संघर्ष की सड़क पे सरकते रहे सदैव
दुःख की दुशाला ओढ़े सदा दलमले गए |
शत्रु जो सताते तो सहना सरल था किंतु
अपना कहूँ क्या दुःख अपनों से छले गए ||
जिनको सँजोते रहे आशा से सदैव साथ
वे ही संबंधशूल फँसते गले गए !
अँगुली पकड़ के जिन्हें चलना सिखाया कभी
वे ही हमें भीड़ में रौंदते चले गए ||
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