Saturday, 6 July 2019

रामायण महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में

                     जलवायु परिवर्तन कैसे संभव है ?

   जल और वायु से संबंधित बदलाव को जलवायु परिवर्तन बताया जा रहा है !बिचारणीय विषय यह है कि जल और  वायु के स्वभाव गुणों आदि में कितना बदलाव आया है और उसका अनुभव किस प्रकार से किया जा रहा है प्राकृतिक घटनाओं के ऐसे कौन से लक्षण हैं जो पहले नहीं घटित हो रहे थे और अभी सौ दो सौ वर्षों से अचानक घटित होने लगे हैं !     वैदिक विज्ञान में ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु के निर्माण में पंचतत्वों का योगदान माना जाता है पृथ्वी,आकाश ,जल,अग्नि और वायु ये वो पाँच तत्व हैं !इनमें पृथ्वी और आकाश ये दोनों स्थिर हैं और हमेंशा एक जैसे रहते हैं किंतु पृथ्वी प्रत्येक छोटी से बड़ी वस्तु तक के निर्माण की आधार स्वरूपा है यही सब  धारण करती है और आकाश प्रत्येक निर्मित व्यक्ति वस्तु आदि को विस्तार देने के लिए स्थान उपलब्ध करवाता है !पृथ्वी और आकाश के अतिरिक्त तीन तत्व और बचते हैं जिन्हें जल,अग्नि और वायु इन तीन नामों से जाना जाता है!
    सृष्टि संबंधी प्रत्येक जीव जंतु मनुष्य आदि सभी सजीव वर्ग के निर्माण में या वैसे भी इनका पारस्परिक एक निश्चित अनुपात होता है जब तक उसमें ये तत्व उसी अनुपात में बने रहते हैं तब तक वो व्यक्ति आदि स्वस्थ बना रहता है और इनका पारस्परिक अनुपात बिगड़ते ही स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है ऐसे समय में किसी रोगी को रोग से मुक्ति दिलाने के लिए जो औषधियाँ दी जाती हैं वो शरीर में स्थित जल,अग्नि और वायु के बिगड़े हुए अनुपात को उचित अनुपात में करने के लिए दी जाती हैं !ऐसा होते ही वह व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है!इन्हीं जल,अग्नि और वायु आदि तीन तत्वों को चिकित्साशास्त्र में कफ, पित्त और वात आदि नामों से जाना जाता है !
   प्रकृति के निर्माण में भी इन जल,अग्नि और वायु आदि तत्वों की उतनी ही भूमिका है जितनी शरीर के निर्माण में होती है इसीलिए वैदिक विज्ञान में यत्पिंडेतत्ब्रह्मांडे कहा जाता है अर्थात जो शरीर में है वही ब्रह्मांड में है !इसलिए जिस प्रकार से जल,अग्नि और वायु आदि तत्वों का अनुपात बिगड़ने से शरीर रोगी होता है उसी प्रकार से प्रकृति में इन्हीं तीनों का अनुपात बिगड़ने से प्रकृति रोगी होती है जिससे सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं !ये प्रकृति में होने वाले रोग होते हैं !
       इन्हीं जल,अग्नि और वायु आदि तीन तत्वों में से दो अर्थात जल और वायु के प्रभाव को स्वीकार करते हुए आधुनिकविज्ञानवेत्ताओं ने जलवायु पर अध्ययन अनुसंधान आदि प्रारंभ किया है इनमें से तीसरे अग्नितत्व को उन्होंने पहले अलग कर रखा था बाद में उसे भी ग्लोबलवार्मिंग के रूप में जोड़ लिया है!जिस आधुनिक विज्ञान में इन तीनों तत्वों का अनुसंधान अभी सौ पचास वर्ष पहले प्रारंभ किया गया है इन्हीं तीनों तत्वों को शारीरिक रोगों और प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार वैदिकविज्ञान ने आदिकाल में ही मान लिया था !वातपित्त कफ के रूप में जलवायु और ग्लोबलवार्मिंग का अध्ययन जिस वैदिक विज्ञान ने हजारों लाखों वर्ष पहले प्रारंभ कर दिया था उसके विषय में अब सोचना शुरू करने वाले विद्वान लोग उस वैदिकविज्ञान को विज्ञान मानने में संकोच करते हैं !
     शरीरों में होने वाले आगंतुजरोगों की तरह ही प्रकृति में भी आगंतुजरोग होते हैं प्रकृति को विक्षुब्ध कर देने वाली परमाणु विस्फोट आदि घटनाएँ उसी से संबंधित होती हैं !इनकी प्रतिक्रिया स्वरूप घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाएँ आगंतुक रोग की श्रेणी में आती हैं एवं प्रकृति में जल,अग्नि और वायु आदि तत्वों का पारस्परिक अनुपात बिगड़ने से प्रकृति में स्वाभाविक व्याधियाँ पनपने लगती हैं और उनसे प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं !
      जिस प्रकार से शरीरों में भूख प्यास निद्रा आदि ऐसी घटनाएँ हैं जो प्रत्येक शरीर में प्रतिदिन घटित होती हैं ! भूख प्यास नींद आदि किसी को कभी बहुत अधिक लगती है कभी बहुत कम और कभी सामान्य लगती है इन्हें कभी किसी एक निश्चित मात्रा में नहीं बाँधा जा सकता है कि अमुकदिन अमुक व्यक्ति ने इतनी कम रोटियाँ खाई थीं आज इतनी अधिक क्यों खाईं ?या उस दिन इतना कम पानी पिया  अधिक क्यों पिया तथा उस दिन इतना कम सोया था आज अधिक या कम क्यों सोया ?इसी प्रकार से ऐसी घटनाओं के समय पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता कि पहले तो यह व्यक्ति इतने बजे भोजन कर लेता था या पानी पी लेता था या या सो जाता था आज इतने बजे क्यों खा पी रहा है !यदि किसी व्यक्ति की दिनचर्या में ऐसे बदलाव देखने को मिलते हैं तो इसका मतलब ऐसा तो नहीं मान लिया जा सकता है कि इसके शरीर में जलवायु परिवर्तन हो रहा है !इसी प्रकार से किसी का शरीर सहज रूप से अकारण भी कभी कुछ समय के लिए गर्म या ठंडा रहने लगता है यदि गर्म रहने लगे तो शरीर की इस परिस्थिति को ग्लोबलवार्मिंग तो बता देना ठीक नहीं होगा ! 
     इसी प्रकार से सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ ये तो समय के विकार स्वरूप प्रकृति में घटित होने वाली स्वाभाविक घटनाएँ हैं !जिनका समय थोड़ा बहुत आगे पीछे हो सकता है इनका प्रभाव भी कभी कुछ कम और कभी कुछ अधिक हो सकता है ये तो ऋतुओं में समय समय पर होने वाले परिवर्तनों का प्रभाव है !इसीलिए तो ऋतुओं को भी प्रकृति में होने वाले रोगों की श्रेणी में रखा जाता है ! वैसे भी ऋतुएँ समय के आधीन होती हैं और समय परिवर्तन शील होता है इसलिए समय के कारण होने वाले बदलावों को जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग कहना उचित नहीं होगा !
      जहाँ तक बात जलवायु परिवर्तन की है तो जल का स्वभाव शीतल है द्रवता अर्थात बहना इसका गुण है !इसी प्रकार से वायु का स्वभाव अनिश्चितता है एवं इसका गुण हमेंशा गतिशील रहना है !स्पर्श इसकी पहचान है !ये दिखाई भले न देती हो किंतु इसके स्पर्श का अनुभव हर किसी को होता है !इसलिए जल और वायु का जो स्वभाव लाखों वर्ष पहले था वही तो आज भी है फिर उसमें बदला क्या है !ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन जैसी बातें तर्कसंगत हो ही नहीं सकती हैं !
      वैसे भी यह तथाकथित जलवायु परिवर्तन मनुष्यकृत कैसे हो सकता है !सोचना होगा कि मनुष्य में इतनी क्षमता होती है क्या कि वो अपने प्रयासों से जल और वायु जैसे तत्वों में बदलाव ला सकता है !जल को कितना भी गर्म किया जाए तो भी जैसे ही आग के ऊपर से हटाया जाएगा तो वो कुछ देर में वो शीतल ही हो जाएगा !इसीप्रकार से वायु को रोक कर लंबे समय तक नहीं रखा जा सकता है वो हमेंशा गतिशील ही रहेगी !जब समुद्र जैसी अथाह जलराशि अपने अंदर धधकने वाले अग्निवृत्त को शांत नहीं कर सकी !ऐसी परिस्थिति में पंचतत्वों के स्वभाव में किसी भी प्रकार का बदलाव मनुष्यकृत कैसे माना जा सकता है !
     विशेष बात एक और है कि जिस प्रकार से किसी चार पाई या गाड़ी का एक पावा या पहिया किसी गड्ढे में चला जाए तो उससे चार पाई के शेष तीन अन्य पावे भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते हैं इसीप्रकार से कार के एक पहिया गड्ढे में जाने से शेष तीनों पहियों की गति उसी एक के साथ ही रुक जाती है !ऐसी परिस्थिति में पंचतत्वों में से जल और वायु में यदि परिवर्तन हो जाएगा तो शेष अन्य तीन तत्वों पर भी तो उनका असर उसी प्रकार का पड़ेगा और उनमें भी उसीप्रकार का बदलाव आएगा अन्यथा किसी में नहीं आएगा !पंचतत्वों में बदलाव संभव ही नहीं है क्योंकि उसमें बदलाव आने का मतलब है सृष्टि समाप्ति की घोषणा !इसके बाद भी बदलाव आना संभव नहीं होगा !इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसी सभी प्रकार की शंकाएँ आधारविहीन एवं अप्रमाणित हैं !
वर्षा,सूखा,आंधी,तूफ़ानआदिकाकारण जलवायुपरिवर्तन हो सकता हैक्या ?
      इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कभी भी एक निश्चित तारीख या निश्चित समय पर कभी नहीं घटित होती रहीं हैं इनके समय में अंतर तो हमेशा से ही होता रहा है !ऐसा कौन सा कालखंड रहा जिसमें ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित न होती रहीं हो ! सभी युगों में इस प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन मिलता रहा है ! आदिकाल से लेकर रामायण कल महाभारत कल आदि प्रत्येक जगह कई समयों पर केवल आंधी तूफानों का ही वर्णन नहीं मिलता है अपितु ऐसी घटनाएँ बार - बार घटित होने का वर्णन मिलता है ! बार - बार सूखा पड़ने का वर्णन मिलता है ! 
   एक बार की बात है कि महात्मा वाल्मीकि जी अग्नि शर्मा नाम से वेद पाठी तपस्वी विद्वान थे वो पिता के साथ तपस्या किया करते थे ! एक बार भीषण सूखा पड़ा, वर्षा नहीं हुई जिससे काफी समय तक भोजन के लिए नहीं मिल पाता था ! एक दिन कुछ लुटेरे कहीं से लूट कर कुछ भोजन समग्र लाये थे ! उन्हें खाते देखा तो भूखे अग्नि शर्मा जी बालकपन के कारण अपने ऊपर संयम न रख सके और उन्होंने उनका दिया हुआ भोजन ग्रहण कर लिया और इसके बाद भोजन के लोभ में अग्निशर्मा जी उन्हीं डाकुओं के समूह में सम्मिलित हो गए ! इसके कुछ वर्ष बाद जब अकाल जैसी परिस्थिति समाप्त हो गई तब किसी के समझने पार उन्होंने डाकुओं का साथ छोड़ दिया और उसका प्रायश्चित्त करने के लिए भयंकर तप करने लगे !तपस्या में तल्लीन होने के कारण उनके शरीर में चीटियों ने बाँबी बना डाली जिसे संस्कृत भाषा में बाल्मीकि कहते हैं तभी से अग्निशर्मा जी का नाम बाल्मीकि पड़ गया !
    इसी प्रकार से एक बार राजा जनक के राज्य में अकाल पड़ा था बहुत समय से वर्षा न होने के कारण विद्वानों ने जनक जी से हल चलवाया था !उसी से भगवती सीता प्रकट हुई थी !उसके बाद अच्छी वर्षा हुई थी !
    ऐसे ही प्रदूषित वायु के लगने से जीव जंतुओं के मरने का वर्णन मिलता है !घास पेड़ पौधे सूखने का वर्णन है प्रदूषित हवाओं के लगने से  प्रकार के रोगों के होने के प्रमाण मिलते हैं !
    इसी प्रकार से वायु प्रदूषण का भी बहुत लंबा इतिहास मिलता है !आकाशमें धुआँ धुआँ छा जाना या धूल छा जाने जैसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं !  
     महाभारत काल की प्राकृतिक घटनाओं का वर्णन मिलता है कि बार बार प्रचंड आँधियाँ आ रही थीं जिनसे कंकड़ गिरते देखे जा रहे थे आकाश में उड़ने वाली धूल से अक्सर अँधेरा जाता था भारी उल्कापात हो रहे थे !पृथ्वी भयंकर शब्द करते हुए काँपने लगती थी धरती जगह जगह से फट जाती थी जिसमें दरारें पड़ जाती थीं !बार बार बज्रपात हो रहे थे !प्रकृति में ऐसी घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जा रही थीं !
     रामायण महाभारत आदि प्राचीन ग्रंथों में  इसी प्रकार की घटनाओं का वर्णन हजारों लाखों वर्ष पहले से संबंधित मिलती हैं लाखों वर्ष पहले से होती चली आ रही ऐसी ही प्राकृतिक घटनाओं की चर्चा मिलती है वर्तमान समय में भी ये वैसी ही घटित  होते  देखी जा रही हैं जैसी पहले से हो रही थीं !ऐसी परिस्थिति में इनमें ऐसा नया क्या है जो आज अचानक घटित होने लगा जिससे कि वर्तमान समय में घटित हो रही प्राकृतिक घटनाओं का कारण कुछ नए प्रकार से खोजा  जाने लगा है !
  ग्लोबलवॉर्मिंग के कारण ऐसा नया क्या क्या हुआ है ?जो पहले नहीं था !       प्रकृति से लेकर जीवन तक संपूर्ण संसार का प्रत्येक सजीव वर्ग या निर्जीववस्तु प्रकृति पर्यंत सबकुछ अपने अपने अस्तित्व को बनाए एवं बचाए रखने के लिए मजबूत करने के लिए एक न एक बार ग्लोबलवार्मिंग से अवश्य गुजरता है !सोना तपाने से चमकता है घड़ा पकने से मजबूत होता है रोटी गरम करने से खाने योग्य होती है !इसी प्रकार से ग्रीष्मऋतु में पृथ्वी का जल सूखने की क्रिया से ही वर्षा होने की प्रक्रिया जुड़ी होती है!उसी से अन्न उत्पादन होता है !इस दृष्टि से तो प्रत्येक वस्तु की अपनी अपनी ग्लोबलवार्मिंग होती है जो उसके आस्तित्व को और अधिक उत्तम बनाने में उसकी मदद करती है !
     संसार में प्रत्येक वस्तु के निर्माण और समाप्ति तक उन्हें हिमयुग तापयुग और वातयुग से होकर निकलना पड़ता है !हिम युग में वर्फ या जल का सामना करना पड़ता है !तापयुग में आग या गर्मी का सामना करना पड़ता है और वातयुग में वायु के असर को सहना होता है !
      रोटी बनाने की प्रक्रिया में आटे को पानी से गीला करना उसका हिमयुग ,रोटी बनाकर उसे आग में सेंकना उसका तापयुग इसके बाद उसका आग से अलग हटकर वायु के प्रभाव से धीरे धीरे ठंडा होना उसका वातयुग होता है !ये क्रिया प्रत्येक जगह प्रत्येक प्रक्रिया में देखने को मिलती है !
     कुम्हार घड़ा बनाने के लिए मिट्टी गीली करता है ये उसका हिमयुग घड़ा बनाकर उसे आग में तपाना ये उसका तापयुग उसके  से उसे ठंडा होना ये उसका वातयुग होता है !
   शरीर की दृष्टि से देखा जाए तो बचपन हिमयुग ,युवावस्था  तापयुग एवं वृद्धावस्था उसका वातयुग होती है !संबंधों की दृष्टि से देखा जाए तो उनमें भी इसी प्रक्रिया का पालन हो रहा होता है !कोई संबंध मित्रता नाते रिस्तेदारी आदि जब बनते हैं तब दोनों पक्षों को एक दूसरे की कमजोरियाँ पता नहीं होती हैं इसलिए दोनों में आपसी मधुरता बहुत अधिक होती है !यह संबंधों का हिमयुग होता है !इसके बाद सबंधों में खिंचाव प्रारंभ  होता है और एक दूसरे से होने वाले लाभ हानि एवं उसके गुणों दुर्गुणों आदि के विषय में आतंरिक गंभीर अनुसंधान करके उस संबंध को तपाना होता है इससे संबंधों में मजबूती आ जाती है यही संबंधों का तापयुग  है ! इसके बाद दोनों पक्षों को एक दूसरे के साथ मधुर बात व्यवहार की ठंडी हवाओं से उस संबंध को शीतलता प्रदान करनी होती है यही संबंधों का वात  युग है !संबंधों में ताप युग का मतलब एक दूसरे के मन में एक दूसरे के प्रति बनी मिथ्या धारणाओं को तर्कपूर्ण ढंग से समाप्त करके संबंधों को मजबूत बनाना होता है !
       जिस प्रकार से वस्तुओं अवस्थाओं संबंधों में तीनों प्रकार की परस्थितियों का सामना करना होता है उसी प्रकार से समय में भी तीनों युगों के दर्शन होते हैं !प्रत्येक दिन में प्रातःकाल मध्यान्हकाल एवं सायंकाल  के रूप में एक दिन में तीनों युगों के दर्शन होते हैं !एक दिन की तरह ही सर्दी (हिमयुग)गर्मी (तापयुग) और वर्षा (वातवर्ष) होता है !इसके रूप में एक वर्ष में तीनों युग आते जाते हैं !जैसे दिन से बड़ा वर्ष होता है उसी प्रकार से उससे बड़ा सहस्रयुग होता है इसमें एक हजार वर्ष होते हैं !यही क्रम वहाँ भी चलता है पहला सहस्रवर्ष ठंडा दूसरा गरम और तीसरे में आँधी तूफ़ान आदि की अधिकता रहती है !
     यहाँ विशेष ध्यान देने की बात यह है कि आटे से रोटी बनने एवं उसे खाए जाने तक की प्रक्रिया कुछ घंटों में  पूरी हो जाती है !किंतु घड़ा बनने की प्रक्रिया कुछ दिनों में पूरी हो पाती है !ऐसी ही पहाड़ बनने की प्रक्रिया अत्यंत  लंबे काल खंड में पूरी होती है ऐसे ही पृथ्वी के निर्माण होते रहने की और अधिक प्रक्रिया है !
     कुलमिलाकर जो वायु रोटी को अत्यंत आसानी से ठंडी कर देती है वही वायु गर्म घड़े को ठंडा करने में कुछ अधिक समय लेती है यही वायु गर्म पहाड़ों को ठंडा करने के लिए आँधी तूफान जैसा स्वरूप धारण कर लेती है ! इन तीनों अवस्थाओं से पृथ्वी को भी गुजरना पड़ता है इसलिए पृथ्वी का तापमान बढ़ने को लेकर इतनी आशंकाएँ क्यों रखनी चाहिए !
     पृथ्वी पर भी तो पहले हिमयुग था उसके बाद तापयुग चल रहा है इसके बाद एक हजार वर्ष का वातयुग आएगा जिसमें आँधी तूफानों की घटनाएँ अधिक घटित होंगी !हिमयुग पृथ्वी के जीवन में आने वाले ऐसे युगों को कहते हैं जिनमें पृथ्वी की सतह और वायुमंडल का तापमान लंबे अरसों के लिए कम हो जाता है, जिस से महाद्वीपों के बड़े भूभाग पर ग्लेशियर फैल जाते हैं।इसी प्रकार से अन्य युगों का भी प्रभाव होता है !
    इस प्रकार से पहले शीतमान बढ़ता है उसके बाद तापमान बढ़ता है उसके बाद वातमान बढ़ता है !किसी भी वस्तु के निर्माण में इन तीनों की ही महत्वपूर्ण भूमिका होती है !ये नित्य निरंतर चलने वाली प्राकृतिक प्रक्रिया है !इसलिए इसमें पृथ्वी के तापमान बढ़ने को लेकर तमाम प्रकार का भ्रम फैलाया जाना उचित नहीं है !
वायुप्रदूषण- वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण प्रकृति में होने वाला परिवर्तन है या ये मनुष्य के द्वारा फैलाया गया वायुप्रदूषण है !यदि मनुष्यकृत है तो कैसे ?किसी वैज्ञानिक अनुसंधान के द्वारा अभी तक इस बात का ही निर्णय नहीं किया जा सका है कि वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण किसे माना जाए और क्यों माना जाए !किसी प्रक्रिया को कारण मानने के पीछे कुछ विश्वसनीय तर्क भी तो दिए जाएँ !ताकि समाज का उन तर्कों पर विश्वास बढ़े और समाज स्वयं उन कामों को छोड़ने या कम करने का प्रयास करे जिनसे वायु प्रदूषण बढ़ता हो !
    वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर इतनी हल्की बातें करना ठीक नहीं है कि दशहरा आवे तो दशहरे में रावण जलने को , दिवाली आवे तो पटाके जलने को और होली आवे तो होली जलने को वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !सर्दी में हवा के धीमे  चलने को ,गर्मी में हवा के तेज चलने को,धान काटने के समय पराली जलाने से उत्पन्न धुएँ से वायु प्रदूषण बढ़ने को कारण बता दिया जाता है !
    जब इनमें से कोई कारण दिखाई न दे फिर भी वायु प्रदूषण बढ़ता दिखे तो गाड़ियों के धुएँ से ,घर बनने से,ईंट भट्ठे चलने से,हुक्का पीने से,महिलाओं के स्प्रे करने से,भौगोलिक कारणों से ऐसे तमाम वे कारण बता दिए जाते हैं जो बारहो महीने तीसो दिन चौबीसों घंटे विद्यमान रहते हैं ! 
   इसी प्रकार से बताया जाता है कि ज्वालामुखी फटने से वायु प्रदूषण बढ़ता है ! फ्रिज, एयर कंडीशनर और दूसरे कूलिंग मशीनों की सीएफसी गैसों के ऊत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण बढ़ता है !
  औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विकतापन है !इसके अतिरिक्त मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है वायुप्रदूषण !
       ऐसे ही और भी तमाम कारण बताए जाते हैं बताया जाता है कि उनसे वायु प्रदूषण बढ़ता है !ऐसे और भी बहुत सारे कारण वैज्ञानिकों के द्वारा समय समय पर वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए गिनाए जाते रहते हैं ! 
     इस विषय में विचारणीय यह है कि एक ही समय में बहुत सारे देशों शहरों में एक साथ ही वायु प्रदूषण बढ़ता है जबकि सभी जगह कारण एक जैसे नहीं होते हैं !दूसरा जो कारण बताए जाते हैं उनके समाप्त होने के बाद तो वायु प्रदूषण कम होना चाहिए किंतु ऐसा नहीं होता है तब तक दूसरे कारण गिना दिए जाते हैं ऐसे ही समय बीतता जाता है जब जब वायु प्रदूषण बढ़ता है तब तब कोई न कोई कारण बता दिए जाते हैं !
      कुलमिलाकर जहाँ कहीं से धुआँ धूल आदि उठते देखा जाता है उसे ही वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !यह स्थिति पर्यावरण और मौसम पर काम करने वाले लोगों की है !किसी विषय पर इतनी ढुलमुल बातों में विज्ञान कहाँ है और यदि इन्हें विज्ञान मानना प्रारंभ कर दिया जाएगा तो ऐसी आधारविहीन कल्पनाएँ तो कोई भी कर सकता है !इनके लिए विज्ञान की आवश्यकता कहाँ है और इसमें विज्ञान है क्या ?
      इसलिए जो वायुप्रदूषण प्रकृति एवं स्वास्थ्य के लिए इतना अधिक हानिकर है प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने के लिए तथा तरह तरह के रोग फैलने के लिए जिस वायुप्रदूषण को जिम्मेदार माना जा रहा है !उस वायुप्रदूषण  के विषय में ये तो पता होना ही चाहिए कि वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए वास्तविक जिम्मेदार है कौन ?प्रकृतिजिम्मेदार है तो उसमें मनुष्य का दोष क्या है और यदि यह मनुष्यकृत है तो मनुष्य के द्वारा किए जाने वाले कौन कौन से कार्य इसके लिए किस किस प्रकार से जिम्मेदार हैं तथा उन उन कार्यों में कमी लाने से वायु प्रदूषण नियंत्रित हो जाएगा क्या ?
     समाज को इस प्रकार से उनकी शंकाओं का विश्वसनीय उत्तर देकर यदि यदि संतुष्ट किया जा  सकता है तो मुझे विश्वास है कि मनुष्य वायु प्रदूषण को घटाने के लिए यथा संभव प्रयास स्वयं करेगा ! 

   वर्षा के विषय में पूर्वानुमान -
         बारिश कब होगी कब नहीं यह सबस अधिक कृषिकार्यों के लिए उपयोगी होता है !विशेषकर किसानों को कृषि योजना बनाने के लिए कुछ महीने पूर्व के वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है !जिससे किसानों को फसल योजना बनाने में सुविधा रहती है और इससे फसलों का नुक्सान कम किया जा सकता है !
      कुछ फसलों में सिंचाई की आवश्यकता कम तथा कुछ में अधिक होती है जैसी जहाँ वर्षा होने की संभावना होती है किसान लोग वहाँ उस  प्रकार की फसलें बोना पसंद करते हैं !इसके लिए मौसमविज्ञान की भाषा में दीर्घावधिमौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है !आधुनिक विज्ञान ने इस विषय में बातें तो बहुत बड़ी बड़ी  कर दी हैं किंतु  किसानों को दीर्घावधिमौसम पूर्वानुमान उपलब्ध करवाने में अभीतक  असफल ही रहा है !रही बात एक दो दिन पहले वाले पूर्वानुमानों की उनसे किसानों को लाभ क्या है और उसमें सच्चाई कितनी है !यदि आधुनिक मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली ऐसी भविष्यवाणियों की भी ठीक से समीक्षा की जाए कि वे कितने प्रतिशत सच होती हैं तो ऐसी सच होने भविष्यवाणियों के सही एवं सटीक होने का प्रतिशत बहुत कम निकलेगा !अक्सर देखा जाता है कि जो प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती है उन्हीं  विषयों में भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं जैसा जैसा होते जाता है वैसा वैसा बताते जाते हैं! वस्तुतः ये भविष्यवाणियाँ होती नहीं हैं और न ही इसमें कोई विज्ञान होता है !इसके अतिरिक्त सर्दी गर्मी या वर्षा ने कब कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा मौसम पूर्वानुमान के नाम पर ये बताया जाता जो गलत है क्योंकि जनता को ऐसे आंकड़ों से क्या लेना देना होता है !
   आँधी तूफ़ान - प्राकृतिकआपदाओं  में ही आँधी तूफ़ान भी हैं जिनसे अक्सर अधिक से अधिक नुक्सान होने की संभावना बनी रहती है!जनधन की हानि होती है पेड़ पौधे गिरते हैं घर गिर जाते हैं इसलिए इससे भी बहुत नुक्सान होते देखा जाता है यदि इसका पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो तो बहुत बड़ा लाभ हो सकता है !       
भूकंप -
   भूकंपों के घटित होने से जनधन की भारी हानि होती है इसलिए समाज एवं सरकारों का इसके लिए चिंतित होना स्वाभाविक है !इसीलिए इससे संबंधित अध्ययनों अनुसंधान कार्यों में सरकारें सभी प्रकार से रूचि लेती हैं इससे संबंधित अनुसंधानों के लिए बहुत सारे वे लोग लगाए गए हैं जो अपने को इन विषयों का वैज्ञानिक मानते हैं ये क्रम दशकों से चलाया जा रहा है किंतु दुर्भाग्य से आजतक यह नहीं बताया जा सका है कि भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण क्या है ?पृथ्वी के अंदर संचित गैसों के दबाव के कारण भूमिगत प्लेटों के टकराने से भूकंप घटित होता है ! ऐसा बताया जा रहा है किंतु ये बात तब तक विश्वास करने योग्य नहीं लगती है जब तक कि इसके आधार पर अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाए जाएँ और वो सही एवं सटीक घटित न हो जाएँ !
     वस्तुतः जमीन के अंदर घटित होने वाली ऐसी किसी भी घटना को यदि देखा सुना या जिस किसी भी प्रकार से अनुभव किया गया होगा जिसके आधार पर यह कहा जा रहा है कि पृथ्वी के अंतर स्थित गैसों के दबाव के कारण प्लेटों के आपस में टकराने से भूकंप घटित होता  है! प्रकृति के जिन  लक्षणों का अध्ययन  या अनुसंधान आदि करके प्रकृति की जिस अवस्था के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है यदि यह सही है तो इसी के आधार पर भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान भी तो लगाया जा सकता है !
    भूकंपों का निर्माण प्रकृति की जिस किसी भी अवस्था में होता होगा उस प्राकृतिक अवस्था का निर्माण होने में भी तो कुछ समय लगता होगा उसके आधार पर पहले उस विषय से संबंधित पूर्वानुमान लगा लिए जाएँ क्योंकि  किसी भी विषय से संबंधित पूर्वानुमान सही एवं सटीक घटित हुए बिना भूकंप जैसी इतनी बड़ी घटना के विषय में यह कह देना कि भूकंप घटित होने का यह कारण हो सकता है !इस बात को विश्वास करने योग्य कैसे माना जा सकता है !
स्वास्थ्य -
      किसी क्षेत्र विशेष में एक ही समय पर एक ही प्रकार के रोग बहुत लोगों को होते देखे जाते हैं ऐसी परिस्थिति में कई शहर के शहर तवाह होते देखे जाते हैं !कई जगह अचानक बहुत बच्चों को अचानक रोगी होते या उनकी मृत्यु होते देखी जाती है!ऐसा होने का कारण क्या हो सकता है ये अंत तक समझ में नहीं आ पाता है !
     इसी प्रकार से कोई स्वस्थ व्यक्ति किसी समय विशेष में कुछ वर्षों के लिए अचानक अकारण अल्पसमय में ही बहुत बड़े रोग से ग्रसित हो जाता है!उन वर्षों में वह स्वदेश से विदेश तक बड़े से बड़े चिकित्सकों की मदद लेकर भी अपने को स्वस्थ नहीं कर पाता है !उस रोग का न कोई कारण समझ में आता है न लक्षण पता लगता है और न ही उसकी दवा पहचान में आ पाती है फिर भी एक निश्चित समय बीत जाने पर वह अपने आप से ही अचानक स्वस्थ होने लग जाता है !ऐसे समय में वो जो भी दवा ले रहा होता है या धर्म कर्म योगासन आदि कर रहा होता है अपने स्वस्थ होने का कारण वह उसे मानने लग जाता है !किंतु एक निश्चित समय में कुछ निश्चित वर्षों के लिए उसका अचानक अपने आप से बीमार होने लगना और एक निश्चित समय के बाद अपने आप से स्वस्थ होने लगने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है ये अंत तक पता नहीं लग पाता है !
    कई बार एक जैसे रोग से पीड़ित एक सौ रोगियों की चिकित्सा किसी एक तरह की प्रक्रिया से एक ही साथ एक ही चिकित्सक के द्वारा की जाती है जिसके परिणाम स्वरूप उसमें से कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं और कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं तथा कुछ मर जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में एक जैसे रोगियों पर एक जैसे चिकित्सकीय प्रयासों के परिणामों में इतना बड़ा अंतर  होने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है ?
     कई बार कुछ लोग एक कार बस या ट्रेन में एक साथ बैठे होते हैं और वह दुर्घटना का शिकार हो जाती है तो उसमें बैठे यात्रियों पर उस दुर्घटना का असर अलग अलग प्रकार का पड़ते देखा जाता है !कुछ मर जाते हैं कुछ घायल  होते हैं वहीँ कुछ ऐसे भी होते हैं जिन्हें खरोंच भी नहीं आती है ऐसे परस्पर विपरीत परिणामों के आने का कारण क्या हो सकता है ?
      पति पत्नी दोनों के स्वस्थ होने एवं संतान के लिए समस्त प्रयास करने पर भी कई बार कुछ निर्धारित वर्षों तक के लिए उन्हें कोई संतान नहीं हो पाती है इसके बाद उन्हीं कारणों और परिस्थितियों के रहते हुए भी अचानक उन्हें संतान लाभ हो जाता है इसका कारण क्या हो सकता है ?
    कई बार किसी के यहाँ एक निश्चित उम्र के बाद बच्चे जीवित रहते नहीं देखे जाते हैं भारत के एक फिल्मी अभिनेता के यहाँ ऐसे बहुत सारे उदाहरण देखे गए जब बच्चा दस वर्ष का हुआ तो पिता की मृत्यु हो गई इसीलिए उस अभिनेता ने अपना विवाह नहीं किया बाद में उन्होंने एक बच्चा गोद लिया कुछ महीनों में उनकी भी मृत्यु हो गई ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है ? 
    कभी कभी किसी क्षेत्र विशेष में कोई ऐसा रोग फैल जाता है जिसके कारण जिसके कारण बहुत सारे लोग या बच्चे एक साथ किसी एक प्रकार के रोग से पीड़ित हो जाते हैं किंतु वहाँ रहने वाला अधिकाँश वर्ग स्वस्थ रहता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठाना स्वाभाविक ही है कि एक क्षेत्र में एक प्रकार का प्राकृतिक वातावरण झेल रहे बहुत सारे लोगों या बच्चों में से कुछ लोगों का अस्वस्थ हो जाना और बाकी के  स्वस्थ बने रहने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है !
      डेंगू वायरस के नाम से प्रसिद्ध रोगों से प्रतिवर्ष काफी बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होते हैं जिसका कारण कुछ विशेष प्रकार के मच्छरों को माना जाता है !उन मच्छरों के विषय में बताया जाता है कि ये वायरस उन मच्छाओं के पास होता नहीं है अपितु वे किसी डेंगू वायरस से ग्रस्त किसी रोगी को काटते है उससे उन मच्छरों के पास पहुँच जाता है इसके बाद वे मच्छर जिसे जिसे काटते जाते हैं उसे उसे वो रोग होता जाता है !ऐसी परिस्थिति में इस रोग के जन्मदाता सीधे तौर पर मच्छर न होकर अपितु मनुष्य ही है जिनसे वो रोग मच्छरों को मिलता है जिसे मच्छर फैलाते रहते हैं !ऐसे रोगों के जन्म लेने का वास्तविक कारण कौन है ?
      सुदूरवर्ती  गाँवों  में या जंगलों में रहने वाले आदिवासियों के यहाँ भी सभी प्रकार के रोग होते हैं चोट चभेट लगती है बड़े बड़े घाव भी होते हैं !वहाँ चिकित्सा के संसाधन नहीं होते हैं टीकाकरण की व्यवस्था नहीं होती है उनका रहन सहन अकसर मच्छरों के बीच रहता है खान पान की पौष्टिकता का भी उतना ध्यान नहीं दिया जा पाता है !ऐसे लोग जब अस्वस्थ होते हैं या उनके बच्चे अस्वस्थ होते हैं तो सभी प्रकार के अभावों के बाद भी उन्हें स्वस्थ एवं सुदृढ़ शरीर वाला होते देखा जाता है वो भी रोग मुक्त होते देखे जाते हैं उनके भी घाव भरकर ठीक होते देखे जाते हैं !दूसरी ओर उत्तम खान पान रहन सहन एवं चिकित्सा के अत्यंत आधुनिक संसाधन होने के बाद भी रोग शहरों में रहने वाले अत्यंत सुविधा संपन्न वर्ग को भी होते देखे जाते हैं चोट लगने से घाव उन्हें भी होते हैं उनकी अच्छी चिकित्सा होने के बाद भी रोग मुक्ति मिलने में या घाव भरने में समय उन्हें भी लगता है!ऐसी परिस्थिति में दोनों प्रकार के रोगियों के साथ समान प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !मृत्यु की घटना जिनके साथ घटित होनी होती है वो दोनों परिस्थिति में जी रहे लोगों के साथ घटित होते देखी जाती है!ऐसी परिस्थिति में किसी के स्वस्थ एवं अस्वस्थ होने के विषय में वास्तविक कारण क्या हैं तथा किसी की मृत्यु होने के लिए  जिम्मेदार कारण उसका स्वास्थ्य ही होता है या कुछ और ?कई लोग पूर्णतः स्वस्थ रहकर भी अचानक मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं !ऐसी परिस्थितियाँ घटित होने के लिए वास्तविक जिम्मेदार कारण किसे माना जाए ?
    कई बार जिन परिस्थितियों में तनाव रहित एवं प्रसन्न रहते हुए कोई व्यक्ति जीवन के कई वर्ष बिता देता है इसके बाद कुछ वर्षों का समय ऐसा आता है कि उसी परिस्थिति में रहते हुए भी उन वर्षों में उसे भीषण तनाव रहने लगता है जबकि परिस्थितियाँ वही बनी रहती हैं उसके कुछ वर्ष बाद फिर उन्हीं परस्थितियों में वह तनावमुक्त होकर प्रसन्न रहने लगता है !उनकी मनोदशा में इस प्रकार के बदलाव आने के वास्तविक कारणों का  पता लगाया जाना चाहिए साथ ही ऐसी परिस्थितियों के पैदा होने के विषय में भी पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !
          जीवन से संबंधित कुछ और आवश्यक विषय -
      कई बार कोई व्यक्ति किसी नए मकान में रहने जाता है या पुराने मकान में ही पिछले  कुछ दशकों से सुख पूर्वक रह रहा होता है उसके बाद उसका व्यापार अचानक बिगड़ने लगता है परिवार के लोग रोगी होने लगते हैं घर में किसी का मन नहीं  लगता है लोग आपस में लड़ने झगड़ने लगते हैं सबकुछ बिगड़ता जाता है !अचानक आए ऐसे बदलाव का वास्तविक कारण क्या हो सकता है !
    कई बार जो काम या व्यापार कोई पिछले कुछ दशकों या पीढ़ियों से लगातार करता चला आ रहा होता है उसमें उसे अच्छा से अच्छा लाभ होते देखा जाता है !उसी परिस्थिति में उसी व्यापार में यदि उसे अचानक घाटा होने लगता है जिसके प्रत्यक्ष कारण उसे  समझ में नहीं आ रहे होते हैं वो पहले की अपेक्षा अधिक से अधिक परिश्रम करने एवं सतर्कता बरतने का प्रयास करता जाता है फिर भी एक निश्चित समय (वर्षों) तक कोई सुधार नहीं होता है इसके बाद फिर अचानक लाभ होने लगता है!इसका कारण क्या हो सकता है ?
     राजनीति आदि में कोई व्यक्ति बड़े बड़े प्रयास करता है तब उसे सफलता नहीं मिलती है इसके बाद बिना प्रयास किए हुए ही अचानक उसे कोई बड़ा पद मिल जाता है जिसके लिए उसने कभी कोई प्रयास नहीं किया होता है !इसका कारण क्या हो सकता है ?
     कई बार कोई पति-पत्नी, प्रेमी-प्रेमिका, या कोई दो मित्र आपस में एक दूसरे से इतना अधिक स्नेह करते देखे जाते हैं कि दोनों का एक दूसरे के बिना रहना मुश्किल हो जाता है !कुछ वर्ष बाद उन्हीं दोनों का उन्हीं परिस्थितियों में एक दूसरे के साथ रहना कठिन हो जाता है !कई बार दोनों एक दूसरे के शत्रु बन जाते हैं एक दूसरे की हत्या करने जैसा अक्षम्य अपराध कर बैठते हैं ऐसे बदलाव का वास्तविक कारण क्या हो सकता है ?
   कोई विद्यार्थी जिस विषय को पढ़ने में एक समयसीमा तक सफल होते देखा जाता है उसी से कुछ वर्षों के लिए उसकी अरुचि हो जाती है उसके बाद उसे फिर उसी विषय में रूचि होने लग जाती है इसका वास्तविक कारण क्या हो सकता है ? 
     कोई सीधा सादा सज्जन परोपकारी पुरुष  अचानक कुछ वर्षों के लिए अपराधी हो जाता है उसके बाद फिर उसमें वही पुराने संस्कार जग जाते हैं और वो फिर अपराध से विमुख होकर लोकोपकार में लग जाता है !इसका वास्तविक कारण क्या है ?
      इसी प्रकार की दुविधा जीवन के अनेकों क्षेत्रों परिस्थितियों आदि में देखी जाती है जिसका वास्तविक कारण अंत तक पता नहीं लग पाता है क्यों ? 
   इस प्रकार से ये जीवन से संबंधित कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिनके घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों की खोज के लिए अनुसंधान होने चाहिए ताकि उनका समाधान निकालना आसान हो सके एवं ऐसी घटनाओं का यथा संभव पूर्वानुमान निकालने का प्रयास किया जाना चाहिए ताकि ऐसी विपरीत परिस्थितियाँ पैदा होने से पहले उनसे संबंधित बचाव के लिए प्रयास करने हेतु उचित समय मिल सके !
     वैदिकविधा में ऐसे प्रश्नों के उत्तरखोजने के लिए (ज्योतिष योग आयुर्वेद शकुन सामुद्रिक वास्तु वर्णविज्ञान आदि) अनेकों विधाएँ हैं ! उस युग में इन्हीं वैज्ञानिक पद्धतियों से ऐसी परिस्थितियों के पैदा होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारणों को खोजने के लिए प्रयास किए जाते थे जिनसे समाज भी संतुष्ट रहता था यही कारण है कि ऐसे विषयों का आस्तित्व अभी तक किसी न किसी रूप में समाज के अधिकाँश वर्ग में बना हुआ है! इसकी विश्वसनीयता आज तक कम न होने का कारण इन विषयों की वैज्ञानिकता ही है !संभवतः यही कारण है कि विश्व के लोग भारत के वैदिक विज्ञान की प्रमाणिकता का लोहा मानते थे !
      भारत की प्राचीन पूर्वानुमान विधा का प्रभाव -
       ईरानियों आदि अनेकों संस्कृतियों से संबंध रखने वाले विदेशियों ने ऐसे विषयों की वैज्ञानिकप्रमाणिकता समझकर ही इनका अध्ययन किया इनके अनुसंधानों से जुड़े एवं अपनी अपनी भाषाओँ में ऐसे भारतीयवैदिक विज्ञान का अनुसंधान करवाकर उन लोगों ने अपने अपने यहाँ इन विषयों का पठन पाठन प्रारंभ करवाया ! ईरानी विद्वान अल-बरूनी ने 'किताब-उल-हिंद' नाम से अरबी भाषा में अत्यंत खोजपूर्ण ग्रंथ लिखा था ! 'एडवर्डसीसखाउ' जैसे अनेकों विदेशी विद्वानों ने अपनी अपनी भाषा में वैदिकविज्ञान से संबंधित ग्रंथों का अनुवाद किया है विस्तार भय से सबके नाम गिना पाना यहाँ संभव नहीं है !इन्हीं विषयों के कारण चीनी विद्वान ह्वेनत्सांग ने अपने साहित्य में ब्राह्मण जाति का ‘सर्वाधिक पवित्र एवं सम्मानित जाति‘ के रूप में उल्लेख किया है !
      परतंत्रता के समय में अनेकों असहिष्णु प्रशासकों ने हमारे वैदिक विज्ञान के साथ भीषण अन्याय किया वे जो कुछ या जितना भी लूटकर ले जाने में सक्षम हुए उतना तो ले गए और जो नहीं ले जा पाए उसी अपनी समझ में संपूर्ण रूप से नष्ट करते जा रहे थे !इसके बाद अनेकों प्रकार की यातनाएँ सहकर भी हमारे पुण्यपुरुष पूर्वजों ने अपने प्राचीन वैदिक विज्ञान को यथा संभव बचाकर हम लोगों के लिए रखा था !उन विषयों को संग्रहीत करके उन पर अत्यंत आत्मीयता पूर्वक अनुसंधान करने की आवश्यकता थी !
      जिस प्रकार से किसी के घर का कोई अपना सदस्य लुटेरों के गिरोह के द्वारा मारा पीटा गया हो इसके बाद उसी घायल अवस्था में जिस किसी भी प्रकार से यदि जीवित बचाकर अपने घर में अत्यंत आशा से आया हो फिर घर वाले उससे उसका पता पूछने लगें तो उसे जिस प्रकार की अनुभूति होगी !
     उसी प्रकार का अन्याय भारतीय प्राचीन विज्ञान के साथ विदेशी आक्रांताओं ने भी किया है बाद में स्वदेशियों ने भी अपनेपन के साथ अनुसंधानपूर्वक उसके विलुप्त हुए अंशों के अन्वेषण में रूचि नहीं ली !अभी हाल के कुछ दशकों में कुछ सरकारों ने प्राचीन वैदिक विज्ञान के उत्थान के लिए प्रयास किया है रूचि भी ली किंतु सरकार की पहुँच उन्हीं लोगों तक पहुँच पाई जो संस्कृत भाषा से तो जुड़े थे किंतु वैदिकविज्ञान से संबंधित विषयों में उनकी कभी कोई रूचि नहीं दिखाई पड़ी और न ही उनके द्वारा ऐसे कभी कोई अनुसंधान ही किए गए जिनसे वैदिक विज्ञान प्रमाणित रूप से आधुनिक विज्ञान के समकक्ष समासीन किया जा सके !यहाँ तक कि वेदों का सस्वर पाठ कर लेने के कारण जिन्हें वेदों का विद्वान मानकर उन्हें सरकारों के द्वारा अत्यंत  उच्च पद प्रतिष्ठा प्रदान की गई !किंतु उनमें से ऐसे विद्वानों की संख्या अत्यंत कम रही जिन्होंने वेदविज्ञान  को विज्ञान भावना से पढ़ा हो या कोई अनुसंधान किया हो तथा किसी विषय में कोई वैज्ञानिक अनुसंधान प्रस्तुत कर पाने में कोई सफलता हासिल की हो !जिन्होंने की है उन प्रणम्य पुरुषों की संख्या अत्यंत कम है !
      इसके अतिरिक्त सरकारों के द्वारा प्रेरित होकर संस्कृत भाषा या वेदपाठ से संबंधित विद्वानों ने इस दिशा में जो प्रयास भी किए उनमें इधर उधर से ले देकर कुछ शोधप्रबंध बनवाए और सरकारों के संग्रहालयों में सजाकर रखवा दिए !
    ऐसी परिस्थितियों में अंदर और बाहर सभी ओर से विपरीत व्यवहार से व्यथित 'वैदिकविज्ञान'अपने आस्तित्व को बनाए एवं बचाए रखने के लिए किसी न किसी रूप में निरंतर संघर्षरत रहा है !'वैदिकविज्ञान' के वास्तविक वैज्ञानिकों के पास अनुसंधान के अलावा सरकार तक पहुँच बनाने का न तो समय होता है और न ही वैसा स्वभाव ! इसलिए उन्होंने निरंतर अपने स्तर से अत्यंत उत्तम अनुसंधान किए हैं जिन्हें समाज के लाभ योग्य बनाने के लिए आधुनिक संसाधनों की आवश्यकता है !
      वैदिकविज्ञान से संबंधित वास्तविक अनुसंधान करने वाले विद्वान की अपनी इन्हीं मजबूरियों के कारण ओर आधुनिक विज्ञान  से प्रभावित लोग इस विश्ववंद्य वैदिकविज्ञान को अंधविश्वास कहने और इसी रूप में उसे प्रचारित करने लगे !उन्हें यह भी सोचना चाहिए था कि जब आधुनिक विज्ञान के पुरखों तक का कहीं अता  पता नहीं था उसके लाखों वर्ष पूर्व वैदिकविज्ञान अपने को प्रमाणित विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित कर चुका था !उस समय ग्रहण जैसी सुदूर आकाशवर्ती घटनाओं का सैकड़ों वर्ष पहले सटीक पूर्वानुमान लगा पाने में अपना सर्वाधिकारसुरक्षित(कॉपीराइट) कर चुका था ! 
     यह सब कुछ मेरे यहाँ लिखने का तात्पर्य केवल यह है कि जो लोग प्राचीन वैदिकविज्ञान को अंध विश्वास मानते हैं वे मानते रहें उस पर हमें उनसे कोई आपत्ति न है और न ही होनी चाहिए किंतु वे जिस विषय को  विज्ञान मानते हों वो विषय वास्तव में विज्ञान है इसे सिद्ध करके दिखाया भी तो जाना चाहिए केवल कह देने से या काल्पनिक कथा कहानियाँ परोस देने ये विज्ञान कैसे सिद्ध हो जाता है !
      ऐसे जिस किसी भी विज्ञान के द्वारा कम से कम जीवन से संबंधित शंकाओं का समाधान तो किया जाना चाहिए !इसके साथ ही साथ जीवन से संबंधित घटनाओं का भी पूर्वानुमान भी तो समाज को उपलब्ध करवाया जाना चाहिए ! जीवन से संबंधित पूर्वानुमान जानना समाज की आवश्यक आवश्यकता है जिसकी पूर्ति के लिए समाज अंधविश्वास फैलाने वालों के द्वारा ठगा जाता है !यदि यह सच है तो वैज्ञानिक लोग ऐसा कोई विज्ञान विकसित क्यों नहीं कर देते हैं जो समाज के भविष्यज्ञान की जिज्ञासा को शांत कर सके !
     जीवन से संबंधित पूर्वानुमान- प्रकृति से संबंधित पूर्वानुमान आवश्यक हैं तो जीवन से संबंधित पूर्वानिमान भी तो आवश्यक हैं !जीवन ही नहीं रहेगा तो प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमानों का कोई करेगा भी क्या ?

       जीवन से संबंधित पूर्वानुमान पता लगा पाना यदि आधुनिकविज्ञान के द्वारा संभव होता तो जीवन से संबंधित अनेकों समस्याओं के विषय में समाधान आसानी से निकाले जा सकते थे चिकित्सा जैसे पवित्र विज्ञान को कलंकित होने से बचाया जा सकता था !प्राचीन भारत में वैद्यों के सांनिध्य में रोगियों की चिकित्सा  तो की जाती थी किंतु वैद्यों के यहाँ रहते हुए रोगी की मृत्यु होते नहीं देखी जाती थी!क्योंकि वैद्य तो चिकित्सा के लिए जाने जाते थे !आज अस्पतालों में न केवल शवगृह बनाए जाते हैं अपितु मृत्यु के कुछ क्षण पहले तक रोगी की चिकित्सा की जाती है!कोई व्यक्ति किसी दुर्घटना में तो अचानक मरते  देखा जाता है किंतु स्वाभाविकमृत्यु में ऐसा नहीं होता है क्योंकि स्वाभाविकमृत्यु क्रमिक रूप से धीरे धीरे होती है !उसके लक्षण पहले से शरीर में उभरने लगते हैं जिनके आधार पर पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !इसीप्रकार से अचानक दुर्घटना में होने वाली मृत्यु के भी कुछ चिन्ह होते हैं मानसिकतनाव बढ़ने घटने के चिन्ह होते हैं जिनके आधार पर पूर्वानुमान लगाकर उन्हें बचाया जा सकता था !संभवतः यही कारण था कि प्राचीन काल में आत्महत्या जैसी घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती थीं किंतु वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था में ऐसी परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने की कोई व्यवस्था नहीं दिखाई पड़ती है !  सभी प्रकार के संबंधों के बनने के विषय में पूर्वानुमान लगाना यदि संभव हो पावे तो प्राचीन भारत की तरह आज भी बड़े बड़े संयुक्त परिवारों में रहना संभव हो सकता था!यही कारण है कि आज तो पति - पत्नी के आपसी संबंध   भी एक दूसरे पर बोझ बनते जा रहे हैं !प्राचीन भारत में संबंधों के विषय में पूर्वानुमान लगाने की परंपरा थी यही कारण है कि तब तलाक नहीं होते थे इसीलिए 'तलाक' जैसा  कोई शब्द भी नहीं बना है!
      इस प्रकार से जीवन के और भी कई आवश्यक पक्ष हैं जिनका पूर्वानुमान पता लगाकर किसी के जीवन में बदलाव लाए जा सकते हैं उसे विपरीत परिस्थितियों से बचने में मदद पहुँचाई जा सकती है जिससे जीवन से संबंधित कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती थीं !किंतु आधुनिक विज्ञान से संबंधित चिंतकों ने जीवन से संबंधित पूर्वानुमानों को पता लगाने की आवश्यकता ही नहीं समझी और यदि समझी भी हो तो उस विषय में खुद कुछ कर नहीं पाए और भारत के प्राचीन विज्ञान को अंधविश्वास बता दिया गया !इस प्रकार से  आधुनिक सोच ने जीवन संबंधी पूर्वानुमान के विषय में ताला लगा कर समाज को पाखंडियों के पास भटकने के लिए छोड़ दिया गया है !समाज को आवश्यकता है तभी तो पाखंडियों के द्वारा छल प्रपंच के अनेकों उदाहरण सामने आने पर भी समाज को जीवन से संबंधित पूर्वानुमान जानने के लिए इन्हीं के चक्करों में भटकना पड़ता है !क्योंकि विज्ञान जगत उन्हें किसी भी प्रकार का विकल्प उपलब्ध करवाने में असफल या उदासीन रहा है !
      मौसम विज्ञान के पूर्वानुमान से संबंधित कुछ चर्चाएँ की भी जा रही हैं किंतु जीवन के विषय में तो उधर कोई चिंतन ही नहीं सुनाई पड़  रहा है !जबकि जीवन सुरक्षित रहेगा तभी तो मौसम विज्ञान काम आ पाएगा ! जीवन से संबंधित घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए इससे संबंधित कोई रडार उपग्रह आदि मदद नहीं कर सकता इसलिए इस विषय की उपयोगिता को नकार दिया जाना उचित नहीं है !ये विषय भी मौसम विज्ञान के पूर्वानुमान की अपेक्षा कम आवश्यक नहीं है! इसलिए जीवन से संबंधित पूर्वानुमान भी तो उपलब्ध करवाए जाने चाहिए उसके लिए किसी भी विज्ञान को माध्यम क्यों न बनाना पड़े !
 मौसम संबंधी पूर्वानुमान और घटनाएँ -
       आँधी तूफान सूखा वर्षा बाढ़ आदि घटनाएँ तो कभी कुछ कम तो कभी कुछ अधिक प्रत्येकवर्ष में घटित होती रहती हैं !ऐसा कभी किसी क्षेत्र में होता है तो कभी किसी दूसरे क्षेत्र में होते देखा जाता है इसी प्रकार से किसी वर्ष में एक समय में तो किसी वर्ष में किसी दूसरे समय में ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !कुलमिलाकर ऋतुएँ अपने क्रम से आती जाती रहती हैं उनका असर भी प्रत्येक वर्ष होता ही है कभी कहीं कुछ काम होता है और कभी कहीं कुछ अधिक होते देखा जाता है !भविष्यवक्ताओं को अक्सर देखा जाता है कि ऐसी परिस्थिति में वो जब जैसी ऋतु आ जाती है और जब मौसम संबंधी जैसी जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं उसके पीछे पीछे वे वैसी वैसी भविष्यवाणियाँ साथ साथ करते चलते हैं !"कल पानी बरसा और आज भी बादल हैं तो स्वाभाविक है आज भी बारिश हो सकती है ये अनुमान आम आदमी भी लगा लेता है इसी बात को वो भविष्यवाणी के नाम पर बता देते हैं !यदि किसी कारण से  आज पानी नहीं बरसा और खूब धूप खिल जाए तो वो कल से धूप खिलने और तापमान बढ़ने की भविष्यवाणियाँ करते देखे जाते हैं !ऐसा वर्षा सूखा आँधी तूफ़ान आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं में घटित होते देखा जाता है !
      ऐसी परिस्थिति में दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी घटनाओं की भविष्यवाणियों का घटनाओं के साथ मिलान करने से अधिकाँश मामलों में भविष्यवाणी जैसा कभी कुछ लगता नहीं है केवल दकियानूसी बातें ही होती हैं! उसमें असर भूतकालिक घटनाओं की चर्चा सुनाई पड़ रही होती है !कहाँ कितने सेंटीमीटर पानी बरसा या कहाँ कैसी आँधी आयी आदि !कहाँ किस प्रकार की प्राकृतिक घटना ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है इसकी चर्चाएँ खूब दिखाई सुनाई पड़ती हैं इसी में मिला जुलाकर कर कुछ भविष्य संबंधी बातें भी बोल दी जाती हैं!जिनके सही होने की किसी की कोई जिम्मेदारी नहीं होती हैं वो प्रायः होती ही गलत एवं निराधार हैं जो केवल बोलने के लिए बोली जा रही होती हैं !ऐसी भविष्य संबंधी बातें इतनी हलकी होती हैं जिनसे किसी के जीवन पर कोई विशेष अधिक प्रभाव भी नहीं पड़ता है इसलिए वो ऐसी किसी बात पर ध्यान भी नहीं देना चाहते हैं और न ही देते हैं !ऐसी परिस्थिति में भविष्यवाणी करने वालों की खानापूर्ति भी हो जाती है और उससे किसी का कोई विशेष लेना देना भी नहीं होता है इस प्रकार से मौसम भविष्य बताने के नाम पर अभी तक तो प्रायः केवल खानापूर्ति ही की जा रही है !
      मौसम संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ तो प्रायः गलत होने के लिए ही की जाती हैं !वैसे भी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियों का घटनाओं के साथ मिलान करते रहने से कुछ समय में जो सच्चाई सामने आती है वो इस बात को समझने के लिए पर्याप्त होती है कि ऐसी भविष्यवाणियों का कोई विश्वसनीय आधार नहीं है !इसीलिए उनके सही होने की अपेक्षा गलत होने की संभावना हमेंशा अधिक बनी रहती है !इसीलिए मैं निकट भविष्य से संबंधित वर्तमान दशक की कुछ घटनाएँ उद्धृत करता हूँ जिनसे व्यापक जनधन हानि हुई है इसीलिए वे खूब चर्चित भी रही हैं किंतु उनके विषय में कभी कुछ भविष्यवाणी की गई हो इसके प्रमाण नहीं मिलते हैं -

 सन 2010 से 2020 के बीच में घटित हुई कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाएँ -
     प्रकृति में प्रायः  छोटी मोटी घटनाएँ तो घटित होती ही रहती हैं अक्सर वे ऋतुओं से संबंधित ही होती हैं इसलिए उनसे संबंधित जो भविष्यवाणियाँ की जाती हैं वे सही निकलें या न निकलें उनसे समाज को बहुत बड़ा फर्क नहीं पड़ता है जैसे सर्दी की ऋतु में सर्दी कुछ कम पड़ सकती है या कुछ अधिक किंतु इतना तो निश्चित ही है कि गर्मी नहीं पड़ने लगेगी !ऐसी परिस्थिति में सर्दी की ऋतु में सर्दी होने से संबंधित भविष्यवाणियाँ किसी भी प्रकार से गलत नहीं मानी जा सकती हैं लोग मानते भी नहीं हैं और न ही उधर ध्यान  ही देते हैं किंतु जब कुछ ऐसी विशेष घटनाएँ घटित होती हैं जो कुछ अलग हटकर होती हैं उनकी ओर समाज का ध्यान भी जाता है या फिर जिन   घटनाओं में जन धन की हानि विशेष अधिक होते देखी जाती है उधर समाज का ध्यान जाता है !मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने वाले लोगों के भविष्य विज्ञान की ऐसे समय ही परीक्षा हो पाती है कि वे जिसे भविष्य विज्ञान मान रहे हैं वो भविष्य का पूर्वानुमान लगाने में कितना सक्षम है !इसी दृष्टि से सन 2010 से 2019  के बीच में घटित हुई कुछ बड़ी प्राकृतिक घटनाओं का उदाहरण लेकर यदि देखा जाए तो इस बात को समझने में सुविधा होगी कि हम जिसे मौसम संबंधी भविष्य को जानने वाला विज्ञान मानते हैं वो वास्तव में विज्ञान है क्या ?क्योंकि तालियों के बहुत बड़े गुच्छे में तालियाँ तो सभी होती हैं और सभी तालियाँ ताला खोलने की क्षमता रखती हैं ! किंतु जो ताला हम खोलना चाह रहे हैं वो जिस ताली से खुल जाए उसकी ताली मानी जानी चाहिए !यदि ऐसा न हो तो केवल ताली होने के कारण उसे उस ताले की ताली कैसे माना जा सकता  है !ऐसे ही मौसमविज्ञान  कहलाने की अधिकारी तो वही ज्ञानपद्धति है जो मौसम संबंधी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हो इस दृष्टि से  संबंधी कुछ घटनाएँ आपके समक्ष प्रस्तुत की जा रही हैं !आप स्वयं अनुभव कीजिए 
    प्रस्तुत हैं कुछ  सन 2010 से 2019  के बीच में घटित हुई कुछ प्राकृतिक घटनाएँ -  
    
   केदारनाथ जी में आया भीषण सैलाव -   16 जून 2013 में केदारनाथ जी में भीषण वर्षा का सैलाव आया हजारों लोग मारे गए किंतु इसका पूर्वानुमान पहले से बताया गया होता तो जनधन !की हानि को घटाया जा सकता था किंतु ऐसा नहीं हो सका ! बाद में कारण बताते हुए कहा गया कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ घटित हो रही हैं !
       भारत में भीषण हिंसक तूफान- 
  21 अप्रैल 2015 को बिहार और नेपाल में में भीषण तूफ़ान आया था उससे  जनधन की भारी हानि हुई थी किंतु इसका कहीं कोई पूर्वानुमान किसी भी रूप में घोषित नहीं किया जा सका था ! 
    2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी ! 
   17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था ! 



    इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही  की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी  बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है किंतु ऐसी कोई रिसर्च हुई भी है तो उसके क्या परिणाम निकले यह भी तो समाज को बताया जाना चाहिए था किंतु ऐसा नहीं हुआ !
      इसी विषय में दूसरी बड़ी बात यह है कि आँधी तूफानों का पूर्वानुमान बता पाने में असमर्थ रहे ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं ने ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं नेअंत में  7 और 8-मई -2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी थी उस पर सरकारों ने भरोसा करके  दिल्ली के आसपास के सभी स्कूल कालेज बंद करवा  दिए गए किंतु उस दिन हवा का झोंका भी नहीं आया !
        अंत में उनके द्वारा की गई भविष्यवाणी भविष्यवाणी मौसम संबंधी भविष्यवाणी भविष्यवाणी गलत निकल जाने के बाद उन्हीं भविष्यवक्ताओं को स्वीकार करना पड़ा कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण घटित होने वाले ऐसे आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान लगाना अत्यंत कठिन क्या असंभव सा ही है इस लाचारी को किसी समाचार पत्र में छापा गया था जिसकी हेडिंग थी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"चूँकि भविष्यवक्ताओं के तीर तुक्के इस पर नहीं चले इसका मतलब उनकी अयोग्यता नहीं अपितु "चक्रवात चुपके चुपके से आते हैं" ऐसा लिखा गया !
  मद्रास में भीषण बाढ़ -
    सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ के कारण त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !मौसम भविष्यवक्ताओं ने वर्षा होने की संभावनाओं को दो दो दिन आगे बढ़ाते बढ़ाते मद्रास को बाढ़ तक पहुँचा दिया था इसके विषय में कभी कोई स्पष्ट भविष्य वाणी नहीं की गई कि वर्षा वर्षा वर्षा आखिर होगी किस तारीख तक !
  केरल की भीषण बाढ़ - 
      3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग ने अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की थी किंतु उनकी भविष्यवाणी के विपरीत 7 अगस्त से ही केरल में भीषण बरसात शुरू हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा !जिसकी कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी यह बात केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार की थी !बाद में  सरकारी मौसम भविष्यवक्ता ने एक टेलीवीजन चैनल के इंटरव्यू में कहा कि "केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसीलिए इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका  वस्तुतः इसका कारण जलवायु परिवर्तन था !" 
 अधिक वर्षा के विषय में - इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सरकार के मौसमभविष्यवक्ताओं  ने अपनी भूमिका का निर्वाह क्यों नहीं किया ?प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाई गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
     वर्षा संबंधी गलतभविष्य वाणियों से होने वाली हानियाँ -
        कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के 2015 नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था !   


वायु प्रदूषण बढ़ने की घटना -   

       21 दिसंबर से 25 दिसंबर 2018 तक वायु प्रदूषण इतना अधिक बढ़ा था कि इसे वायु प्रदूषण का आपातकाल कहा गया था किंतु इसके विषय में पहले कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !

      अधिक गरमी पड़ने के विषय  में -
      सन 2016 के अप्रैल मई में पश्चिमी भारत भीषण गर्मी से दहक रहा था कुएँ तालाब नदियाँ आदि उस वर्ष अप्रत्याशित रूप से सूखते जा रहे थे !पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई थी इतिहार में पहली बार ट्रेन से लातूर पानी भेजा गया था !इसी गर्मी में तीसों हजार जगहों पर अकारण आग लगने की घटनाएँ घटित होते देखी गई थीं !आग लगने की घटनाओं से तंग आकर बिहार सरकार ने बिहार बासियों को सलाह दी थी आप दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने से बचें !इस प्रकार की परिस्थिति इसके पहले तो कभी नहीं हुई थी इस वर्ष में कुछ ऐसा विशेष था जिस कारण इस वर्ष ऐसा कुछ विशेष घटित हुआ !

       इस पर मौसम भविष्यवक्ताओं ने पहले कभी कोई  भविष्यवाणी नहीं की थी और जब घटनाएँ घटित हो रही थीं तब किसी के पूछने पर ये लोग केवल इतना बता पाते थे कि ग्लोबलवार्मिंग के कारण ऐसा हो रहा है !समाज के प्रश्नों से तंग आकर ऐसे लोगों को अंत में बोलना पड़ा कि ये घटनाएँ अप्रत्याशित हैं हम इसपर रिसर्च करेंगे !किंतु मौसम भविष्यवक्ताओं के पास ऐसा कोई आधार तो है नहीं जिसके आधार पर रिसर्च की जा सके !इसलिए उसके बाद ऐसी किसी रिसर्च के विषय में कभी कुछ सुनने को मिला भी नहीं उस रिसर्च के परिणाम क्या निकले ये तो बाद की बात है रिसर्च भी की गई या नहीं !इस पर भी कभी कोई चर्चा नहीं सुनी गई ! 

      विशेष बात यह है कि जिस समय पश्चिम भारत में  गर्मी बढ़ने ,आग लगने से तथा पानी के लिए त्राहि त्राहि मची हुई थी उसी समय पूर्वी भारत के  असम आदि क्षेत्रों में भीषण वर्षा और बाढ़ के कारण जनजीवन त्रस्त हो रहा था !

      ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा पश्चिम की गर्मी का कारण ग्लोबलवार्मिंग को बताया गया था उन्हीं के द्वारा उसी समय हो रही पूर्व की बारिस और भीषण बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा था !

     भीषण सर्दी पड़ने के विषय में -
   वर्ष 2018-19 की सर्दी में भीषण बर्फबारी से तंग आकर अमेरिका के राष्ट्रपति ने मौसम भविष्यवक्ताओं को ललकारा था कि कहाँ गई तुम्हारी तथाकथित ग्लोबल वार्मिंग !इस विषय में किसी के द्वारा कोई जवाब नहीं दिया गया था !

    भूकंप के  विषय में -
       25 अप्रैल 2015 सुबह 11:56 स्थानीय समय में भूकंप आया जिसका केंद्र भले भारत न रहा हो किंतु जन धन की हानि भारत में भी कम नहीं हुई थी !इसके विषय में किसी भी प्रकार की कोई भविष्यवाणी तो छोड़िए आशंका तक नहीं व्यक्त की गई थी !

       इसी प्रकार की और भी बहुत सारी घटनाएँ घटित होती रहती हैं जिनके घटित होने के बाद में उसी प्रकार की और भी बहुत सारी भविष्यवाणियाँ मौसम भविष्यवक्ता लोग करते देखे जाते हैं जो निराधार गलत एवं झूठी निकल जाती हैं !क्योंकि उनका कोई आधार ही नहीं होता है ! 
    इसके अलावा भी बहुत सारी छोटी बड़ी घटनाएँ तो अक्सर घटित होती रहती हैं सबका उद्धृत किया जाना यहाँ संभव नहीं है चूँकि बड़ी घटनाओं के विषय में तो सभी चिंतित होते हैं इसलिए उधर सबका ध्यान जाता है !इसलिए ऐसे समय में मौसम भविष्यवक्ताओं  की सच्चाई सामने आ  ही जाती है !
      इसके अतिरिक्त मुख्य बात एक और है कि भारत में सरकार के द्वारा जून से सितंबर तक वर्षा होने का समय माना जाता है इसके विषय में प्रतिवर्ष मौसम भविष्यवक्ताओं को दीर्घावधि पूर्वानुमान बताना होता है !इन चार पाँच महीने पहले का पूर्वानुमान एक साथ बताने का आजतक साहस नहीं किया जा सका !इसीलिए अप्रैल से लेकर अगस्त तक तीन बार में
दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान बताया जाता है !फिर भी इनके सही होने का अनुपात इतना कम है कि इन्हें सिद्धांततः भविष्यवाणी नहीं माना जा सकता !
   
मानसून आने की तारीख -

     कोई दुकानदार बनियाँ अपनी दुकानपर जब खाली बैठा होता है तो उसे झेंप लगती है कि कोई क्या कहेगा कि इनके पास ग्राहक नहीं हैं इसलिए वो अपनी तराजू पर बाँट रखकर झूठे ही तौलता रहता है ताकि उसे कोई खाली न समझे! इसी प्रकार से मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती जा रही हैं जिसके लिए वे अपनी झेंप मिटाने के लिए कुछ न कुछ बदलाव करके अपनी सक्रियता दर्ज करवाते रहते हैं !
     इसी प्रक्रिया के तहत अभी तक मानसून आने जाने की तारीखें बताते रहे कि किस तारीख को आएगा और किस तारीख को जाएगा !इस प्रकार से मानसून आने की तारीख हर वर्ष बताई जाती है यह बात और है कि उस तारीख में शायद ही कभी मानसून आता हो बाक़ी वो गलत होने के लिए ही बोली जाती है ऐसा होना बहुत कम वर्षों में ही संभव हो पाया है जब वो सही भी हुई हो !इसके बाद भी जितने विश्वास से  भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून आने की तारीख़ बताई जा रही होती  है उसे सुनकर ऐसा लगता है जरूर मानसून तारीख देखकर ही आता होगा !वैसे तो इसकी तारीख मौसमी घटनाओं ने तो कभी किसी को बतायी नहीं थी ये लोग अपने आप से ही बताने लगे थे !
     इतने वर्ष लगातार तारीखें गलत होने के बाद अब  भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून आने जाने की तारीखें बदलने की बातें की जा रही हैं यह दिखाने के प्रयास किए जा रहे हैं कि 78 वर्ष बीत जाने के कारण यह अंतर आने लगा है जबकि यह सच नहीं है क्योंकि कभी भी किसी एक निश्चित तारीख पर मानसून नहीं आया किन्हीं भी पाँच वर्षों को उदाहरण के लिए देखा जा सकता है !ऐसी परिस्थिति में ये कहने के बजाए कि हम मानसून आने की सही तारीख नहीं बता सके या जो बताते हैं वो गलत हो जाती हैं !इसके लिए आवश्यकता है प्रत्येकवर्ष के लिए मानसून आने के लिए अलग अलग सही सही तारीखें घोषित करने की क्योंकि ये प्रकृति है परिवर्तन तो इसमें  होते ही रहेंगे!हमेंशा से होते आए हैं उन परिवर्तनों को न समझ पाने के कारण कहा जा रहा है कि पिछले कई वर्षों से मानसून आने जाने की दोनों तारीखों को मॉनसून ने दगा दी है। ये कितना उचित है !    
     ऐसी परिस्थिति में
प्रत्येक वर्ष मानसून आने  और जाने की सही सही तारीखें बताने में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं के फेफड़े फूलने लगते हैं फिर भी वे तारीखें लगभग प्रत्येक वर्ष गलत निकल जाती हैं ! ऐसी परिस्थिति में हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जलवायुपरिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी परिकल्पनाएँ इन्हीं लोगों के द्वारा की गई हैं जिनके विषय में बताया जा रहा है कि ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के कारण भविष्य में ग्लेशियर पिघलने लगेंगे, सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी बिनाशकारी मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने की भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं !आज के  सैकड़ों वर्ष बाद


द्वारा दोचार महीने पहले के मौसम संबंधी सही पूर्वानुमान बता पाना संभव नहीं हो  पाता है उन्हीं  मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा यह बताया जा रहा है कि  घटित होने वाली ऐसी बातों पर कितना विश्वास किया जाना चाहिए !
     





मौसम विज्ञान की समझ के  अभाव में       

     बादलों की जासूसी करना मौसमविज्ञान नहीं है !  
        हमें याद रखना होगा कि जासूसी के बलपर हम किसी विषय को विज्ञान नहीं सिद्ध कर सकते हैं !जासूसी तो जासूसी है भले वह उपग्रहों या राडारों से ही क्यों न की जाए !जासूसी करके हम किसी व्यक्ति की गतिविधियों पर निगरानी रख सकते हैं किंतु उस व्यक्ति का अगला कदम क्या होगा इसके विषय में किसी भी जासूस को कुछ भी पता नहीं होता वो केवल तीर तुक्के भिड़ाया करता है !यही स्थिति मौसम भविष्यवक्ताओं की है !
       ऐसा माना जा सकता है कि राजनैतिक पत्रकारों की तरह ही मौसमी पत्रकार भी होते हैं !जिस प्रकार से बड़े बड़े राजनैतिक पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी में संसद भवन के आस पास डेरा डाले रहते हैं वहीँ जगह जगह अपने कैमरे फिट किए होते हैं वहीँ से नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखा करते हैं नेता लोगों के हिलने डुलने,बोलने बताने हँसने मुस्कुराने आने जाने आदि की रिकार्डिंग किया करते हैं उन्हीं के आधार पर समाचार तैयार करते रहते हैं !इसी के आधार पर उनकी गतिविधियों को देख देखकर उनके विषय में नए नए अनुमान लगाया करते हैं !वो सही हों गलत हों इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती है !उनकी गाड़ी जिस रोड की ओर जाते दिखती है उस रोड पर जो जो नेता रहते हैं उसका अनुमान लगाकर वो अनुमान लगाने लगते हैं कि संभवतः ये उनके यहाँ जाएँगे !आदि आदि !कुछ पत्रकार कुछ नेताओं को या क्षेत्रों को चुन लेते हैं वे उनकी गतिविधियों पर नजर रखते हैं और उनके विषय में अनुमान लगाया करते हैं !पत्रकार लोग अपनी इस प्रकार की संभावनाओं आशंकाओं को भविष्यवाणी कहकर नहीं प्रस्तुत  करते हैं इसलिए उनके अनुमानों के गलत होने को कोई गंभीरता से लेता भी नहीं है ! वे समाचारों की दृष्टि से कोई ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी अफवाहें भी नहीं फैला रहे होते हैं ! जो भविष्य में समाज के लिए बहुत दुखदायी सिद्ध होने वाला हो सकता हो !
        इसीप्रकार  से मौसम संबंधी राजधानी समुद्र या विशेषकर प्रशांत महासागर है जहाँ  मौसम संबंधी अधिकाँश घटनाएँ प्रारंभ होती हैं यहीं अग्निवृत्त (फायर ऑफ़ रिंग) हैऔर यहीं सबसे अधिक भूकंप और सुनामी आदि की घटनाएँ घटित होती हैं चक्रवातादिकों की निर्माणस्थली है !इसलिए मौसमी भविष्यवक्ताओं (पत्रकारों) ने यहाँ अपने रडार उपग्रह आदि लगाए हुए हैं जिनसे बादलों आँधी तूफानों आदि की गतिविधियों की निगरानी किया करते हैं !
      वहाँ से बादल आँधी तूफ़ान आदि जो कुछ भी निकलते दिखा तो उनकी दिशा और गति के हिसाब से ऐसे मौसमी पत्रकार लोग मौसम संबंधी आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त किया करते हैं कि ये किस देश प्रदेश शहर आदि में कब कब पहुँच सकते हैं उसी हिसाब से मौसम संबंधी समाचार तैयार किया करते हैं और आशंकाएँ संभावनाएँ बताया करते हैं !इसे मसम विज्ञान कैसे कहा जा सकता है !
    किसी नहर में जब पानी छोड़ा जाता है या किसी नदी में जब बाढ़ आती है उस पानी की गति के हिसाब से यह अनुमान लगा लिया जाता है कि यह पानी किस दिन किस शहर में पहुँचेगा !किंतु इसे नदी या नहर का विज्ञान नहीं नहीं माना जा सकता है !
    किसी गाँव का एक छोर जंगल की ओर पड़ता था उसी छोर से कभी कभी हाथियों का झुंड गाँव में घुस आता था और काफी तोड़फोड़ कर  जाता था इसके बाद गाँव के लोग लाठी डंडे ईंटों पत्थरों से खदेड़ बाहर करते थे लेकिन तब तक गाँव वालों का काफी नुक्सान हो चुका  होता था !इससे बचने के लिए गाँव वालों ने जंगल की दिशा में अपने गाँव के बाहर कैमरे लगा दिए जिससे हाथियों के गाँवों में प्रवेश करने से पहले ही वो देख लिया करते थे कि हाथी गाँव की ओर आ रहे हैं तभी से अपने बचाव के उपाय कर लिया करते थे इससे उनका बचाव हो भी जाता था किंतु इसे हाथी विज्ञान नहीं कहा जा सकता और उन गाँव वालों को हाथी वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है !
     इसी प्रकार से मौसम के क्षेत्र में भी उपग्रहों रडारों के माध्यम से मौसम संबंधी कुछ घटनाओं को देखने और घटित होने में कई बार कुछ समय मिल जाता है जिससे उस घटना से संभावित जनधन की हानि को यथा संभव प्रयास पूर्वक कम कर लिया जाता है ! जिसे मदद की दृष्टि से अच्छा माना जाता है किंतु उसे विज्ञान नहीं माना जा सकता है !
        ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों और रडारों से चित्र देख देख कर उनके आधार पर वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में संभावनाएँ आशंकाएँ व्यक्त करते रहने वाले मौसम भविष्यवक्ताओं को आज से उन सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान पूर्वानुमान पूर्वानुमान कैसे पता चल गया पूर्वानुमान कैसे पता चल गया जो ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसी काल्पनिक घटनाओं के फलस्वरूप अभी से सैकड़ों वर्षों बाद में घटित होने वाली अत्यंत दीर्घावधि घटनाओं के विषय में अभी से बताए जा रहे हैं !उसके लिए ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन  संबंधी चित्र किन उपग्रहों और रडारों में देखे गए हैं जिसके आधार पर इतनी बड़ी बड़ी अफवाहें फैलाई जा रही हैं !

           तीन दिन पहले का मौसम पूर्वानुमान बताने में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं को कई कई बार हिचकोले खाने पड़ते हैं अपनी भविष्यवाणियों में बार बार संशोधन करने पड़ते हैं !इसके बाद भी जिन मौसमभविष्यवक्ताओं को अत्यंत झिझक पूर्वक बोलते देखा जाता है ऐसा होने की आशंका है या वैसा होने की संभावना है !वही लोग ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के असर पर कितने बेधड़क ढंग से बताते देखा जा रहा है कि आज के सौ या पचास या दो सौ वर्ष बाद क्या क्या नफा नुक्सान हो जाएगा !देखिए -
        "ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन  के कारण भारत, चीन, अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका, वियतनाम, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, फिलीपींस और मिडिल ईस्ट के कई देशों को नुकसान होगा। सबसे अधिक नुकसान भारत को होगा। मुंबई और कोलकाता के अधिकांश हिस्से डूब जाएंगे। अत्यधिक गर्मी के कारण खेत सूख जाएंगे, जिससे देश की 22.8 करोड़ और आबादी बेरोजगार हो जाएगी।"इसमें कुछ सच्चाई भी होगी क्या ये सोचकर  आश्चर्य अवश्य होता है !

 


ये केवल एक प्राकृतिक घटना की बात नहीं है ऐसा लगभग प्रत्येक बड़ी प्राकृतिक घटना के बाद होता ही रहता है रीति रिवाज सा बन गया है !जिस प्रकार की घटनाएँ मौसम में घटित होती देख लेते हैं वैसी ही बार बार दोहराते  रहते हैं !अभी ऐसा और होगा अभी और होगा वर्षा हुई तो वर्षा और होगी सर्दी हुई तो सर्दी और होगी गर्मी हुई गर्मी और पड़ेगी इनकी भविष्यवाणी के विपरीत जो कुछ होता है उसके लिए  "जलवायु परिवर्तन"  या "ग्लोबल वार्मिंग" जैसे पालतू शब्द हैं  जिनकी मदद ले ली जाती है ! 

       वैदिक मौसम विज्ञान-

          प्रकृति में घटित होने वाली घटनाएँ समय से संबंधित होती हैं कुछ स्थायी होती हैं तो कुछ अस्थायी होती हैं !जो अस्थायी होती हैं उनमें अधिकाँश घटनाएँ क्रिया की प्रतिक्रियारूप में पैदा होती हैं ! अयन महीना अमावस्या पूर्णिमा आदि समय से संबंधित घटनाएँ हैं ऋतुएँ दिन रात प्रातः सायं आदि समय से सम्बंधित घटनाएँ हैं !ये सब केवल मानक ही नहीं हैं अपितु समय का प्रभाव इन पर पड़ता है और इनका प्रभाव प्राकृतिक वातावरण पर पड़ते दिखता है!शिशिर ऋतु में सर्दी पड़ती है ग्रीष्म ऋतु में गर्मी पड़ने लगती है और वर्षा ऋतु में बड़े बड़े बादल आकर वर्षा करने लगते हैं !यहाँ तक कि पूर्णिमा अमावस्या को संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण आंदोलित हो रहा होता है उसका असर समुद्र पर भी पड़ता है तो द्रवीभूत समुद्र लहरों के रूप में आंदोलित होने लगता है अर्थात ज्वारभाटा आने लगता है !यदि यह सही है कि ज्वार भाटा आने का कारण चंद्र और सूर्य आदि हैं तो इनका प्रभाव समुद्र की तरह ही प्रकृति के अन्य अंगों पर भी उसी प्रकार से पड़ रहा होता है !चंद्र के प्रभावरूपी क्रिया पर यदि समुद्र ज्वारभाटा के रूप में प्रतिक्रिया देता है तो प्रकृति के अन्य अंग भी तो चंद्र के प्रभाव को पाकर कुछ  प्रतिक्रिया कर रहे होंगे उसका भी तो प्राकृतिक वातावरण पर कुछ न कुछ असर अवश्य पड़ता होगा !ऐसा प्रभाव केवल चंद्र का ही तो नहीं पड़ता होगा सभी ग्रहों का प्रभाव कुछ इसी प्रकार से संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण पर पड़ता होगा उसके आधार पर भी कुछ बदलाव होते होंगे कुछ प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती होंगी !आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा आदि घटनाएँ प्राकृतिक वातावरण पर सूर्यादि ग्रहों के प्रभाव की प्रतिक्रिया के स्वरूप में भी तो घटित हो सकती हैं !प्रकृति के वातावरण में यदि सूर्यादि ग्रहों का इतना अधिक हस्तक्षेप है तब तो सूर्य और चंद्र ग्रहण जैसी बड़ी खगोलीय घटनाओं का असर भी प्राकृतिक वातावरण पर पड़ रहा होता है उस क्रिया की प्रतिक्रिया में भी तो प्राकृतिक वातावरण परिवर्तित होता होगा !
        इसी प्रकार से आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि कुछ प्राकृतिक घटनाएँ इसी प्रकार की कुछ घटनाओं की प्रतिक्रिया रूप में भी घटित होती हैं !कुछ आँधी तूफ़ान आने के कारण वहाँ भूकंप आता है और भूकंप आने के कारण वहाँ का प्राकृतिक वातावरण भी  सभी प्रकार से आंदोलित होते अनुभव किया जाता है उस आँधी तूफान के प्रभाव से भूकंप तो आता ही है इसके साथ ही उसी के प्रभाव से कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं लोगों का चिंतन प्रभावित होता है !नेपाल में 21 अप्रैल 2015 में जो जगह उस तूफ़ान की केंद्र थी जिसमें बिहार और नेपाल के सैकड़ों लोग मारे गए थे 24 अप्रैल 2015 को वही जगह वहाँ घटित हुए भीषण भूकंप का केंद्र बनी थी ! उसी प्रभाव से भूकंप आने के 47 दिन बाद तक भूकंप के झटके लगते रहे थे !उसी जगह उसी समय सूखी खाँसी चक्कर आना एवं उलटी दस्त जैसी बीमारियाँ फैली थीं चिकित्सालयों में भीड़ बांधनी शुरू हो गई थी !ऐसी सभी घटनाएँ उसी एक घटना से जुड़ी हुई थीं !
   जीवन और प्रकृति से संबंधित घटनाओं में समय का महत्त्व -
      वैदिकविज्ञान समय को भी बहुत महत्त्व देता है प्रकृति या जीवन से संबंधित जो घटना घटित होती हैं वे प्रायः दो प्रकार के असर छोड़ती  हैं एक तो उस घटना से प्रत्यक्ष रूप में लाभ  हानि होती है वो  तो सबको दिखाई पड़ती  है दूसरी उस घटना  कारण कोई दूसरी घटना उसके बाद घटित होती है!जो उस घटना के कुछ दिन सप्ताह महीने बाद घटित होती है जिसका पूर्वानुमान उस घटना के घटित होने के समय के अनुशार लगाया जाता है !
     जिस प्रकार से किसी को कोई चोट लगती है या रोग प्रारंभ होता है या सर्प काटता है या किसी का आपरेशन होता है ऐसी घटनाएँ  जिस समय घटित हो रही होती हैं उस समय तो दिखाई पड़ ही रही होती हैं किंतु इसका दूसरा पक्ष एक और होता है कि जो घटना अभी घटित हुई है उसका परिणाम भी कुछ होगा क्या यदि हाँ तो किस प्रकार का ? इस रोग से रोगी को मुक्ति मिलेगी या नहीं यदि मुक्ति मिलेगी तो कितने दिनों सप्ताहों महीनों आदि में ?यह रोग  इतने से ही शांत हो जाएगा या अभी और आगे बढ़ेगा आदि बातों के विषय में इस रोग से संबंधित भविष्य में घटित होने वाली संभावित घटनाओं का पूर्वानुमान जानना रोगी और चिकित्सक दोनों के लिए आवश्यक होता है !पूर्वानुमान किसी को पता नहीं होता है !रोगी और चिकित्सक दोनों ही यह सोच कर चल रहे होते हैं कि अबतो इस रोग मुक्ति मिल ही जाएगी किंतु  कई बार चिकित्सा करने के बाद भी रोग बढ़ जाता है या इस रोग के पीछे कोई दूसरा बड़ा रोग छिपा होता है जो बाद में सामने आकर इस  रोग को बहुत अधिक बढ़ा देता है !कुछ प्रकरण तो ऐसे भी होते हैं जिनमें रोगी की मृत्यु भी होते देखी  जाती है! 
       ऐसी परिस्थिति में किसी व्यक्ति  आदि को चोट लगना ,रोग प्रारंभ होना, सर्प काटना  या किसी का आपरेशन होना किसी भी घटना का एक  पक्ष है जो दिखाई दे रहा होता है उसी के अनुशार लोग उससे संबंधित कल्पनाएँ कर लिया करते हैं जबकि वैदिकविज्ञान के अनुशार ऐसी घटनाओं के भी पूर्वानुमान लगाने की विधा होती  है जिसमें  संबंधित घटना जिस समय घटित हुई  होती है उस समय के अनुशार अनुसंधान पूर्वक यह अनुमान लगा लिया जाता है कि इस रोगी को भविष्य में रोग से मुक्ति कब मिल पाएगी या क्या परिस्थिति रहेगी ! क्योंकि ये उसी मूल घटना का ही तो दूसरा पक्ष होता है !
     ऐसे ही आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ भी होती हैं जिनका एक पक्ष तो दिखाई पड़ रहा होता है क्योंकि वो तो प्रत्यक्ष होता ही है !इनका दूसरा पक्ष भी होता है जिसमें एक घटना के कारण दूसरी घटना घटित होती है जो प्रकृति और जीवन किसी से भी संबंधित हो सकती है !
     इसी प्रकार से प्राकृतिक आपदाएँ हैं जो आपदा या घटना जिस समय पर घटित हो रही होती है एक तो उसका तत्कालीन असर हो रहा होता है जो उस समय दिखाई पड़ रहा होता है दूसरा उस समय के अनुसार उस  घटना का आगामी प्रभाव  भी होता है जो उस समय तो दिखाई नहीं पड़ रहा होता है किंतु भविष्य में किसी दूसरी प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी घटना के रूप में भी दिखाई पड़ता है !किसी क्षेत्र विशेष में फैलने वाली कुछ सामूहिक बीमारियाँ उस प्राकृतिक घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप फ़ैल रही होती हैं !चूँकि ऐसी बीमारियाँ समय के कारण घटित हो रही होती हैं इसलिए जब तक समय सीमा नहीं समाप्त होती है तब तक उस तरह की बीमारियों से ग्रस्त रोगियों पर औषधियों का असर नहीं होता है !


     

No comments: