऐसी शर्त नहीं होगी तब तो
भूकंप आने के कारण बताने वाले लोग तरह तरह की अनगिनत कहानियाँ गढ़ते सुनाते
रहेंगे और सभी लोग अपनी अपनी काल्पनिक कहानियों को विज्ञान बताते रहेंगे
!इसलिए
शर्त यही है कि भूकंपों
का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रक्रिया कोई भी क्यों न हो किंतु उसके
द्वारा लगाया गया भूकंपों का पूर्वानुमान यदि सही सिद्ध होता है तो उसे ही भूकंपविज्ञान
की श्रेणी में स्थापित किया जाना चाहिए !ऐसी प्रक्रिया से सफलता प्राप्त
करने वाले भूकंपवैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी हो सकेंगे तब तक न तो भूकंप
विज्ञान है और न ही कोई भूकंप वैज्ञानिक !!
इसी प्रकार से सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में जब जैसी
घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !जिस
प्रकार से किसी सूखी पड़ी हुई नदी में अचानक बाढ़ आ गई हो तो उस बाढ़ के पानी
की गति के आधार पर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बाढ़ का पानी किस दिन
कहाँ पहुँच पाएगा और प्रायः यह अंदाजा लगभग सही बैठ जाता है !किंतु
इसका अंदाजा लगाने वाली काल्पनिक प्रक्रिया को बाढ़विज्ञान या नदीविज्ञान
तो नहीं ही माना जा सकता है और न ही ऐसा अंदाजा लगाने वाले लोगों
को नदीवैज्ञानिक या बाढ़वैज्ञानिक ही माना जा सकता है !क्योंकि जिस विषय
का विज्ञान सिद्ध होना ही अभी बाकी है उस विषय से संबंधित कल्पनाएँ करने
वाले लोगों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है !
इसी नदी बाढ़ प्रक्रिया की तरह ही रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से मौसम
संबंधी घटनाएँ आगे से आगे देख ली जाती हैं इसके बाद वो जिस दिशा की ओर जाती
हुई दिखाई पड़ती हैं और उनकी जो गति होती है उसी दिशा में बादलों हवाओं आदि
की सघनता, उपस्थिति,
गति आदि देखकर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल या आँधी तूफान
आदि किस दिन किस दिशा के किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं
!इसी आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं की कल्पना कर ली जाती है जिसके गलत और सही
दोनों होने की संभावनाएँ अंत तक बनी रहती हैं !इसलिए इसे विज्ञान रूप में
स्वीकार करने में कठिनाई होना स्वाभाविक ही है !
मौसम भविष्यवक्ताओं की ओर देखा जाए तो अक्सर ऐसा होता है जब जो घटनाएँ
पृथ्वी या समुद्र के किसी भाग में घटित होना प्रारंभ हो चुकी होती हैं उसके
बाद उनके विषय में किसी दूसरी जगह उन घटनाओं के घटित होने की कल्पनाएँ उसी
हिसाब से कर ली जाती हैं !उन्हें वो लोग उनकी भाषा में भविष्यवाणियां
मानते हैं जबकि ये तो साधारण से कल्पनाएँ हैं जो एक ओर घटनाएँ
घटित होती जा रही होती हैं तो दूसरी ओर साथ साथ उनके विषय में उसी हिसाब
से बताया जा रहा होता है कि ये अब किन किन देशों या प्रदेशों की ओर बढ़
सकती हैं !जिन्हें वो लोग भले ही भविष्यवाणियाँ कहते हों किंतु ऐसी बातों
में भविष्यवाणियों की तरह का कुछ होता नहीं है !यह
तो उस विषय का अत्यंत सामान्य अनुमान होता
है जो घटना के आरंभ हो जाने के बाद ही लगाया जा सकता है ! घटना घटित होना
जब तक प्रारंभ नहीं हुआ होगा तब तक ऐसे अनुमान लगा लिए जाएँ तो उन्हें
पूर्वानुमान कहा जा सकता है !मौसम संबंधी ऐसे अनुमानों का चूँकि कोई
वैज्ञानिक आधार नहीं होता है
इसीलिए इस प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही इनका अंदाजा
लगाने
वालों को वैज्ञानिक माना जा सकता है !
इसी प्रकार से वायु प्रदूषण की स्थिति है जब जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तब वहाँ वायुप्रदूषण और अधिक बढ़ने की कल्पना कर ली जाती है इसी प्रकार से जब घटते दिखाई पड़ता है तब वायु प्रदूषण घटने की कल्पना कर ली जाती है !इसके
अतिरिक्त जिस भी क्रिया से धूल धुआँ आदि उड़ता हुआ
दिखाई देता है उस सबको वायु प्रदूषण फ़ैलाने वाला मान लिया जाता है !ऐसी
परिस्थिति में इसमें विज्ञान कहाँ है और इसका अनुमान कैसे लगाया जा सकता
है तथा इसका अनुमान लगाने वालों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है जब
इसमें कोई विज्ञान है ही नहीं ! ऐसे लोगों को तब तक वैज्ञानिक नहीं माना जा
सकता है जब तक कि वे वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में अपनी
क्षमता सिद्ध न कर
सकें !
भूकंप
वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण तक के विषय में कभी किसी विज्ञान
का प्रवेश ही नहीं हुआ है जिस दिन इसमें कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण उचित
बैठ जाएगा उस दिन इन विषयों से संबंधित सभी संशय समाप्त हो जाएँगे !सभी
प्रश्नों के वैज्ञानिक और विश्वसनीय उत्तर मिल जाएँगे !सभी को भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण
आदि के घटित होने का न केवल कारण पता लग जाएगा अपितु महीनों वर्षों पहले
ऐसी घटनाएँ घटित होने का पूर्वानुमान लगाने में भी सफलता प्राप्त होगी !विशेष
बात यह है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का कारण पता लगते ही उनके निवारण के
विषय में भी सोचा जा सकेगा !
वस्तुतः विज्ञान का उद्देश्य भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के केवल
कारण या पूर्वानुमान खोजना ही नहीं है क्योंकि कारण और पूर्वानुमान खोज
लेने मात्र से जनधन की हानि को रोकने में मात्र आंशिक सफलता ही मिल पाएगी
पूर्ण सफलता मिलना तो तभी संभव है जब प्राकृतिक आपदाओं के वेग को घटाया या
रोका जा सके ! इस क्षेत्र में विज्ञान की सफलता तभी मानी जा सकती है !
चिकित्सा के क्षेत्र में विद्वानों ने केवल रोगों का पता ही नहीं लगाया
है अपितु गंभीर से गंभीर रोगों की सशक्त ,पारदर्शी एवं प्रभावी
प्रक्रियाएँ भी खोजी हैं !केवल इतना ही नहीं प्रिवेंटिव चिकित्सा के द्वारा
टीकाकरण आदि करके पोलियो जैसे कई बड़े बड़े रोगों को जड़ से उखाड़ फेंका है
!चिकित्सा व्यवस्था को सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाने के कारण ही आज
उन्हें समाज केवल वैज्ञानिक ही नहीं अपितु श्रद्धा से भगवान
का दूसरा स्वरूप भी मानते हैं !ये है वैज्ञानिकों का सम्मान !किंतु ऐसा तब
हो पाया है जब उन्होंने अपने ज्ञान विज्ञान से रोगों से मुक्ति दिलाने में
बड़ी भूमिका निभाई है !जबकि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में ऐसा कुछ भी नहीं
हो पा रहा है घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जनधन की हानि भी हुआ करती है
भविष्यवाणी करने वाले भविष्यवाणियाँ किया करते हैं !ऐसी भविष्यवाणियों का
क्या ?जो जनता के लिए की जाती हैं किंतु जनता उन पर भरोसा ही नहीं करती है
!
कुल मिलाकर चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं जबकि भूकंप
वर्षा आँधी तूफान से लेकर वायु प्रदूषण आदि सभी क्षेत्रों में अभी तक
अनुसंधान के नाम पर विज्ञान विज्ञान करके शोर बहुत मचाया गया है
'भूकंपविज्ञान' 'मौसमविज्ञान'जैसे शब्द गढ़ लिए गए हैं किंतु इस बात का किसी
के पास कोई उत्तर नहीं है कि इन विषयों में अभी तक विज्ञान है कहाँ !कुछ
तीर तुक्कों को छोड़कर इस क्षेत्र में ऐसी कौन सी उपलब्धि हासिल की गई है
जिसको देखकर कहा जा सके कि यह सफलता विज्ञान के बिना मिल पाना संभव न था !
इसलिए इस
क्षेत्र से संबंधित विज्ञान का खोजा जाना अभी अवशेष है जो चिकित्सा
विज्ञान की तरह ही मौसम और भूकंप आदि क्षेत्रों में भी अत्यंत उन्नत
कीर्तिमान स्थापित कर सके !
वायु प्रदूषण -
वायु
प्रदूषण बहुत बड़ी समस्या है !यह अनेकों प्रकार से जीवन को क्षति पहुँचा
रहा है!इसीलिए इसके बढ़ने से सारा विश्व परेशान है माना जा रहा है कि जितने
बड़े बड़े रोग हैं उनमें से अधिकाँश रोग वायु प्रदूषण के
कारण ही होते हैं !इस बात से प्रदूषण को लेकर अधिकाँश
लोग भयभीत हैं !3 अप्रैल 2019 में एक रिसर्च के हवाले से कहा गया कि "दुनिया
भर के करीब 3.6 अरब लोग घरों में रहते हुए वायु प्रदूषण की चपेट में
आए।"दूसरी एक रिसर्च में कहा गया "भारत में स्वास्थ्य संबंधी खतरों से होने
वाली मौतों का तीसरा सबसे बड़ा कारण वायु प्रदूषण है !एक रिपोर्ट में दावा
किया गया है कि "वर्ष 2017 के दौरान वायु प्रदूषण से
पूरी दुनिया में 50 लाख लोगों की मौत हुई है। इनमें 12 लाख भारत के और इतनी
ही
संख्या में चीन के थे।"
ऐसी डरावनी बातें सुनकर वैश्विक समाज का परेशान होना स्वाभाविक है !इसीलिए प्रदूषण को कम करने के लिए लोग
स्वतः ही प्रयत्नशील हैं !अब तो सबको लगने लगा है कि जैसे भी हो वायु
प्रदूषण को घटाया जाए !किंतु वायु प्रदूषण बढ़ता कैसे है और घटेगा कैसे
?इसका ज्ञान हुए बिना कोई चाहकर भी कैसे घटा सकता है वायु प्रदूषण !
प्रदूषण जब बढ़ता है तब उसे कम करने या रोकने के लिए सरकार आखिर क्या
करे! कार्यवाही के नामपर सरकार कुछ लोगों का चालान कर देती है कुछ फैक्ट्रियाँ सील करवा देती है ऑड इवेन लागू कर देती है पराली जलाने वाले
किसानों का चालान कर देती हैं !किसी का मकान बनना बंद
करवा देती है !किंतु इन सभी बातों का असर वायु
प्रदूषण पर कितना पड़ता है या नहीं पड़ता है इसपर विश्वास पूर्वक अभी कुछ
नहीं कहा जा सकता है !कुलमिलाकर सरकारें भी परेशान हैं आखिर प्रदूषण से निपटने के लिए सरकारें और क्या करें !जनता
भी सरकार से जानना चाहती है कि प्रदूषण घटाने के लिए उसे क्या करना चाहिए
और क्या नहीं करना चाहिए !जनता को विश्वासपूर्वक अभी तक ये नहीं बताया जा
सका है कि वो क्या क्या करना छोड़ दे तो वायुप्रदूषण घट ही जाएगा !
ऐसी परिस्थिति में जनता तीन प्रकार से प्रताड़ित हो रही होती है एक तो
वायु
प्रदूषण बढ़ने के कारण दूसरे वायु प्रदूषण रोकने के नाम पर सरकार उन्हें
प्रताड़ित करती है
तीसरा सरकार जिन लोगों को प्रदूषण पर अनुसंधान करने या पूर्वानुमान लगाने
के लिए नियुक्त करती है वो भले ही इस विषय में कुछ कर पाने में असफल रहे
हों और जनता की मदद कर पाने में बिल्कुल अक्षम रहे हों फिर उनकी सैलरी एवं
सुख सविधाओं पर खर्च होने वाला धन एवं अनुसंधान के नाम पर वो जो कुछ भी
करें उसके संसाधनों पर खर्च होने वाला धन जो सरकार उन्हें देती है वो देश
की जनता के खून पसीने की कमाई का ही अंश होता है जो जनता को ही बहन करना
पड़ता है !
इसलिए लक्ष्य तो जनता को सुख पहुँचाना होना चाहिए !देखा जाना चाहिए कि
जनता को ऐसे लोगों के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों से कितना क्या कुछ
मिल पाता है !इनके द्वारा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार गिनाए जाने वाले
अधिकाँश कारण जनता यदि
मानना भी चाहे तो वे इतने ज्यादा हैं कि उससे जनता की दिनचर्या का संकट
खड़ा हो
जाता है!
वैसे भी जहाँ जहाँ से धुआँ धूल आदि उठती दिखाई दे यदि उस सबको ही वायु
प्रदूषण बढ़ने का कारण मानकर बंद करना या करवाना है तो इसमें विज्ञान की
आवश्यकता ही क्या है फिर जो लोग इन विषयों पर अनुसंधान कर रहे हैं जनता
उन पर खर्च होने वाले धन को क्यों बहन करे यदि उनके अनुसंधानों से कोई लाभ
नहीं है तो !
इसलिए सरकारों को चाहिए कि इस विषय पर वो जनता का साथ दें और वायु
प्रदूषण बढ़ने के निश्चित कारणों का अनुसंधान करवाएँ !तब उसके निवारण के विषय में सोचा जाना चाहिए ! इसके बाद
जनता को विश्वास में लिया जाना चाहिए और सहयोगात्मक रुख अपनाया जाना चाहिए
!भयभीत समाज स्वयं ही वायु प्रदूषण घटाने का प्रयास करेगा !
वायु प्रदूषण के विषय में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पहले तो वे
मुख्यकारण खोजे जाएँ जिनसे प्रदूषण बढ़ता है इसके बाद जनता से अपेक्षा की
जाए कि प्रदूषण रोकने में जनता अपने अपने हिस्से की भूमिका अदा करे !ऐसा
जनता स्वयं करेगी क्योंकि जनता को भी पता है कि स्वाँस लिए बिना जीवन कैसे
चल सकता है और प्रदूषित हवा में स्वाँस
लेंगे तो रोग बढ़ेंगे आयु घटेगी !बच्चों का स्वास्थ्य और भविष्य दोनों
बर्बाद हो जाएँगे !ऐसी परिस्थिति में शरीर अस्वस्थ हो बच्चों का स्वास्थ्य
बिगड़े आयु घटे परेशानियाँ बढ़ें ऐसा कोई क्यों चाहेगा आखिर समाज के जिन
लोगों को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है वे लोग भी तो
अपने बच्चों के लिए ही जीते हैं बच्चों के लिए ही रोजी रोजगार कामकाज आदि
करते हैं जो काम अपने और अपने बच्चों के स्वास्थ्य के विरुद्ध होगा उसे वे स्वप्न में भी
नहीं करना चाहेंगे !बशर्ते उन्हें इस बात पर विश्वास हो कि हम जो कर रहे
हैं वायु प्रदूषण उसी से बढ़ रहा है !
इसी प्रकार से सरकारें भी वायु प्रदूषण घटाने के लिए हर संभव प्रयास करती आ
रही हैं भारी भरकम बजट पास करती हैं वो धन प्रदूषण बढ़ने के कारणों का पता
लगाने एवं उसे रोकने के उपाय खोजने और रोकने के लिए प्रयास करने में खर्च
होता है !ये धन जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स होता है
जो सरकार प्रदूषण के कारणों की खोज में एवं उसे रोकने के प्रयास करने के
लिए खर्च करती है !
ऐसी परिस्थिति में प्रदूषण के कारण और निवारण के उपाय खोजने के लिए सरकार
जनता से प्राप्त धन को जिन लोगों पर खर्च करती है सरकार की जिम्मेदारी बनती
है कि उनसे पूछे कि वे उन निश्चित कारणों को खोजकर क्यों नहीं बता पा रहे
हैं जिनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है और वे उपाय निश्चित करके क्यों नहीं
बता पा रहे हैं जिनके करने से वायु प्रदूषण घट सकता है !यदि वे लोग कारण
और निवारण बताने में सक्षम नहीं हैं तो जनता के धन का व्यय उन लोगों की
सैलरी सुख सुविधाओं और उनके तथाकथित अनुसंधानों पर सरकार किस उद्देश्य से
कर सकती है !
ऐसे विषय विज्ञान हैं या नहीं जो अपने अपने क्षेत्रों में अपने अनुसंधानों
से अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज कर पा रहे हैं !विज्ञान में तो पारदर्शिता
होती है उसमें तो हर प्रकार के तर्कों का प्रमाणित जवाब होता है !किंतु जिन
विषयों में विज्ञान की भूमिका है भी या नहीं इसका निश्चय अभी तक नहीं हो
पाया है !
कहीं ऐसा तो तो नहीं है कि जिन प्रक्रियाओं को विज्ञान समझकर हम उन्हें प्रकृति के रहस्यों को खोलने की
चाभी समझ बैठे हैं ये वैज्ञानिकों की केवल कोरी
कल्पना ही हो जिसका मुख्य विषय से कोई संबंध ही न हो !अन्यथा ऐसे
अनुसंधानों के परिणाम निकलने में इतना समय क्यों लग रहा है !समय बीतता चला
जा रहा है अनुसंधान होते जा रहे हैं परिणाम कुछ निकल नहीं रहा है केवल
वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जनता को जिम्मेदार मान कर उसके विरुद्ध सरकारें
कार्यवाही करने लगती हैं उसे ये बताया भी नहीं जा रहा है की जनता की गलती
क्या है और दंड देने लगती है सरकार आखिर क्यों ?परिणामशून्य रिसर्च भी
कोई रिसर्च होता है क्या ?
कुलमिलाकर जनता
और सरकार दोनों ही जब अपनी
अपनी भूमिका अदा करने को तैयार हैं तो प्रदूषण कम क्यों नहीं हो पा रहा है
ये चिंता का विषय है
!इसलिए सरकार और जनता दोनों ही वायु प्रदूषण पर अनुसंधान करने वाले अपने
वैज्ञानिकों से वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण और उसके निवारण के उपाय जानना
चाहते हैं !
वैज्ञानिकों के द्वारा वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारण -
समय
समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जो जिम्मेदार कारण बताए जाते हैं वो पत्र
पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं !मैंने उनमें से कुछ का संग्रह किया
है जिसे पढ़ने के बाद ऐसा नहीं लगता कि ये कारण बताने के पीछे कोई
वैज्ञानिक सोच है उन्हें देखकर तो यही लगता है कि जैसे आम आदमी धुएँ और धूल
को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मानता है उसी आम धारणा की पुष्टि यहाँ भी हो
रही है ! इसमें कहीं कोई वैज्ञानिक दृष्टिकोण नहीं दिखाई देता है !आप
स्वयं देखिए कि बताए जाने वाले इन कारणों में विज्ञानं का कितना उपयोग किया
गया है ?
दशहरा के आस पास प्रदूषण बढ़ता है तो उसके लिए रावण के पुतले जलाए जाने को प्रदूषण
बढ़ने का
कारण बताया जाता है !दिवाली में प्रदूषण बढ़ता है तो पटाखों को फोड़ने के
कारण प्रदूषण बढ़ना बताया जाता है !होली में प्रदूषण बढ़ने के लिए होली जलने
को कारण बता दिया जाता है ,किंतु ये तीनों एक एक दिन के त्यौहार होते हैं यदि प्रदूषण बढ़ने के
कारण ये होते तो त्यौहार बीतने के बाद प्रदूषण घट जाना चाहिए था ! किंतु
ऐसा होते नहीं देखा जाता है !इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के ये मुख्य कारण नहीं हैं !
इसी प्रकार से फसलों के अवशेष जलाने को या पराली जलाने को वायु प्रदूषण
बढ़ने का कारण बताया जाता है यदि इस बात में सच्चाई हो तो फसलों के अवशेष
जलाने का समय बीत जाने के बाद तो प्रदूषण घट जाना चाहिए था किंतु ऐसा होते
तो नहीं देखा जाता है ! इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का मुख्य कारण यह भी नहीं है !
ऐसे ही सर्दी में हवाएँ रुक जाने को प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जाता है किंतु
यदि ऐसा होता तो सर्दी बीतने के बाद प्रदूषण घटना चाहिए किंतु गर्मियों
में भी प्रदूषण बढ़ते देखा जाता है जबकि उस समय तो हवाएँ तेज चल रही होती
हैं !गर्मी में हवाएँ तेज
चलने आदि को वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बता दिया जाता है !
किसी एक वैज्ञानिक ने दिल्ली
की भौगोलिक स्थिति को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया है किंतु ये बात
यदि सच होती तो दिल्ली के अलावा दूसरी जगहों पर वायु प्रदूषण नहीं होना
चाहिए था किंतु प्रदूषण तो बहुत देशों शहरों में बढ़ता है जबकि वहाँ दिल्ली जैसे भौगोलिक कारण तो नहीं हैं !
कुछ वैज्ञानिक लोग ईंट
भट्ठों को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण मानते हैं किंतु ईंट भट्ठे जहाँ नहीं
होते हैं प्रदूषण तो वहाँ भी बढ़ता है दूसरी बात जिन महीनों में ईंट भट्ठे नहीं चलते हैं प्रदूषण तो उन महीनों में भी बढ़ता है इसलिए ये तर्क भी ठीक नहीं है !
एक अखवार में पढ़ने को मिला कि हुक्का पीने को भी प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जा रहा है !किंतु
ये जरूरी नहीं कि जहाँ जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ता हो वहाँ वहाँ हुक्का पिया
ही जाता हो !दूसरी बात जहाँ हुक्का पीने के आदी जितने भी लोग होते हैं वो अपनी आदतें छोड़ते नहीं हैं और
वो प्रतिदिन जितने भी बार पीते हैं उतना पीते ही हैं उसमें कम ज्यादा तो नहीं
करते हैं फिर प्रदूषण घटता बढ़ता क्यों रहता है !इसका मतलब ऐसी कल्पना भी गलत है !
एक जगह पढ़ने को मिला कि महिलाएँ जो स्प्रे करती हैं उससे प्रदूषण बढ़ता है
किंतु ऐसा सभी जगहों पर तो नहीं होता फिर वो तो अपना श्रृंगार हमेंशा एक
जैसा करती हैं इसलिए वायु प्रदूषण कम ज्यादा क्यों होता रहता है !
कुछ वैज्ञानिकों ने निर्माण कार्यों को ,फैक्ट्रियों
को,वाहनों को वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण बताया जाता है !किंतु ये तो
बारहों महीने एक जैसी गति से चलते रहते हैं इनके कारण वायु प्रदूषण बढ़ता हो तो
हमेंशा एक जैसा रहना चाहिए ये घटता बढ़ता क्यों रहता है !
कुछ रिसर्च इस प्रकार के भी देखने को मिले जिनमें कहा गया है कि
सऊदी अरब में आने वाली आँधी के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण
बढ़ता है !किंतु यह वायु प्रदूषण केवल दिल्ली में ही तो नहीं बढ़ता है देश के अन्य
भागों के साथ साथ विदेशों में भी बढ़ता है !दूसरी बात इसके लिए जिम्मेदार
केवल यदि यही एक कारण होता तो जब जब वहाँ आँधी आती तभी तब दिल्ली में वायु
प्रदूषण बढ़ता उसके अतिरिक्त तो नहीं बढ़ना चाहिए था किंतु ऐसा तो नहीं होता
है वायु प्रदूषण तो उसके अतिरिक्त भी बढ़ता घटता रहता है ! इसका मतलब ये तर्क भी सही नहीं है !
कुलमिलाकर ये सब देख सुनकर ऐसा लगता है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए
जिम्मेदार किसी निश्चित कारण को अभी तक चिन्हित नहीं किया जा सका है !ऐसी
परिस्थिति में वायु प्रदूषण फ़ैलाने के लिए दोषी मानकर किसी के विरुद्ध यदि
कार्यवाही भी जाती है तो उसके लिए वास्तविक आधार क्या होगा !ऐसी भ्रम की
स्थिति में यदि कुछ प्रकार के कामों को प्रदूषण फैलाने वाला मानकर उनके
विरुद्ध कार्यवाही की भी जाए और वे उस प्रकार के कामों को करना बंद भी कर
दें जिनसे धुआँ या धूल उड़ती हो यदि उसके बाद भी वायु प्रदूषण का बढ़ना बंद
नहीं होता है तो ऐसी परिस्थिति में उन्हें अकारण क्यों परेशान किया गया और
इसके लिए दोषी किसे माना जाना चाहिए ?
इसलिए उचित तो ये होगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार
वास्तविक कारणों की खोज की जाए इसके बाद उन कारणों का निवारण करने की
प्रक्रिया प्रारंभ की जाए !उसके बाद इस बात का परीक्षण किया जाए कि वायु
प्रदूषण बढ़ने के कारणों में कमी लाने से वायु प्रदूषण को बढ़ने से
रोकने में कुछ सफलता मिली है क्या ?यदि ऐसा लगता है तब तो उन कारणों को
चिन्हित करके उनके निवारण के लिए प्रयास तेज किए जाएँ यदि ऐसा नहीं है तो
अन्यकारणों पर अनुसंधान किया जाए और उनके लिए भी यही प्रक्रिया अपनाई जानी
चाहिए !यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार
जो जो भी कारण बताए जाते हैं उन सबका एक साथ परीक्षण किया जाना संभव नहीं
है और वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए संदिग्ध सभी कामों को एक साथ बंद करके
अकारण इतने बड़े समुदाय की रोजी रोटी दिनचर्या आवागमन आदि को रोककर खड़ा हो
जाना ठीक नहीं होगा वो भी बिना किसी मजबूत आधार के!फिर भी यदि सभी उपाय एक साथ किए भी जाएँ तो भी इस बात
का पूर्वानुमान लगाना तब भी कठिन ही बना रहेगा कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए
जिम्मेदार वास्तविक कारण आखिर हैं कौन ?
वायुप्रदूषण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक ?
सच्चाई तो यह है कि अभी तक इस बात का भी निराकरण नहीं हो पाया है कि
वायुप्रदूषण मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !यदि मनुष्यकृत है तो उन निश्चित
कारणों को बताया जाना चाहिए
जिनसे प्रदूषण बढ़ता है उनमें से एक एक को रोककर वायु प्रदूषण से संबंधित
परीक्षण किया जाना चाहिए कि किस कारण को रोकने से वायु प्रदूषण में कितनी
कमी आती है ऐसे परीक्षण के बाद ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार
निश्चित कारणों तक पहुँचा जा सकता है !
इसी प्रकार से वायुप्रदूषण को यदि प्राकृतिक माना जाए तो मौसम संबंधी
अन्य घटनाओं की तरह ही वायु प्रदूषण के बढ़ने घटने के विषय में भी सही सही
पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !यदि वो सही घटित होता है इसका मतलब है कि
वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए स्वयं प्रकृति ही जिम्मेदार है !ऐसी परिस्थिति में
जैसे सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि की घटनाओं को रोक पाना संभव
नहीं है उसी प्रकार से वायुप्रदूषण को भी रोकपाना किसी मनुष्य के बश की
बात नहीं होगी ! इसलिए उसके बाद वायु प्रदूषण बढ़ाने के लिए किसी को दोषी
मानकर उसके विरुद्ध अकारण ही कोई कार्यवाही करना ठीक नहीं होगा !
प्रदूषण के विषय में भी लगाया जा सकता है पूर्वानुमान !
मैं प्राकृतिक विषयों पर पिछले लगभग 25 वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा
हूँ इसी विषय से संबंधित मैं पूर्वानुमान भी लगाता हूँ जो काफी सही और सटीक
निकलते हैं! इस अनुसंधान के आधार पर हमारे अनुभव में जो आया है वो यह है कि
वायुप्रदूषण जितना मनुष्यकृत है उतना ही प्राकृतिक भी है!इसलिए केवल मनुष्यकृत प्रयासों से वायु प्रदूषण कुछ घट तो सकता है किंतु पूरी तरह समाप्त नहीं किया जा सकता है !
मनुष्यकृत वायुप्रदूषण हमेंशा लगभग एक जैसा ही रहता है क्योंकि लोगों
के द्वारा किए जाने वाले जो कार्य प्रदूषण बढ़ाने वाले माने जाते हैं ऐसे सभी
कार्य लगभग एक जैसे ही हमेंशा चला करते हैं !फिर भी मनुष्यकृत वायुप्रदूषण भी कभी कभी थोड़ा बहुत घटता बढ़ता रहता है
किंतु अधिक नहीं !जबकि प्राकृतिक वायुप्रदूषण क्रमिक रूप से घटता भी है और
बढ़ता भी है उसमें एक लय होती है !यह क्रमिक होता है चंद्रमा के आकार की तरह
ही वायु प्रदूषण भी क्रमशः थोड़ा थोड़ा बढ़ता है उसी प्रकार से क्रमशः थोड़ा
थोड़ा घटता जाता है !जैसे बादल आने पर पूर्णिमा का चंद्रमा आकाश में प्रत्यक्ष होते हुए भी दिखाई
देना बंद हो जाता है इसका मतलब यह नहीं होता कि उस दिन चंद्र का आकार पूरा
नहीं निकला होगा अर्थात चंद्र उस दिन भी पूर्ण रूप से निकला होता है किंतु
उसके उस दिन दिखाई न पढ़ने का कारण चंद्र को ढक लेने वाले बादल होते हैं!
ठीक इसीप्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने घटने की प्रक्रिया प्रकृति की ओर से
तो पूरे वर्ष चला करती है अपने निश्चित समय पर वायु प्रदूषण बढ़ता है और
निश्चित समय पर घटता है ये क्रम सर्दी गर्मी वर्षा आदि सभी ऋतुओं में एक
जैसा ही चलता रहता है जैसे पूर्णिमा के चंद्र को बादल ढककर उसका दिखाई देना
बंद कर देते हैं ठीक उसी प्रकार से क्रमिक रूप से बढ़े या बढ़ते हुए
प्रदूषण को भी हवा अपने साथ उड़ा ले जाती है और बर्षा अपने पानी में बहा ले
जाती है !इसलिए उस समय प्रदूषण का स्तर बढ़ा हुआ होने पर भी दिखाई नहीं पढ़ता है !कई बार प्रदूषण के बढ़ते हुए क्रम में यदि अचानक
वर्षा का या हवा का वेग आकर और शीघ्र ही निकल जाता है तो ऐसे समय में झटके से एक बार
प्रदूषण घटकर पुनः बढ़ने लग जाता है और अपना समय पूरा होने तक बढ़ता है उसके
बाद ही घटना प्रारंभ होता है और क्रमशः घटते चला जाता है !
वायु प्रदूषण बढ़ने घटने की प्रक्रिया वर्ष में लगभग 22-26 बार तक होती है !अंतर
केवल इतना पड़ता है कि वर्ष के जिन ऋतुओं या महीनों में हवाएँ धीमी चलती
हैं और वर्षा होना बंद हो जाता है उस समय इस बढ़े हुए वायु प्रदूषण का
स्वरूप अधिक डरावना दिखाई पड़ता है !जिससे लगने लगता है कि वायु प्रदूषण
केवल इसी समय में बढ़ता है जो कि भ्रम है !
इसलिए मनुष्यकृत वायु
प्रदूषण तो हमेंशा रहता है ही किंतु वायु वेग और वर्षा होने से वो भी घट जाता
है धीरे धीरे फिर बढ़ जाता है मनुष्यकृत वायुप्रदूषण तो मनुष्य की दिनचर्या के साथ जुड़ा हुआ है
गाड़ियाँ फैक्ट्रियाँ आदि हमेंशा चलती हैं मकान हमेंशा बना करते हैं फसलों
के कोई न कोई अवशेष हमेंशा जलाए जाते हैं इसलिए उसमें अधिक अंतर नहीं पड़ता
है इसका स्वरूप विकराल तब होता है जब उसी समय में उसके साथ साथ प्राकृतिक
वायु प्रदूषण भी बढ़ जाता है उस समय दोनों प्रकार के वायु प्रदूषण मिलकर
भयानक स्वरूप धारण कर लेते हैं तब साँस लेना मुश्किल हो जाता है !
कुल मिलाकर प्रदूषण की प्रक्रिया हमेंशा एक जैसी चलती रहती है !मनुष्यकृत वायु प्रदूषण हमेंशा एक जैसा रहता है ही जबकि प्राकृतिक
वायुप्रदूषण क्रमिक रूप से अपने समय से घटता भी है और बढ़ता भी है यह
क्रिया अपने क्रम से वर्ष में 22 से 26 बार तक होती है यह क्रिया एक बार
में लगभग पाँच दिन चलती है!इसके बाद घटने लग जाता है !ऐसे समय में वायु
प्रदूषण बढ़ता ही है और जितने बार बढ़ता है उतने ही बार घटता भी है !यह वायु
प्रदूषण के घटने बढ़ने का क्रम वर्ष के बारहों महीने में स्वतः चला करता है
!इसी क्रम में जो समय वायु प्रदूषण के बढ़ने का होता है उस समय वायु प्रदूषण
तो अपने क्रम से बढ़ता है ही किंतु यदि उस समय वर्षा होने लगे या हवाओं का
वेग अधिक बढ़ा हो तो वायु प्रदूषण बढ़े होने के बाद भी ऐसे समय में उसका असर विशेष अधिक दिखाई नहीं पड़ता है बाकी बढ़ता अवश्य है !
इसके
अलावा भी कई बार खगोलीय कुछ अन्य कारण भी होते हैं जिनके प्रभाव से वायु
प्रदूषण 5 दिनों से अधिक भी कुछ समय तक लगातार बना रहता है !उसका भी पूर्वानुमान लगा लिया जाता
है !इसके अलावा किसी क्षेत्र विशेष में कोई बड़ी युद्ध या आतंकवाद आदि से संबंधित कोई अप्रिय घटना घटित होनी
होती है तो उसकी अग्रिम सूचना देने के लिए भी आकाश से धूल बरस रही होती है जो
उस प्रकार की घटना घटित हो जाने या उस प्रकार की घटना घटित होने के कारण
समाप्त हो जाने के बाद ही आसमान साफ होता है !ये सब कुछ विशेष परिस्थितियों
में ही होता है !सामान्यतौर पर तो वही क्रम रहता है जो हमेंशा के लिए
सुनिश्चित है !
ब्रह्मांड भी साँस लेता और छोड़ता है !
इस पूरे क्रम को देखकर ऐसा लगता है कि ब्रह्मांड स्वाँस लेने और स्वाँस छोड़ने की प्रक्रिया का पालन कर रहा है
!जब व्रह्मांड स्वाँस लेता है तब उसे वातावरण से जितनी स्वच्छा हवा स्वाँस लेने के लिए मिलती है उससे देश गुनी अशुद्ध हवा उस समय होती है ब्रह्मांड जब स्वाँस छोड़ता है !वैसे भी स्वाँस लेने और स्वाँस छोड़ने की प्रक्रिया में संपूर्ण प्रकृति ही सम्मिलित होती है वो साँस लेते और
छोड़ते दिखाई भले ही न पड़ती हो ये और बात है! पेड़ पौधे भी साँस लेते है और छोड़ते
भी हैं !
जिस प्रकार से माँ के गर्भ में रहने वाले जीव की सभी चेष्टाएँ उसकी
माँ की तरह की होती हैं उसी प्रकार से प्रकृति की कोख में पल रहे संपूर्ण
चराचर जगत का स्वभाव प्रकृति के अनुशार ही होना स्वाभाविक है !इसीलिए
स्वाँस लेने और छोड़ने की जिस प्रक्रिया को हम केवल सजीव लोगों के साथ ही
जोड़कर देखते हैं और मानकर चलते हैं कि स्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया
केवल सजीवों तक ही सीमित है किंतु ऐसा नहीं है अपितु इसमें अपने अपने हिसाब से सारा संसार ही सम्मिलित है !
ब्रह्मांड की भी अपनी आयु होती है उसकी भी आयु का आकलन उसकी स्वाँसों से किया जाता है
किसकी आयु कितनी बीत चुकी है और कितनी आगे बीतनी है इसका निर्णय उसकी
स्वाँसों के आधार पर होता है !कुल मिलाकर जिसका जब स्वाँसकोष समाप्त हो
जाता है तब उसकी आयु समाप्त हो जाती है और उसका अंत हो जाता है! स्वाँसों के क्षय के साथ ही शरीर का क्षय होता
जाता है!किसी मनुष्य की स्वाँसें समाप्त होती हैं तब उसकी आयु समाप्त होती
है तब वो प्राण विहीन होकर शव बन जाता है!शव की भी अपनी आयु होती है जिसके
समाप्त होने पर बाद वो भी बिना किसी प्रयास के नष्ट हो जाता है! सनातन धर्मदर्शन में माना
जाता है कि सर्व शरीर में व्याप्त धनंजय नाम का वायु तो मृत शरीर को भी
नहीं छोड़ता है !
कोई
बीज उस रूप में अपनी आयु का भोग करता है उसके बाद वो किसी वृक्ष को जन्म
देकर स्वयं नष्ट हो जाता है इसके बाद वह वृक्ष अपनी तरह से आयु का भोग करता है
!उसकी स्वाँसें समाप्त होती हैं तो वृक्ष स्वयं सूख कर लकड़ी को जन्म दे
जाता है उस लकड़ी से कोई सामान बनाया जाए या केवल लकड़ी रूप में ही पड़ी रहे उसकी भी एक निश्चित आयु होती है जिसके बीतने के बाद उस लकड़ी को भी नष्ट होना पड़ता है !
कुलमिलाकर जिस व्यक्ति वस्तु स्थान परिस्थिति भावना संबंध अवस्था आकार
प्रकारादि आदि का जब निर्माण होता है वहीँ से उसकी आयु प्रारंभ हो जाती है
और धीरे धीरे आयु क्षय होते रहती है !उन सबकी अपनी अपनी निश्चित आयु होती
है वह आयु बीत जाने के बाद सबका बिनाश होते देखा जाता है !
इसी प्रकार से ब्रह्मांड की भी अपनी आयु और अवस्थाएँ होती हैं !उसकी भी
अपनी स्वाँस लेने और छोड़ने की प्रक्रिया है !उसकी भी अपनी गति है स्वभाव
है क्रम है स्वतंत्रता है सजीवता है निश्चितता है जो प्राकृतिक घटनाओं के
रूप में दिखाई पड़ता है !इसलिए ब्रह्मांड को निर्जीव मानकर उसे अपने अनुशार
चलाने की परिकल्पना मनुष्य को नहीं करनी चाहिए !जैसा
कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी कहानियाँ गढ़ी जा रही हैं !यह
प्रकृति की अपनी लय है उसे मनुष्यकृत प्रयासों से बदला नहीं जा सकता है !
इतना अहंकार ठीक नहीं है !कोई मनुष्य जिस प्रकार की
वायु में स्वाँस लेता है और जब वो स्वाँस छोड़ता है तब स्वाँस लेते समय की वायु
की अपेक्षा स्वाँस के द्वारा छोड़ी जाने वाली वायु कुछ अधिक प्रदूषित होती है
!इसीलिए प्राणायाम की प्रक्रिया की तरह ही ब्रह्मांड के स्वाँस छोड़ते समय
में प्रदूषण का स्तर बहुत अधिक बढ़ा होता है !ऐसी परिस्थिति में सारी चराचर
प्रकृति में ही प्रदूषण का स्तर क्रमशः बढ़ता चला जाता है !ऐसी परिस्थिति
में आकाश वायु जल आदि सभी में प्रदूषण की मात्रा अचानक बढ़ जाती है !
इस समय में ब्रह्मांडीय प्रदूषण का असर सारे वायु मंडल में छाया हुआ होता
है !यह प्रदूषण संपूर्ण चराचर जगत में व्याप्त होता है ऐसे समय में सभी
जीव जंतु व्याकुल हो उठते हैं!पशुओं पक्षियों आदि में उन्माद की भावना पैदा
हो जाती है !मानव जाति में उन्माद एवं मानसिक शून्यता पनपने लगाती है
इसीलिए ऐसे समय में चित्त स्थिर न रहने के कारण सामाजिक आंदोलन पारस्परिक
विवाद दो देशों या व्यक्तियों के आपसी संबंधों में तनाव ! बाहन दुर्घटनाएँ
,विमान दुर्घटनाएँ,वाहनों का खाई में गिरना ,आतंक वादी हमले ,बमविस्फोट आदि अनेकों प्रकार की
दुर्घटनाएँ ऐसे समय में मानसिक संतुलन बिगड़ने के कारण घटित होते देखी जाती
हैं !इस समय में भूकंप सुनामी जैसे उत्पातों एवं सामाजिक अपराधों के बढ़ने
की घटनाएँ भी देखने को मिलती हैं !
वायु प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान -
वायु प्रदूषण के पूर्वानुमान के विषय में मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि इस विधा के द्वारा लगाए जाने वाले मौसम
संबंधी पूर्वानुमान कुछ अंतर के साथ प्रायः सही घटित होते हैं !इसकी एक और विशेषता है कि
ऐसे पूर्वानुमान वायु प्रदूषण से संबंधित कोई घटना घटित होने से बहुत पहले
लगाए जा सकते हैं !
मेरे यहाँ प्रत्येक महीने का मौसम पूर्वानुमान महीना प्रारंभ होने के एक दो दिन पहले ही लगा लिया जाता है !इसमें वर्षा आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण आदि घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान होता है जो हर महीने के प्रारंभ में अनेकों पत्र पत्रिकाओं में भेज दिया जाता है !इसके साथ साथ ही प्रमाण के लिए कोई महीना प्रारंभ होने से एक दो दिन पहले ही
प्रधानमंत्री और कुछ मुख्यमंत्रियों के ईमेल पर भेज दिया जाता है !जो
प्रमाण रूप में अभी भी हमारे पास संग्रहीत हैं जो उन लोगों के ईमेल पर भी देखा जा सकता है !
ईमेल पर भेजे गए उन्हीं पूर्वानुमानों का वायु प्रदूषण से संबंधित अंश नवंबर दिसंबर जनवरी फरवरी आदि महीनों का यहाँ उद्धृत करता हूँ -
वायुप्रदूषण के विषय में प्रधानमंत्री और कुछ मुख्यमंत्रियों के ईमेल पर पहले भेजी गई भविष्यवाणियाँ -
|
Tue, Oct 30, 2018, 11:07 PM
|
"वायुप्रदूषण की दृष्टि से संपूर्ण महीना ही विशेष डरावना होगा !वायु प्रदूषण के कारण कई दशकों के रिकार्ड टूटेंगे इसका स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा आकाश से गिरी हुई धूल से वातावरण इतना अधिक प्रदूषित होगा !इसलिए सूर्य की किरणें बहुत धूमिल दिखाई देंगी! इस दृष्टि से विशेष अधिक सावधान रहने के लिए नवंबर महीने की 9, 10, 11,12,13,14,23,24,25,26 की तारीखें होंगी!"
दिसंबर-2018
|
Sat, Dec 1, 2018, 12:00 AM
|
"वायुप्रदूषण की दृष्टि से दिसंबर का संपूर्ण महीना ही विशेष डरावना
होगा !उसमें भी 7,8,9,10,11 एवं 22 ,23,24 तारीखों में वायु प्रदूषण काफी
अधिक बढ़ जाएगा ! आकाश से गिरी हुई धूल के कारण वातावरण इतना अधिक प्रदूषित
होगा ! इसलिए सूर्य की किरणें बहुत धूमिल दिखाई देंगी! इस दृष्टि से विशेष
अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है !
जनवरी-2019
Mon, Dec 31, 2018, 5:05 PM
|
|
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| " वायुप्रदूषण 3 जनवरी से 7 तक ,17 से 21 तक एवं 30,31 आदि तारीखों में
बढ़ेगा !इस महीने वायुवेग अधिक होगा एवं वर्षा की अधिक संभावनाएँ होने के
कारण आकाश की गिरी हुई वायु का दुष्प्रभाव बहुत अधिक विकराल स्वरूप नहीं
धारण कर पाएगा !जिन क्षेत्रों में वर्षा कम हुई या वायु का वेग कम रहा संभव
है वहाँ कुछ अधिक बढ़ जाए फिर भी इस महीने वायु प्रदूषण बहुत भयानक स्वरूप
नहीं धारण कर पाएगा ! |
फरवरी -2019
|
"वायु प्रदूषण- 12फरवरी से 16 फरवरी तक एवं 26
फरवरी से 28 फरवरी तक सुदूर आकाश से गिरे हुए वायु प्रदूषण का असर वातावरण
में विशेष अधिक देखने को मिलेगा !फरवरी के महीने में वर्षा एवं वायु का
वेग अधिक रहने के कारण प्रदूषण का प्रभाव विशेष अधिक भले ही न दिखाई दे फिर भी इस समय में बढ़ेगा !"
|
|
सीसीआर एयर क्वालिटी डाटा के अनुशार -
वायुप्रदूषण
से संबंधित उपर्युक्त भविष्यवाणियों को इंटरनेट पर विद्यमान सी सी आर के वायु प्रदूषण संबंधित डाटा से मिलान करने पर ये भविष्यवाणियाँ सही
और सटीक घटित हुई हैं !एक दो जगहों पर अगर कुछ अंतर रहा भी है तो उसका कारण
वायुप्रदूषण बढ़ने के समय में ही वर्षा का हो जाना या फिर हवा का वेग अधिक हो जाना
है !
वायुप्रदूषण संबंधी भावी पूर्वानुमान -
इसी आधार पर मैं आगे के भी कुछ वर्षों के कुछ महीनों के कुछ वायु प्रदूषण
से संबंधित पूर्वानुमान यहाँ प्रकाशित करूँगा !जिसके आधार पर समयविज्ञान के
द्वारा लगाए जाने वाले वायु प्रदूषण से संबंधी पूर्वानुमानों का परीक्षण
करना हर किसी के लिए आसान होगा !"
'समयविज्ञान' और 'प्रकृतिविज्ञान' के संयुक्त अनुसंधान के आधार पर भविष्य में कितने भी पहले के वायुप्रदूषण
से संबंधित पूर्वानुमानों को प्राप्त किया जा सकता है !जो 70 -80 प्रतिशत
तक सही घटित होंगे ही !ये भविष्य में जितने अधिक पहले के प्राप्त करने
होंगे अनुसंधान कार्य में उतने अधिक परिश्रम की आवश्यकता होगी !
|
|
वैश्विक दृष्टि से वर्तमान समय में वायुप्रदूषण का पूर्वानुमान लगाने के
विषय में बड़े बड़े
अनुसंधान किए जा रहे हैं इसके लिए बहुत परिश्रम किया जा रहा है बहुत यंत्र
लगाए जा रहे हैं इनसे संबंधित अनुसंधान संसाधनों एवं अनुसंधान कर्ताओं की
सैलरी आदि सुख सुविधाओं पर बहुत भारी भरकम धन खर्च किया जा रहा है !जनता के
खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्सरूप में प्राप्त धन ऐसे अनुसंधानों के
लिए खर्च किया जाता है अनेकों निजी संस्थाएँ इस विषय में अनुसंधान करने में
लगी हैं किंतु मेरी जानकारी के अनुसार परिणाम अभी तक भी कुछ नहीं हैं !
वायुप्रदूषण के कारण होने वाले बड़े बड़े रोगों की लिस्ट सुन सुन कर भयभीत
समाज ऐसे अनुसंधानों से बहुत बड़ी आशा लगाए बैठा है !किंतु उन अनुसंधानों से
प्राप्त परिणामों के प्रतिफल स्वरूप अभी तक न तो वायु प्रदूषण बढ़ने के
निश्चित कारणों का पता लगाया जा सका है और न ही 24, 48 और 72 घंटे पहले भी
पूर्वानुमान प्राप्त करना ही संभव हो पाया है !
ऐसी परिस्थिति में 'समयविज्ञान' और 'प्रकृतिविज्ञान' के संयुक्त अनुसंधान के आधार पर विश्वास पूर्वक यह कहा जा सकता है कि 24, 48 और 72 घंटे पहले की बात क्या अपितु 2400,
4800 और 7200 वर्ष पहले का भी वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाना भी संभव है !
सन 2019 में वायु प्रदूषण बढ़ने के कुछ दिनों का पूर्वानुमान -
सन 2020 में वायु प्रदूषण बढ़ने के कुछ दिनों का पूर्वानुमान -
विज्ञान के नाम पर वायु प्रदूषण के विषय में भ्रम-
वास्तव में यदि मौसम के विषय में कोई ऐसा विज्ञान है जिसके द्वारा वायु
प्रदूषण बढ़ने का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !तो उस विषय के वैज्ञानिकों
के द्वारा इस बिषय से संबंधित पूर्वानुमान अवश्य उपलब्ध कराए जाने चाहिए
!जिसमें वायु प्रदूषण कब
बढ़ेगा और कितने समय तक बढ़ा हुआ रहेगा आदि की भविष्यवाणी आगे से आगे उपलब्ध करवाते रहना चाहिए !
मौसमी भविष्यवक्ता यदि मानते हैं कि वायु प्रदूषण
मनुष्यकृत है तो वैज्ञानिकों के द्वारा सरकार और जनता को बताया जाए कि
सरकार क्या करे और जनता को क्या करना चाहिए जिससे वायु प्रदूषण घटेगा
?सरकार और जनता उसका पालन करके वायु प्रदूषण घटाने का प्रयास कर लेंगे
!किंतु मेरी जानकारी के अनुशार इस विषय में वैज्ञानिक अभी तक निश्चय पूर्वक ऐसा कुछ भी बता नहीं पाए हैं कि जिससे
सरकार और जनता का मन मजबूत हो सके कि जब जब प्रदूषण बढ़ेगा तब तब ऐसे
प्रयास करके वायु प्रदूषण को नियंत्रित कर लिया जाएगा !
इस विषय में
दिशा बिहीनता की स्थिति ये है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए दोषी मानकर कुछ
लोगों के चालान किए जा रहे होते हैं और कुछ लोगों पर जुर्माना
लगाया जाता है कुछ लोगों की फैक्ट्रियाँ सील की जाती हैं कुछ लोगों का
मकान बनना बंद कराया जाता है तो कुछ का पराली जलाना बंद करा रहे होते हैं
!ऐसे ही आधार विहीन आरोप लगाकर
लोगों को दोषी मान लिया जाता है और दोषियों के विरुद्ध कार्यवाही कर दी
जाती है !किंतु मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा आज तक इस बात का निर्णय नहीं किया जा
सका कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हैं ?
एक और बात है कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जो जिम्मेदार कारण गिनाए जाते
हैं वो न्यूनाधिक रूप में बहुत सारे देशों में पाए जाते हैं किंतु प्रदूषण
से परेशान देशों की संख्या लगभग निश्चित है इसका कारण क्या है !इसके
अतिरिक्त एक और ध्यान देने की बात है कि वायुप्रदूषण के कारण जो भी हों
किंतु ये बढ़ता तो धीरे धीरे ही है और घटता भी धीरे धीरे ही है ऐसी
परिस्थिति में इसके बढ़ने घटने का पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सकता है !
आश्चर्य की बात तो यह है कि वैज्ञानिक अनुसंधान होते इतने वर्ष बीत गए
अभी तक इस बात का भी निर्णय नहीं हो सका है कि वायुप्रदूषण बढ़ने के कारण
प्राकृतिक हैं या मनुष्यकृत हैं!प्राकृतिक हैं तो पूर्वानुमान लगाना कठिन
क्यों है और मनुष्यकृत हैं तो वायु प्रदूषण बढ़ने के कारणों के विषय में
इतना भ्रम क्यों है ?
इस विषय में सरकारों के द्वारा अभीतक की गई वैज्ञानिक तैयारियाँ जनता
की अपेक्षाओं से बहुत दूर रही हैं !ऐसी परिस्थिति में सरकार जनता से कोई
उम्मींद कैसे कर
सकती है !यदि तीर
तुक्के ही लगाने हैं तो ऐसे संसाधनों पर जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से
प्राप्तधन को इस प्रकार से बहाया क्यों जा रहा है ?
जनता अपने खून पसीने की कमाई से जो धन टैक्स रूप में सरकार को देती है
जिससे सैलरी समेत समस्त सुख सुविधाएँ एवं शोधसंसाधन सरकार मौसम पर
अनुसंधान करने वालों को उपलब्ध करवाती है!ऐसे में जनता का केवल इतना उद्देश्य होता है कि वो लोग केवल इतना बता दें कि वायु
प्रदूषण बढ़ेगा कब से कब तक !दूसरी बात वायु प्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है ?
दुर्भाग्य से अनुसंधान करने वालों पर धन तो पूरा खर्च होता है किंतु
उस प्रकार के परिणाम जनता को प्राप्त नहीं हो पाते हैं ! जिसकारण ये भयावह स्थिति पैदा हुई है !
वायु प्रदूषण के कारण और निवारण की प्रक्रिया -
बताया जाता है कि जिस प्रकार से स्वाँस लेते समय वायु में मिले हुए धूलकण
भी नाक के अंदर
जाने लगते हैं किंतु नाक में मौजूद छोटे-छोटे बाल उन धूलकणों को रोक लेते
हैं एवं नाक में स्थित चिपचिपा पदार्थ उन्हें अपने में चिपका लेता है और
हवा शुद्ध होकर अंदर जाती है !इसी प्रकार से प्राकृतिक वातावरण में
विद्यमान वायु
में व्याप्त धूल कणों को वृक्ष लताएँ झाड़ आदि अपनी पत्तियों में
फँसाकर रोक लेते हैं जिससे वायु की सफाई हुआ करती है !इसी प्रकार से नदियाँ
नहरें झीलें तालाब आदि अपनी नमी में वायु में विद्यमान कणों को चिपका कर
वायु शोधन किया
करते हैं !नदियों नहरों तालाबों झीलों आदि में जल की मात्रा घटने से तथा
पेड़ पौधों के अधिक काटे जाने के कारण इनसे वायु शोधन में उस प्रकार का
सहयोग नहीं मिल पाता है जितना कि आवश्यक होता है !वायु प्रदूषण बढ़ने का एक
कारण यह भी बताया जाता है !हो सकता है इस अनुसंधानिक जुगाड़ में भी कुछ
सच्चाई हो !
प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान पता न लगने से हुआ है अधिक नुकसान !
वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि के लिए भविष्यवाणी करने वाले लोगों के द्वारा की गई मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ
गलत होते देखी जाती हैं जिसके कारण मौसमी भविष्यवक्ताओं को समाज की
आलोचनाएँ उपहास आदि सहने पड़ते रहे हैं !इसलिए जलवायुपरिवर्तन
ग्लोबलवार्मिंग जैसे शब्दों की परिकल्पना की गई है जिनका समय समय पर उपयोग
किया जाता है !मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर जो भी तीर तुक्के लगाए जाते हैं उनमें से जितने सही निकल जाते हैं उन्हें भविष्यवाणी मान लिया जाता है और जो गलत निकल जाते हैं उनके लिए जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग घटनाओं को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !
जलवायु परिवर्तन के लक्षण -
बताया जाता है कि पिघलते ग्लेशियर, दहकती ग्रीष्म, दरकती धरती, उफनते
समुद्र,फटते बादल घटते जंगल आदि जलवायु परिवर्तन के लक्षण हैं !इसके कारण
गिनाते हुए बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन प्रकृति के अंधाधुंध दोहन का
परिणाम है प्रकृति के अनैतिक और
अनुचित दोहन से पृथ्वी की जलवायु पर निरंतर दबाव बढ़ता जा रहा है और यही
कारण है विश्व में चक्रवातों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु
परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत
में बारिश के साथ भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है।वैज्ञानिकों
का कहना है कि बहुत घबराने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि जलवायु
परिवर्तन के खतरों से बचने के उपाय भी किए जा रहे हैं।"
ग्लोबलवार्मिंग-
ग्लोबलवार्मिंग
का मतलब है पृथ्वी का तापमान बढ़ना !"धरती गरमाने के लिये ग्रीन हाउस
गैसें उत्तरदायी बताई जाती हैं ! इन गैसों में कार्बन
डाइआक्साईड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन ( सी.एफ.सी.), नाईट्रिक ऑक्साइड व मीथेन
प्रमुख हैं। सूर्य की किरणें जब पृथ्वी पर पहुँचती हैं तो अधिकाँश किरणें
धरती स्वयं सोख लेती है और शेष किरणों को ग्रीन हाउस गैस सतह से कुछ ऊँचाई
पर बंदी बना लेती हैं।जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है।वायुमंडल में
लगभग 15 से 25 किलोमीटर की दूरी पर समताप मंडल में इन गैसों के अणु ओजोन से
ऑक्सीजन के परमाणु छीन लेते हैं और ओजोन परत में छेद कर देते हैं जिससे
सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें लोगों को झुलसाने लगती हैं। विश्व स्तर
पर सुनिश्चित किया जा चुका है कि सी.एफ.सी. से निकलने वाला क्लोरीन का एक
परमाणु शृंखला अभिक्रिया के परिणामस्वरूप ओजोन के 10000 परमाणुओं को नष्ट
कर देता है।"
इसी विषय में दूसरी जगह ये भी पढ़ने को मिला -"वायुमण्डलीय तापमान में बढ़ रहे असंतुलन का खामियाजा मनुष्य ही नहीं
पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी भुगत रहे हैं। पशुओं और पेड़-पौधेां की 11000
प्रजातियाँ या तो समाप्त हो चुकी हैं या समाप्त होने के कगार पर पहुँच गयी
हैं। प्रतिवर्ष ग्लोबल वार्मिंग में 15 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो
जाता है।
‘वर्ल्ड
वॉच इंस्टीट्यूट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार धरती का तापमान लगातार बढ़ने से
समुद्र का जलस्तर धीरे-धीरे ऊँचा उठ रहा है। पिछले 50 वर्षों में
अंटार्कटिक प्रायद्वीप का 8000 वर्ग किलोमीटर का बर्फ का क्षेत्रफल पिघलकर
पानी बन चुका है। पिछले 100 वर्षों के दौरान समुद्र का जलस्तर लगभग 18
सेंटीमीटर ऊँचा उठा है। इस समय यह स्तर प्रतिवर्ष 0.1 से 0.3 सेंटीमीटर के
हिसाब से बढ़ रहा है। समुद्र जलस्तर यदि इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो अगले
100 वर्षों में दुनिया के 50 प्रतिशत समुद्रतटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।
पर्यावरण
एवं वन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह
बढ़ता रहा तो भारत में बर्फ पिघलने के कारण गोवा के आस-पास समुद्र का
जलस्तर 46 से 58 सेमी, तक बढ़ जाएगा। परिणामस्वरूप गोवा और आंध्रप्रदेश के
समुद्र के किनारे के 5 से 10 प्रतिशत क्षेत्र डूब जायेंगे।
समस्त
विश्व में वर्ष 1998 को सबसे गर्म एवं वर्ष 2000 को द्वितीय गर्म वर्ष आँका
गया है। पश्चिमी अमेरिका की वर्ष 2002 की आग पिछले 50 वर्षों में किसी भी
वनक्षेत्र में लगी आग से ज्यादा भयंकर थी। बढ़ते तापमान के चलते सात मिलियन
एकड़ का वन क्षेत्र आग में झुलस गया।
आज हमारी धरती तापयुग के जिस
मुहाने पर खड़ी है, उस विभीषिका का अनुमान काफी पहले से ही किया जाने लगा
था। इस तरह की आशंका सर्वप्रथम बीसवीं सदी के प्रारंभ में आर्हीनियस एवं
थामस सी. चेम्बरलीन नामक दो वैज्ञानिकों ने की थी। किन्तु दुर्भाग्यवश इसका
अध्ययन 1958 से ही शुरू हो पाया। तब से कार्बन डाइऑक्साइड की सघनता को
विधिवत रिकॉर्ड रखा जाने लगा। भूमंडल के गरमाने के ठोस सबूत 1988 से मिलने
शुरू हुए। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस स्टीज के जेम्स ई.हेन्सन
ने 1960 से लेकर 20वीं सदी के अन्त तक के आंकड़ों से निष्कर्ष निकाला है कि
इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।"
'इन दोनों लेखों में मुझे जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात लगी वो ये कि 20 वीं सदी
के प्रारंभ में ग्लोबलवार्मिंग की आशंका हुई 1958 ईस्वी में इसके विषय में
अध्ययन प्रारंभ हो पाया तब से कार्बन डाइऑक्साइड की सघनता को
विधिवत रिकॉर्ड रखा जाने लगा किंतु भूमंडल के गरमाने के ठोस सबूत 1988 से
मिलने
शुरू हुए।जिसके आधार पर 1960 से लेकर 20वीं सदी के अन्त तक के आंकड़ों से
निष्कर्ष निकाल लिया गया कि इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7 डिग्री
सेल्सियस बढ़ गया है।"
इसके आधार पर ये निष्कर्ष निकाल लिया गया कि "धरती का तापमान लगातार बढ़ने से
समुद्र का जलस्तर धीरे-धीरे ऊँचा उठ रहा है। पिछले 50 वर्षों में
अंटार्कटिक प्रायद्वीप का 8000 वर्ग किलोमीटर का बर्फ का क्षेत्रफल पिघलकर
पानी बन चुका है। पिछले 100 वर्षों के दौरान समुद्र का जलस्तर लगभग 18
सेंटीमीटर ऊँचा उठा है। इस समय यह स्तर प्रतिवर्ष 0.1 से 0.3 सेंटीमीटर के
हिसाब से बढ़ रहा है। समुद्र जलस्तर यदि इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो अगले
100 वर्षों में दुनिया के 50 प्रतिशत समुद्रतटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।"
पर्यावरण
एवं वन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार -"अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह
बढ़ता रहा तो भारत में बर्फ पिघलने के कारण गोवा के आस-पास समुद्र का
जलस्तर 46 से 58 सेमी, तक बढ़ जाएगा। परिणामस्वरूप गोवा और आंध्रप्रदेश के
समुद्र के किनारे के 5 से 10 प्रतिशत क्षेत्र डूब जायेंगे।"
इसके अलावा यह भी माना गया-"समस्त
विश्व में वर्ष 1998 को सबसे गर्म एवं वर्ष 2000 को द्वितीय गर्म वर्ष आंका
गया है। पश्चिमी अमेरिका की वर्ष 2002 की आग पिछले 50 वर्षों में किसी भी
वनक्षेत्र में लगी आग से ज्यादा भयंकर थी। बढ़ते तापमान के चलते सात मिलियन
एकड़ का वन क्षेत्र आग में झुलस गया।"
इस विषय में समयवैज्ञानिक होने के नाते मेरी सलाह केवल इतनी है कि
ग्लोबलवार्मिंग जैसे विषयों में अभी तक वैज्ञानिकों के द्वारा कोई ठोस सबूत
प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं कुछ थोथे काल्पनिक आँकड़ों के आधार पर इतनी
बड़ी बड़ी बातें फेंकी जा रही हैं जिसमें विज्ञान जैसा तो कुछ है ही नहीं
सामान्य तर्क करने पर भी कुछ साक्ष्य सामने नहीं रखे जा सकते हैं !
विचारणीय विषय यह है कि इस ब्रह्माण्ड की आयु अरबों वर्ष की है तब से ये
सृष्टि ऐसी ही चली आ रही है आज तक इसका बाल भी बाँका नहीं हुआ है !दूसरी ओर
1958 में जिन वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग का अध्ययन क्या प्रारंभ
किया !उन्हें भूमंडल के गरमाने के ठोस सबूत 1988 से मिलने
शुरू हुए।जिसके आधार पर उन्होंने 1960 से लेकर 20वीं सदी के अन्त तक के
आंकड़ों से निष्कर्ष निकाल लिया कि इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7
डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।"क्या ये जल्दबाजी नहीं है !
अरबों वर्ष से चली आ रही सृष्टि के स्वभाव को
समझना इस अत्यंत छोटे से काल खंड में कैसे संभव है !इसी में आशंका हुई इसी
में अध्ययन भी शरू हो गया और इसी में आंकड़े भी जुटा लिए गए और निष्कर्ष भी
निकाल लिया गया तथा उसके आधार पर इतनी बड़ी बड़ी
डरावनी भविष्यवाणियाँ भी कर दी गईं !मैं समयवैज्ञानिक होने के नाते यह कह
सकता हूँ कि ऐसी घटनाओं का सीधा संबंध समय से है इसलिए समय संबंधी विषयों
की व्याख्या करते समय इतना उतावलापन ठीक नहीं है उसके आधारपर किसी ठोस
निष्कर्ष पर पहुँचे बिना डरावनी भविष्यवाणियाँ करना तो कतई ठीक नहीं है
जैसा कि अक्सर देखने सुनने को मिला करता है !जो गलत है !
इस विषय में हमारा दूसरा बिचार यह भी है कि " सृष्टि का स्वभाव जैसा
करोड़ों अरबों वर्षों से चला आ रहा है वैसा ही आज भी है समय के साथ साथ होने
वाले छुट पुट परिवर्तनों के होते रहने पर उनका आपसी तारतम्य प्रकृति स्वयं
साथ साथ बैठाती चल रही है ये तो हमेंशा से चला आ रहा है!फिर ये सोचना कि
गर्मी बढ़ने से बर्फ पिघलना शुरू हो जाएगा ऐसा निश्चय कैसे मान लिया जाए
!हो न हो समय के प्रभाव से ग्लोबल वार्मिंग यदि बढ़े भी तो समय का असर बर्फ
पर भी पड़े और बर्फ के स्वभाव में भी बदलाव आवे इस कारण उतनी गर्मी सहने
की सामर्थ्य उसमें स्वतः ही पैदा हो जाए !
प्रकृति यदि किसी को अंधा बनाती है तो उसकी बाकी इन्द्रियों की सामर्थ्य
अधिक बढ़ते देखी जाती है इसीलिए ऐसे लोग सारे काम बहुत अच्छे ढंग से करते देखे जाते हैं
ऐसे ही अन्य अंगों के अभाव में भी देखा जाता है !
इसी प्रकार से जो लोग बहुत ठंडे प्रदेशों में रहते रहे हों और अचानक किसी
गर्म प्रदेश में रहने चले जाएँ तो रोगी हो जाएँगे किंतु कुछ वर्ष तक वहाँ
वैसी ही परिस्थिति में रहते रहें तो उनका शरीर भी उस परिस्थिति को सहने का
अभ्यासी हो जाएगा और वो उसमें आनंदित रहने लगेगा !परिस्थितियों के अनुशार
प्रकृति के सभी अंगों में एक समान क्रमिक परिवर्तन होते देखे जाते हैं
!प्रकृति स्वयं संतुलन बैठाती चलती है !
इसलिए ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के विषय में ये कहना कि "वायुमण्डलीय तापमान में बढ़ रहे असंतुलन का खामियाजा मनुष्य ही नहीं
पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी भुगत रहे हैं। पशुओं और पेड़-पौधेां की 11000
प्रजातियाँ या तो समाप्त हो चुकी हैं या समाप्त होने के कगार पर पहुँच गयी
हैं। प्रतिवर्ष ग्लोबल वार्मिंग में 15 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो
जाता है।" ये तथ्यपरक तर्कसंगत एवं विश्वास करने योग्य नहीं माना जा सकता है !
इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि -"समस्त
विश्व में वर्ष 1998 को सबसे गर्म एवं वर्ष 2000 को द्वितीय गर्म वर्ष आंका
गया है। पश्चिमी अमेरिका की वर्ष 2002 की आग पिछले 50 वर्षों में किसी भी
वनक्षेत्र में लगी आग से ज्यादा भयंकर थी। बढ़ते तापमान के चलते सात मिलियन
एकड़ का वन क्षेत्र आग में झुलस गया।"
यदि ऐसा होता तो वर्ष 1998 और वर्ष 2000 ही सबसे गर्म क्यों होता वो गर्मी तो क्रमिक रूप से बढ़ती जानी चाहिए थी !दूसरी
बात वो केवल अमेरिका के बन क्षेत्र में ही क्यों लगती और भी जहाँ कहीं बन
क्षेत्र हैं उनमें भी लगती उतनी भयंकर न लगती तो कुछ कम ज्यादा लगती किंतु
सब जगह ऐसा होता हुआ तो नहीं देखा गया !इसलिए जो घटना ग्लोबलरूप में घटी ही
नहीं उसे ग्लोबलवार्मिंग का परिणाम कैसे माना जा सकता है !
दूसरी बात यदि अमेरिका के किसी क्षेत्र में आग लग जाती है तो उसका
कारण यदि ग्लोबलवार्मिंग को माना जा सकता है तो जब उसी अमेरिका में तापमान
इतना अधिक गिर जाता है कि सभी जगह बर्फ जम जाती है तो उस पर ग्लोबल
वार्मिंग का असर होते क्यों नहीं दिखाई पड़ता है!इसलिए कहा जा सकता है कि इस
प्रकार की ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिकल्पना ही आधार विहीन और अविश्वसनीय तथ्यों पर
आधारित है !
यहाँ विशेष बात ये है कि प्रकृति में होने वाले सभी प्रकार के प्राकृतिक
परिवर्तनों में भी एक क्रमिक लय होती है !जैसे प्रातःकाल सबेरा होता है तब
सूर्य का प्रकाश और तेज कम होता है उसके बाद दोपहर तक क्रमशः बढ़ता जाता है
और दोपहर के बाद क्रमशः घटता चला जाता है !ये नियम है और हमेंशा से यही
होता चला आ रहा है और यही क्रम आगे भी चलता रहेगा !ऐसा ही होगा ये निश्चय
है !प्रकृति के नियम से जो परिचित हैं उन्हें ऐसा विश्वास भी है और यही
सच्चाई है !
प्रकृति के इस नियम से अपरिचित कोई भी वैज्ञानिक वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग
पद्धति से इसी बात पर यदि रिसर्च करने को उतावला हो और वह प्रातः 10 ,11और
12 बजे के तापमान के सैंपल उठाकर उनका परीक्षण करके निष्कर्ष निकालना चाह
ले तो तापमान क्रमशः बढ़ता दिखाई देगा!10 बजे से 11बजे का तापमान अधिक
होगा और 11 बजे से 12 बजे का तापमान अधिक होगा !इसके आधार पर ग्लोबल
वार्मिंग पद्धति से अनुमान लगाया जाए तब तो दिन के 12 बजे की अपेक्षा 13,
14 ,15 बजे से लेकर रात्रि में 24 बजे तक तापमान इतना अधिक बढ़ जाएगा कि
दिन 12 बजे की अपेक्षा रात्रि 24 बजे का तापमान तो दो गुणा हो जाएगा !इसके
बाद अगले दिन का तापमान तो और अधिक हो जाएगा जैसे जैसे समय आगे बढ़ते
जाएगा वैसे वैसे तापमान भी बढ़ता चला जाएगा ! इस परिस्थिति का अध्ययन भी
यदि आधुनिक ग्लोबल वार्मिंग प्रक्रिया से किया जाए तब तो महीने दो महीने
में ही महाप्रलय होने की भविष्यवाणी की जा सकती है !जो ग्लोबलवार्मिंग की
तरह ही गलत होगी !
जिस प्रकार से दिन के तापमान के बढ़ने घटने के क्रम को समझना है तो किसी
संपूर्ण दिन के तापमान का डेटा जुटाना होगा उसके आधार पर ये जाना जा सकेगा
कि दिन और रात का तापमान कब कितना बढ़ता है और कब कितना घटता है !यदि कुछ
दिनों के तापमान के डेटा का संग्रह किया जाए तो इसमें कुछ और नए अनुभव
मिलेंगे !किसी दिन बादल होगा किसी दिन वर्षा होगी किसी दिन हवा चल रही होगी
ऐसी तीनों परिस्थितियों का असर तापमान के बढ़ने घटने पर पड़ना स्वाभाविक ही
है !यही डेटा यदि एक वर्ष का लिया जाए तो उसमें सर्दी गर्मी और वर्षात जैसी
ऋतुएँ भी आएँगी जाएँगी तापमान पर उनका भी असर पड़ेगा ऐसी परिस्थिति में
जितने लंबे समय तक के डेटा का संग्रह किया जाएगा उसके आधार पर अध्ययन करने
और निष्कर्ष निकालने में उतनी अधिक सुविधा होगी !
यहाँ तो करोड़ों अरबों वर्ष पहले से चले आ रहे सृष्टि क्रम को समझे
बिना 1958 में ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषयों पर अध्ययन शुरू किया गया और
1988 से भूमंडल के गरमाने के सबूत मिलने
शुरू हुए और दो हजार पहुँचते पहुँचते निष्कर्ष निकाल लिया गया कि भूमंडल के
गरम हो रहा है इससे होने वाले काल्पनिक विनाश की लगे हाथ भविष्यवाणी भी कर
दी गई !जहाँ जहाँ आग लगी या गर्मी बढ़ी उन्हें उदाहरण के रूप में प्रस्तुत
कर दिया गया !प्रकृति संबंधी अनुसंधानों के विषय में इतना उतावलापन और
गंभीरता का इतना अभाव !
करोड़ों अरबों वर्ष पहले बनी सृष्टि जो तबसे अभी तक उसी स्वरूप में चली
आ रही है प्रकृति में समय के साथ साथ अनेकों प्रकार के छोटे बड़े बदलाव भी
होते रहे हैं सूर्य चंद्र और हवा का प्रभाव न्यूनाधिक होने से प्रकृति में
तमाम प्रकार की घटनाएँ घटित होती रही हैं सूर्य का प्रभाव बढ़ा तो गर्मी
बढ़ी और चंद्र का प्रभाव बढ़ने से ठंढक बढ़ती है !इसके अलावा भी ठंडी तब बढ़
पाती है जब गर्मी का प्रभाव घटता है इसी प्रकार से गर्मी तब बढ़ पाती है जब
ठंढी का प्रभाव बढ़ता है !अकेले गर्मी नहीं बढ़ सकती है तो फिर ग्लोबल
वार्मिंग के नाम से केवल गर्मी बढ़ी तो प्रश्न ये भी उठता है कि ठंडी घटने
का कारण क्या है !कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ क्षेत्रों में सर्दी की ऋतु में
होने वाली भीषण वर्फवारी के माध्यम से प्रकृति स्वतः तापमान घटाकर संतुलन
बनाने का प्रयास कर रही हो !जो वैसे भी प्रकृति समय समय पर किया करती है
!गर्मी की ऋतु में बढ़े हुए तापमान को वर्षा ऋतु शांत करती है उसके बाद
सर्दी बढ़ती जाती है तो प्रकृति ग्रीष्म ऋतु के माध्यम से सर्दी के वेग को
शांत कर लेती है !इस प्रकार से सुधार और संतुलन बनाने की व्यवस्था प्रकृति
में ही विद्यमान है उसी हिसाब से प्रकृति का चक्र बना हुआ है !ऐसी
परिस्थिति में ग्लोबल वार्मिंग आदि को नियंत्रित करने की व्यवस्था प्रकृति
में नहीं होगी ऐसा सोचना अज्ञान जनक है !दूसरी बात यह सोचना कि ग्लोबल
वार्मिंग जैसी कोई परिस्थिति यदि पैदा भी हो रही हो तो उसका कारण मनुष्य
आदि समस्त जीव जंतुओं के द्वारा किया गया कोई प्रयास होगा ये सबसे बढ़ा भ्रम
है उससे भी बड़ा भ्रम यह है कि तथा कथित ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिस्थिति को
मनुष्यकृत प्रयासों से नियंत्रित किया जा सकता है !प्रकृति के रुख को मोड़
पाना मनुष्यों के बश की बात नहीं है !सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का
कारण और निवारण कोई न कोई प्राकृतिक घटना ही कर सकती है !कहावत है कि हाथी
की लात केवल हाथी ही सह सकता है दूसरा कोई नहीं !प्राकृतिक परिस्थितियाँ
असीम शक्तिशाली होती हैं उन पर अंकुश कोई मनुष्य कैसे लगा सकता है !
इसलिए यदि आधिनिक वैज्ञानिकों को लगता ही है कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई
घटना घटित हो ही रही है तो उन्हें बिना समय गँवाए इसका कारण प्राकृतिक
परिस्थितियों में ही खोजना चाहिए !कई बार ये कारण इतने गूढ़ होते हैं कि
दिखाई नहीं पड़ते हैं और आसानी से समझ में नहीं आते हैं !आदि काल में चंद्र
और सूर्य ग्रहण जब घटित हुए होंगे तो इनके घटित होने का कारण देख पाना
मनुष्य के बश की बात नहीं है !क्योंकि चंद्रग्रहण में सूर्य और चंद्र के
बीच वो पृथ्वी होती है जिस पर मनुष्य रह रहा होता है इतनी बड़ी कल्पना वो
कैसे कर सकता था कि इसी सीध में इसके नीचे सूर्य होगा उससे उत्पन्न परछाया
ही हमें चंद्र में ग्रहण रूप में दिखाई पड़ रही है !
इसी प्रकार से सूर्य ग्रहण में उस ग्रहण के घटित होने का मुख्य कारण
चंद्र कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा होता है फिर भी पूर्वजों ने न केवल उस ग्रहण
के कारण को खोजा अपितु ग्रहणों के पूर्वानुमान सैकड़ों वर्ष पहले लगा लेने
की सफलता भी हासिल की !वो वास्तव में वैज्ञानिक थे तथा उनके अनुसंधान को
वास्तव में अनुसंधान मानने में गर्व होता है !