Monday, 19 February 2018

भ्रष्टाचार की बाढ़ से लोकतंत्र पर छाए संकट के बादल !जानिए क्यों ?

      अपराधियों बलात्कारियों  और घपले घोटालेबाजों का कोई दोष नहीं है उन्होंने तो अपराध जगत में कदम रखे ही हुए हैं ही वास्तव में दोषी तो वे हैं जो अपराधियों को रोकने के नाम पर सैलरी लेते हैं फिर उन्हें रोक नहीं पाते हैं !इसके साथ साथ जनता को भय उस सरकार है जो अपने अधिकारियों  के कामकाज की क्वालिटी देखे बिना उन्हें सैलरी देती जाती है!यदि अधिकारी भ्रष्टाचारी हैं तो वो तो भ्रष्टाचार करेंगे ही उन्हें रोकने का काम सरकार का है वो क्यों नहीं रोक पाई !दोषी जनता है जो ऐसे भ्रष्ट जन प्रतिनिधियों को चुनकर भेजती है !
  जनता को अपराधियों से उतना भय नहीं है जितना  उन अधिकारियों  कर्मचारियों से है जो सरकार से सैलरी लेकर अपराधियों का साथ देते हैं ! नोटबंदी के समय भोली भाली जनता लाइनों में खड़ी दम तोड़ रही थी और जिम्मेदार लोग ब्लैक मनी वालों के काले धन के बोरे उनके उनके गोदामों में जा जाकर सफेद करने में लगे हुए थे सरकार जब उन पर अंकुश नहीं लगा पाई तो विजय माल्या नीरव मोदी जैसे लोगों पर कार्यवाही करने के सपने देखना ही छोड़ दे सरकार !
   जो जिन पदों के लायक नहीं होते उन्हें वो पद देने वाली घूसखोर अकलभ्रष्ट  सरकारें उनसे चाहती हैं कि वे भ्रष्टाचार से लड़ें भ्रष्टाचारियों से भ्रष्टाचार भागने की आशा !जिन नेताओं को एप्लिकेशन पढ़ने समझने की अकल नहीं होती है या जो भयंकर लापरवाह तथा स्वयं भ्रष्ट हैं उन्हें राजनैतिक दलों एवं सरकारों में पद प्रतिष्ठित किया जाएगा तो ऐसे मनोविकलाँग लोग यही करेंगे  जो आज हो रहा है वो इससे ज्यादा कुछ कर ही नहीं सकते !
     अपराधियों बलात्कारियों  और घपले घोटाले बाजों  को जन्म देती हैं भ्रष्ट एवं गैर जिम्मेदार सरकारें और इनका पालन पोषण करते हैं सरकार के अपने वे भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी जो सरकारी सैलरी खाकर जिन्दा रहते हैं जो ऍम जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से देती है सरकार !सरकार को उन पर अंकुश लगाने या उनसे काम लेने की अकल ही नहीं है तो अपने अपने पद छोड़कर घर बैठ जाना चाहिए !बकवास कर कर के जनता का समय बर्बाद नहीं करना चाहिए !
    "सरकारों ,अधिकारियों  कर्मचारियों एवं राजनैतिक दलों ने तोड़ा जनविश्वास !"देश वासियों के साथ गद्दारी अर्थात कब तक सहे देश !
      इसमें कोई संशय नहीं कि इस देश को बनाने सजाने सुरक्षित रखने में सेना की तरह ही अधिकारियों का बहुत बड़ा वर्ग जी जान से समर्पित है किंतु उतना ही सच ये भी है कि घूस का लालची अधिकारियों का एक बहुत बड़ा वर्ग  देश एवं देशवासियों के जनहितों के विरुद्ध तमाम समझौते करने को तैयार घूम रहा है सरकार का ऐसे लोगों पर अभी तक कोई अंकुश नहीं लग पाया है !
     अपराधियों का जन्म पालन पोषण एवं संरक्षण या तो किसी भ्रष्ट नेता की गोद में होता है या फिर किसी भ्रष्ट अधिकारी की गोद में !नेताओं और अधिकारियों के संरक्षण के बिना कोई अपराधी बन ही नहीं सकता है!क्योंकि अपराध जैसा बड़ा काम कोई सामान्य व्यक्ति अकेले अपने बल पर कैसे कर सकता है!यही कारण है कि जिन अपराधियों पर बड़ी बड़ी लूट के आरोप लगाए जाते हैं वे यदि वास्तव में अपराधी या लुटेरे होते तो लूट के  पैसे की चमक उनके अपने शरीर या चेहरे पर दिखाई पड़ती उनके परिवारों के सदस्य सुखी होते एवं उनके पास सुख सुविधाओं के साधन अच्छे होते !किंतु लुटेरों के नाम से प्रसिद्ध लोगों के यहाँ से उतना लूट का धन क्यों नहीं मिलता ! वो जिनके लिए या जिनके कहने से दिहाड़ी पर लूट करते हैं अपराधों में अप्रत्यक्ष रूप से सम्मिलित ऐसे सरकारीनेताओं एवं अधिकारियों की आय से अधिक संपत्तियों की जाँच इस दृष्टि से क्यों नहीं की जाती है !नेताओं ने जब पहला चुनाव लड़ा था या अधिकारियों को जिस तारीख को नौकरी मिली थी तब उनके पास जो संपत्तियाँ थीं और आज उनके पास जो संपत्तियाँ हैं उनके स्रोतों की जाँच करके उन सम्पत्तियों और संपत्ति स्रोतों को डिजिटल अर्थात सार्वजानिक किया जाए !
       नीरवमोदी हों या विजयमाल्या जैसे लोगों के संबंध सभी राजनैतिक दलों से होते हैं इन्हें लोन दिलवाने वाले एवं इन्हें फँसने से बचाने वाले नेता प्रायः सभी राजनैतिक दलों में  विद्यमान हैं !सभी राजनैतिक दल एवं प्रायः सभी रईस नेता लोग ऐसे लोगों से चंदा लेते हैं फिर उन्हें देश से बाहर भगा देते हैं! यही कारण है कि प्रायः अनपढ़ या कम पढ़े लिखे निठल्ले बेरोजगार नेता लोग राजनैतिक पार्टियों में पहुँचते और चुनाव लड़ते ही कई कई गाड़ियों कोठियों बँगलों के मालिक हो जाते हैं जबकि उनकी आय के प्रत्यक्ष स्रोत विश्वसनीय होते ही नहीं हैं !नेताओं की आय स्रोतों से उनकी सम्पत्तियों का मेल न खाना अर्थात बहुत अधिक होना निराश करने वाला एवं  अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि ऐसी कमाई प्रायः सभी प्रकार के अपराधों से अर्जित की जाती है !
      सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की जब नौकरी लगती है तब उनके पास जितनी भी संपत्ति होती है उसके बाद उन्हें जो सैलरी मिलती है उतनी ही संपत्ति होनी चाहिए उनके पास जबकि प्रायः अधिकांश अधिकारियों के पास उससे अधिक संपत्ति को होना उनकी उस अपराधी प्रवृत्ति को प्रकट करता है जिसके तहत उन्होंने अपराधियों को मदद पहुँचाकर उसके बदले में घूस या उपहारों के रूप में ली है !
    सीलिंग में व्यापारियों को गलत परेशान किया जा रहा है ये समस्याएँ वस्तुतः निगमों के या संबंधित सरकार के विभागों ने तैयार की हैं वहाँ के अधिकारियों कर्मचारियों ने ही इतनी बड़ी समस्या को जन्म दिया है गलत और गैरकानूनी काम करवाने वाले  उन अफसरों पर कार्यवाही करने से सरकार को अपने भ्रष्टाचार के खुलने का यदि भय है तो व्यापारियों को तंग क्यों  किए जा रही है सरकार ? 
   दिल्ली के कृष्णानगर मार्केट में एक  बिल्डिंग है जिसके नीचे बना अवैध बेसमेंट जिसमें पानी भरे रहने के कारण 55 फिट ऊँची बिल्डिंग दिनोंदिन कमजोर होती जा रही है  उसके ऊपर अवैध रूप से लगाए गए 30 फिट ऊँचे मोबाईल टॉवर समेत अब वो 87 फिट ऊँची बिल्डिंग है !क़ानूनी दृष्टि से ये सभी प्रकार से अवैध गतिविधियों में संलिप्त है फिर भी अधिकारियों को घूस मिलती है बोले कौन ! निगम के जिन अधिकारियों को सैलरी सरकार देती है वे सरकार की योजनाओं के अनुरूप कार्य नहीं करते  हैं !ये अधिकारियों की लापरवाही ही है!फिर भी सरकार ऐसे लोगों पर मेहरबान है !
     यदि अधिकारी ईमानदार और कर्तव्य परायण होते तो ऐसे अवैध बेसमेंट को बनने से पहले ही रोका जा सकता था अथवा बाद में उसमें मिट्टी भरवाई जा सकती थी या फिर बेसमेंट को सील किया जा सकता था किंतु इसके लिए जिम्मेदार अधिकारियों ने तीनों काम नहीं किए !इसीप्रकार से सुना जाता है कि सामान्य तौर पर बिल्डिंगों की ऊँचाई नियमानुसार 12 मीटर (36)फिट तक रखी जा सकती है इतने में तीन मंजिलें ही बनाई जा सकती हैं जबकि इसमें 57 फिट ऊँची 5 मंजिलें बनी हुई हैं उसके ऊपर तीस फिट ऊँचा मोबाईल टॉवर भी लगा हुआ है !
      इस अवैध निर्माण एवं अवैध मोबाईल टॉवर को देखकर बिना किसी जाँच के ये प्रमाणित हो जाता है कि अधिकारी या तो गैर जिम्मेदार हैं या फिर घूस लेकर ऐसे सभी प्रकार के अवैधकार्य होने देते हैं !इनका कहना होता है कि घूस का पैसा ऊपर तक जाता है !
    किंतु सरकार में सम्मिलत नेता और अफसर लोग यदि घूस के ऐसे घिनौने खेल में सम्मिलित नहीं होते हैं तो काम न करने वाले अफसरों को या फिर घूसलेकर गलत काम करवाने वाले अफसरों को सैलरी ही क्यों देते हैं और उन्हें नौकरी पर क्यों रखे हुए हैं !ऐसे अकर्मण्य अफसरों को दी गई आज तक की सैलरी उनसे वापस क्यों नहीं ली जाती है या उनकी संपत्तियाँ जप्त क्यों नहीं की जाती हैं ?
      ऐसी सुनसान रिहायसी बिल्डिंगें देहव्यापार का अड्डा बनती जा रही हैं ऐसे लोगों से घूसलेकर निगम के लोग इनमें ब्यूटीपॉर्लर के साइनबोर्ड लगाने की सलाह दे देते हैं क्योंकि ब्यूटीपॉर्लर रिहायसी बिल्डिंगों में भी बनाए जा सकते हैं !इसलिए उन्हें ब्यूटीपॉर्लर का नाम दे देने से कोई वेश्यावृत्ति की शिकायत नहीं कर सकता है !ऐसी रिहायसी बिल्डिंगों में इसप्रकार के धंधे बड़ी आसानी से चलाए जा सकते हैं चूँकि इनमें कई कई फ्लैट बने होते हैं ऐसे फ्लैटों में जब जोड़े घुसते हैं तो लोग सोचते हैं कि किसी के घर जा रहे होंगे किंतु वे उस गंदे धंधे वाले फ्लैट में जा रहे होते हैं कोई उन्हें कैसे रोक सकता है निगम से शिकायत की जाए तो वो कहते हैं कि यदि ऐसा होता है तो पुलिस में कम्प्लेन करो !पुलिस कहती है कि वहाँ ऐसा होता है इसके प्रमाण वीडियो आदि लेकर दिखाओ किंतु आम आदमी ऐसी जगहों पर रहना भले छोड़ दे वहाँ वीडियो  बनाने क्यों जाएगा उसे मरना है क्या !क्योंकि ऐसे रंडीखानों में कोई भले लोग तो आते नहीं हैं वीडियो बनाने वालों को वो बक्स देंगे क्या ? उचित तो ये है कि रिहायशी बिल्डिंगों में ब्यूटीपॉर्लर बनाने की अनुमति ही नहीं दी जानी चाहिए !
       कुलमिलाकर ऐसे सभी प्रकार के अवैध निर्माणों एवं अवैध मोबाईल टावरों अवैध गतिविधियों के होने देने की जड़ में तो सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही हैं !ये अपने कर्तव्य का पालन करें या न करें सरकार उन्हें सैलरी समय से देती चली जाती है तो वो कर्तव्य पालन करें ही क्यों ?
     ऐसे अवैध निर्माणों कार्यों आदि को हटाने के लिए जनता जब निगम वालों से कंप्लेन करती है तो निगम के लोग विरोधियों से घूस लेकर उनसे केस करवाकर उन्हें स्टे दिलवा देते हैं फिर घूस लेते जाते हैं स्टे बढ़ाते जाते हैं खुद पैरवी नहीं करते या करने लायक हैं नहीं तो ऐसे अयोग्य लोगों को नौकरी पर क्यों रखे हुए है सरकार और उन्हें सैलरी क्यों देती है ?
   सरकार के द्वारा प्रायोजित ऐसा भ्रष्टाचार इसीप्रकार से सरकार के हर विभाग में करवाया जा रहा है यदि नहीं तो इसमें लगाम क्यों नहीं लगाई जा रही है ऐसे भ्रष्ट अफसरों की कंप्लेन जिस पार्षद विधायक सांसद मंत्री आदि के यहाँ की जाती है तो वो कार्यवाही शुरू करते हैं जिससे घबड़ाकर अधिकारी  लोग ये कच्ची बात उन गैर कानूनी काम करने वालों को बता देते हैं तो वो लोग मिठाई का डिब्बा और पैसों का लिफाफा लेकर जनप्रतिनिधियों के पास पहुँच जाते हैं अगले दिन से वे जनप्रतिनिधि भी उन्हीं भ्रष्टाचारियों की भाषा बोलने लग जाते हैं !
      ऐसी परिस्थिति में देश की जनता किस अधिकारी कर्मचारी पर भरोसा करे किस राजनैतिक दल पर भरोसा करे किस नेता पर भरोसा करे ?और यदि किसी पर भरोसा न करे तो ऐसे लोगों को सैलरी देने के लिए टैक्स क्यों दे और इनकी बातें क्यों माने ?लोकतंत्र के नाम पर ऐसे गैर ईमानदार गैर जिम्मेदार घूसखोर अकर्मण्य लोगों का समर्थन करने के लिए मतदान में भाग क्यों ले ?

Wednesday, 14 February 2018

वेलेंटाइन डे - मित्रता या मूत्रता का पर्व?

     'लट्ठपूजनपर्व' पर बजरंग दलवालों को बहुत बहुत बधाई  !
        14 फरवरी को यह पर्व  इस समाज में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है इसमें कलियुगीकरवाचौथ मनाने वाले मजनुओं का 'पीठपूजन' इस पर्व की मुख्यविशेषता है !इसमें प्रेमी जोड़ों को लाठी दिखा दिखाकर खोलवाया जाता है उनका 'वेलेंटाइन डे'व्रत !इस प्रकार से इस संगठन में यह पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ प्रतिवर्ष बड़े धूमधाम से मनाया जाता है !
   इसी 'लट्ठपूजनपर्व' को किसी किसी संस्कृति के लोग 'वेलेंटाइन डे' भी कहते हैं उस समाज के सेक्सालु लोग इसे प्रेमपर्व या मित्रतापर्व कहते हैं किसी किसी समाज में इसकी पहचान मूत्रतापर्व के रूप में भी बनी  हुई  है !बहन बेटियों के गौरव रक्षा के लिए एवं अपनी समाज में नारी सम्मान के सतर्क प्रहरी अपनी भूमिका निभाने के लिए उस दिन बड़े जोश खरोश से अपने हाथों में लट्ठ उठा लेते हैं और इस प्रेमपर्व को मूत्रतापर्व के रूप में मानाने वालों की 'पीठपूजन' की रस्म निभाई जाती है फिर कुछ पुलिस के लोग बुला लिए जाते हैं वे हाथ पैर जोड़ते देखे जाते हैं इसी समय ऐसी सेक्सुअल खबरों की तलाश में भटकता मीडिया चीखने चिल्लाने लगता है पीठ पूजने का दर्द जबतक होता है तब तक वो चिल्लाते हैं फिर उन बेचारों की आवाज साल भरके लिए खामोश हो जाती है !उन्हें ये भी पता होता है कि प्रेम पर्व का विरोध कोई क्यों करेगा !ये विरोध तो इसदिन पार्कों पार्किंगों झाड़ों होटलों बाजारों में चल रहे चिपको आंदोलन का होता है फिर भी मीडिया जगत से जुड़े जो लोग इस चिपको आंदोलन में सहभागी हो चुके होते हैं उन्हें पीठपूजन की पीड़ा तो होती ही है फिर भी सहते हैं !
       इसदिन अत्याधुनिक लैला मजनुओं के आचार व्यवहार से प्रमाणित भी हो जाता है कि इस पर्व का उद्देश्य क्या हो सकता है !इस दिन प्रेमी जोड़ों को एकांतिक जगह मुहैया करने वालों के रेट काफी बढ़े होते हैं !इसलिए जो जोड़े इतना खर्च बहन करने की स्थिति में नहीं होते हैं वो पार्कों पार्किंगों झाड़ी जंगलों की ओट में समा जाते हैं !पार्कों जैसी सार्वजनिक जगहों पर भी बहुत कुछ निपटा रहे होते हैं बेशर्म संस्कृति के लोग !
    प्रेमी जोड़े नाम के फोर्थजेंडर वाले लड़के लड़कियों में इस दिन अद्भुत उत्साह होता है इन सबों में एक दूसरे से आगे निकलजाने की होड़ होती है ।इसे देखने वालों का नजरिया भी अलग होता है ऐसे ही कुछ भूतपूर्व फोर्थजेंडरी  लोग  जो विभिन्न क्षेत्रों में जाकर पैसा वैसा कमाकर  बड़े आदमी बन गए हैं वो टी.वी.पर आकर इन फोर्थजेंडरियों  का समर्थन करते देखे जाते हैं कई कई लड़के लड़कियों की होनहार जिंदगियाँ अपनी अपनी बासना की भेंट चढ़ा चुके भूतपूर्व फोर्थजेंडरी लोग  इस नोचा घसोटी को पवित्र प्रेम सिद्ध करने के लिए हमेंशा  आमादा रहते हैं किन्तु इस बात का जवाब इनके पास भी नहीं होता है कि यह   प्रेम यदि वास्तव में पवित्र है तो साल में एक ही दिन क्यों दूसरी बात लड़के और लड़कियों के  ही आपसी संबंधों में क्यों  माता पिता भाई बहनों आदि के साथ क्यों नहीं !और यदि उनके  साथ भी हो तो चौदह फरवरी ही क्यों ये तो प्रतिदिन करना चाहिए !ऐसी शिक्षा अनंतकाल से दी जा रही है फिर आदर्श वेलेंटाइन डे ही क्यों ? 
        बंधुओ !आप सबको याद होगा कि पहले अपने यहाँ ' वेलेंटाइन डे ' नहीं मनाया जाता था साथ ही यह भी सुना होगा कि तब अपने यहाँ इतने बलात्कार भी नहीं होते थे और जैसे जैसे 'वेलेंटाइन डे 'को मानने वाले लोग बढ़ते जा रहे हैं वैसे वैसे बलात्कार बढ़ते जा रहे हैं । इस अवसर पर एक बात और ध्यान रखनी होगी और कोई वेलेंटाइन डे  को मनाता हो या न मनाता हो किन्तु बलात्कार में संलिप्त लगभग हर सदस्य 'वेलेंटाइन डे'जरूर मनाता होगा !इससे ये तो सिद्ध हो ही जाता है कि 'वेलेंटाइन डे'से बलात्कारियों का कुछ संबंध तो है ! प्रेमी नाम के जोड़े इस इस तथाकथित पर्व को बड़े धूम धाम से मनाते  हैं आज के दिन पागल हो उठते हैं ऐसे लोग !
    अपनी अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुशार प्रेमी लोग आपस में कुछ न कुछ लेते देते जरूर हैं खैर लेना देना तो बहाना होता है बाकी शारीरिक अंगों के आनंद का आदान प्रदान अवश्य होता है । मुझे नहीं पता है कि इस धंधे को कितना गन्दा कहूँ किंतु कई प्रेमी प्रेमिकाओं को एक दूसरे के शरीरों की दुर्दशा या हत्या करते देखो उस दिन वेलेंटाइन डे जैसी कुसंस्कृतियों से घृणा जरूर होती है क्योंकि उन हत्यारों ने भी कभी न कभी 'वेलेंटाइन डे'! समाज के ऐसे ही प्रेम प्रकटीकरण को वेलेंटाइन डे का विरोधी कहकर उसकी निंदा की जातीको जरूर मनाया होगा !इसलिए ऐसी पृथाओं से घृणा होनी स्वाभाविक ही है !

Sunday, 11 February 2018

prarambh (copy)


समयकीशक्ति   को संक्षेप में समझो -
       अनादि काल से समय तो अपनी गति से व्यतीत होता चला जा रहा है जब दृश्य जगत में कुछ भी नहीं था तब भी तो समय था सूर्य चंद्रमा जब नहीं थे अर्थात इनके प्रकट होने से पूर्व भी तो समय व्यतीत होता जा रहा था तब समय को समझने का कोई माध्यम नहीं था किंतु सूर्य और चंद्र के प्रकट होने से वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों तिथियों दिनों के माध्यम से समय को समझ पाना संभव हो पाया !समय कभी किसी के आधीन नहीं हुआ अपितु संसार में सब कुछ समय के आधीन है समय का कोई आदि अंत नहीं है समय सर्व शक्तिमान है समय से अधिक शक्तिशाली कोई दूसरा नहीं है !जो समय के साथ चलता है वही बच पाता है अन्यथा आस्तित्व  बच पाना ही संभव नहीं है !संसार में बड़ी से बड़ी शक्तियों ने अपना आस्तित्व बनाए एवं बचाए रखने के लिए ही तो समय के साथ अपने को जोड़ रखा है !
      यहाँ तक कि ईश्वर ने भी अवतार तब लिया जब समय उस योग्य आया पाँच ग्रह जब तक उच्च के नहीं आए तब तक ईश्वर ने भी अवतार नहीं लिया !यहाँ तक कि किसी पर कृपा करने के लिए भी ईश्वरीय शक्तियाँ समय और भाग्य की प्रतीक्षा करती हैं !समय से पहले भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं देती हैं !
       दशरथ जी के भाग्य में भगवान श्री राम जैसा पुत्र होना लिखा था किंतु सारा जीवन व्यतीत हो गया भगवान् के अवतार होने लायक समय ही नहीं आया और जब समय आया तब दशरथ के मन में पुत्र सुख पाने की भावना जगी तब उन्होंने जाकर गुरु वशिष्ठ से अपनी इच्छा बताई तो उन्होंने श्रृंगी ऋषि को बुलाया और पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ करवाया  उस यज्ञ प्रसाद से पुत्र हुआ !यदि हम इसे केवल यज्ञप्रसाद का फल ही मानें तो यज्ञ तो पहले भी हो सकता था दशरथ जी पुत्र के लिए चिंतित भी थे गुरु भी वशिष्ठ जी ही थे और श्रृंगी ऋषि के प्रभाव को भी जानते थे और श्रृंगी ऋषि यज्ञ करवाकर प्रसाद तो तब भी दे सकते थे किंतु पहले ऐसा क्यों नहीं किया जा सका इसका एक मात्र उत्तर यही है कि सब कुछ तो पहले से ही विद्यमान था किंतु जिस समय में भगवान का अवतार होना था वो समय पहले नहीं आया था !इसका सीधा सा मतलब है कि हमारे द्वारा किए गए प्रयास भी समय और भाग्य के अनुशार ही फलित होते हैं !
       इसीलिए तो सूर्य चन्द्रमा आदि समस्त ग्रह भी समय के क्रम से ही उदित और अस्त होते देखे  सुने जाते हैं समय के अनुशार सबकी गतियाँ और मार्ग निश्चित हैं समय के सिद्धांत को स्वीकार करके अनंत काल से सभी ग्रह आदि समय के साथ साथ चलते जा रहे हैं ! समय के साथ चलने के कारण घड़ी की तरह ये भी समय की पहचान बन चुके हैं घड़ी की घंटा मिनट की सुइयों की तरह सूर्य और चंद्र भी ब्रह्मांडघड़ी की घंटा मिनट की सुइयाँ ही तो हैं यद्यपि सामान्य घड़ी तो बिगड़ सकती है किंतु ब्रह्मांडघड़ी  तो बिना रुके बिना थके चलती जा रही थी ! 
      आधुनिक युग के हिसाब से यदि हम सूर्य और चंद्र के संचार को समझना चाहें तो समय बताने वाली घडी में एक सुई घंटे की होती है तो दूसरी मिनट की दोनों मिलकर समय की सूचना देती रहती हैं इसी प्रकार से सूर्य और चंद्र भी तो ब्रह्मांडघड़ी की संकेतक सुइयाँ हैं इनके संचार से वर्षों ऋतुओं महीनों पक्षों तिथियों और दिनों आदि का वर्गीकरण होता चला आ रहा है !संसारवासियों के पास समय को समझने का और कोई विकल्प भी तो नहीं था !वस्तुतः समय स्वयं किसी को दिखाई तो पड़ता नहीं है इसलिए ऋतुओं महीनों पक्षों तिथियों और दिनों आदि को बदलते देखकर हम समय को बीतता हुआ समझ पाते हैं ! बिल्कुल कमरे में टँगी हुई घडी की तरह !उस घड़ी का समय से कोई सम्बन्ध हो या न हो किंतु चूँकि समय के व्यतीत होने के क्रम को हम घड़ी के द्वारा समझ पाते हैं इसलिए जैसे हम घड़ी को समय से जोड़कर देखने लगे हैं यद्यपि ये घडी कभी कभी रुक भी जाती है या इसके रुकने की आशंका बनी रहती है जबकि सूर्य और चंद्र कभी न रुकते हैं और न ही थकते हैं इसलिए इनके संचार संकेतों पर अनंतकाल से अटूट विश्वास बन चुका है कि इनके समय संकेत कभी गलत नहीं हो सकते ! सूर्य और चंद्र आदि समय का निर्माण तो नहीं कर सकते किंतु ये समय के साथ साथ चल सकते हैं और हमेंशा से चलते देखे जा रहे हैं इसलिए ये स्वयं भी समय की पहचान बन चुके हैं !
     समय के साथ सूर्य और चंद्र आदि का इतना अधिक तादात्म्य संबंध हो गया कि समय के बिषय में लोगों को भ्रम होने लगा कि सूर्योदय  होने के कारण सबेरा होता है जबकि सच्चाई ये है कि प्रातःकाल होने के कारण सूर्योदय होता है !इसीप्रकार से सूर्योदय होने के कारण कमल नहीं खिलता अपितु प्रातः काल का समय होने के कारणकमल खिलता है समय के कारण ही मुर्गा बोलता है !अन्यथा बादलों की घनघोर घटाएँ घिरी होने से सूर्य के न दिखाई देने पर भी तो प्रकृति में प्रातः काल होने वाली सारी घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ती हैं इसलिए सूर्य की अपेक्षा इन घटनाओं को सीधे समय के साथ जोड़ने का सिद्धांत ही उचित प्रतीत होता है !  
     इसी प्रकार से संसार के व्यवहार में कई चीजें हम उल्टी समझने लगे हैं ! सच्चाई ये है कि किसी के मृत्यु का समय जब समीप आता है तब उसे सर्प आदि बिषैले जीव जंतु काटते हैं और तभी उसके साथ हिंसक पशुओं के हमले या अन्य प्रकार की प्राण घातक दुर्घटनाएँ घटित होती हैं !अन्यथा  बिषैले जीव जंतु काटने के बाद हिंसक पशुओं के हमले या अन्य प्रकार की कई बड़ी प्राण घातक दुर्घटनाओं के घटित होने के बाद भी तो बहुत लोग जीवित बचते हुए देखे जाते हैं !तो दूसरी ओर कुछ लोगों के साथ न कोई प्राण घातक दुर्घटना घटित होती है और उन्हें न ही कोई रोग होता है बिना कोई प्रत्यक्ष कारण बने भी उनकी मृत्यु होते देखी जाती है इससे प्रतीत होता है कि सभी की मृत्यु का संबंध दुर्घटनाओं से नहीं अपितु समय के साथ होता है !
      जंगलों में गाँवों में गरीब बस्तियों में हिंसक या बिषैले जीव जंतुओं के बीच ही सभी को रहना होता है वहीँ सिंह भालू आदि घूमा फिरा करते हैं सर्पों बिच्छुओं का तो निवास ही वहीँ है छोटे छोटे बच्चों से लेकर बड़े बूढ़े स्त्री पुरुष आदि सब उन्हीं के बीच रहते हैं कोई किसी से कुछ नहीं बोलता है क्योंकि जब तक जिसका समय सही होता है तब तक उसका कोई बाल भी बाँका नहीं कर सकता है !कई बार लोग ऐसी दुर्घटनाओं का शिकार होते देखे जाते हैं जहाँ मृत्यु होना संभव था  किंतु  लोग वहाँ से भी बच निकलते हैं !क्योंकि जीवन और मृत्यु समय के आधीन होती है !कई बार देखा जाता है कि कोई व्यक्ति किसी ऐसी दुर्घटना का शिकार होता है कि जिसमें उसकी मृत्यु हो सकती थी किंतु वो साफ बच जाता है एक खरोंच भी नहीं लगती किंतु उसी के कुछ मिनट या घंटे बाद वही व्यक्ति किसी दूसरी दुर्घटना का शिकार हो जाता है और उसमें उसकी मृत्यु हो जाती है !इससे स्पष्ट  हो जाता है कि उसके जीवन के कुछ क्षण अवशेष बच गए थे जिसके कारण उसकी मृत्यु पहले टल गई किंतु तुरंत बाद में हो गई !इसलिए दुर्घटनाएँ तो बहाना हैं वस्तुतः जीवन और मृत्यु समय के आधीन  ही है !
          संसार में समय की पहचान दो प्रकार से की जाती है एक तो प्रकृति से संबंधित ये सामूहिक समय होता है इसके बिगड़ने पर बर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंप या सामूहिक बीमारियाँ फैलने लगती हैं !इसका प्रभाव उस क्षेत्र में रहने वाले सभी लोगों पर बराबर पड़ता है !दूसरा समय होता है व्यक्तिगत जिसका अच्छा और बुरा प्रभाव केवल उसी पर पड़ता है जिसके विषय में बिचार किया जा रहा होता है इसका निर्णय किसी के जन्म समय का अनुसंधान करके किया जा सकता है कि किसका कौन सा समय अच्छा और कौन सा समय बुरा है! जब प्रकृति में जो समय बुरा चल रहा होता है उसी समय यही किसी का अपना व्यक्तिगत समय भी बुरा चलने लगे तो उस समय ऐसे लोगों को विशेष सावधान होकर चलना चाहिए अन्यथा दूसरों की अपेक्षा समय पीड़ित लोग जल्दी रोगों की चपेट में आ जाते हैं !यही कारण है डेंगू मलेरिया आदि समयजन्य सामूहिक रोगों का प्रभाव अधिक उन्हीं पर पड़ता देखा जाता है जिनका अपना समय बुरा होता है !
     जहाँ तक बात रोगों की है तो डेंगू आदि निश्चित समय में होने वाले सामूहिक एवं सामयिकरोग समय से शुरू होते हैं और समय से समाप्त हो जाते हैं चूँकि जब ये रोग प्रारंभ होते हैं तब वर्षात का समय चल रहा होता है !इस समय मक्खी मच्छर बहुत अधिक बढ़ जाते हैं लोग समझने लगते हैं कि डेंगू जैसे रोग मच्छरों के काटने से होते होंगे किंतु यदि मच्छरों के काटने से होना संभव होता तो गाँवों में जंगलों में रहने वालों के यहाँ होते जहाँ सबसे अधिक मच्छर होते हैं लोगों को कम से कम कपड़ेपहनकर घर से बाहर तक खेतों खलिहानों में आदि में घास फूस के बीच रहकर दिन रात काम करना पड़ता है बिना बिजली के भी रहना पड़ता है यदि मच्छरों से डेंगू होता तो वहाँ रहना मुश्किल हो जाता !वैसे भी ऐसे मच्छरों में डेंगू के बिषाणु पैदा करने की क्षमता नहीं होती है ये तो डेंगू फैलाते हैं फिर प्रश्न उठता कि इन्हें डेंगू वायरस मिलता कहाँ से है जहाँ से लेकर ये फैलाते होंगे !इसलिए ये तो निश्चित समय से शुरू होता है और निश्चित समय बीतने पर समाप्त हो जाता है!प्रतिवर्ष डेंगू वायरस के विस्तार की अंतिम तिथि होती है 20 सितंबर !इसके बाद या इसी दिन से वातावरण में व्याप्त ये बिषैलापन क्रमशः समाप्त होने लगता है और लोग स्वस्थ होने लगते हैं उस समय जिस रोगी को स्वस्थ करने के लिए जो  भी उपाय किए जा रहे होते हैं या औषधि के नाम पर जो जिस किसी वस्तु का सेवन कर रहा होता है समय की शुभता के कारण होने वाले लाभ को भ्रमवश वो उसी दवा के सेवन से हुआ लाभ मान लेता है जबकि रोग समय के कारण समाप्त होता है!शहरों में निगमों के द्वारा फॉगिंग करवाई जाती है जिससे रोडों गलियों खुले स्थानों में रहने वाले मच्छर दौड़कर घरों में घुस जाते हैं ऐसे लोग भी डेंगू काम करने का श्रेय लेने लगते हैं !यदि किसी उपाय से डेंगू जैसी बीमारियाँ रोकी जा सकती होतीं तो जिम्मेदार लोग इससे सबक लेकर कोई ऐसा उपाय करते कि प्रतिवर्ष प्रिवेंटिव प्रयास करके ऐसे निश्चित समय में होने वाले रोगों को होने ही नहीं देते या हो भी जाता तो बढ़ने ही नहीं  देते !इसलिए समय से होने वाले रोग समय से ही जाते हैं !इनका कारण समय ही है !ऐसे रोग फैलने के समय जिनका अपना समय भी ख़राब होता है उन्हें ये रोग हो जाते हैं !
      वैसे भी समय के अनुशार जिसे जब जो रोग होना होता है तब उसकी प्रवृत्ति वैसी ही बनती चली जाती है जैसे जब किसी को सुगर होने का समय आता है तब उसे मिठाई अधिक अच्छी लगने लगती है इस कारण वो मिठाई अधिक खाने लगता है किंतु इसका अर्थ ये कतई नहीं निकला जाना चाहिए कि सुगर रोग का संबंध केवल मिठाई खाने के साथ है क्योंकि बहुत लोग ऐसे भी हैं जो मिठाई न अधिक खाते हैं और न ही उनकी रूचि ही मिठाई खाने की होती है फिर भी शुगर रोग होने का समय जब उनके जीवन में आता है तब शुगर तो उन्हें भी हो जाती है दूसरी ओर कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो भर भर पेट मिठाई खाते हैं सारा जीवन हो गया मिठाई खाते खाते किंतु  उन्हें शुगर रोग कभी नहीं हुआ क्योंकि उनके जीवन में शुगर रोग करने वाला समय नहीं आया !इसलिए शुगर रोग हो या कोई अन्य रोग सभी प्रकार के रोगों के होने न होने का सीधा कारण सबका अपना अपना समय होता है हमारा आहार विहार दिनचर्य्या आदि केवल उनकी सहायक होती है !इसी प्रकार से जिन रोगियों का समय जब अच्छा होता है तब उन्हें अच्छे डॉक्टर मिलते हैं और वे अच्छी दवाएँ देते हैं तभी उनका अच्छा असर होता है और रोगी स्वस्थ भी तभी होते हैं किंतु जिनका समय ही अच्छा नहीं होता है उनपर अच्छे से अच्छे चिकित्सक और अच्छी से अच्छी औषधियाँ आदि चिकित्सा निष्फल सिद्ध हो जाती है वहीँ दूसरी ओर बिना चिकित्सकीय सुविधाएँ पाकर भी गरीब ग्रामीण आदिवासी आदि जंगलों में रहने वाले रोगी लोग भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं  इसलिए स्वस्थ होने न होने का वास्तविक कारण तो रोगी का अपना समय होता है चिकित्सा तो समय की सहायक होती है !
        संबंध बनने बिगड़ने का खेल भी समय के ही आधीन है जब जिसका व्यक्तिगत समय अच्छा होता है तब उसका स्वभाव अच्छा होता है सोच अच्छी होती है अच्छी बातें पसंद होती हैं अच्छे लोग पसंद होते हैं उनसे अच्छे गुण सीखने का मन होता है!इसलिए ऐसे समय में सभी लोग अच्छे लगने लगते हैं दुश्मनों के भी दोष और दुर्गुण भूल जाने का मन करने लगता है और उसकी अच्छाइयाँ याद आने लगती हैं !इसीप्रकार से जब जिसका समय बुरा आता है तब  उसका स्वभाव बुरा हो जाता है उसे दुर्गुण पसंद आने लगते हैं गलत लोगों की संगति अच्छी लगने लगती है इसलिए ऐसे लोग हर किसी में केवल दोष और दुर्गुण खोजने के अभ्यासी  हो जाते हैं ऐसे समय अच्छे मित्र या अच्छे सगे सम्बन्धियों का साथ छूटता चला जाता है ! ऐसे लोग बिना तनाव किए या अपने आस पास वालों को बिना तनाव दिए रह ही नहीं सकते हैं !
      ऐसी परिस्थितियों में आपस में संबंधों के बनने बिगड़ने का मतलब है कि कोई व्यक्ति अच्छा या बुरा नहीं होता है अपितु व्यक्ति का अपना समय ही अच्छा या बुरा होता है जिस व्यक्ति का जितने वर्ष या महीने आदि के लिए समय अच्छा होता है उस व्यक्ति की उत्तम मित्रता उसी व्यक्ति से उतने ही समय तक चलेगी जबतक उसका अपना भी समय अच्छा होगा !जैसे ही अपना या उसका समय बिगड़ने लगता है  तैसे ही दोनों के आपसी बिचारों में एक दूसरे के प्रति अंतर आने लगता है!अच्छे समय से प्रभावित व्यक्ति सामने वाले के साथ कितना भी अच्छा वर्ताव क्यों न कर ले बुरे समय से प्रभावित व्यक्ति उसमें भी दुर्गुण खोज खोज कर उसके अच्छे वर्ताव को भी ठुकराता और उससे किनारा करता चला जाएगा !इसलिए किसी के किसी के साथ कब तक अच्छे संबंध रहेंगे और कब बिगड़ने लगेंगे !ये उन व्यक्तियों पर नहीं अपितु उनके अपने अपने समयों पर निर्भर करता है !इसलिए समय ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि लोगों का समय बदलते ही व्यवहार बदल जाते हैं और समय बदला ही करता है समय एक जैसा कभी किसी का नहीं रहता इसलिए जब जिस मित्र या नाते रिस्तेदार का व्यवहार अपने प्रति अच्छा न लगने लगे तो उसके समय बदलने की प्रतीक्षा करनी चाहिए उसकी निंदा नहीं करनी चाहिए उसे कटुबचन नहीं कहने चाहिए उससे लड़ाई नहीं कर लेनी चाहिए अन्यथा जब समय बदलकर अच्छा भी आ जाएगा तब एक दूसरे के दोबारा मिलने में ये बुरी बातें या बुरे व्यवहार बहुत अधिक बाधक बनते रहेंगे ! 
   पति पत्नी या प्रेमी प्रेमिका के आपसी संबंध भी समय के कारण ही बनते बिगड़ते रहते हैं !पुराने लोग समय के महत्त्व को समझते थे इसलिए एक दूसरे के बुरे बर्ताव को भूलने का प्रयास किया करते थे और सोच लिया करते थे कि ये समय है कभी तो सुधरेगा ही और सुधर भी जाता था उसकेबाद दोनों के आपसी संबंध मधुर हो जाया करते थे !कुलमिलाकर हर किसी का स्वभाव समय केआधीन होता है समयबदलने पर स्वभावबदलता है !
    किसी को व्यापार में नुकसान हो या किसी अन्य कार्य में या सामान्य रूप से ही गरीबत का जीवन जी रहा हो किंतु वो अपराध की ओर कभी अग्रसर नहीं होता था !क्योंकि उसे भरोसा होता था कि हमारी गरीबत का  कारण हमारा  अपना समय है संपत्ति नहीं !क्योंकि समय अच्छा होते ही सम्पत्तियों के ढेर तो स्वयं लग जाएँगे और जब तक समय ही अच्छा नहीं रहेगा तो किसी के धन या संपत्ति को लूटकर छीनकर  या किसी अन्य प्रकार से अपना बना भी लें तो वो धन तेज़ाब की तरह नुक्सान ही पहुँचाता रहेगा !जैसे तेजाब जिस हाथ में रखा जाता है वो जितनी देर तक रखा रहेगा या शरीर के जिस जिस अंग पर पड़ेगा उस उस अंग को जलाता चला जाएगा !उसी प्रकार से कोई व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के धन को किसी भी प्रकार से यदि अपना बना लेता हैतो वो जीवन के जिस जिस पक्ष का स्पर्श करता है उसे नष्ट करता चला जाता है कई बार तुरंत दिखाई पड़ता है तो कई बार देर में किंतु नष्ट करने की प्रक्रिया तुरंत प्रारम्भ हो चुकी होती है !बेईमानी का धन अपने शरीर या बच्चों के शरीर पर लगाएगा तो बीमारियाँ बढ़ेंगी घी खाएगा तो अटैक पड़ेगा !चीनी खाएगा तो शुगर होगी !शिक्षा पर लगाएगा तो शिक्षा काम नहीं आएगी और गाड़ी खरीदेगा तो दुर्घटना का शिकार होगी !घर खरीदेगा तो लोग वहाँ चैन से रह नहीं पाएँगे परिवार के सदस्य आपस में ही लड़ मरेंगे !इसलिए जब जिसका अच्छा समय आता है तब उसे उसके अपने सामान्य प्रयासों से भी इतना अधिक धन मिल जाता है कि वो संतुष्ट हो जाता है ! उस धन  से तृप्ति आरोग्य और प्रसन्नता प्राप्त होती है !सारे परिवार के सदस्यों में  दूसरे के प्रति प्रेम उमड़ता है उस धन से सब कुछ अच्छा होता चला जाता है !इसलिए  व्यक्ति के सभी सुख दुखों का  मुख्य कारण समय ही है !
      समय के अनुशार सुंदरता बढ़ती घटती रहती है जब जिसका समय अच्छा होता है तब वो बहुत स्त्री और पुरुषों के द्वारा पसंद किया जाने लगता है और जब जिसका समय बुरा होता है तब उसी स्त्री या पुरुष से लोग घृणा करने लगते हैं !किसी लड़की या लड़के का समय जब अच्छा चल रहा होता है तब वो किसी लड़के या लड़की की पहली पसंद बन जाते हैं और यदि पसंद करने वाले लड़के या लड़की का भी समय अच्छा चल रहा हुआ तो दोनों एक दूसरे को चाहने लगते हैं कई बार तो विवाह तक बात पहुँच जाती है किंतु सबका समय हमेंशा एक जैसा ही तो नहीं रहता है इसलिए उन दोनों में से किसी एक का समय बदला तो संबंध बिगड़ने लगते हैं उसमें भी यदि कुछ समय के लिए ही सही दोनों का समय बिगड़ा तब आपसी झगड़ा बहुत अधिक बढ़ जाता है यहाँ तक कि तलाक जैसी परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं थोड़े दिन बाद फिर जब दोनों का समय सामान्य होता है तो फिर संबंध सामान्य हो जाते हैं किंतु जब दोनों का समय एक साथ ही ख़राब आया था तब यदि घबड़ाकर कुछ गलत  फैसले ले लिए तो बात तलाक तक भी पहुँच जाती है !इसलिए कोई सुन्दर हो या न होये  और बात है  किंतु किसी को सुंदर लगे या न लगे इसका प्रमुख कारणउसका अपना  समय ही होता है !
      एक स्त्री या कोई कोई कोई स्त्री या पुरुष देखने में कम सुंदर लगने पर भी बहुत पुरुष या स्त्रियों के द्वारा पसंद किया जाने लगता है तो कोई स्त्री या पुरुष देखने में बहुत सुंदर लगता हो तो भी दूसरों की कौन कहे उसके अपने घर के लोग ही उससे घृणा कर रहे होते हैं !ये सारा समय का ही खेल है सुंदरता शरीर से अधिक समय का विषय है अच्छा समय स्वाभाविक रूप से आकर्षण बढ़ा देता है !