माननीय प्रधानमंत्री जी
सादर नमस्कार !
विषय - भारतसरकार से शिकायत मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के विषय में -
महोदय ,
पाई पाई और पल पल का हिसाब देने का आश्वासन देकर आपकी अत्यंत पारदर्शी सरकार बनी जिसने प्रशंसनीय कार्य करते हुए चार वर्ष पूर्ण किए जिसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई !!
मौसमविभाग आजादी से आज तक एक ही ढर्रे पर चलता चला आ रहा है जबकि सुख सुविधाएँ सैलरी शोध सामग्री आदि संसाधनों पर रिसर्च कार्यों पर सरकार भारी भरकम धनराशि सरकार खर्च करती है !जो जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से कर रूप में देश के विकास के कार्यों में लगाने के लिए ली जाती है !उसके बदले में सरकार मौसम विभाग की किन उपलब्धियों को जनता के समक्ष परोसकर जनता को सुख पहुँचा पाती है !चार वर्ष बीत गए आपकी साकार आने से पहले मौसम विभाग शोध के जिस पावदान पर खड़ा था आज भी वहीँ खड़ा है ऐसी परिस्थिति में पाई पाई और पल पल का हिसाब जनता को ईमानदारी पूर्वक कैसे दिया जा सकता है !
किसी किसी वर्ष प्राकृतिक दृष्टि से कुछ विशेष प्रकार की बड़ी बड़ी घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जिन बड़ी समस्याओं से समाज एवं सरकार दोनों को जूझना पड़ता है जिनके विषय में मौसमविभाग के द्वारा न तो कोई पूर्वानुमान ही बताया गया होता है और न बाद में ही इनके घटित होने के कोई ठोस एवं विश्वसनीय कारण बताए जा पाते हैं क्यों ?ऐसी गंभीर घटनाओं पर उचित जवाब देने के बजाए ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्द बोलकर बचकर निकल जाना उचित नहीं है !जहाँ बड़े बड़े मौसम वैज्ञानिकों का जमावड़ा है बड़े बड़े रिसर्च किए एवं करवाए जाते हैं फिर भी मौसम संबंधी अनुसंधानों से आज तक जनता को क्या मिला ?
1. भूकंप अचानक आता है और तहस नहस करके चला जाता है!जिसकी कोई पूर्व सूचना नहीं होती है और न ही उसके आने के वास्तविक कारणों के विषय में बाद में ही कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किए जा सके हैं !
पाई पाई और पल पल का हिसाब देने का आश्वासन देकर आपकी अत्यंत पारदर्शी सरकार बनी जिसने प्रशंसनीय कार्य करते हुए चार वर्ष पूर्ण किए जिसके लिए आपको बहुत बहुत बधाई !!
मौसमविभाग आजादी से आज तक एक ही ढर्रे पर चलता चला आ रहा है जबकि सुख सुविधाएँ सैलरी शोध सामग्री आदि संसाधनों पर रिसर्च कार्यों पर सरकार भारी भरकम धनराशि सरकार खर्च करती है !जो जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से कर रूप में देश के विकास के कार्यों में लगाने के लिए ली जाती है !उसके बदले में सरकार मौसम विभाग की किन उपलब्धियों को जनता के समक्ष परोसकर जनता को सुख पहुँचा पाती है !चार वर्ष बीत गए आपकी साकार आने से पहले मौसम विभाग शोध के जिस पावदान पर खड़ा था आज भी वहीँ खड़ा है ऐसी परिस्थिति में पाई पाई और पल पल का हिसाब जनता को ईमानदारी पूर्वक कैसे दिया जा सकता है !
किसी किसी वर्ष प्राकृतिक दृष्टि से कुछ विशेष प्रकार की बड़ी बड़ी घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जिन बड़ी समस्याओं से समाज एवं सरकार दोनों को जूझना पड़ता है जिनके विषय में मौसमविभाग के द्वारा न तो कोई पूर्वानुमान ही बताया गया होता है और न बाद में ही इनके घटित होने के कोई ठोस एवं विश्वसनीय कारण बताए जा पाते हैं क्यों ?ऐसी गंभीर घटनाओं पर उचित जवाब देने के बजाए ग्लोबल वार्मिंग जैसे शब्द बोलकर बचकर निकल जाना उचित नहीं है !जहाँ बड़े बड़े मौसम वैज्ञानिकों का जमावड़ा है बड़े बड़े रिसर्च किए एवं करवाए जाते हैं फिर भी मौसम संबंधी अनुसंधानों से आज तक जनता को क्या मिला ?
1. भूकंप अचानक आता है और तहस नहस करके चला जाता है!जिसकी कोई पूर्व सूचना नहीं होती है और न ही उसके आने के वास्तविक कारणों के विषय में बाद में ही कोई प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत किए जा सके हैं !
2.
सन 2016 की गर्मियों में आग लगने की घटनाएँ अचानक बहुत अधिक बढ़ गईं !पानी
की सप्लाई ट्रेनों तक से करनी पड़ी !किंतु मौसम विभाग के द्वारा इसका न कोई
पूर्वानुमान दिया गया था और बाद में भी ये नहीं बताया जा सका कि इस वर्ष
अचानक ऐसा क्यों हुआ जो अन्य वर्षों में नहीं होता है !
3.सन 2018 में अचानक घटित हुई आँधी तूफान की इतनी अधिक और इतनी भयानक दुर्घटनाओं के विषय में न तो पहले से कोई पूर्वानुमान बताया गया था और न ही बाद में कोई विश्वसनीय ठोस कारण ही बताया जा सका !
इसीप्रकार से मौसमविभाग के द्वारा की गई मौसमसंबंधी गलत भविष्यवाणियाँ किसानों के साथ धोखा सिद्ध होती हैं जिनकी संख्या बहुत अधिक होती है !जिन्हें सुन कर किसान कृषि नीतियाँ तय करते हैं बाद में भविष्यवाणियों के गलत होने पर उन्हें नुक्सान उठाना पड़ता है !किसानों की आत्महत्याओं के पीछे एक कारण यह भी हो सकता है !
श्रीमान जी !ऐसी हर प्राकृतिक आपदा या घटना के घटित होने के बाद इसपर रिसर्च होने की बात कहकर भुला दिया जाता है ! उन अनुसंधानों के परिणाम आज तक समाज के सामने नहीं लाए जा सके हैं !यही कारण है कि अब तो भूकंप वर्षा आदि प्राकृतिक आपदाओं या घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकार के द्वारा जो पद्धति अपनाई जा रही है उसके आधार और दशा दिशा पर शंका होना स्वाभाविक है !मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के विषय में सच्चाई क्या है कितनी है कहना कठिन है !इसलिए इधर और अधिक ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है !
प्रधानमंत्री जी !मैं भी पिछले कई दशकों से प्राकृतिक आपदाओं के विषय में ही व्यक्तिगत तौर पर अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ जिस शोधपत्र को प्रमाण सहित मैं आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ !यदि आप उचित समझ कर समय देते हैं तो इस अनुसन्धान की दिशा में परिणाम प्रशंसनीय हो सकते हैं !
भवदीय -
आपके सामने रखना चाहता हूँ और ये सिद्ध करना चाहता हूँ कि मौसम विभाग प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में क्यों निरंतर असफल होता रहा है !चाहता हूँ ने के लिए अपनी बात के समर्थन में अपना शोधपत्र प्रस्तुत करने मुझे भी अवसर दिया जाए मैं भी पिछले कई दशकों से मौसम संबंधी विषयों पर ही अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ !
भवदीय -
आपके सामने रखना चाहता हूँ और ये सिद्ध करना चाहता हूँ कि मौसम विभाग प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने में क्यों निरंतर असफल होता रहा है !चाहता हूँ ने के लिए अपनी बात के समर्थन में अपना शोधपत्र प्रस्तुत करने मुझे भी अवसर दिया जाए मैं भी पिछले कई दशकों से मौसम संबंधी विषयों पर ही अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ !
आदरणीय !यदि आप मुझे मिलने का समय दें तो
गर्मियाँ तो हर वर्ष आती हैं किंतु ऐसा हर वर्ष तो नहीं होता है इसी वर्ष ऐसा क्यों हुआ ?इसके विषय में न पहले से सावधान किया गया था और न ही इसके बाद में कोई मजबूत और विश्वसनीय कारण ही बताए गए जिनपर जनता भरोसा कर सके !
समय बीतने के बाद न उनकी कहीं कोई चर्चा नहीं होती है
इसके बाद पिछली भविष्यवाणी गलत होने का कारण क्या था जिसका सुधार दूसरी बार कैसे किया जाएगा इसका बिना कोई स्पष्टीकरण दिए ही केवल भविष्यवाणियाँ करते चले जाते हैं !
हुई भी कम सच घटित हो पाती हैं ऐसे तीर - तुक्के तो किसान लोग स्वयं ही लगा लिया करते थे और उनके अनुमान भी कई बार सटीक बैठ जाया करते थे संभवतः यही कारण है कि तब किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता था !वर्तमान समय में मौसम विभाग की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों को किसान तीर तुक्का नहीं समझाता है इसीलिए उन पर विश्वास करके उन्हीं के अनुशार भावी कृषिकार्यों एवं फसलों के संरक्षण की योजना बना लेता है !किंतु जब वे भविष्यवाणियाँ गलत होती हैं तब किसान का नुक्सान होना स्वाभाविक है जिससे किसानों का तनाव बढ़ने से आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटित होती हैं!किसानों की जानपर बन आती है मौसम विभाग पिछली भविष्यवाणी के गलत होने पर बिना कोई स्पष्टीकरण दिए ही तब तक दूसरी भविष्यवाणी फिर कर दी जाती है !वो सही हो या गलत ये तो जनता जाने किंतु इसके बाद तीसरी भविष्यवाणी फिर कर दी जाती है !भविष्यवाणी के गलत होने पर उसका स्पष्टीकरण समाज को दिया जाए और दोबारा उस प्रकार की गलती न होने का आश्वासन भी दिया जाए और सुधार भी किया जाए !किंतु ऐसा कुछ भी नहीं किया जाता है जबकि मौसमविज्ञान विभाग के प्रति विश्वास को बनाए और बचाए रखने के लिए ये उचित है!ऐसी परिस्थिति में जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त कर की भारी भरकम धनराशि से संचालित मौसमविज्ञान विभाग की जवाबदेही और जिम्मेदारी कुछ तो निर्धारित की जानी चाहिए और जनता को बताया जाना चाहिए कि आपकी सरकार बनने के बाद आज तक मौसम विभाग में ऐसा क्या सुधार आया है जो पहले नहीं था !
1. मौसमसंबंधी पूर्वानुमान के लिए सरकार के पास क्या और दूसरा भी कोई विकल्प है ?
2. मौसम संबंधी पूर्वानुमानों पर वैदिकविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के विकल्प पर भी सरकार विचार करेगी क्या ?
प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने के बाद ऐसा होने के लिए जिम्मेदार कारणों पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिए !जनता को यह भी बताया जाना चाहिए कि वैसा होने के पीछे के निश्चित कारण क्या थे !साथ ही यदि निश्चित कारण ज्ञात थे तो मौसम विभाग के द्वारा उनका पूर्वानुमान उपलब्ध न कराए जाने के पीछे के कारण क्या थे ?यदि ये प्राकृतिक कारण होते हैं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता किंतु उनसे यथा संभव बचाव किया जा सकता है किंतु यदि वे मानवीय कारण हैं तो उनके निवारण के लिए जनभागीदारी आवश्यक है किंतु ऐसा तभी संभव है जब ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान पहले से उपलब्ध कराए जाएँ और बाद में जान जागरूकता अभियान चलाया जाए !अन्यथा जिस किसी भी प्राकृतिक आपदा के विषय में पूर्वानुमान न उपलब्ध कराया जा सका हो उसके घटित होने के बाद मौसम विभाग के द्वारा ऐसा होने के लिए किसी भी प्राकृतिक परिस्थिति को कारण बता दिया जाना उचित और विश्वसनीय नहीं माना जाना चाहिए !
प्रश्न नं 1.
2016 सन की ग्रीष्म ऋतु में हुई अत्यधिक गर्मी एवं जल का इतना अधिक अभाव कि ट्रेनों से भेजना पड़ा एवं आग लगने की इतनी अधिक घटनाएँ कि कुछ प्रदेशों में हवन आदि को भी रोकने की सलाहें सरकारी स्तर पर दी गईं !आखिर गर्मी तो प्रतिवर्ष आती है किंतु 2016 सन में ऐसा विशेष क्या था ?
प्रश्न नं 2.
2018 सन में ऐसी कौन सी विशेष प्राकृतिक परिस्थिति बनी जिसके कारण आँधी तूफान आने की इतनी अधिक घटनाएँ घटित हुईं जिनका पूर्वानुमान पहले से उपलब्ध क्यों नहीं कराया जा सका ?
प्रश्न नं 3. प्रकृति से संबंधित प्रत्येक घटना कुछ अतीत की घटनाओं से संबंधित होती है कुछ वर्तमान की और कुछ भविष्य की ऐसा कहा जाता है तो किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित होती हैं इनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
प्रश्न नं 4.बड़े भूकंपों के आने से पहले प्रकृति में कोई परिवर्तन होता है क्या और वो किस प्रकार का ?
1. वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले निश्चित कारण कौन या कौन कौन से हैं तथा वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
2. प्रत्येक क्षेत्र की भूमि और वहाँ की जलवायु अलग अलग होती है और सभी वृक्षों में अपने गुण दोष आदि होते हैं इसलिए पर्यावरण की दृष्टि से किस प्रकार के वृक्ष किस प्रकार की भूमि और किस प्रकार की जलवायु में लगाए जाने से किस किस प्रकार के गुण या दोष प्रकट करते हैं जिनके दोषों से उस क्षेत्र में किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं या रोग आदि की संभावनाएँ बन जाती हैं !
3.वृक्ष यदि पर्यावरण को सुधारने में सहायक होते हैं तो भारत के भिन्न भिन्न प्रदेशों की निश्चित जलवायु के आधार पर पर्यावरण को सुधारने के लिए किस प्रदेश के किस क्षेत्र में किस प्रकार के वृक्ष लगाए जाने चाहिए ? इस विषय में कोई अनुसंधान कराया गया है क्या ?
4. प्रकृति में प्रत्येक वस्तु सुव्यवस्थित है उसे किसी भी प्रकार से छेड़ने से उस क्षेत्र में कुछ गुण या दोष प्रकट होते हैं जैसे महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में झील बनने के बाद वहाँ भूकंप अधिक आने लगे थे !इस प्रकार से अन्य छोटे बड़े निर्माण कार्यों का भी असर प्रकृति और प्राकृतिक घटनाओं पर पड़ता है !इसलिए सरकार किसी क्षेत्र में ऐसे किसी विशेष निर्माण कार्य की योजना बनाते समय ऐसा कोई सर्वे करवाती है क्या ?
5. वैदिकविज्ञान के द्वारा ऐसे प्रकृति संबंधी विषयों पर हमारे यहाँ अनुसंधान किया जाता है क्या हम इन विषयों में सरकार की कोई मदद कर सकते हैं ?यदि हाँ तो किस प्रकार से ?
विषय - चिकित्सा संबंधी पूर्वानुमान के विषय में -
महोदय ,
प्राचीन भारत में अधिकाँश वैद्य ज्योतिषी भी हुआ करते थे जिसका उपयोग वो चिकित्सा विज्ञान के लिए भी किया करते थे आयुर्वेद के चरक सुश्रुत आदि ग्रंथों में इनके प्रमाण मिलते हैं !
सत्यता ये है कि जिन रोगों पर औषधियों का असर न होता हो वे समय जनित रोग होते हैं इसलिए वे समय से ही दूर होते हैं ऐसे रोगों पर चिकित्सा का विशेष अधिक असर नहीं होता है !ऐसे रोगों का एवं रोग मुक्ति के समय का पूर्वानुमान समय विज्ञान पद्धति से किया जा सकता है !
इसी प्रकार से किसे कब कौन सी औषधि दी जाएगी तो उसके ऊपर उस औषधि का असर उस समय के एवं रोगी के अपने समय के अनुशार होता है !
जिसे जो रोग जब प्रारंभ होता है या जब जो चोट लगती है वो रोग या चोट कितना बड़ा स्वरूप ले सकती है या कितने ठीक हो सकती है ये उसके लगाने या प्रारंभ होने के समय के अनुशार निश्चित होता है !
प्रश्न - वैदिक विज्ञान की समयपद्धति से चिकित्सा में सहयोगी ऐसे विषयों पर हम अनुसंधान करते हैं !सरकार के द्वारा चलाए जा रहे चिकित्सा संबंधी अनुसंधानों में क्या हमारे अनुसंधानों का भी उपयोग किया जा सकता है यदि हाँ तो कैसे ?
- लगी आग से संबंधित पानी काम सूख गया
समय बीतने के बाद न उनकी कहीं कोई चर्चा नहीं होती है
इसके बाद पिछली भविष्यवाणी गलत होने का कारण क्या था जिसका सुधार दूसरी बार कैसे किया जाएगा इसका बिना कोई स्पष्टीकरण दिए ही केवल भविष्यवाणियाँ करते चले जाते हैं !
हुई भी कम सच घटित हो पाती हैं ऐसे तीर - तुक्के तो किसान लोग स्वयं ही लगा लिया करते थे और उनके अनुमान भी कई बार सटीक बैठ जाया करते थे संभवतः यही कारण है कि तब किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ता था !वर्तमान समय में मौसम विभाग की मौसम संबंधी भविष्यवाणियों को किसान तीर तुक्का नहीं समझाता है इसीलिए उन पर विश्वास करके उन्हीं के अनुशार भावी कृषिकार्यों एवं फसलों के संरक्षण की योजना बना लेता है !किंतु जब वे भविष्यवाणियाँ गलत होती हैं तब किसान का नुक्सान होना स्वाभाविक है जिससे किसानों का तनाव बढ़ने से आत्महत्या जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ घटित होती हैं!किसानों की जानपर बन आती है मौसम विभाग पिछली भविष्यवाणी के गलत होने पर बिना कोई स्पष्टीकरण दिए ही तब तक दूसरी भविष्यवाणी फिर कर दी जाती है !वो सही हो या गलत ये तो जनता जाने किंतु इसके बाद तीसरी भविष्यवाणी फिर कर दी जाती है !भविष्यवाणी के गलत होने पर उसका स्पष्टीकरण समाज को दिया जाए और दोबारा उस प्रकार की गलती न होने का आश्वासन भी दिया जाए और सुधार भी किया जाए !किंतु ऐसा कुछ भी नहीं किया जाता है जबकि मौसमविज्ञान विभाग के प्रति विश्वास को बनाए और बचाए रखने के लिए ये उचित है!ऐसी परिस्थिति में जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त कर की भारी भरकम धनराशि से संचालित मौसमविज्ञान विभाग की जवाबदेही और जिम्मेदारी कुछ तो निर्धारित की जानी चाहिए और जनता को बताया जाना चाहिए कि आपकी सरकार बनने के बाद आज तक मौसम विभाग में ऐसा क्या सुधार आया है जो पहले नहीं था !
1. मौसमसंबंधी पूर्वानुमान के लिए सरकार के पास क्या और दूसरा भी कोई विकल्प है ?
2. मौसम संबंधी पूर्वानुमानों पर वैदिकविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के विकल्प पर भी सरकार विचार करेगी क्या ?
माननीय प्रधानमंत्री जी
सादर नमस्कार !
विषय - प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित अनुसंधान के विषय में -
महोदय , प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने के बाद ऐसा होने के लिए जिम्मेदार कारणों पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिए !जनता को यह भी बताया जाना चाहिए कि वैसा होने के पीछे के निश्चित कारण क्या थे !साथ ही यदि निश्चित कारण ज्ञात थे तो मौसम विभाग के द्वारा उनका पूर्वानुमान उपलब्ध न कराए जाने के पीछे के कारण क्या थे ?यदि ये प्राकृतिक कारण होते हैं तो उन्हें रोका नहीं जा सकता किंतु उनसे यथा संभव बचाव किया जा सकता है किंतु यदि वे मानवीय कारण हैं तो उनके निवारण के लिए जनभागीदारी आवश्यक है किंतु ऐसा तभी संभव है जब ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के पूर्वानुमान पहले से उपलब्ध कराए जाएँ और बाद में जान जागरूकता अभियान चलाया जाए !अन्यथा जिस किसी भी प्राकृतिक आपदा के विषय में पूर्वानुमान न उपलब्ध कराया जा सका हो उसके घटित होने के बाद मौसम विभाग के द्वारा ऐसा होने के लिए किसी भी प्राकृतिक परिस्थिति को कारण बता दिया जाना उचित और विश्वसनीय नहीं माना जाना चाहिए !
प्रश्न नं 1.
2016 सन की ग्रीष्म ऋतु में हुई अत्यधिक गर्मी एवं जल का इतना अधिक अभाव कि ट्रेनों से भेजना पड़ा एवं आग लगने की इतनी अधिक घटनाएँ कि कुछ प्रदेशों में हवन आदि को भी रोकने की सलाहें सरकारी स्तर पर दी गईं !आखिर गर्मी तो प्रतिवर्ष आती है किंतु 2016 सन में ऐसा विशेष क्या था ?
प्रश्न नं 2.
2018 सन में ऐसी कौन सी विशेष प्राकृतिक परिस्थिति बनी जिसके कारण आँधी तूफान आने की इतनी अधिक घटनाएँ घटित हुईं जिनका पूर्वानुमान पहले से उपलब्ध क्यों नहीं कराया जा सका ?
प्रश्न नं 3. प्रकृति से संबंधित प्रत्येक घटना कुछ अतीत की घटनाओं से संबंधित होती है कुछ वर्तमान की और कुछ भविष्य की ऐसा कहा जाता है तो किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित होती हैं इनका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
प्रश्न नं 4.बड़े भूकंपों के आने से पहले प्रकृति में कोई परिवर्तन होता है क्या और वो किस प्रकार का ?
माननीय प्रधानमंत्री जी
सादर नमस्कार !
विषय - पर्यावरण से संबंधित अनुसंधान और पूर्वानुमान के विषय में -
महोदय , 1. वायु प्रदूषण को बढ़ाने वाले निश्चित कारण कौन या कौन कौन से हैं तथा वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
2. प्रत्येक क्षेत्र की भूमि और वहाँ की जलवायु अलग अलग होती है और सभी वृक्षों में अपने गुण दोष आदि होते हैं इसलिए पर्यावरण की दृष्टि से किस प्रकार के वृक्ष किस प्रकार की भूमि और किस प्रकार की जलवायु में लगाए जाने से किस किस प्रकार के गुण या दोष प्रकट करते हैं जिनके दोषों से उस क्षेत्र में किस प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं या रोग आदि की संभावनाएँ बन जाती हैं !
3.वृक्ष यदि पर्यावरण को सुधारने में सहायक होते हैं तो भारत के भिन्न भिन्न प्रदेशों की निश्चित जलवायु के आधार पर पर्यावरण को सुधारने के लिए किस प्रदेश के किस क्षेत्र में किस प्रकार के वृक्ष लगाए जाने चाहिए ? इस विषय में कोई अनुसंधान कराया गया है क्या ?
4. प्रकृति में प्रत्येक वस्तु सुव्यवस्थित है उसे किसी भी प्रकार से छेड़ने से उस क्षेत्र में कुछ गुण या दोष प्रकट होते हैं जैसे महाराष्ट्र के कोयना क्षेत्र में झील बनने के बाद वहाँ भूकंप अधिक आने लगे थे !इस प्रकार से अन्य छोटे बड़े निर्माण कार्यों का भी असर प्रकृति और प्राकृतिक घटनाओं पर पड़ता है !इसलिए सरकार किसी क्षेत्र में ऐसे किसी विशेष निर्माण कार्य की योजना बनाते समय ऐसा कोई सर्वे करवाती है क्या ?
5. वैदिकविज्ञान के द्वारा ऐसे प्रकृति संबंधी विषयों पर हमारे यहाँ अनुसंधान किया जाता है क्या हम इन विषयों में सरकार की कोई मदद कर सकते हैं ?यदि हाँ तो किस प्रकार से ?
माननीय प्रधानमंत्री जी
सादर नमस्कार !
महोदय ,
प्राचीन भारत में अधिकाँश वैद्य ज्योतिषी भी हुआ करते थे जिसका उपयोग वो चिकित्सा विज्ञान के लिए भी किया करते थे आयुर्वेद के चरक सुश्रुत आदि ग्रंथों में इनके प्रमाण मिलते हैं !
सत्यता ये है कि जिन रोगों पर औषधियों का असर न होता हो वे समय जनित रोग होते हैं इसलिए वे समय से ही दूर होते हैं ऐसे रोगों पर चिकित्सा का विशेष अधिक असर नहीं होता है !ऐसे रोगों का एवं रोग मुक्ति के समय का पूर्वानुमान समय विज्ञान पद्धति से किया जा सकता है !
इसी प्रकार से किसे कब कौन सी औषधि दी जाएगी तो उसके ऊपर उस औषधि का असर उस समय के एवं रोगी के अपने समय के अनुशार होता है !
जिसे जो रोग जब प्रारंभ होता है या जब जो चोट लगती है वो रोग या चोट कितना बड़ा स्वरूप ले सकती है या कितने ठीक हो सकती है ये उसके लगाने या प्रारंभ होने के समय के अनुशार निश्चित होता है !
प्रश्न - वैदिक विज्ञान की समयपद्धति से चिकित्सा में सहयोगी ऐसे विषयों पर हम अनुसंधान करते हैं !सरकार के द्वारा चलाए जा रहे चिकित्सा संबंधी अनुसंधानों में क्या हमारे अनुसंधानों का भी उपयोग किया जा सकता है यदि हाँ तो कैसे ?
आँधी तूफानों से संबंधित कई पूर्वानुमान निकट भविष्य में ही मौसम विभाग की भविष्यवाणियों के अनुरूप नहीं घटित हुए !इसके लिए जिम्मेदारी किसकी है !
भूकंपों के पूर्वानुमान की तो आशा ही नहीं की जा सकती है एवं भूकंपवैज्ञानिकों के द्वारा भूकंप आने के लिए जिम्मेदार बताए जाने वाले कारणों पर तब तक विश्वास होना संभव नहीं है जब तक कि उन्हें कुछ भावी भूकम्पों के पूर्वानुमान की कसौटी पर कैसा न जा सके !भूकम्पों के विषय में कोई ठोस जानकारी उपलब्ध कराए बिना किसी को भूकंप वैज्ञानिक कैसे मान लिया जाए !ऐसा भी कहीं होता है क्या कि जिसे जिस विषय में कुछ पता ही न हो उसे उस विषय का वैज्ञानिक कहा जाने लगे !भूकंपों के विषय में वैज्ञानिक भी अभी तक बिलकुल खाली हाथ हैं !
ऐसी परिस्थिति में पूर्वानुमान की प्रचलित पद्धतियाँ बहुखर्चीली होने के बाद भी यदि जनता की आवश्यकताओं के अनुरूप
देश की आर्थिक रफ़्तार मानसून पर टिकी होती है मौसम,पर्यावरण और भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान किया जाना भी जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है!ऐसा समझकर ही संभवतः भारत सरकार में अलग अलग मंत्रालय और विभाग बनाए हुए हैं !जिनके संचालन पर जनता की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स के धन से हजारों करोड़ की धनराशि व्यय करती है भारतसरकार !जिस धनराशि के बदले में ऐसे मंत्रालयों एवं विभागों की कार्यपद्धति से जनता को कितना लाभ पहुँचा पाती है भारतसरकार !इसे निरर्थक व्यय क्यों न माना जाए !
नाएँ मौसम और भूकंप से संबंधित अनुसंधान करने - करवाने वाले मंत्रालयों के पिछले चार वर्ष की उपलब्धियों से भी आपकी सरकार संतुष्ट है क्या ?यदि हाँ तो उन उपलब्धियों के विषय में जनता को भी कुछ बताया जा सकता है क्या ?
अभी हाल ही में आँधी तूफानों से संबंधित मौसम विभाग के द्वारा किए गए पूर्वानुमानों को दिखाने वाले मीडिया के कई चैनलों को अपनी बातें गलत होने पर सफाई देनी पड़ी जिसके लिए वे मौसमविभाग को जिम्मेदार ठहराते देखे गए !
इसी प्रकार से वर्षा आदि से संबंधित पूर्वानुमानों को तो अक्सर गलत होते देखा ही जाता है !ऐसे पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता कृषि कार्यों के लिए किसानों को पड़ती है जिनके अक्सर गलत होने के कारण किसान आत्महत्या करते देखे जा रहे हैं !2015 जून और जुलाई में वाराणसी में प्रधानमंत्री जी की आयोजित दो रैलियाँ केवल मौसम के कारण ही कैंसिल करनी पड़ी थीं !भारत सरकार का जो मौसम विभाग देश के प्रधानमंत्री जी के काम न आ सका उसका लाभ बेचारे किसानों को कैसे मिल पाता होगा !
भूकंप के विषय में एक ओर तो कहा जाता है कि सरकार के वैज्ञानिकों को कुछ पता नहीं है धरती के अंदर संचित गैसों या प्लेटों की या पाँच जोनों में बाँटे जाने की कहानी के विषय में आम जनता बिल्कुल अनजान है !वैसे भी महाराष्ट्र के कोयना की झील बनने के बाद भूकंप जोन से संबंधित परिकल्पना वहाँ उचित नहीं बैठ पाती है ! इसलिए ऐसी थ्यौरी की प्रमाणिकता पर तब तक विश्वास कैसे किया जा सकता है जब तक इसके आधार पर भूकंप संबंधी किए गए पूर्वानुमान सही घटित नहीं होते !
पर्यावरण के विषय में भी कोई तर्कपूर्ण बात अभी तक सामने जा सकी है !वायु प्रदूषण के विषय में जितने मुख उतनी बातें !कोई पंजाब की पराली जलाने को कारण मानता है तो कोई बाहनों से निकलने वाले धुएँ को कारण मानता है कोई ईरान आदि से आनेवाली धूल भरी हवावों को वायु प्रदूषण का कारण मानता है !कुछ तो घरों के अंदर से निकलने वाले धुएँ को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मानते हैं !सच्चाई तो ईश्वर ही जाने !
कुलमिलाकर आँधी तूफान हो या वर्षा एवं वायु प्रदूषण हो या भूकंप इन विषयों में की या कही जाने वाली बातें तीर तुक्कों से अधिक कुछ नहीं लगती हैं !ऐसे विषयों को विज्ञान मानना तब तक उचित नहीं होगा जबतक इन विषयों में कोई पारदर्शी सच जनता में प्रस्तुत न कियाजा सके जिसे समाज भी समझ सके !वैसे भी ऐसी ढुलमुल बातों एवं मनगढंत कहानियों को विज्ञान कैसे कहा जा सकता है जिन्हें तर्कों की कसौटी पर कसा ही न जा सके !
तीर तुक्के विज्ञान नहीं हो सकते तो इनका समर्थन करने वाले वैज्ञानिक कैसे हो सकते हैं !फिर भी यदि ये विज्ञान माने जा सकते हैं और इन्हें गढ़ने वाले लोग वैज्ञानिक माने जा सकते हैं तो फिर वे ग्रामीण किसान आदिवासी आदि अपने अपने अनुशार वर्षा आदि संबंधित पूर्वानुमान लगा लिया करते थे और वो काफी सच भी हुआ करता था !इसीप्रकार से ज्योतिषी महात्मा योगसाधक आदि लोग भी तो ऐसे प्राकृतिक प्रकरणों के अत्यंत सटीक पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !इसी बल पर समाज उनकी बातों पर आज भी भरोसा करता है !
दुर्भाग्य की बात है अपने अपने झूठ को छिपाने के लिए इन्हीं तथाकथित पूर्वानुमानी वैज्ञानिकों ने प्रकृति के साथ जीवन यापन करने वाले ग्रामीणों किसानों आदिवासियों आदि ककी बातों को झूठा सिद्ध कर दिया तथा ज्योतिषियों योगियों आदि के द्वारा लगाए जाने वाले ऐसे प्राकृतिक पूर्वानुमानों को अंधविश्वास या निराधार बकवास बताना शुरू कर दिया !सरकार उन्हें पढ़ालिखा मानती है तो उनके ऊपर भरोसा ज्योतिषियों आदि की उपेक्षा करती है !
इसी पक्षपात के कारण सरकार ने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी है कि आज कोई भी ज्योतिष वैज्ञानिक प्रकृति से संबंधित कितना भी गंभीर शोध करे और वो कितने भी बड़े रहस्य को समझ सका हो जिसके संपूर्ण अनुसंधान के लिए उसे सरकार से सहयोग की अपेक्षा हो तो उसे इन्हीं मंत्रालयों के उन्हीं तथाकथित वैज्ञानिकों के दरवाजे पर जाकर मदद के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है वहाँ उनके साथ अत्यंत गैरजिम्मेदारी का उपेक्षापूर्ण वर्ताव किया जाता है !
उनसे पूछा जाता है कि यदि आप भूकंप या वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कोई अनुसंधान करते हैं तो लिखकर ले आइए कि इस वर्ष कितने भूकंप देश के किस किस क्षेत्र में किस किस तारीख को आएँगे !या वर्षा आँधी आदि किस तारीख को कहाँ कितनी होगी !तुम्हारे वो पूर्वानुमान यदि सच सिद्ध होंगे तब तो विचार किया जा सकता है अन्यथा ख़ारिज !मदद और संसाधनों के अभाव में वो ज्योतिष वैज्ञानिक शांत होकर बैठ जाता है !क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के आधार पर पूर्वानुमान लगाने के लिए भी एक पूरा व्यवस्थित तंत्र गठित करना होता है उनका खर्च तथा संसाधनों आदि का खर्च उन्हें भी जुटाना होता है सफलता असफलता से उन्हें भी जूझना होता है फिर भी उन्हें भी आधुनिक वैज्ञानिकों की तरह ही शोध में सहयोग करना होता है !
दुर्भाग्य से ऐसे प्राकृतिक प्रकरणों में अनुसंधान करने करवाने की जिम्मेदारी जिन पर डाली जाती है वे मंत्री मंत्रालय वैज्ञानिक आदि पूरा पूरा तंत्र बनाए बैठे हुए हैं सरकार उनके रुतबे का पूरा ध्यान रखती है उनका भरी भरकम खर्च उठती है उन्हें सारी सुख सुविधाएँ प्रदान करती है करोड़ों अरबों रूपए इनकी एक आवाज पर खर्च कर देती है सरकार किंतु उसके बदले में दस दस वर्ष बीत जाते हैं ये देश और समाज को कुछ भी नहीं दे पाते हैं !आँधी तूफान आदि के लिए कभी पश्चिमी डिस्टर्बेंस बताते हैं तो कभी पूर्वी किंतु इससे जनता को क्या मिला !भूकंप के विषय में अभी झटके और भी आते रहेंगे खुले मैदानों में आकर खड़े हो जाएँ अथवा हिमालय के नीचे गैसें भरी हुई हैं इसलिए यहाँ बहुत बड़ा भूकंप आएगा !ऐसे मनगढंत सगूफे छोड़ा करते हैं !रही बात वर्षा के विषय में तो ये कभी भी वर्षा बता दें और कभी धूप उसके बिलकुल उल्टा होने पर भी ये न कभी सफाई देने मीडिया के सामने आते हैं और न ही कोई खेद ही प्रकट करते हैं !ऐसी कोई जिम्मेदारी ही नहीं समझते हैं वे सक्षम लोग !
पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाले प्रधानमंत्री जी केवल इतना बता दीजिए
जिनके साथ का उद्घाटन करना चाहता हो या जानता हो तो उसे
पूर्वानुमान
हनों
विज्ञान जैसी
वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों के विषय में मौसमविभाग के द्वारा लगाए जाने वाले तीर तुक्के अक्सर गलत होते देखे जाते हैं जिनका दुष्प्रभाव कृषिकार्यों किसानों पर भी पड़ता है !
इसी प्रकार से वर्षा आदि से संबंधित पूर्वानुमानों को तो अक्सर गलत होते देखा ही जाता है !ऐसे पूर्वानुमानों की सबसे अधिक आवश्यकता कृषि कार्यों के लिए किसानों को पड़ती है जिनके अक्सर गलत होने के कारण किसान आत्महत्या करते देखे जा रहे हैं !2015 जून और जुलाई में वाराणसी में प्रधानमंत्री जी की आयोजित दो रैलियाँ केवल मौसम के कारण ही कैंसिल करनी पड़ी थीं !भारत सरकार का जो मौसम विभाग देश के प्रधानमंत्री जी के काम न आ सका उसका लाभ बेचारे किसानों को कैसे मिल पाता होगा !
भूकंप के विषय में एक ओर तो कहा जाता है कि सरकार के वैज्ञानिकों को कुछ पता नहीं है धरती के अंदर संचित गैसों या प्लेटों की या पाँच जोनों में बाँटे जाने की कहानी के विषय में आम जनता बिल्कुल अनजान है !वैसे भी महाराष्ट्र के कोयना की झील बनने के बाद भूकंप जोन से संबंधित परिकल्पना वहाँ उचित नहीं बैठ पाती है ! इसलिए ऐसी थ्यौरी की प्रमाणिकता पर तब तक विश्वास कैसे किया जा सकता है जब तक इसके आधार पर भूकंप संबंधी किए गए पूर्वानुमान सही घटित नहीं होते !
पर्यावरण के विषय में भी कोई तर्कपूर्ण बात अभी तक सामने जा सकी है !वायु प्रदूषण के विषय में जितने मुख उतनी बातें !कोई पंजाब की पराली जलाने को कारण मानता है तो कोई बाहनों से निकलने वाले धुएँ को कारण मानता है कोई ईरान आदि से आनेवाली धूल भरी हवावों को वायु प्रदूषण का कारण मानता है !कुछ तो घरों के अंदर से निकलने वाले धुएँ को वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार मानते हैं !सच्चाई तो ईश्वर ही जाने !
कुलमिलाकर आँधी तूफान हो या वर्षा एवं वायु प्रदूषण हो या भूकंप इन विषयों में की या कही जाने वाली बातें तीर तुक्कों से अधिक कुछ नहीं लगती हैं !ऐसे विषयों को विज्ञान मानना तब तक उचित नहीं होगा जबतक इन विषयों में कोई पारदर्शी सच जनता में प्रस्तुत न कियाजा सके जिसे समाज भी समझ सके !वैसे भी ऐसी ढुलमुल बातों एवं मनगढंत कहानियों को विज्ञान कैसे कहा जा सकता है जिन्हें तर्कों की कसौटी पर कसा ही न जा सके !
तीर तुक्के विज्ञान नहीं हो सकते तो इनका समर्थन करने वाले वैज्ञानिक कैसे हो सकते हैं !फिर भी यदि ये विज्ञान माने जा सकते हैं और इन्हें गढ़ने वाले लोग वैज्ञानिक माने जा सकते हैं तो फिर वे ग्रामीण किसान आदिवासी आदि अपने अपने अनुशार वर्षा आदि संबंधित पूर्वानुमान लगा लिया करते थे और वो काफी सच भी हुआ करता था !इसीप्रकार से ज्योतिषी महात्मा योगसाधक आदि लोग भी तो ऐसे प्राकृतिक प्रकरणों के अत्यंत सटीक पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !इसी बल पर समाज उनकी बातों पर आज भी भरोसा करता है !
दुर्भाग्य की बात है अपने अपने झूठ को छिपाने के लिए इन्हीं तथाकथित पूर्वानुमानी वैज्ञानिकों ने प्रकृति के साथ जीवन यापन करने वाले ग्रामीणों किसानों आदिवासियों आदि ककी बातों को झूठा सिद्ध कर दिया तथा ज्योतिषियों योगियों आदि के द्वारा लगाए जाने वाले ऐसे प्राकृतिक पूर्वानुमानों को अंधविश्वास या निराधार बकवास बताना शुरू कर दिया !सरकार उन्हें पढ़ालिखा मानती है तो उनके ऊपर भरोसा ज्योतिषियों आदि की उपेक्षा करती है !
इसी पक्षपात के कारण सरकार ने ऐसी परिस्थिति पैदा कर दी है कि आज कोई भी ज्योतिष वैज्ञानिक प्रकृति से संबंधित कितना भी गंभीर शोध करे और वो कितने भी बड़े रहस्य को समझ सका हो जिसके संपूर्ण अनुसंधान के लिए उसे सरकार से सहयोग की अपेक्षा हो तो उसे इन्हीं मंत्रालयों के उन्हीं तथाकथित वैज्ञानिकों के दरवाजे पर जाकर मदद के लिए गिड़गिड़ाना पड़ता है वहाँ उनके साथ अत्यंत गैरजिम्मेदारी का उपेक्षापूर्ण वर्ताव किया जाता है !
उनसे पूछा जाता है कि यदि आप भूकंप या वर्षा आदि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कोई अनुसंधान करते हैं तो लिखकर ले आइए कि इस वर्ष कितने भूकंप देश के किस किस क्षेत्र में किस किस तारीख को आएँगे !या वर्षा आँधी आदि किस तारीख को कहाँ कितनी होगी !तुम्हारे वो पूर्वानुमान यदि सच सिद्ध होंगे तब तो विचार किया जा सकता है अन्यथा ख़ारिज !मदद और संसाधनों के अभाव में वो ज्योतिष वैज्ञानिक शांत होकर बैठ जाता है !क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के आधार पर पूर्वानुमान लगाने के लिए भी एक पूरा व्यवस्थित तंत्र गठित करना होता है उनका खर्च तथा संसाधनों आदि का खर्च उन्हें भी जुटाना होता है सफलता असफलता से उन्हें भी जूझना होता है फिर भी उन्हें भी आधुनिक वैज्ञानिकों की तरह ही शोध में सहयोग करना होता है !
दुर्भाग्य से ऐसे प्राकृतिक प्रकरणों में अनुसंधान करने करवाने की जिम्मेदारी जिन पर डाली जाती है वे मंत्री मंत्रालय वैज्ञानिक आदि पूरा पूरा तंत्र बनाए बैठे हुए हैं सरकार उनके रुतबे का पूरा ध्यान रखती है उनका भरी भरकम खर्च उठती है उन्हें सारी सुख सुविधाएँ प्रदान करती है करोड़ों अरबों रूपए इनकी एक आवाज पर खर्च कर देती है सरकार किंतु उसके बदले में दस दस वर्ष बीत जाते हैं ये देश और समाज को कुछ भी नहीं दे पाते हैं !आँधी तूफान आदि के लिए कभी पश्चिमी डिस्टर्बेंस बताते हैं तो कभी पूर्वी किंतु इससे जनता को क्या मिला !भूकंप के विषय में अभी झटके और भी आते रहेंगे खुले मैदानों में आकर खड़े हो जाएँ अथवा हिमालय के नीचे गैसें भरी हुई हैं इसलिए यहाँ बहुत बड़ा भूकंप आएगा !ऐसे मनगढंत सगूफे छोड़ा करते हैं !रही बात वर्षा के विषय में तो ये कभी भी वर्षा बता दें और कभी धूप उसके बिलकुल उल्टा होने पर भी ये न कभी सफाई देने मीडिया के सामने आते हैं और न ही कोई खेद ही प्रकट करते हैं !ऐसी कोई जिम्मेदारी ही नहीं समझते हैं वे सक्षम लोग !
पाई पाई और पल पल का हिसाब देने वाले प्रधानमंत्री जी केवल इतना बता दीजिए
जिनके साथ का उद्घाटन करना चाहता हो या जानता हो तो उसे
पूर्वानुमान
हनों
विज्ञान जैसी
वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों के विषय में मौसमविभाग के द्वारा लगाए जाने वाले तीर तुक्के अक्सर गलत होते देखे जाते हैं जिनका दुष्प्रभाव कृषिकार्यों किसानों पर भी पड़ता है !
किसानों के द्वारा की जाने वाली आत्म हत्याओं के पीछे का कारण रहना ही तो नहीं है क्योंकि उन्हें फसल बोने और उसे संरक्षित रखने के लिए जितने पहले से मौसम संबंधी पूर्वानुमान चाहिए वो बताया जा पाना के बश की बात है या नहीं यही स्पष्ट नहीं हो पा रहा है क्योंकि इस विषय में उन
जनता की खून पसीने की कठोर कमाई से चलने वाले ऐसे मंत्रालयों के काम काज के विषय में जनता के मन में कुछ प्रश्न
उठने स्वाभाविक ही हैं !वो भी तब जबकि
कि क्या ऐसे मंत्रालय अपने उद्देश्यों पूर्ति किस
प्रकार से कर पा रहे हैं !ऐसे मंत्रालय पूर्वानुमान के नाम समाज को अक्सर
भ्रमित करते देखे जाते हैं !
- भूकंपों के विषय में एक ओर तो कहते हैं कि हमें कुछ पता ही नहीं है तो दूसरी ओर ये भी कहते रहते हैं कि हिमालय में बहुत बड़ा भूकंप आने की संभावना है !जमीन के अंदर की गैसों प्लेटों की मनगढंत कहानियाँ सुनाया करते हैं !सच्चाई आखिर क्या है ?
- मौसम के विषय में इनके द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान आधे से अधिक गलत होते हैं जिसका विशेष असर कृषि कार्यों पर पड़ता है जिससे आर्थिक हानि विशेष रूप से किसानों को होती है किसान आत्म हत्या करते हैं !इसलिए मौसम विभाग की सच्चाई आखिर क्या है ?
- वायु प्रदूषण के लिए कभी ये गाड़ियों कलकारखानों से निगलने वाले धुएँ को कारण बताते हैं तो कभी पंजाब में पराली जलाने को तो कोई वैज्ञानिक कहते हैं कि ईरान में उठने वाली आँधियों की धूल वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है किंतु इसकी सच्चाई आखिर क्या है ?
- ज्योतिषविज्ञान में ऐसे सभी विषयों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया का विस्तार पूर्वक वर्णन है किंतु उसके द्वारा मौसम भूकंप और वायु प्रदूषण के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं वे कम खर्चीले एवं अधिक सटीक हो सकते हैं इससे संबंधित अनुसंधान के लिए भी सरकार कोई मदद करती है क्या ?यदि हाँ तो कैसे ?
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