शरीर और मन से नपुंसक लोगों में हो
सकता है कि ऐसा संभव हो भी पाता हो किंतु वहाँ भी संभावनाएँ बहुत कम होती होंगी!चोर
यदि चोरी करने का स्वभाव छोड़ना भी चाहे तो भी टारा फेरी तो करता ही रहेगा !उसे रोक पाना उसके बश की बात भी नहीं होती है !
सेक्सभूख मिटाते लड़के और लड़कियाँ !महिला सुरक्षा के लिए चिंतित सरकार |
मित्र यदि नपुंसक नहीं है तो अपने से विपरीत लिंग वाले स्त्री पुरुष या किसी भी जीव के प्रति आकर्षण होना उसके स्वभाव में होता है उसे वो कैसे छोड़ सकता है स्वभाव बदल पाना आसान होता है क्या ?
मित्रता बहुत बड़ा पद और समर्पण है उसमें शरीर मन आदि सब कुछ सौंपना ही होता है न सौंपे तो मित्रता काहे की ?मित्रता करते समय सीमा रेखाएँ नहीं खींची जा सकतीं क्योंकि मित्रता के स्वभाव में ये सभी बड़ी बाधाएँ होती हैं । जिससे आप मित्रता करते हैं हो सकता है कि आप उससे सेक्स के लिए आकर्षित न हों आपका कोई अन्य स्वार्थ हो किंतु सामने वाला यदि आप के प्रति सेक्स की इच्छा रखता हो तो उसे आप कैसे और कितने दिनों तक टाल सकते हैं और यदि आप उसकी इच्छा के अनुसार बर्ताव नहीं करेंगे तो वो आपका मित्र कहलाना ही क्यों पसंद करेगा ?
यदि उसका आप पर अधिकार ही न हो तो वो अपने अधिकार आपको क्यों देगा और यदि अधिकारों की अदला बदली में ही हिचकिचाहट बनी रही तो मित्रता किस बात की !मित्रता के लिए हमारा तुम्हारा जैसे भावों को मिटाना सबसे अधिक आवश्यक होता है ।
मित्रता का अर्थ ही किसी के प्रति समर्पण होता है और समर्पण चाहने वाले स्त्री पुरुष ऐसी मित्रता करेंगे ही क्यों जिसमें समर्पण न हो और जहाँ समर्पण है वहाँ रुकावट कैसी ! समर्पण किस्तों में नहीं हो सकता है समर्पण तो संपूर्ण होता है ।"ये हमारा वो तुम्हारा"की भावना मिटाकर सब कुछ अपना दोनों का मानने का अभ्यास ही मित्रता है इसमें खुद के लिए कम और अपने मित्र के लिए अधिक जीना होता है अर्थात अपनी स्वार्थ भावना को दबाकर अपने मित्र की इच्छाओं की पूर्ति करना ही तो मित्रता है।
इसलिए स्त्रियों और पुरुषों का आपसी दैहिक आकर्षण स्वभाव में होता है और स्वभाव बदलना मनुष्य के बश की बात नहीं है । आग लग सकने योग्य ज्वलनशील चीजें यदि जलती हुई आग के पास रखी हों तो उन्हें जलाना नहीं पड़ता है अपितु वे स्वयं ही जलने लग जाती हैं जो कई बार पानी से भी नहीं बुझती है जलाकर ही दम लेती है आँधी उड़ाकर ले जाती है बाढ़ बहाकर कर ले जाती है कुल मिलाकर ये उनके स्वभाव हैं जब वे नहीं बदले जा सकते तो स्त्रियों और पुरुषों का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना एक दूसरे का स्वभाव है उसे कैसे बदला जा सकता है। हाँ इन पर संयम की कोशिश उसी तरह की जा सकती है जैसे कोई भूखा व्यक्ति किसी हलवाई की दुकान में रखे रसगुल्ले देखकर या तो उन्हें पा लेता है या उन्हें पाने की कोशिश करता है या उन्हें पाने के लिए पागल हो उठता है और या फिर अपनी पहुँच से बाहर मानकर मन मार लेता है किंतु यदि रसगुल्ले किसी को बहुत पसंद हों ऊपर से उसे भूख भी लगी हो फिर उसे रसगुल्ले देखकर वो खाने को ललचाएगा नहीं ये मानने लायक बात ही नहीं है ।कोई स्त्री या पुरुष किसी पुरुष या स्त्री के शरीरों के प्रति आकर्षित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है
वैसे भी अपने अपने शरीर दिखाने खोलने उभाड़ने या ब्यूटीपार्लरों से सेक्स ट्रे बनकर निकलने वालों का उद्देश्य भूखों को रसगुल्ले दिखाने के अलावा और क्या हो सकता है अपनी घर गृहस्थी के स्त्री पुरुषों को खुश करने भर के लिए उनका पुरुष और स्त्री होना ही काफी होता है ऊपर से उत्तम वस्त्र उसके ऊपर से सहज श्रृंगार ही बहुत होता है ।
अपनी घर गृहस्थी को ही अपना तीर्थ मानने वाले लोगों को इसके अलावा किसी और को आकर्षित करने की आवश्यकता ही नहीं होती है और जब या जिसके जीवन में वैकेंसी खाली ही न हो वो शरीरों के विज्ञापन में रूचि ही क्यों लेगा !पुराने लोग अपने अपने गृहस्थ जीवन से संतुष्ट होते थे इसीलिए उन्हें एक दूसरे का धूल भरा मुख भी आकर्षित कर लिया करता था एक दूसरे के प्रति समर्पित होते थे वे लोग !जहाँ एक दूसरे के प्रति समर्पण हो उसके तो दुर्गुण भी अच्छे लगने लगते हैं अपने बच्चे तो सबसे अधिक प्यारे लगते हैं वो ब्यूटी पार्लर से सज कर तो नहीं आते फिर भी अपने हैं इसलिए अच्छे लगते हैं आज पति पत्नी के आपसी संबंधों से जो अपनापन गायब होता जा रहा है उसकी भरपाई ब्यूटीपार्लरों से हो पाएगी क्या ?और यदि इस हो सकता होता तो न तलाक होते न हत्या या आत्महत्या जैसी दुर्घटनाएँ ही घटतीं !आखिर अपनों को चोट पहुँचाने की भावना ही क्यों आती !
ब्यूटीपार्लरी संस्कृति का लक्ष्य ही अपने दो के बीच किसी तीसरे को घुसाने की चाहत होती है किंतु कौन कितना घुसाना चाहता है इसके लिए सबकी परिस्थितियाँ ,भावनाएँ और जरूरतें अलग अलग होती हैं किंतु एक बात कामन है कि वो अपने प्रति अपने पति या पत्नी के अलावा अन्य लोगों को भी आकर्षित करना चाहते हैं ये बात आकर्षित होने वालों को भी पता होती है किंतु कौन कितना आकर्षित करना चाहता है इसका पता आकर्षित होने वाले को कैसे लगे इसके लिए उसके पास कोई थर्मामीटर तो होता नहीं है वो अपने अपने हिसाब से और अपनी जरूरतों के अनुसार आकर्षित होता है इसके अलावा भी आकर्षण का जिसको जहाँ जैसा रेस्पांस मिलता जाता है वो वहाँ वैसा आगे बढ़ता चला जाता है ।
ये ब्यूटीपार्लरी या फैशनी आकर्षण ही वैवाहिक जीवनों को बर्बाद करने के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है ऐसे ही दिखावे ने बनावटी वैकेंसी दिखा दिखाकर तलाक हत्या आत्महत्या जैसे तमाम अन्य अपराधों के लिए समाज को उकसाया है यही कारण है कि ऐसे लैला मजनुओं की अपेक्षा अशिक्षितों गरीबों ग्रामीणों के यहाँ ऐसी दुर्घटनाएँ सुनने को कम मिलती हैं ।
कुल मिलकर दैहिक आकर्षण को रोक पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । आपसी दैहिक आकर्षण स्वभाव में होता है उसे कैसे रोका जा सकता है ।
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