पराजय के डर से चड्ढी गीली किए घूम रहे भयभीत युवराजों ने गठबंधन करके एक दूसरे का हौसला बढ़ाने का प्रयास किया है जबकि परेशान दोनों हैं !
दोनों डरपोक न केवल इकट्ठे हुए हैं अपितु इसके लिए एक को मां पीछे करनी पड़ी तो दूसरे को बाप !यदि सब कुछ अच्छा ही था तो आखिर ये कुर्बानी करनी क्यों पड़ी !ऐसा करने की जरूरत ही क्यों पड़ी !वे माता पिता ठीक नहीं थे या उनके निर्णय ठीक नहीं थे या असुरक्षा की भावना इतनी ज्यादा बलवती हो चुकी थी ! "बाप से बैर पूत से सगाई "!बारे गठबंधन !वाह !!
बाप जिस पार्टी के सामंतवाद के विरुद्ध आजीवन लड़ा हो बेटा उसी सामंतवाद के सामने घुटने टेक रहा हो ऊपरी मन से कहता जा रहा हो कि हमारी पार्टी की तो लहर चल रही है किंतु चेहरे पर बारह बजते जा रहे हों क्या समाज समझता नहीं है क्या की ये डरपोक इकट्ठे हुए क्यों आखिर किसकी आहट से परेशान थे बेचारे !मैंने किसी को कहते सुना कि साइकिल के हैंडल को हाथ का साथ अब मिला है किंतु इसका मतलब अब तक साइकिल अनाथ थी क्या !पराक्रमी पिता का इतना बड़ा अपमान करके फटे कुर्ते वालों पर इतना बड़ा नाज !आखिर क्यों और किस पहलवानी के बलपर ? बारे जोश बारी जवानी !!कटा हाथ किसी के काम आ भी कैसे सकता है !
No comments:
Post a Comment