Wednesday 26 October 2016

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कानून अधिकारियों के हाथ है या अपराधियों के हाथ ? बारे उत्तरप्रदेश !! जनता के दुःख दर्द भी कोई तो सुने !!!
     अधिकारी गाँधी जी के बंदरों के अनुयायी हैं वो समाज की बुराई देखना सुनना और बोलना  नहीं चाहते !नेताओं पर हर समय छाया रहता है चुनावी नशा !राजनैतिक शेयर मार्केट में गहमा गहमी का माहौल है कुछ लोग सरकारों से फेंके जा रहे हैं कुछ के मंत्रालय बदले जा रहे हैं कुछ को शर्मिंदा किया जा रहा है।  कुछ पार्टियों के हाथी पुरानी पार्टियों की जजीरें तोड़ कर घूम रहे हैं सूँड़ उठाए !मोलभाव करके बाँधे गए हैं कुछ तो कुछ घूम रहे हैं बिकने की तलाश में !
      नेता दूल्हे की तरह सजे घूम रहे हैं चिंता चुनाव जीतने की बाकी जनता जहन्नम में जाए !बारे जनसेवको !पार्टियों के पद बाँट दिए गए हैं और सबको समझाया जा रहा है कि ऐसे श्लोगन खोज कर लाओ जिससे ज्यादा से ज्यादा फँस सकें लोग !दलितों को आटा दाल चावल देने की बातें कह कर पटाओ!सवर्णों को सम्मान देने  नाटक करों पैरों से कमजोर होती हैं ये जातियाँ !महिलाओं को सुरक्षा की बातें बताओ ! घरों में अधिकार दिलाने के नाम पर भड़काओ ! सबके हाथ पैर जोड़ लो जितना मूर्ख बना सकते हो बनाओ ! दलितों को देखकर उन्हें सवर्णों के शोषण वाली घिसी पिटी बातें बताओ उनमें प्रतिशोध की भावना भड़काओ !जैसे सत्ता हथिया सकते हो हथियाओ जितना झूठ बोल सकते हो बोलो !खुली छूट है !
    कुलमिलाकर चुनावी बसंत ऋतु में नेताओं की नियत बिगड़ चुकी है चुनावी नशा सिर चढ़कर बोल रहा है । सरकारों को किसी के काम की कोई चिंता नहीं है आम आदमी का कोई बश नहीं है । नेताओं के आगे दुम हिलाना स्वीकार कर चुके हैं अधिकारी भी !अरे !माता सरस्वती के वरद पुत्र अधिकारियो !नेता लूटपाट  की राजनीति में बिजी हैं तो तुम्हीं बन जाते जनता का सहारा!इस लोकतान्त्रिक प्रणाली में कोई तो होता जनता का भी अपना !
     अपराधी किसी को भी चुनौती दे देते हैं "जाओ जो करना हो कर लो और डंके की चोट पर करते हैं अपराध !" ये सरकार शासन और प्रशासन के लिए शर्म की बात है क्योंकि ये चुनौती जनता को नहीं अपितु कानून और कानून के रखवालों के लिए होती है ये जिन्हें अपराधी या तो खरीद चुके होते हैं या खरीदने की ताकत रखते हैं या सोर्सफुल होते हैं या फिर शासन प्रशासन की परवाह ही  नहीं करते हैं सरकारी तंत्र इतना शिथिल है कि काम करना तो दूर जवाब देना जरूरी नहीं समझते हैं  लोकतंत्र के मक्कार प्रहरी !
     सत्ताधारी दल हों या विपक्ष !नेताओं का जनता के कार्यों से कोई संबंध नहीं रह गया है वो केवल अपने और अपनों के काम करते हैं बाकी सबको केवल आश्वासन देते हैं ।मंत्रालयों सरकारी आफिसों में जनता पत्र लिख लिख कर भेजती है उसमें ज्यादा से ज्यादा 'श्री' और 'जी' जैसे शब्द घुसाती है 'मान्यवर' 'महोदय' और 'श्रीमानजी' जैसे शब्द तो कहीं घुसा देती है लेकिन संवेदना शून्य लोग  ऐसे  शब्दों के अर्थ समझते भी हैं या नहीं !"भैंस के आगे बीन बाजे भैंस खड़ी पगुराय !"
    नेता केवल इतना काम  करने में लगे हैं कि अगले पाँच वर्ष बाद अपनी ही सरकार बने इसका इंतजाम करते हैं ।किसके भरोसे  चल  रहा है भारत का लोकतंत्र !हर सरकार अपनी अपनी पीठ थपथपा रही है । बड़ी बड़ी योजनाएँ बनाई जा रही हैं चुनाव जिताने का मतलब जनता को मूर्ख बनाने के लिए अब तो बकायदा ठेके पर उठने लगी हैं पार्टियाँ !प्रशांत किशोर जैसे लोग जनता को भ्रमित करने के लिए इस रिसर्च में लगाए गए हैं कि जनभावनाओं का अधिक से अधिक दोहन कैसे किया जाए !सरकारों को किसी के काम की कोई चिंता नहीं हैविपक्ष कुंठा ग्रस्त है जनता ट्रस्ट है बारे लोक तंत्र !
          कंप्लेन किससे करें घूस देने को पैसे नहीं हैं सोर्स है नहीं !दलालों ने बताया कि काम करवाने के लिए किस विभाग में किसको कितने रूपए देने पड़ेंगे सब के रेट खुले हुए हैं उन्होंने कहा कि घूसके बल पर निचले स्तर से मदद मिलने की सम्भावना है और सोर्स के बल पर ऊपर वाले लोग सुनते हैं ऐसा सिद्धांत है इसलिए या तो घूस दो या सोर्स निकालो !मैंने कहा ये दोनों नहीं हैं मेरे पास ।इसलिए मैं अधिकारियों को अपनी  समस्या लिखूँगा !इस पर एक  दलाल ने कहा कि आजकल अधिकारी लोग आपकी तो छोड़िए अपनी आत्मा की भी नहीं सुनते केवल शक्तिशाली नेताओं का अनुगमन करते हैं वे ! मैंने फिर भी कहा -
      कई मौकों पर अधिकारियों ने मुझे निराश नहीं किया है इसलिए उन्हीं तक अपनी आवाज पहुँचाने की एक कोशिश  मैं करूँगा !इसलिए मैंने  कई विभागों में कंप्लेनके एप्लिकेशन भेज दिए हैं केवल पुलिस थाने को छोड़कर !
      आपके पास यदि घूस देने के लिए पैसे नहीं हैं और सोर्स भी नहीं है तो आपके साथ कितना भी बड़ा अन्याय होता रहे उचित होगा कि आप केवल सहन शीलता के साथ अपना शोषण सहते रहें क्योंकि जहाँ कहीं भी  आप कम्प्लेन करेंगे वहाँ से सौभाग्यवश यदि कोई चेक करने आया भी तो वो तब तक आपकी ही कमियाँ निकलता रहेगा जब तब आप उसकी जेब में कुछ डालेंगे नहीं यदि आपने कुछ भी नहीं दिया तो वो कम्प्लेन वहीँ ठंडी !यदि आप ऊपर के अधिकारियों के पास कम्प्लेन करेंगे तो वो जाँच करने के लिए तो इन्हीं निचे वालों के पास ही भेजेंगे अंतर इतना होगा कि तब जो एक हजार माँग रहे अब उन अधिकारियों का भी हिस्सा सामिल हो गया इसलिए अब वो दस हजार माँगने लगते हैं 
अधिकारियों कर्मचारियों और नेताओं ने लोकतंत्र को बंधक बना रखा
   

Monday 24 October 2016

बलात्कारों एवं सभी प्रकार के अधिकाँश अपराधों के लिए केवल प्रेमी - प्रेमिकाएँ ही जिम्मेदार !

  प्रेम प्यार के पाखंडों पर प्रतिबंध लगाए बिना महिलाओं की सुरक्षा करना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है !
     'बलात्कारों की दावत' दिया जाना बंद करवाने के लिए आगे आएँ महिलाएँ और महिला संगठन !महिलाएँ केवल भोग की वस्तु नहीं हैं उनके पास भी दिल होता है दिमाग होता है गुण होते हैं गौरव होता है उनका अपना सम्मान होता है योग्यता होती है सहनशीलता होती है संबंधों को बनाने और निभाने की अद्भुत सामर्थ्य होती है किंतु कुछ लड़कियों और महिलाओं ने अपने बिगड़े हुए चरित्र के कारण कुछ पुरुष अपराधियों का मनोबल इतना अधिक बढ़ा रखा है कि वो कभी भी कहीं भी महिला समाज की बेइज्जती किया करते हैं वे किसी भी बहन बेटी पर भेड़ियों की तरह हमला कर देते हैं उनका मानना होता है कि हम पहले जबर्दश्ती करेंगे बाद में पटा लेंगे !ऐसे मनोरोगी अपराधी एक दो चार जगह सफल हो जाते हैं तो वो हर किसी माँ बहन बेटी को इसी दृष्टि से देखने लगते हैं और इसी भावना से सब पर हमले करते हैं !इन हमलावरों के दुष्कर्मों को भ्रष्ट मीडिया प्यार कहता है किंतु ये प्यार कैसे हो सकता है जिसके कारण लाखों जिंदगियाँ बर्बाद होती जा रही हैं कितनी हत्याएँ आत्म हत्याएँ हो रही हैं लड़कियों को पटाने हेतु धन जुटाने के लिए अच्छे अच्छे पढ़े लिखे लड़के अपराधी बनते जा रहे हैं फिर भी इस आपराधिक प्रवृत्ति को  प्यार कैसे मान लिया जाए !
     अधिकाँश पुरुष चाहते हैं कि हमारी माँ बहन बेटी पत्नी की ओर कोई सेक्स भावना से देखे भी नहीं और किसी ने यदि देखा तो वो उसे दण्डित करते समय कानून की भयंकर धाराओं की परवाह नहीं करते तुरंत मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं कई तो ऐसे संबंधों को न भूल पाने वाली अपनी बच्चियों तक की निर्मम हत्या करते देखे जाते हैं कुल मिलाकर वो अपनी बहन बेटियों के साथ प्रेम प्यार का खिलवाड़ सह नहीं पाते हैं ये मानसिकता अधिकाँश भारत वासियों की है इतिहास गवाह है इसके लिए कितने बड़े बड़े युद्ध हो चुके हैं !फिर भी देश का स्वभाव समझने में नादानी क्यों ?
        कुछ दुश्चरित्र लोग जो अपनी जवानी में दूसरों की बहन बेटियों की इज्जत से खिलवाड़ करते रहे हैं वो  अपने ऐसे दुष्कर्म अपने परिवार और समाज से छिपाने में नाकाम रहे हैं अर्थात इस मामले में अपनों की नज़रों से गिर चुके हैं वे निर्लज्ज लोग कहते हैं प्रेम प्यार करने में कोई बुराई नहीं है हम फैशनेबल हैं आधुनिक हैं विदेशी संस्कृति में जीने वाले लोग हैं उन्हें आदर्श और चरित्र की बातें 18 वीं  19वीं शदी की या दकियानूसी लगती हैं । 
    अरे टुच्चो ! अपने गौरवमय  अतीत पर गर्व करो !आधुनिकता का मतलब नंगा होना ही नहीं होता है मित्रता का मतलब मूत्रता ही नहीं होता है परिवार का मतलब केवल पत्नी ही नहीं होता है रिश्तेदारों का मतलब केवल ससुराल से जुड़े लोग ही नहीं होते !मौज मस्ती की जिंदगी का मतलब केवल सेक्स के लिए जीना ही नहीं होता !अपनी जिंदगी के लिए समय निकलने का मतलब केवल पत्नी की खुशामद करने में दिन व्यतीत करना ही नहीं होता !अरे भारतीयो  !अपने जीवन से जुड़े सभी संबंधों को यथा संभव निभाने का प्रयास कीजिए सबसे संतुलन बना कर चलने का प्रयास कीजिए !माता पिता भाई बहन आदि की छोटी छोटी बातें पकड़कर उनसे नाराज होने का नाटक करने वाले कामियों !कभी सोचा है कि उससे सैकड़ों गुना ज्यादा अपमान सेक्स लोभ के कारण  पत्नी और प्रेमिकाओं से सहते हो तब वो सम्मान स्वाभिमान भरा दिल चिल्लूभर पानी में डूब क्यों नहीं मरता !
     आदर्श महिलाओं बहनों से मेरा निवेदन है कि ऐसे पुरुषों पर भरोसा मत करो जो माता पिता को भूलकर आपसे प्रेम करने का नाटक करते हैं वो आपसे नहीं अपितु बासना से प्रेम करते हैं इसलिए वो आपको आज अपना मानते हैं किन्तु जिसदिन उन्हें बासनापूर्ति के स्रोत कहीं से और अच्छे मिल जाएँगे उस दिन ऐसे कामी लोग आपको भी भूल जाएँगे वैसे भी जो अपनों का न हुआ वो आपका होगा ऐसी आशा भी नहीं करनी चाहिए !बलात्कारों की दावत दिया जाना बंद क्यों न किया जाए !
    बुरे को बुरा कहने में भी डर रहे हैं लोग !संस्कारों की सुरक्षा के लिए मर मिटने वाला भारतीय समाज पहले इतना डरपोक तो नहीं था !ये भी तो सोचिए कि अपने समाज की बुराई दूर करने के लिए आगे यदि हम नहीं आएँगे तो ये जरूरी काम करेगा कौन !केवल पुलिस और केवल कानून के बलपर नहीं घटाए जा सकते हैं अपराध !सामाजिक जनजागरण बहुत जरूरी है । 
बुरी महिलाओं को अपराध और अपराधियों से उन्हें कोई शिकायत नहीं होती और महिला सुरक्षा के नाम पर सुरक्षित वे भले लोगों की जिंदगी के साथ खेलती रहती हैं !ऐसी महिलाओं ने भी पुरुष समाज को प्रताड़ित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है । 
 हमें बलात्कारों का विश्लेषण करते समय कुछ जरूरी इन बिंदुओं का भी ध्यान रखना चाहिए -              "कामश्चाष्ट गुणः स्मृतः"-चाणक्य 
 जितना कामी पुरुष लोग स्त्रियों के प्रति सेक्स भावना से जितना आकर्षित होते हैं उससे आठ गुणा ज्यादा स्त्रियों में होती है सेक्स भावना किंतु पुरुष अपनी एक गुनी बासना से पागल हो उठते हैं और प्रकट कर देते हैं जबकि महिलाएँ उस आठ गुनी सेक्स भावना को भी तब तक दबाए रहती हैं जब तक संभव हो किंतु जब उनके धैर्य का बाँध टूटता है तब भाई पिता पुत्र कुछ भी नहीं दिखता है उन्हें भी -
भ्रातापितापुत्र उरगारी!पुरुष मनोहरनिरखत नारी ॥ 
                                      -राम चरित मानस  
       महिला सुरक्षा के कानूनों का दुरुपयोग करती हैं
    अपराधों के मूल्यांकन में भी स्त्री पुरुष का भेदभाव क्यों ?अपराध भावना से ग्रसित महिलाएँ अपराधियों से ज्यादा खतरनाक होती हैं उनकी पहिचान  विरोध के लिए आगे आएँ महिलाएँ !
सेक्स की पीड़ा शांत करते लड़के लड़कियाँ !

महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर टक्कर दे रही हैं फिर छेड़छाड़ के आरोप केवल पुरुषों पर  ही  क्यों ?    कहीं ऐसा तो नहीं है कि गलती केवल पुरुषों की न हो !अन्यथा इतने बड़े बड़े दंड विधानों का उतना असर होता क्यों नहीं दिख रहा है समाज पर !लगभग हर दिन सुनाई पड़जाता है कोई न कोई केस !अब तो छोटी छोटी बच्चियों के साथ भी किए जाने लगे हैं अत्याचार !आखिर कहाँ तक और किस किससे बचाई  जाएँ बच्चियाँ !ग़लतियाँ बड़ों की और भोग रही हैं बच्चियाँ !
     वर्तमान समय में अच्छे बुरे जो भी जितने प्रकार के काम पुरुष करते या कर सकते हैं लगभग वो हर काम आज महिलाएँ भी करती या करने का प्रयास करते देखी जा सकती हैं !आतंकियों नक्सलियों नशेड़ियों शराबियों तस्करों चोरों हत्यारों आदि बुरे से बुरे कामों में भी महिलाएँ सम्मिलित देखी जा रही हैं आज !फिर क्या कारण है कि रेप जैसी जितनी भी दुर्घटना घटती हैं सब में केवल पुरुष समाज को दोषी ठहरा दिया जाता है आखिर  महिलाओं में सेक्स की इच्छा नहीं होती है क्या ?आप स्वयं देखिए कहाँ पीछे हैं महिलाएँ -see more... http://khabar.ibnlive.com/photogallery/ibn7-operation-lajja-reavels-wife-swapping-459253.html
    महिलाओं की सुरक्षा हेतु  पुरुषों को अनुशासित रखने के लिए बड़े से बड़े दंडविधानों का प्रावधान किया गया किंतु महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार घटते नहीं दिख रहे हैं आखिर क्यों ?हो न हो हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर टक्कर दे रही महिलाएँ इसक्षेत्र में भी अधिक न सही आंशिक रूप से ही हो अपनी भूमिका भी अदा कर रही हों ! केवल पुरुषों को कहीं बेवजह परेशान तो नहीं किया जा रहा है !
     सेक्स भावना जिन भी स्त्री पुरुषों के मन में जितनी अधिक होती है ऐसे स्त्री पुरुष उतने ही अधिक सजते सँवरते अर्थात श्रृंगारप्रिय होते हैं कुलमिलाकर शरीर के  श्रृंगार का लेवल मन की बासना के लेवल को प्रकट  करता है ये प्राचीन शास्त्रीय सिद्धांत है संभवतः पुराने लोग इसीलिए सहज श्रृंगार ही करते थे !इस शास्त्रीय सिद्धांत के अनुशार यदि श्रृंगार का सीधा संबंध सेक्सभावना से माना जाए तो वर्तमान समय में श्रृंगार करने करवाने का शौक पुरुषों में अधिक होता है या महिलाओं में ?ब्यूटी पार्लरों की जरूरत अधिक किसे पड़ती है । पुरुषों को या स्त्रियों को  ?
     इसी प्रकार कोई भी दूकानदार हर बिकाऊ वस्तु को सीसे में रखता है ताकि दिखाई पड़ती रहे जब दिखाई पड़ेगी तब तो कस्टमर उसे पसंद करेंगे !जो चीज में किसी के पसंद न पसंद की चिंता नहीं होगी उसे लोग दिखाएँगे क्यों ढक कर रखेंगे !वर्तमान फैशन के युग में स्त्री -पुरुषों में शरीर दिखाने की भावना किसमें किससे अधिक देखी जाती है ?       
    अब स्त्री-पुरुषों,लड़के-लड़कियों का रोडों पर साथ साथ निकलना बंद किया जाए !ऑड इवेन के हिसाब से घरों से निकलें पुरुष और महिलाएँ ! जिसदिनहिलाएँ रोडों बाजारों के लिए निकलें उस दिन पुरुष दूर दूर तक दिखाई न पढ़ें इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी नियम बनाए जाएँ !बंद हो जाएगी सारी  छेड़छाड़ ! पुरुष अपने आपसे किसी महिला को छुएँ न देखें न घूरें न कुछ बोलें न और महिलाओं को जो ठीक लगे सो सब कर सकती हैं महिलाएँ !ये कैसी बराबरी !!
     छोटी छोटी बच्चियों पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए करना होगा ये .... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html
   प्यार का खतरनाक खेल खेलते दोनों हैं किंतु बातबिगड़े तो दोषी पुरुष समाज !ये कैसी बराबरी !!किसी के पास कितनी है धन संपत्ति यह जानने के लिए पहले प्यार करें मन मिलाकर पूछ लें सबकुछ इसके बाद छेड़ छाड़ से लेकर बलात्कार तक का लगाकर आरोप भेज दें जेल समझौता हो तो अच्छा हो अन्यथा सड़े जेल में !बाद में दोषी बेचारा पुरुष समाज !प्यार का खेल दोनों ने खेला और भुगते केवल आदमी !अरे ये कैसी बराबरी ? 
    ससुराल वाले दहेज़ लें न लें उनके मातापिता बहू की कितनी भी प्रताड़ना सहें किंतु कुछ न कहें और यदि कभी कुछ मुख से निकल ही जाए आखिर मर मर कर जिसघर को बनाते हैं उसे बर्बाद होते कैसे देख सकते हैं किन्तु इतनी भी बात बर्दाश्त नहीं है तुरंत होता है दहेज़ का मुकदमा घर भर भेज दिए जाते हैं जेल!ऐसे बचेगा समाज !उचित तो ये है कि ऐसी महिलाओं से उन वृद्ध मातापिता की सुरक्षा के लिए क्यों न बनाए जाएँ कुछ कठोर नियम !ऐसी महिलाओं की असहनशीलता के कारण दिनोंदिन बुढ़ापा बोझ होता जा रहा है।जो घर में घरभर को दबाकर रखती हैं उन्हें बाहर सुरक्षा की जरूरत पड़ती होगी क्या ?सरकार ने भी तो सारे कानून महिलाओं के ही पक्ष में बना रखे हैं ये कोई नहीं सोच रहा आम समाज में सामान्यतौर पर गुजर बसर करने वाले उन परिवारों का क्या होगा जो महिलाओं की प्रताड़ना से नर्क बन चुके हैं आज !पुरुष हों या स्त्री अपने दायित्वों के प्रति जो समर्पित नहीं हैं वे सब दोषी !ऐसे हो सकती है बराबरी !दायित्व भ्रष्ट हर स्त्रीपुरुष का सामाजिक पारिवारिक बहिष्कार हो !
    समाज में मुश्किल से दस प्रतिशत लड़के लड़कियाँ पुरुष स्त्रियाँ आधुनिक खुलेपन की जिंदगी जीने के चक्कर में कर रहे हैं बड़ी बड़ी गलतियाँ !ये नशे से लेकर सारे दुष्कर्मों में एक दूसरे से बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और बदनामी भुगत रहा है देश का सारा सभ्य समाज !जिसे इस आधुनिकता फैशनेबलनेस से कोई लेना देना ही नहीं है बच्चे पालने मुश्किल हो रहा है उसे !वो एय्याशी करेगा तो खाएगा क्या ? इन दस प्रतिशत फैशनेबल हाईटेक स्त्री पुरुषों ने प्यार आधुनिकता और फैशन के नाम पर बदनाम कर रखा है सारा समाज !        कानून के हिसाब से महिलाएँ सबकुछ कर सकती हैं बेचारे पुरुष नहीं कर सकते !कहने को है बराबरी किंतु हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है। बात यदि बराबरी की है तो मैट्रो में दो कमरे महिलाओं के लिए आरक्षित हैं तो दो पुरुषों के लिए भी होने चाहिए किन्तु ऐसा होता तो नहीं है आखिर क्यों ?महिलाओं के लिए भी तो बननी चाहिए कोई आचार संहिता !ऐसा कब तक  चलेगा कि गलती करें महिलाएँ और फाँसी पर लटकाते रहा जाए पुरुषों को ! पुरुष इस समाज के अंग नहीं हैं क्या ?प्यार दोनों मिलकर करते हैं किंतु कोई दुर्घटना पुरुषों पर घटती है तो कोई बात नहीं महिलाओं पर घट जाए तो महिला सुरक्षा की बात उठने लगती है ।
    फाँसी जैसा कठोर कानून बनने के बाद इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाए !सभी पुरुषों को बदनाम करना ठीक नहीं है !पुरुष इस समाज में कैसे रहें ये महिलाएँ ही निर्णय कर दें।आम आदमी हो या आम महिलाएँ प्यार फैशन इस प्रकार के सारे लफड़ों से दूर हैं वे !  
     खजाने को चाहने वाले बहुत लोग होते हैं इसलिए वो बहुमूल्य होता है इसीलिए उसे छिपाकर रखना होता है अन्यथा उसकी सुरक्षा के लिए किससे किससे कैसे कैसे लड़ा जाएगा ! यदि किसी के पास कोई खजाना हो और नैतिक तथा कानूनी दृष्टि से वो उसका अपना हो किंतु यदि उसे एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान पर पहुँचाना हो तो उसे लोग छिपाना क्यों चाहते हैं उसे ले जाने के लिए सिक्योरिटी की जरूरत क्यों पड़ती है और यदि कोई खजाना खोलकर केवल सरकारी सिक्योरिटी के बलपर ले जाना चाहे इसका मतलब क्या ये नहीं है कि वो खजाना स्वयं लुटवाना  चाहता है ।
     इसीप्रकार से महिलाओं के संपर्क में रहने से लेकर उन्हें छूने देखने आदि सभी प्रकार से महिलाओं से जुड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों से महिलाओं को संपर्क सीमित क्यों नहीं रखने चाहिए !जो सरकारें शहरों की रोडों पर बिना स्पेशल सिक्योरिटी के बैंकों की कैस बैन नहीं भेजती हैं इसका मतलब महिलाओं को भी समझना चाहिए कि आम नागरिकों को मिली सिक्योरिटी पर सरकार स्वयं भरोसा नहीं करती है तो ऐसी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे महिलाएँ अपने को सुरक्षित कैसे मानती हैं इसलिए उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए निजी तौर पर सतर्कता बरतना चाहिए !क्योंकि कामी पुरुषों के लिए महिलाएँ किसी खजाने से कम नहीं होती हैं । 
     पहले शरीर ढकने के लिए कपड़े पहने जाते थे अब शरीर दिखाने के लिए कपड़े पहने जाते हैं !आजकल मुख्य मुख्य जगहों पर कपड़े पहनकर उन्हें हाईलाईट करने का फैशन चला है इसीलिए कपड़े मुख्य मुख्य जगहों पर पहने जाते हैं तब आचार ब्यवहार संस्कार सृजन को ध्यान में रख कर कपड़ों का चयन किया जाता था उससे चरित्रवान संस्कारी समाज का निर्माण होता था अब फैशनेबल लोग बलात्कारी समाज तैयार कर रहे हैं वो रेप गैंगरेप सेक्स या मासिक धर्म जैसी चीजों को मन और शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं ऐसे इतने आधुनिक स्त्री पुरुषों को कोई रोके कैसे इससे भारत कहीं आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ न जाए ! फैशन स्त्रियों का हो या पुरुषों का इसमें नया कुछ नहीं होता है बल्कि फैशन का उद्देश्य ही पुरानी परंपराओं की दीवार लाँघ कर खुला खुला जीवन जीना होता है ऐसी खुली विचार धारा के स्त्री पुरुष लड़के लड़कियाँ का पहनावे से लेकर रहन सहनबोली भाषा मिलना जुलना सब कुछ आधुनिक होता है।पुराने समय में लोग  किसी महिला के प्रति अपनी सेक्सुअल भावना व्यक्त नहीं कर सकते थे इस भावना से उन्हें छू भी नहीं सकते थे पूरा शरीर ढक कर रखना होता था श्रृंगार मर्यादा में रखना होता था संगीत मर्यादित होता था ये सब करने का उद्देश्य सादा सात्विक रहन सहन एवं संस्कारयुक्त चरित्रवान सादा  जीवन उच्च विचार बनाए रखना था किंतु जिसे पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन सब पसंद न हों वो आधुनिक फैशनेबल आदि कुछ भी कहे जा सकते हैं । ये आधुनिक लोग प्राचीन के बिलकुल बिलोम होते हैं आधुनिकों का  रहन सहन आचार ब्यवहार आदि सबकुछ प्राचीनता विरोधी होता है उस समय पूरे कपड़े पहने जाते थे अब आधे पहने जाते हैं पुराने रहन सहन में संस्कार सदाचार आदि सबकुछ होता था प्राचीन का बिलोम शब्द है आधुनिक , इसलिए पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन जिन्हें  पोंगापंथी लगने लगता है ऐसे आधुनिक फैशनेबल लोग जब अपनी जिंदगी का सबकुछ बदल लेंगे तो संस्कार सदाचार आदि कैसे बचा रहेगा !ये भी तो बलात्कार जैसी भ्रष्टता में बदल जाएगा ।
       प्यार करने वाली महिलाएँ हों या पुरुष सम्मिलित तो दोनों ही होते हैं प्यार कभी किसी का अकेले तो हो भी नहीं सकता है दूसरी बात प्यार के पथ पर धोखे भी सबसे अधिक मिलते हैं !प्यार करने वाले स्त्री पुरुष प्रायः शूनशान जगह खोजते हैं और अपराधियों को भी शूनशान जगहें या खाली बसें आदि सवारियाँ ही प्रिय होती हैं ।ऐसी जगहों पर प्रेमी जोड़े जाते ही इसलिए हैं कि वहाँ असामाजिक या अश्लील हरकतें कर सकें और वहाँ पहुँचकर वो करते ही यही सबकुछ हैं ये वो जगहें होती हैं जहाँ समाज का जाना आना कम हो और पुलिस की पहुँच भी कम हो ! एकांत में प्रेमी   की अश्लील हरकतों में रूचि ले रही प्रेमिका को पाकर नशेड़ी अपराधियों में बासना न जगे इसकी कल्पना कैसे कर ली जाए वो भी तब जबकि वो जानते हैं कि प्रेमी जोड़ा अकेले है जबकि अपराधी अक्सर अकेले नहीं होते हैं जो प्रेमी जोड़े ऐसी जगहें ताक कर ही जाते हैं और वहाँ यदि कोई अप्रिय वारदात होती है तो उनकी सुरक्षा समाज या पुलिस कैसे करे कहाँ कहाँ खोजे इन्हें ? और इसमें सारे पुरुष समाज का दोष कैसे ?
       कुछ ऐसी संस्थाएँ बनीं हैं जहाँ सेक्स सुविधाओं के लिए कुछ निश्चित अमाउंट लेकर लड़कियाँ उपलब्ध करवाई जाती हैं कुछ शरारती लड़के आपसी सहमति से खूबघनी एवं पिछड़ी बस्ती में आपसी कंट्रीब्यूशन में कुछ घंटों का किराया देकर एक कमरा लेते हैं उधर चार्ज जमा करके एक लड़की लाई जाती है किंतु उसे ये नहीं बताया जाता है कि लड़के पाँच हैं जिन्हें देखकर लड़की लड़ने लगी किंतु लड़े या कुछ भी करे अब जो होना था वो तो हुआ ही बाद में  लड़की रोड पर छोड़ आई गई जहाँ उसने गैंगरेप का पुलिस कम्प्लेन किया किंतु अब न वो लड़के उस कमरे में होंगे और न ही वो लड़की घनी बस्ती के उस मकान तक पहुँच ही सकती है बताओ ऐसी परिस्थिति में क्या करे पुलिस और महिला सुरक्षा के नाम पर सारे पुरुष समाज को क्यों कोसा जाए !
        मैट्रो में खड़ा प्रेमी प्रेमिका का एक जोड़ा उस भीड़ भरी जगह में एक दूसरे से अश्लील हरकतें कर रहा था लोग देख रहे थे किंतु उन दोनों को शर्म नहीं थी देखने वालों में तीन शरारती लड़के भी थे उन्होंने लड़की को एकदम रोमांटिक मूड में देखा वो ब्याकुल हो गए उन्होंने निश्चय किया कि जिस स्टेशन पर ये लड़की उतरेगी वहीँ हम भी उतरेंगे मेट्रो पास था ही तो यही किया और उस प्रेमी जोड़े का पीछा किया पास में ही एक ओबर ब्रिज था वहाँ  उन दोनों को पकड़ लिया प्रेमी को पीटा प्रेमिका रेप की शिकार हुई !दोषी सारा पुरुष समाज कैसे ?
     राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक पार्क में मुझे पता लगा कि सौ सौ पचास पचास रूपए में लड़कियाँ उपलब्ध रहती हैं ये मुख्यजगह और मुख्यमार्किट का पार्क है जागरूक नागरिक होने के नाते मैंने वहाँ जाकर देखा तो अश्लील परिस्थिति में कई जोड़े मिले एक आध को डांटा और पुलिस बोलाने की धमकी दी तो वो कहने लगे बोला लीजिए क्या कर लेंगे वो हर सप्ताह के हिसाब से बीत वाले से पैसे बँधे हैं हमारे !मैं दूसरे कोने पर स्थित पार्क के चौकीदार के पास गया शिकायत करने तो उसे कमरे में एक प्रेमी जोड़ा लेटा रखा था पैग लग रहे थे तो मैंने चौकीदार को डाँटा कि तुम्हें यही सबकुछ करने के लिए कमरा मिला है तो उसने कहा पुलिस वाले भी तो यही करते हैं तब तक चैकीदार के पास एक फोन आया कि पार्क के इस कोने की लाइट बंद कर दे तो उसने हमसे कहा कि देखो पुलिस वाला लाइट बंद करवा रहा है अब वहाँ कुछ होगा उसने लाइट बंद कर दी मैंने सोचा मैं फिर जला  दूँ किंतु देखा तो तारों का सारा जाल था तो मैंने कहा ठीक क्यों नहीं कराते ये सब तो उसने कहा कि कोई सुनता ही नहीं है तो मैंने निगम पार्षद को फोन किया तो पता लगा कि परसों ही ठीक करवाया गया है चौकीदार ही ख़राब कर देता है जब हमने चौकीदार को डांटकर पूछा तो उसने बताया कि लाइट  बंद करने और  6-8  पार्क में गस्त न करने के लिए उसे सौ रूपए रोज मिलते हैं तो वो घर से कपड़े लाता है धोया करता है पार्क में !          इसके बाद उधर पहुँचे जहाँ की लाईट बंद करवाई गई थीं तो वहाँ एक लड़की को तीन लोग पीट रहे थे मैंने जाकर छोड़वाने का प्रयास किया तब तक दो पुलिस वाले आए वो हमें वहाँ से जाने के लिए कहने लगे उन्होंने हमें बताया कि ये यहाँ का रोज का काम है ये लड़की अपने प्रेमी से सेक्स कर रही थी उसी समय ये तीनों गूजर लड़के आ गए इन्होंने देख लिया है ये भी करना  चाह रहे हैं लड़की मान नहीं रही है इसलिए झगड़ा हो रहा है !तुम जाओ यहाँ से !
     मैंने सोचा सौ नंबर डायल कर दूँ तो मैंने कर दिया !उन दोनों पुलिस वालों ने प्रेमी जोड़ों को समझाया देख यदि आज एक पकड़ गया तो ये खेल रोज के लिए बंद हो जाएगा इसलिए सब लोग कह देना यहाँ ऐसी कोई बात ही नहीं हुई है वो सब मान गए !जब सौ नंबर वाले आए तो पुलिस वालों के सिखाए के अनुशार वे लड़कियाँ हम पर ऊट पटाँग गंदे आरोप लगाने लगीं और वो लड़के गवाही देने को तैयार उधर पार्क में आने जाने वाले लोग कुछ बोलने को तैयार न थे अंत में उन पुलिस वालों ने और प्रेमी जोड़ों ने आपसी एकजुटता दिखाते हुए हमें अपराधी सिद्धकर दिया !अंत में आज के बाद मैं पंगा नहीं लूँगा इस शर्त पर मुझे छोड़ा गया !
      प्यार के पथ पर रूचि लेने  वाली महिलाओं के आपसी संबंध पुरुषों से जब तक नार्मल रहते हैं तब तक तो वो दोनों प्रेमी प्रेमिका होते  हैं किंतु जिस दिन प्रेमिका किसी नए प्रेमी को पकड़ ले जिसमें प्रेमी की कोई गलती न हो फिर भी वो पुराना प्रेमी  घुट घुट कर मरता रहे या आत्म हत्या कर ले या वो प्रेमिका ही उसकी हत्या करवा दे !ऐसे किसी प्रकरण में केवल एक पुरुष की हत्या मानी जाती है किंतु ऐसी ही दुर्घटना का शिकार यदि कोई लड़की या महिला होती है तो महिलाओं पर अत्याचार मानकर सारे पुरुषों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है क्यों ?
      महिलाएँ नौकरी पाने के लिए ,प्रमोशन के लिए ,पैसे के लिए ,राजनीति में कोई पद प्रतिष्ठा पाने लिए पीएचडी करते समय गाइड आदि लोगों से अपने काम बनाने के लिए कई बार शारीरिक समझौता करते देखी  जाती हैं जिससे कई महिलाओं को कई उन बड़े पदों पर आसीन देखा जा सकता है जिसके लायक वो नहीं होती हैं किंतु इन बातों के कहीं कोई प्रमाण नहीं होते हैं फिर भी समाज तो सबकुछ समझता है । ऐसे ही प्रकरणों में जब उनका वो लक्ष्य बाधित होता है जिसके लिए समझौता हुआ तब उड़ती हैं बलात्कार की अफवाहें और कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है सारा पुरुष समाज !

 

Saturday 22 October 2016

महिलाएँ केवल महिलाएँ क्यों ?महिलाओं में भी तो अच्छी बुरी दोनों होती होंगी ! बुरी महिलाओं का विरोध क्यों नहीं करते हैं महिलासंगठन ?

बलात्कारों की दावत दिया जाना बंद क्यों नकिया जाए !
 बुरे को बुरा कहने में भी डर रहे हैं लोग !संस्कारों की सुरक्षा के लिए मर मिटने वाला भारतीय समाज पहले इतना डरपोक तो नहीं था !ये भी तो सोचिए कि अपने समाज की बुराई दूर करने के लिए आगे यदि हम नहीं आएँगे तो ये जरूरी काम करेगा कौन !केवल पुलिस और केवल कानून के बलपर नहीं घटाए जा सकते हैं अपराध !सामाजिक जनजागरण बहुत जरूरी है । 
बुरी महिलाओं को अपराध और अपराधियों से उन्हें कोई शिकायत नहीं होती और महिला सुरक्षा के नाम पर सुरक्षित वे भले लोगों की जिंदगी के साथ खेलती रहती हैं !ऐसी महिलाओं ने भी पुरुष समाज को प्रताड़ित करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है । 
 हमें बलात्कारों का विश्लेषण करते समय कुछ जरूरी इन बिंदुओं का भी ध्यान रखना चाहिए -              "कामश्चाष्ट गुणः स्मृतः"-चाणक्य 
 जितना कामी पुरुष लोग स्त्रियों के प्रति सेक्स भावना से जितना आकर्षित होते हैं उससे आठ गुणा ज्यादा स्त्रियों में होती है सेक्स भावना किंतु पुरुष अपनी एक गुनी बासना से पागल हो उठते हैं और प्रकट कर देते हैं जबकि महिलाएँ उस आठ गुनी सेक्स भावना को भी तब तक दबाए रहती हैं जब तक संभव हो किंतु जब उनके धैर्य का बाँध टूटता है तब भाई पिता पुत्र कुछ भी नहीं दिखता है उन्हें भी -
भ्रातापितापुत्र उरगारी!पुरुष मनोहरनिरखत नारी ॥ 
                                      -राम चरित मानस  
       महिला सुरक्षा के कानूनों का दुरुपयोग करती हैं
    अपराधों के मूल्यांकन में भी स्त्री पुरुष का भेदभाव क्यों ?अपराध भावना से ग्रसित महिलाएँ अपराधियों से ज्यादा खतरनाक होती हैं उनकी पहिचान  विरोध के लिए आगे आएँ महिलाएँ !
सेक्स की पीड़ा शांत करते लड़के लड़कियाँ !

महिलाएँ हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर टक्कर दे रही हैं फिर छेड़छाड़ के आरोप केवल पुरुषों पर क्यों ?
बलात्कारविश्लेषण-आखिर रुक क्यों नहीं रहे हैं बलात्कार !
     कहीं ऐसा तो नहीं है कि गलती केवल पुरुषों की न हो !अन्यथा इतने बड़े बड़े दंड विधानों का उतना असर होता क्यों नहीं दिख रहा है समाज पर !लगभग हर दिन सुनाई पड़जाता है कोई न कोई केस !अब तो छोटी छोटी बच्चियों के साथ भी किए जाने लगे हैं अत्याचार !आखिर कहाँ तक और किस किससे बचाई  जाएँ बच्चियाँ !ग़लतियाँ बड़ों की और भोग रही हैं बच्चियाँ !
     वर्तमान समय में अच्छे बुरे जो भी जितने प्रकार के काम पुरुष करते या कर सकते हैं लगभग वो हर काम आज महिलाएँ भी करती या करने का प्रयास करते देखी जा सकती हैं !आतंकियों नक्सलियों नशेड़ियों शराबियों तस्करों चोरों हत्यारों आदि बुरे से बुरे कामों में भी महिलाएँ सम्मिलित देखी जा रही हैं आज !फिर क्या कारण है कि रेप जैसी जितनी भी दुर्घटना घटती हैं सब में केवल पुरुष समाज को दोषी ठहरा दिया जाता है आखिर  महिलाओं में सेक्स की इच्छा नहीं होती है क्या ?आप स्वयं देखिए कहाँ पीछे हैं महिलाएँ -see more... http://khabar.ibnlive.com/photogallery/ibn7-operation-lajja-reavels-wife-swapping-459253.html
    महिलाओं की सुरक्षा हेतु  पुरुषों को अनुशासित रखने के लिए बड़े से बड़े दंडविधानों का प्रावधान किया गया किंतु महिलाओं के प्रति होने वाले अत्याचार घटते नहीं दिख रहे हैं आखिर क्यों ?हो न हो हर क्षेत्र में पुरुषों को बराबर टक्कर दे रही महिलाएँ इसक्षेत्र में भी अधिक न सही आंशिक रूप से ही हो अपनी भूमिका भी अदा कर रही हों ! केवल पुरुषों को कहीं बेवजह परेशान तो नहीं किया जा रहा है !
     सेक्स भावना जिन भी स्त्री पुरुषों के मन में जितनी अधिक होती है ऐसे स्त्री पुरुष उतने ही अधिक सजते सँवरते अर्थात श्रृंगारप्रिय होते हैं कुलमिलाकर शरीर के  श्रृंगार का लेवल मन की बासना के लेवल को प्रकट  करता है ये प्राचीन शास्त्रीय सिद्धांत है संभवतः पुराने लोग इसीलिए सहज श्रृंगार ही करते थे !इस शास्त्रीय सिद्धांत के अनुशार यदि श्रृंगार का सीधा संबंध सेक्सभावना से माना जाए तो वर्तमान समय में श्रृंगार करने करवाने का शौक पुरुषों में अधिक होता है या महिलाओं में ?ब्यूटी पार्लरों की जरूरत अधिक किसे पड़ती है । पुरुषों को या स्त्रियों को  ?
     इसी प्रकार कोई भी दूकानदार हर बिकाऊ वस्तु को सीसे में रखता है ताकि दिखाई पड़ती रहे जब दिखाई पड़ेगी तब तो कस्टमर उसे पसंद करेंगे !जो चीज में किसी के पसंद न पसंद की चिंता नहीं होगी उसे लोग दिखाएँगे क्यों ढक कर रखेंगे !वर्तमान फैशन के युग में स्त्री -पुरुषों में शरीर दिखाने की भावना किसमें किससे अधिक देखी जाती है ?       
    अब स्त्री-पुरुषों,लड़के-लड़कियों का रोडों पर साथ साथ निकलना बंद किया जाए !ऑड इवेन के हिसाब से घरों से निकलें पुरुष और महिलाएँ ! जिसदिनहिलाएँ रोडों बाजारों के लिए निकलें उस दिन पुरुष दूर दूर तक दिखाई न पढ़ें इसी प्रकार पुरुषों के लिए भी नियम बनाए जाएँ !बंद हो जाएगी सारी  छेड़छाड़ ! पुरुष अपने आपसे किसी महिला को छुएँ न देखें न घूरें न कुछ बोलें न और महिलाओं को जो ठीक लगे सो सब कर सकती हैं महिलाएँ !ये कैसी बराबरी !!
     छोटी छोटी बच्चियों पर हो रहे अत्याचार रोकने के लिए करना होगा ये .... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/10/blog-post_25.html
   प्यार का खतरनाक खेल खेलते दोनों हैं किंतु बातबिगड़े तो दोषी पुरुष समाज !ये कैसी बराबरी !!किसी के पास कितनी है धन संपत्ति यह जानने के लिए पहले प्यार करें मन मिलाकर पूछ लें सबकुछ इसके बाद छेड़ छाड़ से लेकर बलात्कार तक का लगाकर आरोप भेज दें जेल समझौता हो तो अच्छा हो अन्यथा सड़े जेल में !बाद में दोषी बेचारा पुरुष समाज !प्यार का खेल दोनों ने खेला और भुगते केवल आदमी !अरे ये कैसी बराबरी ? 
    ससुराल वाले दहेज़ लें न लें उनके मातापिता बहू की कितनी भी प्रताड़ना सहें किंतु कुछ न कहें और यदि कभी कुछ मुख से निकल ही जाए आखिर मर मर कर जिसघर को बनाते हैं उसे बर्बाद होते कैसे देख सकते हैं किन्तु इतनी भी बात बर्दाश्त नहीं है तुरंत होता है दहेज़ का मुकदमा घर भर भेज दिए जाते हैं जेल!ऐसे बचेगा समाज !उचित तो ये है कि ऐसी महिलाओं से उन वृद्ध मातापिता की सुरक्षा के लिए क्यों न बनाए जाएँ कुछ कठोर नियम !ऐसी महिलाओं की असहनशीलता के कारण दिनोंदिन बुढ़ापा बोझ होता जा रहा है।जो घर में घरभर को दबाकर रखती हैं उन्हें बाहर सुरक्षा की जरूरत पड़ती होगी क्या ?सरकार ने भी तो सारे कानून महिलाओं के ही पक्ष में बना रखे हैं ये कोई नहीं सोच रहा आम समाज में सामान्यतौर पर गुजर बसर करने वाले उन परिवारों का क्या होगा जो महिलाओं की प्रताड़ना से नर्क बन चुके हैं आज !पुरुष हों या स्त्री अपने दायित्वों के प्रति जो समर्पित नहीं हैं वे सब दोषी !ऐसे हो सकती है बराबरी !दायित्व भ्रष्ट हर स्त्रीपुरुष का सामाजिक पारिवारिक बहिष्कार हो !
    समाज में मुश्किल से दस प्रतिशत लड़के लड़कियाँ पुरुष स्त्रियाँ आधुनिक खुलेपन की जिंदगी जीने के चक्कर में कर रहे हैं बड़ी बड़ी गलतियाँ !ये नशे से लेकर सारे दुष्कर्मों में एक दूसरे से बढ़चढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं और बदनामी भुगत रहा है देश का सारा सभ्य समाज !जिसे इस आधुनिकता फैशनेबलनेस से कोई लेना देना ही नहीं है बच्चे पालने मुश्किल हो रहा है उसे !वो एय्याशी करेगा तो खाएगा क्या ? इन दस प्रतिशत फैशनेबल हाईटेक स्त्री पुरुषों ने प्यार आधुनिकता और फैशन के नाम पर बदनाम कर रखा है सारा समाज !        कानून के हिसाब से महिलाएँ सबकुछ कर सकती हैं बेचारे पुरुष नहीं कर सकते !कहने को है बराबरी किंतु हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है। बात यदि बराबरी की है तो मैट्रो में दो कमरे महिलाओं के लिए आरक्षित हैं तो दो पुरुषों के लिए भी होने चाहिए किन्तु ऐसा होता तो नहीं है आखिर क्यों ?महिलाओं के लिए भी तो बननी चाहिए कोई आचार संहिता !ऐसा कब तक  चलेगा कि गलती करें महिलाएँ और फाँसी पर लटकाते रहा जाए पुरुषों को ! पुरुष इस समाज के अंग नहीं हैं क्या ?प्यार दोनों मिलकर करते हैं किंतु कोई दुर्घटना पुरुषों पर घटती है तो कोई बात नहीं महिलाओं पर घट जाए तो महिला सुरक्षा की बात उठने लगती है ।
    फाँसी जैसा कठोर कानून बनने के बाद इसके अलावा महिलाओं की सुरक्षा के लिए और क्या किया जाए !सभी पुरुषों को बदनाम करना ठीक नहीं है !पुरुष इस समाज में कैसे रहें ये महिलाएँ ही निर्णय कर दें।आम आदमी हो या आम महिलाएँ प्यार फैशन इस प्रकार के सारे लफड़ों से दूर हैं वे !  
     खजाने को चाहने वाले बहुत लोग होते हैं इसलिए वो बहुमूल्य होता है इसीलिए उसे छिपाकर रखना होता है अन्यथा उसकी सुरक्षा के लिए किससे किससे कैसे कैसे लड़ा जाएगा ! यदि किसी के पास कोई खजाना हो और नैतिक तथा कानूनी दृष्टि से वो उसका अपना हो किंतु यदि उसे एक स्थान से लेकर दूसरे स्थान पर पहुँचाना हो तो उसे लोग छिपाना क्यों चाहते हैं उसे ले जाने के लिए सिक्योरिटी की जरूरत क्यों पड़ती है और यदि कोई खजाना खोलकर केवल सरकारी सिक्योरिटी के बलपर ले जाना चाहे इसका मतलब क्या ये नहीं है कि वो खजाना स्वयं लुटवाना  चाहता है ।
     इसीप्रकार से महिलाओं के संपर्क में रहने से लेकर उन्हें छूने देखने आदि सभी प्रकार से महिलाओं से जुड़ने की इच्छा रखने वाले लोगों से महिलाओं को संपर्क सीमित क्यों नहीं रखने चाहिए !जो सरकारें शहरों की रोडों पर बिना स्पेशल सिक्योरिटी के बैंकों की कैस बैन नहीं भेजती हैं इसका मतलब महिलाओं को भी समझना चाहिए कि आम नागरिकों को मिली सिक्योरिटी पर सरकार स्वयं भरोसा नहीं करती है तो ऐसी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे महिलाएँ अपने को सुरक्षित कैसे मानती हैं इसलिए उन्हें अपनी सुरक्षा के लिए निजी तौर पर सतर्कता बरतना चाहिए !क्योंकि कामी पुरुषों के लिए महिलाएँ किसी खजाने से कम नहीं होती हैं । 
     पहले शरीर ढकने के लिए कपड़े पहने जाते थे अब शरीर दिखाने के लिए कपड़े पहने जाते हैं !आजकल मुख्य मुख्य जगहों पर कपड़े पहनकर उन्हें हाईलाईट करने का फैशन चला है इसीलिए कपड़े मुख्य मुख्य जगहों पर पहने जाते हैं तब आचार ब्यवहार संस्कार सृजन को ध्यान में रख कर कपड़ों का चयन किया जाता था उससे चरित्रवान संस्कारी समाज का निर्माण होता था अब फैशनेबल लोग बलात्कारी समाज तैयार कर रहे हैं वो रेप गैंगरेप सेक्स या मासिक धर्म जैसी चीजों को मन और शरीर की स्वाभाविक प्रक्रिया मानते हैं ऐसे इतने आधुनिक स्त्री पुरुषों को कोई रोके कैसे इससे भारत कहीं आधुनिकता की दौड़ में पिछड़ न जाए ! फैशन स्त्रियों का हो या पुरुषों का इसमें नया कुछ नहीं होता है बल्कि फैशन का उद्देश्य ही पुरानी परंपराओं की दीवार लाँघ कर खुला खुला जीवन जीना होता है ऐसी खुली विचार धारा के स्त्री पुरुष लड़के लड़कियाँ का पहनावे से लेकर रहन सहनबोली भाषा मिलना जुलना सब कुछ आधुनिक होता है।पुराने समय में लोग  किसी महिला के प्रति अपनी सेक्सुअल भावना व्यक्त नहीं कर सकते थे इस भावना से उन्हें छू भी नहीं सकते थे पूरा शरीर ढक कर रखना होता था श्रृंगार मर्यादा में रखना होता था संगीत मर्यादित होता था ये सब करने का उद्देश्य सादा सात्विक रहन सहन एवं संस्कारयुक्त चरित्रवान सादा  जीवन उच्च विचार बनाए रखना था किंतु जिसे पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन सब पसंद न हों वो आधुनिक फैशनेबल आदि कुछ भी कहे जा सकते हैं । ये आधुनिक लोग प्राचीन के बिलकुल बिलोम होते हैं आधुनिकों का  रहन सहन आचार ब्यवहार आदि सबकुछ प्राचीनता विरोधी होता है उस समय पूरे कपड़े पहने जाते थे अब आधे पहने जाते हैं पुराने रहन सहन में संस्कार सदाचार आदि सबकुछ होता था प्राचीन का बिलोम शब्द है आधुनिक , इसलिए पुरातन आचार ब्यवहार रहन सहन जिन्हें  पोंगापंथी लगने लगता है ऐसे आधुनिक फैशनेबल लोग जब अपनी जिंदगी का सबकुछ बदल लेंगे तो संस्कार सदाचार आदि कैसे बचा रहेगा !ये भी तो बलात्कार जैसी भ्रष्टता में बदल जाएगा ।
       प्यार करने वाली महिलाएँ हों या पुरुष सम्मिलित तो दोनों ही होते हैं प्यार कभी किसी का अकेले तो हो भी नहीं सकता है दूसरी बात प्यार के पथ पर धोखे भी सबसे अधिक मिलते हैं !प्यार करने वाले स्त्री पुरुष प्रायः शूनशान जगह खोजते हैं और अपराधियों को भी शूनशान जगहें या खाली बसें आदि सवारियाँ ही प्रिय होती हैं ।ऐसी जगहों पर प्रेमी जोड़े जाते ही इसलिए हैं कि वहाँ असामाजिक या अश्लील हरकतें कर सकें और वहाँ पहुँचकर वो करते ही यही सबकुछ हैं ये वो जगहें होती हैं जहाँ समाज का जाना आना कम हो और पुलिस की पहुँच भी कम हो ! एकांत में प्रेमी   की अश्लील हरकतों में रूचि ले रही प्रेमिका को पाकर नशेड़ी अपराधियों में बासना न जगे इसकी कल्पना कैसे कर ली जाए वो भी तब जबकि वो जानते हैं कि प्रेमी जोड़ा अकेले है जबकि अपराधी अक्सर अकेले नहीं होते हैं जो प्रेमी जोड़े ऐसी जगहें ताक कर ही जाते हैं और वहाँ यदि कोई अप्रिय वारदात होती है तो उनकी सुरक्षा समाज या पुलिस कैसे करे कहाँ कहाँ खोजे इन्हें ? और इसमें सारे पुरुष समाज का दोष कैसे ?
       कुछ ऐसी संस्थाएँ बनीं हैं जहाँ सेक्स सुविधाओं के लिए कुछ निश्चित अमाउंट लेकर लड़कियाँ उपलब्ध करवाई जाती हैं कुछ शरारती लड़के आपसी सहमति से खूबघनी एवं पिछड़ी बस्ती में आपसी कंट्रीब्यूशन में कुछ घंटों का किराया देकर एक कमरा लेते हैं उधर चार्ज जमा करके एक लड़की लाई जाती है किंतु उसे ये नहीं बताया जाता है कि लड़के पाँच हैं जिन्हें देखकर लड़की लड़ने लगी किंतु लड़े या कुछ भी करे अब जो होना था वो तो हुआ ही बाद में  लड़की रोड पर छोड़ आई गई जहाँ उसने गैंगरेप का पुलिस कम्प्लेन किया किंतु अब न वो लड़के उस कमरे में होंगे और न ही वो लड़की घनी बस्ती के उस मकान तक पहुँच ही सकती है बताओ ऐसी परिस्थिति में क्या करे पुलिस और महिला सुरक्षा के नाम पर सारे पुरुष समाज को क्यों कोसा जाए !
        मैट्रो में खड़ा प्रेमी प्रेमिका का एक जोड़ा उस भीड़ भरी जगह में एक दूसरे से अश्लील हरकतें कर रहा था लोग देख रहे थे किंतु उन दोनों को शर्म नहीं थी देखने वालों में तीन शरारती लड़के भी थे उन्होंने लड़की को एकदम रोमांटिक मूड में देखा वो ब्याकुल हो गए उन्होंने निश्चय किया कि जिस स्टेशन पर ये लड़की उतरेगी वहीँ हम भी उतरेंगे मेट्रो पास था ही तो यही किया और उस प्रेमी जोड़े का पीछा किया पास में ही एक ओबर ब्रिज था वहाँ  उन दोनों को पकड़ लिया प्रेमी को पीटा प्रेमिका रेप की शिकार हुई !दोषी सारा पुरुष समाज कैसे ?
     राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के एक पार्क में मुझे पता लगा कि सौ सौ पचास पचास रूपए में लड़कियाँ उपलब्ध रहती हैं ये मुख्यजगह और मुख्यमार्किट का पार्क है जागरूक नागरिक होने के नाते मैंने वहाँ जाकर देखा तो अश्लील परिस्थिति में कई जोड़े मिले एक आध को डांटा और पुलिस बोलाने की धमकी दी तो वो कहने लगे बोला लीजिए क्या कर लेंगे वो हर सप्ताह के हिसाब से बीत वाले से पैसे बँधे हैं हमारे !मैं दूसरे कोने पर स्थित पार्क के चौकीदार के पास गया शिकायत करने तो उसे कमरे में एक प्रेमी जोड़ा लेटा रखा था पैग लग रहे थे तो मैंने चौकीदार को डाँटा कि तुम्हें यही सबकुछ करने के लिए कमरा मिला है तो उसने कहा पुलिस वाले भी तो यही करते हैं तब तक चैकीदार के पास एक फोन आया कि पार्क के इस कोने की लाइट बंद कर दे तो उसने हमसे कहा कि देखो पुलिस वाला लाइट बंद करवा रहा है अब वहाँ कुछ होगा उसने लाइट बंद कर दी मैंने सोचा मैं फिर जला  दूँ किंतु देखा तो तारों का सारा जाल था तो मैंने कहा ठीक क्यों नहीं कराते ये सब तो उसने कहा कि कोई सुनता ही नहीं है तो मैंने निगम पार्षद को फोन किया तो पता लगा कि परसों ही ठीक करवाया गया है चौकीदार ही ख़राब कर देता है जब हमने चौकीदार को डांटकर पूछा तो उसने बताया कि लाइट  बंद करने और  6-8  पार्क में गस्त न करने के लिए उसे सौ रूपए रोज मिलते हैं तो वो घर से कपड़े लाता है धोया करता है पार्क में !          इसके बाद उधर पहुँचे जहाँ की लाईट बंद करवाई गई थीं तो वहाँ एक लड़की को तीन लोग पीट रहे थे मैंने जाकर छोड़वाने का प्रयास किया तब तक दो पुलिस वाले आए वो हमें वहाँ से जाने के लिए कहने लगे उन्होंने हमें बताया कि ये यहाँ का रोज का काम है ये लड़की अपने प्रेमी से सेक्स कर रही थी उसी समय ये तीनों गूजर लड़के आ गए इन्होंने देख लिया है ये भी करना  चाह रहे हैं लड़की मान नहीं रही है इसलिए झगड़ा हो रहा है !तुम जाओ यहाँ से !
     मैंने सोचा सौ नंबर डायल कर दूँ तो मैंने कर दिया !उन दोनों पुलिस वालों ने प्रेमी जोड़ों को समझाया देख यदि आज एक पकड़ गया तो ये खेल रोज के लिए बंद हो जाएगा इसलिए सब लोग कह देना यहाँ ऐसी कोई बात ही नहीं हुई है वो सब मान गए !जब सौ नंबर वाले आए तो पुलिस वालों के सिखाए के अनुशार वे लड़कियाँ हम पर ऊट पटाँग गंदे आरोप लगाने लगीं और वो लड़के गवाही देने को तैयार उधर पार्क में आने जाने वाले लोग कुछ बोलने को तैयार न थे अंत में उन पुलिस वालों ने और प्रेमी जोड़ों ने आपसी एकजुटता दिखाते हुए हमें अपराधी सिद्धकर दिया !अंत में आज के बाद मैं पंगा नहीं लूँगा इस शर्त पर मुझे छोड़ा गया !
      प्यार के पथ पर रूचि लेने  वाली महिलाओं के आपसी संबंध पुरुषों से जब तक नार्मल रहते हैं तब तक तो वो दोनों प्रेमी प्रेमिका होते  हैं किंतु जिस दिन प्रेमिका किसी नए प्रेमी को पकड़ ले जिसमें प्रेमी की कोई गलती न हो फिर भी वो पुराना प्रेमी  घुट घुट कर मरता रहे या आत्म हत्या कर ले या वो प्रेमिका ही उसकी हत्या करवा दे !ऐसे किसी प्रकरण में केवल एक पुरुष की हत्या मानी जाती है किंतु ऐसी ही दुर्घटना का शिकार यदि कोई लड़की या महिला होती है तो महिलाओं पर अत्याचार मानकर सारे पुरुषों को कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है क्यों ?
      महिलाएँ नौकरी पाने के लिए ,प्रमोशन के लिए ,पैसे के लिए ,राजनीति में कोई पद प्रतिष्ठा पाने लिए पीएचडी करते समय गाइड आदि लोगों से अपने काम बनाने के लिए कई बार शारीरिक समझौता करते देखी  जाती हैं जिससे कई महिलाओं को कई उन बड़े पदों पर आसीन देखा जा सकता है जिसके लायक वो नहीं होती हैं किंतु इन बातों के कहीं कोई प्रमाण नहीं होते हैं फिर भी समाज तो सबकुछ समझता है । ऐसे ही प्रकरणों में जब उनका वो लक्ष्य बाधित होता है जिसके लिए समझौता हुआ तब उड़ती हैं बलात्कार की अफवाहें और कटघरे में खड़ा कर दिया जाता है सारा पुरुष समाज !

Thursday 13 October 2016

"जयश्रीराम" नहीं तो क्या 'जयश्रीरोम' बोला जाए? 'श्रीराम' का नाम तो राक्षस भी लेते थे तुम उनसे भी ज्यादा .....!

    मोदी जी की धमनियों में ऋषियों का खून है इसीलिए उन्हें "जय श्री राम" कहने और गंगा नहाने में मजा आता है!
      'भारत' 'अजनाभवर्ष'और 'आर्यावर्त'श्री राम के ही बंशजों के नाम थे इसलिए यह ये देश श्री राम की बपौती है श्री राम ही शासक और स्वामी हैं "जय श्री राम" यहाँ का राष्ट्रीय उद्घोष है ! अरे कुंभ मेले में जाकर गंगा जी में  पैर धोकर लौट आने वाले नेताओ ! इस समय नरेन्द्र मोदी जी राष्ट्रसेवक हैं जिन्हें गंगा जी में नहाने शर्म नहीं आती क्योंकि उनकी धमनियों में ऋषियों का खून है इसीलिए उन्हें "जय श्री राम" कहने में मजा आता है अपने पूर्वजों का नाम लेने पर ख़ुशी  किसे नहीं होती है !
      श्री राम इस देश के पूर्वज हैं हमें ये सच्चाई क्यों नहीं स्वीकार कर लेनी चाहिए अन्यथा इसे झुठलाने वाले प्रमाण दिए जाएँ खुली बहस की खुली चुनौती !भारत कैसे श्री राम का है ये मैं सिद्ध करूँगा और कैसे श्री राम का नहीं है ये वो सिद्ध करें जिन्हें "जय श्री राम " और श्री राम मंदिर की चर्चा सुनते ही चुन्ने काटने लगते हैं !
     जिसे "जय श्री राम" सुनने से एतराज हो ऐसे लोग रहते क्यों हैं श्री राम के देश में  !आखिर वे बतावें न कि इस देश का नाम 'भारत' कैसे पड़ा इसे 'अजनाभवर्ष'और 'आर्यावर्त' क्यों कहा जाता था  भारत का नाम जब जब जिन जिन के नामों पर रखा गया  वो किसके पूर्वज थे ? यहाँ तो कण कण में बसे हैं श्री राम और बच्चे की जबान पर है रामायण !करोड़ों लोगों के बच्चों के नाम श्री राम या राम के पर्यायवाची शब्दों से रखे  गए हैं वो भी छोड़ दें क्या ?
      " जय श्री राम" और  श्री राम मंदिर बनाने की चर्चा सुनते ही पागल हो उठते हैं कुछ नेता लोग ! उन्होंने  राजनीति में रहकर ईमानदारी के ऐसे मानक क्यों नहीं स्थापित किए कि जनता मंदिर मस्जिद से अलग हटकर उनके अच्छे कर्मों पर उन्हें वोट दे !
     हे आधुनिक भारत के भूतपूर्व शासको !तुमने इस देश को लूटा न होता तो आज तुम्हारी तरह ही देश के गरीबों के दरवाजों पर भी गाड़ियाँ खड़ी होतीं !आप जब राजनीति में आए थे तब कितने पैसे थे आपके पास और आज ये अकूत संपत्ति आई कहाँ से कौन सा रोजी रोजगार कर लिया तुमने !जनता के हकों को हड़पते रहे तुम !अपना इलाज विदेशों में करवाते रहे और भारतीयों  को छोड़ देते रहे मरने को !सरकारों की वागडोर देश ने सबसे ज्यादा दिनों तक तुम्हें सौंपी है जैसा चाहते वैसा हॉस्पिटल यहीं बनवा लेते करवाते स्वदेश में इलाज !तुम्हारे नेता इलाज कराने नहीं अपितु थुकाने जाते थे विदेशों में ! 
      तुम्हारे नेता जब कुंभ में जाते थे तो गंगा जी में पैर धोकर चले आते थे  उन्हें शर्म आती थी गंगा नहाने में कहीं धर्म न बदल जाए किंतु दूसरे धर्मों की टोपी पहनने में तुम्हें कभी शर्म नहीं लगी उनकी पार्टियों में टोपी न पहनते तो पूड़ी क्या पेट की जगह पीठ में चली जातीं क्या ?तुम्हारा लक्ष्य हमेंशा से हिन्दू धर्म और हिन्दू संस्कृति को अपमानित करना रहा है । 
        तुम हिंदुओं की जाति  व्यवस्था का तो विरोध करते रहे किंतु आरक्षण मनुस्मृति के आधार पर ही देते रहे आर्थिक आधार पर क्यों नहीं दिया आरक्षण जातियों की जरूरत ही क्यों पड़ती जब कोई  नाम ही न लेता तो धीरे धीरे स्वतः मिट जातीं जातियाँ किंतु तुम्हारा लक्ष्य जातियाँ मिटाना नहीं अपितु हिंदुओं में लड़ाई करवाकर सत्ता भोगना था !
        दलितों की देवी होने का गुरूर पाले बैठी एक जातिबली पूर्व मुख्यमंत्री जिसे विगत लोक सभा चुनावों में देशवासियों ने ऐसे धोया कि संसद में हाजिरी लगवाने लायक भी नहीं रहीं !लानत है ऐसी राजनैतिक पार्टी को जिसकी ये दुर्दशा हुई हो कर्म ही ऐसे थे !जब मुख्यमंत्री बनीं तब गरीबों के पेट की रोटियों के पैसे थे हाथी बनवाती रहीं अपनी और अपने आकाओं की मूर्तियां बनवाती रहीं !देश के गरीबों की खून पसीने की कमाई का ऐसा दुरुपयोग !धिक्कार है ऐसे शासकों को !अपने को दलितों का मसीहा कहते शर्म नहीं लगती उधर गरीबों के घर चूल्हे जलाने के लाले पड़े थे इधर हाथी बनाए जा रहे थे और हाथियों के बहाने लूटा जा रहा था गरीबों का हक़ !
         इसीप्रकार से जो खानदान केवल अपने को उत्तर प्रदेश का मालिक सिद्ध करने पर आमादा हो अपने गाँव को उत्तर प्रदेश की राजधानी सिद्ध करने के लिए बड़े बड़े महँगे लोगों को हर साल अपने गाँव में लेकर नाचाता हो  उसमें प्रदेश के पैसे और प्रशासन की कितनी बर्बादी होती है है किसी को होश !आखिर केवल अपने गाँव को तीर्थ और केवल अपने खानदान और जाति के लोगों को ही देवता सिद्ध करने के लिए क्यों बर्बाद की जा रही हैं प्रदेश की जनता की गाढ़ी कमाई !अपने गाँव और जाति  वालों से ही माँग लो वोट !
    जिसे राम शब्द से वोटों के ध्रुवीकरण की इतनी ही बड़ी आशंका हो उन्हें चाहिए कि वे जय श्री राम" और  श्री राम मंदिर बनाने की बातें खुद करने लगें श्रीरामभक्त उनका समर्थन करने लगेंगे !अरे मायावियो ! "जय श्री राम"से दुर्गंध क्यों आने लगती   है ?     
भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है आन्तरिक प्रकाश । इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है।

  भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे बहुत पहले यह देश 'सोने की चिड़िया' के रूप में जाना जाता था।

     इस प्रकार भारत नामअपनी पवित्र संस्कृति एवं इतिहास की याद दिलाता है जबकि इंडिया नाम से हमारा  कोई सांस्कृतिक  एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध  नहीं सिद्ध होता है ।