Wednesday, 18 June 2025

vataadi 18-6-2025

 स्वस्थ और अस्वस्थ में अंतर 

    प्रकृति और जीवन दोनों साथ साथ ही अस्वस्थ होते रहते हैं | प्रकृति अस्वस्थ होती है तो जीवन भी अस्वस्थ होता है | यह निश्चित है | यह महामारियों की सबसे  पहचान होती है कि जब महामारी जैसे महारोग  फैलते जा रहे हों उसी समय  यदि भूकंप आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक दुर्घटनाएँ भी घटित होने लगें तो वह महामारी प्राकृतिक होती है अन्यथा मनुष्यकृत होती है | 

     इसीलिए जब प्रकृति अस्वस्थ होती है तो जीवन भी अस्वस्थ होता ही है ,किंतु जीवन अस्वस्थ होगा तो प्रकृति अस्वस्थ होगी ही ऐसा निश्चित नहीं है | उसका कारण यह है कि प्रकृति का भोग जीवन करता है किंतु जीवन का भोग प्रकृति नहीं करती है| जिस प्रकार से माँ का दूध पीने वाला कोई शिशु माँ के शरीर में होने वाले रोगों से पीड़ित हो सकता है किंतु शिशु के शरीर में हो रहे रोग माँ के शरीर में होंगे ही ऐसा निश्चित नहीं होता है | 

    इसी प्रकार से  प्रकृति माँ है और हम सब उसी के बच्चे हैं | प्रकृति रोगी होती है तो हम सब रोगी होते हैं |प्रकृति के वातावरण में हम साँस लेते हैं | प्रकृति यदि रुग्ण होगी तो प्राकृतिक वातावरण भी रुग्ण होगा  | उसमे  हम साँस लेंगे तो हम भी रोगी होंगे | जल पिएँगे तो हम रोगी होंगे | आनाज दालें शाक सब्जियाँ आदि हम जो कुछ भी खाएँगे वो सब कुछ उसी जल से सिंचित हुआ होगा और उसी प्राकृतिक वातावरण में ही पैदा हुआ होगा | जो खाद्यपदार्थ अभी नहीं पहले पैदा  हुए होंगे उन पर भी उसी प्राकृतिक वातावरण का प्रभाव पड़ा होगा क्योंकि प्राकृतिक वातावरण अचानक नहीं बदलता है |उसमें धीरे धीरे परिवर्तन होते हैं |  इसलिए वह भी उसी प्राकृतिक परिस्थिति से प्रभावित तो होता  ही है | 

    औषधियाँ भी उसी वातावरण  से प्रभावित हो रही होती हैं | जो औषधि निर्मित हो चुकी होती है वह तो प्रभावित होती ही है | जो औषधि निर्मित नहीं भी हुई होती है | उसका निर्माण जिन खनिजों द्रव्यों या बनस्पतियों से होना होता है| वह भी उसी वातावरण से प्रभावित हो रहे होते हैं|बनस्पतियाँ तो उसी में पैदा हुई और उसी में पली बढ़ी होती हैं | 

     कुल मिलाकर प्राकृतिक वातावरण में जिन जीवनीय तत्वों की  कमी हुई  होती है | वह कमी उस हवा में होती है | जिसमें साँस ली जाती है | उस जल में होती है | जिसे पिया जाता है | समस्त अनाजों दालों शाक सब्जियों फलों आदि सभी खाद्यपदार्थों में होती है |  वह कमी औषधीय द्रव्यों एवं  बनस्पतियों में होती है |जिनसे औषधियाँ बनाई जाती हैं |   वह कमी उसी अनुपात में मनुष्यादि समस्त प्राणियों के शरीरों में भी होती है | वे भी तो उसी बिषाणु संपन्न वातावरण  का सेवन कर रहे होते हैं | 

     इसलिए मनुष्यादि जीव जंतु तो रोगी होते ही हैं | उन रोगों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ स्वयं रोगी होती हैं | इसीलिए प्राकृतिक महामारियों से संक्रमित लोगों को मनुष्यकृत प्रयासों से स्वस्थ किया जाना बहुत कठिन या असंभव ही होता है |  

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महामारी आने का या  संक्रमण बढ़ने का कारण कुछ भी बता दिया जाए या संक्रमण घटने का कारण कुछ भी बता दिया जाए | इसे प्रमाणित भी करना होगा |पूर्वानुमान भी लगाना होगा और उसे सही होते दिखाना भी होगा |  

     ऐसे समय जिस प्राकृतिक प्रक्रिया से लोग संक्रमित हुए होते हैं | उसी प्राकृतिक प्रक्रिया से ही लोग स्वस्थ होते हैं|इसीलिए महामारी संबंधी जब कोई लहर आती है तो  उसका कारण पता नहीं लग पाता है कि लोग आखिर संक्रमित क्यों होते जा रहे हैं |इसीप्रकार से जब लोग संक्रमण मुक्त होने लगते हैं तो ये पता नहीं लग पाता  है कि वे अचानक स्वस्थ क्यों होते जा रहे हैं | 

       सन 2020  के जून जुलाई महीनों में लोग अचानक संक्रमण मुक्त होकर स्वस्थ होते जा रहे थे |ऐसे समय किसी को ये समझ में ही नहीं आ रहा था कि इन लोगों के स्वस्थ अर्थात रोग मुक्त होने का कारण क्या है | उस समय तक न तो कोई औषधि निर्मित या चिन्हित की जा सकी थी और न ही किसी टीके का निर्माण किया जा सका था |उसके बाद जुलाई के उत्तरार्द्ध से अचानक संक्रमण बढ़ने लगा था | जो 18 सितंबर 2020 को उन्नत स्तर पर पहुँचा था | उसके बाद फिर कम होने लगा था जो धीरे धीरे घटते घटते अक्टूबर नवंबर दिसंबर 2020 तक शांत हो गया था | 

     कुलमिलाकर सन 2020  के जून जुलाई एवं अक्टूबर नवंबर दिसंबर  महीनों में  लोगों के स्वतः संक्रमण मुक्त होते जाने का एवं 2020 के अगस्त सितंबर तथा 2021  के फरवरी मार्च अप्रैल महीनों में संक्रमण के अचानक संक्रमण बढ़ने लगने कोई तर्कसंगत कारण  खोजे बिना महामारी संबंधी किसी भी अनुसंधान का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता है |

 

महामारी का विज्ञान और अनुसंधान 

     प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करते समय यदि आम लोग कल्पना करते हैं तो वैज्ञानिक भी कल्पना ही करते हैं | दोनों अपने अपने अनुभवों के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अंदाजा लगाते हैं | दोनों के अंदाजे या अनुमान पूर्वानुमान कभी कभी सही तो कभी कभी  गलत निकलते रहते हैं |प्राकृतिक मामलों में निश्चित तौर न वैज्ञानिक कह सकते हैं कि ऐसा ही होगा  परंपरा से प्राप्त अनुभवों के आधार पर आम लोग ही कह सकते हैं कि  ऐसा ही होगा | 

      नहरों में पानी छोड़े जाने पर जैसे आम लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि यह जल किस दिन कहाँ पहुँचेगा | जिस प्रकार से अधिक वर्षा होने के कारण गंगा में बाढ़ आने पर विशेषज्ञ लोग अंदाजा लगाते हैं कि ये बाढ़  का जल कब कहाँ  पहुँचेगा | इसी प्रकार से आकाश में आँधी तूफान बादल आदि उपग्रहों रडारों से लोग देख लेते हैं | उनकी गति और दिशा के आधार पर वे अंदाजा लगा लेते हैं ,कि ये कब किस देश या प्रदेश में पहुँचेंगे | यहाँ तक मौसम विज्ञान की कोई विशेष आवश्यकता इसलिए नहीं है | इससे समाज का विशेष भला इसलिए नहीं होता है क्योंकि इससे जनता की बहुत सुरक्षा नहीं हो पाती है ,क्योंकि ये घटनाएँ निर्मित होकर  घटित होने के लिए निकल  चुकी होती हैं | 

     हमारे अनुसंधानों का लक्ष्य जनता की सुरक्षा करना होता है | इस लक्ष्य का साधन तभी हो सकता है जब  जिस वर्षा से गंगा जी में बाढ़ आई होती है वह वर्षा होने के लिए उस प्रकार के बादल बनने कब प्रारंभ होंगे | जिस किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया से यह पता  लगाना संभव हो जाएगा | वह सफलता जिस वैज्ञानिक विधि से मिलेगी उसे मौसम विज्ञान कहा जाएगा | जिस अनुसंधान प्रक्रिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर घटनाओं को सही सही समझने में सफलता न मिल सकी हो | उसे उन से जोड़ कर उनका विज्ञान कहा जाना बिल्कुल तर्कसंगत नहीं है | ऐसे ही जिस विज्ञान के द्वारा भूकंपों के बिषय में कुछ पता ही नहीं लगाया जा सका उसे भूकंप विज्ञान कैसे कहा जा सकता है | भविष्य में न जाने किस ज्ञान पद्धति के द्वारा अनुसंधान किए जाने पर भूकंपों के रहस्य को सुलझाने में सफलता मिल सके | वास्तव में तो वही भूकंपविज्ञान होगा | 

     ऐसे ही किसी भी  अनुसंधान प्रक्रिया को पर्यावरणविज्ञान तब तक कैसे कहा जा सकता है, जब तक उस ज्ञान पद्धति के  द्वारा पर्यावरण के सुधरने बिगड़ने के वास्तविक कारण न खोजे जा सकें | वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के वास्तविक कारण न खोजे जा सकें | उन कारणों के आधार पर संभावित परिस्थितियों का पूर्वानुमान न लगाया जा सके | 

      कुल मिलाकर मेरी जानकारी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं को समझने का या उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि  लगाने के लिए न तो कोई ऐसा विज्ञान है और न ही अनुसंधान  द्वारा उन घटनाओं को सही सही समझा जा सके एवं उनके बिषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके | किसी भी घटना से संबंधित कोई विज्ञान है या नहीं इसका पता तो तभी लग सकेगा जब उस अनुसंधान पद्धति से प्राप्त जानकारी  का परीक्षण  उस घटना पर ही क्या जाए | उससे प्राप्त अनुमान पूर्वानुमान यदि सही घटित होने लगें तभी उसे उस घटना का विज्ञान मानना उचित होगा | किसी घटना के बिषय में की गई कोरी कल्पनाओं को उस घटना का विज्ञान कैसे माना जा सकता है | जिसके  आधार पर उस घटना के बिषय में जो जो कुछ समझा जा सका हो उसका घटना के साथ मिलान करने पर वो पूरी तरह से गलत निकलता जा रहा हो |

     इतनी बड़ी महामारी आ रही है इसके बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका | महामारी की जितनी भी लहरें आईं उनके बिषय में पहले से सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका | जो अंदाजे लगाए भी जाते रहे  नहीं निकलते रहे | ऐसे ही महामारी का प्रसार कहाँ तक है |  महामारी का प्रसार माध्यम क्या है | महामारी में अंतर्गम्यता  कितनी है | महामारी कब समाप्त होगी  एवं महामारी की कौन लहर कब समाप्त होगी  | ऐसे बिषयों पर महामारी विज्ञान के आधार पर  या तो कुछ  पता नहीं लगाया जा सका या फिर जो पता लगाया गया वो सही नहीं निकलता रहा | 

      ऐसे ही महामारी विज्ञान के आधार पर कहा गया कि तापमान बढ़ने पर महामारी जनित संक्रमण कम होगा और तापमान कम होने पर संक्रमण बढ़ेगा | इससे बिपरीत केवल तीसरी लहर को छोड़कर बाक़ी सभी लहरें तब आईं जब तापमान बढ़ा हुआ था | महामारी विज्ञान के आधार पर लगाए गए इसप्रकार के अनुमान सही नहीं निकले | 

    ऐसे ही कहा गया कि वायुप्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है,किंतु 2020 के अक्टूबर नवंबर में जब वायु प्रदूषण बहुत बढ़ा हुआ था उस समय महामारीजनित संक्रमण दिनों दिन घटता जा रहा था  | दूसरी ओर मार्च अप्रैल 2021 जब पूरी तरह वायु प्रदूषण मुक्त वातावरण था | उसी समय भारत में महामारी की सबसे भयानक लहर आई थी |इस बिषय में भी  महामारी विज्ञान के आधार पर पता लगाया गया अनुमान सही नहीं निकला | 

   इसी प्रकार से और भी बहुत सी ऐसी जानकारियाँ महामारीविज्ञान के आधार पर पता लगाईं गईं | जिनका महामारी के साथ मिलान करने पर वे गलत निकलती चली गईं |

        इस सच्चाई  को ही आधार बनाकर कर यदि सोचा जाए तो महामारी को समझने में सक्षम कोई भी विज्ञान अभी तक निश्चित नहीं किया जा सका है |  मैंने अपने द्वारा किए गए  महामारी वैदिकविज्ञान को भी मैनें इसी कसौटी कसा है | इसके आधार पर महामारी एवं उसकी लहरों के बिषय में जो जानकारी प्राप्त हुई | महामारी के साथ  होने पर ही मैंने उसे वैदिक महामारी विज्ञान माना है | 

 


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