मौसम की तरह ही महामारी का भी लगाया जा सकता है पूर्वानुमान !
महामारी की लहरों के आने और जाने के विषय में भी लगाया जा सकता है पूर्वानुमान !
महामारी के विषय में कौन संक्रमित होगा कौन नहीं इस विषय में भी लगाया जा सकता है पूर्वानुमान |
कोरोना की पिछली लहरों में बहुत लोगों ने अपने और अपनों के विषय में पूर्वानुमान पता करने के लिए हमारे यहाँ संपर्क किया यहाँ से उन्हें जो बताया गया वो प्रायः सही घटित हुआ है | जिससे उन लोगों का समयविज्ञान के प्रति विश्वास बढ़ा है | अब विस्तार से -
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कोविडनियमों के निर्माण का वैज्ञानिक आधार क्या था ?इनका पालन कितना आवश्यक था ?
कुछ साधन संपन्न लोग महामारी से घबड़ाकर अपने अपने घरों में दुबके पड़े रहे इसके बाद भी उन्हें संक्रमित होते देखा गया जबकि साधन विहीन कुछ लोग चाहकर भी कोविड नियमों का पालन नहीं कर सके ! इसके बाद भी उन्हें जुकाम तक नहीं हुआ !इसका निश्चित कारण क्या था यह वैज्ञानिकों को बताना चाहिए | उन गरीबों के लिए मास्क सैनिटाइजर जैसी चीजों के लिए पैसे ही नहीं थे | परिवार के लोगों का भोजन जुटाना ही मुश्किल था | इसलिए वे अपने परिवार के लोगों का भरण पोषण ही मुश्किल से कर पाते रहे | नियमानुसार तो जिन्होंने कोविड नियमों का पालन नहीं किया उन्हें संक्रमण का शिकार होना चाहिए था किंतु वे नहीं हुए !इसका कारण क्या था ? वैज्ञानिकों को बताना चाहिए !
लॉकडाउन कितना आवश्यक था ?
कुछ देशों ने लॉकडाउन लागू किया और कुछ ने नहीं किया किंतु लॉकडाउन लगाना चाहिए था या नहीं !इसके लगाने से कोरोना महामारी से कितना बचाव हुआ | यदि न लगाया जाता तो किस प्रकार से कितना और नुक्सान हो सकता था इस विषय में किए गए अनुसंधानों का वैज्ञानिक आधार क्या है ? "दो गज दूरी मॉस्क जरूरी "का पालन बिहार बंगालके चुनावों में बड़ी बड़ी रैलियाँ होती रहीं |दिल्ली में आंदोलन करते किसानों ने ऐसे नियमों का पालन नहीं किया | सन 2020 की धनतेरस दिवाली की त्योहारी बाजारों में साप्ताहिक बाजारों में भारी भीड़ें उमड़ती रहीं कहीं सावधानियाँ नहीं बरती गईं !इसके बाद भी कोरोना संक्रमितों की संख्या न बढ़ने का वैज्ञानिक कारण क्या है ?
कोरोनासंक्रमण को बढ़ाने में वायुप्रदूषण का बढ़ना कितना सहायक था ?
वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया कि वायुप्रदूषण बढ़ने से कोरोना संक्रमण बढ़ेगा इसलिए वायुप्रदूषण पर अंकुश लगना चाहिए | ऐसी परिस्थिति में सन 2020 के अक्टूबर नवंबर दिसंबर आदि में वायु प्रदूषण बहुत बढ़ा किंतु उससे कोरोना संक्रमण नहीं बढ़ा | ऐसा होने के पीछे के वैज्ञानिक कारण क्या थे आखिर किन वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर वायुप्रदूषण के बढ़ने से महामारीजनित संक्रमण बढ़ने की बात बोली गई |
सर्दी में तापमान कम होना पर कोरोना संक्रमण बढ़ेगा !
किन वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर इस प्रकार की भविष्यवाणी की गई !यह कैसे निश्चय कर लिया गया कि सर्दी में कोरोना बढ़ेगा ही ! महामारी से जूझती जनता को इस प्रकार से डराने की आवश्यकता क्या थी | वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा तर्क की कसौटी पर कसे बिना इसे प्रचारित करना कितना आवश्यक था !
कोरोना संक्रमण के कारण सब्जियों एवं फलों को धोकर खाने की सलाह कितनी जरूरी थी ?
वैसे तो खान पान के विषय में साफ सफाई रखनी ही चाहिए ये अच्छे संस्कार हैं !जहाँ तक वैज्ञानिक अनुसंधानों की बात है तो तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों और सब्जियों के अंदर कोरोना संक्रमण पाया गया जबकि वे तो पूरी तरह बंद होते हैं उसके अंदर मनुष्य का स्पर्श हुआ ही नहीं तो वे फल और सब्जियों के आतंरिक भाग संक्रमित कैसे हुए ?ऐसी परिस्थिति में यदि फल और सब्जियाँ स्वयं संक्रमित हो सकते हैं तो उसी प्रक्रिया से मनुष्य भी तो संक्रमित हो सकता है | कोरोना संक्रमित किसी मनुष्य के विषय में ऐसा क्यों सोचना कि इसने किसी न किसी संक्रमित को छुआ अवश्य होगा तभी तो संक्रमित हुआ है | वाराणसी एवं पुणे में कुछ केस ऐसे भी देखे गए हैं जहाँ गर्भिणी स्त्री संक्रमित नहीं थी इसके बाद भी गर्भस्थ संतान संक्रमित निकली | ऐसा कहने के पीछे का आधार भूत वैज्ञानिक आधार क्या था कि संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने पर ही संक्रमण बढ़ सकता है ?
कोरोना से हार्ट एवं शुगर रोगियों के लिए अधिक खतरे की बात कही गई थी जबकि कोरोना काल में लोग 70 प्रतिशत कम संक्रमित हुए | ऐसा कहने के पीछे का आधार भूत वैज्ञानिक आधार क्या था
कुछ लोग घर बैठे रहे फिर भी संक्रमित हो गए और कुछ लोग भीड़ में घूमते रहे फिर भी संक्रमित नहीं हुए !
जिन्हें नहीं संक्रमित होना था वे दिल्ली मुंबई सूरत जैसे महानगरों से अपने अपने गाँवों को निकले श्रमिकों में से कितने लोग जिन्हें संक्रमित होना था वे
पहला प्रश्न : महामारी की चौथी लहर कब आएगी |
उत्तर :महामारी की चौथी लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ होगी |
दूसरा प्रश्न : चौथी लहर कितनी भयंकर होगी ?
उत्तर :महामारी की चौथी लहर दूसरी लहर से कम नहीं होगी कुछ मामलों में अधिक हो सकती है| इसका भी स्वरूप काफी डरावना हो सकता है | काफी अधिक लोग संक्रमित हो सकते हैं |
तीसरा प्रश्न: वैक्सीन लगवा चुके लोग चौथी लहर के लिए कितने सुरक्षित हैं ?
उत्तर : जिस रोग का स्वभाव लक्षण आदि कुछ भी पता न हो उससे मुक्ति दिलाने की वैक्सीन !कैसे संभव है ? फिर भी इसमें यदि थोड़ी भी सच्चाई होगी तो वैक्सिनेटेड लोग संक्रमित नहीं होंगे |
चौथाप्रश्न:महामारी की चौथी लहर 3-7-2022 से शुरू होगी ही,इसे सच कैसे माना जाए ! इसका आधार क्या है ?
उत्तर :जिस गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |कोरोना महामारी की भी तीन लहरों के विषय में पहले से लगाया गया पूर्वानुमान अभी भी पीएमओ की मेल पर पड़ा है जो बिल्कुल सही होता रहा है | इसलिए यह भी सही ही होगा |
पाँचवाँ प्रश्न: महामारियाँ हमेंशा और हर वर्ष क्यों नहीं आती हैं दशकों बाद महामारियाँ होने का कारण क्या है ?
उत्तर:भूकंपआँधीतूफ़ान सूखा बाढ़ बज्रपात आदि सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ एवं कोरोना जैसी महामारियाँ बुरे समय के प्रभाव से घटित होती हैं | जिन वर्षों में बुरा समय चल रहा होता है उनमें ही महामारियाँ एवं प्राकृतिक आपदाएँ घटित होती हैं |बुरे समय में ही बचाव के लिए किए जाने वाले अच्छे से अच्छे उपाय भी उलटे पड़ते देखे जाते हैं जिन उपायों से समस्याएँ घटने की बजाए बढ़ते देखी जाती हैं| दिसंबर 2020 में महामारी क्रमशः समाप्त होती जा रही थी इसी बीच 8 दिसंबर को ब्रिटेन में अचानक अचानक वैक्सीन लगाना प्रारंभ हुआ तो चौदह दिसंबर से वहाँ महामारी बढ़नी प्रारंभ हो गई |ऐसा सभी देशों में होते देखा गया | भारत में भी ऐसा ही हुआ | वैक्सीन अच्छी बुरी कैसी थी मुझे यह पता नहीं था मैं चिकित्सा वैज्ञानिक नहीं हूँ किंतु मैं समय वैज्ञानिक हूँ इसलिए मुझे बुरे समय के परिणामों का आभाष अवश्य था इसलिए मैंने पीएमओ को मेल भेजकर पहले से सूचित किया था जो आज भी हमारे पास है | उस समय इससे अधिक स्पष्ट लिखना मेरे लिए संभव न था यदि लिखता तो महामारी के विरुद्ध अफवाहें फैलाने का आरोप लग सकता था |
छठाप्रश्न :महामारी का प्रभाव समान रूप से पड़ने पर भी एक स्थान एवं एक जैसी परिस्थिति में रहने वाले सभी लोग संक्रमित क्यों नहीं होते हैं ? उनमें से कुछ लोग होते और कुछ नहीं होते हैं इस अंतर का कारण क्या है ?
उत्तर:कोई व्यक्ति जब महामारी से संक्रमित होता है या प्राकृतिक आपदा ,दुर्घटना या किसी अन्यप्रकार के संकट से पीड़ित होता है |उससमय अपनी परेशानी का कारण सामने दिख रही महामारी, प्राकृतिकआपदा ,दुर्घटना या कोई अन्य संकट दिखाई पड़ रहा होता है किंतु ये सच नहीं है क्योंकि उसी स्थान पर उसी परिस्थिति में रहने वाले अन्य लोग संक्रमित नहीं होते हैं | उस प्राकृतिक आपदा या दुर्घटना में शिकार तो बहुत लोग होते हैं उनमें से कुछ को तो खरोंच भी नहीं आती कुछ को चोट चभेट लगती है और कुछ की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु तक होते देखी जाती है | ऐसी परिस्थिति में महामारी, प्राकृतिकआपदा ,दुर्घटना या किसी अन्य संकट को जिम्मेदार माना जाए तो उन सभी प्रभावितों के साथ एक प्रकार की घटना घटित होनी चाहिए थी ऐसा न होन बात का प्रमाण है कि उन लोगों की समस्या का कारण सबका अपना अपना समय है जिसका जैसा समय उस पर उस प्रकार का प्रभाव पड़ा है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को संकटों से भयभीत न होकर अपितु अपने बुरे समय का पता हमेंशा लगाते रहना चाहिए | उसे भूकंप आँधीतूफ़ान सूखा बाढ़ बज्रपात या किसी अन्यप्रकार की दुर्घटना से उतना भय नहीं होता है जितना कि अपने बुरे समय से होता है|बुरे समय में छोटे छोटे रोग और छोटी छोटी समस्याएँ भी बहुत जल्दी बहुत बड़ा रूप धारण कर लेती हैं |इसीलिए उसमें दवाएँ लाभ नहीं करती हैं |प्रत्येक व्यक्ति अपने बुरे समय के कारण ही रोगी और संक्रमित होता है|
इसीलिए तो बहुत
साधन संपन्न लोग कोविड नियमों का अच्छी प्रकार से पालन करने के बाद भी
संक्रमित हो गए जबकि बहुत लोग कोविड नियमों के विरुद्ध आचरण करते रहे किंतु
उन्हें जुकाम भी नहीं हुआ |कई लोग तो कोरोना महामारी के समय बड़े बड़े अस्पतालों के सघन चिकित्सा कक्ष में सुयोग्य चिकित्सकों की देखरेख में रहते हुए भी अनेकों साधन संपन्न संक्रमित लोगोंको जीवित नहीं बचाया जा सका | अपना बुरा समय आने पर भलाई के लिए किए वाले अच्छे से अच्छे उपाय भी उलटे पड़ते देखे जाते हैं जिनसे समस्याएँ घटने की बजाए बढ़ते देखी जाती हैं |
सातवाँप्रश्न:महामारी मुक्त समाज की संरचना संभव है क्या ?
उत्तर : महामारी मुक्त समाज की संरचना उसी प्रकार से संभव है जिस प्रकार से वर्षा होते समय में भी लोग प्रयत्न पूर्वक अपने को भीगने से बचा लेते हैं | जो नहीं भीगते उन्हें बादल ढूँढ ढूँढ कर भिगोते नहीं घूमते हैं | हमें याद रखना चाहिए कि जिसप्रकार से वर्षा का होना एक बात है और वर्षा में भीगना दूसरी बात !उसी प्रकार से महामारी एक बात है महामारी से संक्रमित होना दूसरी बात है |दोनों घटनाएँ पूरी तरह एक दूसरे से अलग अलग हैं |इसलिए संभव है महामारियों के आने के बाद भी आप अपने को संक्रमित होने से बचा लेने में सफल हो जाएँ |
आठवाँप्रश्न : किसी के रोगी होने के लिए महामारी होना आवश्यक है क्या ?
उत्तर : ऐसा इसलिए नहीं माना जा सकता क्योंकि महामारियों के बिना भी तो लोग रोगी होते एवं उनमें से कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं|इसलिए लोगों के रोगी होने के लिए महामारियों का होना आवश्यक नहीं होता है|
नौवाँप्रश्न :कोरोना रोगी होने के लिए किसी संक्रमितका स्पर्श आवश्यक है क्या ?
उत्तर :बनारस और पुणे में एक एक केस ऐसा आया है जिसमें गर्भिणी माँ के संक्रमण मुक्त होने के बाद भी गर्भस्थ शिशु संक्रमित निकला वह कहाँ किसका स्पर्श करने गया आखिर वो संक्रमित कैसे हुआ | वैसे भी सबसे पहले जो व्यक्ति संक्रमित हुआ होगा वो कहाँ और किसको स्पर्श करने गया होगा कई लोग संक्रमितों के साथ सोते जागते खाते पीते रहे उठाते बैठते रहे !जाँच रिपोर्ट आने पर पता लगा कि उनमें से कोई एक संक्रमित है !ऐसी परिस्थिति में उन सभी को संक्रमित हो जाना चाहिए था किंतु उनमें से कोई संक्रमित नहीं हुआ !
प्रश्न :कई बार पति पत्नी दोनों स्वस्थ होते हैं फिर भी उन्हें संतान न होने का कारण क्या है ?
उत्तर :संतान केवल शरीरों का खेल नहीं है | इसीलिए पति पत्नी दोनों के शरीर स्वस्थ होने के साथ साथ उन दोनों का समय भी अच्छा होना चाहिए | पति पत्नी दोनों का समय और शरीर दोनों स्वस्थ हों तब संतान होती है |
प्रश्न :मित्रता चलेगी या नहीं इसका पूर्वानुमान लगाया जा सकता है क्या ?
उत्तर :मित्रता और मूत्रता दो शब्द होते हैं | मित्रता तो अच्छे समय और अनुकूल स्वभाव होने पर होती है उनके भविष्य में भी चलते रहने की आशा की जानी चाहिए | मूत्रता के संबंध लड़के- लड़कियों या स्त्री- पुरुषों में होते में होते हैं | ऐसे मूत्रता आधारित संबंध तभी तक चल पाते हैं जबतक मूत्रता सहज रहती है मूत्रता बिगड़ते ही संबंध बिगड़ जाते हैं | जिससे संबंध चल रहा है उससे अधिक सुन्दर कोई सेक्स सहयोगी मिलते ही पहले वाले सहयोगी से संबंध समाप्त कर लिए जाते हैं | मूत्रता प्रधान संबंधों में बसना का सुख ही सर्वोपरि होता है |
दशवाँप्रश्न : दो मित्रों के आपसी संबंधों के बनने या बिगड़ने का कारण क्या होता है ?
उत्तर :किन्हीं दो लोगों के आपसी संबंध बनने में आवश्यक नहीं कि वे दोनों अच्छे ही हों या वे दोनों एक दूसरे से ईमानदारी पूर्वक मदद भावना से जुड़े हों ऐसा आवश्यक नहीं है |कई बार उन दोनों का एक साथ ही अच्छा समय आ गया होता है ऐसे समय में दो एक दूसरे के विपरीत स्वभाव वाले लोग भी एक दूसरे की सफलता का लाभ लेने के लिए एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं | उन दोनों में से किसी एक का या उन दोनों का जैसे ही बुरा समय प्रारंभ हो जाता है तैसे वे दोनों अपने अपने बुरे समय के कारण असफल होने लगते हैं समय की शक्ति को न समझ पाने के कारण वे अपनी अपनी असफलता के लिए एक दूसरे को दोषी समझने लगते हैं और आपसी संबंध बिगड़ जाते हैं |
ग्यारहवाँप्रश्न :कुछ मित्रता के संबंध पूरे जीवन चलते हैं क्या वे दोनों इतने अच्छे होते हैं ?
उत्तर : ये उन दोनों की अच्छाई नहीं है अपितु जब किसी का स्वभाव किसी से मिल जाता है तो उन दोनों के दोषों दुर्गुणों की ओर एक दूसरे का ध्यान ही नहीं जाता है दोनों एक दूसरे को अच्छे लगने लगते हैं | ऐसे लोगों का स्वभाव एक दूसरे से मिल रहा होता है इसलिए एक जैसे स्वभाव वाले दो अपरिचित लोग भी एक दूसरे के सामने पड़ते ही एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं | ऐसे एक जैसे स्वभाव वाले लोग ट्रेन बस बाजार मेले रैली आदि अपरिचित जगहों पर अकारण मुलाक़ात होते ही दोनों एक दूसरे की ओर खिंचे चले जाते हैं | ट्रेन आदि की यात्रा में आमने सामने की सीटों पर अगल बगल में कई लोग बैठे होते हैं किंतु उनमें से किसी एक या दो से अपना स्वभाव मिल रहा होता है तो दोनों का खिंचाव एक दूसरे की ओर बढ़ने लगता है फिर दोनों एक दूसरे से बात करना प्रारंभ करते हैं बढ़ते बढ़ते वे दोनों एक दूसरे के घनिष्ट मित्र बनते देखे जाते हैं | दो लोगों के नाम में जितने अक्षर होते हैं
बारहवाँप्रश्न : लोगों के स्वभाव में बार बार बदलाव होने का कारण क्या है ?
उत्तर : किसी भी व्यक्ति का स्वभाव उसके जीवन में चलने वाले समय के अनुशार बदलता रहता है | समय कभी अच्छा और कभी बुरा इस प्रकार से हमेंशा बदलता रहता है | जिसका जब जैसा समय होता है तब तैसा स्वभाव बनता है अच्छे समय में लोगों को प्रसन्न रहना अच्छा लगता है ऐसे लोग प्रत्येक व्यक्ति में गुण खोजने प्रारंभ कर देते हैं कितने भी दुर्गुणी व्यक्ति के दुर्गुणों की ओर ध्यान न देकर उन्हीं दुर्गुणों में से थोड़े से गुण खोजकर उन्हें भी पसंद करने लगते हैं उनकी भी गलतियाँ क्षमा कर देने की भावना प्रबल होती है |अच्छे समय में लोग बड़ी बड़ी लड़ाइयाँ बैर विरोध आदि बड़े बड़े विवाद बातों से ही निपटा लिया करते हैं | दूसरी ओर बुरेसमय में क्षमा भावना पूरी तरह से समाप्त हो जाती है | पुरानी से पुरानी बुराइयाँ लड़ाइयाँ खोज खोज कर लोग बैर बढ़ाया करते हैं | बुरे समय से प्रभावित व्यक्ति को कलह अच्छा लगता है इसलिए वो दूसरे के गुणों से भी दुर्गुण खोजकर उस पर गुस्सा करने लग जाता है|ऐसे लोगों का स्वभाव झगड़ालू हो जाता है | कई बार बिना कारण के भी ऐसे लोग किसी से दुश्मनी मानने लगते हैं | बुरे समय से प्रभावित लोग हर किसी को सबक सिखाने पर उतारू रहते हैं |बड़े बड़े मुकदमे बुरे समय में प्रारंभ होते है और अच्छे समय में उनका समाधान निकल जाता है इसलिए दोनों पक्ष आपस में ही बैठकर सुलह कर लिया करते हैं | बशर्ते समय दोनों का ही अच्छा आ गया हो |
तेरहवाँप्रश्न :लोगों के जीवन में बार बार बदलाव आने का कारण क्या है |
उत्तर :अच्छे और बुरे समय के अनुशार मनुष्यों के जीवन में अच्छे बुरे बदलाव बार बार आते और जाते रहते हैं | अच्छे समय में व्यक्ति का कार्य उन लोगों से भी बन जाता है जो जानते तक नहीं होते हैं | ऐसे लोगों की लोग लीक से हटकर भी मदद करते देखे जाते हैं | अच्छे समय में लोग बड़े बड़े व्यवसाय खड़े कर लिया करते हैं !बड़े बड़े लोगों से संबंध बनते देखे जाते हैं बड़ी बड़ी पद प्रतिष्ठा मिलते देखी जाती है | ऐसे लोग यदि कहीं नौकरी भी कर रहे होते हैं तो उसके अच्छे समय का लाभ उसके मालिक को मिलता है उसकी डीलिंग लाभप्रद होती है जिसके बदले मालिक से उसे सम्मान सुविधाएँ संपत्ति आदि मिलते देखी जाती है | बुरा समय आते ही वही व्यक्ति असफल होने लगता है बड़े बड़े प्रयास करके भी असफल होता है किसी के साथ बहुत अच्छा करने का प्रयत्न करने पर भी बुरे समय से पीड़ित व्यक्ति के प्रयास से उस व्यक्ति का काम बिगड़ जाता है जिसके लिए वो प्रयास कर रहा होता है |
प्रश्न :पति पत्नी के आपसी संबंधों के बनने और बिगड़ने का कारण क्या है ?
उत्तर :अच्छे समय में लोग प्रेम करते हैं विवाह करते हैं बुरे समय में झगड़ा करते हैं और तलाक ले लेते हैं |पति पत्नी में से यदि किसी एक का समय बुरा आया और दूसरे का अच्छा चलता रहा तो अच्छे समय वाला सदस्य सबकुछ सहते हुए संबंधों को टूटने से बचा ले जाता है | यदि उन दोनों का बुरा समय एक साथ ही आया तब तो संबंधों को बचा पाना कठिन होता है |उसके लिए अधिक धैर्य की आवश्यकता होती है | प्रेम विवाह वाले लोगों को ऐसे समय संबंध सँभाल कर रखने में बहुत कठिनाई होती है | परिवार वालों की सहमति से हुए वैवाहिक संबंधों को बुरे समय में भी परिवार के लोग आगे आकर ऐसे संबंधों को समझा बुझाकर बचा लेते हैं | इसके बाद फिर दोनों सामान्य हो जाते हैं | कुल मिलाकर समय तो अच्छा बुरा आता जाता रहता है जो इस सच्चाई को समझते हैं वे धैर्य पूर्वक बुरे समय का सामना करके अच्छे समय का इन्तजार करते हैं अच्छा समय आते ही फिर संबंध सामान्य हो जाते हैं और संबंध टूटने से बच जाया करते हैं |
चौदहवाँ प्रश्न :लोगों के व्यापार विकास एवं पद प्रतिष्ठा मिलने में स्थान का कितना योगदान होता है ?
उत्तर : दिल्ली का कोई व्यक्ति जूस की दूकान कलकत्ते में जाकर खोलता है और कलकत्ते का कोई व्यक्ति उसी जूस की दूकान दिल्ली में खोलता है | दोनों का दोनों जगह बहुत अच्छा काम चल रहा होता है किंतु दोनों अपने अपने महानगरों में उस काम को इसीलिए नहीं कर पाते हैं क्योंकि वह जगह उन्हें सहयोग नहीं कर रही होती है | इस प्रकार कर अच्छा बुरा प्रभाव लोगों को मकानों दुकानों आदि में भी रहता है कि कौन भूखंड किसके लिए लाभप्रद रहेगा और किसके लिए नहीं |
पंद्रहवाँ प्रश्न :शिक्षा में बार बार बदलाव होने का कारण क्या है |
उत्तर :अच्छे समय में शिक्षा अच्छी हो जाती है जबकि बुरे समय में शिक्षा में अड़चने आते देखी जाती हैं |
सोलहवाँ प्रश्न :कोई बहुत अधिक पढ़ जाता है कोई नहीं क्या कारण है ?
उत्तर :ऐसी परिस्थिति में सामान्य चिंतन से तो ऐसा लगता है कि जो नहीं पढ़ पाया है वो भी यदि लापरवाही न करता या उसे भी पढ़ने के लिए अच्छे संसाधन मिलते तो वो भी अच्छा पढ़ लिख जाता !किंतु यह सच नहीं है वस्तुतः शिक्षा भाग्य के आधीन है | भाग्य में शिक्षा बदी होगी तभी परिश्रम से सफलता मिल सकती है|
सत्रहवाँप्रश्न :भाग्यऔर कर्म की क्या भूमिका है ?
उत्तर : भाग्य हमारी बैंक में जमा पूँजी है और कर्म अपनी जमा की हुई पूँजी बैंक से निकालकर उससे प्रयत्न पूर्वक अपनी आवश्यकता एवं सुख सुविधा की चीजें जुटाना है | यदि बैंक में बैलेंश ही न हो तो बैंक में धरना देकर बैठे रहने से न धन मिल जाएगा और न ही सुख सुविधाओं के साधन जुटाए जा सकेंगे |
केवल बोरिंग करने से पानी नहीं मिल जाता अपितु जिस जमीन में पानी होता है वहीं बोरिंग करने से पानी मिलने की संभावना होती है |केवल गाय दुहने से दूध नहीं मिलता है अपितु जिस गाय के स्तनों में दूध होगा उसी गाय को दुहने से दूध मिल सकता है |सरसों पैर कर तेल निकाला जाता है ये सबको पता है किंतु केवल पेरने से तेल निकलता हो तब तो लोग सरसों की जगह बालू की पेराई करके भी तेल निकालने का प्रयत्न करना चाहेंगे |इन उदाहरणों में जमीन के अंदर का पानी ही भाग्य है बोरिंग करना कर्म है | गाय के स्तनों का दूध ही भाग्य है और जो दोहन ही कर्म है | सरसों ही भाग्य है और पेराई करना ही कर्म है |जीवन में भाग्य और कर्म दोनों की बड़ी भूमिका होती है | कोई रोड ही भाग्य और उसमें चलने वाली गाड़ी ही कर्म है | जितना लंबा रोड होता है उतनी ही दूर तक गाड़ी दौड़ाई जा सकती है उससे अधिक नहीं | ऐसे ही जितना धन बैंक में जमा होता है उतना तक ही बैंक से निकालकर उससे कर्म किए जा सकते हैं |
प्रश्न :लक्ष्य कितना भी बड़ा हो कर्म करके उसे हासिल किया जा सकता है !इसमें कितनी सच्चाई है ?
उत्तर :जीवन में भाग्य के प्रभाव को न समझने वाले कुछ लोग कर्म को बढ़ावा देने के लिए यहाँ तक कहते सुने जाते हैं कि लक्ष्य कितना भी बड़ा क्यों न हो कर्म करके उसे भी प्राप्त किया जा सकता है |
वस्तुतः समाज में कुछ लोग ऐसे हैं जिनका भाग्य अच्छा है इसलिए उन्होंने अपने जीवन में बड़े बड़े लक्ष्य बना लिए और उन्हें प्राप्त करने के प्रयत्न किए उन्हें पाने में वे इसलिए सफल भी हो गए क्योंकि वे सारे सुख उनके भाग्य में बदे थे इसलिए इन्हें वे प्रयत्न पूर्वक पा सकते थे,किंतु यह बात सभी पर लागू नहीं की जा सकती है |
प्रश्न :मोटीवेटर एवं धर्म कर्म से जुड़े लोग तो कर्म एवं धर्म को करके लक्ष्य हासिल करने की बात करते हैं !
उत्तर : मोटीवेशन के धंधे से जुड़े लोग केवल कर्मवाद को बढ़ावा देते हैं |इसका कारण वे खुद दिमागी दृष्टि से इतने बीमार होते हैं कि उन्हें स्वयं नहीं पता होता है कि वे अपनी या जिन लोगों की सफलता की कहानियाँ सुनाकर दूसरों का जीवन बर्बाद कर देने पर आमादा हैं | उन लोगों की सफलता का वास्तविक कारण क्या है ये उन बेचारों को स्वयं नहीं पता होता,क्योंकि उन लोगों को जीवन पर पड़ने वाले भाग्य और समय के प्रभाव की जानकारी ही नहीं होती है इसलिए बकते जा रहे होते हैं | मोटिवेटर लोग भी तो समाज से धन वसूलने के लालच में मोटीवेशन के धंधे में आए होते हैं | यदि वे इतने ही बड़े समझदार हैं तो खुद की ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं कर लेते हैं कि समाज के साथ की जाने वाली इस धोखाधड़ी से अलग अपने बड़े बड़े बड़े लक्ष्य बनाकर उन्हें पूरा कर लें जिससे उनकी आर्थिक आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ और उनके द्वारा समाज को भटकाया जाना भी बंद कर दिया जाए जिससे बहुत घरों को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है |केवल कर्मवाद के कारण समाज में बढ़ रही आपराधिक प्रवृत्ति को रोका जा सकता है | बलात्कार जैसी कठिन समस्याओं पर एक सीमा तक अंकुश लगाया जा सकता है | नशाखोरी घटाई जा सकती है | हत्या आत्महत्या जैसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकता है |
प्रश्न :कर्मवाद को बढ़ावा देने में गलत क्या है ?गीता में श्री कृष्ण जी ने भी तो कर्मवाद का उपदेश किया था ?
उत्तर : "तुम कर्म करे जाओ एक दिन सफल अवश्य होगे |" श्रीकृष्ण ने कर्म करने की बात तो कही थी किंतु सफल और असफल होने की बात नहीं कही थी | 'मा फलेषु कदाचन' फल से बँधना ठीक नहीं है |दूसरी बात श्रीकृष्ण ने भाग्य और समय दोनों को अच्छी प्रकार से समझकर कर्म करने का उपदेश दिया था | उन्होंने पहले ये पता किया कि उन लोगों की भाग्य प्रदत्त आयु पूरी है | इस समय युद्ध अवश्य होगा क्योंकि समय ऐसा आ गया है | इस समय उन महान बीरों की मृत्यु का समय भी आ गया है| यदि दोनों घटनाएँ एक साथ घटित होनी ही है तो प्रिय अर्जुन को युद्ध का निमित्त बनाकर यह क्यों न सिद्ध कर दिया जाए कि कृपाचार्य द्रोणाचार्य जैसे इतने बड़े बड़े बीरों का बध अर्जुन ने किया है इसलिए अर्जुन भी बहुत बड़े बीर हैं | इसलिए श्रीकृष्ण की प्रेरणा की तुलना बकवासी मोटिवेटरों से नहीं की जा सकती जिन्हें स्वयं ही भाग्य और समय का ज्ञान ही नहीं है | किसी व्यक्ति के के समय भाग्य को समझे बिना उसे भटकाया तो जा सकता है किंतु उसे इस बात का विश्वास नहीं दिलाया जा सकता कि उस कर्म के बदले वो सफल ही होगा | मोटीवेटर कहता है -"लक्ष्य कितना भी बड़ा क्यों न हो कर्म करके आप उसे भी हासिल कर सकते हो !"
प्रश्न :कर्म अहित कर है क्या ?कर्म करना छोड़ देना चाहिए !
उत्तर :कर्म करना छोड़ना ठीक नहीं है किंतु भाग्य का अनुगामी कर्म होना चाहिए | पहले यह पता करना चाहिए कि उसके भाग्य में किन किन कर्मों से कब कब सफलता मिलनी संभव है यह समझकर ही उसी दिशा में कर्म प्रारंभ किए जाने चाहिए !यह ठीक नहीं है -"कर्म किए जाओ सफलता एक दिन चरण अवश्य चूमेगी !"
जिस जगह जमीन में पानी न हो या मीठा पानी न हो वहाँ पर कोई बोरिंग करने की प्रक्रिया शुरू कर दे तो क्या उससे पानी या मीठा पानी मिल सकेगा ? किसी गाय को बच्चा दिए बहुत समय हो जाने के कारण उसका दूध देना बिल्कुल बंद हो चुका हो कर्मवाद पर भरोसा करके यदि उस गाय को दुहना शुरू कर दिया जाए तो क्या उससे दूध प्राप्त कर लेना संभव है ? जिसकी आयु समाप्त हो चुकी हो ऐसे रोगी को चिकित्साकर्म के द्वारा क्या स्वस्थ और जीवित रखा जा सकता है | जिसका भाग्य और समय साथ न दे रहा हो उसकी भी तरक्की क्या कर्म के बल पर संभव है | जो काम होना ही संभव नहीं है उसके सपने दिखाना उसके लिए हितकर नहीं हो सकता | हमें याद रखना चाहिए कि घी दूध बिटामिन टॉनिक आदि उसी के लिए स्वास्थ्यबर्द्धक होते हैं जिनका समय और भाग्य साथ देता है अन्यथा कुछ लोगों पर ऐसी वस्तुओं के भी दुष्प्रभाव होते देखे जाते हैं |
प्रश्न :लोगों की तरक्की के लिए सरकारें जो आरक्षण जैसी योजनाएँ चलाती हैं वे निरर्थक हैं क्या ?
उत्तर: ऐसी योजनाओं से लोगों को कुछ मदद तो मिल सकती है किंतु उससे तरक्की होना संभव नहीं है | सरकारों के द्वारा दशकों तक आरक्षण देकर भी क्या उन लोगों की तरक्की की जा सकी जिनकी तरक्की के लिए ऐसी योजनाओं की परिकल्पना की गई थी? जिन्हें तरक्की के लिए आरक्षण दिया जाता रहा उन्हीं सम्प्रदायों जातियों वर्गों के कुछ लोग उन्हीं परिस्थितियों में रहते हुए बिना आरक्षण लिए तरक्की करके बहुत ऊँचे स्थानों पर पहुँच गए ! उनकी सफलता का कारण क्या उन्हें आरक्षण का लाभ मिलना ही है क्या ?इसीप्रकार से जो तथाकथित सवर्ण जातियों के लोग हैं क्या उनमें से सभी लोग साधन संपन्न हैं उनकी तरक्की हो चुकी है क्या उनमें गरीब बीमार लाचार लोग नहीं हैं ! कुल मिलाकर भाग्य और समय के सहयोग के बिना किसी की तरक्की संभव नहीं है वो किसी भी जाति समुदाय संप्रदाय का क्यों न हो !भाग्य और समय कोई किसी का नहीं बदल सकता | किसी को लगता है कि वो बदल सकता है तो बदलकर देख ले !समीक्षा करके देख ले कि उस समाज को कितना उन्नत बनाया जा सका जिसे 70 वर्षों तक आरक्षण के तहत विभिन्न प्रकार की सुविधाएँ दी जाती रही हैं |
प्रश्न :मोटिवेटरों की बातों से नुक्सान कैसे संभव है
उत्तर : कई लोग जिस लायक हैं और जो कर रहे होते हैं उसे छोड़कर जो नहीं करने लायक होते हैं उन कार्यों में मोटिवेटरों के द्वारा लगा दिए जाते हैं वहाँ वे तन मन धन लगाकर उन कार्यों को करने लगते हैं उनमें जिनका भाग्य और समय साथ दे जाता है वे तो सफल हो जाते हैं किंतु वे तो वहाँ भी सफल होते हैं जहाँ जो कुछ पहले से भी कर रहे होते हैं|दूसरी ओर जिनका भाग्य और समय साथ नहीं दे रहा होता है वे वहाँ तो सफल नहीं ही होते हैं किंतु पहले से जो कुछ करके किसी प्रकार से अपने परिवारों का भरण पोषण कर रहे होते हैं ! उन्हें मोटिवेटर लोग कुछ भाग्यवान सफल लोगों के उदाहरण दे देकर वहाँ से भी भटका देते हैं जिनका भाग्य इतना प्रबल नहीं है| इसलिए उनका भला कहीं से होना नहीं होता है |
प्रश्न :मोटिवेटरों की बातों पर कैसे विश्वास कर लेते हैं लोग ?
उत्तर: जिनका भाग्य और समय भाग्य साथ नहीं दे रहा होता है वे इतने परेशान होते हैं कि उन्हें कुछ समझ आ रहा होता है कि वे क्या करें क्या न करें |ऐसे समय मोटीवेटरों की चिकनी चुपड़ी बातें सुन सुन कर वे भी अपने जीवन के बड़े बड़े लक्ष्य बना लेते हैं और कर्मपूर्वक बड़ी बड़ी सुख सुविधाएँ भोगने के सपने देख लेते है | उसके लिए वे तन मन धन से समर्पित होकर प्रयत्न करने लगते हैं किंतु उन्हें सफलता नहीं मिल पाती है कई बार तो उनका नुक्सान भी होते देखा जाता है | शरीर थकता है ,समय बर्बाद होता है ,धनलगता है ,समाज में उपहास होता है , तनाव मिलता है !इस सबके बाद भी लक्ष्य पाना संभव न हो पाता है | ये कोरे कर्मवाद के दुष्परिणाम हैं | कई बार तो ऐसे असफल लोग गंभीरतनावग्रस्त होकर शुगर बीपी जैसे रोगों के रोगी हो जाते हैं |
प्रश्न : कर्म करने पर भी सफल न मिलने पर कहा जाता है कि उनके कर्म में कहीं कमी रह गई है ?
उत्तर :ऐसे असफल लोग जब मोटिवेटर के पास जाते हैं तो वो यही कहता है कि तुम्हारे कर्म करने में कोई कमी रह गई है | उस समय उसे और परेशानी होती है कि मैंने जिस कर्म को करने के लिए अपना तन मन धन सब कुछ न्योछावर कर दिया फिर भी कर्म में कमी रह जाने का मतलब क्या है ? तब उसे लगता है किकर्म का मतलब सुकर्म करना ही तो नहीं होता कुकर्म करके सफल होना ना भी तो कर्म के ही अंतर्गत आता होगा | वैसे भी सुकर्म करके तो हमने देख ही लिए हैं अब कुकर्म करके भी देख ही लेते हैं क्योंकि मोटीवेटर ने कहा था -"लक्ष्य कितना भी बड़ा क्यों न हो सफलता एक दिन चरण अवश्य चूमेगी |"सफलता वाला रास्ता हो न हो सुकर्म की जगह गलत कामों से ही होकर जाता हो |ऐसा बिचार करके कुछ असफल लोग अपने सपने पूरे करने के लिए अपराध के क्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं कई बार तो बड़े बड़े अपराधी हो जाते हैं | ऐसे कुछ कुंठित लोग सभी प्रकार का भ्रष्टाचार अपनाना शुरू कर देते हैं | ऐसे निराश हताश लोग कई बार नशे के शिकार हो जाते हैं|कभी कभी हत्या आत्म हत्या तक करते देखे जाते हैं |
ऐसे मोटीवेटरों से प्रेरित होकर कोई सामान्य परिस्थिति का कुरूप एवं कम पढ़ा लिखा लड़का एक रईस घराने की पढ़ी लिखी अत्यंत सुंदरी लड़की से एक पक्षी प्रेम करने लगे उसे पाने के लिए वह अपना सारा काम धंधा छोड़कर उसके पीछे लग जाए -"लक्ष्य कितना भी बड़ा हो कर्म के बल पर उसे पा सकते हो |" इस भरोसे वह अंत तक जूझता रहे फिर भी जब वह लड़की नहीं माने और उस लड़के के प्यार के प्रस्ताव को ठुकरा दे |वह लड़का ऐसी परिस्थिति को कैसे सहे | लड़के ने तो उसके पीछे अपना सब कुछ न्योछावर कर दिया इसके बाद भी मोटीवेटर साहब कहें कि तुम्हारे प्रयत्न में कहीं कमी रह गई है तो इस कुंठा में उस लड़के से अच्छे आचरण की उम्मींद कैसे की जा सकती है |
ऐसी परिस्थिति में लड़की के घर वाले या शासन प्रशासन चाहकर भी उस लड़की की सुरक्षा कैसे करें !उसे कहाँ कहाँ रखावें, कैसे बचावें ,उस लड़की की सुरक्षा के लिए क्या करें जिसका कोई दोष ही नहीं है | वह उस लड़की को घेरता है छेड़ता है जबर्दश्ती उठा ले जाने का प्रयास करता है | शारीरिक दुर्ब्यवहार करता है उस पर जानघातक हमला करता है!ऐसे में एसिड फेंकने एवं हत्या ,आत्म हत्या जैसी दुर्भाग्य पूर्ण घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं,ऐसे कुंठित लोग कई बार डिप्रेशन में चले जाते हैं ,नशा लेने लगते हैं | लूटपाट अपहरण फिरौती जैसा कोई अपराध अपना लेते हैं | इस सबके लिए दोषी वही कोरे कर्मवादी मोटीवेटर होते हैं | ऐसे सब्जबाग दिखाने वालों से बचना चाहिए | प्रयत्न करना अच्छा है किंतु मन मुताबिक़ परिणाम पाने की इस प्रकार की आशक्ति ठीक नहीं है |
प्रश्न :ऐसी प्रेरणा तो पंडितों पुजारियों तांत्रिकों,बाबाओं,मुल्ला मौलवियों को भी देते देखा जाता है !
उत्तर : धार्मिक क्षेत्रों में भी इसी प्रकार का भ्रष्टाचार व्याप्त है |आजादी के बाद लंबे समय तक वेद शास्त्र आदि में निहित विज्ञान की उपेक्षा की गई ! ऐसी शिक्षा का आजीविका से कहीं कोई संबंध नहीं रहा | इसलिए कोई थोड़ा भी साधन संपन्न व्यक्ति अपने बच्चे को शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान की शिक्षा दिलाना नहीं चाहता | पढ़लिखकर जब तैयार होते हैं तब आरक्षण के कारण उन्हें नौकरी नहीं मिलती है तब वे अनपढ़ बाबा जोगी ज्योतिषी पंडित पुजारी आदि बनते हैं | वे भी उन्हीं मोटिवेटरों की तरह से हैरान परेशान लोगों को झूठे सब्जबाग दिखाया करते हैं जिनके विषय में उन्हें स्वयं नहीं पता होता वैसे सपने पूरे करवाने का दावा करते दिखाई देते हैं | उन्हें कर्म की सीमाओं का ज्ञान ही
नहीं है |
प्रश्न :संस्कृत विश्व विद्यालयों में तो ऐसे विषयों के शास्त्रीय विद्वान भी होते हैं !
उत्तर :संस्कृत की निरंतर उपेक्षा होते रहने के कारण पढ़ने लिखने वाले बुद्धिमान छात्र संस्कृत विश्व विद्यालयों को बहुत कम मिल पाते हैं |ऐसे शिक्षण संस्थानों में अधिकाँश छात्र आर्थिक दृष्टि कमजोर होने के कारण मजबूरी बश ऐसे संस्थानों में जाकर किसी तरह डिग्री भर ले पाते हैं | उनमें से कुछ ही ऐसे तपस्वी छात्र होते हैं जो अपने विषयों को समर्पण पूर्वक पढ़कर उसमें जिंदगी खपाते हैं | वे शोध करने लायक होते हैं किंतु भ्रष्टाचार और सोर्स सिपारिश के इस युग मेंउन्हें नौकरी नहीं मिल पाती तो वे रोजीरोटी जुटाने में लग जाते हैं भ्रष्टाचार और सोर्स सिपारिश के बलपर जो लोग ऐसे सक्षम पदों तक पहुँचते हैं वे लीक पीट सकते हैं किंतु वे कोई अनुसंसंधान करके आधुनिक वैज्ञानिकों की बराबरी करने का साहस कर सकें ये योग्यता उनमें होती नहीं है इसलिए ऐसी आशा उनसे की नहीं जानी चाहिए | मौसम और महामारी
प्रश्न : ऐसा तो अन्य धर्मों में भी होते देखा जाता है उनके नाम भले ही कुछ और हों ! उसका कारण क्या है ?
उत्तर : धर्म निर्माण की आवश्यकता सृष्टि के प्रारंभ होने से पहले इसलिए होती है ताकि प्रत्येक व्यक्ति अपना आचार व्यवहार खान पान रहन सहन आदि धर्मादेश अनुशार अपना सके जिससे किसी दूसरे को समस्या ही न पैदा हो सभी जीव ईश्वर की संतानें हैं इस भावना से सभी लोग एक दूसरे के विषय में हितचिंतन कर सकें | सृष्टि का निर्माण एक बार हो जाने के बाद धर्म का निर्माण संभव ही नहीं है | अलग अलग समूहों के द्वारा इस प्रकार के प्रयास जो किए भी जाते हैं वे उस समूह के लिए एक प्रकार के संविधान का काम करते हैं| ऐसे लोगों को समस्या तब आती हैं जब सरकारें उन पर अपने देश का संविधान थोपती हैं क्योंकि वे तो अपने समूह के संविधान को ही राष्ट्र के संविधान से ऊपर समझते हैं जबकि ईश्वर निर्मित धर्म का धर्मादेश मैंने वाले लोगों को राष्ट्र का संविधान मानने में कठिनाई इस लिए नहीं होती है क्योंकि वो अपने धर्मादेश को संविधान नहीं मानते और संविधान को धर्मादेश नहीं मानते | सनातन धर्म कब बना था किसने बनाया था आदि किसी को पता ही नहीं है इसका प्रत्येक आचरण विज्ञानसम्मत है | इसीलिए यह सभी सुखी हों ,संपूर्ण पृथ्वी एक परिवार है ऐसी पवित्र भावना से भावित है
ऐसी परिस्थिति में प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह किसी के बहकावे में आए | कोई भी लक्ष्य बनाने या कार्य प्रारंभ करने से पहले समय विज्ञान के माध्यम से सर्व प्रथम यह पता करे कि उसके भाग्य का स्तर क्या है और उसका अपना भाग्य उसकी कितनी तक मदद कर सकता है |उसी के अनुशार उसे लक्ष्य बनाकर उसकी पूर्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए |
देने वाले लालचीमोटीवेटर लोगों ने कर्म के नाम पर झूठ बोल बोलकर एवं कम पढ़े लिखे पंडितों पुजारियों तांत्रिकों,अशिक्षित बाबाओं,मुल्ला मौलवियों ने धर्म के नाम पर झूठ बोल बोलकर समाज को ऐसे गर्त में धकेला है जहाँ से निकालने के लिए यदि ईमानदारी पूर्वक तुरंत प्रयत्न प्रारंभ कर दिए जाएँ तो भी दशकों का समय लग जाएगा | ऐसे लोगों ने अपने लालचबश समाज को इतने बड़े बड़े सपने दिखा दिए हैं जिनका पूरा होना सबके जीवन में संभव नहीं है |मोटीवेटर कहता है कर्म करके आप बड़ा से बड़ा लक्ष्य हासिल कर सकते हो |धार्मिक लोग कहते हैं धर्म करके आप बड़ा से बड़ा लक्ष्य हासिल कर सकते हो | किसी के भाग्य को पढ़ने समझने की क्षमता इन बेचारों में नहीं होती है | जीवन में भाग्य की भूमिका से अनजान ऐसे लालचीलोग भोले भाले समाज से धनलेकर कर्म-धर्म की झूठी प्रशंसा कर करके अपराध नशा निराशा के गहरे कुऍं में धकेला करते हैं |
प्रश्न :भाग्य अच्छा हो तो क्या कभी भी कर्म करके सफल हुआ जा सकता है?
उत्तर :इसमें समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है प्रकृति और जीवन में समय हमेंशा बदलता रहता है | जिस प्रकार से समय के बदलाव के साथ साथ प्रकृति में अनेकों प्रकार की घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ती हैं उसी प्रकार से जीवन में भी अच्छी बुरी सभी प्रकार की घटनाएँ घटित होती देखी जाती हैं | अच्छे समय में अच्छी घटनाएँ एवं बुरे समय में बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | अच्छे समय में प्रसन्नता एवं बुरे समय में तनाव प्राप्त होता है | ऐसी परिस्थिति में बुरे समय में किए गए किसी भी प्रयत्न से सुख और सफलता मिलने की आशा नहीं की जानी चाहिए | अतएव अच्छा भाग्य होने पर भी समयविज्ञान के आधार पर अच्छी प्रकार से समझकर अच्छे समय में ही कार्य प्रारंभ करना चाहिए तभी सफलता मिलती है |
कुछ लोग
ऐसी खोखली बातों ने समाज में
जितना रोड की
लने के लिए और सफलता
अठारहवाँ प्रश्न :उत्तर :
उन्नीसवाँ प्रश्न :
उत्तर :
बीसवाँ प्रश्न :
उत्तर :
इक्कीसवाँ प्रश्न : जलवायु परिवर्तन क्या है ?
उत्तर :
समय के कारण अपना
बिगड़ने में आवश्यक नहीं कि उन दोनों में से कोई एक या वे दोनों ही खराब हों | कई बार समय खराब होने से भी लोगों के आपसी संबंध बिगड़ते देखे जाते हैं |
चोट चभेट लगने या किसी की मृत्यु होने के लिए प्राकृतिक आपदाओं या दुर्घटनाओं का होना आवश्यक नहीं होता है | ऐसी दुर्घटनाएँ तो मनुष्य के अपने बुरे समय के कारण घटित होती हैं बिना महामारियों के भी लोग संक्रमित जिनका अपना समय बुरा चल रहा होता है में
री होने या न होने से प्रकृति की तरह ही मनुष्यजीवन में भी अच्छा और बुरा समय आता है | बुरे समय के प्रभाव से जिन लोगों का अपने व्यक्तिगत जीवन में भी बुरा समय चल रहा होता है वही ऐसी प्राकृतिक आपदाओं की चपेट में आते हैं या वही कोरोना जैसी महामारियों से संक्रमित होते हैं | समय के अनुशार जिनकी आयु पूरी हो चुकी होती है उनकी मृत्यु हो जाती है |