ऐसे लोगों ने संपत्तियाँ कमाईं तो कैसे और कब ?अन्यथा आईं तो कहाँ से ?धोखाधड़ी से !घूसखोरी से या अपराधियों के संरक्षण से या फिर वास्तव में ईमानदारी से !ऐसी ईमानदारी की कमाई करने की कला जनता को भी सिखाइए ताकि वो भी राजसी सुख भोगते भोगते अरबोपति बन जाए !
सरकार की हिम्मत है तो इनकी जाँच करके दिखाए ! सरकार घूसखोर अधिकारी कर्मचारियों पर लगाम लगा सकती तो इनके नाम ही जनता को बता दे !
हे प्रधानमंत्री जी !यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही
है तो भ्रष्टबाबाओं भ्रष्टनेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की चल
अचल संपत्तियों का पता लगाइए उनके आयस्रोतों की जाँच करवाइए !
- नेतालोग जब नेता बने थे तब कितना धन और संपत्तियाँ थीं उनके पास और आज कितनी हैं ?
- बाबा लोगों ने जब घर छोड़ा था तब कितना धन और संपत्तियाँ थीं उनके पास और आज कितनी हैं ?
- सरकारी कर्मचारियों की जब नौकरी लगी थी तब कितनी संपत्ति थी उनके पास और आज कितनी है और जो है वो आई कहाँ से ?कमाई से या घूस आदि धोखाधड़ीसे ठगीमाँगी या वसूली गई संपत्तियाँ हैं !
सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका प्रमुख रूप से
इन तीन लोगों की ही मानी जाती है हजार पाँच सौ के नोट बंद करने का असर इन
तीनों लोगों पर बिलकुल न के बराबर होगा !क्योंकि ऐसे लोग अपना सारा कालाधन
जगह जमीनों में लगा चुके होंगे !
अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है।
अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है।
प्रायः
नेता और बाबा लोग भी सामान्य परिवारों में ही पले बढ़े होते हैं दस बीस वर्षों में
सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ ईमानदारी पूर्वक बना लेना आम आदमी के बश की बात
नहीं होती है फिर नेता और बाबा लोग ईमानदारी पूर्वक ऐसा कैसे कर लेते हैं उनके
आयस्रोत खोजे और सार्वजनिक किए जाएँ जनता भी उनसे सीखेगी धन इकठ्ठा करने का
चमत्कार !जनता भी बनेगी नेता और बाबा और वो भी जाएगी दिल्ली और हरिद्वार !
चोर लोग शोर मचाते ही हैं 'चोर चोर 'कह कर उन्हें चिल्लाते हुए अक्सर लोगों ने सुना ही होगा ! वही यहाँ होता है जब कोई नेता और बाबा कालाधन बहुत अधिक मात्रा में इकठ्ठा कर लेता है तब वो भी कालाधन कालाधन चिल्लाने और राजनीति की ओर भागने लगता है नेताओं से संपर्क साधने लगता है सरकार से सिक्योरिटी माँगने लगता है !ये सब उसके कालाधन की घबराहट के ही प्रतीक होते हैं ।
जो चरित्रवान साधक विरक्त साधूसंत होते हैं वे सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे सुरक्षित रहने से अच्छा मरना पसंद करेंगे वो केवल भगवान् पर भरोसा करते हैं !ऐसे लोग नेताओं के यहाँ दुम हिलाने क्यों जाएँगे यहाँ नेता लोग खुद चिरौरी करने आया करते हैं !संत लोग झूठ क्यों बोलेंगे !संत लोग दवाएँ क्यों बेचेंगे वे तो आशीर्वाद से ही दूर कर देते हैं बड़े बड़े रोग !
ऐसे शास्त्रीय साधू संतों एवं धार्मिक क्षेत्र से जुड़े लोगों का अपमान कराते हैं ऊटपटाँग साधनों से कालाधन इकठ्ठा करने वाले बाबा लोग !क्योंकि वास्तविक साधूसंतों जैसे विरक्त लोग धन संपत्तियों का मोह छोड़ कर ही तो व्यापार परिवार एवं नातेरिस्तेदारों आदि सारे प्रपंचों से दूर भगवान की भक्ति में समाई होती है उनकी दुनियाँ ! पर पहुँच चुके लोग फिर सांसारिक प्रपंचों में क्यों फँसना चाहेंगे !जीवनचर्या के लिए वर्तमान युग में धन की आवश्यकता उन्हें भी होनी स्वाभाविक है जो पूर्ति उनके भक्त लोग किया करते हैं !इससे अधिक वो प्रपंच पालते ही नहीं हैं ।
दूसरी ओर बाबागिरी की आड़ लेकर धार्मिक कार्यों या सेवाकार्यों का प्रपंच फैलाकर अपनी सुख सुविधाएँ संपत्तियाँ जुटाने वाले लालची लोग हैं जिनका धर्म कर्म से कोई संबंध ही नहीं होता दिन भर झूठ बोल बोल कर धन इकठ्ठा करने के प्रति समर्पित होते हैं ये करोड़ों अरबों का अंबार लगा लेते हैं जो धर्म के माध्यम से ईमानदारी पूर्वक इकठ्ठा कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है ये लोग ऐसे तपस्वी भी नहीं होते हैं कि लोग आस्था पूर्वक इन्हें दे जाते हों !दस बीस वर्षों में सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ बनने के स्रोत सार्वजनिक क्यों न किए जाएँ !क्योंकि प्रायः बाबा लोग भी परिवारों में ही पले बढ़े होते हैं ।
बड़े बड़े राजनैतिक संपर्कों से बाबा बनकर भी कई काले कारनामों से इकठ्ठा किया जा रहा है उनके काले कारनामें भी खोले जाएँ ! भ्रष्ट बाबाओं ,नेताओं ,कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर कब होगी कार्यवाही ?
1000 -500 के 'नोट' की 'चोट' से सारे देश में मचा है हाहाकार !अब तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध लड़ने लगी है मोदी सरकार !
चोर लोग शोर मचाते ही हैं 'चोर चोर 'कह कर उन्हें चिल्लाते हुए अक्सर लोगों ने सुना ही होगा ! वही यहाँ होता है जब कोई नेता और बाबा कालाधन बहुत अधिक मात्रा में इकठ्ठा कर लेता है तब वो भी कालाधन कालाधन चिल्लाने और राजनीति की ओर भागने लगता है नेताओं से संपर्क साधने लगता है सरकार से सिक्योरिटी माँगने लगता है !ये सब उसके कालाधन की घबराहट के ही प्रतीक होते हैं ।
जो चरित्रवान साधक विरक्त साधूसंत होते हैं वे सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे सुरक्षित रहने से अच्छा मरना पसंद करेंगे वो केवल भगवान् पर भरोसा करते हैं !ऐसे लोग नेताओं के यहाँ दुम हिलाने क्यों जाएँगे यहाँ नेता लोग खुद चिरौरी करने आया करते हैं !संत लोग झूठ क्यों बोलेंगे !संत लोग दवाएँ क्यों बेचेंगे वे तो आशीर्वाद से ही दूर कर देते हैं बड़े बड़े रोग !
ऐसे शास्त्रीय साधू संतों एवं धार्मिक क्षेत्र से जुड़े लोगों का अपमान कराते हैं ऊटपटाँग साधनों से कालाधन इकठ्ठा करने वाले बाबा लोग !क्योंकि वास्तविक साधूसंतों जैसे विरक्त लोग धन संपत्तियों का मोह छोड़ कर ही तो व्यापार परिवार एवं नातेरिस्तेदारों आदि सारे प्रपंचों से दूर भगवान की भक्ति में समाई होती है उनकी दुनियाँ ! पर पहुँच चुके लोग फिर सांसारिक प्रपंचों में क्यों फँसना चाहेंगे !जीवनचर्या के लिए वर्तमान युग में धन की आवश्यकता उन्हें भी होनी स्वाभाविक है जो पूर्ति उनके भक्त लोग किया करते हैं !इससे अधिक वो प्रपंच पालते ही नहीं हैं ।
दूसरी ओर बाबागिरी की आड़ लेकर धार्मिक कार्यों या सेवाकार्यों का प्रपंच फैलाकर अपनी सुख सुविधाएँ संपत्तियाँ जुटाने वाले लालची लोग हैं जिनका धर्म कर्म से कोई संबंध ही नहीं होता दिन भर झूठ बोल बोल कर धन इकठ्ठा करने के प्रति समर्पित होते हैं ये करोड़ों अरबों का अंबार लगा लेते हैं जो धर्म के माध्यम से ईमानदारी पूर्वक इकठ्ठा कर पाना किसी के लिए भी संभव नहीं होता है ये लोग ऐसे तपस्वी भी नहीं होते हैं कि लोग आस्था पूर्वक इन्हें दे जाते हों !दस बीस वर्षों में सैकड़ों करोड़ की संपत्तियाँ बनने के स्रोत सार्वजनिक क्यों न किए जाएँ !क्योंकि प्रायः बाबा लोग भी परिवारों में ही पले बढ़े होते हैं ।
बड़े बड़े राजनैतिक संपर्कों से बाबा बनकर भी कई काले कारनामों से इकठ्ठा किया जा रहा है उनके काले कारनामें भी खोले जाएँ ! भ्रष्ट बाबाओं ,नेताओं ,कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर कब होगी कार्यवाही ?
1000 -500 के 'नोट' की 'चोट' से सारे देश में मचा है हाहाकार !अब तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध लड़ने लगी है मोदी सरकार !
गंगानदी भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी
कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं
आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें
बेकार हैं । हे प्रधानमंत्रीजी!सरकार केलिए सबसे बड़ीचुनौती !
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते हैं आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं ।
कुलमिलाकर बाबाओं नेताओं या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं ।
कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने की हिम्मत करना बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !
ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी संपत्तियाँ ही काला धन हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते हैं आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं ।
कुलमिलाकर बाबाओं नेताओं या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं ।
कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने की हिम्मत करना बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !
ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी संपत्तियाँ ही काला धन हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।
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