Wednesday, 16 July 2025

MILAAN KARNA HAI

 महामारी की लहरों का समय और पूर्वानुमान और सच्चाई ! 

                                        अनुसंधानजनित तैयारियाँ  और उनसे लाभ 

     महामारी जैसी इतनी बड़ी बड़ी घटनाएँ अत्यंत वेग से आकर लोगों को संक्रमित करने लगती हैं | कुछ संक्रमितों की मृत्यु होते देखी जाती है|चिकित्सा या सुरक्षा संबंधी तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारी से समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव नहीं है | इसलिए बचाव हेतु आवश्यक एवं प्रभावी तैयारियाँ पहले से करके रखी जानी चाहिए | पहले से यदि ऐसा करके नहीं रखा जा सका तो तुरंत की तैयारियों के बल पर महामारी से समाज की सुरक्षा करना संभव नहीं हो पाता है| महामारी आते ही संक्रमित करना प्रारंभ कर देती है | उस समय इतना समय ही नहीं होता है कि महामारी से बचाव के बिषय में कुछ सोचा जाए | सुरक्षा या उपायों के नाम पर जो कुछ किया भी जाता है उसका महामारी पर कोई प्रभाव पड़ता भी है | इस बिषय में उपाय करने वाले विशेषज्ञ लोग भी निश्चित तौर पर कुछ कह नहीं पाते हैं | 

    किसी रोग या महारोग से  मुक्ति दिलाने के लिए सबसे पहले रोग की प्रकृति समझनी आवश्यक होती है |रोग के पैदा होने का कारण पता लगाना होता है | चिकित्सा के नाम पर उस कारण का ही तो निवारण करना होता है | इतना  करने मात्र से रोग से मुक्ति मिलनी प्रारंभ हो जाती है | इसके लिए आवश्यक है कि कारण तो पता लगे | उसके बाद रोग से मुक्ति पाने के लिए सोचा जाए कि क्या उपाय करना आवश्यक होगा | 

     सबसे पहले पता करना है कि महामारी पैदा होने या संक्रमण बढ़ने का कारण क्या होता है | सही कारण खोजे बिना यह पता लगाना कठिन होता है कि बढ़े हुए संक्रमण को घटाने के लिए क्या किया जाए |जिस महामारी के पैदा होने या संक्रमण बढ़ने का कारण पता लगाया जाना संभव न हो पा रहा हो | उसके बिषय में लगाए जा रहे अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकलते जा रहे हों |अत्यंत साधन संपन्न देशों के बड़े बड़े चिकित्सालयों के सघन चिकित्सा कक्षों में चिकित्सकों के सम्मुख वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े रोगियों की मृत्यु होते देखी जा रही हो | 

         जिन अनुसंधानों से महामारी को न समझना संभव हो पा रहा हो और न ही उन आधार पर लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान सही निकल पा रहे हों,तो ये कैसे भरोसा किया जाए कि ऐसे अनुसंधानों से संक्रमितों को कोई मदद मिल सकती है | ये हर किसी के लिए सोचने वाली बात है कि  महामारी संबंधी अनुसंधान यदि सक्षम ही होते और महामारी से बचाव के लिए पहले से कुछ तैयारियाँ करके रखी गई होतीं तो महामारी से मनुष्यों की सुरक्षा में कुछ तो सहायक होते | 

     जिन अनुसंधानों के आधार पर कोविड संबंधी नियमों के पालन की सलाह दी गई | उस पर विश्वास करके बहुत अपनी अपनी सुविधा के अनुसार  कोविड नियमों का पालन करने लगे | कुछ साधन संपन्न लोग तो पूर्णतः एकांतवासी हो गए |कोविड नियमों का शतप्रतिशत पालन  करने के बाद भी ऐसे कुछ लोगों को गंभीर रूप से संक्रमित होते देखा गया | ऐसी स्थिति में महामारी से जूझती जनता की मदद के लिए जो किया भी गया उसका महामारी संक्रमण एवं संक्रमितों पर क्या प्रभाव पड़ा !यही संदिग्ध है |  मुक्ति दिलाने के लिए जो अमृत टीके लगाए गए | दो दो डोज  के बाद भी उन्हें ये भरोसा नहीं दिया जा सका कि अब आप संक्रमित नहीं होंगे | ऐसे भी बहुत लोग बार बार संक्रमित हुए जिन्होंने दो दो तीन तीन डोज लिए | 

     इसके लिए यदि ये  कहा जाए कि दो दो तीन तीन डोज लेने वाले लोग यदि संक्रमित हुए भी तो उनका संक्रमण बहुत अधिक बढ़ा नहीं ये उसका लाभ हुआ | ऐसा कहते समय यह भी याद रखा जाना चाहिए कि उसके बाद ऐसी कोई गंभीर लहर ही नहीं आई जिसमें कोई इतने अधिक संक्रमण का शिकार हुआ हो | बहुत लोगों ने तो एक भी डोज नहीं ली और संक्रमित भी नहीं हुए | 

     मेरे कहने का तात्पर्य यह भी नहीं है कि लोगों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए या महामारी से लोगों को सुरक्षित रखने के लिए जो प्रयत्न किए गए उनसे कोई लाभ ही नहीं हुआ होगा | मेरे कहने का उद्देश्य मात्र इतना है कि यदि महामारी से सुरक्षा या चिकित्सा के लिए प्रयोग की जाने वाली औषधियाँ अनुसंधान पूर्वक तैयार की  गई हैं तो उन पर इतना भरोसा तो होना ही चाहिए कि इनसे क्या और कितना लाभ होगा | औषधियों टीकों आदि के बारे में ऐसा तो कोई भी भरोसा  नहीं  दिलाया सका |यदि अनुसंधान करने वालों को ही उन औषधियों  पर ऐसा विश्वास नहीं था  तो समाज  को कैसे विश्वास दिलाया जाए |  

     ऐसी मतिभ्रम की स्थिति में जब जैसी घटनाएँ घटित होती रहीं तब तैसी संगति बैठाई जाती रही | अब ऐसा हो सकता है या वैसा हो सकता है |ऐसी स्थिति में रोग के कारण या चिकित्सा के बिषय में दृढ़ता पूर्वक  कभी कुछ कहा ही नहीं जा सका | जैसा कहा गया तब तैसा  नहीं तो भी कोई बात नहीं थी | संक्रमण जब बढ़ने लगता था तो कोविड नियमों के  पालन  न  करने या वायुप्रदूषण बढ़ने आदि को जिम्मेदार बताया जाता और जब  संक्रमण जब घटने लगता था तो उसके लिए कोविड नियमों  के पालन एवं लॉकडाउन लगाने जैसी बातों का प्रभाव बता दिया जाता |यद्यपि ऐसी बातों का भी कोई अनुसंधान जनित वैज्ञानिक आधार नहीं था | 

    ऐसी सभी बातें आशंका और अंदाजा मात्र होती थीं | इसीलिए इसे महामारी के साथ जोड़कर वैज्ञानिकविधि से  प्रमाणित किया जाना अभीतक संभव नहीं हो पाया है| ऐसीस्थिति में यह सोचना आवश्यक हो जाता है कि  इतने उन्नत वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा यदि महामारी को समझना ही संभव नहीं हो पाया तो उससे मदद की आशा कैसे की जाए | महामारी को जितना समझा गया उसके आधार पर महामारी या उसकी लहरों के बिषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए गए वे भी सही  नहीं निकले | ऐसी स्थिति में  महामारी से बचाव के लिए जो प्रयत्न किए गए वे कितने  प्रभावी रहे होंगे | इसका आकलन किस आधार पर किया जा सकेगा कि महामारी से लोगों की सुरक्षा के लिए या संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए अभी तक जो जो तैयारियाँ की गई हैं वे कितनी प्रभावी हैं | इसके लिए अभी और क्या किया जाना आवश्यक है | 

    इसलिए  महामारीसंबंधी अब ऐसे विज्ञान एवं अनुसंधानों की खोज की जानी आवश्यक है | जिसके आधार पर महामारी जैसी इतनी बड़ी विपदा को सही सही समझना संभव हो | महामारी के  बिषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाएँ वे सही निकलें | इन  सबके आधार पर जब प्रमाणित हो जाए कि महामारी को मैंने सही सही समझ लिया है | उन अनुभवों के आधार पर महामारी से बचाव के लिए  ऐसे नियम बनाए जाएँ जिनके पालन करने न करने का अंतर स्पष्टरूप से अलग दिखाई दे | उन नियमों का जो पालन करे उनका संक्रमण से उन लोगों की अपेक्षा अधिक बचाव हो | जो नियमों का पालन न कर रहे हों  | ऐसे अनुभवों के आधार पर जिन औषधियों या टीकों का निर्माण किया जाए |उनका जब जिसे सेवन कराया जाए तो उसे यह विश्वास दिलाया जा सके कि अब आप संक्रमित नहीं होंगे या आपके संक्रमित होने की संभावना अब बहुत कम है | यदि किसी संक्रमित को दिया जाए  तो उसे किसी सीमा तक तो संक्रमण से मुक्त होने का भरोसा दिलाया जा सके | रोगी को स्वस्थ होने की कोई अनुमानित अवधि दी जा सके | आम लोगों के द्वारा लगाए गए अंदाजों की अपेक्षा विशेषज्ञों के द्वारा लगाए गए अंदाजों की विश्वसनीयता कुछ तो अधिक हो | महामारी के बिषय में आम लोगों के द्वारा कही गई बातों की अपेक्षा विशेषज्ञों की बातों में कुछ तो अधिक दृढ़ता हो | 
 
                                     महामारी को समझने की क्षमता और अनुसंधान !  
 

    महामारी पैदा और समाप्त होने या संक्रमण बढ़ने और घटने के लिए कौन सा मनुष्यकृत कारण जिम्मेदार है | इस बिषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कहा जाना संभव नहीं है | बिना किसी तर्कसंगत प्रमाण के  उन अनुसंधानों से प्राप्त जानकारी को महामारी के साथ जोड़कर  कैसे देखा जा सकता है | ये आपसी श्रृंखला कहीं तो जुड़नी चाहिए | संक्रमण बढ़ने या घटने के लिए जिन जिन कारणों की कल्पना की गई है | अभी तक उन कल्पनाओं का महामारी के साथ कोई संबंध प्रमाणित नहीं हो सका है | 

   ऐसे ही महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए अभी तक जितने भी प्रयत्न किए गए हैं | उनका  महामारी या महामारी संक्रमितों पर क्या कुछ प्रभाव पड़ा है या नहीं पड़ा है | इसे भी महामारी के  साथ जोड़कर प्रमाणित नहीं किया जा सका है | इसलिए लोकहित के उद्देश्य से ऐसी कल्पनाओं  आशंकाओं से ऊपर उठकर महामारी के बिषय  में कुछ ऐसा सोचे या किए जाने की आवश्यकता  है | जो महामारी  के साथ मिलान करने पर  तर्कसंगत रूप से  जुड़ता हुआ दिखाई दे | 

    महामारी के बिषय में यह कह देना आसान है कि महामारी मनुष्यकृत थी या प्राकृतिक थी ,किंतु प्रमाणों के साथ उसकी संगति भी तो बैठनी चाहिए |ये प्रकृति या जीवन के किसी भी पक्ष से संबंधित हो सकती है |  यदि उसप्रकार के कारण  जीवन से संबंधित हैं तो महामारी के समय जीवन में ऐसे क्या कुछ नए परिवर्तन अचानक हुए थे जो अन्य वर्षों में नहीं होते रहे हैं | महामारी आने से पहले मनुष्यों के आहार बिहार रहन सहन आदि में ऐसे कौन कौन से परिवर्तन अचानक हुए थे जिनके परिणाम स्वरूप महामारी प्रारंभ हुई होगी यह भी तो स्पष्ट किया जाना चाहिए | वे परिवर्तन ऐसे हों जो हमेंशा नहीं देखे जाते रहे हों |ऐसे परिवर्तनों को खोजा जाना चाहिए | 

     इसी प्रकार से  महामारी पैदा और समाप्त होने के लिए या फिर  महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने और घटने के लिए कुछ न कुछ कारण तो जिम्मेदार रहे ही होंगे |यदि वे प्रकृति से संबंधित हैं तो उनके चिन्ह प्रकृति में खोजने होंगे | महामारी को यदि प्राकृतिक माना जाए तो महामारी आने से पहले  प्रकृति में अचानक ऐसे क्या कुछ नए परिवर्तन होने लगे थे |  जो सामान्यतौर पर होते नहीं दिखाई देते हैं | 

      महामारी जैसे प्राकृतिक रोग या महारोग जब पैदा होते हैं | यदि उस समय  मनुष्यों के द्वारा ऐसा कुछ नया नहीं किया जाता है तो ऐसे रोगों को मनुष्यकृत कैसे कहा जा सकता है | इसी प्रकार से  प्रकृति में यदि ऐसी कोई नई घटनाएँ घटित होते नहीं दिखाई पड़ती है तो हमेंशा घटित होते रहने वाली एक जैसी घटनाओं को महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार नहीं माना जा सकता है |

      ऐसे ही महामारी काल में भी जब महामारी की लहरें आती या जाती हैं | उस समय प्रकृति या जीवन में कुछ ऐसा नया होते नहीं देखा जाता है तो महामारी की लहरें आने जाने के लिए प्रकृति या जीवन को जिम्मेदार कैसे माना जा सकता है | 

     कुलमिलाकर वर्तमान समय में अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ करना पड़ रहा है | उसपर भी इसलिए पुनर्बिचार किया जाना  चाहिए ताकि अनुमानों पूर्वानुमानों का घटनाओं के साथ किसी न किसी रूप में तो संबंध सिद्ध हो सके | कमी कहाँ रह रही है ये पता लगाया जा सके | | 
 
                                                   वैदिकविधि से  महामारी और अनुसंधान ! 
     
      अमावस्या के दिन बिल्कुल अँधेरा हो जाता है| उसके बाद क्रमशः बढ़ते बढ़ते पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्र निकलता है तो संपूर्ण पृथ्वी पर प्रकाश होता है | उसके बाद क्रमशः घटते घटते फिर अमावस्या को अँधेरा हो जाता है | 
     ऐसे ही सूर्य प्रतिदिन प्रातःकाल उगता है | उसका तेज दोपहर तक क्रमशः बढ़ते जाता है | उसके बाद सूर्य का तेज घटना शुरू होता है और धीरे धीरे  सूर्य अस्त हो जाता है |ये स्थिति केवल चंद्रमा की ही नहीं होती है |
 
      यही क्रम ऋतुओं  का होता है | ग्रीष्म (गर्मी) ऋतु में तापमान बहुत अधिक बढ़ा हुआ होता है | उसके बाद तापमान कम होना प्रारंभ होता है | क्रमिक रूप से तापमान  घटते घटते शिशिर(सर्दी)  ऋतु में तापमान बहुत  कम  जाता है | उसके बाद तापमान बढ़ना फिर शुरू हो जाता है | प्रकृति में प्रत्येक घटना एक दिन तापमान बहुत कम हो जाता है 
    प्रकृति का यही क्रम और यही नियम है | जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ होती हैं वे सभी अपने अपने समय से संबंधित होती हैं | समय आने पर वे पैदा होती हैं | समय केसाथ साथ  बढ़ती जाती हैं और समय आने पर समाप्त हो जाती हैं | उसके बाद समय आने पर फिर उसी क्रम में पैदा होती हैं | यही यही क्रम हमेशा चला करता है | जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं 
     ऐसे ही वर्षा बाढ़ भूकंप आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात जैसी  जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ अपने अपने समय पर पैदा होती हैं समय के साथी हैं बढ़ती और समय के साथ समाप्त होती हैं | ऐसी घटनाओं के पैदा और समाप्त होने में मनुष्यों का कोई योगदान नहीं होता है और न ही  हो सकता है | प्रकृति को अपने अनुसार चलाना मनुष्यों के बश  की बात  नहीं होती है | 
    महामारी भी तो ऐसी ही प्राकृतिक घटना है | उसके शुरू या समाप्त होने में तथा उसका वेग बढ़ने घटने में भी मनुष्यों की भूमिका हो ही नहीं सकती |ये सबकुछ अपने आपसे ही समय के अनुसार घटित होता जाता है |महामारी यदि किसी देश विशेष के द्वारा निर्मित  होती तो एक ही बार बढ़ लेती जितनी बढ़नी होती | एक बार बढ़ने के बाद कम होना जब शुरू होता तो धीरे धीरे कम होती चली जाती और समाप्त हो जाती | उसके बाद फिर जब कोई उस प्रकार का प्रयत्न किया जाता तब फिर प्रारंभ  होती | महामारी की लहरों का अपने आपसे आते जाते रहना मनुष्यकृत महामारी  में  संभव  न था | इसलिए महामारी प्राकृतिक ही है | 
     प्रकृति विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए  तो सभी प्राणियों जीव जंतुओं पेड़ पौधों आदि की तरह ही सभी परिस्थितियों एवं महामारी जैसी घटनाओं के पैदा और समाप्त होने का कारण समय ही होता है | ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाएँ समय के साथ अनादिकाल से जुड़ी हुई हैं | वे अपने अपने घटित होने के समय की प्रतीक्षा कर रही हैं | सब का समय निर्धारित होता है | समय आने पर जैसे सभी घटनाएँ अपने अपने पूर्व निर्धारित समय पर घटित होती रहती हैं | उसी प्रकार से महामारी के भी पैदा और समाप्त होने का समय पूर्वनिर्धारित होता है | महामारी के पैदा होने का समय जब आता है | उस समय महामारी प्राकृतिक रूप से ही पैदा हो जाती है और महामारी के समाप्त होने का समय जब आता है तब प्राकृतिक रूप से ही समाप्त हो जाती है |  
     कुलमिलाकर पूर्वनिर्धारित समय पर  महामारी आती है और समय बीतने पर चली जाती है | ऐसे ही महामारी काल  में भी संक्रमण के बढ़ने और घटने का कारण भी समय ही होता है | जब बढ़ने का समय आता है तब संक्रमण बढ़ते और जब घटने का समय आता है  तब संक्रमण घटते देखा जाता है | संक्रमण अधिक बढ़ने  एवं कम होने का कारण भी समय ही होता है | ऐसी घटनाएँ भी प्राकृतिक रूप से ही  घटित  होती हैं | इसमें मनुष्यकृत कर्मों की कोई भूमिका नहीं होती है |
 
                                            महामारी को कितना समझ सका विज्ञान ! 

      महामारी में  एक  बात विशेष  रूप  से देखी गई थी | महामारी जिस समय आई उससमय वैज्ञानिक बल से उसे न तो रोका जा सका और न ही विश्वास पूर्वक ये कहा जा सका कि अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों के  द्वारा महामारी के बिषय में  हमने ऐसा अनुमान लगाया है | जिसके दो चार  प्रतिशत सही होने की संभावना भी है | मेरी जानकारी के अनुसार महामारी के बिषय में उनके द्वारा लगाया गया ऐसा कोई  अनुमान सही नहीं निकला है | 
     महामारीबिषयक पूर्वानुमानों की भी यही स्थिति रही है | महामारी की किसी भी लहर के बिषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा लगाए गए किसी भी एक पूर्वानुमान के बिषय में समाज को ऐसा कोई भरोसा नहीं दिलाया जा सका है कि ये कुछ प्रतिशत सही निकलेगा | 
   आवश्यकता तो यह थी कि महामारी के बिषय में सही अनुमान लगाकर महामारी की प्रकृति को समझा जाए !उसके आधार पर  चिकित्सा की प्रभावी तैयारियाँ  की जाएँ | यह भी आवश्यक था कि महामारी की प्रत्येक लहर के  बिषय में  आगे से आगे सही पूर्वानुमान पता लगाया जाए | उसके अनुसार कोई लहर आने से पहले  महामारी से सुरक्षा के लिए एवं संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए मजबूत तैयारियाँ पहले से करके रख ली जाएँ | ऐसा कुछ भी किया नहीं जा सका | जिससे महामारी से जूझते समाज को कुछ ऐसी मदद पहुँचाई जा सकी हो और समाज को ऐसा लगा भी हो कि यह मदद न मिलती तो इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था | अनुसंधानजनित मदद मिलने से बचाव हो गया है | महामारी से भयभीत समाज को ऐसा कोई भरोसा नहीं दिया जा सका |       
      कुल मिलाकर वर्तमान समय के अतिउन्नत विज्ञान के द्वारा न तो महामारी की किसी लहर को रोका जा सका और न ही किसी मनुष्य को विश्वास पूर्वक ये आश्वासन ही दिया जा सका कि आप परेशान न हों ! महामारी से निपटने की पर्याप्त तैयारियों के बलपर आपको संक्रमित नहीं होने दिया जाएगा | यदि हुआ भी तो अतिशीघ्र संक्रमण मुक्त कर लिया जाएगा | 
      महामारी की  जो लहर  जब आनी शुरू हुई उस समय वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा  उसे रोका जा सका और न ही उसके वेग को घटाया ही जा सका | वे लहरें आईं भीं और लोगों को संक्रमित भी किया | यहाँ तक कि महामारी का वेग घटाया जाना भी संभव नहीं हो पाया | 
    लोगों की सुरक्षा की कसौटी पर यदि अनुसंधानों को कसा जाए तो समाज को यह भरोसा भी नहीं दिया जा सका कि  किसी लहर के आते समय यदि कोविड नियमों का पालन करते रहोगे तो संक्रमित नहीं होंगे | बहुत लोग संपूर्ण रूप से कोविड नियमों का पालन करने के बाद भी गंभीर रूप से संक्रमित हुए | 
    प्लाज्मा थैरेपी देने  के बाद न तो विश्वास पूर्वक ये कहा जा सका कि अब संक्रमित होने का खतरा नहीं है और न ही ये भरोसा दिया जा सका कि यदि संक्रमित हो भी गए तो इसके प्रभाव से अतिशीघ्र संक्रमण से मुक्ति मिल जाएगी और ऐसा हुआ भी नहीं | रेमडेसिविर इंजेक्शन के बिषय में भी यही हुआ किसी को देने के बाद विश्वास पूर्वक ये  कहा जा सका कि तुम अब संक्रमित नहीं होगे | 
     वो अमृतटीका जो सबसे बड़ा वैज्ञानिक बल था | उसकी दो दो मात्रा देने के बाद भी उन लोगों से  विश्वास पूर्वक यह नहीं कहा जा सका कि आपके संक्रमित होने की संभावना अब बहुत कम है | संक्रमित हुए भी तो संक्रमण गंभीर नहीं होगा | दो दो मात्रा लेने के बाद भी लोग गंभीर रूप से संक्रमित होते देखे गए | उनमें से कुछ लोगों ने तो तीसरी डोज भी ले रखी थी | 
    विशेष बात ये है कि मेरा ये सब आकलन करने का लक्ष्य विज्ञान के प्रति समाज के भरोसे को कम करना नहीं है | उस अनुसंधान पद्धति में आवश्यक सुधारपूर्वक उसके गौरव को बढ़ाना है| इसके साथ ही साथ महामारी जैसे संकटों से समाज को जूझना न पड़े या कम से कम जूझना पड़े उसके लिए ऐसे प्रभावी प्रयत्न करना है |जो भविष्य के लिए जनता का भरोसा बन सकें | महामारी जैसे संकटों के समय समाज इतना दीनहीन असहाय बेचारा  भयभीत होकर यूँ ही अपने एवं अपनों को खोता न चला जाए | ये सबकुछ मैंने महामारी से डरे सहमे समाज की दृष्टि से देखा और सोचा है |वैज्ञानिक अनुसंधानों में कमी निकालने का मेरा लक्ष्य इसलिए भी नहीं है,क्योंकि वो मेरा बिषय नहीं है | मैंने तो वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की अपेक्षाओं एवं आपूर्ति के अंतर को  वैदिकविज्ञान से कम करने का प्रयत्न किया है | भारत के प्राचीन परंपरा से प्राप्त वैदिकविज्ञान से यदि ऐसी कोई मदद मिलनी संभव है तो जनहित में उस विकल्प पर भी बिचार होना चाहिए |अनुसंधान यदि आधुनिक पीढ़ी के काम आ जाएँ तो ये तो आत्मसम्मान एवं गौरव अनुभव करने का बिषय है |  
 
                                              वैदिकविज्ञान और हमारे अनुसंधान 
 
     वैदिकविज्ञान से संबंधित अनुसंधान मैं पिछले 35 वर्षों से निरंतर करता आ रहा हूँ | इसके द्वारा प्रकृति और जीवन से संबंधित अनेकों घटनाओं को अपने अनुसंधान का बिषय बनाते आ रहा हूँ | इसके द्वारा प्रकृति के स्वभाव को समझने के साथ साथ उन समस्त परिवर्तनों को समझने एवं उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए प्रयत्न करता आ रहा हूँ |भूकंप आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वर्षा बाढ़ आदि मौसम संबंधी घटनाएँ हो या महामारियाँ यहाँ तक कि जलवायु परिवर्तन या महामारी का स्वरूप परिवर्तन ही क्यों न हो | ये सभी प्राकृतिक परिवर्तन ही तो हैं |प्रकृति के रहस्य को समझते ही ऐसी घटनाओं का रहस्य भी उद्घाटित हो जाएगा | उस समय उनके बिषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना आसान हो जाएगा |
     इसी उद्देश्य से मैं अपने अनुसंधानों को सफलता के साथ आगे बढ़ाते आ रहा हूँ | अब तो ऐसा अभ्यास सा हो गया है कि प्रकृति या जीवन में जब कोई ऐसी घटना घटित होते देखता  हूँ| जो हमेंशा घटित होने वाली घटनाओं से कुछ अलग हो | उनका ढंग क्रम वेग आवृत्तियों आदि में पहले की अपेक्षा भिन्नता हो |ऐसी घटनाओं के कारणों को मैं प्रत्यक्ष की अपेक्षा परोक्ष दृष्टि से  खोजने का प्रयत्न करने लगता हूँ | इस प्रवृत्ति से बहुत सारे प्राकृतिक रहस्य सुलझने भी लगे हैं | 
     इसी दृष्टि से मैंने उन घटनाओं को भी देखना प्रारंभ किया जो महामारी आने के लगभग 12 वर्ष पहले से घटित होनी प्रारंभ हो गई थीं | ऐसी घटनाएँ दिनोंदिन बढ़ती देखी जा रही थीं | महामारी आने के कुछ वर्ष पहले से तो ये पूरी तरह  स्पष्ट होता जा रहा था कि प्रकृति का संतुलन बिगड़ता जा रहा है और प्रकृति का झुकाव किसी एक तत्व की ओर बढ़ता जा रहा  है | ये असंतुलन समयसंचार में उसप्रकार के परिवर्तन का परिणाम है| इसके संकेत उस समय बार बार घटित हो रही प्राकृतिक घटनाएँ दे रही थीं |उन  आधार पर  मेरी वो आशंकाएँ अनुमान आदि जब निश्चय में बदलने लगे | 
     मैंने इसे अपने अनुसंधान का बिषय बनाया |अनुसंधानजनित अनुभवों से मुझे लगा कि यह प्राकृतिक असंतुलन किसी रोग या महारोग का कारण बन सकता है | प्राकृतिक शक्तियाँ महामारी प्रारंभ करने से पूर्व 50 दिन का महामारी का ट्रायल प्रारंभ करने जा रही थीं | मैंने इसे सर्व प्रथम  20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ  की मेल पर भेजा था |  
    20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल के अंश  !
  20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ  की मेल पर भेजा था | उसमें लिखा इससे संबंधित अंश - 
    " 10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा !इसमें प्राकृतिक आपदाएँ हों या मनुष्यकृत लापरवाही उत्तेजना उन्माद आदि का अशुभ असर  इस समय विशेष अधिक होगा ! आँधी तूफान चक्रवात भूकंप आदि से जनधन हानि होगी !आतंकवादी घटनाएँ बढ़ेंगी,आंदोलनों के नाम पर फैलाया जाने वाला जन उन्माद इस समय अतिशीघ्र हिंसक रूप ले जाएगा इसलिए सावधानी और संयम का ध्यान विशेष अधिक रखा जाना चाहिए !वायु प्रदूषण सीमा से काफी अधिक बढ़ जाएगा !स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !इस समय थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !"
  ये महामारी का पूर्व रूप ही था | संक्रमण काल कम होने के कारण इसका प्रभाव कुछ देशों प्रदेशों में ही पड़ा था | तब तक समय समाप्त हो गया था | इसलिए सब लोगों को पता नहीं लग पाया था | मैं अपने अनुसंधानों के आधार पर महामारी की प्रत्येक लहर के बिषय में मैं आगे से आगे पूर्वानुमान पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ | जो सही निकलते रहे हैं | वे मेलें अभी भी सुरक्षित पड़ी हुई हैं |जिनका कभी भी परीक्षण किया या करवाया जा सकता है |    
     मैंने अपने समयसंबंधी अनुसंधान के द्वारा महामारी के बिषय में शुरू से समाप्ति तक वो सबकुछ पता लगाया है | जो जो आवश्यक था |महामारी संबंधी उस जानकारी एवं अनुमान पूर्वानुमान आदि मेल के माध्यम से भारत के पीएमओ की मेलपर भेज दिया था |उसमें मैंने महामारी के स्वभाव प्रभाव विस्तार प्रसार माध्यम अंतर्गम्यता अनुमान पूर्वानुमान आदि के बिषय में जो जो लिखा है | वे सब सही घटित हुए हैं |

    19 मार्च 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल के कई आवश्यक अंश  !
   
  19 मार्च 2020 को मैंने महामारी के बिषय में पीएमओ की मेल पर जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लिखकर भेजे थे | वे प्रायः सही निकलते देखे गए |ऐसी बातें जो वैज्ञानिकदृष्टि से अभी तक रहस्य बनी हुई हैं | वैदिकविज्ञान की दृष्टि से वे रहस्य 19 मार्च 2020 को मेरी मेल से ही उद्घाटित  हो गए थे | उनकी गणना मैंने समयविज्ञान के अनुसार ही की थी | 
 19 मार्च 2020 की मेल का संक्रमण से मुक्ति मिलने के उपाय से संबंधितअंश -
      -" ऐसी महामारियों को सदाचरण स्वच्छता उचित आहार विहार आदि धर्म कर्म ,ईश्वर आराधन एवं ब्रह्मचर्य आदि के अनुपालन से जीता जा सकता है |"
 19 मार्च 2020 की मेल का चिकित्सा एवं निदान न हो पाने से संबंधित अंश - 
 "इसमें चिकित्सकीय प्रयासों का बहुत अधिक प्रभाव नहीं पड़ेगा | क्योंकि महामारियों में होने वाले रोगों का न कोई लक्षण होता है न निदान और न ही कोई औषधि होती है |" अर्थात इस महारोग को न तो पहचाना जा सकेगा और न ही इसकी चिकित्सा की जा सकेगी |  
    19 मार्च 2020 की मेल का महामारी पर समय का प्रभाव पड़ने से संबंधित अंश -"
   "  किसी भी महामारी की शुरुआत समय के बिगड़ने से होती है और समय के सुधरने पर ही महामारी की समाप्ति होती है | समय से पहले इस पर नियंत्रण करने के लिए अपनाए जाने वाले प्रयास उतने अधिक प्रभावी नहीं होते हैं |"
    19 मार्च 2020 की मेल का महामारी पैदा और समाप्त होने की प्रक्रिया से संबंधित अंश -"
  "  किसी महामारी पर नियंत्रण न हो पाने का कारण यह है कि  कोई भी महामारी तीन चरणों में फैलती है और तीन चरणों में ही समाप्त होती है | महामारी फैलते समय सबसे बड़ी भूमिका समय की होती है | सबसे पहले समय की गति बिगड़ती  है |  ऋतुएँ समय के आधीन हैं इसलिए अच्छे या बुरे समय का प्रभाव सबसे पहले ऋतुओं पर पड़ता है ऋतुओं का प्रभाव पर्यावरण पर पड़ता है उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर भी पड़ता है इससे वहाँ के कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषित हो जाता है | इन परिस्थितियों का प्रभाव जीवन पर पड़ता है इसलिए शरीर ऐसे रोगों से पीड़ित होने लगते हैं जिनमें चिकित्सा का प्रभाव बहुत कम पड़ पाता है |" 
    19 मार्च 2020 की मेल का महामारी पर समय संबंधी प्रभाव पड़ने  से संबंधित अंश -"
    "  महामारी समय के बिगड़ने से प्रारंभ होती है और समय के सुधरने से ही समाप्त होती है प्रयत्नों का बहुत अधिक लाभ नहीं मिल पाता है |पहले समय की गति सँभलती है उस प्रभाव से ऋतुविकार नष्ट होते हैं उससे पर्यावरण सँभलता है |उसका प्रभाव वृक्षों बनस्पतियों फूलों फलों फसलों आदि समस्त खाने पीने की वस्तुओं पर पड़ता है वायु और जल पर पड़ता है |कुओं नदियों तालाबों  आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर जीवन के लिए हितकारी होने लग जाता है | "  
 
           भारत में  कोरोना महामारी संबंधी अलग अलग लहरों के पूर्वानुमान !
      
                                      वैदिकविज्ञान और आधुनिकविज्ञान के आकलन में अंतर 

    वैदिकविज्ञान के आधार पर  संक्रमण बढ़ने और घटने का पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | जिस समय लोग संक्रमित होने प्रारंभ होते थे|उस समय लक्षण अत्यंत सामान्य होते थे | वैदिक विज्ञान के आधार पर वहीं से महामारी का प्रारंभ होना मान लिया जाता था| 
    आधुनिक वैज्ञानिक आकलन की दृष्टि से जब कोई व्यक्ति संक्रमित होना शुरू होता था | उस समय लक्षण अत्यंत सामान्य होने के कारण उन्हें गंभीरता से नहीं लिया जाता था |उसे साधारण सर्दी जुकाम माना जाता था | रोग  जब बढ़ता चला जाता था और औषधियों से कोई लाभ नहीं हो रहा होता था |उस समय कोरोना संबंधी जाँच करवाई जाती थी | उसमें यदि वो संक्रमित निकलता था तो उसका संक्रमित होना माना जाता था जबकि वो लगभग 10  दिन पहले संक्रमित हो चुका होता था | इसलिए वैदिक विज्ञान 10 दिन पहले से उसे संक्रमित मानता था और आधुनिक विज्ञान 10 दिन  संक्रमित मानना प्रारंभ करता था | बहुत लोग ऐसे भी थे जो संक्रमित हुए किंतु जाँच नहीं करवाई |वैदिक विज्ञान उन्हें भी संक्रमित मानकर चलता है जबकि आधुनिक विज्ञान की दृष्टि में जिन्होंने जाँच नहीं करवाई वे संक्रमित ही नहीं हुए |दोनों में ये अंतर देखा गया है | 
      जिसप्रकार से खरबूजे  के खेत में बहुत सारे खरबूजे पके पड़े हों किंतु व्यवस्था के अभाव में उन सभी खरबूजों को एक साथ खेत से उठाना न संभव हो पा रहा हो | खेत में पड़े उन पके खरबूजों में से जितने खरबूजे उठाए जा पा रहे हों केवल  उतने ही खरबूजे पके हैं | ऐसा आधुनिक विज्ञान का मत रहा है ,जबकि वैदिक विज्ञान के आधार पर खेत में पके पड़े सभी खरबूजों पका मानने की परंपरा देखी जाती रही है |
      इसीप्रकार से महामारी एक बार आकर बहुत सारे लोगों को संक्रमित कर जाती रही है | उसके बाद उनमें से जो लोग जब जाँच करवाते थे उस जाँच रिपोर्ट में यदि वे संक्रमित पाए जाते थे तब इनकी संक्रमितों में गणना की जाती थी | 
     ऐसी परिस्थिति में संक्रमित होने में और संक्रमितों की संख्या में सम्मिलित होने में लगभग  10 से 15 दिनों का अंतराल हो जाता था | इस कारण से महामारी की कौन लहर कब प्रारंभ हुई कब पीक पर पहुँची और कब समाप्त हुई |ऐसा होने में और  इसका आकलन करने में दस पंद्रह दिनों का अंतर हो जाता था | इसलिए वैदिक विज्ञान के बिना केवल जाँच के आधार पर किसी लहर के आने जाने या शिखर पर पहुँचने के निश्चित समय का पता लगाना संभव न था | 
     महामारी की पहली लहर जब आई तो एक साथ बहुत लोगों को संक्रमित करके 6 मई 2020 को पूरी हो गई,किंतु संक्रमितों की जाँच बहुत बाद तक होती रही| इसलिए बाद तक ये भ्रम बना रहा कि लोग अभी भी संक्रमित हो रहे हैं | कुछ लोग संक्रमित तो  6 मई 2020 से पहले हुए किंतु उनकी जाँच 18 मई 2020 को हुई | उसमें उनके संक्रमित होने की पुष्टि हुई | 
    इस प्रकार से  6 मई 2020 से पहले संक्रमित हो चुके लोग चिकित्सा और जाँच के अभाव में उसके काफी बाद तक अपनी जाँच नहीं करवा पाए | उन्हें जाँच का जब अवसर मिला उसके बाद जाँच रिपोर्ट मिली उसके आधार पर उस समय उन्हें संक्रमित माना गया |  
       किसी के संक्रमित होने और संक्रमितों की संख्या में सम्मिलित होने में इसी अंतर के कारण  6 मई 2020को समाप्त हो चुकी लहर में संक्रमित हुए लोगों को जाँच बाद में हुई तो वे बाद तक संक्रमितों की श्रेणी में बने रहे | इस समय नए लोगों का संक्रमित होना प्रायः समाप्त हो चुका था | इसके बाद  8 अगस्त 2020 से अगली लहर प्रारंभ हुई थी | जिससे 6 मई 2020 को समाप्त होने वाली एवं  8 अगस्त 2020 को प्रारंभ होने वाली दोनों लहरों को भ्रमवश एक में मिलाकर उन दोनों को एक ही लहर मान लिया गया | 
      वैदिक विज्ञान के आधार पर हमने उसका शिखर 24  सितंबर 2020 को होगा ऐसी भविष्य वाणी की थी | जबकि वैज्ञानिकों ने बाद में इसका शिखर 18 सितंबर 2020 को माना था |  


   
 


 
 
     19 मार्च 2020 की मेल में महामारी प्रथम लहर के पूर्वानुमान  संबंधी अंश - 
 महामारी बढ़ने का यह समय  24 मार्च 2020 तक चलेगा | उसके बाद इस महामारी का समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा जो क्रमशः 6 मई तक चलेगा | |उसके बाद समय में पूरी तरह सुधार हो जाने के कारण संपूर्ण विश्व अतिशीघ्र इस महामारी से मुक्ति पा सकेगा |"                                    
    ये भी प्रायः सही निकला था !ये संपूर्ण समाज जानता है कि 2020 की जून जुलाई में संक्रमण दिनोंदिन घटता जा रहा था इस कारण वैक्सीन ट्रायल के लिए भी संक्रमित नहीं मिल पा रहे थे | 
     कुल मिलाकर महामारी के बिषय में मैंने जो अनुमान पूर्वानुमान आदि पीएमओ की मेल पर भेजे थे | वे पूरी तरह से सही निकले हैं | 
    इस बिषय पर समय की दृष्टि से यदि गंभीर चितन किया जाए तो 2020 के मई जून जुलाई आदि महीनों में  संक्रमण दिनोंदिन घटते जाने का कारण यदि समय नहीं तो दूसरा और क्या हो सकता है , अर्थात कुछ भी नहीं उस महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए कोई औषधि चिकित्सा आदि थी ही नहीं      
      
 16 जून 2020  को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! (9 अगस्त से 16 नवंबर तक रहेगी )  

      "इसके बाद यह महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और  16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"

    4 अगस्त 2020 को संयुक्त राष्ट्र संघ को भेजी गई मेल का अंश !(9 अगस्त से 16 नवंबर 2020 तक रहेगी )
 
"8 अगस्त के बाद कोरोना संक्रमण एक बार फिर बढ़ने लगेगा और यह कहीं भी समाज के  बड़े हिस्से को संक्रमित कर सकता है। अगले 50 दिनों में यह संक्रमण इतना बढ़ सकता है कि यह एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में पहुँच सकता है। रिकवरी दर बहुत कम होने लग सकती है। अनुमान है कि 24 सितंबर तक संक्रमण तेज़ी से बढ़ सकता है। इसलिए, सावधानी बरतना बेहद ज़रूरी है। इसलिए, हमें यह आकलन करने के लिए लगभग 50 दिन और इंतज़ार करना चाहिए कि यह महामारी स्थायी रूप से समाप्त होने लगी है या नहीं।"
 
 23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 
 
     "आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं |"

       " ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिल्कुल ही नहीं है | यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं | " 
 
19 अप्रैल 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !( 20 अप्रैल 2021 से 2 मई 2021 तक )
     " मेरा अनुमान है कि ईश्वरीय कृपा से 20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा |" 
    
18 दिसंबर 2021 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

     "वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |" 

20 फ़र॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

    "कोरोना महामारी की चौथी लहर 27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी | 

 29 अप्रैल 2022 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 
    
 "कोरोना महामारी की पाँचवीं लहर 3 जुलाई 2022 से प्रारंभ होने जा रही है जो 15 अगस्त 2022 तक संपूर्ण वायु मंडल में व्याप्त रहेगी | उसके संपर्क  वाले लोग संक्रमित होते जाएँगे | इसके बाद महामारी की पाँचवीं लहर नियंत्रित होनी प्रारंभ होगी ,जो प्रत्यक्ष रूप से 21 अगस्त 2022 से समाप्त होते देखी जाएगी |"
 21 अक्टू॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश ! 

    "24 अक्टूबर 2022 से महामारी जनित संक्रमण फिर से बढ़ना प्रारंभ होगा जो 18 नवंबर 2022 तक रहेगा | इस समय में संक्रमितों की संख्या क्रमशःबढ़ती जाएगी !इसमें भी 14 से 18 नवंबर 2022 के बीच के समय में संक्रमितों की संख्या इस बार की परिस्थिति के अनुसार सबसे अधिक रहेगी |" 

 29 दिस॰ 2022को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
  "  कोरोना महामारी की अगली लहर  10  जनवरी 2023  से प्रारंभ होगी !14 जनवरी 2023 से बढ़नी प्रारंभ होगी  और 22 जनवरी 2023 से महामारी जनित संक्रमण काफी तेजी से बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा | 14 फरवरी 2023 से 20 फरवरी 2023 तक संक्रमितों की संख्या कुछ कम होनी शुरू होगी !  21 फरवरी 2023 से संक्रमितों की संख्या फिर बढ़नी शुरू होगी जो 16 मार्च 2023 तक बढ़ेगी उसके बाद  समाप्त होनी शुरू होगी जिसमें करीब 30 दिन का समय लगेगा ! विशेष बात यह है कि संक्रमण बहुत अधिक नहीं बढ़ेगा फिर भी तीसरी लहर से कम भी नहीं रहेगा ! बहुत अधिक बढ़ने या हिंसक होने से रोकने के लिए आवश्यक सावधानी बरतना श्रेयस्कर रहेगा | "
 
 6 जुल॰ 2023 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    "2-10-2023 से वातावरण में महामारी संबंधी विषाणुओं का बढ़ना एक बार फिर शुरू होगा | इसी समय से लोग संक्रमित होने शुरू हो जाएँगे |इसके बाद  20-10-2023 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़नी शुरू हो जाएगी | संक्रमितों की संख्या बढ़ने का यह क्रम 2-11 -2023 तक यूँ ही चलता रहेगा |इसके बाद धीरे धीरे संक्रमण रुकना शुरू होगा,किंतु संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान होने के कारण इससे मुक्ति मिलने की प्रक्रिया में लगभग 33 दिन और लग जाएँगे |लगभग  5-12-2023 तक के आस पास महामारी की इस लहर से मुक्ति मिलनी संभव हो पाएगी |मेरा ऐसा अनुमान है | " 
 
   23 मई 2024  को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
     " 29 जून 2024 से प्राकृतिक वातावरण दिनोंदिन प्रदूषित होते देखा जा सकता है |इसी बीच कुछ देशों में महामारी जनित संक्रमण के बढने की प्रक्रिया प्रारंभ हो  सकती है |यद्यपि इसकी गति धीमी होगी फिर भी 14 नवंबर 2024 के पहले पहले महामारी का एक  झटका लग सकता है | इसे प्राकृतिक शक्तियों के द्वारा किया जाने वाला महामारी का ट्रायल कहा जा सकता है | 5 अप्रैल  2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की दूसरी लहर की तरह ही विशेष डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व का बड़ा भाग संक्रमित हो जाए | वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो भिन्न भिन्न देशों में महामारी का यह तांडव 2025 के अप्रैल मई दोनों महीनों में देखने को मिल सकता है | यद्यपि इसके बिल्कुल स्पष्ट लक्षण सितंबर 2024  तक प्रकट हो जाएँगे | जिन्हें परोक्ष विज्ञान के द्वारा देखा जा सकेगा  |आवश्यकता पड़ी तो उस समय इस पूर्वानुमान की तारीखों में 10 प्रतिशत तक परिवर्तन करना पड़  सकता है |"
 
 19 अग॰ 2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
    20 अगस्त 2024 से महामारी जैसे महारोगों के बढ़ने का समय शुरू हो रहा है | इससमय से प्राकृतिक वातावरण तेजी से बिषैला होना प्रारंभ हो जाएगा | इससे वायु मंडल के साथ साथ खाने पीने की  वस्तुएँ संक्रमित होने लगेंगी |बिषैले वातावरण में साँस लेने से एवं संक्रमित वस्तुओं के खानपान से लोग स्वतः संक्रमित होते चले जाएँगे | समय प्रभाव से औषधियों के भी संक्रमित हो जाने के कारण संक्रमितों को औषधियों के सेवन या चिकित्सा आदि से भी कोई लाभ नहीं होगा | 22 सितंबर 2024 से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ने लगेगी | 11 से 18 अक्टूबर के बीच में यह लहर सबसे ऊँचे स्तर पर पहुँच जाएगी | 20 अक्टूबर 2024 से संक्रमितों की संख्या धीरे धीरे कम होनी प्रारंभ हो जाएगी | इसी क्रम में ये लहर यहीं से समाप्त होनी  शुरू  हो  जाएगी | 
 
 4  मार्च  2024 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
     " 17 दिसंबर 2024 से ही बिषाणुओं का बढ़ना प्रारंभ हो चुका है |  स्वर शास्त्र के आधार पर इसका गणितीय अनुसंधान  करने से ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि स्वरों का संचार अपनी प्रवृत्ति के विपरीत हो रहा है |ऐसे और भी छोटे बड़े अनेकों परिवर्तनों को प्रकृति के प्रत्येक अंश में उभरते देखा जा रहा है |ऐसे वातावरण में साँस ले रहे लोगों की प्रतिरोधक क्षमता दिनोंदिन क्षीण होते देखी जा रही है | यह आगे भी इसी क्रम में बढ़ती चली जाएगी |    1 मई 2025 से महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 19 मई 2025 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ  हो जाएगा | "
 
 16 मई 2025 को पीएमओ में भेजी गई मेल का अंश !
   25 सितंबर 2025  से कोरोनामहामारी की आगामी लहर प्रारंभ होगी | यह क्रमशः बढ़ती चली जाएगी | इससे लोग तेजी से संक्रमित होते चले जाएँगे | ये कई महीनों तक चलेगी | महामारी की यह लहर 31जनवरी 2026 तक संपूर्ण वायुमंडल को बिषैला करती रहेगी  | उसके बाद विराम लगने लगेगा | 12 फरवरी 2026 के बाद समाज को भी यह भरोसा होने लगेगा | अब महामारी से मुक्ति मिल जाएगी | इस आगामी लहर में महामारीजनित संक्रमण अत्यंत तेजी से बढ़ता हुआ दिखाई देगा | संभव है कि ये कोरोना महामारी की तरह ही अत्यंत डरावना स्वरूप  धारण करे | जिसमें विश्व के बहुत लोग संक्रमित होते देखे जाएँ|यद्यपि 2 फरवरी 2026 तक महामारी का यह स्वरूप समाज को संक्रमित करता रहेगा | उसके बाद स्वास्थ्य लाभ होना प्रारंभ  हो जाएगा | 
 
                       क्या था महामारी और उसकी लहरों के पैदा होने का कारण !
 
     जिसप्रकार से महामारी के आने और जाने का समय पूर्वनिर्धारित  होता है | उसी प्रकार से उसकी लहरों के आने और जाने का समय अनादिकाल से निश्चित होता है |   
    जिसप्रकार से महामारी के आने का कारण  लोगों की आपसी छुआछूत नहीं होती है | उसीप्रकार से महामारी की लहरों के आने का कारण  आपसी  छुआछूत नहीं होती है |इसका कारण यदि छुआछूत होती होती तब तो महामारी बहुत पहले से होती क्योंकि लोग तो आपस में एक दूसरे को छूते ही हैं | महामारी समाप्त होते समय भी एक दूसरे को छूते ही रहेंगे | 
    महामारी या उसकी लहरों के पैदा  होने का कारण  यदि आपसी  छुआछूत को माना जाएगा तब तो महामारी कभी समाप्त ही नहीं होगी |आपसी  छुआछूत तो हमेंशा ही  चलती रहती है | बहुत  लोग तो संक्रमितों के बीच रहकर भी संक्रमित नहीं हुए उन्हें क्या कहा जाए | बिहार बंगाल की चुनावी रैलियाँ हों ,हरिद्वार का कुंभ मेला हो,दिल्ली का किसान आंदोलन हो,दिल्ली  सूरत मुंबई जैसे महानगरों से  श्रमिकों का पलायन हो ,घनी बस्तियों या सामूहिक रहन सहन में रहने वाले लोग हों !महानगरों में भोजन के लिए दिन दिन भर लाइनों में खड़े छोटे बच्चे आदि ऐसी जगहें थीं | जहाँ एक दूसरे को छुए बिना रहना संभव ही न था | 
      इसलिए महामारी की किसी भी लहर के आने का कारण आपसी छुआछूत न होकर प्रत्युत वह समय ही होता है | जो महामारीजनित संक्रमण पैदा होने या बढ़ने के लिए अनादि काल से निर्धारित था | कोई भी महामारी या उसकी लहर  अपने पूर्व निर्धारित समय पर ही आती है |  
     इसी प्रकार से वायु प्रदूषण महामारीजनित संक्रमण बढ़ने का कारण नहीं होता है | यदि ऐसा होता तब तो महामारी बहुत पहले ही आ जाती क्योंकि  वायुप्रदूषण तो  कई वर्ष पहले से ही बढ़ता चला आ रहा था | सन 2020 के अक्टूबर नवंबर में वायुप्रदूषण बहुत अधिक बढ़ा हुआ था किंतु महामारीजनित संक्रमण  दिनोंदिन कम होता जा रहा था |वायुप्रदूषण  बढ़ने से यदि संक्रमण बढ़ता होता तो उस समय संक्रमण बढ़ना चाहिए था,किंतु फरवरी 2021 तक संक्रमण घटता ही चला गया | 2021 के मार्च अप्रैल में जब इतना वायुप्रदूषण मुक्त आकाश था कि अमृतशर और बिहार से हिमालय के दर्शन हो रहे थे | वायुप्रदूषण बढ़ने से यदि संक्रमण बढ़ता होता तो वायुप्रदूषण घटने से संक्रमण घटना भी चाहिए था !किंतु  2021 के मार्च अप्रैल में जब वायुप्रदूषण बिल्कुल नहीं था |उसी समय  भारत में सबसे भयंकर दूसरी लहर आई थी | इससे वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण संक्रमण बढ़ताहै | ये बात प्रमाणित नहीं हुई | इसका मतलब कोरोना की कोई भी लहर वायुप्रदूषण बढ़ने से नहीं प्रत्युत अपने पूर्व निर्धारित समय पर ही आती रही है | 
     इसी प्रकार से  तापमान कम होने पर महमारीजनित संक्रमण बढ़ेगा !ऐसा कहा गया था,  किंतु पहली दूसरी और चौथी लहर तब आई जब वायुप्रदूषण  बढ़ा होता था | केवल तीसरी लहर ही जनवरी में आई थी जब तापमान कम था | ऐसी स्थिति में तापमान बढ़ने और कम होने से संक्रमण का कोई संबंध सिद्ध नहीं हुआ | 
    इसलिए यह मानने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं बचता है कि महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने का कारण इनके लिए पूर्व निर्धारित समय ही था |                   
 
                                निश्चित होता है महामारी की लहरों के आने जाने का समय ! 
          
    भूकंप आदि जिन घटनाओं के बिषय में हमें पहले से पता नहीं होता है | वे हमें अचानक घटित हुई सी लगती हैं |  ऐसे ही महामारी संबंधी संक्रमण जो कभी अचानक बढ़ते और कभी अचानक घटते दिखाई पड़ता है | उसमें अचानक कुछ भी नहीं होता था | संक्रमण अपने समय पर बढ़ता और समय पर ही घटता था | उसके बढ़ने घटने का समय पहले से पता न होने के कारण उसके अचानक घटने बढ़ने का भ्रम होता है | 
     महामारी संबंधी संक्रमण किस तारीख से बढ़ने लगेगा और किस तारीख़ तक बढ़ेगा !उसके बाद किस तारीख़ से घटना शुरू होगा और किस तारीख तक घटेगा ये यह बहुत पहले से निश्चित होता है | महामारी के रहस्य को समझने वाले वैदिक वैज्ञानिक इसका अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से पता लगा लेते हैं | उन्हें ऐसी घटनाएँ अचानकघटित हुई सी नहीं लगती हैं |उन्हें ये पूर्व निर्धारित प्रकृति क्रम लगता है | 
     महामारी संबंधी संक्रमण के बढ़ने और घटने के पूर्व निर्धारित समय को जो नहीं समझ पाते हैं | वे उसके घटने बढ़ने के लिए मनुष्यकृत प्रयत्नों को जिम्मेदार मानने लगते हैं| 
    इसीलिए महामारी संबंधी संक्रमण जब बढ़ने का समय आता था तब संक्रमण स्वयं ही बढ़ने लगता था | यद्यपि उसके बढ़ने का कारण उसका पूर्वनिर्धारित  समय था ,किंतु अज्ञानवश संक्रमण बढ़ने के लिए कोविड  नियमों का पालन न करने को जिम्मेदार मानलिया जाता है |
    इसी प्रकार से महामारी संबंधी संक्रमण जब घटने का समय आता था तब संक्रमण स्वयं ही घटने लगता था | उसके घटने का कारण यद्यपि  उसका पूर्वनिर्धारित  समय होता था ,किंतु अज्ञानवश संक्रमण बढ़ने के लिए कोविड नियमों का पालन करने,लॉकडाउन लगाने तथा और भी औषधियों टीकों आदि को जिम्मेदार मानलिया जाता है |जो महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए किए या कराए जा रहे होते हैं | 
     कुलमिलाकर संक्रमण से मुक्ति पाने के लिए लोग चिकित्सा औषधि तरह तरह के इंजेक्शन काढ़े झाड़ फूँक जादू टोना आदि सैकड़ों प्रकार के उपायों का परीक्षण कर रहे होते हैं | उनके ऐसा करते समय यदि संक्रमण घटने लगता था तो वे अपने तीर तुक्कों को ही संक्रमण घटने का कारण मान लेते हैं | जो जिसप्रकार के उपायों का प्रयोग या परीक्षण  रहा होता है| संक्रमण घटने के लिए वो उन्हीं अपने उपायों को जिम्मेदार मान लेता है | यद्यपि समय आने पर संक्रमण अपने आपसे घटता ही है | संपूर्ण  कोरोनाकाल में ऐसा बार बार होता रहा है |  
    उदाहरण
    पूर्वनिर्धारित समय के प्रभाव से 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच संक्रमण कम होने का समय चल रहा था | ऐसे रोगमुक्ति दिलाने वाले समय के आ जाने से बिना चिकित्सा या बिना किसी उपाय के ही कोरोना से संक्रमित सभी रोगी दिनोंदिन स्वतः स्वस्थ होते जा रहे थे |इसलिए चिकित्सा या उपाय की आवश्यकता न होने पर भी कुछ लोग चिकित्सा के नाम पर संक्रमितों पर तरह तरह के प्रयोग करते देखे जा रहे थे |जिनका कोरोना महामारी या संक्रमितों से  दूर दूर तक कोई लेना देना ही नहीं था ,फिर भी  समय प्रभाव से संक्रमण से मुक्ति मिलने का श्रेय भी उस प्रकार के लोग अपने अपने उपायों को देते जा रहे थे | 
                      
         महामारी एवं उसकी लहरों के पैदा और समाप्त होने का पूर्वानुमान ! 
 
          20 अक्टूबर 2018 को पीएमओ को भेजी गई मेल का स्वास्थ्य बिषयक अंश  !
    " 10 अक्टूबर 2018 से लेकर 30 नवंबर 2018 तक लगभग 50 दिन का समय सारे विश्व के लिए ही अच्छा नहीं है !ये समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाएगा वैसे ही वैसे इस समय का दुष्प्रभाव उत्तरोत्तर क्रमशः और अधिक बढ़ता जाएगा ! इस समय वायु प्रदूषण सीमा से काफी अधिक बढ़ जाएगा !स्वाँस,सूखी खाँसी की समस्याएँ काफी अधिक बढ़ जाएँगी !घबड़ाहट बेचैनी कमजोरी चक्कर आने जैसे रोगों से भय फैलेगा !इस समय थोड़ा सा विवाद भी बहुत बड़े संघर्ष का स्वरूप धारण कर सकता है !यद्यपि ऐसी घटनाएँ इस समय में सारे विश्व में घटित होंगी !" 
 
 6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 के बीच संक्रमण घटने का था समय !

   यह समय ही संक्रमण घटने का था | जिसका पूर्वानुमान मैंने 19 अप्रैल 2020 को पीएमओ में  भेजी गई मेल में पहले ही भेज चुका था | इसके बाद 16 जून 2020 को पीएमओ में  भेजी गई मेल में मैंने लिख दिया था कि संक्रमितों के घटने का क्रम 7 अगस्त 2020 तक चलेगा और 8अगस्त 2020 से संक्रमितों की संख्या स्वतः बढ़ने लगेगी | जो 24 सितंबर 2020 तक बढ़ता चला जाएगा |  इसके बाद कम होना प्रारंभ होगा समय प्रभाव से इस समय संक्रमण स्वयं ही घटता जा रहा था ! जिसने जो 13 नवंबर 2020 तक घटता चला जाएगा | 
    इसके बाद  23 दिस॰ 2020 को पीएमओ में मेल भेज भेज कर मैंने सूचित किया था कि "यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं |" 
     इससे हमारा अनुमान स्पष्ट था कि यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाएगी तो समाज संक्रमण मुक्त हो जाएगा और यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो संक्रमण का विस्तार होगा | इस प्रकार से जैसे जैसे संक्रमण वैक्सीन लगता चला गया वैसे वैसे संक्रमण बढ़ता चला गया | 
    इसके बाद जब संक्रमण काफी बढ़ गया था चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | उससमय 19 अप्रैल 2020 को पीएमओ को मेल भेजकर मैंने सूचित किया था कि 2 मई 2021 से  कोरोना संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | 
   

 
 
 
 
प्लाज्मा थैरेपी :  2 जुलाई 2020 दिल्ली में शुरू हुआ देश का पहला प्लाज्मा बैंक, कोरोना मरीजों के इलाज में प्लाज्मा थेरेपी काफी कारगर साबित हो रही है | -आजतक 
रेम्डेसिविर : 2 मई  2020 - "कोरोना वायरस के इलाज के लिए लगातार चिकित्सकीय परीक्षण जारी हैं. इसी बीच एक दवा रेम्डेसिविर को लेकर साकारात्मक परिणाम सामने आ रहे हैं. Remdesivir के इस्तेमाल से COVID-19 के रोगियों में तेजी से रिकवरी देखने को मिल रही है. अमेरिकी नेतृत्व वाले परीक्षण में यह दवा बीमारी के खिलाफ प्रमाणित फायदे देने वाली पहली दवा बन गई है |- NDTV  
कोरोनिल :23 जून 2020आज पतंजलि ने दो दवाएं लॉन्च की हैं जिनके बारे में कंपनी ने दावा किया है कि ये कोविड-19 की बीमारी का आयुर्वेदिक इलाज हैं |- बीबीसी  
आर्सेनिक एल्बम-30:  23 -8-2020 होमियोपैथिक मेडिकल एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. रामजी सिंह के अध्ययन में यह साबित भी हो रहा है। पटना के 15 हजार लोगों को वे यह दवा दे चुके हैं। 21 दिन बाद जब दवा का प्रभाव जानने के लिए फोन किया गया तो परिणाम उत्साहजनक थे। जिन पांच सौ लोगों का अबतक फीडबैक लिया गया है वे सभी कोरोना से सुरक्षित हैं। - दैनिक जागरण 
 
वैक्सीन :  निर्माण की घोषणा का समय 
                                                5 मई 2020   से 11 अगस्त  2020 तक 
 
5 मई 2020 :इजरायल के रक्षामंत्री नैफ्टली बेन्‍नेट ने अपने एक बयान में कहा कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्‍टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना लिया है। उन्‍होंने कहा कि हमारी टीम ने कोरोना वायरस को खत्म करने के टीके के विकास को पूरा कर लिया है।
8 मई 2020 :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन बना ली है | अमेरिकी फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली दवा बना ली है। अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस का उपचार करने वाली एंटीवायरल मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।खास बात ये है कि इस दवा को अमेरिका के बाद जापान ने भी मंजूरी दे दी है। जापान में गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जाएगा।
 
  2 जुलाई 2020-भारत की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है ‘कोवैक्सिन’इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायलकी मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा | 

 
13 जुलाई  2020 - रूस ने दावा किया है कि 'उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस कीपहली वैक्सीन बना ली है !
 
 20 जुलाई 2020-वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं.कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में 20 जुलाई से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा.शुरू होने जा रहा है | 

 
11 अगस्त 2020-रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा की कि कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली गई है. रूस का कहना है कि वैक्सीन को देश में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए नियामक मंजूरी मिल गई है | 
         
वैक्सीन :  निर्माण की घोषणा का समय 
                                           22 नवंबर  2020  से 12 दिसंबर 2020 
  
22 नवंबर  2020 -चीन ने कोरोना की एक सुपर वैक्सीन बनाने का दावा किया है।
23 नवंबर 2020 - भारत के स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा, हम अपने स्वदेशी टीके को विकसित करने कीप्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं. हम अगले एक-दो महीनों में तीसरे चरण के परीक्षण को पूरा करने की प्रक्रिया में है|   
8  दिसंबर 2020 को ब्रिटेन में फ़ाइज़र ने टीकाकरण  शुरू किया है | 
अमेरिका ने फ़ाइज़र-बायोएनटेक कोविड वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है इसी दिसंबर में फ़ाइज़र वैक्सीन को ब्रिटेन, कनाडा बहरीन और सऊदी अरब ने पहले ही मंज़ूरी दे दी है.|
 30 दिसंबर 2020  ब्रिटेन ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा ब्रिटेन ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा  चुकी है. इस बीच ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को भी ब्रिटेन ने मंजूरी दे दी है. इसका मतलब है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है | 
25 जनवरी 2021-भारत बायोटेक को कोरोना की नेजल स्प्रे वैक्सीन BBV154 के ट्रायल की इजाजत मिली है. जबकि और भी कई देशों में ट्रायल हो रहे हैं और अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं | 
 
कोरोना  मुक्ति दिलाने की कोई औषधि न होने के बाद भी कैसे स्वस्थ हो रहे हैं लोग !
    कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं?कोरोना वायरस के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है। 
     1अप्रैल 2020 को प्रकाशित डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर के 204 देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में हैं। आठ लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और अब तक 42000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक डेढ़ लाख लोगों का इलाज करके उन्हें कोरोना मुक्त किया जा चुका है।विशेषकर भारत में 1अप्रैल 2020 तक कोरोना वायरस संक्रमण के 1397 मामले सामने आ चुके हैं।35लोगों की मौत हो चुकी है और 123 लोगों का इलाज किया जा चुका है या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। बिना किसी वैक्सीन या औषधि आदि के इतना बड़ा चमत्कार कैसे संभव हो पाया है |
   6 फरवरी2021 को प्रकाशित :भारत में कोरोना वायरस के मामलों में  गिरावट क्यों आ रही है,जागरूकता या मौसम है वजह ? एक थ्योरी में यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के मामले कम होने के पीछे की वजह मौसम है |  भारत की गरम और आर्द्र जलवायु कोरोना वायरस के फैलाव में रुकावट बन रही है | कोविड-19 के ग्रोथ के लिए कम तापमान को बेहतर माना जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जहां का वातावरण गरम और आर्द्र है, वहां पर वायरस के फैलाव में कमी आ रही है | 
   वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना है कि देश में कोरोना को लेकर लोगों के बीच काफी हद तक जागरूकता आ गई है. अब लोग हाथ धोने और मास्क पहनने जैसी सावधानियों का पालन करने लगे हैं. साथ ही कोरोना संक्रमण जब तेजी से फैल रहा था, उस समय लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का काफी ध्यान रखा. इसके अलावा एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने को लेकर भी कई शर्तें लगाई गई थीं | 
   कुछ एक्सपर्ट्स की यह भी राय है कि आम लोगों में कोरोना के प्रति काफी हद तक इम्युनिटी विकसित हो चुकी है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि भारतीय लोगों ने मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों का सामना किया हुआ है. ऐसे में अब ज्यादातर लोगों में कोरोना जैसे वायरस से लड़ने की क्षमता पहले ही विकसीत हो चुकी है. एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत अच्छी नहीं हैं, वहां पर कोरोना संक्रमण के मामले कम दर्ज किए गए हैं | 
   इसीप्रकार से और भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर वैज्ञानिकों के द्वारा गढ़ी गई आधारविहीन मनगढ़ंत कुछ किस्से कहानियाँ हैं जिनका कोई तर्कसंगत वैज्ञानिकप्रमाण नहीं है |
    कुछ महीनों पहले जहां एक दिन में 90 हजार से अधिक कोरोना संक्रमित मिलते थे, वहीं अब यह संख्या 10 हजार के नीचे आ गई है. दुनिया भर के एक्सपर्ट्स ने भारत में कोरोना संक्रमण के मामले में आई गिरावट को लेकर कई थ्योरी बताई हैं लेकिन अभी तक किसी ने भी इसका एकदम सटीक जवाब नहीं दिया है. फिलहाल स्थिति यह है कि भारत में कोरोना संक्रमण के मामले क्यों तेजी से गिर रहे हैं, इसका सही जवाब दे पाना संभव नहीं है.यह हैरान करने वाला रहा कि त्योहार के सीजन यानी कि अक्टूबर और नवंबर में भी भारत में कोरोना के मामले गिरते नजर आए. वहीं, राजधानी दिल्ली से लगी सीमाओं पर भारी संख्या में किसान दो महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं, बावजूद इसके कोरोना संक्रमण में तेजी नहीं पाई गई है. ऐसे में इसकी एक वजह बता पाना मुश्किल हो रहा है | 
   ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण घटने और बढ़ने के स्पष्ट कारण खोजे बिना कोरोना संक्रमितों पर जिस भी औषधि या वैक्सीन आदि का प्रयोग किया जाएगा उसके बाद उन्हें कम संक्रमित या स्वस्थ होते देखा जाएगा तो उस औषधि या वैक्सीन आदि के प्रभाव का परीक्षण करना कठिन होगा कि लोगों के कोरोना से कम संक्रमित होने या स्वस्थ होने का कारण किसी औषधि या वैक्सीन आदि के प्रभाव का परिणाम है या लोग प्राकृतिक रूप से ही स्वस्थ होते देखे जा रहे हैं  लोगों के स्वस्थ होने में किसी औषधि या वैक्सीन आदि की भूमिका नहीं है | 
   मुख्य बात यह है कि जिस तीसरी लहर की गुगली उछली गई है वह अभी तक तो केवल मन गढ़ंत और काल्पनिक ही है जब तक घटित  नहीं होती है क्योंकि तीसरी लहर  आएगी या नहीं आएगी इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक विधा विकसित ही नहीं की जा सकीय है ऐसी परिस्थिति में यह अफवाह फैलाने का उद्देश्य एवं आधार क्या है और वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कितना प्रमाणित है यह ध्यान दिया जाना चाहिए | 
     19 जून 2021 को प्रकाशित :अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने चेतावनी दी कि यदि कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया गया और भीड़-भाड़ नहीं रोकी गई तो अगले छह से आठ सप्ताह में वायरल संक्रमण की अगली लहर देश में दस्तक दे सकती है।
   डॉ.गुलेरिया की बात को ही लिया  जाए तो यदि तीसरी लहर आ जाए तब तो ये होगा कि आधुनिक विज्ञान में भविष्यसंबंधी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने की अद्भुत क्षमता है और यदि तीसरी लहर जैसा कुछ भी न घटित हो तब भी क्रेडिट आधुनिक विज्ञान को ही मिलेगा |उस परिस्थिति में कहा जाएगा कि कोविड नियमों का कड़ाई से पालन किया गया ,बाजारों में भीड़-भाड़ बढ़ने से रोक ली गई | वैक्सीनेशन का कार्य तेज कर दिया गया इन्ही सारे उपायों के द्वारा कोरोना महामारी को प्रारंभ होने से पहले ही समाप्त कर दिया गया |वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जनता के साथ  इस प्रकार की धोखाधड़ी  हमेंशा से होती चली आ रही है | क्षणिक यश लोभ की लालषा में सच्चाई को झुठलाकर बीच में ही बंद कर दिया जाता है और संतोष कर लिया जाता है कि इस बिषय में जितनी खोज कर ली जा चुकी है उतनी ही पर्याप्त है |ऐसी लापरवाही का दंड कोरोना महामारी के रूप में मानव समाज को भोगना पड़ा है | भविष्य में ऐसा न हो इस बिषय में अभी से ध्यान देने की आवश्यकता है | 
   ऐसे प्रकरणों में बहुत बड़े संशय की गुंजाइस यह बनी रहती है कि यदि तीसरी लहर जैसी कोई चीज घटित नहीं हुई या उसका वेग कम रहा तो इस प्राकृतिक घटना का श्रेय औषधि या वैक्सीन आदि बनाने वाले यह कहते हुए लूट लेंगे कि तीसरी लहर को  हमारे प्रयासों से रोका जा सका है और इसी झूठ को च मानकर यह प्रकरण हमेंशा हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा जो हमेंशा की तरह ही भावी पीढ़ियों के साथ बहुत बड़ा धोखा होगा | ऐसी परिस्थिति में अनुसंधान तो पूरे एवं तर्कसंगत होने चाहिए ताकि कोरोना महामारी की तरह भावी पीढ़ियों को इतना भटकना न पड़े |
    इसलिए सबसे पहले आवश्यकता यह पता लगाने की है कि कोरोना महामारी पैदा होने का कारण क्या है ?दूसरा कोरोना संक्रमितों की संख्या के अचानक बढ़ने और अचानक कम होने के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिक कारण क्या हैं ?वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाए गए कोरोना नियमों का अच्छी प्रकार से पालन करने का कोरोना संक्रमितों की संख्या पर क्या असर पड़ता है संक्रमितों पर किसी औषधि  वैक्सीन आदि का क्या असर  पड़ता है | 
     कोरोना संक्रमण की किसी औषधि या  वैक्सीन आदि के निर्माण  प्रक्रिया में सबसे बड़ा भ्रम इस बात का  होता है कि जब प्राकृतिक रूप से कोरोना संक्रमण बढ़ रहा होता है उस समय जो वैक्सीन आदि के ट्रायल हो रहे होते हैं उनका कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता है  इसलिए उन्हें निष्फल मान लिया जाता है और जब प्राकृतिक रूप से कोरोना संक्रमण कम हो रहा होता है संक्रमितों की संख्या घटने का कारण प्राकृतिक होता है किंतु उस समय वैक्सीन आदि के जो ट्रायल आदि चल होते हैं भ्रम वश उन्हें इसका श्रेय मिल जाता है और इसी आधी अधूरी अविश्वसनीय प्रक्रिया से वैक्सीन के ट्रायल को सफल मान लिया जाता है |
    वैक्सीन के प्रभाव के बिषय में भी यही ढुलमुल स्थिति है कहा जा रहा है कि कोई भी वैक्सीन कोरोना वायरस से सौ फीसदी इम्यूनिटी का दावा नहीं करती इसलिए कुछ लोगों को टीका लगवाने के बाद भी वायरस अपनी चपेट में ले सकता है। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैक्सीन ले चुके लोग इस बीमारी से गंभीर रूप से प्रभावित नहीं होंगे !
    वैक्सीन लेने के बाद  भी कुछ लोग गंभीर रूप से प्रभावित होते एवं मृत्यु को प्राप्त होते भी देखे जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में भी जो लोग संक्रमित नहीं हुए या जो लोग गंभीर रूप से संक्रमित नहीं हुए या जो लोग गंभीर रूप से संक्रमित होने के बाद भी स्वस्थ होने में सफल हुए ये सब चिकित्सा वैज्ञानिकों की दृष्टि से वैक्सीन की सफलता मान ली जाती है जबकि बिल्कुल ऐसी ही परिस्थिति उन लोगों में भी देखी जाती है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई होती है | ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन के वास्तविक प्रभाव का परीक्षण कैसे किया जाए !प्रभाव परीक्षण किए बिना जब कभी दुबारा ऐसी ही परिस्थिति पैदा होगी उस समय उसी विश्वास से इस वैक्सीन का प्रयोग संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए किया जाएगा तब अंकुश इस लिए नहीं लगेगा क्योंकि यह उसकी दवा थी ही नहीं जिसकी मान ली गई थी | ऐसी परिस्थिति में यही कहना पड़ता है कि यह संक्रमण पहले वाला नहीं है इसने स्वरूप बदल लिया है |

 
 

 
 
 
 
 
 
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 किसी को छूने या न छूने का प्रभाव संक्रमण बढ़ने और घटने पर पड़ता है या नहीं !इस बिषय में निश्चित तौर पर कुछ भी कहा जाना संभव नहीं हो पाया है | तापमान बढ़ने या घटने का प्रभाव संक्रमण बढ़ने या घटने पर पड़ता भी है या नहीं | इस बिषय में प्रमाणित रूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता है |वायुप्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है और घटने से घटता है | इस बिषय में भी प्रमाणितरूप से  कुछ कहा जाना संभव नहीं है | 
      ऐसी परिस्थिति इसीलिए पैदा हुई है,क्योंकि किसी प्राकृतिक रोग या महारोग के पैदा या समाप्त होने का कारण पृथ्वी पर प्रत्यक्ष रूप में विद्यमान नहीं है | इसलिए इसे किसी ऐसी वैज्ञानिकप्रक्रिया से समझा  जाना संभव नहीं है |जो प्रत्यक्ष या किसी यंत्र की मदद से देखी जा सकती हो |परोक्षविज्ञान का सहयोग लिए बिना कोरोना महामारी को समझना तो संभव हो ही नहीं पाया है |परोक्षविज्ञान की उपेक्षा करके  महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं को आज के हजारों वर्ष बाद भी समझना संभव नहीं हो पाएगा | प्राकृतिकघटनाओं  का अनुभव केवल परोक्षविज्ञान के द्वारा ही किया जा सकता है | 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
     उदाहरण स्वरूप में मैं यदि कह दूँ कि सितंबर 2025 से महामारी की आगामी  लहर आने वाली है और महामारी की आगामी लहर सितंबर 2025 में ही आ जाए तो यह मान लिया जाना चाहिए कि सितंबर 2025 में महामारी की आगामी लहर के आने का समय अनादि काल से निश्चित था | यह आकस्मिक घटना नहीं है जो घटित होने जा रही है | 
    ऐसा मानकर मैंने समय विज्ञान की दृष्टि से अनुसंधान किया | जिससे मुझे यह पता लग गया कि सितंबर 2025 में महामारी   की अगली लहर आने वाली है | यह आवश्यक जानकारी  पीएमओ की मेल पर जनहित के उद्देश्य से यदि मैंने पहले ही डाल दी | उसी समय में महामारी की आगामी लहर यदि आ जाए तो इस पूर्वानुमान को सही माना जाना चाहिए | समयविज्ञान के आधार पर यह लगाया गया है | इसलिए पूर्वानुमान लगाने में समय विज्ञान पर विश्वास किया जाना चाहिए |  
    ऐसे ही यदि महामारी की लहर समाप्त होने का पूर्वानुमान लगाकर पीएमओ की मेल पर पहले से डाल  दिया  जाए कि जनवरी 2026 तक महामारी की आगामी लहर रहेगी | वह लहर यदि जनवरी 2026 तक रहती  भी है तो समयविज्ञान और उसके आधार पर मेरे द्वारा लगाया हुआ पूर्वानुमान पूरी तरह से प्रमाणित हो जाता है |  
    कुल मिलाकर ये सब कुछ प्राकृतिक रूप से घटित होता रहा है|ऐसा मैं इसलिए विश्वासपूर्वक कह  सकता हूँ ,क्योंकि प्रत्येक लहर के बिषय में समय के आधार  पर पूर्वानुमान लगाकर मैं आगे से आगे सरकार  को भेजता रहा हूँ | जो सच निकलते रहे हैं | इससे समय संबंधी हमारी अनुसंधान प्रक्रिया की सच्चाई प्रमाणित होती है |  
   
 उदाहरण :   
   
 
                                         
  अपने समय पर घटित होती हैं प्राकृतिक घटनाएँ   
      
     महामारी का समय के साथ संबंध कोरोना काल में भी देखा जा रहा था | एक बात अवश्य देखी गई कि कोई लहर जब अपने आपसे ही समाप्त होने लगती रही है| उस समय संक्रमितों को बिना किसी प्रयत्न के स्वाभाविक रूप से संक्रमण मुक्त होते देखा जाता था |महामारी की सभी लहरें किसी समय विशेष के आने पर स्वतः पैदा और समाप्त होने लगती थीं | 
     लहरों के आने और जाने का कारण  समय को  मानना  इसलिए उपयुक्त होगा ,क्योंकि कोई लहर जब समाप्त होने लगती थी | उस समय महामारी से मुक्ति दिलाने वाले जितने भी प्रकार के प्रयत्न किए जा रहे होते हैं | वे सभी सफल होते देखे जाते थे | उन्हें करने वाले  व्यक्तियों  को लगता था  कि यह लहर उन्हीं के प्रयत्न से शांत हो रही है          उनका  यह भ्रम तब टूटता था जब उसके बाद कोई लहर आने लगती थी | जिन प्रयोगों  पर  उन्हें उसके पहली वाली लहर समाप्त होते समय भरोसा हो चुका होता था |  उस समय उन्हीं लोगों के द्वारा पहले वाली उन्हीं औषधियों चिकित्सा पद्धतियों  इंजेक्शनों आदि का प्रयोग किया जाता था ,किंतु उनसे कोई लाभ नहीं होता था | ऐसा बार बार करने पर भी संक्रमण बढ़ता चला जाता था  | 
     ऐसा होने पर कुछ लोग तो औषधियों चिकित्सा पद्धतियों  इंजेक्शनों आदि के नियंत्रित न होने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन मान लिया करते थे ,जबकि कुछ लोगों को विनम्रता पूर्वक यह स्वीकार करने  हिचक नहीं होती थी कि  जिन औषधियों चिकित्सा पद्धतियों  इंजेक्शनों आदि के प्रभाव से वर्तमान समय में बढ़ते संक्रमण पर अंकुश लगाया जाना संभव नहीं हो पा रहा है | उन उपायों में उस प्रकार का प्रभाव  पहले भी नहीं रहा होगा | इसलिए उससमय भी जब समय के प्रभाव से ही संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिलने लगी  होगी | संयोगवश  उसी समय उस प्रकार की औषधियों चिकित्सा पद्धतियों  इंजेक्शनों आदि मनुष्यकृत प्रयत्नों को संक्रमितों पर प्रयोग करना प्रारंभ किया गया होगा | वो समय ही ऐसा आ गया था जिसमें  संक्रमण कम होना ही था | इसलिए कम होता चला जा रहा था |  समय के प्रभाव से संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिलती जा रही थी | चूँकि समय दिखाई नहीं पड़ता है | इसलिए संक्रमितों के संक्रमण से मुक्ति मिलने को भ्रमवश उन औषधियों चिकित्सा पद्धतियों  इंजेक्शनों आदि मनुष्यकृत प्रयत्नों  का प्रभाव मान लिया गया | इसीलिए उसके बाद वाली लहर के आनेपर जब उनका प्रयोग किया गया तब उनसे संक्रमितों को कोई लाभ नहीं हुआ |  
                                    
                                        महामारी का कारण मनुष्य कृत होता है क्या ? 
 
    महामारीसंबंधी संक्रमण से संक्रमितों को मुक्ति मिलने का कारण मनुष्यकृत होता है या प्राकृतिक !इस आवश्यक प्रश्न का उत्तर इसप्रकार से भी खोजा जा सकता है कि यदि औषधियों  इंजेक्शनों या अन्य विभिन्न प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों आदि मनुष्यकृत प्रयत्नों  से संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिलती होती तो केवल उन्हें मिलती जो उस प्रकार के प्रयत्नों का लाभ ले रहे होते ! उन प्रयत्नों में सभी एक जैसे  प्रभावी होते ऐसा भी नहीं था | इसलिए कोरोना काल में संक्रमण से मुक्ति पाने के लिए जो जैसे प्रयत्न कर रहा था | उसे संक्रमण से वैसी मुक्ति मिलनी चाहिए थी ,किंतु ऐसा नहीं हो रहा था | 
     दूसरी बात उन उपायों को जब भी अपनाया जाने लगता तभी संक्रमण से मुक्ति मिलने लगनी चाहिए थी | यदि ऐसा होता तब तो भारत में जब दूसरी लहर आई थी तो पहली लहर में रोग मुक्ति के लिए प्रभावी माने गए उपायों को ही दोहराया जाना चाहिए था | यदि वे वास्तव में प्रभावी होते तो उनके प्रभाव से दूसरी लहर में संक्रमण उतना नहीं बढ़ना चाहिए था |      
     विशेष बात ये है कि महामारी से मुक्ति पाने के लिए लोग यदि भिन्न भिन्न प्रकार के उपाय कर रहे होते थे, तो उपायों के अनुसार ही संक्रमण से मुक्ति मिलनी चाहिए थी | भिन्न भिन्न उपायों से एक जैसे परिणाम कैसे प्राप्त हो सकते थे | उन उपायों में आपस में एक दूसरे से बहुत अंतर  होता था | कुछ लोग किसी बड़े अस्पताल में महँगी चिकित्सा करवा रहे होते थे,तो कुछ दूसरे लोग केवल काढ़ा पी रहे होते थे | कुछ लोग  किसी से झाड़ फूँक करवा रहे होते थे | कुछ लोग कोई उपाय ही नहीं कर रहे होते थे | इन चारों प्रकार के उपायों में आपसी अंतर बहुत अधिक है | 
     संक्रमण से मुक्ति पाने वाले रोगियों में यदि चिकित्सा के अनुसार अंतर दिखता तो ये विश्वास होता कि लोगों को संक्रमण से मुक्ति चिकित्सा के  प्रभाव से मिल रही है | इसमें भी जिसप्रकार के उपायों को  अपनाने वाले लोग अधिक स्वस्थ होते दिखाई देते | उस चिकित्सा विधि को अधिक प्रभावी मान  लिया जाता !किंतु ऐसा होते नहीं देखा गया | 
      ऐसा कैसे संभव हो सकता है कि उन भिन्न भिन्न उपायों का परिणाम एक जैसा निकल रहा हो |जब महामारी की कोई लहर शांत होने लगती थी , उस समय सभी लोग एक ही साथ और एक ही प्रकार से स्वस्थ हो रहे होते थे | संक्रमितों के स्वस्थ होने का कारण यदि चिकित्सा होती तो जिसकी जैसी चिकित्सा होती वैसा उसको स्वास्थ्य लाभ मिलना चाहिए था ,किंतु ऐसा नहीं हो रहा था |    
 
                            समय ही है महामारी आने और जाने का कारण     
    
     महामारी या उसकी लहरों के आने और जाने का कारण समय ही होता है | ये इसलिए भी कहा जा सकता है ! क्योंकि महामारी की किसी लहर के समाप्त होने का समय जब आता है | उससमय सभी संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिलने लगती है | उपायों में एक रूपता नहीं थी फिर भी समय प्रभाव से ही परिणामों में एक रूपता थी | इससे ये विश्वास  होना स्वाभाविक ही है कि संक्रमितों पर उपायों का प्रभाव पड़ रहा था | परिणामों से ये प्रमाणित नहीं हो पा रहा है |    
      महामारीजनित संक्रमण के बढ़ने घटने का अपना अपना समय होता है |संक्रमण के बढ़ने का समय जब आता था | उस समय कितने भी बड़े बड़े उपाय किए जा रहे होते थे ,फिर भी संक्रमण बढ़ता ही था | इसी प्रकार से  संक्रमण कम होने का जब समय आता था तब कोई किसी प्रकार के नियमों का पालन करे या न करे !उपाय करे या न करे फिर भी संक्रमण घटता ही था | सभी जगह सभी का एक साथ एक समान रूप से कम होने लगता था |इसलिए उनके स्वस्थ होने का कारण चिकित्सा या अन्य प्रकार के उपायों को नहीं माना जा सकता है | 
   कुलमिलाकर विश्व के अधिकाँश देशों में संक्रमितों के एक साथ स्वस्थ होने लगने का कारण चिकित्सा अथवा मनुष्यकृत कोई अन्य उपाय नहीं हो सकता है | ऐसे ही लोगों के संक्रमित होने का  कारण मनुष्यकृत नहीं हो  सकता है | 
 विश्व के अलग अलग  देशों में   संक्रमण से मुक्ति दिलाने के लिए जो उपाय किए जाते थे |उन उपायों में  परस्पर  बहुत भिन्नता होती थी | इसके बाद भी सभी देशों के सभी लोगों को एक समय में ही संक्रमण से मुक्ति मिलते   जा  रही होती थी |                               
    भारत में 2020 के मार्च में संक्रमण बढ़ता रहा और अप्रैल महीने में उस पर अंकुश लगने लग गया था | मई महीने के प्रथम सप्ताह से ही संक्रमण धीमा होना  शुरू हो गया था | ये जून जुलाई तक इतना कम होता चला जा रहा था कि वैक्सीन ट्रॉयल के लिए रोगियों का मिलना बहुत कम हो गया था | 
      इस समय किसी को न तो महामारी के बिषय में कुछ पता था और न ही औषधि के बिषय में और न ही चिकित्सा के लिए कोई परिणामप्रद प्रभावी प्रयत्न ही किए जा पा रहे थे | इसके बाद भी कोरोनासंक्रमण का वेग दिनों दिन घटता जा रहा था | इसका कारण  क्या है ये पता लगाना संभव नहीं हो पा रहा था |  बड़े विशेषज्ञ भी  इस बात को लेकर आश्चर्य में थे कि महामारीजनित संक्रमण अपने आप से कम  होते जाने का कारण आखिर क्या है |          इसमें  बिचारणीय यह भी है कि 2020 में अप्रैल की 24 तारीख के बाद से लेकर और जून जुलाई के  महीनों तक बिना किसी औषधि या चिकित्सा आदि मनुष्यकृत प्रयास के ही  संक्रमितों को संक्रमण  से मुक्ति मिलने लगी थी |लोग स्वतः स्वस्थ होते जा  रहे थे | जुलाई 2020 तक ऐसा चलता रहा था | इस समय बिना किसी प्रयत्न के भी संक्रमण  दिनों दिन कम होता चला जा रहा था |                                        
 
                                 समय के प्रभाव को किया जा सकता है अनुभव  
 
      महामारी समय के अनुसार आती जाती और घटती बढ़ती है | समय को प्रत्यक्ष रूप से देखा जाना संभव नहीं है | महामारी का वास्तविक स्वरूप भी समय से संबंधित होने के कारण निराकार होता है | निराकार होने के कारण चूँकि समय को देखा जाना संभव नहीं है | इसलिए  निराकार जगत में घटित होने वाली उस प्रक्रिया को भी प्रत्यक्ष नेत्रों या यंत्रों से देखा जाना संभव नहीं है | ऐसी स्थिति में समय भले न दिखाई पड़ता हो किंतु स्वस्थ होते लोगों के रूप में समय का प्रभाव अवश्य दिखाई नहीं पड़ता था | इस रहस्य को न समझने वाले लोग समयकृत कार्यों को भी मनुष्यकृत मान लिया करते थे | महामारी का पैदा होना एवं उसके वेग बढ़ने घटने की प्रक्रिया तथा महामारी के समाप्त होने की प्रक्रिया सबसे पहले समय के साथ  निराकार वातावरण में ही घटित  होती है  | 
    जिस गणित के आधार पर समय के संचार संबंधी परिवर्तनों का अनुभव किया जा सकता है | उसी गणित के आधार पर महामारी के पैदा और समाप्त होने का एवं महामारी संबंधी लहरों के आने जाने का न केवल अनुभव किया जा सकता है प्रत्युत पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है | 
      महामारी के पैदा होने का जब समय आता है तब महामारी को पैदा होना पड़ता है | महामारी का वेग घटने या बढ़ने का समय जब जब आता रहा है तब तब महामारी के  वेग को घटना या बढ़ना पड़ता रहा है  | महामारी में होने वाले प्रत्येक परिवर्तन का कारण समय ही होता है |महामारी के समाप्त होने का जब समय आता है | उस समय महामारी को स्वतः समाप्त होना पड़ता है  | ऐसे ही महामारी काल में भी संक्रमण बढ़ने का जब समय आती है ,तब संक्रमितों की संख्या बढ़ने लगती है  और संक्रमण घटने का समय जब आता है ,तब संक्रमण स्वतः कम होता चला जाता है | 
      वर्षाऋतु अर्थात वर्षा होने  का समय आने पर वर्षा होने लगती है | उस समय वर्षा हो इसके लिए किसी को प्रयत्न नहीं करना पड़ता है |  ऐसे ही वर्षा होने  का जब समय आवे उस समय आकाश में जब बादल घिरे हों | उसी समय विमानों से ले जाकर आकाश में पानी का छिड़काव  करना शुरू कर दिया जाए और वर्षा भी होने लगे तो ये भ्रम होना स्वाभाविक ही है कि संभवतः  वर्षा  के लिए  किए गए प्रयत्नों के कारण ही वर्षा  हो रही है | इस भ्रम का निराकारण  तब होगा  जब उसके पहले या बाद में भी पानी का छिड़काव आकाश से किया जा चुका हो | उस समय केवल छिड़काव  के छींटे ही पड़े हों किंतु उनसे वर्षा न हुई हो |
      इसीप्रकार से महामारीजनित  संक्रमण कम होने का जब समय आता है,तब  संपूर्ण वातावरण संक्रमण मुक्त होने लगता है | संक्रमित सभी  लोग समय के  प्रभाव से अपने आप से ही स्वतः स्वस्थ होते जा रहे होते हैं |ऐसे समय संक्रमण से मुक्ति दिलाने का कारण तो समय होता है होता है ,किंतु महामारी से मुक्ति दिलाने के उद्देश्य से जो जो टीके औषधियाँ काढ़े झाड़ फूँक जादू टोने आदि प्रयत्न किए जा  रहे होते हैं | इसका श्रेय उन उपायों को  दे दिया जाता है | मान लिया जाता है कि उन्हीं उपायों के प्रभाव से लोग स्वस्थ हो रहे हैं | ऐसा भ्रम होने लगता है |
    इस भ्रम के कारण ही कुछ ऐसी औषधियों के परीक्षणों को सफल मान लिया जाता है | जो संक्रमितों के संक्रमण मुक्त होते समय संक्रमितों पर जो जो  टीके औषधियाँ काढ़े झाड़ फूँक जादू टोने आदि अपनाए गए होते हैं | ऐसी स्थिति में प्राकृतिक रोगियों के बिषय में निर्णय करना कठिन हो जाता है कि लोग चिकित्सा से स्वस्थ हो रहे हैं अथवा समय के प्रभाव से स्वस्थ हो रहे हैं |
     कोरोना महामारी को ही देखें तो  सन 2020 के मई और जून के  महीनों में  संक्रमण कम होने का समय आया था | इसलिए न केवल संक्रमितों को संक्रमण से मुक्ति मिलने लगी थी ,प्रत्युत इस समय जिन जिन औषधियों टीकों आदि का परीक्षण किया जा रहा था | वे सभी सफल होते देखे गए थे | इसी समय प्लाज्मा थैरेपी का परीक्षण किया गया उसे भी सफल मान लिया गया | इसी समय  वैक्सीन के ट्रायलों के सफल होने की  बात कही जाने लगी थी |  
       एक नहीं अनेकों देशों के अनुसंधान कर्ताओं ने  इसी समय रेमडेसिविर(टीके) से कोरोना संक्रमितों को स्वस्थ करने में मदद मिलने की बात कही थी | 
     2020 की जुलाई तक किसी औषधि टीका आदि का निर्माण नहीं हो सका था फिर भी समय के प्रभाव से लोगों के स्वास्थ्य में तेजी से सुधार होता चला जा रहा था | इसे देखकर सभी अपने अपने पक्ष में सफलता के दावे करने लगे | सभी पद्धतियाँ  औषधियाँ प्रयत्न एवं घरेलू नुस्खे जादू टोने झाड़ फूँक आदि करने वाले  लोग भी कुछ कुछ रोगियों पर अपने अपने प्रयोग करने  एवं  उनके रोग मुक्त होने  के बाद अपने अपने प्रयोग सफल मानने लगे  थे |  
    ऐसी बातों पर भरोसा करके समाज को  भी लगने लगा था कि अब हमें सुरक्षित बचा ही लिया  जाएगा | महामारी से हमें अब कोई भय नहीं है | इससमय केवल संक्रमण ही नहीं घट रहा था, प्रत्युत जिनके द्वारा जहाँ जो औषधि बनाई जा रही थी उनके ट्रायल भी सफल होते देखे जा रहे थे |      

                               महामारी को पराजित करने की तैयारियाँ और दूसरी लहर 
       समय के प्रभाव से जब संक्रमण दिनोंदिन घटते घटते संक्रमण प्रायः  समाप्तप्राय हो चुका  था | इससे लोगों को भरोसा होने लगा था कि अब महामारी समाप्त हो गई है | जो महामारी को समाप्त करने के लिए कुछ न कुछ प्रयत्न करते आ रहे थे | उन्हें ऐसा भ्रम  हुआ कि उन्हीं के प्रयत्नों से महामारी को नियंत्रित किया जा सका है | महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने का भ्रम पाल बैठे कुछ लोग अपनी सफलता से इतना अधिक उत्साहित थे कि  महामारी से  सुरक्षा के लिए बिना कोई तैयारी किए ही महामारी को ललकारने लगे | कुछ लोग महामारी को पराजित  कर देने या महामारी पर विजय प्राप्त कर लेने या महामारी  को खदेड़ देने जैसे दावे करने लगे ,जबकि ऐसा करने के लिए तैयारी कोई नहीं थी |  संक्रमण का कम कम होना समय के प्रभाव से संभव हो पा रहा था | इसी के साथ यह भी सुनिश्चित ही था कि समय प्रभाव से जैसे संक्रमण अभी कम हुआ है | इसी प्रकार से संक्रमण के बढ़ने का जब समय आएगा तो  संक्रमण बढ़ने  भी लगेगा | 
       ऐसा होते देखा भी गया !संक्रमण घटने के बाद समय प्रभाव से  जब दूसरी लहर आई तो संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन अचानक तेजी से बढ़ने लगी | उस समय वही प्लाज्मा थैरेपी,रेमडेसिविर(टीके) एवं   वैक्सीन आदि के बलपर महामारी से बचाव के लिए प्रयत्न किए जाने लगे  फिर भी संक्रमण दिनोंदिन बढ़ता चला जा रहा था |उस समय  चिकित्सा की सभी पद्धतियों औषधियों घरेलू नुस्खों  जादू टोनों एवं झाड़ फूँक आदि के बल पर संक्रमितों को रोगमुक्त करने में कोई मदद नहीं मिल पा रही थी | महामारी पर विजय प्राप्त करने का दावा करने वाले पराजित लोग भी स्वतः शांत हो चुके थे |   
     इसलिए मई 2021 में प्लाज्माथैरेपी को कोरोना संक्रमितों पर निष्प्रभावी  बता दिया  गया |इसीप्रकार से अप्रैल मई 2021 में रेमडेसिविर को भी कोरोना संक्रमितों पर निष्प्रभावी  बता दिया  था |  
    ऐसे समय कोरोना से मुक्ति  दिलाने संबंधी  सभी पद्धतियों व्यक्तियों आदि के सभी दावे स्वतः खारिज होते चले  गए | इमानदारीपूर्वक सबको ये स्वीकार करना पड़ा कि पहली लहर में संक्रमितों की संख्या मनुष्यकृत प्रयत्नों से नहीं घटी थी | इसके बाद भी कुछ लोग अपने अनुसंधानों की गलती स्वीकार करके सुधार करने के बजाए महामारी को ही कटघरे में खड़ा करने लगे | उनका कहना था कि अनुसंधान सही थे | औषधियाँ प्रभावी थीं | इंजेक्शन  प्लाज्मा थैरेपी आदि सब  कुछ ठीक था | महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो जाने से उन प्रयासों का प्रभाव नहीं पड़ा इसलिए चिकित्सा से लाभ नहीं हो रहा है |
     स्वरूपपरिवर्तन कहने से अभिप्राय ऐसे अस्वाभाविक बदलाव होते हैं | जो हमेंशा होते नहीं देखे जाते हों ,किंतु जिस प्रकार के  परिवर्तन होते हमेंशा देखे जाते रहे हों |वे स्वाभाविक परिवर्तन होते हैं | जिस प्रकार से आम का फल जब छोटा होता है, तब उसका रंग हरा, उसकी गुठली नरम और उसका स्वाद खट्टा होता है |वही आम जब पकता है तब उसका रंग पीला,गुठली कठोर एवं स्वाद मधुर होता है | यह स्वाभाविक परिवर्तन है ऐसे परिवर्तनों के दुष्प्रभाव नहीं होते हैं | इसलिए उन्हें समझकर ही चलना होता है |
    जिसप्रकार से आम में समय के साथ होने वाला यह स्वाभाविक परिवर्तन होता है,न कि स्वरूप परिवर्तन | उसी प्रकार से समय के अनुसार महामारी का  स्वाभाविक रूपांतरण उसका आकस्मिक स्वरूपपरिवर्तन नहीं होता है |                संक्रमितों के संक्रमण मुक्ति का कारण चिकित्सा या समय          
     प्राकृतिक कारणों से रोगी हुए लोग स्वस्थ भी प्राकृतिक प्रक्रिया से ही होते हैं| ऐसे  रोगियों के वेदनाहरण में चिकित्सा सहायक होती है| रोग अपने  समय से ही जाता है | जिसका स्वस्थ होने लायक जब समय आता है ,वो तभी स्वस्थ होता है | उस समय उसे चिकित्सा मिले या न मिले फिर भी परिस्थिति के अनुसार स्वस्थ  हो जाता है |ऐसा केवल प्राकृतिक रोगों में ही होता है | 
      समय जब स्वास्थ्य के अनुकूल आता है उस समय साधन संपन्न रोगी बड़े बड़े अस्पतालों में विद्वान् चिकित्सकों की महॅंगी महॅंगी सेवाएँ लेकर स्वस्थ हो रहे होते हैं | अत्याधुनिक चिकित्सा से दूर गाँवों में जहाँ उतनी अच्छी चिकित्सा व्यवस्था नहीं है ,वहाँ भी लोग उसी अनुपात में स्वस्थ हो रहे होते हैं | जंगलों में आदिवासियों  के यहाँ चिकित्सा की कोई व्यवस्था ही नहीं होती है,फिर वहाँ भी  उसी अनुपात में लोगों को  स्वस्थ होते  देखा जाता है | 
      इसीप्रकार से जब स्वास्थ्य के प्रतिकूल समय आता है | उससमय  स्वास्थ्य बिगड़ने लगते हैं | ऐसे समय में अविकसित क्षेत्रों के साधन विहीन गरीब  लोग यदि रोगी होते हैं तो संसाधनों से युक्त बड़े बड़े संपन्न लोग भी उसी अनुपात में रोगी हो रहे होते हैं | कोरोनाकाल में भी बहुत लोगों को  वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े प्राण छोड़ते देखा गया है | दोनों प्रकार के लोग एक समान अवस्था के शिकार हो रहे थे | 
      समय की भूमिका सभीप्रकार के रोगों और रोगियों में होती है | जिन रोगों में औषधियों से लाभ होता भी है |उनमें भी स्वस्थ होने  का समय  आने  ही स्वास्थ्यलाभ होता है | केवल मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी भी रोगी होकर स्वस्थ होते देखे जाते हैं | महानगरों में साधन संपन्न परिवारों के लोग किसी दुर्घटना में चोट चभेट लग जाने पर बड़े बड़े अस्पतालों में विद्वान् चिकित्सकों की सेवाएँ लेकर उन घावों की चिकित्सा करवाते हैं तब उनके घाव भरते हैं ,किंतु तुरंत नहीं भरते हैं | चिकित्सा करवाने के बाद भी समय के साथ धीरे धीरे ही भरते  हैं | दूसरी ओर जंगलों में रहने वाले लोगों को भी चोट लग जाती है ,घाव हो जाते हैं | पशुओं को आपस में लड़कर चिकित्सा के बिना भी  समय के साथ धीरे धीरे उनके भी घाव भर जाते हैं और वे स्वस्थ हो जाते हैं | 
    कुल मिलाकर चिकित्सा से भी केवल उसी रोगी को उसी समय स्वस्थ किया जा सकता है|जब जिस रोग से स्वस्थ होने का समय आ जाता है | यदि समय ही स्वस्थ होने का आ जाता है तो चिकित्सा के बिना भी लोग स्वस्थ होते देखे जाते हैं | यदि ऐसा न होता तो साधन संपन्न लोग अपने सभी रोगों की चिकित्सा करवाकर स्वस्थ होते रहते | समय की उपेक्षा करके केवल चिकित्सा के बलपर यदि स्वस्थ होना संभव होता तो रोगी को देखते ही यह निर्णय हो जाता कि चिकित्सा के द्वारा किसे कितना लाभ पहुँचाया जा सकता है | जिसके बिषय में यह निश्चय होता कि चिकित्सा करके इसे स्वस्थ कर ही लिया जाएगा | उन्हें अस्पतालों में प्रवेश दिया जाता और जिन्हें अस्पतालों एक बार प्रवेश दिया जाता वे स्वस्थ होकर ही निकलते |उससमय मृत्यु  जैसी परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ता | कई रोगियों की महँगी महँगी चिकित्सा होने के बाद भी मृत्यु होने जैसी घटनाएँ घटित हो जाती हैं | वैसा नहीं होता | अस्पतालों में शवगृह नहीं बनवाने पड़ते | 
     कुल मिलाकर किसी रोगी की किसी भी प्रकार चिकित्सा होने के बाद उसके स्वस्थ होने न होने एवं मृत्यु होने न होने का निर्णय समय के अनुसार ही होता है |       
    इसलिए किसी प्राकृतिक रोग से ग्रसित व्यक्ति का समय जब स्वस्थ होने का आता है | उस समय वह चिकित्सा के लिए किसी भाग्यशाली  चिकित्सक वैद्य  झाड़ फूँक करने वाले नाउत भगत  जादू टोना आदि करने वालों के पास पहुँचता है | उस समय स्वस्थ उसे होना ही होता है | उनके प्रयास केवल बहाना बन जाते हैं | इसलिए श्रेय उन्हें मिल जाता है | 




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              इसी कसौटी पर मैंने अपने अनुसंधानों को भी कसा  है | उनके सही निकलने पर आज मैं विश्वासपूर्वक कह सकता हूँ कि  महामारी पैदा और समाप्त होने एवं संक्रमण बढ़ने और घटने का कारण समय ही होता  है | समय का सभी देशों पर ,सभी स्थानों पर एवं सभी प्राणियों पर एक  समान प्रभाव पड़ता है | इसीलिए सभी लापरवाहियों एवं सुरक्षा के लिए किए जाने वाले अलग अलग उपायों के  बाद भी सभी देशों एवं स्थानों पर रहने वाले प्राणियों को  महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने और घटने में एक प्रकार की परिस्थिति का सामना करना पड़ता  रहा है |  

 
 
 
 
                                                  संक्रमण बढ़ने और घटने पर भ्रम  
 
    इसीप्रकार से महामारीजनित संक्रमण समय आने पर प्राकृतिक रूप से कम होने लगता है | ऐसे  समय इसका श्रेय  उसप्रकार के लोग लेने लगते हैं | जो संक्रमण से मुक्ति पाने या दिलाने के लिए किसी न किसी प्रकार का प्रयत्न कर रहे होते हैं | उन्हें लगता है कि इस समय संक्रमण का घटना उनके द्वारा किए जा रहे महामारी से मुक्ति दिलाने वाले प्रयत्नों का ही परिणाम है | 
    ऐसे समय जिन औषधियों या टीकों आदि का जिन रोगियों पर परीक्षण किया जा रहा होता है |उनके रोगमुक्त होने से उन औषधियों टीकों आदि के परीक्षण को सही इसलिए मान लिया जाता है क्योंकि उन्हें रोगमुक्ति दिलाने के लिए उस समय कुछ औषधियों या टीकों आदि का रोगियों पर परीक्षण किया जा रहा होता है और वे रोग मुक्त होते जा रहे होते हैं | 
      वस्तुतः  जिस समय के प्रभाव से सभी रोगी स्वस्थ हो रहे होते हैं | संपूर्ण विश्व में संक्रमण कम हो रहा होता है | उसी समय के प्रभाव से उसप्रकार के रोगी भी रोग मुक्त होते देखे जा रहे होते हैं | उन रोगियों के स्वस्थ होने का कारण उसप्रकार के समय का प्रभाव होता है| 
     ऐसे रोगियों के स्वस्थ होने से उन औषधियों टीकों आदि को परीक्षण में सफल मान लिया जाता है | इसके साथ ही साथ सभी अपने अपने प्रयत्नों को ट्रायल में सफल मानते चले  जाते हैं | ये एक प्रकार का अज्ञानजनित भ्रम होता है | समय के प्रभाव को न समझने के कारण ऐसे समय सभी चिकित्सा पद्धतियाँ  इसप्रकार के भ्रम का शिकार हो  जाती हैं | इस भ्रम का निवारण तब होता है जब उसके बाद कोई दूसरी लहर आती है तब उन्हीं उपायों या औषधियों आदि का सेवन करने से रोगमुक्ति नहीं मिलती है | उस समय उपायों की उपेक्षा करती हुई महामारी बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित करती चली जाती है | लोग महामारी  से संक्रमित होने लगते हैं |  
                                            समय के कारण होता है औषधीय भ्रम !
 
      किसी रोग या महारोग के शांत होने का जब समय आता है | उस समय बिना किसी चिकित्सा के ही स्वतः रोगों या महारोगों से मुक्ति मिलने लगती है | ऐसे समय सामान्य प्रयासों  या बिना प्रयासों के भी रोगों से मुक्ति मिलते देखी जाती है |ऐसे समय रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जो जिसप्रकार के प्रयत्न कर रहा होता है | वो उसीप्रकार के प्रयत्नों को  रोगों से मुक्ति दिलाने की औषधि चिकित्सा आदि सब कुछ समझ लेता है | 
      कई बार बिपरीत समय में कुछ रोगी  बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सकों के यहाँ बार बार चक्कर लगाया करते हैं | महँगी महँगी चिकित्सा किया करते हैं | इसके बाद भी रोगी को स्वास्थ्य लाभ नहीं मिल पाता है | थक हार कर ऐसे लोग किसी नीम हकीम नाउत भगत या किसी जादू टोना करने वाले के पास जाते हैं | वो भी कोई उपाय बताता है | इसी बीच उस रोग से मुक्ति मिलने का समय आ  जाता है | समय प्रभाव से उस रोग से मुक्ति मिलती है ,जबकि वे नीम हकीम नाउत भगत या जादू टोना करने वाले उसका श्रेय  स्वयं ले रहे होते हैं कि इतने बड़े बड़े अस्पतालों चिकित्सकों से महँगी महँगी चिकित्सा करके भी जो  स्वस्थ नहीं हुए | उन्हें मैंने स्वस्थ कर दिया | 
       ऐसे ही कुछ रोगी अस्वस्थ होने के बाद  नीम हकीम नाउत भगत या जादू टोना करने वालों के पास चले जाते हैं | उस समय रोग बढ़ने का समय चल रहा होता है | इसलिए उन्हें वहाँ से कोई लाभ नहीं मिलता है और रोग बढ़ता चला जाता है | उसके बाद चिकित्सकों के पास जाते हैं तब तक उनके स्वस्थ होने का समय आ जाता है | इसलिए चिकित्सा का प्रभाव उनपर पड़ता है | जिससे वे स्वस्थ होने लगते हैं | उस समय चिकित्सक कहते हैं ब्यर्थ के अंध विश्वास में पड़ गए इसलिए रोग इतना अधिक बढ़ गया है |यहाँ आने के बाद स्वस्थ हो गए हो | सच यदि यही होता तो कुछ रोगी  उन्ही चिकित्सालयों में महीनों से चक्कर लगा रहे होते हैं ,फिर भी वे स्वस्थ नहीं हो पाते हैं | कई बार कुछ लोगों का आपरेशन होता है | उसके बाद उन्हें होश आएगा या नहीं आएगा ये समय पर ही आश्रित होता है | उसके बाद भी वे स्वस्थ होंगे या नहीं होंगे ये समय के अनुसार ही घटित होता है | 
      ऐसे ही  संक्रमण बढ़ने का जब समय आता है तो संक्रमण बढ़ने लगता है और संक्रमण कम होने का समय जब आता है तब संक्रमण स्वतः कम होने लगता है और रोगी स्वस्थ होने लगते हैं |लोग समय प्रभाव से स्वस्थ होते जा रहे होते हैं | औषधि या चिकित्सा के नाम पर  लोगों को जो भी दिया जाए या जो भी प्रयत्न किए जाएँ वे सभी सफल  होते   दिखते हैं | उसका कारण समय का सहयोग होता है किंतु इस रहस्य को न समझने के कारण लोग इसे अपने प्रयत्नों का परिणाम मानने लगते हैं | 
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 वैक्सीन  बना लेने के दावे कितने सच !
 
आपसे मेरा विनम्र निवेदन है कि अच्छी प्रकार परीक्षण करवाकर ही कोरोना वैक्सीन लोगों को लगाने की अनुमति दी जानी चाहिए |वेद वैज्ञानिक दृष्टि में मैं संपूर्ण विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि ब्रिटेन में फैल रहा कोरोना वायरस का नया स्वरूप लोगों को लगाए जा रहे कोरोना वायरस के दुष्प्रभाव हो सकते हैं | 
       जो रोग प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ,उस महामारी का स्वभाव क्या है ? उसके निश्चित लक्षण क्या क्या हैं ?उसका विस्तार कितना है ?उसके प्रसार का माध्यम क्या है ?वो प्रारंभ कब हुआ उसकी अनुमानित समाप्ति कब होगी आदि बातों के बिषय में जिन वैज्ञानिकों के द्वारा आज तक कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका है उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए टीका बना लेने का दावा केवल इसलिए किया जा रहा है क्योंकि महामारी से संक्रमितों की संख्या बिना किसी दवा या वैक्सीन के स्वयं ही दिनोंदिन तेजी से कम होती जा रही है |केवल श्रेय लेने की होड़ में सम्मिलित लोगों के द्वारा वैक्सीन के रूप में एक नई समस्या को जन्म दिया जा सकता है | ऐसी परिस्थिति में देश और समाज की सुरक्षा के लिए विशेष सतर्कता संयम  एवं सावधानी की आवश्यकता है | वैसे भी यदि कोरोना महामारी भारत वर्ष में लगभग समाप्त हो ही चुकी है तो किसी वैक्सीन के रूप में एक नए प्रकार की समस्या मोल लेने की आवश्यकता ही आखिर क्या है ?
         श्रीमान जी!किसी भी रोग से मुक्ति दिलाने अथवा उसकी दवा या वैक्सीन बनाने के लिए सबसे पहले  चिकित्सा के सिद्धांत के अनुशार उस रोग का स्वभाव लक्षण संक्रामकता वेग विस्तार आदि समझना आवश्यक होता है अन्यथा उस रोग की चिकित्सा किस आधार पर की जा सकती है और उसकी दवा या वैक्सीन कैसे बनाई जा सकती है?
      मान्यवर !वेदवैज्ञानिक होने के नाते आपसे मैं केवल इतना ही निवेदन करना चाहता हूँ कि बिना वैक्सीन लाए ही भारतवर्ष  में कोरोना लगभग समाप्त हो ही चुका है जो रहा बचा है वह भी अतिशीघ्र समाप्त हो जाएगा (इसका पूर्वानुमान मैं 16 जून को ही आपको भेज चुका हूँ |)
        ऐसी परिस्थिति में यदि वैक्सीन नहीं लगाई जाती है तब तो कोरोना अतिशीघ्र समाप्त हो ही जाएगा क्योंकि वातावरण में अब कोरोना वायरस के उत्पन्न होने की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है और भारत समेत समस्त विश्व को कोरोना के इस नए स्वरूप से अब डरने की आवश्यकता बिलकुल ही नहीं है | यदि वैक्सीन लगाई जाती है तो ब्रिटेन की तरह ही उसके द्वारा फैलने वाले संक्रमण विस्तार का अनुमान मुझे नहीं है |मेरे अनुसंधान के अनुसार कोरोना जैसी महामारी से मुक्ति दिलाने वाली वैक्सीन निर्माण वाले दावे बहुत विश्वसनीय नहीं हैं | 

 

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