कोरोना महामारी को सही सही समझने के लिए गणितविज्ञान संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता !
महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ जैसी प्राकृतिक घटनाओं के घटित हो जाने के पहले ही इनसे संबंधित अनुसंधानों की भूमिका होती है| ऐसे अनुसंधानों की सार्थकता तभी है जब ऐसी घटनाओं के घटित होने से पहले इनके विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सके| उसके अनुशार बचाव के लिए आगे से आगे प्रबंध करके रखे जा सकें जो अवसर आने पर जन धन की सुरक्षा करने में सहयोगी सिद्ध हो सकें |
ऐसे सार्थक अनुसंधानों का अभाव प्राकृतिक आपदाओं के समय अत्यंत कष्टप्रद होता है | इनके अभाव में ही कोरोना जैसी हिंसक महामारी आने के पहले इसके विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका और न ही महामारी आने का कारण पता लगाया जा सका है| महामारी(लहरों) से संक्रमितों की संख्या अपने आप से अचानक बढ़ने या घटने का कारण एवं पूर्वानुमान भी खोजे जाने की आवश्यकता थी | महामारी से भयभीत समाज अभी भी जानना चाहता है कि कोरोना महामारी की कितनी लहरें अभी और आएँगी कब कब आएँगी और यह महामारी संपूर्ण रूप से समाप्त कब होगी |जिसके आधार पर बचाव के लिए कुछ अग्रिम उपाय किए जा सकें |वर्तमान समय में चल रही कोरोना महामारी के संकट काल में सबसे अधिक आवश्यकता ऐसे अनुसंधानों की है |
ऐसी परिस्थिति में वेद वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्रकृति से लेकर जीवन तक को समझना संभव हो सकता है वहाँ ऐसे विषयों को समझने के लिए विस्तार पूर्वक जानकारी दी गई है| जिसके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं ,आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के स्वभाव को समझते हुए उसके विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
महामारी और गणित विज्ञान
महामारी और प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अनुसंधान का उद्देश्य ऐसी
घटनाओं के स्वभाव प्रभाव का अनुमान और पूर्वानुमान लगाना रहा है |
भारत के प्राचीन वैज्ञानिक अनुसंधानों में इस बात का ध्यान रखा जाता था कि
ऐसी बड़ी दुर्घटनाओं में जो नुक्सान होना होता है वो प्रायः पहले झटके के
साथ हो जाता है उसके बाद ऐसे अनुसंधानों की उपयोगिता ही क्या रह जाती है फिर तो आपदा प्रबंधन का काम शुरू हो जाता है |
इसलिए सभी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों का पूर्वानुमान लगाना ही ऐसी घटनाओं से बचाव का एक मात्र उपाय है यह जानते हुए भी महामारियों के विषय में अभी तक कोई प्रभावी विधा खोजी नहीं जा सकी है इसी लिए महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में अभी तक कोई सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका जिसे संपूर्ण विश्व ने देखा है |
दूसरी तरफ भारत का प्राचीन गणित विज्ञान जिसके द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाले सूर्य चंद्र ग्रहणों का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है जो एक एक मिनट सही घटित होता है | इसमें सूर्य चंद्र और पृथ्वी के संचार को गणित के द्वारा समझकर ही हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | इससे सूर्य के संचार को भारत के प्राचीन गणित विज्ञान के द्वारा समझने की क्षमता प्रमाणित होती है |
यह सर्व विदित है कि सूर्य के संचार से मौसमसंबंधी सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं तथा रोगों महारोगों (महामारियों)आदि का निर्माण होता है | इनका कारण सूर्य ही है | यही कारण है कि जब जिस प्रकार के रोगों महारोगों के पैदा होने का समय आता है उस समय उसी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ भी घटित होने लगती हैं | ऐसी घटनाओं को देखकर महामारी के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है जबकि गणितविज्ञान के द्वारा महामारी जैसी घटनाओं का वर्षों पहले वानुमान भी लगाया जा सकता है |
गणितविज्ञान के द्वारा सूर्य के संचार को समझा जा सकता है और सूर्यसंचार के आधार प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | इससे ऐसे महारोगों को समझने में बड़ी मदद मिल सकती है |इसी उद्देश्य से महामारी और मौसम जैसे विषयों में गणित विज्ञान के आधार पर मैं विगत तीस वर्षों से अनुसंधान करता चला आ रहा हूँ |
इसी उद्देश्य से मैंने व्यक्तिगत स्तर पर अभी तक जिन जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया है वो सही निकलता रहा है यहाँ तक कि उसी गणित विज्ञान के आधार पर मेरे द्वारा जो भी पूर्वानुमान लगाए महामारी जैसे अत्यंत कठिन विषय में भी लगाए गए अनुमान न केवल सही निकलते रहे हैं अपितु महामारी की जितनी भी लहरें आयी हैं उनके प्रारंभ और समाप्त होने के विषय में लगाए गए पूर्वानुमान भी सच होते रहे हैं | प्रमाण स्वरूप हमारे पास इसी विषय से संबंधित पीएमओ को भेजी गई मेलों के निम्नलिखित कुछ अंश हैं |
कोरोना महामारी की तीनों लहरों के विषय में सच हुए पूर्वानुमान !
"राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान" नामक अपने संस्थान के तत्वावधान में कोरोना महामारी के विषय में जो अनुसंधान किए गए थे वे प्रधानमंत्री जी की मेल पर भेजे जाते रहे वे प्रायः सही होते रहे हैं |भारत में कोरोना महामारी की चार लहरें आई हैं चारों लहरों के विषय में मेरे द्वारा गणित विज्ञान के आधार पर ये पूर्वानुमान लगाए गए हैं जो सही निकलते रहे हैं |
पहली लहर:- पहली लहर के विषय में 16 जून 2020 को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने लिखा था -
"यह महामारी 9 अगस्त से दोबारा प्रारंभ होनी शुरू हो जाएगी जो 24 सितंबर तक रहेगी !उसके बाद यह संक्रमण स्थायी रूप से समाप्त होने लगेगा और 16 नवंबर के बाद यह स्थायी रूप से समाप्त हो जाएगा !"
घटना :-इस पहली लहर में सबसे अधिक संक्रमण 18 सितंबर 2020 को नापा गया था जो लगभग सही निकला था |
दूसरी लहर:- इस विषय में 19 अप्रैल 2021को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने लिखा था -
"20 अप्रैल 2021 से ही महामारी पर अंकुश लगना प्रारंभ हो जाएगा ! 23 अप्रैल के बाद महामारी जनित संक्रमण कम होता दिखाई भी पड़ेगा !और 2 मई के बाद से पूरी तरह से संक्रमण समाप्त होना प्रारंभ हो जाएगा | !"
घटना :- दूसरी लहर में सबसे अधिक संक्रमण दिल्ली में 2 मई 2021 को एवं संपूर्ण भारत में8 मई 2021 को नापा गया था जो लगभग सही निकला था |
तीसरी लहर:- इस विषय में 18 दिसंबर 2021को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने लिखा था-
" वर्तमान समय में जिस वायरस की चर्चा की जा रही है वह महामारी से संबंधित नहीं है वह ऋतु जनित सामान्य विकार है इससे महामारी की तरह डरने या डराने की आवश्यकता नहीं है |वर्तमान समय में जो संक्रमितों की संख्या बढ़ती दिख रही है वह महामारी संक्रमितों की न होकर अपितु सामान्य रोगियों की है | यह सामान्य संक्रमण भी 20 जनवरी 2022 से पूरी तरह समाप्त होकर समाज संपूर्ण रूप से महामारी की छाया से मुक्त हो सकेगा |"
घटना :-तीसरी लहर में सबसे अधिक संक्रमण 20 जनवरी 2022 को ही संपूर्ण भारत में नापा गया था जो पूर्ण रूप से सही निकला है |
चौथी लहर:- इस विषय में 20 फ़र॰ 2022 को पीएमओ को भेजी गई मेल में मैंने लिखा था- कोरोना महामारी की चौथी लहर 27 फरवरी 2022 से प्रारंभ होगी और 8 अप्रैल 2022 तक क्रमशः बढ़ती चली जाएगी |इसके बाद 9 अप्रैल 2022 से भगवती दुर्गा जी की कृपा से महामारी की चौथी लहर समाप्त होनी प्रारंभ हो जाएगी और धीरे धीरे समाप्त होती चली जाएगी |" घटना :- चौथीलहर 27 फरवरी 2022 से चीन आदि 14 देशों में प्रारंभ हो चुकी है जिसका समाप्त होना 9 अप्रैल 2022 से प्रारंभ हो जाएगा | जिन जिन देशों तक यह लहर पहुँच चुकी है वहीँ समाप्त हो जाएगी | इसके और अधिक आगे बढ़ने की संभावना नहीं है | विशेषबात :-ऐसी लहरें कब तक आती रहेंगी कितनी लहरें और आएँगी | संपूर्ण रूप से महामारी कब समाप्त होगी आदि आवश्यक प्रश्नों का उत्तर भी इसी विज्ञान के द्वारा प्राप्त किया जा सकता है | |
अनुसंधान संबंधी सहायता की आवश्यकता
"राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान" नामक अपने संस्थान के तत्वावधान में अभी तक इन अनुसंधानों को अपने सीमित संसाधनों से संचालित किया जाता रहा है | उनके विषय में लगाए गए पूर्वानुमान प्रायः सही निकलते रहने के कारण मुझे अब ऐसे अनुसंधानों को बृहद स्तर पर करने की आवश्यकता लगती है | जिसके लिए अधिक धन की आवश्यकता होना स्वाभाविक ही है |मेरा विश्वास है कि ऐसे अनुसंधानों के बलपर प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के स्वभाव को समझने में भी सुविधा होगी एवं इनके विषय में पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है |
इसके लिए प्रकृति और जीवन से संबंधित ऐसे वैदिक वैज्ञानिकों की आवश्यकता है जो प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं महामारियों आदि को समझने में सक्षम हों | उनके द्वारा ऐसे विषयों पर पहले से भी ऐसे अनुसंधान किए जाते रहे हों जिनकी प्रमाणिकता घटित होती प्राकृतिक घटनाओं के साथ सिद्ध होती रही हो | जिन वैदिक वैज्ञानिकों के अपने ऐसे प्रमाणित अनुभव रहे हों जो इन अनुसंधानों में अपना योगदान देने में सहायक हो सकें |उस प्रकार के वैदिक वैज्ञानिकों के सहयोग की अपेक्षा होगी |
इसप्रकार के वैदिकवैज्ञानिकों की संख्या बहुत कम होने के कारण पिछले कई दशकों से प्राकृतिक घटनाओं ,आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारी के समय में वैदिकवैज्ञानिकों की कोई प्रायोगिक भूमिका देखने को नहीं मिली है | इसीलिए ऐसे किसी शिक्षण संस्थान का सृजन करना होगा जिसमें इस प्रकार के वैदिक वैज्ञानिक विद्वानों को तैयार किया जा सके जो वेद वेदांगों के अभिप्राय को समझ सकें एवं उसके आधार पर वेदवैज्ञानिक दृष्टि से प्रकृति और जीवन से संबंधित अनुसंधानों में अपना योगदान दे सकें |
इसके लिए बड़े पैमाने पर वैदिकवैज्ञानिकोंको तैयार करने की आवश्यकता है जो प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज एवं सरकार को आगे से आगे जागरूक कर सकें | यह अतिविशाल कार्य सरकार के सहयोग के बिना संभव नहीं है |
अनुसंधानों से लाभ -
ऐसे अनुसंधानों से महामारी एवं मौसमसंबंधी अध्ययनों को तो सहयोग मिलेगा ही इसके साथ ही ये अनुसंधान प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के संकटपूर्ण समय में समाज की कठिनाइयों को कम करने में सहायक हो सकते हैं| इसकी दूसरी विशेषता यह है कि इसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में महीनों पहले पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं जो आपदा प्रबंधन की दृष्टि से बचाव कार्यों में विशेष उपयोगी हो सकते हैं |
मैं अपने सीमित संसाधनों के द्वारा प्रकृति और जीवन से संबंधित विभिन्न विषयों पर शोधकार्य करता चला आ रहा हूँ |जिनसे इसप्रकार के सहयोगी परिणाम प्राप्त हुए हैं | भारतवर्ष के इन्हीं प्राचीनवैज्ञानिक अनुसंधानों को यदि बृहद स्तर पर चलाया जाता है तो प्रकृति और जीवन से संबंधित घटनाओं को समझने में उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने में एवं जलवायु परिवर्तन जैसे रहस्यों को सुलझाने में बड़ी मदद मिल सकती है |ये अनुसंधान वैश्विक दृष्टि से भारतवर्ष के वैज्ञानिक वैशिष्ट्य की स्वीकार्यता बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं |
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