Saturday, 17 June 2017

सरकार कर रही है भीषण पक्षपात !किसानों मजदूरों अफसरों नेताओं की जीवन शैली में इतना बड़ा अंतर !

   किसानों की आत्महत्याओं के लिए दोषी हैं अभी तक की सरकारें और सरकारी अधिकारी कर्मचारी !
    गरीबों ग्रामीणों किसानों मजदूरों का शोषण करती  रही हैं सरकारें और सरकारी कर्मचारी !जब सदनों में जाकर हुल्लड़ मचाने की सैलरी जनप्रतिनिधि नेता ले सकते हैं और काम न करने की सैलरी काम करने के लिए नियुक्त अधिकारियों  कर्मचारियों को दी जा सकती है तो गरीबों ग्रामीणों मजदूरों किसानों को भी कम से कम चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों के बराबर सैलरी क्यों न दी जाए !जिससे फसल नष्ट होने पर भी उनके जीवन यापन का भरोसा बना रहे और उन्हें आत्महत्या न करनी पड़े !
    लाख दो लाख रूपए का कर्ज न चुका पाने की शर्म से जान दे देते हैं किसान !दूसरी ओर करोड़ों रूपए का कर्ज उठाकर भी अपने को ऋणी नहीं मानते हैं सरकारी अधिकारी कर्मचारी ! क्यों ?
   प्रजा प्रजा में इतना बड़ा भेद खेद का विषय है !देश की आजादी पर सबका सामान अधिकार है फिर भी इतना बड़ा आर्थिक अंतर !ये सरकार के लिए शर्मनाक है !
    सरकारी कर्मचारियों में अधिकारियों और कर्मचारियों को बड़े छोटे पद का आधार केवल  उनकी योग्यता न माना जाए अपितु योग्यता के साथ साथ उनकी जनसेवा भावना,जनसमर्पण,कर्तव्यनिष्ठा जिम्मेदारी निभाने की शैली एवं राष्ट्र में संस्कार सदाचार के बीज बोने की योग्यता जैसे मानकों  बनाया जाए !
     जिस काम को करने की सैलरी जिस अधिकारी कर्मचारी को मिलती है यदि वे अपने काम का निर्वाह ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं और उनकी कलंकित कार्यशैली के कारण  सरकारी स्कूलों अस्पतालों टेलीफोन मोबाईल  डाक आदि  विभागों की दिनोंदिन भद्द पिटती जा रही है जबकि प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों मोबाइलों कोरियर वालों ने जनता का भरोसा जीत रखा है !तो अधिकारी कर्मचारी ऋणी हुए या नहीं ?
       ऐसी परिस्थिति में अपनी सेवाओं के द्वारा जनता का भरोसा जीतने में असफल अयोग्य गैरजिम्मेदार अकर्मण्य लोगों को जनता की कमाई से प्राप्त टैक्स के धन से सैलरी लेने का कितना नैतिक अधिकार है !वो सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों पर जनता का ऋण नहीं तो क्या है !
      कोई बहू अपने पति को अपनी सेवाओं से संतुष्ट न कर पावे तो कितने दिन रह पाएगी उस घर में !कोई नौकर अपने मालिक को संतुष्ट न कर पावे तो कितने दिन रह पाएगा उस काम में !
   इसी प्रकार से जो सरकारी अधिकारी कर्मचारी अपनी सेवाओं से जनता को संतुष्ट न कर पा रहे हों उन्हें कितने दिन रखा जाना चाहिए उनके पदों पर !
     प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों मोबाइलों कोरियर वालों ने जनता का भरोसा जीत रखा है सरकारी वालों ने नहीं इसका मतलब क्या समझा जाए  बड़ी अच्छी सेवाएँ दे रहे हैं !
     ऐसे लोगों को लाखों रूपए सैलरी देना ऊपर से बढ़ाते चले जाना ये सरकार का बौद्धिक दिवालियापन ,गैर जिम्मेदारी या भ्रष्टाचार !क्या माना जाए ?      
     देश की जनता का करोड़ों रूपए का कर्ज है सरकारी अधिकारीयों कर्मचारियों पर फिर भी सैलरी बढ़ाती जा रही है सरकार !
अधिकारी का मतलब क्या ?अधिकारी होते किसलिए हैं जिम्मेदारी न निभापाने  वाले अधिकारी किस बात के ?
  एयरकंडीशंड कमरों में कैद रहने के लिए अधिकारियों को दी जा रही है लाखों रूपए सैलरी तो दूसरी ओर लाख दो लाख रुपए का कर्ज न अदा कर पाने के कारण आत्महत्या कर रहे हैं किसान !
        भ्रष्टाचारी नेतालोग  अपनी सम्पत्तियों के बढ़ने का कारण उन्हें मिले गिफ्ट बताते हैं ऐसे गिफ्ट देने और लेने वाले दोनों को दोषी क्यों न माना जाए !इतने महँगे गिफ्ट वही देगा जिसने कोई बड़ा गैरकानूनी काम करवाकर भ्रष्टाचार से बड़ा धन कमाया होगा वही देगा इतना महँगा गिफ्ट !भ्रष्टाचार के ऐसे रैकेटों का भंडाफोड़ करे सरकार !   
   सरकारों में सम्मिलित नेता लोग केवल समस्याएँ सुनते हैं उनका समाधान कितना करते हैं ये तो वही जानें जन समस्याएँ सुनने का शौक हो या गाने सुनने का शौक तो शौक ही है  फैशन के इस युग में नेताओं का भी अपना फैशन है  जन समस्याएँ सुनने का और इसमें बुराई भी क्या है ?शौक अपना अपना ! 
    जन समस्याएँ सुनकर नेता लोग उन समस्याओं का करते आखिर क्या हैं कहीं उन जन समस्याओं का सीधे अचार तो नहीं डाल देते हैं ताकि वो अधिक से अधिक दिनों तक सुरक्षित रखी जा सकें जिससे अपना महत्त्व बना रहे !या फिर इन जन समस्याओं का कोई और भी उपयोग करती है सरकार !कहीं इन्हीं जनसमस्याओं से बिजली तो नहीं बनाने लगी है सरकार! या ब्लैक मार्केटिंग ही हो रही हो क्या जाने !आखिर समस्याएँ सुनने में सरकार की इतनी रूचि क्यों है जितनी उनका समाधान खोजने में नहीं है !लगता है कि जनसमस्याओं का समाधान अब नेताओं के बश का है ही नहीं  ये सर्वविदित है |
      जब अधिकारियों कर्मचारियों के चमचों को ये  पता है कि उनकी कोई सुनता नहीं है उन्हें कोई मानता नहीं हैं वैसे भी किसी को कुछ करना धरना है नहीं तो झुट्ठौ क्यों नाटक करते हैं जन समस्याएँ सुनने का !और सुनकर क्या कर लेंगे ?
      सरकारी नेता लोग खुद काम करते नहीं हैं सरकारी मशीनरी पर उनका अंकुश नहीं है बाल बाँका उसका कर नहीं सकते !तो काम न करने वाले अधिकारियों कर्मचारियों के सामने गिड़गिड़ाने के अलावा जनप्रतिनिधि उनका बिगाड़ आखिर क्या लेंगे !गिड़गिड़ानेसे कोई काम करता है क्या ?
    जनप्रतिनिधियों के यहाँ जनसमस्याएँ सुनने की दुकानें प्रातः खोल दी जाती हैं बिना किसी व्यापार के बंद कर दी जाती हैं सायंकाल !दिन भर झूठे  आश्वासनों की बिक्री होती है वो सिफारिशी लेटर बाँटे जा रहे होते हैं जिन पर लगी मोहर और किए गए साइन हँस रहे होते हैं मानो कह रहे हों कि हमें क्यों लिए जा रहे हो बेइज्जती करवाने कोई नहीं मानता है अब हमें !
     तंग केवल वो जनता होती है जो ऐसे नेताओं पर भरोसा करके इनके यहाँ बड़ी आशा लेकर आती है !जिस देश में एक लाख रूपए के कर्ज के पीछे किसान आत्म हत्या कर लेता हो और कई कई लाख महीने की सैलरी उन विभागों के अधिकारियों कर्मचारियों को दी जाती हो जिनके काम न करने के कारण या घूस खोरी के कारण बड़े धूम धाम से बनने वाली सरकारें पाँच वर्ष बाद धक्का मारकर सत्ता से कर दी जाती हों !वो बेचारे सरकारी नेता कागजों फाइलों पर देख  देख देख कर संतोष किया करते हैं कि सरकार तो बड़ा अच्छा काम कर रही है अपने भाषणों में वहीँ फाइलों में लिखा झूठ पढ़ पढ़ कर सुनाया करते हैं जनता मनोरंजन किया करती है !ये शर्म की बात है कि जिस जनता का  विकास करने का आप दवा ठोंक रहे हो उस जनता को पता नहीं होगा क्या कि आपने क्या किया है !किसी भूखे व्यक्ति को समझाया जाए कि मैंने आपको इतनी रोटियाँ दी हैं किंतु उसके पेट में कोई न पहुंची हो तो क्या वो मन लेगा या मान लेना चाहिए !विगत कई दशकों से ऐसे ही घसिट रहा है लोक तंत्र !
     विपक्षी लोग जब सत्ता में आ जाते हैं तब वो भी समस्याओं के समाधान के लिए प्रत्यक्ष देखने की अपेक्षा फाइलों में विकास देखने लगते हैं तो उन्हें भी पूर्व वर्ती सरकार की तरह संतोष हो जाता है कि काम काज अच्छा हो रहा है !विपक्ष में थे तब अपनी इच्छा से चलते थे आम जनता   थे तब विकास की  सच्चाई पता लगती थी कि सत्ता में आते ही अपने को सीक्योरिटी मिलते ही समझ लेते हैं देश अब सुरक्षित हो गया !भ्रष्ट सरकारी मशीनरी इतनी चतुर है वो उन्हें चिकनी रोडों से ले जाती है वे बुद्धू समझ लेते हैं कि रोड तो अब ठीक हो गई हैं | यही हर सरकार की हर योजना की सच्चाई है !नेताओं के कलर की तौलिया बदल बदलकर उन्हें खुश बना रखते हैं अधिकारी कर्मचारी !नेताओं को तौलिए के कलर से ज्यादा चिंता यदि जनता के कामों की होती तो ये जनता के काम करने के लिए भी मजबूर होते किंतु तौलिया बदलने से  ही खुश हो जाते हैं तो जनसेवा की जरूरत ही क्या है !
  सांसदों विधायकों पार्षदों मंत्रियों मुख्यमंत्रियों के यहाँ जन समस्याएँ सुनने के लिए सुबह से दुकानें लग जाती हैं दूर दूर से दीन दुखी लोग अपने रोजी रोटी से जुड़े अपने जरूरी काम धाम छोड़कर जनप्रतिनिधियों के दरवाजों पर हाजिरी देने के लिए मजबूर होते हैं किंतु जनप्रतिनिधियों की क्या ये जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए कि वे अपने अधिकारियों कर्मचारियों से पूछें कि आपके जिलों विभागों से संबंधित शिकायतें लेकर हमारे पास क्यों आते हैं आखिर आप से उनका विश्वास क्यों उठा है इसके लिए आप कितने जिम्मेदार हैं वो भी तब जबकि आप इसी काम के लिए सरकार से सैलरी लेते हैं क्या आपकी जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए उस जनता को अपने काम से खुश रखें !कोई नौकर यदि अपने मालिक की इच्छा के अनुरूप काम न करे तो कितने दिन रह पाएगा अपने पद पर कब तक ले पाएगा सैलरी !किंतु ये सरकारी काम में ही संभव हैं जहाँ बिना काम किए भी सब कुछ मिलना संभव होता है इसके दो ही कारण हो सकते हैं या तो उनकी अकर्मण्यता में जनप्रतिनिधि सम्मिलित हैं या फिर उनके भ्रष्टाचार में सहभागिता निभा रहे हैं या फिर जन प्रतिनिधि शैक्षणिक दृष्टि से इतने अक्षम होते हैं कि वे पढ़े लिखे अधिकारियों कर्मचारियों का भयवश सामना करने लायक ही नहीं होते हैं कि वे जनता के कामों के लिए उन पर दबाव दे सकें !जबकि सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वाले अधिकारियों कर्मचारियों से ईमानदारी कर्मठता जिम्मेदारी कर्मनिष्ठा पूर्वक जन सेवा करने की अपेक्षा की जा सके !ऐसे लोगों के पदों पर रहते अच्छे काम करना तो दूर उसके सपने भी नहीं देखे जा सकते हैं !
    मैंने ट्विटर पर पढ़ा -    "आज गोरखपुर प्रवास के दौरान गोरखनाथ मंदिर परिसर स्थित आवास पर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से बड़ी संख्या में आए लोगों की समस्याओं को सुना" - योगी आदित्यनाथ
   किंतु योगी जी प्रदेश के विभिन्न जनपदों से बड़ी संख्या में आए लोगों की समस्याओं को आपने क्यों सुना?उन जनपदों में अधिकारी नहीं हैं क्या ?आखिर उन्हें सैलरी किसलिए दी जाती है !मुख्यमंत्री जी समस्याएँ यदि आप भी सुनेंगे तो भी काम तो उन्हीं को करना होगा आपतो करने जाओगे नहीं ! जो अधिकारीगण लोगों की  समस्याएँ नहीं सुन सकते वे काम क्या करेंगे ?और आप जन समस्याएँ सुन कर भी क्या कर लेंगे जब तक वे काम नहीं करेंगे !जिन अधिकारियों को  काम ही करना होता वे आपके मुख्यमंत्री बनने की प्रतीक्षा ही क्यों करते सारी  जनसमस्याएँ पहले ही अपना दायित्व समझ कर निपटा चुके होते किंतु जिन्होंने काम करने की इच्छा ही छोड़ दी हो उनसे कोई काम कैसे करवा लेगा !बड़े बड़े मुख्यमंत्रियों की छवि अपने आचरणों से बना बिगाड़ देने की क्षमता रखने वाले वही सर्व सक्षम अधिकारी कर्मचारी आपको  छोड़ देंगे क्या ?
       जन समस्याएँ सुनने का प्रचलन बड़ी तेजी से बढ़ा है इसी बहाने अपना अपना बड़प्पन परोस रहे हैं बड़े बड़े नेता लोग !विधायक सांसद मंत्री आदि सभी तो जन समस्याएँ सुन रहे हैं सिफारिशी लेटर लिख लिख कर धड़ाधड़ जनता में बँटवा रहे हैं किंतु जिनके आदेशों की अवहेलना आसानी से कर दी जाती हो जिन मंत्रियों की मीटिंगों में जो अधिकारी बैठकर सोया करते हों जिनकी घोषणाओं को तवज्जो न दी जाती हो उनके लिखे लेटरों के साथ वे अधिकारी लोग कैसा सलूक करते होंगे ये उन आफिसों से निकलने वाली रद्दी से ही पता चल पाएगा !
     बीमारी केवल अधिकारियों कर्मचारियों तक ही नहीं है अपितु जिन नेताओं को जनता चुनावों में वोट देकर जितवा देती है जिन के लिए पार्टी कार्यकर्ता दिन रात  जग जग कर परिश्रम करते हैं पार्टियों के आनुसंगिक संगठनों के समर्पित भूमिगत कार्यकर्ता जिनका लक्ष्य ही पार्टी को सत्ता में लाना होता है उसके लिए वो सब कुछ करते हैं जिससे पार्टी सत्ता में आवे किंतु सत्तासीन होने के बाद उसी पार्टी के विधायक सांसद मंत्री मंत्री बने फिरने वाले लोग उन्हीं कार्यकर्ताओं का फोन नहीं उठाते उनसे मिलते नहीं हैं फोन नम्बर बदल लेते हैं सत्तासीन नेताओं की मानसिकता में स्वार्थ का जहर इतना अधिक फैल जाता है कि वे काम केवल अपनों का अपने नाते रिश्तेदारों का ही कर पाते हैं बाक़ी  कार्यकर्ताओं को तो झूठे आश्वासन दे दे कर ही चिपकाए रहते हैं !जनता के लिए कभी न पूरी हो पाने वाली नित नूतन घोषणाएँ !
     मैंने भी कई कई घंटे जिस पार्टी के लिए सोसल साइटों पर समय समर्पित किया वो पार्टी सत्ता में आई फिर हमारी बात मानना तो दूर सुनना ही नहीं चाहते हैं सत्ता मूर्च्छित लोग ! हमारे लिखे हुए पत्रों का उत्तर नहीं देते हमसे फोन पर बात नहीं करते !माँगते माँगते भी मिलने का समय ही नहीं देते हैं जो अपनी जरूरतों को हम भी रख सकें आखिर मेरा भी योगदान तो हमारे लिए फलित होना चाहिए किंतु हमारे द्वारा संपूर्ण रूप से समर्पित होने पर भी जो हमारे साथ ऐसा उपेक्षा पूर्ण वर्ताव करते हैं वे आम जनता के साथ कैसा वर्ताव करते होंगे इसका सहज अनुमान किया जा सकता है | कई बार तो इतना पश्चात्ताप होता है कि हमारा बहुमूल्य समय और समर्पण ऐसे तुच्छ लोगों के लायक तो न था जो इन्सान को इन्सान समझने को ही तैयार नहीं हैं वे जनता के दुःख दर्द को क्या समझेंगे और कैसे दूर कर सकेंगे जन समस्याएँ केवल सुन ही सकते हैं तो सुनते रहें अपना अपना शौक !बहुत लोग गाने भी तो सुना करते हैं ऐसे ही नेता लोग जन समस्याएँ सुना करते हैं |



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