Wednesday, 30 November 2016

बैंकों के अंदर लगे वीडियो भी चेक कराए जाएँ और पहचाने जाएँ भ्रष्टाचारी कुकर्मचारियों के चेहरे !

     कालेधन को सफेद करने वाले अपनी बैंकों के कुछ कुकर्मचारियों के भ्रष्ट चेहरे सरकार भी देखे !बैंकों के आगे लगने वाली लंबी लंबी लाइनों का सच क्या था लाइनें आगे क्यों नहीं बढ़ती थीं इसकी सच्चाई भी सरकार को मिलेगी उसी वीडियो में !
   नेताओं के कालेधन को भी निकालने की हिम्मत क्या कर पाएगी सरकार !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की भी संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए !जितनी संपत्ति उनके पास आज है वो उनको मिलने वाली सैलरी से बनाई जा सकती थी क्या ?
     जनता को टैक्स तो देना चाहिए किंतु उस टैक्स के पैसे का सदुपयोग भी तो दिखना चाहिए !सुना जाता है कि संसद चलाने में भारी खर्च होता है किंतु सार्थक चर्चा कम और निरर्थक हुल्लड़ ज्यादा मचाया जाता है ऐसे हुल्लड़ मचाने वालों पर खर्च करने के लिए जनता क्यों दे टैक्स !इसी प्रकार से भ्रष्टाचार करने वाले भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की भारी भरकम सैलरी जनता के टैक्स के पैसे से क्यों दी जाए !सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना सरकार को आता नहीं है या सरकारों में बैठे लोगों को काम की जरूरत नहीं पड़ती है और वो अधिकारी कर्मचारी जनता की बात न सुनते हैं न ध्यान देते हैं ऐसे लोगों की सैलरी जनता के टैक्स के पैसों से क्यों दी जाए जो जनता को कुछ समझते ही नहीं हैं !
      हे PM साहब ! जनता को टैक्स देना ही चाहिए और कठोरता पूर्वक वसूला भी जाना चाहिए उन्हें टैक्सचोर पापी आदि सब कुछ कहा भी जाना चाहिए  काले धन के नाम पर उन्हें जितना बेइज्जत किया जा सकता हो किया जाना चाहिए !किंतु जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिए गए पैसों का सदुपयोग करना सरकार का कर्तव्य है या नहीं यदि हाँ तो क्या कर पा रही है सरकार !
      संसद की कार्यवाही पर प्रतिदिन खर्च होने वाला भारी भरकम अमाउंट जनता की गाढ़ी खून पसीने की कमाई का होता है जिसे नेता लोग संसद में हुल्लड़ मचा कर उड़ा देते हैं घंटों कार्यवाही बाधित रहती है क्यों ?कई कई दिन बीत जाते हैं ऐसे क्यों !
     संसद चर्चा का मंच है चर्चा करने सुनने वालों की शिक्षा और बौद्धिक स्तर चर्चा करने और समझने लायक होना चाहिए किंतु जो सदस्य अल्प शिक्षित हैं उनका संसद में क्या काम वो सोवें तो शिकायत बाहर  जाकर समय पास करें तो शिकायत और मोबाईल पर पिच्चर देखें तो शिकायत और हुल्लड़ करें तब तो शिकायत है ही !वो तो अपने पार्टी मालिकों का इशारा पाते ही हुल्लड़ मचाने लगते हैं उन्हें न संसद से कुछ लेना देना होता है न संसद की मर्यादाओं से वो तो बड़ी बड़ी कंपनियों के कर्मचारियों की तरह अपनी पार्टी के मालिकों को ही सब कुछ समझते हैं देश समाज एवं जनता के लिए उनकी कोई निजी सोच ही नहीं होती है फिर भी सरकार उनकी सुख सुविधाओं सैलरी आदि पर जनता से टैक्स रूप में प्राप्त धन खर्च करती है क्यों ? 
    देशवासियों की आखों के सामने ही टैक्स का दुरूपयोग जब साफ साफ दिखाई पड़ रहा हो तो जनता टैक्स क्यों दे ?उच्च शिक्षा ,संसदीय योग्यता चरित्र एवं सुसंस्कारों के आधार पर प्रत्याशियों का चयन यदि किया जाता होता तो न इतना हुल्लड़ होता न उट  पटाँग भाषा बोली जाती और सम्मान्य सदस्यों के वैचारिक आदान प्रदान का उच्चस्तरीय स्तर भी भारतीय संसद को दुनियाँ में गौरवान्वित कर रहा होता !राजनैतिक दलों में उच्च शिक्षा ,सदाचरण एवं संसादीय गुणवत्ता की अनिवार्यता क्यों न की जाए !
      दूसरा जनता के टैक्स का पैसा सरकार उन सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी सुविधाओं आदि पर खर्च करती है जिन पर काम की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है फिर भी सैलरी भारी भारी होती हैं ऊपर से सरकार समय समय पर बढ़ाए जा रही होती है क्यों ?सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों में व्याप्त भ्रष्टाचार के कारण पिछले कुछ दसकों से सरकारी नौकरियाँ पाने के लिए लोग सोर्स और घूस के बल पर घुस जाते रहे हैं नौकरियों में उन अयोग्य लोगों को योग पदों पर बैठा देने के दुष्परिणाम जनता भोग रही है वे या  करते नहीं हैं या कर नहीं पाते हैं या घूस लेकर करते हैं !सरकारी स्कूल अस्पताल डाक एवं दूर संचार व्यवस्था आदि तो लापरवाही के प्रत्यक्ष प्रमाण हैं इनकी कार्यशैली जनता का हृदय नहीं जीत सकी । शिक्षक,चिकित्सक,डाककर्मी या टेलीफोन विभाग से जुड़े लोगों की प्राइवेट वालों से कई कई गुना अधिक सैलरी और उनसे कमजोर काम !जबकि उनसे कम सैलरी पर रखे गए लोगों ने प्राइवेट स्कूलों अस्पतालों कोरियरों मोबाइल कंपनियों के माध्यम से जनता का विश्वास जीत रखा है !तभी तो देशवासी सरकारी की अपेक्षा प्राइवेट सेवाओं पर ज्यादा भरोसा करते हैं । जबकि प्राइवेट वालों की सैलरी इतनी कम होती है कि सरकारी एक कर्मचारी की सैलरी में प्राइवेट दो तीन चार लोग आसानी से निपटाए जा सकते हैं !वो लोग अलभ्य नहीं हैं फिर भी सरकार उन सस्ते लोगों को न रखकर महँगे लोग रखती है क्यों ?उनकी सैलरी बढ़ाती रहती है क्यों ? इसे टैक्स से प्राप्त पैसे का सदुपयोग कैसे मान लिया जाए ! सरकार के कई विभागों में तो  कुछ लोग बिनाघूस लिए एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाते हैं उनसे समय पर काम कराने के लिए व्यापारियों को रखना पड़ता है कालाधन !
    प्रधानमन्त्री जी ! अधिक नहीं आप केवल 8-30 नवंबर के बीच के किसी भी बैंक के अंदर के वीडियो देख लीजिए !PM साहब !सब कुछ पता चल जाएगा आपको कि नोटबंदी में लाइनें इतनी लंबी क्यों हुईं और सरकारी इंतजामों की भद्द क्यों और किसने पिटवाई !महोदय ! भ्रष्टाचार का जन्म ही सरकार के  भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की कोख से हुआ है ! सोर्स और घूस देकर जिन्हें नौकरियाँ मिली हों उनसे योग्यता  और आदर्श आचरणों की अपेक्षा भी कैसे की जाए !ऐसे लोगों को जब नौकरियाँ मिली थीं तब उनके पास कुछ ख़ास नहीं था किंतु आज कई के पास तो करोड़ों अरबों का अम्बार लगा है कई कई मकान हैं उनकी संपत्तियों का उनकी सैलरी या घोषित आय स्रोतों से कहीं कोई मेल नहीं खाता !क्या ऐसे भ्रष्ट और अयोग्य अपने कर्मचारियों की संपत्तियों की जाँच भी करेगी सरकार !
       जो नेता जब से पहला चुनाव जीता था तब उसके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है ! जाँच के दायरे में चल अचल सारी  संपत्तियाँ लाई जाएँ !और इस बीच के उनके आय स्रोतों की भी जाँच हो !अक्सर नेता लोग सामान्य परिवारों से आते हैं चुनाव जीतते ही बिना कुछ किए धरे ही सारे राज सुख भोगते भोगते करोड़ों अरबों पति बन जाते हैं दो चार मकान तो निगमपार्षदों के कब और कैसे बन जाते हैं उन्हें पता ही नहीं लगता !राजनीति शुरू करते समय प्रायः नेताओं के पास व्यापार करने के लिए न पैसा होता है और न समय फिर भी करोड़ों अरबों की कमाई कर लेते हैं आखिर कैसे ?वो भी ईमानदारी पूर्वक !ऐसा कैसे संभव हो पाता है जाँच इसकी भी हो और जनता के सामने लाई जाए सच्चाई !
       सरकारी जमीनों पर कब्जा करवाने वाले यही सरकारी अधिकारी और कर्मचारी होते हैं कुछ तो अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाते हैं कुछ घूस लेकर शांत हो जाते हैं उनकी आँखों के सामने सरकारी जमीनों पर बनाकर खड़ी कर दी जाती हैं बिल्डिंगें !ऐसे अवैध कब्जों के लिए सरकार उन्हें जिम्मेदार मानकर उन पर कार्यवाही क्यों नहीं करती है ! ऐसे सभी प्रकार के अपराध जिन अधिकारियों कर्मचारियों के तत्वावधान में घटित होते हैं उन्हें ही जिम्मेदार मानकर की जानी चाहिए कार्यवाही ।

Tuesday, 15 November 2016

भ्रष्टाचार क्यों और कैसे ?कौन कौन हैं भ्रष्टाचार के किरदार !

        भ्रष्टाचार क्यों और कैसे ?कौन कौन हैं भ्रष्टाचार के किरदार !
     भ्रष्टाचार की कहानी शुरू आखिर किए होती है जानिए आप भी !
सरकारों में सम्मिलित नेता लोग सरकारी कर्मचारियों से धनराशि इकट्ठी करवाते हैं उसके लिए उन कर्मचारियों को घूस लेनी पड़ती है इसी प्रकार से नेता लोग भ्रष्टाचार के द्वारा करोड़ों अरबों रूपए इकठ्ठा करवाते हैं इसके लिए अधिकारी कर्मचारी लोग कलेक्शन का टारगेट पूरा करने के लिए सभी प्रकार की अपराधों का अप्रत्यक्षरूप से समर्थन करने लगते हैं सरकारी जमीनों पर कब्जा करवाने से लेकर जनता पर सभी प्रकार का अत्याचार करवाते हैं वे किन्तु  कलेक्शन करके नेताओं को देते हैं उसके बदले नेता लोग उनकी सैलरी बढ़ा देते हैं किंतु उन कर्मचारियों को यदि लगता है कि उन्हें उनके हिस्से से कुछ कम मिला है तो वे  सरकारों में बैठे नेताओं को पोल खोलने की धमकी देकर हड़ताल पर चले जाते हैं सरकारों में बैठे नेतालोग घबड़ाकर  उनसे समझौता करने लगते हैं !इसी तुष्टीकरण के कारण सरकारी कामकाज की क्वालिटी दिनों दिन गिरती जा रही है स्कूल, अस्पताल, डाक, टेलीफोन आदि की पिटती सरकारी सेवाएँ नेताओं और भ्रष्टाचारी सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की आपसी साँठ गाँठ के द्वारा सरकारी भ्रष्टाचार की कहानी बयाँ करते हैं ।

Wednesday, 9 November 2016

मोदी जी ! भ्रष्ट बाबाओं ,नेताओं ,सरकारी कर्मचारियों एवं भूमाफियाओं के कालेधन पर कब होगी कार्यवाही ?

    1000 -500 के 'नोट' की 'चोट' से  सारे देश में मचा है हाहाकार !अब तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध  लड़ने लगी है मोदी सरकार !
     गंगानदी  भगवान के चरणों से निकलती है और भ्रष्टाचार की नदी भ्रष्टनेताओं, भ्रष्टअधिकारियों एवं भ्रष्टबाबाओं तथा भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !इसीलिए इनकी संपत्तियों एवं आयस्रोतों की जाँच के बिना भ्रष्टाचार को मिटाने के लिए की गई सारी कसरतें बेकार हैं ।                                           हे प्रधानमंत्रीजी!सरकार केलिए सबसे बड़ीचुनौती !                                        
अब नेताओं बाबाओं अधिकारी कर्मचारियों की निजी संपत्तियों की करवाई  जाए जाँच !काले धन का बहुत बड़ा भंडारण मिलेगा इनके पास ! क्योंकि ऐसे सफेदपोश लोग देश की सरकारी जमीनों का अपने को स्वयंभू मालिक समझते हैं उन्हें कब्ज़ा करके बेच लेते हैं धंधा व्यापार फैला देते हैं सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने के लिए ही ये लोग डाढ़ा झोटा बढ़ाकर बाबा बन जाते  हैं  आश्रम, मंदिर, योगपीठ, स्कूल, गोशाला या चैरिटेबल ट्रस्ट बनाकर  जनसेवा का नाटक करने लगते हैं !
     देश की खाली सरकारी जमीनों पर कब्ज़ा करने वाले अधिकाँश बाबा या नेता लोग हैं या फिर सरकारी अधिकारी कर्मचारी होते हैं इन्हीं लोगों की मल्कियत चलती है सरकारी जमीनों पर !सरकारी जमीनों को बेच बेचकर पहले तो बस्तियाँ बसा देते हैं और फिर यही सफेद पोश लोग इन बस्तियों का नियमिती करण करने के लिए आंदोलन करते हैं जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार आती है तो उस जमीन का नियमितीकरण करवा लेते हैं फिर नई जगह कब्ज़ा करते हैं । 
    कुलमिलाकर बाबाओं  नेताओं  या सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की कृपा के बिना न कोई गुंडा बन सकता है न माफिया और न ही अपराधी !क्योंकि इन लोगों से सरकारी मशीनरी भी डरती है इनकी पहुँच सीधे प्रधानमंत्री तक होती है !इसीलिए ये सफेदपोश लोग कई बड़े बड़े अपराध अपनी बाबागिरी और नेतागिरी में छिपाए घूम रहे हैं । 
     कालेधन के इन सफेदपोश रईसों को पकड़ने  की हिम्मत करना  बड़ी बड़ी सरकारों के लिए भी होता है हिम्मत का काम !बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों से हर सरकार डरती है क्योंकि इनकी चोरी पकड़ने के लिए जो सरकार खड़ी होती है ये उसी की पोल खोलने लग जाते हैं भ्रष्टाचारी सरकारें अक्सर डरकर अपने कदम वापस खीँच लेती हैं इसीलिए सत्ता किसी की हो सरकार किसी की भी बने किंतु बाबाओं ,नेताओं एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारियों का बोल बाला हर सरकार में रहता है !
       इसलिए हे प्रधानमंत्री जी !यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो भ्रष्टबाबाओं  भ्रष्टनेताओं एवं भ्रष्ट अधिकारियों कर्मचारियों की चल अचल संपत्तियों एवं उनके आयस्रोतों को भी  सार्वजानिक करे सरकार !
       सभी प्रकार के अपराधों को बढ़ावा देने में सबसे बड़ी भूमिका प्रमुख रूप से इन तीन लोगों की ही मानी  जाती है हजार पाँच सौ के नोट बंद करने का असर इन तीनों लोगों पर बिलकुल न के बराबर होगा !क्योंकि ऐसे लोग अपना सारा कालाधन जगह जमीनों में लगा चुके होंगे !
         अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी अपनी  काली कमाई को नोटों के रूप में वर्षों तक रखेगा इसकी कल्पना भी नहीं करनी चाहिए !यदि कुछ 1000 -500 के नोटों के रूप में उनके पास होगा भी तो इनमें से अधिकाँश लोग रसूखदार होते हैं वो अब तक सब इधर उधर कर चुके होंगे !
     हे प्रधानमंत्री जी ! बहुत लोगों में तो यहाँ तक  भ्रम फैलाया जा चुका है कि कालेधन से धनी नेताओं, नौकरशाहों, मीडियामालिकों,माफियाओं एवं कारोबारी और धनवान बाबाओं को विश्वास में लेने के लिए मोदी सरकार ने अपने नोट बदलने के निर्णय को महीनों पहले ही गुप्त रूप से इन लोगों को सूचित कर दिया था और उन्हें किसी भी प्रकार से नुक्सान नहीं होने दिया सौ सौ रूपए के नोट मार्किट से आज इसीलिए गायब हैं !ऐसे ही लोग मोदीसरकार  के इस निर्णय के उस समय गुण गाते घूम रहे हैं जब छोटे छोटे कारोबारी या आम घर गृहस्थी वाले लोग अपना सब कामकाज छोड़ कर बैंकों डाकघरों के सामने लाइनों में लगे हैं किंतु उन लाइनों में न तो कारोबारी बाबा हैं न नेता हैं न माफिया हैं  एवं सरकारी अधिकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन लाइनों में !आखिर क्यों ? क्या वो लोग इतने बड़े ईमानदार हैं और बाक़ी सारा देश बेईमान और भ्रष्टाचारी है या उन्हें पैसों की जरूरत नहीं पड़ रही होगी या उनके खर्चे आम जनता से कम हैं जो उनका काम बिना पैसे के ही चल जा रहा होगा !आखिर वे शांत क्यों और कैसे बैठे हैं और आम जनता परेशान है क्यों ? इसके कारण भी स्पष्ट किए जाने चाहिए !
        वर्तमान केंद्र सरकार यदि वास्तव में गंभीर है और भ्रष्टाचार पर लगाम लगाना ही चाहती है तो बहुत आवश्यक है कि पारदर्शिता बनाए रखी जाए और ईमानदारी पूर्वक न केवल आचरण किया जाए अपितु उस ईमानदारी पर शंका करने वालों का विश्वसनीयता इन आत्मीयता पूर्वक समाधान भी किया जाए !सरकार की या जिम्मेदारी है कि होम करते हाथ न जलने दिए जाएँ !
      हे प्रधानमंत्री जी ! सरकार ने यदि भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध छेड़ा ही है तो ध्यान यह भी रखा जाना चाहिए कि सफाया हो तो सबका हो !चाहें वो सरकार के कितने भी करीबी नेता अधिकारी या  धनवान साधू संन्यासी और बाबा लोग ही क्यों न हों ?अब यदि इन्हें बचाए रखने का थोड़ा भी लालच किया गया तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा और बदनाम हो जाएगी सरकार !नोटों को बदलने की घोषणा से अभी तो सारे देश में हाहाकार मचा हुआ है सोचने बिचारने का लोगों के पास समय ही नहीं है किंतु जिस दिन लोग सोचने बैठेंगे तब एक एक कमी काउंट करेंगे और उनका रुख देखकर ये विरोधी पार्टियों के नेता भी उस समय उगल रहे होंगे आग !
      अतएव हे प्रधानमंत्री जी !लगभग पिछले तीस पैंतीस वर्षों से भ्रष्टाचार बहुत बढ़ा है इस बीच खरीदी बेची गई चल अचल सभी संदिग्ध संपत्तियों की जाँच कराई जाए और उनमें लगाई गई अकूत धनराशि के आयस्रोत इंटरनेट पर सार्वजनिक कर दिए जाएँ ताकि किसी के बिषय में उसे जानने वाले को कोई शंका समाधान करना हो या कुछ और जानकारी देनी हो तो वो बात भी जाँच के दायरे में आ सके !जो आयस्रोत स्पष्ट न हों या गैरकानूनी हों या जिनमें नियमों का पालन न किया गया हो वो सारी  संपत्तियाँ एवं उनके द्वारा कमाई गई संपत्तियों से बनाई गई संपत्तियाँ पारदर्शिता पूर्वक जप्त करके उन्हें सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार !
     महोदय ! संन्यासी बनने की घोषणा के बाद साधू संतों के द्वारा इकट्ठी की गई सारी संपत्तियाँ कालाधन मानकर उन्हें जप्त करके सार्वजानिक संपत्तियाँ घोषित करे सरकार!ऐसे बाबा लोगों के सेवाकार्य एवं चैरिटी संबंधी सभी लोकप्रिय और जनहितकारी  कार्यों को यथावत उन्हीं की देख रेख में चलने भले दिया जाए किंतु उसका स्वामित्व सरकार अपने हाथों में लें!यदि वे वास्तव  में संन्यासी और सेवाकार्य करने वाले हैं और इसमें उनका कोई निजी लोभ नहीं है तो उन्हें यह व्यवस्था स्वीकार करने में कोई आपत्ति भी नहीं होनी चाहिए !विगत कुछ वर्षों में कुछ आश्रमों एवं बाबाओं की सेवा गतिविधियों में कई प्रकार के अपराध होते पाए गए जिन आरोपों में वे लोग अभी भी जेलों में हैं या कानूनी लड़ाईयाँ लड़ रहे हैं उसके बाद ऐसे सभी लोगों पर शंका होना स्वाभाविक है । वैसे भी संन्यास लेने के बाद समाज से चंदा इकठ्ठा करके बनाई गई संपत्तियाँ समाज की हैं न कि उन बाबाओं की ,इसलिए समाज की संपत्तियाँ समाज को सौंपने में बुराई भी क्या है !
      चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा बनाई गई अकूत संपत्तियों में भरा पड़ा है भ्रष्टाचार !साहस हो तो उन्हें पकड़े सरकार !  
     ऐसे नेताओं की संपत्तियों की जाँच क्यों न करवाई जाए चुनाव जीतते ही उनके यहाँ लग जाते हैं संपत्तियों के अंबार !खोजे जाएँ उनकी आय के स्रोत !आखिर ऐसा क्या है कि चुनाव जीत जाने के बाद अधिकाँश नेताओं को कुछ करने की जरूरत ही नहीं रह जाती है और प्रायः वे कुछ करते भी नहीं हैं और न ही उनके पास कुछ करने का समय ही होता है !ऐसे नेताओं ने सेवा कार्यों के लिए पहचानी जाने वाली राजनीति को ही न केवल अपना व्यवसाय मान लिया है अपितु उसी राजनैतिक धमक से  संपत्तियों के बड़े बड़े अंबार लगा लिए हैं जिनकी खनक से उनकी सैकड़ों पीढ़ियाँ राजसी ठाटबाट भोगती रहेंगी और आज भी वो बड़ी बड़ी कोठियों में न केवल रहते हैं अपितु कई कई तो खाली भी पड़ी होती हैं जहाज से नीचे पैर नहीं रखते !शादी काम  काज में करोड़ों अरबों रुपये पानी की तरह बहा देते हैं वे !आखिर कहाँ कमाने जाते हैं ? क्या धंधा व्यापार करते हैं और कब काम करते हैं बकवास करने हुल्लड़ मचाने से इन्हें फुरसत ही कहाँ होती है जो काम धंधा फैलाएँगे !भ्रष्टाचार की कमाई से ऐसे लोगों के खजाने भरे पड़े हैं हिम्मत हो तो जाँच करे सरकार अन्यथा 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों को नौकरी मिलने के बाद खरीदी गई जमीनों मकानों की जाँच करे सरकार !
        सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने नौकरी लगने के बाद जितनी भी संपत्तियाँ बढ़ाई और बनाई हैं उनकी जाँच क्यों नहीं करती है सरकार !उनमें से जो लोग  घूस लेते हैं उससे भ्रष्टाचार पूर्वक बनाई गई संपत्तियाँ और फिर उन संपत्तियों के द्वारा इकठ्ठा की गई जो संपत्तियाँ वे सब काला धन नहीं हैं तो क्या हैं ?सरकार को आखिर क्यों नहीं दिखाई पड़ता है ये भ्रष्टाचार ? केवल 1000 -500 के नोट बंद करने से कैसे बंद हो जाएगा भ्रष्टाचार ?काले धन से खरीदी गई संपत्तियों के अलावा उनकी सैलरी या नैतिक स्रोतों से संचित धन की सीमा में नहीं आती हैं तो वे संपत्तियाँ गैरकानूनी हैं ब्लैकमनी हैं उन्हें सरकार सार्वजनिक करे !
      बाबाओं के द्वारा सबकुछ छोड़ने अर्थात संन्यास लेने की घोषणा करने के बाद जोड़ा गया सारा धन ही कालाधन  होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति भी ब्लैकमनी है ।घूसखोर अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी के अलावा भ्रष्टाचार पूर्वक अर्जित की गई सारी  संपत्तियाँ ही काला धन हैं  क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
     देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया होता है वो सारा ब्लैकमनी अर्थात काला धन ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित करे सरकार !
   ऐसी संपत्तियों की जाँच करवाकर जो संपत्तियाँ  इनके खून पसीने की कमाई की नहीं हैं उन्हें जब्त करके सार्वजानिक संपत्ति घोषित करे सरकार !
         सैद्धांतिक रूप से बाबाओं का सारा धन ही ब्लैकमनी होता है चुनाव जीतने के बाद नेताओं के द्वारा अनैतिक रूप से इकठ्ठा की गई सारी संपत्ति ब्लैकमनी है । इसी प्रकार से सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की नौकरी लगने के बाद इकठ्ठा की गई गैरकानूनी संपत्तियाँ ब्लैकमनी हैं क्या सरकार इन तीनों के विरुद्ध भी कठोर कार्यवाही करने की हिम्मत जुटा पाएगी !
     देश की आम धारणा है कि साधू संत लोग विरक्त होते हैं संन्यास का मतलब ही सबकुछ छोड़ना ही होता है और सब कुछ त्यागने की दुहाई देने वाले बाबाओं का वो धन जो बाबा बनने के बाद इकठ्ठा किया गया है वो सारा ब्लैकमनी ही माना जाना चाहिए और उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए !
        महोदय !भ्रष्टाचारियों का तब तक बाल भी बाँका नहीं होगा जब तक भ्रष्टनेताओं ,भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टसरकारी कर्मचारियों की संचित संपत्तियों की जाँच नहीं की जाती !चुनाव जीतने के बाद जिस नेता के पास जितनी संपत्ति बढ़ी या बनी है इसी प्रकार से नौकरी लगने के बाद जिस अधिकारी कर्मचारी के पास जो संपत्ति बढ़ी और बनी है वो सारी जाँच के दायरे में लाई जाए !राजनीति में जब वे आए थे तब उनके पास चल अचल संपत्ति कितनी थी और आज कितनी है संपत्ति !इसकी जाँच तो होनी चाहिए ।
    

Thursday, 3 November 2016

स्त्री और पुरुषों के बीच होने वाली मित्रता पवित्र भी हो सकती है क्या ?

     शरीर और मन से नपुंसक लोगों में हो सकता है कि ऐसा संभव हो भी पाता हो किंतु वहाँ भी संभावनाएँ बहुत कम होती होंगी!चोर यदि चोरी करने का स्वभाव छोड़ना भी चाहे तो भी टारा फेरी तो करता ही रहेगा !उसे रोक पाना उसके बश की बात भी नहीं होती है !  
सेक्सभूख मिटाते लड़के और लड़कियाँ !महिला सुरक्षा के लिए चिंतित सरकार 
      मित्र यदि नपुंसक नहीं है तो अपने से विपरीत लिंग वाले स्त्री पुरुष या किसी भी जीव के प्रति आकर्षण होना उसके स्वभाव में होता है उसे वो कैसे छोड़ सकता है स्वभाव बदल पाना आसान  होता है क्या ?
     मित्रता बहुत बड़ा पद और समर्पण है उसमें शरीर मन आदि सब कुछ सौंपना ही होता है न सौंपे तो मित्रता काहे की ?मित्रता करते समय सीमा रेखाएँ नहीं खींची जा सकतीं क्योंकि मित्रता के स्वभाव में ये सभी बड़ी बाधाएँ होती हैं । जिससे आप मित्रता करते हैं हो सकता है कि आप उससे सेक्स के लिए आकर्षित न हों आपका कोई अन्य स्वार्थ हो किंतु सामने वाला यदि आप के प्रति सेक्स की इच्छा रखता हो तो उसे आप कैसे और कितने दिनों तक टाल सकते हैं और यदि आप उसकी इच्छा के अनुसार बर्ताव नहीं करेंगे तो वो आपका मित्र कहलाना ही क्यों पसंद करेगा ?
   यदि उसका आप पर अधिकार ही न हो तो वो अपने अधिकार आपको क्यों देगा और यदि अधिकारों की अदला बदली में ही हिचकिचाहट बनी रही तो मित्रता किस बात की !मित्रता के लिए हमारा तुम्हारा जैसे भावों को मिटाना सबसे अधिक आवश्यक होता है । 
      मित्रता का अर्थ ही किसी के प्रति समर्पण होता है और समर्पण चाहने वाले स्त्री पुरुष ऐसी मित्रता करेंगे ही क्यों जिसमें समर्पण न हो और जहाँ समर्पण है वहाँ रुकावट कैसी ! समर्पण किस्तों में नहीं हो सकता है समर्पण तो संपूर्ण होता है ।"ये हमारा वो तुम्हारा"की भावना मिटाकर सब कुछ अपना दोनों का मानने का अभ्यास ही मित्रता है इसमें खुद के लिए कम और  अपने मित्र के लिए अधिक जीना होता है अर्थात अपनी स्वार्थ भावना को दबाकर अपने मित्र की इच्छाओं की पूर्ति करना ही तो मित्रता है।      
      इसलिए स्त्रियों और पुरुषों का आपसी दैहिक आकर्षण स्वभाव में होता  है और स्वभाव बदलना मनुष्य के बश की बात नहीं है । आग लग सकने योग्य ज्वलनशील चीजें यदि जलती हुई आग के पास रखी हों तो उन्हें जलाना नहीं पड़ता है अपितु वे स्वयं ही जलने लग जाती हैं जो कई बार पानी से भी नहीं बुझती है जलाकर ही दम लेती है आँधी उड़ाकर ले जाती है बाढ़ बहाकर कर ले जाती है कुल मिलाकर ये उनके स्वभाव हैं जब वे नहीं बदले जा सकते तो स्त्रियों और पुरुषों का एक दूसरे के प्रति आकर्षित होना एक दूसरे का स्वभाव है उसे कैसे बदला जा सकता है।  हाँ इन पर संयम की कोशिश उसी तरह की जा सकती है जैसे कोई भूखा व्यक्ति किसी हलवाई की दुकान में रखे रसगुल्ले देखकर या तो उन्हें पा लेता है या उन्हें पाने की कोशिश करता है या उन्हें पाने के लिए पागल हो उठता है और या फिर अपनी पहुँच से बाहर मानकर मन मार लेता है किंतु यदि रसगुल्ले किसी को बहुत पसंद हों  ऊपर से उसे भूख भी लगी हो फिर उसे रसगुल्ले देखकर वो खाने को ललचाएगा नहीं ये मानने लायक बात ही नहीं है ।कोई स्त्री या पुरुष किसी पुरुष या स्त्री के शरीरों के प्रति आकर्षित न हो ऐसा हो ही नहीं सकता है
     वैसे भी अपने अपने शरीर दिखाने खोलने उभाड़ने या ब्यूटीपार्लरों से सेक्स ट्रे बनकर निकलने वालों का उद्देश्य भूखों को रसगुल्ले दिखाने के अलावा और क्या हो सकता है अपनी घर गृहस्थी के स्त्री पुरुषों को खुश करने भर के लिए उनका पुरुष और स्त्री होना ही काफी होता है ऊपर से उत्तम वस्त्र उसके ऊपर से सहज श्रृंगार ही बहुत होता है । 
   अपनी घर गृहस्थी को ही अपना तीर्थ मानने वाले लोगों को इसके अलावा किसी और को आकर्षित करने की आवश्यकता ही नहीं होती है और जब या जिसके जीवन में वैकेंसी खाली ही न हो वो शरीरों के विज्ञापन में रूचि ही क्यों लेगा !पुराने लोग अपने अपने गृहस्थ जीवन से संतुष्ट होते थे इसीलिए उन्हें एक दूसरे का धूल भरा मुख भी आकर्षित कर लिया करता था एक दूसरे के प्रति समर्पित होते थे वे लोग !जहाँ एक दूसरे के प्रति समर्पण हो उसके तो दुर्गुण भी अच्छे लगने लगते हैं अपने बच्चे तो सबसे अधिक प्यारे लगते हैं वो ब्यूटी पार्लर से सज कर तो नहीं आते फिर भी अपने हैं इसलिए अच्छे लगते हैं आज पति पत्नी के आपसी संबंधों से जो अपनापन गायब होता जा रहा है उसकी भरपाई ब्यूटीपार्लरों से हो पाएगी क्या ?और यदि इस हो सकता होता तो न तलाक होते न हत्या या आत्महत्या जैसी दुर्घटनाएँ ही घटतीं !आखिर अपनों को चोट पहुँचाने की भावना ही क्यों आती !
       ब्यूटीपार्लरी संस्कृति का लक्ष्य ही अपने दो के बीच किसी तीसरे को घुसाने की चाहत होती है किंतु कौन कितना घुसाना चाहता है इसके लिए सबकी परिस्थितियाँ ,भावनाएँ और जरूरतें अलग अलग होती हैं किंतु एक बात कामन है कि वो अपने प्रति अपने पति या पत्नी के अलावा अन्य लोगों को भी आकर्षित करना चाहते हैं ये बात आकर्षित होने वालों को भी पता होती है किंतु कौन कितना आकर्षित करना चाहता है इसका पता आकर्षित होने वाले को कैसे लगे इसके लिए उसके पास कोई थर्मामीटर तो होता नहीं है वो अपने अपने हिसाब से और अपनी जरूरतों के अनुसार आकर्षित होता है इसके अलावा भी आकर्षण का जिसको जहाँ जैसा रेस्पांस मिलता जाता है वो वहाँ वैसा आगे बढ़ता चला जाता है । 
     ये  ब्यूटीपार्लरी या फैशनी आकर्षण ही वैवाहिक जीवनों को बर्बाद करने के लिए बहुत हद तक जिम्मेदार है ऐसे ही दिखावे ने बनावटी वैकेंसी दिखा दिखाकर तलाक हत्या आत्महत्या जैसे तमाम अन्य अपराधों के लिए समाज को उकसाया है यही कारण है कि ऐसे लैला मजनुओं की अपेक्षा अशिक्षितों गरीबों ग्रामीणों के यहाँ ऐसी दुर्घटनाएँ सुनने को कम मिलती हैं ।  
     कुल मिलकर दैहिक आकर्षण को रोक पाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । आपसी दैहिक आकर्षण स्वभाव में होता  है उसे कैसे रोका  जा सकता है । 

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