Sunday 26 October 2014

जियो और जीने दो के सिद्धांतों पर मनाए जाते हैं हिन्दुओं के तिथि त्यौहार !

जो अपना त्यौहार मनाने के लिए औरों की कुर्बानी देते हैं उन्हें कैसे सहा जाए ! बलि के नाम पर अपने शिर काटकर भगवान शिव को समर्पित करने वाले रावण को भी राक्षस कहा जाता था किन्तु उन्हें क्या कहा जाए जो अपने त्योहारों के नाम पर दूसरे जीवों  के शिर काट रहे हैं ?

    जो त्यौहार मनाने के नाम पर किसी का गला काटते हैं और किसी से गले मिल रहे  हैं उन पर भरोसा कैसे किया जाए !

     ये लोग ऐसे भयानक ढंग से मनाते हैं त्यौहार ! ऐसे लोगों के साथ रह पाना कितना कठिन है कितने निर्दयी होते हैं वे लोग !वो भी उन बेजुबान जीवों की कुर्वानी  जिन्होंने किसी का कभी कुछ बिगाड़ा ही नहीं होता है आखिर किसी के त्योहारों से उन बेचारे जीवों का क्या सम्बन्ध जो निरपराध होने पर भी मारे जाते हैं । 

    हमारे ऋषियों मुनियों ने त्योहारों की ऐसी पवित्र परिकल्पनाएँ की हैं जिनमें पशु पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के साथ हमारे पर्व मनाने की परंपरा है सब कुशल हों सब प्रसन्न हों ! जहाँ त्योहारों में साँपों को भी दूध पिलाने की परंपराएँ हैं जो साँप मनुष्य जाति को नुक्सान पहुँचा सकते हैं फिर भी ऐसे सर्पों का पूजन सम्मान करके भी हम मना लेते हैं त्यौहार ! हिंदुओं  का दीपावली जैसा इतना बड़ा त्यौहार हो गया किन्तु सारे जीव जंतु प्रसन्न हो कर आशीर्वाद दे रहे हैं !

       दूसरी ओर उनके त्यौहार मनाने की परंपरा है जिसमें बिना किसी जीव का  खून बहाए त्यौहार ही नहीं मनाए जा सकते !निरपराध बकड़े ऊँट और जाने कौन कौन से बहुसंख्य जीवों की हत्या करके कहते हैं कि हमारा आज त्यौहार है अरे !जिस दिन असंख्य जीवों की जीवन लीला समाप्त की जा रही हो उनके परिवार उजाड़े जा रहे हों जीव जगत  में हाहाकार मचा हो उस भयानक दिन को त्यौहार कैसे कहा जाए !

हिन्दू मंदिरों में साईं आखिर घुसे कैसे ! किसी चर्च,मस्जिद,या गुरुद्वारा में उनकी दाल क्यों नहीं गली ?

          हिन्दुओं की लापरवाही का फल हैं साईं

  •  ईसाई लोगों का बाइबल अंग्रेजी भाषा में है इसलिए वो अंग्रेजी पढ़ते हैं जिससे बाइबल पढ़ते और समझते हैं ।
  • मुस्लिम लोगों का कुरान उर्दू भाषा में है इसलिए वो उर्दू पढ़ते हैं जिससे कुरान पढ़ते और समझते हैं ।
  • सिक्ख लोगों का पवित्र गुरुग्रंथ साहब पंजाबी भाषा में है इसलिए वो पंजाबी पढ़ते हैं जिससे गुरुग्रंथ साहब पढ़ते और समझते हैं ।
  •  सनातनधर्मी हिन्दुओं के वेद आदि पवित्र ग्रन्थ संस्कृत भाषा में हैं किंतु हिन्दू लोग संस्कृत भाषा पढ़ते नहीं हैं इसलिए वे न वेद समझ पाते हैं न पुराण न गीता न भागवत  ! इसीलिए उन्हें उनके धर्म के नाम पर कोई  कुछ भी सिखा समझाकर चला जाता है इसीलिए  हिन्दुओं के धर्म स्थलों मंदिरों में कोई किसी की मूर्ति लगाकर चला जाता है कोई किसी की और कह देता है संस्कृत भाषा न पढ़ने के कारण तुम्हें तुम्हारे धर्म का ज्ञान नहीं है इसलिए भोगो इसका पाप और अपने सक्षम देवी देवताओं की उपस्थिति में भी अपने मंदिरों में ही पूजो साईं बुड्ढे को !अगले जन्म में जब संस्कृत पढ़ोगे तब पता लगेगा कि अपने देवी  देवताओं को छोड़कर साईं को पूजकर कितना बड़ा पाप किया है तब  करना पड़ेगा इसका प्रायश्चित्त !

Tuesday 7 October 2014

" ईद वालों से शांति सद्भाव की क्या उम्मींद !"

बेजुबान जीवों के बध को कुर्बानी कैसे कह दें।

हिंसा मुक्त संस्कृति मेरी कैसे बदनामी सह लें ॥ 

 जिस दिन निरपराध बकड़ों का होता हो भीषण संहार। 

कहो बंधुओ !कैसे कह दें उस दारुण दिन को त्यौहार ॥ 

बकड़े बेबश खड़े कट रहे शोणित के फूटे फब्बार । 

 रक्त रंजिता धरती माता शिर और खालों के अम्बार॥ 

 ऐसा दुर्दिन दीख रहा जब जीवों में हो हाहाकार ।

हत्या दिन को कैसे  मानें भाई चारे का त्यौहार ॥ 

 अमन चैन का दिन  कह करके  कैसे इन्हें बधाई दूँ । 

बकड़े कोसेंगे मरकर क्यों उनसे ब्यर्थ बुराई लूँ ॥ 

जिनकी पर्व प्रथा हो ऐसी उनसे शांति की उम्मींद!

तब तक कैसे की जा सकती जब तक है ऐसी बकरीद ?

                                                      निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी


बेजुवान पशुओं के बध का पर्व !

 

       बेजुवान पशुओं के बध का पर्व कहें या अत्याचार । 

       मानव होकर देख रहे हैं दानवता ये पशु संहार ॥

      उधर गले काटते फिर रहे इधर गले मिलने का रोग ।

      ऐसी कैसी ईद अजूबी यही पाक करता है ढोंग ॥

          भारत वर्ष अहिंसा पूजक क्या युद्धों से डरता है ।

         हिंसक पर्व पृथा वालों से आश  शान्ति की करता है ॥ 

केर बेर का साथ चलेगा कब  तक कैसे हो त्यौहार ।

पशुओं से क्यों छीना  जाए उनके जीने का अधिकार ॥

   जियो और जीने दो सबको सबका हो आपस में प्यार ।

   सारी  धरती अपना आँगन सारा जग अपना परिवार ॥

सबको ख़ुशी बाँट सकते हो सबसे कर सकते हो प्यार ।

सबके दुःख कम करके देखो ऐसा दिन होते  त्यौहार

                                  लेखक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी

 क्या आप अपने को सांप्रदायिक कहलाना पसंद करेंगे ?

    त्यौहार किसी का गला किसी का काटा जाए,गले किसी के मिला जाए, बधाई किसी को दी जाए किन्तु सबसे बड़ी बिपत्ति जिन पशुओं पर पड़ी हो उनके प्रति किसी की कोई संवेदना नहीं !ऊपर से ऐसे दुर्दिन  भाईचारे के पर्व बताए जाएँ !जिनकी आत्मा ऐसे अत्याचारों को न सह सके वे सांप्रदायिक !यदि ऐसा है तो हमें अपनी अहिंसक साम्प्रदायिकता पर गर्व है !

                                                      निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी


बंधुओ !हिंसा हमारे सांस्कृतिक स्वभाव में ही नहीं हैं मैं क्या करूँ ! 

     ऐसे हिंसक पर्वों की कैसे बधाई दूँ ! हमारे भी बच्चे हैं परिवार है प्रियजन हैं दूसरों की जान लेने का त्यौहार मनाने वालों का समर्थन करके हम अपनी एवं अपनों की जान जोखिम में नहीं डालना चाहते !!!हमें कोई सांप्रदायिक कहे तो कहता रहे !मुझे इस बात का दुःख नहीं हैं कि मैं आज उस भाईचारे के त्यौहार में सम्मिलित होने से बंचित हूँ !

                                                    निवेदक -डॉ. शेष नारायण वाजपेयी