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आदरणीय आपको सादर नमस्कार
आदरणीय आपको सादर नमस्कार
विषय : वायुप्रदूषण बढ़ने से रोकने के लिए किए जाने वाले उपायों के विषय में -
महोदय,
वायुप्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तरह तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं | इसके लिए जहाँ जहाँ धुआँ धूल आदि उड़ती दिखाई देती है उस सबको वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार मानकर चालान या सील कर दिया जाता है |वाहनों के लिए 'ऑडइवन' लागू कर दिया जाता है |ऐसी गतिविधियों से उन लाखों परिवारों का भरण पोषण हो रहा होता है जो ऐसे कामों से जुड़े हुए हैं उनकी आजीविका में अकारण रुकावट पैदा हो जाती है यह कितना न्यायोचित है |
जनता दोनों प्रकार से पिसती है एक तो टैक्स देकर मौसम वैज्ञानिकों को सैलरी आदि सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी का निर्वहन जनता करती है तो दूसरे उन्हीं मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा रिसर्चों के नाम पर बताई जाने वाली बातों का असर भी जनता पर ही पड़ता है | उनके मौसम संबंधी अनुसंधानों से निकलता आखिर क्या है ?
कई दशकों से चले आ रहे अनुसंधानों के बाद भी भूकंप वैज्ञानिक आजतक भूकंपों के विषय में कुछ नहीं बता पाए !मौसम वैज्ञानिकों को मौसम के विषय में कुछ पता नहीं है !मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने के बाद वे या तो आश्चर्य करते हैं या फिर ऐसी घटनाओं के अनुसंधान की आवश्यकता बताते हैं या फिर कह देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है | मानसून आने जाने की तारीखों में उलझे लोगों से क्या अपेक्षा रखी जा सकती है | 2018 मई जून के आँधी तूफ़ान हों या 7 अगस्त से दक्षिण भारत में हुई भीषण वर्षात किसी का भी तो पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका ऐसी और भी बहुत सारी भविष्यवाणियाँ झूठ होती रही हैं ऐसी परिस्थिति में मौसम या वायुप्रदूषण के विषय में उनके द्वारा बताई जाने वाली कहानियों को कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए |
इसलिए उनके द्वारा प्रदूषण बढ़ने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारणों को कितना विश्वसनीय मन जाना चाहिए !निर्माणकार्यों की धूल ,'उद्योगों,ईंटभट्ठों,पराली जलाने या वाहनों से निकलने वाला धुआँ,दशहरा में रावण जलाने एवं दीपावली में पटाका जलाने के धुएँ को वे वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताते हैं | सर्दी में हवाओं के धीमे चलने को गर्मी में हवाओं के तेज चलने को या दिल्ली की भौगोलिक स्थिति को भी बायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बता दिया जाता है !ऐसी बातों में वैज्ञानिक सोच या अनुसंधान कहाँ हैं | हो भी कैसे जब मौसम निर्मात्री शक्तियों के विषय में अभी तक कोई अनुसंधान प्रारंभ ही नहीं हुआ है ! जो घटना घटित होना प्रारंभ हो जाए बाद में उससे संबंधित लगाए जाने वाले अनुमानों को पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है |उपग्रहों और रडारों की सहायता से बादलों और आँधी तूफानों की जासूसी करना एवं उनकी गति और दिशा के आधार पर अनुमान लाग लेने की प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है ?
महोदय !मैं स्वयं मौसम पूर्वानुमान विषय पर लगभग 25 वर्षों से अनुसंधान कर रहा हूँ जिसके द्वारा मौसम से संबंधित अधिकाँश घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगापाना संभव हो पाया है | मैं पिछले एक वर्ष से प्रधानमंत्री जी को भी उनके जीमेल पर अपने द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी सभी प्रकार की घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान प्रत्येक महीने के प्रारंभ होने से पहले भेजता हूँ जो 70 से 80 प्रतिशत तक सही होते देखे जाते हैं | वे प्रमाण स्वरूप हमारे पास अभी भी उपलब्ध हैं !अवसर मिलने पर उन्हें आपके समक्ष परीक्षणार्थ प्रस्तुत किया जा सकता है |इसमें वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान भी सम्मिलित हैं |
वायुप्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए तरह तरह के कार्यक्रम चलाए जाते हैं | इसके लिए जहाँ जहाँ धुआँ धूल आदि उड़ती दिखाई देती है उस सबको वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार मानकर चालान या सील कर दिया जाता है |वाहनों के लिए 'ऑडइवन' लागू कर दिया जाता है |ऐसी गतिविधियों से उन लाखों परिवारों का भरण पोषण हो रहा होता है जो ऐसे कामों से जुड़े हुए हैं उनकी आजीविका में अकारण रुकावट पैदा हो जाती है यह कितना न्यायोचित है |
जनता दोनों प्रकार से पिसती है एक तो टैक्स देकर मौसम वैज्ञानिकों को सैलरी आदि सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी का निर्वहन जनता करती है तो दूसरे उन्हीं मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा रिसर्चों के नाम पर बताई जाने वाली बातों का असर भी जनता पर ही पड़ता है | उनके मौसम संबंधी अनुसंधानों से निकलता आखिर क्या है ?
कई दशकों से चले आ रहे अनुसंधानों के बाद भी भूकंप वैज्ञानिक आजतक भूकंपों के विषय में कुछ नहीं बता पाए !मौसम वैज्ञानिकों को मौसम के विषय में कुछ पता नहीं है !मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने के बाद वे या तो आश्चर्य करते हैं या फिर ऐसी घटनाओं के अनुसंधान की आवश्यकता बताते हैं या फिर कह देते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा है | मानसून आने जाने की तारीखों में उलझे लोगों से क्या अपेक्षा रखी जा सकती है | 2018 मई जून के आँधी तूफ़ान हों या 7 अगस्त से दक्षिण भारत में हुई भीषण वर्षात किसी का भी तो पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका ऐसी और भी बहुत सारी भविष्यवाणियाँ झूठ होती रही हैं ऐसी परिस्थिति में मौसम या वायुप्रदूषण के विषय में उनके द्वारा बताई जाने वाली कहानियों को कितनी गंभीरता से लिया जाना चाहिए |
इसलिए उनके द्वारा प्रदूषण बढ़ने के लिए बताए जाने वाले जिम्मेदार कारणों को कितना विश्वसनीय मन जाना चाहिए !निर्माणकार्यों की धूल ,'उद्योगों,ईंटभट्ठों,पराली जलाने या वाहनों से निकलने वाला धुआँ,दशहरा में रावण जलाने एवं दीपावली में पटाका जलाने के धुएँ को वे वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताते हैं | सर्दी में हवाओं के धीमे चलने को गर्मी में हवाओं के तेज चलने को या दिल्ली की भौगोलिक स्थिति को भी बायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बता दिया जाता है !ऐसी बातों में वैज्ञानिक सोच या अनुसंधान कहाँ हैं | हो भी कैसे जब मौसम निर्मात्री शक्तियों के विषय में अभी तक कोई अनुसंधान प्रारंभ ही नहीं हुआ है ! जो घटना घटित होना प्रारंभ हो जाए बाद में उससे संबंधित लगाए जाने वाले अनुमानों को पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है |उपग्रहों और रडारों की सहायता से बादलों और आँधी तूफानों की जासूसी करना एवं उनकी गति और दिशा के आधार पर अनुमान लाग लेने की प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है ?
महोदय !मैं स्वयं मौसम पूर्वानुमान विषय पर लगभग 25 वर्षों से अनुसंधान कर रहा हूँ जिसके द्वारा मौसम से संबंधित अधिकाँश घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगापाना संभव हो पाया है | मैं पिछले एक वर्ष से प्रधानमंत्री जी को भी उनके जीमेल पर अपने द्वारा किए जाने वाले मौसम संबंधी सभी प्रकार की घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान प्रत्येक महीने के प्रारंभ होने से पहले भेजता हूँ जो 70 से 80 प्रतिशत तक सही होते देखे जाते हैं | वे प्रमाण स्वरूप हमारे पास अभी भी उपलब्ध हैं !अवसर मिलने पर उन्हें आपके समक्ष परीक्षणार्थ प्रस्तुत किया जा सकता है |इसमें वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान भी सम्मिलित हैं |
महोदय !जिस गणित विधा से ग्रहण संबंधी सटीक पूर्वानुमान सैकड़ों वर्ष पहले लगा लिया जाता है उसी विधा से मैं मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाता हूँ मौसम वैज्ञानिकों के अनुसंधानों की अपेक्षा ये काफी कम खर्चीला तथा सही एवं सटीक होता है | आपकी अनुमति हो तो मैं इससे संबंधित अपने शोध प्रपत्र आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ ! जिससे इस विषय को भी प्रोत्साहन मिले | यदि आप मुझे अवसर दें तो मैं आपका बहुत बहुत आभारी रहूँगा |
निवेदक
निवेदक -
निवेदक
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