Monday, 4 June 2018

भाजपा भी गाली देने वालों को ही गले लगाती रहेगी क्या ?बारे गालीप्रेम !

ऐसे गाली प्रेमी नेताओं के आचरणों को उनके चरित्र से जोड़कर देखा जाए या इसे देश और समाज के साथ मात्र एक मजाक समझकर भुला दिया जाए ?
     शायदकपिल मिश्रा जी को पहले से ही पता रहा होगा कि भाजपाइयों को क्या पसंद है तभी तो उन्होंने भाजपा से जुड़ने के लिए 23 जनवरी 2016 को कहा था कि -
         " केंद्र सरकार और मोदी सबसे बड़े नपुंसक हैं." - कपिल मिश्रा 
     इसके लिए वे केजरीवाल को भी दोषी नहीं ठहरा सकते !अब विजयगोयल जी कपिल जी के घर गए और कहा - "कपिल जी  के लिए भाजपा में  दरवाजे खुले हैं !" "हमें कपिलमिश्रा जैसे दोस्तों की जरूरत है" उधर कपिल मिश्रा ने कहा -  "केंद्र सरकार ने पिछले 4 वर्षों में बहुत विकास किया ""कौरव इकट्ठे हो रहे हैं तो पांडव भी इकट्ठे होंगे" 
     ऐसे बयानों में एक दूसरे के प्रति कितना प्रेम है आपस में कितना लगाव है कितनी उदारता झलकती है !वाह !!
      ऐसी परिस्थिति में चरित्रवान पांडवों से अपनी तुलना ठीक है क्या ?जिस देश के नेताओं ऐसा चरित्र हो उस देश में अपराध और बलात्कार जैसी घटनाओं को कैसे रोका जा सकता है ?वस्तुतः नेताओं ने ही बिगाड़ा है देश और समाज आप  देखें - see more... https://aajtak.intoday.in/story/aap-leader-kapil-mishra-uses-derogatory-language-against-pm-modi-1-851689.html
    अब कपिल मिश्रा जी और विजय गोयल जी एक दूसरे को क्या कह रहे हैं अपने श्रा मुख से आप स्वयं देखिए -https://www.jansatta.com/rajya/new-delhi/union-minister-vijay-goel-meets-former-aap-minister-from-delhi-arvind-kejriwal-goovt-kapil-mishra-invites-him-to-join-bjp/676776/
        
 
       
     ऐसा लिखने के पीछे लेखक की मजबूरी -
       भाजपा मोदी और मूल्यों की राजनीति पर निष्ठा होने के कारण मोदी जी के लिए कपिल के द्वारा ऐसे अभद्र शब्दों का प्रयोग करने पर मुझे भी बहुत बुरा लगा था जिसकी आलोचना करने के लिए मैंने कई लेख भी लिखे थे !
    स्वयं मैं देश और समाज के हित  में कई महत्त्वपूर्ण जुझाव देने के लिए जिन भाजपा नेताओं मंत्रियों सांसदों से मिलने का समय माँगता रहा किंतु चार वर्षों में देश और समाज  हित की उन बातों को सुनने के लिए जिनके पास समय नहीं था वे कपिल मिश्रा जी की गालियों से इतना खुश  हो गए कि उनके घर पहुँच गए !
         बंधुओं !मेरे सुझाव हो सकता है कि अच्छे न हों किंतु एक प्रतिशत यदि वास्तव में  देश और समाज के  सुनना आवश्यक ही होता तो उनकी उपेक्षा करना एक जिम्मेदार सरकार के लिए कहाँ तक उचित है !

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