हे सरकारी अधिकारियो ! इतनी गद्दारी तो अंग्रेजों ने भी नहीं की होगी गरीबों के साथ ! सरकारी अधिकारी कर्मचारियों की सेवाएँ किस काम की इन पर खर्च की जाने वाली सैलरी ब्यर्थ नहीं तो क्या है । आफिसों में घुसकर AC का आनंद लेने वाले लापरवाह अधिकारियो !स्कूलों में शिक्षा नहीं अस्पतालों में चिकित्सा नहीं रोडों पर सुरक्षा नहीं !फिर भी ज़िंदा रह ले रहे हैं जिम्मेदार लोग !ऐसी सभी लापरवाही देखकर तो हर भले आदमी का मर जाने का मन करता है !ऐसे भ्रष्ट लोकतंत्र के अंग हैं हम लोग !सरकारी सैलरी पर राज करने वाले सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की सैलरी बोझ है देश पर !वो जनता के किसी काम नहीं आ पा रहे हैं !वो न किसी की सुनते हैं और न किसी के लिए कुछ करते हैं फिर भी अधिकारियों के रुतबे पर फिदा हैं सरकारें आखिर क्यों !जनता जिन्हें बोझ समझती है उन पर लाखों रुपए सैलरी क्यों लुटा रही हैं सरकारें !सरकारों में सम्मिलित लोगों का कोई तो निजी स्वार्थ होता ही होगा उनसे !
गरीबों का जीवन इतना अकेला है उड़ीसा की घटना जिसकी पत्नी के निधन के बाद शव ले जाने तक की व्यवस्था न कर सके हों सरकारी अधिकारी कर्मचारी !दूसरी घटना कानपुर हैलट की है एक पिता को उसके छोटे से पुत्र का शव कंधे पर लेकर जाने को मजबूर कर देने वाले अधिकारी कर्मचारी मरीजों का इलाज क्या ख़ाक करते होंगे !ऐसी मौतों के लिए अस्पतालों के जिन अधिकारियों कर्मचारियों को जिम्मेदार मान कर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए घूस खोर सरकारों का ध्यान ऐसे लोगों की सैलरी और महँगाई भत्ता बढ़ते रहता है ! सरकार के हर विभाग का हाल यही है अधिकारियों कर्मचारियों की नियत ही साफ नहीं है ।
पति अपनी पत्नी का शव कंधे कर लेकर 12 किलोमीटर तक पैदल लेकर चला जा रहा हो साथ में प्यारी सी बिटिया है वो पति कैसे अपने आँसू पोंछ पा रहा होगा कैसे अपनी बिटिया के !दूसरी घटना कानपुर हैलट की है एक पिता अपने छोटे से पुत्र का शव कंधे पर लेकर जाने को मजबूर है !उस पिता के हृदय की पीड़ा ये सरकारी अधिकारी कर्मचारी क्या समझेंगे जब तक इन्हें भगवान् उसी प्रकार की विपत्ति से नहीं गुजारेगा !देश के गरीब लोग ऐसी आजादी को चाटें क्या !
आजादी ने देश के आम गरीब को क्या दिया आखिर क्यों ढोवें वे बोझ बन भ्रष्ट लोकतंत्र ! अधिकारी लोग जिस विभाग की शिकायत होती है कभी कभी उनसे पूछ कर वही बात बता देते हैं जो वो लोग पहले ही कह रहे थे फिर इस लोकतंत्र में अधिकारियों का अपना वजूद क्या है !लोग अपनी अपनी एप्लिकेशनें दे जाते हैं सुबह सफाई वाले उठा कर फ़ेंक देते हैं।एक पुलिस वाले भाई साहब तो यहाँ तक कह रहे थे कि अधिकारियों से शिकायत करने से आप लोगों का ये नुक्सान होता है कि पहले आपका जो काम करने के लिए हम दो हजार माँग रहे थे उसी के लिए अब दस हजार आपको देने पड़ेंगे क्योंकि अब उन अधिकारियों को भी उनका हिस्सा पहुँचाना पड़ेगा !बारे देश बारे लोकतंत्र !बारी सरकारें !सरकारी योजनाओं को पूर्णकरने वाले लोग यदि ऐसे हैं तो सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन कैसे होता होगा ! प्रधानमंत्री जी कहते हैं - बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ !
सरकारी कर्मचारी ऊपरी कमाई का लालच छोड़ें तो बंद हो सकते हैं सभी प्रकार के अपराध और बलात्कार !किंतु वे छोड़ें क्यों उनपर ऊपरी दबाव होता है कमाई करके देने का !
सरकारों में सम्मिलित लोगों का सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों पर घूस लेकर नेताओं की कमाई बढ़ाने का अघोषित दबाव रहता है वो टारगेट उन्हें पूरा करके देना ही होता है ! दो दो कौड़ी के नेता इन्हीं कमाऊपूतों के सहयोग से होते हैं अरबों खरबोंपति और भोगते हैं राजाओं जैसे सुख भोग !बाद में नेता लोग उन्हें महँगाई भत्ता या सैलरी बढ़ाकर कुछ अंश लौट दिया करते हैं वो कर्मचारी जब कमा कर भेजते हैं तब भी अपना हिस्सा निकालकर रख लिया करते हैं !तभी तो जिन जिन अधिकारियों कर्मचारियों के यहाँ तलाशी होती है वो सब करोडो अरबो पतिनिकलते हैं जिनके घरों की तलाशी ही नहीं हुई वो ईमानदार बने रहते हैं तलाशी उन्हीं के यहाँ होती है जो सरकारों में सम्मिलित नेताओं का दिया हुआ कमाई का टार्गेट पूरा करके समय से पहुँचा नहीं पाते हैं !सरकारों में सम्मिलित लोग कुछ लूट लिया करते हैं कुछ सरकारी अधिकारी कर्मचारी नोच लेते हैं ये जिस दिन चाह लेंगे उसी दिन बंद हो जाएँगे बलात्कार समेत सभी प्रकार के अपराध !ऊपरी कमाई का लालच तो छोड़ना पड़ेगा !
गन्दगी में जैसे कीड़े डालने नहीं पड़ते अपितु स्वतः पड़ जाते हैं उसी प्रकार से भ्रष्टाचार की गंदगी की सड़ांध में सभी प्रकार के अपराधी जन्म लेते हैं सरकार गंदगी पर कीटनाशक छिड़क रही है किंतु इससे कीड़े मकोड़े मर तो सकते हैं किंतु दोबारा पैदा होने से नहीं रोके जा सकते हैं इसलिए हटानी तो गन्दगी ही पड़ेगी किंतु अपनों की हुई गंदगी गंदगी कहाँ लगती है छोटे बच्चे पिता के ऊपर पेशाब कर देते हैं तो भी पिता उसे पुचकारना नहीं छोड़देता है ऐसे ही सरकारी कर्मचारियों के सौ खून माफ हैं वो कुछ भी करें किंतु अपनों की सैलरी बढ़ाने से पीछे नहीं हटती हैं सरकारें !
अपराधियों पर शिकंजा कसने का दिखावा करने के लिए एक से एक कठोर कानून बनाए जाते हैं इसके बाद उन कानूनों को बेचने की रेट लिस्ट सरकारी अधिकारी कर्मचारी खुद बना लेते हैं जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा होता है वो अपराधी उसी हिसाब से कानून खरीदता है और ठाठ से करता है अपराध !
'ठाठ से' कहने का मतलब आप छोटे बड़े किसी भी अपराधी को देखिए पुलिस पकड़े खड़ी होती है किंतु अपराधी के चेहरे पर डर नाम की चीज नहीं होती है रोते वही अपराधी हैं जो नए नए होने के कारण या कंजूसी के कारण सेटिंग नहीं कर पाते हैं या फिर वो रोते हैं जिनका उस अपराध से कोई संबंध ही नहीं होता है किंतु वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए पुलिस के द्वारा गरीबों किसानों मजदूरों के बच्चे उठा लिए जाते हैं इससे जनता में सन्देश चला जाता है कि अपराधी पकड़ गए फिर सक्षम अधिकारी मिलकर तय करते हैं कि उस पर कौन कौन कैसे कैसे केस थोपे जाएँ और उसे कितना बड़ा अपराधी घोषित करना है उसी हिसाब से उसके कागज पत्तर बना लिए जाते हैं उनके पास न घूस देने को पैसे होते हैं और न कोई सोर्स !उनके परिवारों की महिलाएँ सिर ढक ढक कर रोने जरूर पहुँच जाती हैं उन्हीं घरों का पुरुष वर्ग कसमें खा कहकर अपने निर्दोष होने का सबूत दे रहा होता है किंतु सरकारी शेर ग़रीबों के साथ कैसा भी बुरा व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र होते हैं उस दिन वो कोई भी गाली दे सकते हैं बच्चों के माता पिता होने के नाते उन्हें बुरा नहीं लगता !वो सोचते हैं चलो इसी बहाने साहब ने बात तो की !सरकार ऐसे कमाऊ पूतों को सातवें वेतन आयोग की धनराशि से सींचने जैसी बड़ी भूल करती है । किंतु सरकार में इतनी हिम्मत नहीं होती है कि उनसे कहे कि यदि सैलरी बढ़ के लेनी है तो अपने अपने विभागों से भ्रष्टाचार को समाप्त करो !सरकार सारे अभियान चलाती है किंतु भ्रष्टाचार भगाओ अभियान कभी सुना है ।
भ्रष्टाचार से कमाई करके सरकारों में सम्मिलित लोगों का हिस्सा उन्हें पहुँचाते हैं वे खुश होकर इनकी सैलरी बढ़ा दिया करते हैं ये न बढ़ावें तो वो चले जाते हैं हड़ताल में !सरकार में सम्मिलित लोग घबरा जाते हैं कि ये कहीं पोल न खोल दें अपने भ्रष्टाचार की इसलिए मना लेते हैं इन्हें और मान लेते हैं उनकी अच्छी बुरी सभी माँगें ! यदि सरकार ईमानदार हो तो इन्हें निकाल बाहर करे और नई भर्ती करले किंतु ईमानदार हो तब तो !
भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही तो हैं जनता के पास ऐसे कोई अधिकार ही नहीं होते कि वो भ्रष्टाचार करे ! ये तो भीषण सैलरी उठाने वाले सरकारी लोग ही कर सकते हैं । ऊपर से बढ़ाती जा रही है सरकार !सरकार को चाहिए कि सैलरी बढ़ाने से पहले उनसे कहे कि भाई घूस लेना अब तो बंद करो ! जिन्दा मुर्दा सब तुम्हीं खा जाओगे तो ग़रीबों किसानों मजदूरों को हम क्या देंगे !
वैसे भी सरकारी कर्मचारियों से काम लेना सरकार के बश की बात नहीं है और आम जनता की वो सुनते नहीं हैं घूस देकर आते हैं सैलरी उठाकर रिटायर हो जाते हैं । जब चाहते हैं तब सैलरी बढ़वा लेते हैं ।काम के नाम पर ऐसे हैं कि शिक्षकों की परीक्षा लेने पहुँचते हैं मीडिया वाले तो शिक्षकों को कुछ आता जाता नहीं है घूस देकर भर्ती हुए हैं तो अब उन्हें सैलरी चाहिए बश !
खैर ,सरकार के हर विभाग का लगभग यही हाल है अयोग्य अधिकारियों कर्मचारियों को ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि काम शुरू कहाँ से करें और हमें करना क्या है तब तक बेचारे रिटायर हो जाते हैं उनकी इसी अयोग्यता के कारण ही सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं कुल मिलाकर सरकार के किसी काम में कोई क्वालिटी नहीं है केवल घोषणाएँ हो रही हैं काम के विषय में सोच रहे हैं कि अगली पञ्च वर्षीय योजना में करेंगे । सरकार का कोई विभाग भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है इसलिए योग्य अधिकारियों कर्मचारियों की नियुक्तियाँ हों तो कैसे हों और योग्यता विहीन लोग अपराधों को कैसे करें कंट्रोल !
गरीबों का जीवन इतना अकेला है उड़ीसा की घटना जिसकी पत्नी के निधन के बाद शव ले जाने तक की व्यवस्था न कर सके हों सरकारी अधिकारी कर्मचारी !दूसरी घटना कानपुर हैलट की है एक पिता को उसके छोटे से पुत्र का शव कंधे पर लेकर जाने को मजबूर कर देने वाले अधिकारी कर्मचारी मरीजों का इलाज क्या ख़ाक करते होंगे !ऐसी मौतों के लिए अस्पतालों के जिन अधिकारियों कर्मचारियों को जिम्मेदार मान कर मुकदमा चलाया जाना चाहिए और कठोर सजा का प्रावधान होना चाहिए घूस खोर सरकारों का ध्यान ऐसे लोगों की सैलरी और महँगाई भत्ता बढ़ते रहता है ! सरकार के हर विभाग का हाल यही है अधिकारियों कर्मचारियों की नियत ही साफ नहीं है ।
पति अपनी पत्नी का शव कंधे कर लेकर 12 किलोमीटर तक पैदल लेकर चला जा रहा हो साथ में प्यारी सी बिटिया है वो पति कैसे अपने आँसू पोंछ पा रहा होगा कैसे अपनी बिटिया के !दूसरी घटना कानपुर हैलट की है एक पिता अपने छोटे से पुत्र का शव कंधे पर लेकर जाने को मजबूर है !उस पिता के हृदय की पीड़ा ये सरकारी अधिकारी कर्मचारी क्या समझेंगे जब तक इन्हें भगवान् उसी प्रकार की विपत्ति से नहीं गुजारेगा !देश के गरीब लोग ऐसी आजादी को चाटें क्या !
आजादी ने देश के आम गरीब को क्या दिया आखिर क्यों ढोवें वे बोझ बन भ्रष्ट लोकतंत्र ! अधिकारी लोग जिस विभाग की शिकायत होती है कभी कभी उनसे पूछ कर वही बात बता देते हैं जो वो लोग पहले ही कह रहे थे फिर इस लोकतंत्र में अधिकारियों का अपना वजूद क्या है !लोग अपनी अपनी एप्लिकेशनें दे जाते हैं सुबह सफाई वाले उठा कर फ़ेंक देते हैं।एक पुलिस वाले भाई साहब तो यहाँ तक कह रहे थे कि अधिकारियों से शिकायत करने से आप लोगों का ये नुक्सान होता है कि पहले आपका जो काम करने के लिए हम दो हजार माँग रहे थे उसी के लिए अब दस हजार आपको देने पड़ेंगे क्योंकि अब उन अधिकारियों को भी उनका हिस्सा पहुँचाना पड़ेगा !बारे देश बारे लोकतंत्र !बारी सरकारें !सरकारी योजनाओं को पूर्णकरने वाले लोग यदि ऐसे हैं तो सरकारी योजनाओं का कार्यान्वयन कैसे होता होगा ! प्रधानमंत्री जी कहते हैं - बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ !
सरकारी कर्मचारी ऊपरी कमाई का लालच छोड़ें तो बंद हो सकते हैं सभी प्रकार के अपराध और बलात्कार !किंतु वे छोड़ें क्यों उनपर ऊपरी दबाव होता है कमाई करके देने का !
सरकारों में सम्मिलित लोगों का सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों पर घूस लेकर नेताओं की कमाई बढ़ाने का अघोषित दबाव रहता है वो टारगेट उन्हें पूरा करके देना ही होता है ! दो दो कौड़ी के नेता इन्हीं कमाऊपूतों के सहयोग से होते हैं अरबों खरबोंपति और भोगते हैं राजाओं जैसे सुख भोग !बाद में नेता लोग उन्हें महँगाई भत्ता या सैलरी बढ़ाकर कुछ अंश लौट दिया करते हैं वो कर्मचारी जब कमा कर भेजते हैं तब भी अपना हिस्सा निकालकर रख लिया करते हैं !तभी तो जिन जिन अधिकारियों कर्मचारियों के यहाँ तलाशी होती है वो सब करोडो अरबो पतिनिकलते हैं जिनके घरों की तलाशी ही नहीं हुई वो ईमानदार बने रहते हैं तलाशी उन्हीं के यहाँ होती है जो सरकारों में सम्मिलित नेताओं का दिया हुआ कमाई का टार्गेट पूरा करके समय से पहुँचा नहीं पाते हैं !सरकारों में सम्मिलित लोग कुछ लूट लिया करते हैं कुछ सरकारी अधिकारी कर्मचारी नोच लेते हैं ये जिस दिन चाह लेंगे उसी दिन बंद हो जाएँगे बलात्कार समेत सभी प्रकार के अपराध !ऊपरी कमाई का लालच तो छोड़ना पड़ेगा !
गन्दगी में जैसे कीड़े डालने नहीं पड़ते अपितु स्वतः पड़ जाते हैं उसी प्रकार से भ्रष्टाचार की गंदगी की सड़ांध में सभी प्रकार के अपराधी जन्म लेते हैं सरकार गंदगी पर कीटनाशक छिड़क रही है किंतु इससे कीड़े मकोड़े मर तो सकते हैं किंतु दोबारा पैदा होने से नहीं रोके जा सकते हैं इसलिए हटानी तो गन्दगी ही पड़ेगी किंतु अपनों की हुई गंदगी गंदगी कहाँ लगती है छोटे बच्चे पिता के ऊपर पेशाब कर देते हैं तो भी पिता उसे पुचकारना नहीं छोड़देता है ऐसे ही सरकारी कर्मचारियों के सौ खून माफ हैं वो कुछ भी करें किंतु अपनों की सैलरी बढ़ाने से पीछे नहीं हटती हैं सरकारें !
अपराधियों पर शिकंजा कसने का दिखावा करने के लिए एक से एक कठोर कानून बनाए जाते हैं इसके बाद उन कानूनों को बेचने की रेट लिस्ट सरकारी अधिकारी कर्मचारी खुद बना लेते हैं जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा होता है वो अपराधी उसी हिसाब से कानून खरीदता है और ठाठ से करता है अपराध !
'ठाठ से' कहने का मतलब आप छोटे बड़े किसी भी अपराधी को देखिए पुलिस पकड़े खड़ी होती है किंतु अपराधी के चेहरे पर डर नाम की चीज नहीं होती है रोते वही अपराधी हैं जो नए नए होने के कारण या कंजूसी के कारण सेटिंग नहीं कर पाते हैं या फिर वो रोते हैं जिनका उस अपराध से कोई संबंध ही नहीं होता है किंतु वास्तविक अपराधियों को बचाने के लिए पुलिस के द्वारा गरीबों किसानों मजदूरों के बच्चे उठा लिए जाते हैं इससे जनता में सन्देश चला जाता है कि अपराधी पकड़ गए फिर सक्षम अधिकारी मिलकर तय करते हैं कि उस पर कौन कौन कैसे कैसे केस थोपे जाएँ और उसे कितना बड़ा अपराधी घोषित करना है उसी हिसाब से उसके कागज पत्तर बना लिए जाते हैं उनके पास न घूस देने को पैसे होते हैं और न कोई सोर्स !उनके परिवारों की महिलाएँ सिर ढक ढक कर रोने जरूर पहुँच जाती हैं उन्हीं घरों का पुरुष वर्ग कसमें खा कहकर अपने निर्दोष होने का सबूत दे रहा होता है किंतु सरकारी शेर ग़रीबों के साथ कैसा भी बुरा व्यवहार करने के लिए स्वतंत्र होते हैं उस दिन वो कोई भी गाली दे सकते हैं बच्चों के माता पिता होने के नाते उन्हें बुरा नहीं लगता !वो सोचते हैं चलो इसी बहाने साहब ने बात तो की !सरकार ऐसे कमाऊ पूतों को सातवें वेतन आयोग की धनराशि से सींचने जैसी बड़ी भूल करती है । किंतु सरकार में इतनी हिम्मत नहीं होती है कि उनसे कहे कि यदि सैलरी बढ़ के लेनी है तो अपने अपने विभागों से भ्रष्टाचार को समाप्त करो !सरकार सारे अभियान चलाती है किंतु भ्रष्टाचार भगाओ अभियान कभी सुना है ।
भ्रष्टाचार से कमाई करके सरकारों में सम्मिलित लोगों का हिस्सा उन्हें पहुँचाते हैं वे खुश होकर इनकी सैलरी बढ़ा दिया करते हैं ये न बढ़ावें तो वो चले जाते हैं हड़ताल में !सरकार में सम्मिलित लोग घबरा जाते हैं कि ये कहीं पोल न खोल दें अपने भ्रष्टाचार की इसलिए मना लेते हैं इन्हें और मान लेते हैं उनकी अच्छी बुरी सभी माँगें ! यदि सरकार ईमानदार हो तो इन्हें निकाल बाहर करे और नई भर्ती करले किंतु ईमानदार हो तब तो !
भ्रष्टाचार करने वाले सरकारी अधिकारी कर्मचारी ही तो हैं जनता के पास ऐसे कोई अधिकार ही नहीं होते कि वो भ्रष्टाचार करे ! ये तो भीषण सैलरी उठाने वाले सरकारी लोग ही कर सकते हैं । ऊपर से बढ़ाती जा रही है सरकार !सरकार को चाहिए कि सैलरी बढ़ाने से पहले उनसे कहे कि भाई घूस लेना अब तो बंद करो ! जिन्दा मुर्दा सब तुम्हीं खा जाओगे तो ग़रीबों किसानों मजदूरों को हम क्या देंगे !
वैसे भी सरकारी कर्मचारियों से काम लेना सरकार के बश की बात नहीं है और आम जनता की वो सुनते नहीं हैं घूस देकर आते हैं सैलरी उठाकर रिटायर हो जाते हैं । जब चाहते हैं तब सैलरी बढ़वा लेते हैं ।काम के नाम पर ऐसे हैं कि शिक्षकों की परीक्षा लेने पहुँचते हैं मीडिया वाले तो शिक्षकों को कुछ आता जाता नहीं है घूस देकर भर्ती हुए हैं तो अब उन्हें सैलरी चाहिए बश !
खैर ,सरकार के हर विभाग का लगभग यही हाल है अयोग्य अधिकारियों कर्मचारियों को ये समझ में ही नहीं आ रहा है कि काम शुरू कहाँ से करें और हमें करना क्या है तब तक बेचारे रिटायर हो जाते हैं उनकी इसी अयोग्यता के कारण ही सभी प्रकार के अपराध बढ़ रहे हैं कुल मिलाकर सरकार के किसी काम में कोई क्वालिटी नहीं है केवल घोषणाएँ हो रही हैं काम के विषय में सोच रहे हैं कि अगली पञ्च वर्षीय योजना में करेंगे । सरकार का कोई विभाग भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है इसलिए योग्य अधिकारियों कर्मचारियों की नियुक्तियाँ हों तो कैसे हों और योग्यता विहीन लोग अपराधों को कैसे करें कंट्रोल !
भ्रष्टाचार करने
वाले सरकारी कर्मचारी ही तो हैं !कुछ भ्रष्टाचार करते हैं कुछ हिस्सा लेते
हैं कुछ केवल भ्रष्टाचारी कमाई की पार्टियाँ
खाते हैं कुछ घूस नहीं लेते हैं तो पता उन्हें भी सबकुछ होता है कि हमारी
आफिस में सरकार का बनाया हुआ कौन सा कानून तोड़ने का रेट क्या है !और अपनी
आफिस में कितने का कारोबार हो रहा है प्रतिदिन !जानते सबकुछ हैं कब कब कौन
कौन
कितनी कितनी कर रहा है कमाई !ऐसे सभी लोग सम्मिलित माने जाएँगे भ्रष्टाचार
में !
अरे सरकारी कर्मचारियो ! आप लोग जिम्मेदारी निभाना देश के श्रद्धेय
सैनिकों से सीखिए !उन्हें जो जिम्मेदारी सौंपी जाती है उसे पूरी करके ही
लौटते हैं न कोई मजबूरी न कोई बहाना न कोई किंतु परंतु !उनके दृढ निश्चयी
स्वभाव से देश के दुश्मनों के दिल थर्राते हैं हिम्मत नहीं पड़ती है भारत की
ओर ताकने की !उन्हें पता है कि ये मर मिटेंगे किंतु पीछे नहीं हटेंगे
!हमारे सैनिक केवल कर्मचारी ही नहीं अपितु देश के सेवक भी हैं वे सैलरी के
लिए नहीं अपितु वे देश के लिए शहीद होते हैं !
दूसरी ओर सरकारी आफिसों के अधिकारी कर्मचारी !जनता दिन
दिन भर आफिसों में दौड़ते रहते हैं काम न करना पड़े इसलिए एक दूसरे का नाम
और फोन नंबर बता बता कर दिन करते हैं जनता को !अगर कोई कुछ ज्यादा टाइट
पड़ा तो सब मिलकर उसका देते हैं जो उस दिन गैरहाजिर होता है ! अब कोई क्या
कर लेगा इनका !इंटरनेट नहीं आ रहा है बता कर कभी उठ जाते हैं कुर्सियाँ
छोड़कर !कई बार काम के लिए आए लोगों के मुख सुबह से पनि नहीं गया होता है
इनका नास्ता लंच सब कुछ हो चुका होता है फिर भी चाय पीने चले जाते हैं
जनता से कहते हैं कल आना !कंप्यूटर प्रिंटर खराब बता बता कर कई कई दिन
मस्ती मार लेते हैं ये !यही कारण है दस हजार रूपए पाने वाले प्राइवेट
स्कूलों के शिक्षक पढ़ाते हैं और साथ हजार सैलरी लेने वाले सरकारी शिक्षक
नाक कटाते हैं देश के सैनिक इतनी बेइज्जती सहने से पहले मर मिटते किंतु जिन
कर्मचारियों को शर्म नहीं है उनसे क्या आशा !दस हजार रूपए पाने वालेकोरियर
कर्मी ,प्राइवेट मोबाईल कंपनियों के कर्मचारी नाक काट रहे हैं साठ साठ
हजार लेने वाले सरकारियों की !
अरे कर्मचारियो !तुम्हें धिक्कार है तुम्हारे विभागों के
भ्रष्टाचार, कामचोरी, गैरजिम्मेदारी से जनता तंग है फिर भी इतनी सारी सैलरी
और फिर भी असंतोष ! सारा भ्रष्टाचार जब सरकारी आफिसों में होता है उसे
रोकने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है भ्रष्ट लोगों को पकड़ने और
पकड़वाने की जिम्मेदारी सरकारी लोगों की है जनता के काम करने की जिम्मेदारी
सरकारी लोगों की है अपनी जिम्मेदारी निभाने में कहाँ खरे उतर पा रहे हैं
सरकारी अधिकारी कर्मचारी!
सरकार जो कानून बनाती है वो कानून सरकारी कर्मचारी बेचने लगते हैं उनसे
अपराधी खरीदते हैं और ठाठ से करते हैं अपराध ! दिन दोपहर में बीच चौराहे पर
लूट लिए जाते हैं लोग हो रहे हैं अपराध ! किए जा रहे हैं मर्डर आदि !
भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी तो भ्रष्टाचार से कमा ही रहे हैं उन्हें सैलरी
क्यों ?सरकार उनकी पहचान क्यों नहीं करती क्यों नहीं छेड़ती है कोई
"भ्रष्टाचार मिटाओ अभियान!"
सरकार जो नियम बनाती है सरकारी मशीनरी का एक बड़ा वर्ग उन्हें बेच कर पैसे
कमाता है भारी भरकम सैलरी भी उठाता है ।सरकारी निगरानी तंत्र इतना लचर या
भ्रष्ट है कि नियमों कानूनों को तोड़ने जोड़ने बेचने खरीदने की मंडी बन गया
है सरकारी कामकाज !लगभग हर आफिस में अलग अलग काम के हिसाब से घूस के पैसे
फिक्स हैं !भ्रष्टाचार की भारत बहुत बड़ीमंडी है !जहाँ भ्रष्ट लोग
नित्यप्रति करोड़ों का कारोबार उस भ्रष्टाचार के बल पर चला रहे हैं जिसे
सरकारी नियम कानून गलत मानते हैं ।जिन्हें पकड़ने की जिम्मेदारी सरकार की है
ये सरकारों का फेलियर नहीं तो क्या है !फिर भी सैलरी !
सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
मोदी जी ! किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
मोदी सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !
मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
सरकारी आफिसों में भ्रष्टाचार के जन्मदाता सरकार के भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी ही तो होते हैं जिनसे गलत काम करवाकर दलाल लोग काली कमाई करने वालों से करोड़ों रूपए कमीशन कमा लेते हैं तो कल्पना कीजिए कितनी कमाई होगी उन भ्रष्ट अधिकारीकर्मचारियों की !ऊपर से हजारों लाखों की सैलरी !उसके ऊपर वेतन आयोगों की सरकारी कृपा !बारी सरकारी नौकरी !इनकी इतनी सुख सुविधाएँ और अपना इतना संघर्ष पूर्ण जीवन देखकर किसान आत्म हत्या न करें तो क्या करें !
अपराधीलोग, गुंडेलोग और काली कमाई करने वाले धनीलोगों को इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से वो अघोषित रेटलिस्ट मिलती है कि सरकार के द्वारा बनाया गया कौन सा नियम कितने पैसे में तोड़ा जा सकता है ।यही कारण है कि अपराधियों में कानून का खौफ नहीं है । जिस अपराधी की जेब में जितना पैसा है सो कर रहा है उतना बड़ा अपराध !
मोदी जी ! किसानों गरीबों मजदूरों का भी कोई वेतन आयोग बनाइए आखिए वे भी देश सेवा का ही काम कर रहे हैं उनकी उपेक्षा क्यों ?किसान आत्महत्या करते जा रहे हैं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाई जा रही है !दाल और टमाटर महँगे होने की चिंता तो है किंतु किसानों की रक्षा के लिए पहले उठाए जाएँ कठोर कदम !बाद में बढ़ाई जाए कर्मचारियों की सैलरी !वे सैलरी बढ़ाए बिना मरे नहीं जा रहे उन्हें आलरेडी इतना मिल रहा है पहले किसानों मजदूरों गरीबों की ओर देखिए मोदी जी !
किसानों गरीबों मजदूरों की आमदनी की कितने गुने सैलरी होनी चाहिए सरकारी कर्मचारियों की इसकी भी कोई नीति बनाइए !एक तरफ हजारों का ठिकाना नहीं एक तरफ लाखों बढ़ाए जा रहे हैं ये कुंठा ही गरीबों के अंदर आपराधिक प्रवृत्ति को जन्म देती है ।
आम जनता के टैक्स दी जाने वाली सैलरी कब बढ़ाई जाए कितनी बढ़ाई जाए इसके लिए जनता से क्यों नहीं पूछा जाता जनता के बीच सर्वे क्यों नहीं कराया जाता !सारे फैसले सरकार खुद ले लेती है तभी तो सरकारी आफिसों के लोग आम जनता को कुछ समझते नहीं हैं सरकारी आफिसों में काम के लिए जाने वाली जनता को खदेड़ कर भगा देते हैं सरकारी लोग !कोई सीधे मुख बात नहीं करता है वहाँ । जनता की कोई सुनने वाला नहीं होता है !
सरकार में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी यदि जनता का ध्यान नहीं रखते तो ये लोकतंत्र के नाम पर कलंक है कि जनता आज भी सरकारी अधिकारियों को अपनी समस्या बताने में डरती है उसके चार प्रमुख कारण हैं पहली बात वो सुनेंगे नहीं !दूसरी बात वो कुछ करेंगे नहीं ! तीसरी बात वो पैसे माँगेंगे !चौथी बात वो समस्या बढ़ा देंगे !
कई बार लोगों को जो तंग कर रहा होता है उसके विरुद्ध किए गए कम्प्लेन की सूचना सरकारी विभाग से उस अपराधी को दी जाती है जाती है जो तंग कर रहा होता है फिर अपराधी ही कम्प्लेनर पर करता है अत्याचार !ये सारी कमियाँ दूर किए बिना सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार !अफसोस !ये सरकारें आम जनता के लिए चुनी जाती हैं पेट केवल अपना और अपनों का भरा करती हैं ।
मोदी सरकार के दो वर्ष होने का पर्व जनता भी मना रही है क्या ?या केवल सरकार में सम्मिलित लोग और केवल पार्टी के पदाधिकारी ही !कोशिश ऐसी होनी चाहिए कि जनता को भी विश्वास में लिया जाए और जनता भी मोदी सरकार के वर्षद्वय पर में भावनात्मक रूप से सम्मिलित हो !अन्यथा वर्तमान खुशफहमी कहीं अटल जी की सरकार का फीलगुड बन कर न रह जाए !
मोदी जी ! जनता का बहुत बड़ा वर्ग भ्रष्टअधिकारियों और भ्रष्टनेताओं की धोखाधड़ी का शिकार हो रहा है उसे बचने के लिए कुछ कीजिए !ये दोनों लोग ही करवा रहे हैं सभी प्रकार के अपराध !अन्यथा अपराधियों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि वो अपने बल पर अपराध करें और उनके पास इतना धन कहाँ होता है कि वे घूस देकर बच जाएँ किंतु मददगारों के बल पर वो उठा जाते हैं बड़े बड़े कदम !इस लिए उन मदद गारों की पहचान करके उन पर अंकुश लगाना होगा !इन लोगों पर अंकुश लगाए बिना 2019 की वैतरणी पार कर पाना आसान नहीं होगा !
इसके अलावा मोदी जी आखिर कैसे बंद हों अपहरण हत्या बलात्कार जैसे अपराध ! अपराधियों को गले
लगाते हैं गुंडे और गुंडों को गले लगाती हैं राजनैतिक पार्टियाँ !इसी
प्रकार से अपराध के कारोबार से कमाई करते हैं अपराधी और अपराधियों से कमाई
करते हैं भ्रष्ट अधिकारी कर्मचारी !यदि सरकारी
अधिकारी ,कर्मचारी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ होते तो न हत्याएँ होतीं न होते
बलात्कार !इसलिए अपराधियों पर अंकुश लगाने से पहले भ्रष्ट अधिकारियों
कर्मचारियों पर काबू पावे सरकार !उसके पहले विकास संबंधी सारी बातें बेकार
!
प्रधानमंत्री जी ! सरकार
के हाथ पैर तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी ही होते हैं जिनके अच्छे बुरे
व्यवहार के आधार पर ही सरकार के काम काज का मूल्यांकन होता है क्योंकि अधिकारियों और
कर्मचारियों से ही जनता को जूझना पड़ता है वो ही यदि भ्रष्टाचारी हैं तो आप
कितने भी अच्छे बने रहें किंतु जनता के मन में आपकी छवि भ्रष्टाचार समर्थक
के रूप में ही बनी रहेगी !अपराधों पर अंकुश लगाने के नाम पर भाषण चाहें जितने हों किंतु काम बिलकुल नहीं हो रहा है !
जेल में बैठकर मीटिंगें कर रहे हैं अपराधी !एक साधारण किसान की गारंटी पर
हजारों करोड़ का लोन मिल जाता है ऐसे असंख्य अपराध कर रहे हैं सरकारी
अधिकारी ,कर्मचारी इन्हें कोई देखने रोकने वाला ही नहीं है तभी तो अंकुश
नहीं लग पा रहा है अपराधों पर ! सरकारी नीतियाँ इतनी अंधी हैं कि अधिकारियों
कर्मचारियों से काम
लेना तो सरकार के बश का ही नहीं है इनके भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना भी
सरकार के बश का नहीं है फिर भी इनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है सरकार जबकि सरकारी हर काम काज का भट्ठा बैठा रखा है इन्होंने !आखिर सरकार अपने कर्मचारियों से इतनी खुश क्यों है!
सरकारी शिक्षा विभाग ,डाकविभाग दूरसंचार विभाग चिकित्साविभाग चौपट तो
इन्हीं सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों ने कर रखा है इनसे बहुत कम सैलरी
पाकर भी प्राइवेट टीचर, कोरियरकर्मी, प्राइवेटदूर संचार
कर्मी,चिकित्साकर्मी अपने अपने क्षेत्र में कितनी अच्छी अच्छी सेवाएँ दे
रहे हैं ।
सरकार के कर्मचारी तो इतने कामचोर हैं कि जिस आफिस के कर्मचारियों की एक
एक महीने की सैलरी पर पचासों लाख रूपए खर्च हो रहे होते हैं उस आफिस के
कर्मचारी अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर बिगाड़ कर उसी बहाने कई कई दिन काम न
करके जनता को टरकाया करते हैं ऊपर से जनता के साथ मिलकर वो लोग भी सरकार
तथा सरकारी व्यवस्थाओं को गालियाँ देते हैं ! इनके काउंटरों पर
नंबर की तलाश में खड़ी जनता को जानवरों की तरह कभी भी खदेड़ देते हैं ये इटरनेट न आने का बहाना बनाकर!कई
कई दिन बीत जाने पर भी काम न होने पर घूस देने को मजबूर कर दी जाती है
जनता !उसके पास इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं होता है । सरकारी
तंत्र की ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहाँ जनता इस विश्वास के साथ शिकायत करे
कि उसका काम समय से हो जाएगा !
सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों से काम कराने के लिए घूस देने के अलावा
जनता के पास कोई अधिकार नहीं हैं जिस अधिकारी से शिकायत की जाती है वो उलटे
जनता को ही काटने दौड़ता है सरकार तक जनता की पहुँच नहीं होती है !
कुल मिलाकर अपराध छोटे हों या बड़े इसे करने वाला किसी न किसी कोने में
मूर्ख होता है तभी तो ऐसा रास्ता चुनता है ।अपराधी केवल यंत्र की भाँति
होता है इसी कारण ऐसे लोगों का ऊपरी कमाई के लालच में उपयोग करते हैं
भ्रष्टअधिकारी कर्मचारी और गुंडेनेता !जहाँ अधिकारियों कर्मचारियों की ऊपरी
कमाई का साधन बने हैं अपराधी वहीँ भ्रष्टनेताओं का दबदबा बनाने में सहायक
होते हैं अपराधी !यही अधिकारी और यही नेता उन अपराधियों की हर समय हर
प्रकार से रक्षा करते रहते हैं इस सच्चाई से इनकार नहीं किया जा सकता है
इसलिए ऐसे लोगों पर अंकुश लगाए बिना अपराधों पर नियंत्रण नहीं पाया जा
सकता है ।
गंगानदी भगवान के चरणों से निकलती है किंतु भ्रष्टाचार की नदी अधिकारियों
कर्मचारियों के आचरणों से निकलती है !
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