क्या दिल्ली के भाग्य में राजनैतिक पहलवानी ही लिखी है !
किरणवेदी और केजरी वाल के बीच समिटता जा रहा है चुनाव !
अपने
अपने मुख से अपने अपने को दूध का धुला सिद्ध करने के प्रयास हो रहे हैं
एवं दूसरे को अवसर वादी सिद्धांत विहीन आदि बताने के लिए तर्क पर तर्क दिए
जा रहे हैं ! इन दोनों के झगड़ों में दिल्ली वाले कहीं नहीं हैं और न ही
दिल्ली वालों की कोई बात ही करता है वो तो बेचारे उस गाय की तरह हैं जो
किसी भी खूँटे से बाँध दिए जाएँगे और पांच वर्ष तक ठोकेंगे अपने करम !और
भगवान ने चाहा तो किसी दल को बहुमत नहीं मिलेगा और होगा फिर से चुनाव !
चुनाव लड़ने या लड़वाने के लिए बड़े बड़े बीर बुलाए जा रहे हैं दिल्ली में !
वो लोग दिल्ली वालों को आकर ये समझाएँगे कि आप बुद्धू हो ,आप नासमझ हो,
आप अभी बच्चे हो आपको पता नहीं है कि आपके फायदे के लिए सत्ता में आना
किसका कितना ज्यादा जरूरी है इसलिए ये बात हम आपको समझाने आए हैं हम विधायक
सांसद मंत्री हैं या रह चुके हैं !हमें अनुभव है तुम बुद्धू हो ! तुम
वोट अपने मन से मत देना हमारे मन से देना क्योंकि हमारे पुरखे तुम्हारे
पुरखों को राशन देते रहे थे उसका तुम पर एहसान है इसलिए तुम मेरी बात मानना
! इतनी बात बताने समझाने के लिए राजनैतिक दल बेताब हैं !आखिर क्यों न
इन्हें सबक सिखाया जाए किन्तु कैसे ! लोकतंत्र पर निष्ठा रखने के कारण वोट
तो हमें पड़ेंगे !
अब जनता पूछेगी प्रश्न और तुम्हें देना होगा जवाब !
ऐ
राजनेताओ ! हिम्मत है तो दिल्ली के मतदाता से आँखें मिलाकर बात करो ! रैली
रैला क्यों और काहे का चुनाव प्रचार ! जनता जानना चाहती है कि हमें उन
आफिसों में धक्के खाने पड़ते हैं जो हमें कुछ समझते ही नहीं हैं वो सबकुछ
सरकारों को ही समझते हैं चूँकि सरकारें उन्हें सैलरी देती हैं !सरकारें
चुनाव प्रचार में हुए भारी भरकम खर्च को चुनाव बाद सरकारी कर्मचारियों के
सहयोग से जनता से वसूलते हैं जिन्हें अबकी नहीं उन्हें अगले चुनावों में
मौका मिलेगा !तब वो वसूलेंगे !सफाई कर्मचारियों को ही लें अपने आकाओं का
आर्थिक पूजनकरके निर्भय विचरते हैं काम करने के लिए स्वच्छता अभियान का
हवाला देते हैं ऐसा ही हर विभाग में हो रहा है !
अब कसम केजरीवाल की !
किसी ने सत्ता के लिए बच्चों की कसम खाई किसी ने सत्ता के लिए श्रीराम मंदिर बनाने की पर हुआ क्या सत्ता तो मिल गई किन्तु मंदिर बन गया क्या !इसलिए सत्ता पाने के लिए कसम खाना तो मजबूरी होती है नहीं जनता विश्वास कहाँ करती है किन्तु राजनीति में यदि महत्त्व ही होता तो क्यों होते घोटाले और भ्रष्टाचार !कैसे दी जाती झूठी गवाहियाँ !घूस का धंधा कैसे फलता फूलता !
दो.नाक पोछते फिर रहे वोट माँगते लोग।
कर्मों पर विश्वास नहीं चहिए सत्ता भोग ॥
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