प्राचीनकाल में भी आती थीं महामारियाँ और आपदाएँ
प्राचीनकाल में प्रकृति के लक्षणों के आधार पर प्रकृति के भी स्वस्थ या अस्वस्थ होने की पहचान कर ली जाती थी |जिसप्रकार से मनुष्यों के स्वस्थ या अस्वस्थ होने के विभिन्न प्रकार के लक्षण होते हैं| उसीप्रकार से प्रकृति के रोगी होने के भी विभिन्न लक्षण उभरते हैं | मनुष्यों के रोग लक्षणों को देखकर रोगों की पहचान कर ली जाती है किंतु प्रकृति के रोग लक्षणों की पहचान करना कठिन होता है |
इसके अतिरिक्त भी बहुत सारे ऐसे यंत्रों का आविष्कार कर लिया गया है | जिनके आधार पर मनुष्यों के रोगों की जाँच करके रोगों का पता लगा लिया जाता है ,किंतु प्रकृति संबंधी स्वास्थ्य परीक्षण के लिए ऐसे यंत्र भी नहीं होते हैं | इसलिए प्रकृति कब स्वस्थ है और कब अस्वस्थ है | ये पता लगाना संभव ही नहीं हो पाता है | इसीलिए महामारियों की पहचान नहीं हो पाती है|प्राकृतिक वातावरण अचानक नहीं बदलता है |उसमें धीरे धीरे परिवर्तन होते हैं | इसलिए वह भी उसी प्राकृतिक परिस्थिति से प्रभावित तो होता है |
ऐसी परिस्थिति में उस कमी से मनुष्यादि प्राणी एवं और सभी जीव जंतु रोगी होते हैं |इसका कारण मनुष्यों में उन जीवनीय तत्वों की कमी होना तो है ही ,इसके साथ ही साथ जिस हवा में मनुष्य साँस लेते हैं | उसमें भी उन तत्वों की कमी होना है |जो अनाज दाल शाक सब्जी फल आदि खाए जाते हैं | उनमें भी उन तत्वों की कमी होना है | ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जिन औषधियों का उपयोग किया जाता है | उनमें भी उन तत्वों की कमी होती है |बनस्पतियों में भी उन तत्वों का अभाव होता है |
ऐसी स्थिति में प्राकृतिक वातावरण में साँस लेने से मनुष्यों में जिन जीवनीय तत्वों की कमी हुई होती है | उसकी पूर्ति न तो भोजन से हो रही होती है और न ही औषधियों से और न ही वृक्षों बनस्पतियों से हो रही होती है | उस कमी की पूर्ति हुए बिना रोगमुक्ति मिलनी संभव नहीं होती है |रोगमुक्ति दिलाने के लिए और किया भी क्या जा सकता है | जब संपूर्ण वातावरण में ही उन तत्वों की कमी होती है | ऐसे रोगियों को रोगमुक्ति दिलाने के लिए चिकित्सा के नाम पर उन जीवनीय तत्वों की पूर्ति कैसे की जा सकती है |
इसीलिए ऐसे रोगों तभी मुक्ति मिल पाती है जब प्राकृतिक रूप से समय बदलता है या फिर उस रोगी का अपना समय बदलता है | प्राकृतिक रूप से समय बदलने पर सभी रोगी साथ साथ स्वस्थ होते हैं | संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में स्वतः ही उन तत्वों की पूर्ति होने लगती है | जिनके अभाव में वे सभी रोगी हुए होते हैं |
कभी कभी जिन लोगों का व्यक्तिगत रूप से अपना समय अच्छा होता है | इसलिए उन शरीरों में ऐसे तत्वों की भरपायी प्राकृतिक रूप से होती रहती है | इसलिए महामारी काल में भी वे रोगी नहीं होते हैं | कुछ लोगों में ऐसे तत्वों की इसलिए पहले वे रोगी हुए होते हैं किंतु बाद में समय में सुधार हो जाने से उन शरीरों में उन जीवनीय तत्वों की प्राकृतिक से पूर्ति होने लगती है | जिससे उन्हें उन रोगों से प्राकृतिक रूप से ही मुक्ति मिलने लगती है |
ऐसे महारोगों में विशेषबात यह है कि पहले प्रकृति अस्वस्थ होती है | उसके बाद मनुष्यादि प्राणी अस्वस्थ होने लगते हैं | यदि देखा जाए तो स्वास्थ्य खराब होना उस दिन प्रारंभ हुआ होता है जब प्रकृति का रोगी होना प्रारंभ हुआ था | प्रकृति से मनुष्यों तक रोग के पहुँचने में कुछ महीनों का समय लग जाता है | इसलिए प्रकृति का रोगी होना प्रारंभ होते ही यदि ये पता लग जाता है कि प्रकृति का अस्वस्थ होना प्रारंभ हो गया है | इसके परिणाम स्वरूप इस इस प्रकार के रोग हो सकते हैं | ऐसा पूर्वानुमान लगाकर उससे बचाव के लिए पहले ही सुरक्षा से संबंधित उपाय औषधियों आदि का संग्रह करके रखा जा सकता है |ऐसे उपायों से मनुष्यों को संक्रमित होने से बचाया जा सकता है तथा संक्रमितों को रोग मुक्ति दिलाने के लिए आवश्यक औषधियों को आगे से आगे तैयार करके रखा जा सकता है | इसमें विशेष बात यह है कि प्रकृति के रोगी होने से पूर्व यदि बनस्पतियों का संग्रह करके रख लिया जाए तो उनका प्रभाव सुरक्षित बना रहता है | उनका सेवन करने से रोगीयों को रोगमुक्ति मिलते देखी जाती है |
प्रकृति परेशान और हम प्रसन्न कैसे संभव है !
विज्ञान और अनुसंधानों का परीक्षण
भूकंप बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात या महामारी जैसी जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं | उनसे समाज की सुरक्षा की जानी तभी संभव है जब उनसे सुरक्षा के लिए तैयारियाँ पहले से करके रखी जाएँ | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब ऐसी घटनाओं के बिषय में पहले से सही पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो सके | किसी भी घटना के िषय में सही अनुमान पूर्वानुमान वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी प्रारंभ होने का या संक्रमण बढ़ने का या प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने के लिए काल्पनिक रूप से किसी भी कारण को जिम्मेदार बता भले दिया जाए कुछ भी बता दिया जाए या संक्रमण बढ़ने घटने का कारण कुछ भी बता दिया जाए ,किंतु उसके आधार पर उन घटनाओं का मिलान करके परीक्षण करना होगा | किसी भी घटना के बिषय में सही पूर्वानुमान लगाया जाना तभी संभव होगा जब उस घटना के घटित होने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जाए वे अनुमान सही निकलें | इसके बिना भूकंप बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात या महामारी जैसी घटनाओं के बिषय में पहले से तैयारी की जानी संभव ही नहीं है |ऐसा किए बिना तत्काल की तैयारियों के बलपर भूकंप बाढ़ आँधी तूफान चक्रवात बज्रपात या महामारी जैसी घटनाओं से समाज को सुरक्षित बचाया जाना संभव ही नहीं है |
विशेष बात यह है कि जिस प्राकृतिक प्रक्रिया से लोग संक्रमित हुए होते हैं | उस प्रक्रिया से ही लोगों को स्वस्थ होना होता है |लोग संक्रमित जिस प्रक्रिया से हुए होते हैं | वह प्रक्रिया प्रत्यक्ष दिखाई ही नहीं पड़ रही होती है | इसीलिए जब सभी लोग संक्रमण मुक्त होते हैं ,तब भी वह प्रक्रिया प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ती है |
महामारी संबंधी जब कोई लहर आती है तो उसका कारण पता नहीं लग पाता है कि लोग आखिर संक्रमित क्यों होते जा रहे हैं और जब लोग संक्रमण मुक्त होने लगते हैं तो ये पता नहीं लग पाता है कि वे अचानक स्वस्थ क्यों होते जा रहे हैं | इनके संक्रमित होने या स्वस्थ होने का कारण क्या है |
सन 2020 के जून जुलाई महीनों में लोग अचानक संक्रमण मुक्त होकर स्वस्थ होते जा रहे थे |ऐसे समय किसी को ये समझ में ही नहीं आ रहा था कि इन लोगों के स्वस्थ अर्थात रोग मुक्त होने का कारण क्या है | उस समय तक न तो कोई औषधि निर्मित या चिन्हित की जा सकी थी और न ही किसी टीके का निर्माण किया जा सका था |उसके बाद जुलाई के उत्तरार्द्ध से अचानक संक्रमण बढ़ने लगा था | जो 18 सितंबर 2020 को उन्नत स्तर पर पहुँचा था | उसके बाद फिर कम होने लगा था जो धीरे धीरे घटते घटते अक्टूबर नवंबर दिसंबर 2020 तक शांत हो गया था |
कुलमिलाकर सन 2020 के जून जुलाई एवं अक्टूबर नवंबर दिसंबर महीनों में लोगों के स्वतः संक्रमण मुक्त होते जाने का एवं 2020 के अगस्त सितंबर तथा 2021 के फरवरी मार्च अप्रैल महीनों में संक्रमण के अचानक संक्रमण बढ़ने लगने कोई तर्कसंगत कारण खोजे बिना महामारी संबंधी किसी भी अनुसंधान का कोई औचित्य सिद्ध नहीं होता है |
कुल मिलाकर महामारियाँ प्राकृतिक कारणों से पैदा होती हैं और प्राकृतिक कारणों से ही शांत होती हैं | मनुष्यकृत प्रयत्नों से उन्हें शांत किया जाना कठिन होता है | महामारी से संक्रमित किसी व्यक्ति को चिकित्सा आदि के प्रभाव से यदि रोग मुक्ति मिल भी जाए तो भी वह पूर्णतः स्वस्थ इसलिए नहीं हो पाता है, क्योंकि स्वस्थ होकर भी उसे उसी वातावरण में रहना होता है | जिसमें साँस लेकर वह रोगी हुआ था | जो कुछ खा पी कर वह पहले रोगी हुआ था | उस वातावरण में सॉंस लेकर या वही सबकुछ खा पीकर उसका स्वस्थ रह पाना संभव नहीं हो पाता है |
महामारी का विज्ञान और अनुसंधान
प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान करते समय यदि आम लोग कल्पना करते हैं तो वैज्ञानिक भी कल्पना ही करते हैं|दोनों अपने अपने अनुभवों के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अंदाजा लगाते हैं|दोनों के अंदाजे या अनुमान पूर्वानुमान कभी सही तो कभी गलत निकलते हैं| दोनों प्रक्रियाओं में वैज्ञानिक चिंतन का अभाव होता है | प्राकृतिक मामलों में न वैज्ञानिक कह सकते हैं कि ऐसा ही होगा और न ही परंपरा से प्राप्त अनुभवों के आधार पर आम लोग ही कह सकते हैं कि ऐसा ही होगा | ऐसी परिस्थिति में विज्ञान के योगदान को अलग से कैसे चिन्हित किया जाए |
नहरों में पानी छोड़े जाने पर उसकी गति के हिसाब से जैसे आम लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि यह जल किस दिन कहाँ पहुँचेगा |ऐसे ही अधिक वर्षा होने के कारण गंगा में बाढ़ आने पर विशेषज्ञ लोग अंदाजा लगाते हैं कि ये बाढ़ का जल कब कहाँ पहुँचेगा | इसी प्रकार से सुदूर आकाश में उपग्रहों रडारों से आँधी तूफान बादल आदि देख लिए जाते हैं | उनकी गति और दिशा के आधार पर अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब किस देश या प्रदेश में पहुँचेंगे |
ऐसी परिस्थिति में नहरों में छोड़े गए पानी के कहीं पहुँचने के बिषय में अंदाजा लगाना हो या गंगा जी में आए बाढ़ के पानी के कहीं पहुँचने के बिषय में अंदाजा लगाना हो या आँधी तूफानों एवं बादलों के कहीं पहुँचने के बिषय में अंदाजा लगाना हो | इन तीनों प्रकार के अंदाजों को लगाने की प्रक्रिया लगभग एक जैसी होती है | इसमें विज्ञान का कोई योगदान नहीं होता है |
प्राकृतिकआपदाओं या महामारियों से संबंधित अनुसंधानों के करने का उद्देश्य जनता की सुरक्षा करना होता है | इस लक्ष्य का साधन तभी हो सकता है जब जिस वर्षा गंगा जी में बाढ़ आई होती है| वह वर्षा होने के लिए उस प्रकार के बादल बनने कब प्रारंभ हुए होंगे |उसी वर्ष इतनी अधिक वर्षा का संयोग क्यों बना होगा |उसका कारण क्या रहा होगा | यह पता लगाना जिस किसी भी वैज्ञानिक प्रक्रिया से संभव हो पाएगा | उसे मौसमविज्ञान कहा जाना तर्कसंगत होगा |
इसके अतिरिक्त जिस अनुसंधान प्रक्रिया से प्राप्त जानकारी के आधार पर मौसमसंबंधी घटनाओं को सही सही समझने एवं पूर्वानुमान लगाने में सफलता न मिल सकी हो | उसे उन से जोड़ कर उनका विज्ञान कहा जाना बिल्कुल तर्कसंगत नहीं है | ऐसे ही जिस विज्ञान के द्वारा भूकंपों के बिषय में कुछ पता ही नहीं लगाया जा सका हो | उसे भूकंप विज्ञान कैसे कहा जा सकता है |अभी यह भी नहीं पता है कि भूकंपों के रहस्य को सुलझाने में या पूर्वानुमान लगाने में किस ज्ञानपद्धति के आधार पर भविष्य में कब सफलता मिलेगी |जब जिस ज्ञानपद्धति से ऐसा करने में सफलता मिलेगी ,तब वही विश्वास करने योग्य भूकंपविज्ञान होगा |
ऐसे ही किसी भी अनुसंधान प्रक्रिया को पर्यावरणविज्ञान तब तक कैसे कहा जा सकता है, जब तक उस ज्ञान पद्धति के द्वारा पर्यावरण के सुधरने बिगड़ने के वास्तविक कारण न खोजे जा सकें|वायुप्रदूषण बढ़ने घटने के वास्तविक कारण न खोजे जा सकें | उन कारणों के आधार पर संभावित परिस्थितियों का पूर्वानुमान न लगाया जा सके |
कुल मिलाकर मेरी जानकारी के अनुसार प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए या उनके बिषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए न तो कोई विज्ञान है और न ही ऐसे अनुसंधान हैं | जिनके द्वारा उन घटनाओं को सही सही समझा जा सके एवं प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके |
जिस किसी भी घटना से संबंधित कोई विज्ञान है या नहीं ! इसका पता तो तभी लग सकेगा,जब उस अनुसंधान पद्धति से प्राप्त जानकारी का परीक्षण उस घटना पर ही किया जाए | उससे प्राप्त अनुमान पूर्वानुमान आदि उन घटनाओं के आधार पर सही निकलें | उसे उस घटना का विज्ञान मानना उचित होगा |
इसके अतिरिक्त किसी घटना के बिषय में की गई कोरी कल्पनाओं को उस घटना का विज्ञान कैसे माना जा सकता है | जिसके आधार पर उस घटना के बिषय में जो जो कुछ समझा जा सका हो उसका घटना के साथ मिलान करने पर वो पूरी तरह से गलत निकलता जा रहा हो |
इतनी बड़ी महामारी आ रही है इसके बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका | महामारी की जितनी भी लहरें आईं उनके बिषय में पहले से सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका | जो अंदाजे लगाए भी जाते रहे वे सही नहीं निकलते रहे | ऐसे ही महामारी का प्रसार कहाँ तक है | महामारी का प्रसार माध्यम क्या है | महामारी में अंतर्गम्यता कितनी है | महामारी कब समाप्त होगी एवं महामारी की कौन लहर कब समाप्त होगी | ऐसे बिषयों पर महामारी विज्ञान के आधार पर या तो कुछ पता नहीं लगाया जा सका या फिर जो पता लगाया गया वो सही नहीं निकलता रहा |जिस महामारी विज्ञान का महामारी से ही संबंध न सिद्ध हो सका हो, वह महामारी पीड़ितों की सुरक्षा में कैसे सहायक हो सकता है |
ऐसे ही विशेषज्ञों के द्वारा कहा गया कि तापमान बढ़ने पर महामारीजनित संक्रमण कम होगा और तापमान कम होने पर संक्रमण बढ़ेगा,किंतु ऐसा हुआ नहीं | केवल तीसरी लहर को छोड़कर बाक़ी सभी लहरें तब आईं जब तापमान बढ़ा हुआ था | महामारी विज्ञान के आधार पर लगाए गए इसप्रकार के अनुमान सही नहीं निकले |
ऐसे ही कहा गया कि वायुप्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है,किंतु 2020 के अक्टूबर नवंबर में जब वायु प्रदूषण बहुत बढ़ा हुआ था उस समय महामारीजनित संक्रमण दिनों दिन घटता जा रहा था | दूसरी ओर मार्च अप्रैल 2021 जब पूरी तरह वायु प्रदूषण मुक्त वातावरण था | उसी समय भारत में महामारी की सबसे भयानक लहर आई थी |इस बिषय में भी महामारी विज्ञान के आधार पर पता लगाया गया अनुमान सही नहीं निकला |
इसी प्रकार से और भी बहुत सी ऐसी जानकारियाँ महामारीविज्ञान के आधार पर बताई गईं | जिनका महामारी के साथ मिलान करने पर वे गलत निकलती चली गईं |
इस सच्चाई को ही आधार बनाकर कर यदि सोचा जाए तो महामारी को समझने में वैदिकज्ञान पद्धति के अतिरिक्त किसी अन्य परंपरा को अभी तक कोई सफलता नहीं मिल सकी है | अपने द्वारा किए गए महामारी वैदिकविज्ञान को भी मैने इसी कसौटी पर कसा है | इसके आधार पर महामारी एवं उसकी लहरों के बिषय में जो जानकारी प्राप्त हुई | महामारी पर परीक्षण करने के बाद सही निकलने पर ही मैंने उसे वैदिक महामारी विज्ञान माना है |
No comments:
Post a Comment