Monday, 6 February 2017

चुनावी घोषणापत्र या झूठ का पुलिंदा ! भाषण आश्वासन घोषणाएँ उस बकड़े की पीठ सहलाने की तरह जिसकी बलि दी जानी हो !

  सरकार का मतलब भ्रष्टाचार !सरकार  और भ्रष्टाचार एक सिक्के के दो पहलू !!भ्रष्टाचार सरकार के अपने परिवार का अहम् सदस्य और अभिन्न अंग है इसकी कमाई केवल सरकार में सम्मिलित लोग और उसके अपने अधिकारी कर्मचारी ही खाते हैं जनता तो केवल सहने के लिए मजबूर है सरकारों के द्वारा जनता पर किया और करवाया जा रहा ये अत्याचार !
    जो दल झूठ बोलने में जितना ज्यादा बेशर्म और शातिर होता है वो पाता है वो जनता को भ्रमित करने में सफल हो जाता है कोई महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर कोई दलितों अल्प संख्यकों की मदद के नाम पर किंतु जो वास्तव में ईमानदारी पूर्वक जनता की सेवा करना चाहता है   वो कहता है कि"सबका साथ सबका विकास "! 
     भ्रष्टनेता लोग झूठे वायदे धड़ाधड़ करते चले जाते हैं !जनता बेचारी यह नहीं समझ पाती है किसी भी दल की सरकार बने काम तो यही सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही करेंगे किन्तु जिनमें काम करने की योग्यता ही न हो काम करना ही न चाहते हों घूस लिए बिना  काम ही न करते हों या केवल मीटिंग ही करते रहते हों और हड़ताल करने की ही योजनाएँ ही बनाया करते हों या आफिसों के ऐकांतिक कोपभवनों में घुट घुट कर मरने पर मजबूर अधिकारियों से काम की आशा कैसे करती है सरकार और जनता !राजनैतिक दलों का घोषणापत्र इनके सहयोग के बिना पूरा कैसे होगा और इनका सहयोग पाने का मतलब है लोहे के चने चबाना !
     यदि ऐसे अधिकारियों कर्मचारियों का उद्देश्य ईमानदारी पूर्वक काम करके ही अपना और अपने परिवारों का पेट भरना होता तो देश में आज भ्रष्टाचार होता ही नहीं और भ्रष्टाचार घटते ही मिट जाते सभी प्रकार के  अपराध !लगता है कि अपराध और भ्रष्टाचार मिटने ही नहीं देना चाहते हैं अधिकाँश अधिकारी कर्मचारी या सरकार स्वयं उन्हें ऐसा करने के लिए मजबूर करती है !
        घूसखोरी और कामचोरी बंद कराए बिना सभी सरकारें झूठ बोलतीं और गद्दारी करती हैं जनता के साथ !
सरकारी विभागों के हालात ऐसे हैं कि घूस देने वालों का ही काम होता है बाकी जनता को ठेंगा दिखाया जाता है सरकारी विभागों में !सरकार का हर विभाग भ्रष्ट है हर अधिकारी कर्मचारी यातो स्वयं भ्रष्ट है या फिर भ्रष्टाचार में अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित है या फिर भ्रष्टाचार होते देख रहा है या फिर वो स्वयं भ्रष्टाचारका शिकार है आया फिर भ्रष्टाचारियों का बहुमत होने के कारण वो उपेक्षित है !सरकारें भ्रष्टाचारियों के आगे दंडवत लेती हुई हैं उन्हें चुनाव जीतने के लिए झूठ बोलने से फुरसत ही कहाँ है !
     बैंक वालों को घूस नहीं दी गई तो उन्होंने जब प्रधान मंत्री जी की नोटबंदी योजना में साथ नहीं दिया तब आम आदमी का काम बिना घूस के वो करते होंगे इसकी तो कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए !बैंक वालों ने सरकार की परवाह न करके डंके की चोट पर काले धन वालों का साथ दिया  है जनता लाइन में खड़ी रही उसे दो हजार रूपए मिले या नहीं किंतु काले धन वालों के गोदामों में जाकर कालेधन वालों के बोरे  के बोरे  बदल दिए इन्हीं बैंक कर्मचारियों ने !कालेधन वाले तो इनके यहाँ लाइन लगाने भी नहीं आए !सरकार उनके रुतबे को देखकर टापती रह गई !जनता दम तोड़ती रही !
     सरकार जनता से तो 50 दिन मांगती रही किंतु भृष्ट बैंक कर्मियों पर अंकुश क्यों नहीं लगाया कम से कम उतने दिनों के लिए ये दोपहर का लंच ही छोड़ देते !सैलरी वे लेते हैं जनता नहीं इसलिए उन्हें सरकार के निर्णय में जनता से अधिक बढ़ चढ़कर भाग लेना चाहिए था और जनता से बड़ा बलिदान करना चाहिए था किंतु बैंक वाले समय से नास्ता करते और समय से लंच पैकेट खोल कर बैठ जाते वहीँ दूसरी और आधी आधी रात से लाइनों में खड़ी भूखी प्यासी जनता बेशर्मी पूर्वक खाते हुए उन बैंक कर्मचारियों को देखती रहती !
        इन्हीं सरकारी कर्मचारियों ने सरकारी स्कूल बर्बाद किए अस्पताल बर्बाद किए डाक सेवाओं की भद्द पिटवाई फोन का कबाड़ा किया !राजनैतिक भ्रष्टाचारी चुनावी घोषणापत्र बना बना कर जनता में बाँट रहे हैं इन्हीं कर्मचारियों के बलपर !
      शिक्षित कर्मचारी अशिक्षित या अल्पशिक्षित नेताओं की बातें क्यों मान लेंगे भले वो मंत्री ही क्यों न हों !सुनना उनकी मज़बूरी है तो समाज की गालियाँ सुनते रहने वाले लोग मंत्री रूपी नेताओं की भी सुन लेंगे किंतु नेताओं को बेवकूप बनाना उन्हें आता है वे माता सरस्वती की 'क्षेत्रज' संतानें जानती हैं कि सरकार में आया हुआ हर नेता 5 वर्षों के लिए होता है और यदि हम लोग चाहें तो जनता का काम बिलकुल न करें उन पाँच वर्षों में सरकारी नेताओं की भद्द अपने आप ही पिट जाएगी और दुबारा कभी नहीं सत्ता मुख चूमने पाएगी !उसके बल पर नेता लोग बनाते हैं अपने अपने घोषणापत्र !

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