Wednesday, 26 October 2016

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कानून अधिकारियों के हाथ है या अपराधियों के हाथ ? बारे उत्तरप्रदेश !! जनता के दुःख दर्द भी कोई तो सुने !!!
     अधिकारी गाँधी जी के बंदरों के अनुयायी हैं वो समाज की बुराई देखना सुनना और बोलना  नहीं चाहते !नेताओं पर हर समय छाया रहता है चुनावी नशा !राजनैतिक शेयर मार्केट में गहमा गहमी का माहौल है कुछ लोग सरकारों से फेंके जा रहे हैं कुछ के मंत्रालय बदले जा रहे हैं कुछ को शर्मिंदा किया जा रहा है।  कुछ पार्टियों के हाथी पुरानी पार्टियों की जजीरें तोड़ कर घूम रहे हैं सूँड़ उठाए !मोलभाव करके बाँधे गए हैं कुछ तो कुछ घूम रहे हैं बिकने की तलाश में !
      नेता दूल्हे की तरह सजे घूम रहे हैं चिंता चुनाव जीतने की बाकी जनता जहन्नम में जाए !बारे जनसेवको !पार्टियों के पद बाँट दिए गए हैं और सबको समझाया जा रहा है कि ऐसे श्लोगन खोज कर लाओ जिससे ज्यादा से ज्यादा फँस सकें लोग !दलितों को आटा दाल चावल देने की बातें कह कर पटाओ!सवर्णों को सम्मान देने  नाटक करों पैरों से कमजोर होती हैं ये जातियाँ !महिलाओं को सुरक्षा की बातें बताओ ! घरों में अधिकार दिलाने के नाम पर भड़काओ ! सबके हाथ पैर जोड़ लो जितना मूर्ख बना सकते हो बनाओ ! दलितों को देखकर उन्हें सवर्णों के शोषण वाली घिसी पिटी बातें बताओ उनमें प्रतिशोध की भावना भड़काओ !जैसे सत्ता हथिया सकते हो हथियाओ जितना झूठ बोल सकते हो बोलो !खुली छूट है !
    कुलमिलाकर चुनावी बसंत ऋतु में नेताओं की नियत बिगड़ चुकी है चुनावी नशा सिर चढ़कर बोल रहा है । सरकारों को किसी के काम की कोई चिंता नहीं है आम आदमी का कोई बश नहीं है । नेताओं के आगे दुम हिलाना स्वीकार कर चुके हैं अधिकारी भी !अरे !माता सरस्वती के वरद पुत्र अधिकारियो !नेता लूटपाट  की राजनीति में बिजी हैं तो तुम्हीं बन जाते जनता का सहारा!इस लोकतान्त्रिक प्रणाली में कोई तो होता जनता का भी अपना !
     अपराधी किसी को भी चुनौती दे देते हैं "जाओ जो करना हो कर लो और डंके की चोट पर करते हैं अपराध !" ये सरकार शासन और प्रशासन के लिए शर्म की बात है क्योंकि ये चुनौती जनता को नहीं अपितु कानून और कानून के रखवालों के लिए होती है ये जिन्हें अपराधी या तो खरीद चुके होते हैं या खरीदने की ताकत रखते हैं या सोर्सफुल होते हैं या फिर शासन प्रशासन की परवाह ही  नहीं करते हैं सरकारी तंत्र इतना शिथिल है कि काम करना तो दूर जवाब देना जरूरी नहीं समझते हैं  लोकतंत्र के मक्कार प्रहरी !
     सत्ताधारी दल हों या विपक्ष !नेताओं का जनता के कार्यों से कोई संबंध नहीं रह गया है वो केवल अपने और अपनों के काम करते हैं बाकी सबको केवल आश्वासन देते हैं ।मंत्रालयों सरकारी आफिसों में जनता पत्र लिख लिख कर भेजती है उसमें ज्यादा से ज्यादा 'श्री' और 'जी' जैसे शब्द घुसाती है 'मान्यवर' 'महोदय' और 'श्रीमानजी' जैसे शब्द तो कहीं घुसा देती है लेकिन संवेदना शून्य लोग  ऐसे  शब्दों के अर्थ समझते भी हैं या नहीं !"भैंस के आगे बीन बाजे भैंस खड़ी पगुराय !"
    नेता केवल इतना काम  करने में लगे हैं कि अगले पाँच वर्ष बाद अपनी ही सरकार बने इसका इंतजाम करते हैं ।किसके भरोसे  चल  रहा है भारत का लोकतंत्र !हर सरकार अपनी अपनी पीठ थपथपा रही है । बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जा रही हैं चुनाव जिताने का मतलब जनता को मूर्ख बनाने के लिए अब तो बकायदा ठेके पर उठने लगी हैं पार्टियाँ !प्रशांत किशोर जैसे लोग जनता को भ्रमित करने के लिए इस रिसर्च में लगाए गए हैं कि जनभावनाओं का अधिक से अधिक दोहन कैसे किया जाए !सरकारों को किसी के काम की कोई चिंता नहीं हैविपक्ष कुंठा ग्रस्त है जनता ट्रस्ट है बारे लोक तंत्र !
          कंप्लेन किससे करें घूस देने को पैसे नहीं हैं सोर्स है नहीं !दलालों ने बताया कि काम करवाने के लिए किस विभाग में किसको कितने रूपए देने पड़ेंगे सब के रेट खुले हुए हैं उन्होंने कहा कि घूसके बल पर निचले स्तर से मदद मिलने की सम्भावना है और सोर्स के बल पर ऊपर वाले लोग सुनते हैं ऐसा सिद्धांत है इसलिए या तो घूस दो या सोर्स निकालो !मैंने कहा ये दोनों नहीं हैं मेरे पास ।इसलिए मैं अधिकारियों को अपनी  समस्या लिखूँगा !इस पर एक  दलाल ने कहा कि आजकल अधिकारी लोग आपकी तो छोड़िए अपनी आत्मा की भी नहीं सुनते केवल शक्तिशाली नेताओं का अनुगमन करते हैं वे ! मैंने फिर भी कहा -
      कई मौकों पर अधिकारियों ने मुझे निराश नहीं किया है इसलिए उन्हीं तक अपनी आवाज पहुँचाने की एक कोशिश  मैं करूँगा !इसलिए मैंने  कई विभागों में कंप्लेनके एप्लिकेशन भेज दिए हैं केवल पुलिस थाने को छोड़कर !
      आपके पास यदि घूस देने के लिए पैसे नहीं हैं और सोर्स भी नहीं है तो आपके साथ कितना भी बड़ा अन्याय होता रहे उचित होगा कि आप केवल सहन शीलता के साथ अपना शोषण सहते रहें क्योंकि जहाँ कहीं भी  आप कम्प्लेन करेंगे वहाँ से सौभाग्यवश यदि कोई चेक करने आया भी तो वो तब तक आपकी ही कमियाँ निकलता रहेगा जब तब आप उसकी जेब में कुछ डालेंगे नहीं यदि आपने कुछ भी नहीं दिया तो वो कम्प्लेन वहीँ ठंडी !यदि आप ऊपर के अधिकारियों के पास कम्प्लेन करेंगे तो वो जाँच करने के लिए तो इन्हीं निचे वालों के पास ही भेजेंगे अंतर इतना होगा कि तब जो एक हजार माँग रहे अब उन अधिकारियों का भी हिस्सा सामिल हो गया इसलिए अब वो दस हजार माँगने लगते हैं 
अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं ने लोकतंत्र को बंधक बना रखा
   

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