Saturday, 15 February 2020

प्रकृतिरहस्य


   वस्तुतः  प्रकृति का अर्थ होता है स्वभाव किसी का स्वभाव समझे बिना उसके विषय में कुछ भी जानना समझना संभव नहीं है |स्वभाव हर किसी का अलग अलग होता है मनुष्यों की तरह ही प्रकृति का भी स्वभाव होता है !सृष्टि में सभी जीवजंतुओं पेड़ पौधों छोटे से छोटे  कण से लेकर बड़े से बड़े द्रव्य तक का अपना अपना स्वभाव गुण दोष आदि होते हैं | उन्हें समझे बिना उसके विषय में कोई जानकारी कैसे जुटाई जा सकती है | आयुर्वेद में रोग प्रकृति का भी वर्णन मिलता है कुल मिलाकर प्रकृति की प्रधानता है | 
     इस ब्रह्माण्ड की भी अपनी प्रकृति होती है आकाश वायु अग्नि जल पृथ्वी आदि पञ्चतत्वों की अपनी अपनी प्रकृति अर्थात स्वभाव होता है |इनके विषय  से संबंधित गतिविधियों की जानकारी जुटाने के लिए हमें इनकी प्रकृति समझना बहुत आवश्यक होता है | 
     आकाश वायु अग्नि जल पृथ्वी आदि पञ्चतत्वों में से आकाश और पृथ्वी तो स्थिर हैं अर्थात ये जैसे हैं वैसे ही रहते हैं इनका  तो उपयोग होता है |जबकि वायु अग्नि और जल स्वभाव तो इनका भी हमेंशा एक जैसा ही रहता है किंतु प्रभाव बदलता रहता है |उसमें न्यूनाधिकता होती रहती है इनमें से कभी किसी का प्रभाव कुछ कम हो जाता है तो कभी कुछ बढ़ जाता है | 
     इन  वायु अग्नि और जल को ही आयुर्वेद में वात  पित्त और कफ के नाम से बताया गया है |जिस प्रकार से शरीर ये वायु अग्नि और जल यदि उचित अनुपात में बने रहते हैं तो शरीर स्वस्थ मन प्रसन्न बना रहता है उसी प्रकार से प्रकृति में जबतक वायु अग्नि और जल का प्रभाव उचित अनुपात में बना रहता है तब तक प्रकृति स्वस्थ बनी रहती है |

प्राकृतिक घटनाओं पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव !
     मौसमवैज्ञानिकों को अक्सर कहते सुना जाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम संबंधी पूर्वानुमान गलत हो जाते हैं या कई घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं इसलिए उनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाना कठिन होता है और जो लगाए भी जाते हैं वे गलत निकल जाते हैं |
     इसीलिए मौसम भविष्यवाणियाँ प्रायः गलत होते देखी जाती हैं और मानसून आने जाने की तारीखें भी इसीलिए गलत होती रहती हैं !दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान तो गलत होते ही हैं |देखा भी यही जाता है कि वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान प्रायः गलत होते हैं संयोगवश एक आध कोई तीर तुक्का कहीं लग जाए तो और बात है किंतु उस तुक्के के सही होने में मौसम संबंधी विज्ञान की दूर दूर तक कहीं कोई भूमिका नहीं होती है  क्योंकि हमारी जानकारी के अनुशार मौसम से संबंधित कोई विज्ञान अभी तक खोजा  नहीं जा सका है |
      आकाश में स्थित उपग्रह  रडार तो किसी कैमरे की तरह हैं जिनसे उनकी सीमा में आने वाली घटनाओं के चित्र दिखाई पड़ा करते हैं ! उनमें बादल वर्षा आँधी तूफ़ान आदि आकाशीय घटनाओं के चित्र भी दिखाई पड़  जाते हैं उनकी गति और दिशा देखकर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कहाँ कब पहुँचेंगे वही बता दिया जाता है | यदि हवा उसी दिशा में उसी गति से बढ़ती  रहे तब तो कभी कभी तुक्का सही बैठ भी जाता है किंतु यदि हवा का रुख बीच में बदल जाता तो उनके द्वारा लगाए गए तीर तुक्के गलत भी हो जाते हैं |
     भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं के चित्र उन उपग्रहों रडारों आदि से दिखाई नहीं पड़ते हैं इसलिए उनके विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा पहले ही साफ साफ कह दिया गया है कि भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान अभी तक खोजा नहीं जा सका है !किंतु ऐसे तो बादल वर्षा आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित विज्ञान भी अभी तक खोजा नहीं जा सका है |मानसून आने जाने से संबंधित समय के विषय में पूर्वानुमान लगाने की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया अभी तक सामने नहीं लाई जा सकी है | यह कहना कि इस तारीख को मानसून आ जाता है इस तारीख को चला जाता है इस प्रक्रिया में विज्ञान का उपयोग ही कहाँ है और उन तारीखों में मानसून के आने जाने की कल्पना निराधार है | मौसम संबंधी किसी घटना को इस प्रकार से तारीखों में कैसे बाँधा जा सकता है कि इस तारीख को आँधी आती है इस तारीख को वर्षा होती है | ऐसी परिस्थिति में मानसून आने और जाने की तारीखों का निश्चय बिना किसी वैज्ञानिक आधार के कैसे किया जा सकता है और प्रतिवर्ष एक ही तारीख पर कोई  जैसी घटना घटित होती रहेगी ऐसा कहने के पीछे वैज्ञानिक आधार भी तो होना चाहिए जो नहीं है | 
       कुलमिलाकर जिस विषय में पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान ही नहीं खोजा  जा सका है उस विषय में बिना किसी वैज्ञानिक आधार के यदि कुछ तीर तुक्के लगाए जाते हैं और वे गलत निकल जाते हैं तो आवश्यकता मौसम विज्ञान के खोजे जाने की है न कि गलत हो जाने वाले अंदाजों का दोष जलवायु परिवर्तन जैसे काल्पनिक शब्द का निर्माण करके उस पर मढ़ दिया जाए !

                       जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक घटनाओं का सच ! 
     वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि जो घटनाएँ अभी घटित होते दिख रही होती हैं उनका निर्माण भी तभी हुआ था जब यह संपूर्ण ब्रह्माण्ड निर्मित हुआ था और आज के दस बीस हजार वर्ष बाद भी जो प्राकृतिक घटनाएँ घटित होंगी उनका निर्माण भी ब्रह्माण्ड निर्मित होने के साथ साथ ही हुआ था | इसलिए ऐसी सभी घटनाएँ अपने पूर्वनिर्धारित क्रम में अपने अपने निश्चित समय पर घटित होते चली जाती हैं ! इसमें जलवायुपरिवर्तन जैसी किसी अन्य प्रकार की आशंका के लिए कोई गुंजाईश ही नहीं है और न ही इससे कोई फेरबदल ही हो सकता है !कई बार कोई दो घटनाएँ जो आपस में एक दूसरी घटना से जुड़ी होती हैं एक दूसरे के विषय में सूचना देती हैं किंतु उन दोनों के बीच में आपसी अंतराल सैकड़ों वर्षों का होता है और मनुष्य के आयु की सीमा है इसलिए उन दोनों के आपसी संबंध को  समझना कठिन होता है |
    अभी हाल के कुछ वर्षों में मौसमसंबंधी जो बड़ी घटनाएँ घटित हुई हैं उनके विषय में  जिन मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके थे और जो लगाए जाते रहे उनमें से अधिकाँश गलत होते रहे |ऐसे लोगों के द्वारा यदि आज यह कहा जा रहा है कि आज के पचास या सौ वर्ष बाद जलवायु परिबर्तन के कारण बार बार आँधी तूफ़ान आएँगे सूखा पड़ेगा बाढ़ की घटनाएँ घटित होंगी तापमान बढ़ जाएगा ग्लेशियर पिघल जाएँगे आदि  जितनी भी भयदायक भविष्यवाणियाँ प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित की जा रही हैं उन भविष्यवाणियों को  सही किस आधार पर मान लिया जाए |ऐसे लोगों के द्वारा दोचार दिन पहले के विषय में की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के सच घटित होने का अनुपात अत्यंत कम है तो जो वो आज के सैकड़ों वर्ष बाद के विषय में भविष्य वाणियाँ करते हैं उन के विषय में भरोसा कैसे किया जाए !अभी हाल के कुछ वर्षों में मौसमसंबंधी ये कुछ बड़ी घटनाएँ घटित हुई हैं जिनके पूर्वानुमान  या तो बताए नहीं जा सके या फिर गलत हुए हैं इस विषय में अपनी कमी या मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने की अपनी अयोग्यता स्वीकार करने के बजाए उनके गलत होने का संपूर्ण दोष जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढ़ दिया गया है |
     16 -6 -2013 में केदार नाथ जी में घटित हुई इतनी बड़ी घटना जिसमें 4400 लोग मारे गए या लापता हो गए 4200 से अधिक गाँवों का आपस में संपर्क टूट गया ,991 स्थानीय लोग मारे गए 11091 से अधिक जानवर बाढ़ में बह गए या दब कर मर गए !ग्रामीणों की 1309 हेक्टेयर जमीन बाढ़ में बह गई थी 2141 भवनों का नामों निशान  मिट गया था 100 से ज्यादा होटल ध्वस्त हो गए थे। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए।मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में भी कोई स्पष्ट पूर्वानुमान  नहीं  बताया गया था !
     सन 2016 में 10 अप्रैल के बाद से शुरू होकर मई जून तक आधे भारत में भीषण गर्मी होती रही इसी समय में आग लगने की हजारों घटनाएँ घटित हुईं यहाँ तक कि इसीकारण बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाएँ और हवन  न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ इसी कारण से ट्रेन से पानी की सप्लाई करनी पड़ी थी ! ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !इस वर्ष ऐसा होगा इस विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था ? 
     3 अगस्त 2018 को भारतसरकार के द्वारा अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु 7   अगस्त 2018 को केरल में भीषण वर्षात शुरू हुई जो 14 अगस्त तक चली जिसमें केरल  डूबने उतराने लगा !यहाँ तक कि बाढ़पीड़ित केरल के मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि मुझे इस  विषय में सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई थी और न ही ऐसी कोई भविष्यवाणी ही की गई थी !जब इतनी अधिक वर्षा हो गई तब उन्हीं मौसम भविष्यवक्ताओं ने सच्चाई स्वीकार करते हुए कहा कि बारिश अप्रत्याशित होने के कारण उनकी समझ से बाहर थी !इसका कारण जलवायु परिवर्तन हो सकता है !
         इसी प्रकार से सन 2018 में  11 अप्रैल और 2 मई को आए तूफान की वजह से जन धन का भारी नुकसान हुआ था। तूफान में हजारों पेड़ टूट गए थे।मई जून में आँधी तूफ़ान की कई बड़ी घटनाएँ घटित हुईं जिनके विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई अग्रिम अनुमान नहीं बताया गया था !उधर जब घटनाएँ घटित होने लगीं जनधन की हानि भी काफी मात्रा में होने लगी तो मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी बहते पानीमें हाथ धोने की कोशिश की गई उनके द्वारा भी  आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणियाँ भी की जाने लगीं जो गलत निकलत चली गईं !7-8 मई के विषय में सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं ने भीषण तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई कुछ प्रदेशों में सरकारों के द्वारा सतर्कता बरतते हुए स्कूल कालेज बंद कर दिए गए ! जबकि उस दिन हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसी घटनाएँ पूरे समय में घटित होती रहीं और इनका पूर्वानुमान देने में भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती चली गईं !
      17 अप्रैल 2019 को भीषण बारिश आँधी तूफ़ान बिजली गिरने आदि की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी तैयार गेहूँ भीग गया !लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हुई !इसका भी कोई पूर्वानुमान मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा  नहीं बताया गया था ?    
    इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सरकार के मौसमभविष्यवक्ताओं  ने अपनी भूमिका का निर्वाह क्यों नहीं किया ?प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाई गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
     इसके अलावा भी बहुत सारी छोटी बड़ी घटनाएँ तो अक्सर घटित होती रहती हैं सबका उद्धृत किया जाना यहाँ संभव नहीं है चूँकि बड़ी घटनाओं के विषय में तो सभी चिंतित होते हैं इसलिए उधर सबका ध्यान जाता है !इसलिए ऐसे समय में मौसम भविष्यवक्ताओं  की सच्चाई सामने आ  ही जाती है !
      इसके अतिरिक्त मुख्य बात एक और है कि भारत में सरकार के द्वारा जून से सितंबर तक वर्षा होने का समय माना जाता है इसके विषय में प्रतिवर्ष मौसम भविष्यवक्ताओं को दीर्घावधि पूर्वानुमान बताना होता है !इस चार पाँच महीने पहले का पूर्वानुमान एक साथ बताने का आजतक साहस नहीं कर सके ये भी अप्रैल से लेकर अगस्त तक तीन बार में बताया जाता है !फिर भी इनके सही होने का अनुपात इतना कम है कि इन्हें सिद्धांततः भविष्यवाणी नहीं माना जा सकता !
       मानसून किस तारीख को आएगा इसकी तारीख भविष्यवक्ताओं के द्वारा हर वर्ष बताई जाती है यह बात और है कि उस तारीख में शायद कभी मानसून आता भी हो किंतु ऐसा होना बहुत कम वर्षों में ही संभव हो पाया है !
         ऐसी परिस्थिति में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा दोचार महीने पहले के मौसम संबंधी सही पूर्वानुमान बता पाना संभव हो पाता हैं उन्हीं  मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा यह बताया जा रहा है कि ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के कारण ही आज के सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं की भविष्यवाणी की जा रही है ऐसी बातों पर कितना विश्वास किया जाए ये समाज स्वतः करे !  

                        जलवायुपरिवर्तन होना संभव है क्या ?

      परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है वो आवश्यक भी है क्योंकि परिवर्तनों को देखकर ही इस बात का अनुमान लगाया जाता है कि समय बीत रहा है इसलिए प्रत्येक आकारवान वस्तु में प्रत्येक क्षण परिवर्तन होते देखे जा  रहे हैं आकार रहित अर्थात जो चीजें दिखाई नहीं पड़ती हैं उनमें परिवर्तन होना संभव नहीं है |

      समय अपनी गति से बीतते चला जा रहा है किंतु निराकार होने के कारण  समय बीतते हुए किसी को दिखाई पड़ता नहीं है |यदि किसी को आकाश के किसी ऐसे स्थान पर रख दिया जाए जहाँ केवल चारों ओर केवल आकाश ही आकाश हो जहाँ से सूर्यचंद्र आदि कोई भी ग्रह नक्षत्र समेत दूर दूर तक कहीं कुछ भी न दिखता हो ऐसी परिस्थिति में उसे समय बीतने का अनुभव कैसे होगा ! क्योंकि समय बीतने का अनुभव तभी होता है जब बदलाव दिखाई पड़ते हैं |पृथ्वी पर जहाँ हम सभी लोग रह रहे हैं तो पृथ्वी से आकाश तक सबकुछ हर क्षण बदलते हुए दिखाई पड़ता है जिससे समय बीत रहा है इसका अनुभव होता है इसके अतिरिक्त बीतते हुए समय के विषय में अनुभव करने का कोई और दूसरा विकल्प बचता नहीं है |

     इसी प्रकार से पंचतत्वों के प्रभाव में परिवर्तन संभव नहीं है उनका स्वभाव प्रभाव गुण दोष आदि  किन्हीं भी परिस्थितियों में बदले नहीं जा सकते हैं जल का स्पर्श ठंडा होता है ये उसका स्वभाव है इसलिए उसे कितना भी गर्म किया जाए किंतु अंत में ठंडा ही हो जाएगा !वायु का स्वभाव निराकार रहते हुए भी सबका स्पर्श करना है तो वो हजारों वर्ष पहले ऐसा करती थी और आज भी ऐसा ही करते देखी जा रही है |अन्य तत्वों के विषय में भी ऐसा ही होते देखा जा रहा है | 
     ऐसी परिस्थिति में जलवायु का परिवर्तन कैसे संभव है और उसके लक्षण तथा प्रमाण क्या है तथा सुदूर अतीत में ऐसी कौन कौन सी घटनाएँ घटित होती थीं जो आज जलवायु परिवर्तन के कारण बदल गई हैं तब उनका स्वरूप क्या था और आज क्या हो गया है |यदि पहले  अपेक्षा आज तक कुछ बदल गया है तब तो भविष्य में कुछ और बदल जाने की कल्पना करना तर्क संगत होगा किंतु यदि पहले ऐसा कभी नहीं हुआ तो आज अचानक ऐसी  आशंका करने का औचित्य और आधार क्या है |
      बादल वर्षा आँधी तूफ़ान आदि जहाँ कहीं से प्रारंभ होते हैं उसके बाद उन्हें आकाश मार्ग से ही जाना आना होता है इसलिए आकाशस्थ उपग्रहों रडारों आदि के माध्यम से दिखाई पड़ जाते हैं तो उनकी गति और दिशा का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब कहाँ पहुंचेंगे मौसमविज्ञान के नाम पर केवल आकाशस्थ उपग्रहों रडारों से प्राप्त चित्रों की भूमिका को ही मौसम विज्ञान भले मानलिया जाए !भूकंप जैसी घटनाएँ पहले से देखने का कोई साधन नहीं है इसलिए पहले से ही हाथ खड़े कर दिए गए हैं कि भूकंप संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है |मौसम के विषय में पहले से बताया गया कोई पूर्वानुमान जब गलत होने लगता है तब वे कहने लगते हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है |
   आवश्यकता इस बात की है कि मौसम विज्ञान के नाम पर जो चीजें पढ़ाई जा रही हैं उनका मौसम विज्ञान से कोई संबंध है भी या नहीं इस बात को तर्कों प्रमाणों  और अनुभवों के आधार पर सिद्ध न किया जाना चाहिए उसके बाद ही इसे विज्ञान मानकर पाठ्यक्रमों में सम्मिलित किया जाना चाहिए था किंतु वर्तमान समय में तो मौसम विज्ञान के क्षेत्र में जो शिक्षक हैं स्कूलों कॉलेजों में ऐसे विषयों पढ़ा रहे हैं उनके द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान ही सच नहीं होते हैं तो ऐसे कल्पित विज्ञान को जिन्हें पढ़ाया जा रहा है वो इस विषय में क्या कुछ कर पाएँगे ये तो भविष्य के ही गर्भ में है |
    अभी तक मौसम विज्ञानं के नाम पर जो कुछ जाना जाता है उसके आधार पर लगाए गए मौसम संबंधी पूर्वानुमानों का सच होना संभव ही नहीं है क्योंकि वह कोई विज्ञान  तो होता  नहीं है अपितु वह तो बादलों या आँधी तूफानों की जासूसी करने की प्रक्रिया मात्र होती है किंतु जिन्होंने इस प्रक्रिया को भी विज्ञान मान लिया है वे इस जासूसीप्रक्रिया के आधार पर मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाते हैं वे सही ही होंगे ऐसा मानकर चलते हैं किंतु जब वे गलत निकल जाते हैं तब उन्हें अपनी गलती का एहसास तो होता नहीं है अपितु वे मौसम को ही गलत बताने लगते हैं और मानसून आने जाने की तारीखें आगे पीछे करने को उतावले हो उठते हैं मौसम विज्ञान संबंधी अनुसंधानों के अभाव में जलवायु परिवर्तन जैसे न जाने कितने अंध विश्वासों को पैदा कर दिया गया है जो ऐसे लोगों के के मन में हुए इसीप्रकार के भ्रम की उपज हैं |  ऐसा भ्रम जिस किसी को भी होने लगता है तो उसे लगने लगता है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है|
     यदि इसमें कहीं कोई विज्ञान का अंश होता तो जासूसी भावना से ऊपर उठकर मौसम निर्मात्री शक्तियों के स्वभाव की समझ विकसित करने के विषय में अनुसंधान होता तो उसे मौसम विज्ञान माना जा सकता है |
                                                ग्लोबलवार्मिंग
    ग्लोबलवार्मिंग का अर्थ है 'पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन' पृथ्वी के तापमान में हो रही इस वृद्धि के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने से  समुद्र के जलस्तर में वृद्धि की परिकल्पना की जा रही है !
     विशेष बात यह है कि एक ओर कहा जा रहा है कि यह लंबे समय के अनुभव के बाद पता लग पाया है जबकि मौसम के  क्षेत्र में अनुसंधान के देता संग्रह करते अभी सौ दो सौ वर्ष भी तो मुश्किल से बीते हैं करोड़ों वर्ष के पृथ्वी के इतिहास के क्रम में सौ दो सौ वर्ष  के अनुभव की विसात ही क्या है ऐसा कोई अंधविश्वास पालकर बैठ जाने से अच्छा है कि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने की संपूर्ण प्रक्रिया को ही अनुसंधान का विषय और  जाए ! 
     किसी दिन प्रातः काल से शाम तक के क्रम को देखा जाए तो दोपहर तक तापमान बढ़ता है और दोपर बाद धीरे धीरे कम होने लगता है शाम तक सामान्य हो जाता है |ऐसी परिस्थिति में यदि किसीबजे  ने प्रातः 8 ,10 और 11बजे का तापमान रिकार्ड किया हो तो क्रमिक रूप से बढ़ता जा रहा होता है !इसके आधार पर यदि अनुमान लगाया जाएगा तब तो लगेगा कि शाम के सात बजे तक तापमान बहुत अधिक बढ़ जाएगा जबकि ऐसा होता नहीं है किंतु इस भ्रम का निराकरण शाम होने के बाद ही हो पाता है | ऐसे में यदि दोपहर 11 बजे तापमान बढ़ता देखकर किसी को लगे कि भोजन बनाने के लिए चूल्हा जलने के कारण तापमान बढ़ रहा है इसलिए चूल्हा जलने बफ्ड कर दिए जाने चाहिए !ये कितना बड़ा भ्रम होगा |
   जिस प्रकार से चंद्रमा शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से क्रमिक रूप से एक एक कला बढ़ता जाता है और फिर उसी क्रम में एक एक कला कम होता चला जाता है | ये प्रकृति का क्रम है ये संपूर्ण प्रक्रिया 30 दिनों में पूरी होती है |
      जिस प्रकार से वर्ष के क्रम में मार्च के महीने में सामान्य तापमान होता है फिर क्रमशः बढ़ता चला जाता है और जून में बहुत अधिक बढ़ जाता है उसके कम होना प्रारंभ हो जाता है तापमान घटने बढ़ने का ये क्रम वर्ष पर्यन्त चला करता है | 
     दिन महीना वर्ष आदि में जो क्रम क्रमशः बढ़ने घटने का दिखाई पड़ता है उसी प्रकार का सैकड़ों हजारों वर्ष का भी कोई कालखंड होगा जिसमें तापमान स्वाभाविक रूप से बढ़ता और घटता होगा !ये तो प्रकृति का नियम है | 
     जहाँ तक ग्लेशियर पिघलने की बात है तो गर्मी होती है तो पिघलेंगे ही उनकी संरचना ही इसीलिए हुई है कि गर्मी की ऋतु में उनके द्वारा जलापूर्ति होती रहे इसके बाद सर्दी की ऋतु में वही ग्लेशियर फिर जम जाते हैं !यदि गर्मी कई दशकों के रिकार्ड तोड़ते देखि जाती है तो सर्दी भी कई दशकों के रिकार्ड तोड़ते देखी  जाती है ग्लेशियरों पर पड़ी वर्फ जिस अनुपात में गर्मी में पिघल जाती है उसी अनुपात में सर्दी में जम भी जाती है ये तो प्रकृति का नियम है !इसमें किसी प्रकार की शंका करने से क्या लाभ !
       जहाँ तक बात पृथ्वी का तापमान बढ़ने की है तो वैसे तो पृथ्वी के अंदर अग्नि जल वायु आदि अपना पर्याप्त मात्रा में संग्रहीत है जिसके बलपर पृथ्वी समेत समस्त गृह आकाश में टिके हुए हैं | पहले लोग हाथ से जल निकालते थे तब उतना जल दोहन नहीं हो पता था जितना अब मोटर पंप आदि से पानी निकाल लिया जाता है उससे जलस्तर घटता है तो पृथ्वी के गर्भ में स्थित अग्नि को नियंत्रित रखने के लिए जितनी मात्रा में जल भरना आवश्यक है उससे भी कम हो जाता है तो पृथ्वी का तापमान बढ़ना स्वाभाविक ही है | 
      पृथ्वी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए उसी मात्रा में रिसाइकिल होकर जल आकाश से बरसता है इसलिए जगह जगह भीषण बाढ़ आते देखी जाती है !क्योंकि पृथ्वी के कोठे जो जल निकाल निकाल कर खाली कर दिए जाते हैं प्रकृति को उन्हें तो भरना ही पड़ेगा उसके लिए कितना भी क्यों न बरसना पड़े !क्योंकि बरसा ऋतु आती ही पृथ्वी की प्यास बुझाने के लिए है | 
        इस प्रकार से प्रकृति का अपना सारा सुनियोजित कर्म बना हुआ है हमें अधिक बर्फबारी होने से हिमयुग की आशंका होती है अधिक गर्मी होने से ग्लोबलवार्मिंग की चिंता होती है अधिक वर्षा होने से बाढ़ की चिंता होती है | आखिर हम ऐसा क्यों चाहते हैं कि प्राकृतिकघटनाएँ हमसे पूछ पूछ कर  घटित हुआ करें ! 
      मौसमवैज्ञानिकों की मौसमी घटनाओं से अक्सर शिकायत रहती है कि मानसून समय पर नहीं आया या देर से गया या वर्षा समय से नहीं हुई अथवा अनुमान से कम हुई या आँधी तूफ़ान इस समय इतने आ गए ऐसा होता नहीं था आदि आदि  ! ऐसी शिकायतों से ऊपर उठकर  मौसमी घटनाओं के स्वभाव को समझना होगा | 
      
प्राकृतिक घटनाओं में आपसी संबंध        
     सूखा वर्षा बादल आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की छोटी बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा घटित होते चली आ रही हैं | इनके घटित होने की तारीखें ,समय ,मात्रा और स्थान एक जैसे कभी नहीं रहते परिस्थितियों में कुछ न कुछ परिवर्तन तो होता रहता है | इसलिए मौसम अनुसंधानों के नाम पर इन्हें आपसे में एक दूसरे की तरह घटित होने की कल्पना करना उचित नहीं है | पिछले वर्ष इतनी बारिश हुई थी अबकी कम हुई !पिछली बार इस तारीख को मानसून आया या गया था अबकी ऐसा नहीं हुआ पिछली बार इस महीने के इस सप्ताह में इतने सेंटीमीटर बारिश हुई थी अबकी नहीं हुई | पिछले वर्ष बहुत तूफ़ान आए अबकी नहीं आए | ये चर्चाएँ निरर्थक एवं समय बिताने के लिए की जाती हैं | 
     प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कुछ अचानक या अप्रत्याशित नहीं होता है अपितु जो वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ अभी घटित होते दिखाई देती हैं या आज के हजारों लाखों वर्ष बाद में भी घटित होती दिखाई देंगी ऐसी  सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का बीजारोपण इस ब्रह्मांड के निर्माण के साथ साथ ही हो गया था | उसी समय इन घटनाओं के घटित होने का क्रम भी बन गया था कि ये आज के हजारों लाखों वर्ष बाद भविष्य में किस वर्ष के किस महीने के किस दिन में घटित होंगी | उसके साथ ही यह भी उसी समय निश्चित हो गया था कि जितने भी प्रकार की घटनाएँ भविष्य में जब जब घटित होंगी तब तब उन घटनाओं के कुछ वर्ष महीने दिन आदि आगे पीछे भी कुछ घटनाएँ घटित होंगी | इसलिए ये सभी घटनाएँ आपस में एक दूसरे से संबंधित होती हैं | इनमें अंतर केवल इतना होता है कि जो घटना आज घटित होते दिखाई पड़ रही है प्रकृति इस घटना के विषय की सूचनाएँ इसके कुछ समय पहले से अभी तक घटित होती चली आ रही कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के माध्यम से देती चली आ रही थी |उनसे प्राप्त संकेतों का अनुसंधान करके आज घटित हुई प्राकृतिक घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इसके साथ ही जो घटना आज घटित हो रही है यह भी भविष्य में किसी दूसरी घटना के घटित होने की सूचना दे रही होती है | इस प्रकार से माला के मनकों की तरह ही समय के धागे में घटनाएँ क्रमिक रूप से गुथी हुई हैं जिस प्रकार से जप करने वाली माला में एक गुरिया दूसरी गुरिया ऐसे ही तीसरी चौथी आदि आया जाया करती हैं उनका क्रम टूटता नहीं है और न ही उनमें से कोई गुरिया अचानक आ जाती है | ऐसे ही प्राकृतिक घटनाओं के विषय में समझा जाना चाहिए | जब से सृष्टि बनी तब से लेकर आज तक यही क्रम बना हुआ है आगे भी यही चलता रहेगा |
     सामाजिक घटनाएँ भी इसी प्रकार से समय रूपी धागे में गुथी हुई होती हैं जब जैसा समय आता है तब तैसी घटनाएँ घटित होती चली जाती हैं |सामाजिक उन्माद गृहयुद्ध या दो राष्ट्रों में होने वाले युद्ध जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान समय की इसी पद्धति के द्वारा लगा लिया जाता है |
    स्वास्थ्य के संबंध में भी ये घटनाएँ इसी प्रकार से क्रमिक रूप से घटित होती चली जाती हैं सामूहिक महामारी आदि घटनाएँ किसी भी क्षेत्र में घटित होती हैं तो उसके विषय की सूचनाएँ काफी पहले से प्रकृति में घटित होने वाली कुछ दूसरी घटनाओं के द्वारा दी जा रही होती है !इसकी चर्चा आयुर्वेद के चरक संहिता आदि ग्रंथों में भी मिलती है | 
     व्यक्तिगत जीवन में होने वाली स्वास्थ्य समस्याएँ या तनाव आदि मानसिक समस्याएँ भी समय के उसी क्रम में जीवन में आती जाती रहती हैं जब जैसा समय होता है तब तैसी परिस्थितियाँ घटित होती चली जाती हैं वैसी ही मनस्थिति भी बनते चली जाती हैं | अच्छे समय के प्रभाव से जिन परिस्थितियों में जो व्यक्ति कभी स्वस्थ एवं प्रसन्न रह लिया करता है उन्हीं परिस्थितियों में उन्हीं व्यक्तियों के साथ वही व्यक्ति अस्वस्थ एवं तनाव में रहने लगता है बकी सभी परिस्थितियाँ वैसी ही  रहते हुए भी केवल समय के बदल जाने से सब कुछ बदल जाता है | 
      कुलमिलाकर समय के साथ साथ साथ प्राकृतिक सामाजिक व्यक्तिगत स्वास्थ्य एवं मानसिक वातावरण बनता बिगड़ता रहता है | इस प्रकार की अधिकाँश घटनाएँ आपस में भी एक दूसरे से संबंधित होती हैं | जिस समय के प्रभाव से कोई प्राकृतिक घटना घटित होती है उसी समय के प्रभाव से महामारी आदि स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी पैदा होते देखी जाती हैं |
     अनंतकाल से जीवन से लेकर प्रकृति तक घटित होने वाली सभी प्रकार की घटनाएँ घटित होने का वही एक क्रम बना हुआ है कि इसके बाद वो घटना घटेगी उसके बाद कोई और दूसरी तीसरी आदि घटना घटित होते चली जाएगी !ऐसा हमेंशा से होता चला आ रहा है | 


प्राकृतिक आपदाओं से डरने की अपेक्षा सुधार पर दिया जाए ध्यान !
 
आँधी बाढ़ और भूकंप जैसी घटनाएँ हमारी भलाई के लिए ही घटित होती हैं बाढ़ नदी और तालाबों के गंदे पानी को निकाल कर फिर उसकी सफाई करके उन नदी तालाबों में स्वच्छ जल भर पाना बाढ़ के बिना कैसे संभव हो पाता ! नदी तालाबों आदि में भरे गंदे जल को प्रकृति पहले सुखाती है फिर एक दो तीन बार उसे पानी से साफ करती है फिर उनमें पहले से भरा हुआ गंदा पानी हटा या सुखाकर बाढ़ आदि प्रक्रिया से प्रकृति उसमें शुद्ध जल भरती है | 

      वैसे भी बर्तन को धुले बिना उसमें शुद्ध जल कोई भी तो नहीं भरता है और यदि भर दिया जाए तो क्या वो पीने योग्य हो पाएगा ?फिर भी यदि ऐसा ही करते रहा जाए तो दोचार वर्षों में ही ये नदी तालाब दुर्गंध देने लगेंगे इसी क्रिया को संपन्न करने के लिए बाढ़ आती है ! इसी प्रकार से वायु को शुद्ध करने के लिए आँधी तूफान आते हैं ! पृथ्वी पर बड़े अनुचित एवं अतिरिक्त निर्माणजन्य  बोझ को कम करने के लिए भूकंप आते हैं समतल सी दिखने वाली पृथ्वी वैसे तो गोल ही होती है और गोल वस्तु को संतुलन के बल पर ही व्यवस्थित रखा जा सकता है पहाड़ पृथ्वी का संतुलन बनाकर रखने के लिए ही तो होते हैं |
    प्राकृतिक आपदाओं के नाम से घटित घटनाओं के दो कारण होते हैं पहला तो सृष्टि संचालन जैसा कि ऊपर निवेदन किया गया है यदि इन्हें कम करना है तो प्रदूषण हमें स्वयं घटा लेना होगा जितना प्रदूषण कम होगा सफाई का काम भी उतना ही कम होगा तो बाढ़ और आँधी तूफान आदि का वेग भी उतना कमजोर होगा जन धन की हानियाँ भी उतनी ही कम होंगी |
    प्राकृतिक आपदाओं से बचने के लिए हमें प्रकृति के अनुकूल वर्ताव करना होगा यदि हम नदी तालाबों  का जल गंदा नहीं करेंगे तो बाढ़ नहीं आएगी वायु प्रदूषण नहीं फैलाएँगे तो आँधी तूफान नहीं आएँगे और पृथ्वी पर अनुचित एवं अतिरिक्त निर्माण जन्य बोझ नहीं बढ़ने देंगे तो भूकंप नहीं आएँगे| अंततः प्राकृतिक दुर्घटनाओं  को घटाने के प्रयास हमें ही करने होंगे |`

पुस्तक में  सबसे बाद में- 
       आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में आँधी तूफानों बादलों की जासूसी करने के अतिरिक्त कुछ ऐसा है ही नहीं जिसके आधार पर प्रकृति से जुड़ी हुई भविष्य संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान  लगाया  जा सके |इसीलिए आधुनिक विज्ञान से जुड़ा एक बड़ा वर्ग ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को देखकर पहले कुछ दिनों तक तो आश्चर्य करता रहता है कुछ समय इसमें बीत जाता है | इसके बाद ऐसे विषयों में रिसर्च करने की आवश्यकता बताता है कुछ समय ऐसे निकाल देता है | इसके बाद लीक से हटकर घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को ग्लोबलवार्मिंग या जलवायुपरिवर्तन के हवाले करके इन्हें भूल जाता  है | इस प्रकार से पूर्वानुमान जानने की भावना में ताला लगा दिया जाता है|प्रकृति संबंधी पूर्वानुमान विज्ञान के साथ ऐसा अन्याय लंबे समय से होता चला आ रहा है |
    ऐसे विषयों पर अनुसंधान करने लायक आधुनिकविज्ञान में कुछ है नहीं और वैदिकविज्ञान को इस योग्य माना नहीं जाता है |इसलिए भूकंप जैसी घटनाओं की तो छोड़िए वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान या वायु प्रदूषण बढ़ने जैसी घटनाओं संबंधी पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक भी असंभव से बने हुए हैं |
    वैदिक विज्ञान के द्वारा ग्रहण जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने की विधा पूर्वजों ने पहले ही खोज ली  थी वो आज तक सही एवं सटीक घटित हो रही है सैकड़ों वर्ष पहले के ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान भी लगा लिए जाते हैं जो आज भी सही एवं सटीक घटित होते देखे जा रहे हैं |
   


      विश्व के बहुत सारे देशों की सरकारों में भूकंपों से संबंधित मंत्रालय होते हैं अधिकारियों कर्मचारियों की बड़ी संख्या होती है उनकी सैलरी से लेकर समस्त सुख सुविधाओं पर बहुत सारा धन खर्च होता होगा | भूकंपों से संबंधित रिसर्च करने के लिए जितनी भी धन राशि खर्च की जाती है वह जनता के द्वारा दिए गए टैक्स से प्राप्त धन ही तो खर्च किया जाता है इसके बदले में जनता को आखिर मिलता क्या है ? 
     इसीप्रकार  से विश्व के  बड़े बड़े विश्व विद्यालयों में भूकंप अध्ययन अध्यापन के विभाग होते हैं शिक्षक होते हैं छात्र होते हैं शिक्षकगण भूकंपों के विषय में पढ़ा भी रहे होते हैं और विद्यार्थीगण पढ़ भी रहे होते हैं किंतु लाख टके का प्रश्न यह है कि जो लोग भूकंपों  के विषय में स्वयं ही कुछ नहीं समझ पाए हैं ऐसे लोग छात्रों को क्या पढ़ाएँगे और भूकंप विद्या के नाम पर जो पढ़ा भी रहे हैं उसमें सच्चाई कितनी है ये तो भविष्य ही बताएगा |क्योंकि किसी भी घटना के घटित होने का कारण पता लगे बिना और उसके अनुशार लगाए गए भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान सच हुए बिना भूकंपों के विषय में जो कुछ भी कहा जा रहा होता है उस पर भरोसा होता नहीं है | वैसे भी विश्व वैज्ञानिक समुदाय का यह मानना है कि भूकंपों के पूर्वानुमान के विषय में कुछ कहना संभव नहीं है !ऐसी परिस्थिति में भूमिगत गैसों और प्लेटों की थ्यौरी को ही किस आधार पर सच मान लिया जाए और काल्पनिक सच पर शोध कैसा तथा पठन पाठन कैसा और क्या है इसका औचित्य ?ऐसे चिंतन में मैं निरंतर लगा रहा !
    मैंने  कहीं पढ़ा कि भूकंप  आने से पहले  कुछ जीवों के स्वभावों में परिवर्तन आने लगता है !उधर जगदीश चंद वसु के वृक्ष विज्ञान पर भरोसा करते हुए मैंने वैदिक विज्ञान का स्वाध्याय प्रारंभ किया जिसमें वेद आयुर्वेद वनस्पतिविज्ञान स्वभावविज्ञान ज्योतिषविज्ञान योगविज्ञान आदि का गहन अध्ययन और मंथन करते हुए ऐसे सभी प्रकार से वैदिक ज्ञान और आधुनिक विज्ञान  का अध्ययन करते हुए मैंने ब्रह्मांड को सविधि समझने का प्रयास किया !
     इसी क्रम में मैंने पढ़ा कि 'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे' अर्थात जैसा
शरीर है वैसा ही ब्रह्मांड है इसलिए ब्रह्मांड को सही सही समझने के लिए सर्व प्रथम अपने शरीर को समझना होगा इसके बाद शरीर को आधार बनाकर उसी के अनुशार ही  ब्रह्मांड का अध्ययन किया जा सकता  है और ब्रह्मांड के रहस्य में प्रवेश पाते ही भूकंप वर्षा एवं रोग और मनोरोग जैसे गंभीर विषयों की गुत्थियाँ सुलझाने में सफलता मिल सकती है इसीविचार से मैं बिना किसी पूर्वाग्रह के भूकंप से संबंधित रिसर्च विषयक अपने प्रयासों को आगे बढ़ाते चला गया और इस विषय में जहाँ जिससे जो जानकारी जितनी मिली उसे ग्रहण करके उसका उपयोग करता चला गया |वह शोधयात्रा अभी भी चलती जा रही है |                                                
      
   

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