फिर भी लोग प्रसन्न रह लिया करते थे |परिश्रम पूर्वक ईमानदारी से जीवन यापन की इच्छा रखने वाला व्यक्ति इतने बड़े जीवन में परेशान भले बार बार होता था किंतु एकांत में बैठकर अपनी आत्मा की अदालत में अपने आचरणों की वकालत कर लिया करता था |इसलिए पराजित नहीं होता था |यही कारण है कि तनाव तब भी था परेशानी तब भी थी चिंताएँ तब भी थीं किंतु वो अपनी आत्मा की नजरों में पाक साफ बना रहता था कि उसे अपने आचरणों के लिए कभी पछताना नहीं पड़ता था | वह हर परिस्थिति में परिश्रम ईमानदारी सात्विक भोजन ,सात्विक चिंतन शिष्टाचार तथा दया धर्म की भावना का सहारा लेकर अपने आत्मबल और मनोबल को मजबूत बनाए रखता था |यही वह पवित्र प्रतिरोधक क्षमता है |
जिसके बल पर वह कुछ भी खाकर पचा लिया करता था | जंगलों में भी रहकर जी लिया करता था और परायों को भी अपना बना लिया करता था
इसलिए उनका
कम उनका स्थायी प्रभाव मन और हृदय पर नहीं पड़ता था | इसीलिए उनमें शुगर वीपी जैसे रोगों का प्रवेश करना आसान नहीं होता था |
कारण अपनी
प्रसन्न और
संयुक्त परिवार कई कई पीढ़ियों तक चला करते थे | लड़के लड़की के विवाह का मतलब दो लोगों का संबंध न होकर दो गाँवों का संबंध केवल मान ही नहीं लिया जाता था अपितु ऐसे पवित्र संबंधों का निर्वाह दोनों गाँवों के लोग उसी भावना से कर लिया करते थे | इसलिए तलाक जैसी घटनाएँ एवं उनसे संबंधित तनावों से लोग आसानी से बच लिया करते थे |
प्रायः प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी विषय का विशेषज्ञ हुआ करता था उसकी विशेषज्ञता की आवश्यकता दूसरे लोगों को भी पड़ा करती थी इसलिए एक दूसरे से मिलजुल कर रहना लोगों की मजबूरी थी |
वर्तमान समय में पारंपरिक चिकित्सा पद्धति
किसी भी महामारी के प्रारंभ होने बाद अचानक बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित होने प्रारंभ हो जाते हैं और बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु होने लग जाती है |
हमेंशा बड़ी संख्या में संसाधनों की आवश्यकता नहीं पड़ती इसीलिए उतनी उपलब्धता नहीं होती है | सरकारों के पास चिकित्सा के लिए साधन सीमित होते हैं सीमित मात्रा में ही चिकित्सालयों में बेड वेंटीलेटर आदि की व्यवस्था होती है |औषधियाँ भी सीमित मात्रा में ही तैयार करके रखी जा सकती हैं | यदि बहुत पहले से अधिक मात्रा में औषधियाँ बनाकर रखने के विषय में सोचा भी जाए तो उनके खराब होने का भय अधिक रहता है ,क्योंकि उतनी बड़ी मात्रा में औषधियों के भंडारण की आवश्यकता केवल महामारी के समय ही पड़ती है|महामारी के अतिरिक्त सामान्य समय में इतनी बड़ी मात्रा में उन औषधियों की खपत कहाँ और कैसे होगी | महामारी जैसे महारोगों से बचाव के लिए बनाई गई औषधियाँ महँगी होंगी स्वाभाविक है |
की आवश्यकता की
मनुष्यकृत प्रयास तो से पहले ही उससे बचाव के लिए तैयारियाँ करके रखनी होती है करने को के वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता होती है बाद से पहले
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