भूकंप जैसी बातों के विषय में वैदिक वाङ्मय से संबंधित शास्त्रीय बातों की उपेक्षा क्यों ?
भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं को शास्त्रों में उत्पात माना गया है और उत्पातों का कोई फल जरूर होता है अर्थात यदि भूकंप आया है तो उस क्षेत्र की प्रकृति में निकट भविष्य में कुछ ऐसा उपद्रव घटित होने की संभावना होती है जिसकी सूचना दे रहे होते हैं भूकंप जैसे प्राकृतिक उत्पात !
शास्त्रीय मान्यता है कि 'सदसद्फलबोधार्थं' चेतावनी देने की प्रक्रिया हैं प्राकृतिक उत्पात !हम लोग जिस जगह जिस प्रकार से रह रहे होते हैं उस जगह वहाँ के लोगों से जब ऐसी गलतियाँ होने लगती हैं जिससे कि प्रकृति को अपना अपमान लगने लगता है उस समय प्रकृति उत्पातों के माध्यम से सँदेशा भेजने लगती है फिर भी यदि लोगों का आचार व्यवहार नहीं सुधरता है तब घटित होती हैं प्राकृतिक दुखद घटनाएँ !उत्पात और घटना के बीच कुछ दिनों का अंतराल प्रकृति इसीलिए रखती है ताकि क्षेत्र के लोग यदि सुधरना चाहें तो सुधर जाएँ यदि उन्हीं अंत्यंत कम दिनों में समाज सुधार की ओर मुड़ जाए तो प्रकृति का क्रोध कम होकर और निकट भविष्य में घटित होने वाली कुछ बड़ी दुर्घनाओं को घटित होने से बचाया जा सकता है ||
प्रकृति के इस रहस्य को न समझने के कारण हम भूकंपों को ही मुख्यघटना समझ लेते हैं वस्तुतः घटना कोई और घटनी होती है जो उत्पातों के कुछ दिन बाद में घटती है किंतु हम उसे स्वतंत्र घटना मान लेते हैं और दोनों को सह जाते हैं प्रकृति में संतुलन लाने के लिए ही उत्पात जन्म लेते हैं जो अनेकों प्रकार के होते हैं और उनके भिन्न -भिन्न प्रकार के फल होते हैं
प्रायः
१ देवमूर्तियों का नृत्य करना | २ जब देवमूर्ति बिना किसी प्रत्यक्ष के कारण गिर पड़े | ३ या देवमूर्ति जलने लगे | ४ देवमूर्ति बार - बार रोने लगे | ५ गाने लगे | ६ देवमूर्ति के प्रस्वेद (पसीना) निकले | ७ देवमूर्ति हँसने लगे| ८ उनके मुँह से अग्नि की ज्वाला निकलने लगे | ९ अथवा देवमूर्ति के मुख से धूप ,घी - तेल , दूध ,रक्त
या जल का वमन होने लगे | १० अथवा देवप्रतिमा औँधे मुख हो जाए | ११ अथवा देवमूर्ति एक स्थान से दूसरे स्थान में अपने आप चली जाए | इस प्रकार के विकार जब किसी प्रतिमा में प्रकट हों तो उसे उत्पाद समझना चाहिए || १- १/२ ||
आकाश में गन्धर्वनगर (आकाश में बादलों में नगर सा बसा हुआ) दिखाई देना ,दिन में नक्षत्रों (तारों)का दिखना, बड़ी - बड़ी उल्काओं का गिरना ,आकाश से काठ , तृण तथा रक्त (अथवा मछलियों आदि की ) की वर्षा होना | गंधर्वगेह (आकाश) में धुअाँ दिखलाई पड़ना , भूकंप आना , बिना आग के चिंगारियाँ निकलती हुई दिखलायी
देना , बिना ईंधन के आग जलते हुए दिखाई देना , रात्रि के समय आकाश में इंद्रधनुष का दिखयी देना , आकाश से मेंढको की वर्षा होना , आकाश में शिखर तथा श्र्वेत कौए का दिखाई देना - ये सब उत्पाद हैं || ३ - ४ ||
गाय, बैल।,हाथी घोडा , ऊँट आदि के शरीर से चिंगारियां निकलती दिखाई दें | दो - तीन सिर के पशु या बालक का जनम होना अथवा एक जाती के पशु में दूसरे जाती के पशु का शावक पैदा होना (जैसे की गाये के शरीर से भैंस के बच्चे का प्रसव होना ) - ये सभी उत्पात हैं || ६ ||
१ आकाश में सूर्या के विपरीत दिशा में दूसरा सूर्या (प्रतिसूर्य) दिखलाई पड़ना , एक ही समय में एक साथ चारों दिशाओं में इंद्रधनुष के दर्शन होना - ये सब उत्पात हैं |
२ जम्बुकों (गीदड़ या सियार) का गाँव में निवास करना अथवा अकारण प्रवेश कर जाना भी उत्पात हैं |
३ धूमकेतुओं का दर्शन भी उत्पात होता है || ७ ||
१ यदि रात्रि के समय कौओं का कोलाहल तथा दिन के समय कपोतों (कबूतरों) का हल्ला सुनाई पड़े तो उत्पात होता है | २ यदि किसी वृक्ष में असमय में फल लगे हो तो वह भी उत्पात मानना चाहिए || ८ ||
अकाल में फल देने वाले वृक्ष को काट देना चाहिए तथा प्राचीन विद्वानों के अनुसार इन उत्पातों की शांति भी करनी चाहिए || ८ १ /२ ||
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