आम आदमी पार्टी का धरने से हुआ लाभ और सफल हुए सोमनाथ भारती !
अपने नेताओं के अहंकार तले लगातार दबती जा रही देश की बड़ी बड़ी
पार्टियों को यह समझना चाहिए कि अरविन्द केजरीवाल की पार्टी अभी तक केवल
जनता से जुड़े मुद्दे ही उठाती रही है उन लोगों का एक ही लक्ष्य लगता है
कि कानून की किताबों ,एवं कानूनी किताबों की चर्चाओं तथा कानूनी शब्दा
बलियों से जांचों से अब जनता ऊभ चुकी है अब जनता चाहती है कि जो कुछ हो वो
या तो मेरे सामने हो या मेरी जानकारी में हो या मुझे सम्मिलित करके हो !
जनता के मन में ये बहुत बड़ा भ्रम है हमारे वोट के सहयोग से जिन सरकारों का गठन होता है उन सरकारों में बैठे लोगों को धन मिलता है पद प्रतिष्ठा और सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ मिलती हैं किन्तु हमें क्या मिलता है जा राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली की यह स्थिति है कि सरकारी या निगम स्कूलों में पढ़ाई पहले भी नहीं होती थी सरकार बदलने के बाद भी नहीं होती है अध्यापक पहले भी कक्षाओं में जाने से डरते थे सरकार बदलने के बाद भी डरते हैं अस्पतालों में दवाई पहले भी नहीं मिलती थी बाद में भी नहीं मिलती है पोस्ट आफिस आदि सभी सरकारी आफिसों में जितना काम पहले भी सुविधा शुल्क देकर होता था सरकार बदलने के बाद भी वैसे ही होता है। सड़कें पहले भी टूटी होती थीं सरकार बदलने के बाद भी होती हैं खाने के सामान में मिलावट पहले भी होती थी सरकार बदलने के बाद भी होती है सब्जियों में कैमिकल पहले भी पड़े होते थे सरकार बदलने के बाद भी पड़े होते हैं कानून व्यवस्था पहले भी ख़राब होती थी सरकार बदलने के बाद भी ख़राब ही रहती है!सरकारी लोगों से बात करो तो वे निगम को दोषी ठहरा देते हैं और निगम वालों से कहो तो वे सारा दोष सरकार पर मढ़ देते हैं दोनों की दोनों से अपने निजी काम करवाने की या बेतन बढ़वाने महँगाई भत्ता लेने या बढ़ने बढ़ाने जैसे सभी काम करने करवाने की अंडर स्टैंडिंग इतनी अच्छी होती है कि अपने एवं अपने लोगों के सभी काम तो गुप चुप तरीके से इशारों इशारों में हो जाते हैं किन्तु जब जनता के कामों की बात आती है तो अलग अलग कार्यालयों विभागों में दौड़ाया जाता है जनता धक्के खाया करती है जब अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से जनता उनकी शिकायत या अपनी परेशानी बताने पहुँचती है तो नेता जी पहले तो घर होते नहीं हैं होते हैं तो जरूरी मीटिंग में होते हैं यदि मिल भी गए तो आँखें चुराते हैं अच्छे अच्छे सुपरिचित लोगों से अपरिचित जैसा वर्ताव करते हैं लोगों से मिलने में अपनी तौहीन समझते हैं बोलना तो दूर लोगों के नमस्ते का जवाब नहीं देते हैं शिष्टाचार की दृष्टि से पैर छूने पर दो शब्द आशीर्वाद के नहीं बोलते हैं वो जनता के किसी काम आते होंगे ऐसा सोचा भी कैसे जा सकता है!
दिल्ली में एक राष्ट्रीय पार्टी का पूर्ण समर्पित एक कार्यकर्ता अपने गली मोहल्ले के कुछ लोगों को लेकर अपनी पार्टी के शुद्ध पवित्र स्थानीय विधायक एवं ईमानदार स्वच्छ छवि के मुख्यमंत्री प्रत्याशी जी के यहाँ अपनी पार्टी एवं प्रत्याशी की प्रशंसा करते हुए उन्हें मिलाने के लिए लेकर पहुँचा और उनसे सुपरिचित होने के कारण परिचितों जैसी शैली में बात करते हुए उन लोगों का परिचय करने लगा तो उन्होंने बीच में ही टोकते गए कहा आप कौन हैं और कहाँ रहते हैं क्या करते है आपको मैंने तो कभी देखा नहीं खैर मैं तो अभी व्यस्त हूँ फिर कभी देखेंगे !
अब आप स्वयं सोचिए कि उस कार्यकर्ता पर क्या बीती होगी उसकी जगह आप होते तो क्या आपको बुरा नहीं लगता और क्या इसके बाद भी आप पूर्ण निष्ठा के साथ कर पाते उस पार्टी को जिताने के लिए चुनावों में काम ?
सरकार में बैठे लोगों ने भी सुना होगा कि रिहायसी बस्ती में मोबाईल टावर होने से भयंकर रोग होते हैं ऐसी खबरें मीडिया में खूब चलाई गईं किन्तु टावर नहीं हटाए गए !अब जनता क्या सोचे कि सरकार की उनके प्रति सोच क्या है ?
इसी प्रकार से अतिक्रमण तोड़नेवालों से पूछा जाना चाहिए कि जब अतिक्रमण किया जाता है तब आप कहाँ होते हैं इस प्रकार से जिस सन में अतिक्रमण किया गया हो उस सके जिम्मेदार अधिकारियों को न केवल सस्पेंड किया जाए अपितु पेनाल्टी भी लगाई जानी चाहिए ताकि दूसरी बार ऐसा करने का साहस ही न हो !
जिन सरकारी या निगम के स्कूलों तथा अस्पतालों जैसे अन्य सरकारी प्रतिष्ठानों के पास किसी भी जनप्रतिनिधि का घर या कार्यक्षेत्र या चुनावी क्षेत्र होता है ऐसे शुद्ध पवित्र प्रतिनिधियों से पूछा जाना चाहिए कि वे कितनी बार ऐसे सरकारी या निगम आफिसों में जाकर कार्य की गुणवत्ता के परीक्षण करने के लिए औचक निरीक्षण करते हैं ! एक पार्टी के शुद्ध पवित्र दिल्ली के मुख्यमंत्री प्रत्याशी की दूकान की पास अपना निगम स्कूल है वहाँ सभी प्रकार की शैक्षणिक लापरवाहियाँ होती हैं किन्तु बिना आमंत्रित किए अगर कल्पित मुख्यमंत्री जी चले जाएँ तो उनके सम्मान में खरोंच आ जाए इसीलिए वो जाते नहीं हैं और जाएँगे भी नहीं ये स्कूल वालों को भी पता होता है ऐसे में लापरवाही तो होगी ही ! चुनाव से पूर्व अपने को सेवक मानने वाले जन प्रतिनिधि चुनाव के बाद अपने को न जाने क्या क्या और क्यों मान बैठते हैं जब उनके सारे बर्चस्व का आधार जनता का वोट ही है तब जनता से ही अप्रिय व्यवहार करके न जाने वे अपने एवंअपनी पार्टी के लिए ही गड्ढा क्यों खोदते हैं ?
इसके बाद वे लोग न केवल हमें भूल जाते हैं अपितु हम मिलना भी चाहें तो वो हमसे से जिन सरकारों से गठन आखिर जिसे जनता गलत समझती है
दिल्ली के अलावा अन्य प्रदेशों के हालात तो और भी अधिक ख़राब हैं एक बार अपनी शास्त्रीय संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिए मैंने भारत भ्रमण का निश्चय किया उसी क्रम में शास्त्रीय संस्कृति विकास के लिए भ्रमण करते करते उत्तर प्रदेश के कई जिलों में गया इससे जो एक बात सामने आई वो ये कि वहाँ का कार्यकर्त्ता प्रायः जिस जनता से भविष्य में वोट मिलना है उससे तो मुख चुराया करता है और अपने बड़े नेताओं के चक्कर लगाया करता है जब जिस नेता को जहाँ फोन करो तो वो मिलने से तो मुख चुरा रहा होता है और कोई बहाना पर अपने देश
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