Thursday, 15 June 2017

नेतालोग जनसमस्याएँ सुन तो सकते हैं किंतु काम नहीं कर सकते ! जिन्हें काम करना है वे समस्याएँ नहीं सुनते तो काम क्या करेंगे?

 "आज गोरखपुर प्रवास के दौरान गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित आवास पर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से बड़ी संख्या में आए लोगों की समस्याओं को सुना" - योगी आदित्यनाथ 
   किंतु योगी जी प्रदेश के विभिन्न जनपदों से बड़ी संख्या में आए लोगों की समस्याओं को आपने क्यों सुना?उन जनपदों में अधिकारी नहीं हैं क्या ?आखिर उन्हें सैलरी किसलिए दी जाती है !मुख्यमंत्री जी समस्याएँ यदि आप भी सुनेंगे तो भी काम तो उन्हीं को करना होगा आपतो करने जाओगे नहीं ! जो अधिकारीगण लोगों की  समस्याएँ नहीं सुन सकते वे काम क्या करेंगे ?और आप जन समस्याएँ सुन कर भी क्या कर लेंगे जब तक वे काम नहीं करेंगे !जिन अधिकारियों को  काम ही करना होता वे आपके मुख्यमंत्री बनने की प्रतीक्षा ही क्यों करते सारी  जनसमस्याएँ पहले ही अपना दायित्व समझ कर निपटा चुके होते किंतु जिन्होंने काम करने की इच्छा ही छोड़ दी हो उनसे कोई काम कैसे करवा लेगा !बड़े बड़े मुख्यमंत्रियों की छवि अपने आचरणों से बना बिगाड़ देने की क्षमता रखने वाले वही सर्व सक्षम अधिकारी कर्मचारी आपको  छोड़ देंगे क्या ?
       जन समस्याएँ सुनने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है इसी बहाने अपना अपना बड़प्पन परोस रहे हैं बड़े बड़े नेता लोग !विधायक सांसद मंत्री आदि सभी तो जन समस्याएँ सुन रहे हैं सिफारिशी लेटर लिख लिख कर धड़ाधड़ जनता में बँटवा रहे हैं किंतु जिनके आदेशों की अवहेलना आसानी से कर दी जाती हो जिन मंत्रियों की मीटिंगों में जो अधिकारी बैठकर सोया करते हों जिनकी घोषणाओं को तवज्जो न दी जाती हो उनके लिखे लेटरों के साथ वे अधिकारी लोग कैसा सलूक करते होंगे ये उन आफिसों से निकलने वाली रद्दी से ही पता चल पाएगा !
      बीमारी केवल अधिकारीयों कर्मचारियों तक ही नहीं है अपितु जिन नेताओं को जनता चुनावों में वोट देकर जितवा देती है जिन के लिए पार्टी कार्यकर्ता दिन रात  जग जग कर परिश्रम करते हैं पार्टियों के आनुसंगिक संगठनों के समर्पित भूमिगत कार्यकर्ता जिनका लक्ष्य ही पार्टी को सत्ता में लाना होता है उसके लिए वो सब कुछ करते हैं जिससे पार्टी सत्ता में आवे किंतु सत्तासीन होने के बाद उसी पार्टी के विधायक सांसद मंत्री मंत्री बने फिरने वाले लोग उन्हीं कार्यकर्ताओं का फोन नहीं उठाते उनसे मिलते नहीं हैं फोन नम्बर बदल लेते हैं सत्तासीन नेताओं की मानसिकता में स्वार्थ का जहर इतना अधिक फैल जाता है कि वे काम केवल अपनों का अपने नाते रिश्तेदारों का ही कर पाते हैं बाक़ी  कार्यकर्ताओं को तो झूठे आश्वासन दे दे कर ही चिपकाए रहते हैं !जनता के लिए कभी न पूरी हो पाने वाली नित नूतन घोषणाएँ !
   मैंने भी कई कई घंटे जिस पार्टी के लिए सोसल साइटों पर समय समर्पित किया वो पार्टी सत्ता में आई फिर हमारी बात मानना तो दूर सुनना ही नहीं चाहते हैं सत्ता मूर्च्छित लोग ! हमारे लिखे हुए पत्रों का उत्तर नहीं देते हमसे फोन पर बात नहीं करते !माँगते माँगते भी मिलने का समय ही नहीं देते हैं जो अपनी जरूरतों को हम भी रख सकें आखिर मेरा भी योगदान तो हमारे लिए फलित होना चाहिए किंतु हमारे द्वारा संपूर्ण रूप से समर्पित होने पर भी जो हमारे साथ ऐसा उपेक्षा पूर्ण वर्ताव करते हैं वे आम जनता के साथ कैसा वर्ताव करते होंगे इसका सहज अनुमान किया जा सकता है | कई बार तो इतना पश्चात्ताप होता है कि हमारा बहुमूल्य समय और समर्पण ऐसे तुच्छ लोगों के लायक तो न था जो इन्सान को इन्सान समझने को ही तैयार नहीं हैं वे जनता के दुःख दर्द को क्या समझेंगे और कैसे दूर कर सकेंगे जन समस्याएँ केवल सुन ही सकते हैं तो सुनते रहें अपना अपना शौक !बहुत लोग गाने भी तो सुना करते हैं ऐसे ही नेता लोग जन समस्याएँ सुना करते हैं |

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