Tuesday, 19 March 2019

ऑक्सीजन

                                                      मौसम के विषय में कहाँ खड़ा है विज्ञान !
                              भूकंप के विषय में विज्ञान की उपलब्धियाँ !

                                                        जलवायु परिवर्तन या भ्रम ?
                                                        मौसम : विज्ञान है या कला ?

                                                                       - भूमिका -
      विश्व मौसम के विषय में अनुसंधानों के नाम पर अभी तक जो कुछ भी हुआ है वो थोड़े बहुत अंतर के साथ लगभग एक जैसा ही है उनका अध्ययन भी लगभग एक जैसा है और अनुसंधान करने की प्रक्रिया एवं क्षमता भी एक जैसी ही है ! तर्क एक जैसे हैं और सभी दलीलें भी एक जैसी ही देते दिखाई देते हैं !सफलता के दावे भी सभी लोग एक जैसे कर रहे हैं और अटकते भी सभी लोग एक जैसी जगहों पर हैं ! मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोगों की मौसमसंबंधी भविष्यवाणियाँ भी लगभग एक जैसी ही होती हैं! वर्षा आँधी तूफ़ान आदि का पूर्वानुमान लगाने के दावे सभी करते दिखाई देते हैं भले ही वो बाद में गलत ही क्यों न सिद्ध हो जाएँ !भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने में सभी एक साथ अटके पड़े हैं !सबको पता है कि वर्षा आदि से संबंधित मौसम पूर्वानुमान में तो तीर तुक्के चल जाते हैं गलत होने पर लोग अधिक ध्यान नहीं देते हैं किंतु भूकंप का पूर्वानुमान जिस दिन के लिए बताया जाए इसका मतलब है कि उस दिन भूकंप आना ही चाहिए अन्यथा वैज्ञानिक साहब की भविष्यवाणी गलत मान ली जाएगी इसीलिए वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोगों ने साफ साफ ही कह दिया है कि भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं है !
       शायद यही कारण है कि सभी देशों के मौसम वैज्ञानिकों को भ्रम भी लगभग एक जैसे ही हो रहे हैं !जलवायु परिवर्तन ,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीना ,लानीना आदि के विषय में भी सभी की सोच लगभग एक जैसी है इन विषयों में विश्व के अधिकाँश वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोग ही अपनी दलीलों के कारण भ्रमित हैं जिनके अभी तक कोई स्पष्ट एवं सर्व स्वीकार्य लक्षण नहीं बताए जा पा रहे हैं !
     इसी प्रकार से जनता की अपेक्षाएँ भी सभी देशों में लगभग एक जैसी हैं सभी चाहते हैं कि सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंप आदि के पूर्वानुमान आगे से आगे पता लगें ताकि प्राकृतिक आपदाओं से जनधन की हानि कम से कम हो बचाव कार्यों के लिए अधिक से अधिक समय मिल सके !कृषि कार्यों के लिए आवश्यक मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की दृष्टि से बिचार किया जाए तो वर्षा संबंधी पूर्वानुमान महीनों पहले पता लगने चाहिए क्योंकि किसानों को फसल योजना बनाने के लिए या उपज को संरक्षित करने के लिए वर्षा आदि होने के विषय में पूर्वानुमान बहुत पहले से पता होने चाहिए !
      दो चार दिन पहले पता लगने वाले वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों से कृषि और किसानों को कोई विशेष मदद नहीं मिल पाती है और न ही बाढ़ जैसी आपदाओं से सावधान रहने की दृष्टि से ही कोई विशेष मदद मिल पाती है !इसलिए मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ दीर्घकालिक समयावधि की होनी चाहिए ताकि जनता उनसे लाभ ले सके !
      मौसमविज्ञान की वैज्ञानिकता भी इसी में है कि वर्षा के लक्षण प्रकट होने से पूर्व ही वर्षा से संबंधित भविष्यवाणी कर दी जाए !तब तो वैज्ञानिक पूर्वानुमान कहे जा सकते हैं इसके अलावा आँधी तूफान वर्षा आदि के लक्षण यदि किसी भी रूप में प्रत्यक्ष दिखाई पड़ जाते हैं भले वो राडारों से ही क्यों न देखे जाएँ उसके बाद उनके संबंध में लगाया जाने वाला अनुमान  केवल अनुमान होता है उसे पूर्वानुमान नहीं माना जा सकता है !
     उदाहरण की दृष्टि से - कलकत्ते में उठे बादलों पर यदि पश्चिमी हवाओं का असर विशेष अधिक होता दिखे तो इस बात का अनुमान लगा लेना किसी के लिए भी आसान होता है कि चूँकि कलकत्ते में बादल घिरे हुए हैं और पश्चिमी हवाएँ तेजी से चल रही हैं इसलिए हवाओं के साथ बादल उड़कर अब कलकत्ते से पश्चिम दिशा में जाएँगे अतएव उस दिशा पड़ने वाले शहरों में वर्षा होने की संभावना बन सकती है !ऐसा ही सुदूर समुद्र आदि में मौसम संबंधी प्रकट हुए लक्षणों को प्रत्यक्ष देखकर उसके अनुसार भी मौसम संबंधी अनुमान तो लगाए जा सकते हैं किंतु ये पूर्वानुमान नहीं माने जा सकते हैं क्योंकि लक्षण प्रकट होने से पूर्व यदि अनुमान लगा लिए जाएँ तब तो पूर्वानुमान कहे जा सकते हैं अन्यथा नहीं !क्योंकि लक्षण प्रकट होने के बाद तो वे बादल हवाओं के आधीन होते हैं और हवाएँ स्वतंत्र होती हैं इसलिए वे कभी  भी अपना रुख किसी भी दिशा के लिए बदल सकती हैं !और बादलों वर्षा संबंधी लक्षणों को देखकर लगाया गया अनुमान गलत हो सकता है !
         मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई मजबूत आधार न होने के कारण  ही अनुमानों से ही काम चलाना पड़ता है !बादल  दिखाई पड़ें तो उनके आधार पर वर्षा संबंधी भविष्य वाणी कर दी जाती है !कहीं आँधी तूफान के लक्षण प्रकट दिखाई पड़ने पर आँधी तूफान आने की भविष्यवाणी करनी पड़ती है !भूकंप के समय धरती में कंपन होता देखकर 
अभी और भूकंप आने या झटके लगने की भविष्यवाणी कर दी जाती है !
     इसके अतिरिक्त जब जैसा मौसम बनता दिखाई पड़े है उसी से मिली जुली भविष्यवाणियाँ कर दिए जाने से सामान्य अनुमान सामने आया करते हैं किंतु पहली बात तो वो पूर्वानुमान नहीं होते हैं दूसरी बात उनका कोई स्थायित्व नहीं होता है तीसरी बात ये हर क्षण बदलने वाली परिस्थितियाँ हैं जिनमें हमेंशा कुछ न कुछ बदलाव होना स्वाभाविक है इसलिए इन बदलावों का डेटा संग्रह कर भी लिया जाए तो मौसमपूर्वानुमान से संबंधित अनुसंधानों में उनकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती है और न ही उनका कोई सार्थक उपयोग ही किया जाता है !इसके आधार पर तो केवल इतना ही बताया जा सकता है  कि अमुक वर्ष में गर्मी ने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा सर्दी ने उतने वर्षों का तोड़ा वर्षा ने इतने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा है !इसी प्रकार इतने सेंटीमीटर वारिश हुई !इस प्रकार से बीती हुई बातों की चर्चा करते रहने में मौसम संबंधी वैज्ञानिकता कहाँ है !ऐसी काल्पनिक बातों को सुनकर समाज इनका लाभ कैसे उठा सकती है समाजहित में इनकी उपयोगिता क्या है !
    ऐसे ही अक्सर देखा जाता है कि कहीं बाढ़ आने से पहले कहीं बादलों का जमघट देखकर 24 ,48 या अधिक से अधिक 72 घंटे वर्षा होने की भविष्यवाणी उन बादलों के रंग रूप एवं घनत्व के आधार पर कर दी जाती है !इसके बाद वर्षा रुक गई तो ठीक अन्यथा फिर दोबारा वही 24 ,48 या  72 घंटे और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है आगे भी यही कर्म चलने की गुंजाइस बनी रहती है !इस प्रकार से दो दो दिन आगे बढ़ाते जाने वाले वर्षा संबंधी अनुमान में इन्हें सुनकर जनता को ये आशा बनी रहती है कि वर्षा दो दिन बाद बंद हो जाएगी !इसलिए अभी बाढ़ का पानी चबूतरे तक चढ़ा है कल वर्षा बंद हो जाएगी तो उतर जाएगा !किंतु समस्या तब पैदा होती है जब मौसम बताने वाले लोग उसके आगे फिर दो दिन और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर देते हैं जिसे सुनकर लोग अपना सामन छतों पर रख लेते हैं किंतु वे दो दिन बीत जाने के बाद उसके आगे दो दिन की और भविष्यवाणी कर देते हैं इस प्रकार से ये सिल सिला चला करता है ! ऐसी परिस्थिति में वर्षा रुकने की आशा लगाए बैठे लोग बाढ़ में बहने लग जाते हैं ! ऐसी स्थिति में बाढ़ पीड़ित भी आशा में मारे  जाते हैं और बचाव कर्मियों पर भी अचानक जिम्मेदारी बहुत अधिक बढ़ जाती है !जिसे सकुशल निभा पाना उनके लिए बहुत कठिन होते देखा जाता है !
       इसलिए प्राकृतिक आपदाओं से समाज की सुरक्षा के लिए प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित दीर्घावधिक पूर्वानुमानों की आवश्यकता है !जहाँ तक बात अल्पावधिक अनुमानों की है उनमें तो मौसम संबंधी राडार या डेटा संग्रह के लिए सुपर कंप्यूटर जैसी उन्नत  वैज्ञानिक सुविधाओं का लाभ लिया जा सकता है !किंतु केवल डेटा संग्रह और राडार दर्शन जनित अनुभवों के बलपर मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान लगा पाना  संभव नहीं है इसीलिए बीते 13 वर्षों में लगाए गए दीर्घावधि पूर्वानुमानों में से आधे भी सच नहीं निकल पाए !ऐसी परिस्थिति में दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों के बिना मौसमपूर्वानुमानों के लक्ष्य की पूर्ति होनी संभव ही नहीं है !
       अक्सर देखा जाता है कि मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर जो बातें बोली जाती हैं उन शब्दों के दो दो अर्थ निकल रहे होते हैं !ऐसी भाषा बोलने से जब जैसा मौसम बनने लगता है वही भविष्यवाणी की गई थी ऐसा सिद्ध कर दिया जाता है! यदि कोई घटना भविष्यवाणी के बिल्कुल विरुद्ध घटित हो जाए तो ग्लोबलवार्मिंग जलवायु परिवर्तन आदि के नाम पर इसका सारा दोष मढ़ दिया जाता है !इसका मतलब  यह होता है कि हमने तो भविष्यवाणी सही की थी किंतु इन दोनों के कारण गलत हो गई ! इसके अतिरिक्त ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन जैसी बातों की मौसम के विषय में और कहीं कोई दूसरी भूमिका सिद्ध नहीं होती है ! मौसम संबंधी भविष्यवाणियों में विज्ञान के दर्शन भले ही न होते हों किंतु कला पूरी तरह हावी रहती है ! 
     भूकंपों की भविष्यवाणियों में कलाकारी नहीं चलती क्योंकि जिस दिन के लिए भूकंप की भविष्यवाणी की गई और भूकंप नहीं आया तो बात पकड़ जाने का भय रहता है इसलिए सभी देशों के भूकंप वैज्ञानिकों ने एक स्वर में कह दिया कि भूकंपों का पूर्वानुमान लगा पाना संभव नहीं है !आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि के विषय में गलत को सही करने का थोड़ा बहुत झोल बना  ही रहता है !इसलिए सभी देशों में ऐसी भविष्यवाणियाँ करते देखी सुनी जाती हैं !    
     ऐसी परिस्थिति में ये कहा जा सकता है मौसम विज्ञान तो है किंतु मौसम वैज्ञानिक नहीं हैं जो मौसम की प्रक्रिया को न केवल समझ पाए हों अपितु उसके विषय में कुछ मजबूत सिद्धांत स्थापित कर पाए हों !
      यही स्थिति भूकंपों के पूर्वानुमान के क्षेत्र में हैं कि भूकंपों के विषय में समझने के लिए भूकंपों का  विज्ञान भी अवश्य होगा किंतु  उस भूकंप विज्ञान की समझ रखने वाले लोग अभी नहीं हैं जो भूकंप आने के कारणों को सही सही परिभाषित कर सकें !और उसके आधार पर भूकंपों का पूर्वानुमान लगाकर उनकी सत्यता को  प्रमाणित  कर सके !
अल-नीनो  - 
   जलवायुपरिवर्तन - मौसमीभविष्यवक्ताओं का मत है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से भयंकर बारिश के साथ तूफान आने की दर बढ़ सकती है। 
    ग्लोबलवार्मिंग -
      ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है ‘पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन’ हैं !ग्लोबलवार्मिंग या वैश्विक तापमान बढ़ने का मतलब है कि पृथ्वी लगातार गर्म होती जा रही है। ऐसे विषयों पर रिसर्च करने का दावा करने वालों का कहना है कि पृथ्वी के तापमान में हो रही वृद्धि के परिणाम स्वरूप बारिश के तरीकों में बदलाव, हिमखण्डों और ग्लेशियरों के पिघलने, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि के रूप के सामने आ सकते हैं।इसके कारण आने वाले दिनों में सूखा बढ़ेगा, बाढ़ की घटनाएँ बढ़ेंगी ! 

    इस विषय में विशेषबात-जलवायुपरिवर्तन,ग्लोबलवार्मिंग,अलनीनो,लानीना इन चार नामों से मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जो परिकल्पनाएँ की गई हैं उनमें जलवायुपरिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग को तो निश्चित माना जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन तो हो ही रहा है और धरती का तापमान बढ़ रहा है इसलिए इसके कारण तूफानों के आने की आवृत्तियाँ बढ़ेंगी ही और सूखा बाढ़ आदि की घटनाओं के भी क्रमिक रूप से बढ़ते जाने की ही संभावना मानी जानी चाहिए !
    अलनीनो और लानीना नामक समुद्र में घटने वाली तापमान के घटने और बढ़ने से संबंधित घटनाएँ हैं इनका परिणाम भी अधिक वर्षा और बाढ, सूखा, वनाग्नि, तूफान या वर्षा आदि के रूप में इसका असर सामने आता है।ऐसा बताया जाता है !
    ऐसी परिस्थिति में ये कल्पनाएँ यदि केवल कल्पनाएँ मात्र हैं तब तो ये जिनकी हैं उन्हीं तक सीमित रहनी चाहिए और यदि इनका मौसम पर वास्तव में कोई असर पड़ता है तो इनके आधार पर मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा जो सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि की भविष्यवाणियाँ की जाती हैं वे जितने प्रतिशत सही घटित होती दिखें उतने प्रतिशत ही ऐसी परिकल्पनाओं में सच्चाई मानी जानी चाहिए अन्यथा नहीं अर्थात इन्हें कोरी कल्पनाओं की श्रेणी में रखा जाना चाहिए! आधार प्रमाण और परीक्षण की कसौटी पर कसे बिना कुछ लोगों की कल्पनाओं को विज्ञान कैसे माना जा सकता है!  
      इस प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण बात एक और है कि यदि मौसम भविष्यवक्ताओं को लगता है कि उनकी जलवायुपरिवर्तन, ग्लोबलवार्मिंग, अलनीनो, लानीना आदि कल्पनाओं में कुछ सच्चाई भी है तो ये सब अचानक बनने वाली परिस्थितियाँ नहीं हैं ये धीरे धीरे बनने में काफी समय ले जाती होंगी और काफी समय पहले से इनके लक्षण दिखाई पड़ने लगते होंगे ऐसी परिस्थिति में इनके आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ भी काफी पहले यदि कर दी जाएँ तो इसमें कठिनाई नहीं होनी चाहिए !इसलिए ऐसे लोग सप्ताहों महीनों पहले सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित भविष्यवाणियाँ सही और सटीक रूप से कर सकते हैं !
      अतएव आज पानी बरसेगा कल आँधी चलेगी परसों गर्मी बढ़ेगी आदि अस्पष्ट एवं ढुलमुल भविष्यवाणियों की अपेक्षा मौसम भविष्यवक्ताओं को चाहिए कि वे प्राकृतिक घटनाओं के घटने से कुछ सप्ताह पहले मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करके अलग बैठ जाएँ और उनके सही गलत होने का निष्पक्ष भाव से मूल्यांकन करें और उनसे प्राप्त अनुभवों का उपयोग अग्रिम भविष्यवाणियों में करें !इसके अतिरिक्त मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने के बाद भी बीच बीच में उछल कूद करते रहने से इस बात का निर्णय करना कठिन हो जाता है कि इन्होंने जो पहले कहा था वो सही था या जो आज कह रहे हैं वो सही है !ऐसे में भविष्यवाणियों के नाम पर परस्पर विरोधी बातें इतनी अधिक हो जाती हैं कि कुछ तो होगा ही और जो होगा उसे ही भविष्यवाणी के रूप में मानकर बाकी सबको भुला दिया जाएगा !ये तात्कालिक सुख दे सकता है किंतु दीर्घकालिक सम्मान और प्रतिष्ठा दोनों के लिए ही हानिकारक होगा !
      इसलिए मौसम भविष्यवक्ताओं का मर्यादित कर्तव्य यही है कि मौसम पूर्वानुमान घटनाओं के घटित होने से बहुत पहले उपलब्ध करवा दिए जाने चाहिए जबकि ऐसा होते प्रायः नहीं देखा जाता है और यदि करने का प्रयास किया भी गया तो उसमें आधी  से अधिक भविष्यवाणियाँ गलत निकलती देखी जाती हैं !इसका दुष्प्रभाव यह होता है कि जो तीरतुक्के सही निकल भी सकते हैं उन पर भी विश्वास नहीं हो पाता है !
विश्वसनीयता का संकट - मौसम भविष्यवाणियों के बिषय में सबसे बड़ी समस्या तब खड़ी होती है जब जिस प्राकृतिक घटना या आपदा के घटित होने से पहले मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भविष्यवाणी के रूप में कुछ भी न बताया गया हो और घटना घटित होने के बाद उसमें जब भारी जन धन हानि हो चुकी हो ऐसे  समय जब मौसम भविष्यवक्ताओं  से पूछा जा रहा हो कि इस विषय का पूर्वानुमान लगाने में आपसे चूक कहाँ हुई !
       ऐसी परिस्थिति  में अपने द्वारा पूर्व में बोली गई परस्पर विरोधी बातों में से तत्कालीन घटित परिस्थिति के अनुकूल कोई एक बात पकड़ कर बैठ जाना और कहना कि मैंने तो इसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी ये मौसम विज्ञान के आस्तित्व के लिए आत्मघाती सिद्ध हो सकता है !अभी हाल में मौसमविभाग की ओर से 3 अगस्त 2018 को अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा होने की भविष्य वाणी की गई थी किंतु 7   अगस्त 2018 को केरल में भीषण वर्षात शुरू हुई जो 14 अगस्त तक चली जिसमें केरल  डूबने उतराने लगा !दक्षिण भारत में ऐसी भीषण बारिश की कोई  भविष्यवाणी की गई हो ऐसा मीडिया में कहीं नहीं दिखाई सुनाई पड़ा !जनता को इस विषय में कुछ पता नहीं लगा !बाढ़पीड़ित केरल के मुख्यमंत्री ने कहा कि मुझे इस  विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई !इसके बाद भी मौसमभविष्यवक्ताओं का यह कहना कि नहीं मैंने तो पूर्वानुमान उपलब्ध करवा दिए थे गलत था !
     इसके बाद जब चारों ओर हमले होने लगे तब मौसम प्रमुख का ये स्वीकार करना आश्चर्यजनक है कि "वास्तव में केरल में हुई अचानक बारिश अप्रत्याशित थी और ऐसा होने का कारण जलवायु परिवर्तन था !"इस प्रकार की बातें एक विभाग ,एक चिंतन अध्ययन अनुसंधान आदि को संदेह के घेरे में लाकर खड़ा कर देती हैं !
     इसी प्रकार से 2018 सन के मई जून में आँधी तूफ़ान की कई बड़ी घटनाएँ घटित हुईं जिनके विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई अग्रिम अनुमान नहीं बताया गया था !जब घटनाएँ घटित होने लगीं जनधन की हानि भी काफी मात्रा में होने लगी तब मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वाराआँधी तूफ़ान होने की भविष्यवाणियाँ भी की जाने लगीं जिनमें आधी से अधिक गलत निकल गईं !7-8मई को मौसम भविष्य वक्ताओं ने बताया कि भीषण तूफ़ान आएगा इसलिए भयभीत होकर कुछ प्रदेशों में सरकारों के द्वारा सतर्कता बरतते हुए स्कूल कालेज बंद कर दिए गए ! जबकि उस दिन हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसी घटनाएँ पूरे समय में घटित हुईं और इनका पूर्वानुमान देने में भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती चली गईं !छोटी मोटी ऐसी  घटनाएँ तो ऐसी अक्सर घटित होती रहती हैं जिन पर लोगों का ध्यान नहीं जाता है किंतु बड़ी घटनाओं के विषय में तो सभी चिंतित होते हैं इसलिए उधर सबका ध्यान जाता है !ऐसे समय में सत्य ही स्वीकार्य होता है !
       इस समय घटित भीषण आँधी तूफ़ान की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान तो दिए नहीं गए जो दिए भी गए उनमें भी आधे से अधिक गलत निकल गए !इसके बाद इसके विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा दो बातें कही गईं !पहली तो "इतने आँधी तूफ़ान आने का कारण ग्लोबल वार्मिंग थी दूसरी बात इस विषय में रिसर्च की जाएगी !"
     यदि इनका कारण ग्लोबलवार्मिंग होती तब तो ऐसी घटनाएँ हर वर्ष घटित होनी चाहिए और क्रमशः बढ़ती जानी चाहिए किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है !दूसरी बात इसका कारण यदि  ग्लोबलवार्मिंग होती ऐसी घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान तो बहुत पहले लगा लिया जाना चाहिए था क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग कोई अचानक  घटना तो है नहीं ये तो क्रमशः बढ़ रही है !इसलिए इससे संबंधित पूर्वानुमानों का निश्चय भी तो और अधिक दृढ़ता पूर्वक किया जाना चाहिए !          
      सोलह जून 2013 को  केदारनाथ जी में आए सैलाव के विषय में भी यही हुआ था ! उस आपदा में 4,400 से अधिक लोग मारे गए या लापता हो गए। 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया। इनमें 991 स्थानीय लोग अलग-अलग जगहों पर मारे गए। 11,091 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बह गए या मलबे में दबकर मर गए। ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई। 2,141 भवनों का नामों-निशान मिट गया। 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल ध्वस्त हो गए। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए।मौसम विभाग के द्वारा इस विषय में भी कोई स्पष्ट पूर्वानुमान  नहीं  बताया गया था !
     सन 2016 के मई जून में आधे भारत में भीषण गर्मी हुई और आग लगने की हजारों घटनाएँ घटित हुईं यहाँ तक कि बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाएँ और हवन  न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ट्रेन से पानी की सप्लाई करनी पड़ी थी !     ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !इस वर्ष ऐसा होगा इस विषय में मौसम विभाग के द्वारा कोई पूर्वानुमान देकर सहयोग नहीं किया गया दूसरी बात ऐसा होने के पीछे कारण क्या थे इस विषय में भी कोई संतोष जनक उत्तर नहीं दिया गया !
      प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !
   इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि मौसमविभाग ने अपनी भूमिका का निर्वाह किस प्रकार से किया !
   प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाइ गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम विभाग के द्वारा इस विषय में भी कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
      भूकंपों के विषय में -
        किसी भी क्षेत्र में जब अचानक भूकंप आ जाते हैं तो वहाँ पर जन-धन की हानि भारी मात्रा में हो जाती है इसलिए ये आवश्यक समझा गया कि यदि भूकंपों के आने का पूर्वानुमान किया जा सके तो ऐसी भूकंप संबंधी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाकर उस क्षेत्रवासियों को सतर्क और स्थानांतरित किया जा सकता है जिससे भूकंप आने के कारण होने वाली संभावित जनधन की हानि को घटाया जा सके !
    इस उद्देश्य से भूकंप संबंधी अनुसंधान करने वालों पर भरोसा किया गया !उनकी सैलरी सुख सुविधाओं और अनुसंधानों के लिए उनके द्वारा बताए गए आवश्यक संसाधनों को उपलब्ध करवाया गया !इन व्यवस्थाओं को जुटाने में देशवासियों की खून पसीने की गाढ़ी कमाई से टैक्स रूप में प्राप्त धन ऐसे अनुसंधानों पर खर्च किया गया ! इसके बदले में अनुसंधानों के परिणाम स्वरूप जनता को क्या मिला ?अभी भी भूकंप आते हैं तो जनधन की हानि जो होनी है वो तो होती ही रहती है !भूकंप वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक इस बात को भी नहीं बताया जा सका है कि भूकंप संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव है भी या नहीं ! 
      भूकंपों के अनुसंधानों के नाम पर उन लोगों ने अभी तक केवल इतना बताया है कि "पृथ्वी बारह टैक्टोनिक प्लेटों पर पृथ्वी स्थित है जिसके नीचे तरल पदार्थ लावा के रूप में है। ये प्लेटें लावे पर तैर रही होती हैं। इनके टकराने से ही भूकंप आते हैं "दूसरी बात "धरती के अंदर भरी गैसों का दबाव भूकंपों के आने का कारण बताते हैं "  भगवान करे उनकी ऐसी काल्पनिक कहानियों में कुछ सच्चाई भी हो किन्तु पूर्वानुमानों की कसौटी पर कसे बिना इन्हें सच कैसे मान लिया जाए !
       भूकंप जोन निर्धारित करने की प्लेटीय कल्पनाएँ  भी तो मनगढंत ही हैं !जो परिवर्तन शील हैं !महाराष्ट्र कोयना क्षेत्र में पहले भूकंप कम आते थे किंतु 1967 के बाद से भूकंप उस क्षेत्र में भी आने लगे !अब टैक्टोनिक प्लेटों वाली कहानी का क्या हुआ ?इस पर कहा गया कोयना झील में पानी भरे जाने से दबाव बढ़ा इसलिए भूकंप आने लगे !इस पर प्रश्न उठता है कि अन्य जगहों पर जहाँ झीलें बनी हैं वहाँ ऐसा प्रेशर क्यों नहीं दिखाई दिया !इस पर कहा गया वहाँ दबाव बन रहा है भविष्य में कभी भी भूकंप आ सकता है किंतु भविष्य में वहीँ क्यों वो तो कहीं भी आ सकता है जहाँ झीलें नहीं बनी हैं वहाँ भी आ सकता है !कुलमिलाकर विशुद्ध वैज्ञानिक विषयों पर ऐसी कथा कहानियों से मन बहलाना पड़ रहा है !         ऐसे ही कुछ वैज्ञानिक लोग अपने रिसर्च के हवाले से कुछ वर्षों में एक बार बोल दिया करते हैं कि हिमालय में बहुत तगड़ा प्रेशर बन रहा है जिससे बहुत भयंकर भूकंप आएगा !फिर साल दो साल शांत रहते हैं फिर बोल देते हैं !सोचते होंगे कभी तो आएगा ही जब आ जाएगा तब अपनी बाकी भविष्यवाणियाँ भूलकर केवल वे ही पकड़ कर बैठ जाएँगे हो सकता है इस कला से वो वैज्ञानिक सिद्ध हो भी जाएँ !किंतु इससे क्या जनता के उद्देश्यों की पूर्ति हो पाएगी !
       इतना समय बीतने के बाद इतना धन खर्च होने के बाद भूकंपों के रिसर्च के नाम पर देश वासियों को अभी तक केवल ये दो लाइनें मिलीं हैं जिनसे भूकंपों के अनुसंधान का उद्देश्य किसी भी कीमत पर सफल होते नहीं दिखता है और न ही भूकंपों से होने वाली जन धन की हानि को घटाने में ही ऐसे भूकंपीय अनुसंधान कोई मदद पहुँचा पाने की स्थिति में हैं !    
भारतीय मौसम विभाग अपने लक्ष्य को हासिल करने में कितना सफल रहा ?

    भारतीय मौसम विभाग अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में अभी तक आशिंक तौर पर भी सफल नहीं हो पाया है ! बताया जाता है कि 1864 में अचानक आए चक्रवात के कारण कलकत्ता में जनधन की भारी क्षति हुई  थी और 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था जिससे काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था !इसलिए ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए आवश्यक समझा गया और मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई थी इस समय सन  2019 चल रहा है।मौसम पूर्वानुमान के विषय में लगभग 144 वर्ष बीत जाने के बाद प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा लेने में भारत की क्षमता में कितना विकास हुआ है !इसकी समीक्षा होनी चाहिए !
     सर्दी गर्मी वर्षात आदि तीन ऋतुएँ होती हैं उन ऋतुओं में सर्दी गर्मी वर्षात आदि होगी ही कभी कुछ कम तो कभी कुछ अधिक हो सकती है !इनका क्रम भी निश्चित है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी ये सब बातें सभी को पता है !इसलिए इन विषयों में किसी प्रकार के अनुसंधान की कोई आवश्यकता है भी नहीं !
     कितने सेंटीमीटर कहाँ बारिश हुई या किस महीने में वर्षा ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा या किस वर्ष में मानसून कितने कितने दिन आगे या पीछे आया !या किस वर्ष कितनी तारीख तक कहाँ मानसूनी बारिश होती रही तथा कहाँ किस वर्ष कम बारिश हुई या कहाँ अधिक !उत्तरी विक्षोभ से वर्षा हुई या पश्चिमी विक्षोभ से जनता को ऐसी सभी बीती बातों से कभी कोई लेना रहा नहीं और न ही जनता के जीवन में ऐसी काल्पनिक बातों की कोई उपयोगिता ही है !इसलिए जनता का ध्यान इधर जाता नहीं है लोग बकते हैं तो बकते रहें उनके पास समय है जनता ऐसे आँकड़ों का संग्रह करके भी क्या करे !
    इनके विषय में अनुसन्धान करने वाले बड़े विश्वास से कहते सुने जाते हैं कि सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफान आदि की घटनाएँ घटित होने में इनकी बहुत प्रभावी भूमिका है !मौसम पर इनका असर पड़ता है या मौसम की लगाम इन्हीं के हाथों में है !वर्तमान समय में मौसम संबंधी छोटी बड़ी सभी घटनाओं के आगे पीछे  इनमें से किसी शब्द को लगा लेने से इसकी प्रमाणिकता बढ़ जाती है !ऐसी मान्यता है !
     जनता इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहती है कि जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसी कोई चीज है भी या नहीं !दक्षिणी विक्षोभ या पश्चिमी विक्षोभ से जनता का क्या लेना देना ! ऐसी कल्पनाओं में सच्चाई कितनी है ?या कुछ लोगों ने अपना समय पास करने के लिए ऐसी कुछ कल्पनाएँ कर रखी हैं जनता इस विषय की जड़ में नहीं जाना चाहती है !ऐसी कल्पनाओं में सच क्या है उसे खोजने के लिए जनता के पास न साधन हैं न समय है न आवश्यकता है  और  न ही इसकी उनके जीवन में कोई उपयोगिता है ! इसलिए जनता का ध्यान भटकाने के लिए मौसम भविष्यवाणियाँ करने वालों को चाहिए कि वे जनता को ऐसी बातों में न उलझाएँ जिनसे जनता का कोई लेना देना ही नहीं है !वैसे भी ऐसे विषयों में माथा पच्ची करने के लिए सरकारों ने विभाग बना रखे हैं उसमें अनुसंधान करने के लिए लोग नियुक्त हैं जिनकी सैलरी से लेकर समस्त सुख सुविधाओं का खर्च सरकारें उठाती हैं !उनके मौसम संबंधी अनुसंधानों पर लगने वाला संपूर्ण खर्च भी सरकारें उठाती हैं !सारे संसाधन सरकारें देती हैं !इस पर खर्च होने वाला संपूर्ण धन जनता का होता है जो टैक्स रूप में सरकारों को जनता के द्वारा दिया जाता है !जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई सरकारें मौसम संबंधी जिन विभागों या लोगों पर खर्च करती हैं इतनी जिम्मेदारी उनकी भी बनती है कि वे जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसी अनावश्यक बातें बोलकर जनता का समय बर्बाद न करें और न ही जनता को ऐसे आँकड़े उपलब्ध कराने की ही आवश्यकता है !
     कुलमिलाकर  आंकड़ों से जनता को कुछ लेना देना ही नहीं होता है और ये सब जनता के किसी काम आते भी नहीं हैं !जनता को तो भविष्य में कब कहाँ कैसी बारिश होगी ये जानना होता है और ये भी कुछ महीने पहले से क्योंकि कृषि कार्यों में फसल योजना बनाने के लिए किसानों को वर्षा संबंधी जानकारी काफी पहले से आवश्यक होती है !वर्षा संबंधी पूर्वानुमान की सर्वाधिक आवश्यकता ही कृषि कार्यों के लिए होती है ! दो तीन दिन पहले के लिए बताए जाने वाले पूर्वानुमान कृषि कार्यों के लिए विशेष लाभप्रद नहीं हो पाते हैं !वो भी सही कम ही निकल पाते हैं !
       मौसम के विषय में लगाए जाने वाले वर्षा संबंधी दीर्घकालिक पूर्वानुमान अभी तक प्रायः गलत होते हैं !24,48 और 72 घंटे पहले लगाए जाने वाले वर्षा संबंधी पूर्वानुमान सही और गलत दोनों होते हैं !इसलिए पूर्ण विश्वसनीय वे भी नहीं होते हैं  अपितु इनसे एक बड़ा नुक्सान होते देखा जाता है !जब वर्षा होने लगती है तब बताया जाता है अभी दो दिन और वर्षा होगी उसके दो दिन बाद बताया जाता है कि अभी दो दिन और वर्षा होगी ऐसे करते करते सप्ताह दो सप्ताह गुजार लिए जाते हैं !तब तक वो क्षेत्र भीषण बाढ़ का शिकार हो चुका होता है !
दिसंबर 2015 में मद्रास में आई भीषण बाढ़ हो या फिर अगस्त 2018 में केरल में आई भीषण बाढ़ हो !ऐसी परिस्थिति में इन तीर तुक्कों से नुक्सान अधिक हो जाता है लोगों को आशा बनी रहती है कि 2 दिन बाद वर्षा बंद हो जाएगी फिर दो दिन बाद वही आशा !ऐसी परिस्थिति में वहाँ रहने वालों से लेकर बचाव कार्यों तक की योजनाओं का उतना मौसम विभाग की अच्छा उपयोग नहीं हो पाता  है जितना अच्छा हो सकता था !
         जनता ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं के अनुसंधानों पर इतना सारा धन केवल इसलिए खर्च करती है कि ऐसी सारी मौसमी परिकल्पनाएँ आंकड़े आदि उनके शोध के अंग हैं इसलिए वे इन्हें अपने पास ही रखें !जनता को केवल इतना साफ साफ बता दें कि किस तारीख को पानी बरसेगा किस तारीख को आँधी तूफान आएगा कब सूखा पड़ेगा !या कब किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कहाँ घटित होंगी !यदि इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ जनता को उपलब्ध करा देंगे तो जनता अपने बचाव के विषय में अपने स्तर से उपाय तो करेगी सरकारें भी उनकी मदद कर सकेंगी !क्योंकि सरकारों को भी इसके लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा !
     भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं ये आंकड़ों को जुटाने की दृष्टि से कम समय तो नहीं होता है !अनुसंधान के लिए आवश्यक अनुभव संचित करने के लिए भी ये कम समय तो नहीं है ! इतना सब होने के बाद भी क्या कारण है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में अभी तक वो सटीकता नहीं आ पाई है जिस अपेक्षा से सरकारें ऐसे विभागों वैज्ञानिकों की ओर ताकती रहती हैं !
     वस्तुतः मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा मौसम के विषय में अक्सर कुछ न कुछ भविष्यवाणियाँ की जाती रहती हैं ये उनका काम है !किंतु वे सही होती हैं या गलत इसका परिक्षण करने का न जनता के पास समय है और न ही कोई आवश्यकता !ये छोटी मोटी  घटनाएँ होती हैं !किंतु जब कोई बड़ी प्राकृतिक घटना घटती है जिससे जनधन की हानि काफी मात्रा में हो जाती है तब जनता का ध्यान मौसम भविष्यवक्ताओं की ओर जाता है और जब पता लगता है कि उन्होंने इस घटना के विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की थी और घटना घटित होने के बाद अब जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसे दाँव खेले जा रहे हैं उस दिन जनता को बहुत कष्ट होता है !अभी हाल में ही घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं के विषय में चिंतन करने से ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जते हैं !
         सन 2016 के मई जून में आधे भारत में भीषण गर्मी हुई और आग लगने की हजारों घटनाएँ घटित हुईं यहाँ तक कि बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाएँ और हवन  न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ट्रेन से पानी की सप्लाई करनी पड़ी थी !     ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !जनता जानना चाहती है कि इसीवर्ष ऐसा क्यों हुआ मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इसका कोई संतोष जनक उत्तर नहीं दिया जा सका !इसीप्रकार से सन 2013 में केदारनाथ जी में सैलाव आया उसका न तो पूर्वानुमान दिया गया और न ही कारण बताए गए !2018 के मई जून में आए भीषण आँधी तूफान आए थे !अगस्त 2018 में ही दक्षिण भारत में भीषण वर्षा होने के कारण भयानक बाढ़ आई थी किंतु इनके विषय में भी न कोई पूर्व अनुमान दिए गए थे और न ही ऐसा होने के पीछे के वास्तविक एवं विश्वसनीय कारण ही बताए गए !
       ऐसी परिस्थिति में भारतीय मौसमविज्ञान विभाग बाईट 144 अपने लक्ष्य को हासिल करने में कितना सफल हो पाया एवं मौसम भविष्य वक्ताओं के द्वारा गढ़ी गई जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसी कहानियों में कितनी सच्चाई है ये स्वयं में एक बड़े अनुसंधान का विषय है !
  मौसमविज्ञान का विज्ञान सिद्ध होना  अभी बाकी है !
       जीवन में कोई भी व्यक्ति जब किसी काम को प्रारंभ करता है तो सबसे पहले लक्ष्य निर्धारित करता है कि उसे करना क्या है और इसके बाद प्रयास प्रारंभ कर देता है इसके बाद समय समय पर परीक्षण करता रहता है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं क्या वे सही दिशा में जा रहे हैं !यदि लक्ष्य प्रयास और परिणाम में संतोष जनक दिखाई पड़ते हैं तो उस काम को आगे बढ़ाया जाता है अन्यथा बीच में ही रुकने में बुद्धिमत्ता मानी जाती है !क्योंकि अनुसंधानात्मक प्रयासों में समय तो लगता ही है और धन भी लगता है !
     इसी प्रकार से कोई भी काम करवाने के लिए जो धन समाज खर्च करता है उसमें काम करने वाले की जवाबदेही भी धन खर्च करने वाले के प्रति होती है !जनता सरकारों को टैक्स रूप में जो धन देती है वो अपने विकास के लिए देती है सरकार वो धन जहाँ कहीं खर्च करती है उससे जनता को क्या मिल पा  रहा है इसका परीक्षण करने की जिम्मेदारी सरकारों की भी होनी चाहिए !
       किसी भी अनुसंधान के लिए अनुसंधान कर्ताओं को जब सही दिशा मिल जाती है तो वो अनुसंधान बोझ नहीं रह जाता है अपितु अनुसंधान का परिणाम प्रयास करने वाले को प्रसन्नता निर्भीकता सुख और संतोष प्रदान करने लगता है देखने सुनने वालों को भी ऐसे सफलता गर्भित प्रयासों की सुगंध आने लग जाती है !उन्हें भी अच्छा लगने लगता है !
      इसमें संदेह नहीं कि विज्ञान के वर्तमान स्वरूप से समाज बहुत लाभान्वित हुआ है विज्ञान के द्वारा कई क्षेत्रों में जीवन को बहुत आसान बना लिया गया है !चिकित्सा आदि क्षेत्रों में विज्ञान ने महत्वपूर्ण क्रांति पैदा कर दी है !असाध्य से असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए चिकित्सक दिन रात जी जान से लगे हुए हैं उनके प्रयासों के परिणाम दिखाई भी पड़ते हैं समाज उनसे लाभान्वित भी हो रहा है !इसलिए चिकित्सा विज्ञान जैसी पारदर्शिता सभी क्षेत्रों में होनी चाहिए !पूर्ण परिणाम देने वाली विधाओं पर गर्व होना स्वाभाविक ही है !इसलिए चिकित्सा को विज्ञान और चिकित्सकों को वैज्ञानिक मानने में किसी को कोई हिचक नहीं होती है !
    इसी कसौटी पर यदि भूकंपविज्ञान जैसे विषयों को कसा जाए तो इसमें अभी तक विज्ञान जैसा कुछ मिला नहीं इस पर अनुसंधान करने वालों के द्वारा अभी तक जो  गैसों के दबाव या प्लेटों के टकराने की कहानियाँ गढ़ी गई हैं उन पर विश्वास करना तभी संभव है जब उनके आधार पर भूकंपों के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान सही एवं सटीक सिद्ध हों !ऐसा होने से पहले इन कहानियों को विज्ञान मान लेना स्वयं विज्ञान के साथ भी न्याय नहीं होगा !ऐसी संदिग्ध परिस्थिति में भूकंप के विषय में अनुसंधान करने वालों को वैज्ञानिक मान लेना उन वैज्ञानिकों के साथ अन्याय है जिन्होंने  अपने  अपने क्षेत्र में अनुसंधानात्मक प्रयास पूर्वक लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता पाई है !उनकी बातों विचारों प्रयासों परिणामों में कोई काल्पनिक कथा कहानियाँ नहीं हैं अपितु वहाँ तो सच्चाई समर्पित अनेकों प्रमाण मिल जाते हैं !
     इसी प्रकार से मौसमविज्ञान  में  यदि विज्ञान की खोज की जाए तो अभी तक विज्ञान जैसा कुछ भी नहीं मिला है !ग्लोबलवार्मिंग,जलवायु परिवर्तन ,अलनीनों ,लानीना, उत्तरी विक्षोभ, पश्चिमी विक्षोभ जैसे काल्पनिक दो चार शब्दों के अतिरिक्त और कुछ भी तो नहीं मिला है ऐसे शब्दों का भी कोई आस्तित्व नहीं है !जब तक इनके आधार पर लगाए जाने वाले मौसमसंबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक सिद्ध नहीं होते तब तक ऐसे काल्पनिक विचारों को विज्ञान सम्मत कैसे माना जा सकता है !इसलिए इससे सम्बंधित लोगों का भी वैज्ञानिक सिद्ध होना अभी तक बाकी है !
     विशेष बात ये है कि समाज में विज्ञान की बहुत बड़ी साख है विज्ञान शब्द सुनते ही लोगों को भरोसा हो जाता है कि इसमें वही कहा या माना जाता है जो प्रत्यक्ष करके देखा जा चुका होता है या जिसे समाज के सामने प्रत्यक्ष सिद्ध किया जा सकता है !इसीलिए विज्ञान का सम्मान अभी तक बना हुआ है !
     मौसमविज्ञान और भूकंपविज्ञान आदि को भी विज्ञान की श्रेणी में मानकर ही ऐसे लोगों से भी इसी प्रकार की बातों की अपेक्षा है!इसलिए इनके द्वारा कही गई मौसम एवं भूकंप से संबंधित प्रत्येक बात को सरकार ,मीडिया एवं जनता प्रमाणित मानती है !अतएव जो मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ वैज्ञानिकों के द्वारा की जाएँ वो प्रमाणित निकलनी भी चाहिए यदि कुछ भविष्यवाणियाँ गलत निकलें भी तो उनके द्वारा जो कारण बताए जाएँ वे विश्वसनीय होने चाहिए !मंदिरों के पुजारियों की तरह मौसमी  भविष्यवाणियाँ  ढुलमुल और दो अर्थों वाली नहीं होनी चाहिए !ऐसी बातें धर्म के क्षेत्र में अक्सर बोली और सुनी जाती हैं इसीलिए शिक्षित वर्ग में कुछ लोग उसे अंधविश्वास मानने लगे हैं !इसलिए कम से कम विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे प्रयोग नहीं किए जाने चाहिए !न जाने क्यों मौसमी  भविष्यवाणियों में विज्ञान जैसी दृढ़ता नहीं दिखाई देती है !
      सरकारों में सम्मिलित राजनैतिक लोग हों या सरकारी विभागों में जिम्मेदारी निभा रहे लोग ये बात उन्हें  भी याद रखनी चाहिए कि उन्हें मिलने वाली सैलरी से लेकर संपूर्ण सुख सुविधाओं का खर्च देश की जनता उठाती है इसके पीछे जनता का कुछ स्वार्थ होता है जिसकी पूर्ति करना उन लोगों  का दायित्व होता है जो जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से सैलरी आदि रूप में प्राप्त धन का उपभोग करते हैं !विशेष कर वैज्ञानिक अनुसंधानों में तो अनुसंधानों के संसाधनों में लगने वाला खर्च भी जनता उठाती है !इसलिए आवश्यक है कि ऐसे अनुसंधानों से भी जनता को भी कुछ तो मिलना चाहिए और किन्हीं परिस्थितियों में यदि अनुसंधानकर्ता  अपने प्रयासों में असफल होता है तो भी जनता को सच्चाई तो बताई जानी चाहिए!
               प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान पता न लगने से  हुआ है अधिक नुकसान !
      वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि के लिए भविष्यवाणी करने वाले लोगों के द्वारा की गई मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत होते देखी जाती हैं जिसके कारण मौसमी भविष्यवक्ताओं को समाज की आलोचनाएँ उपहास आदि सहने  पड़ते रहे हैं !इसलिए जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग जैसे शब्दों की परिकल्पना की गई है जिनका समय समय पर उपयोग किया जाता है !मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर जो भी तीर तुक्के लगाए जाते हैं उनमें से जितने सही निकल जाते हैं उन्हें भविष्यवाणी मान लिया जाता है और जो गलत निकल जाते हैं उनके लिए जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग  घटनाओं  को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !
जलवायु परिवर्तन के लक्षण -  
    बताया जाता है कि पिघलते ग्लेशियर, दहकती ग्रीष्म, दरकती धरती, उफनते समुद्र,फटते बादल घटते जंगल  आदि जलवायु परिवर्तन के लक्षण हैं !इसके कारण गिनाते हुए बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तन प्रकृति के अंधाधुंध दोहन का परिणाम है प्रकृति के अनैतिक और अनुचित दोहन से पृथ्वी की जलवायु पर निरंतर दबाव बढ़ता जा रहा है और यही कारण है विश्व में चक्रवातों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है।
     वैज्ञानिकों का दावा है कि जलवायु परिवर्तन के कारण उष्णकटिबंधीय महासागरों का तापमान बढ़ने से सदी के अंत में बारिश के साथ भयंकर बारिश और तूफान आने की दर बढ़ सकती है।वैज्ञानिकों का कहना है कि बहुत घबराने की जरूरत इसलिए नहीं है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के खतरों से बचने के उपाय भी किए जा रहे हैं।" 
    ग्लोबलवार्मिंग- 
     ग्लोबलवार्मिंग का मतलब है पृथ्वी का तापमान बढ़ना !"धरती गरमाने के लिये ग्रीन हाउस गैसें उत्तरदायी बताई जाती हैं ! इन गैसों में कार्बन डाइआक्साईड, क्लोरोफ्लोरो कार्बन ( सी.एफ.सी.), नाईट्रिक ऑक्साइड व मीथेन प्रमुख हैं। सूर्य की किरणें जब पृथ्वी पर पहुँचती हैं तो अधिकाँश किरणें धरती स्वयं सोख लेती है और शेष किरणों को ग्रीन हाउस गैस सतह से कुछ ऊँचाई पर बंदी बना लेती हैं।जिससे पृथ्वी का तापमान बढ़ जाता है।वायुमंडल में लगभग 15 से 25 किलोमीटर की दूरी पर समताप मंडल में इन गैसों के अणु ओजोन से ऑक्सीजन के परमाणु छीन लेते हैं और ओजोन परत में छेद कर देते हैं जिससे सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणें लोगों को झुलसाने लगती हैं। विश्व स्तर पर सुनिश्चित किया जा चुका है कि सी.एफ.सी. से निकलने वाला क्लोरीन का एक परमाणु शृंखला अभिक्रिया के परिणामस्वरूप ओजोन के 10000 परमाणुओं को नष्ट कर देता है।"
      इसी विषय में दूसरी जगह ये भी पढ़ने को मिला -"वायुमण्डलीय तापमान में बढ़ रहे असंतुलन का खामियाजा मनुष्य ही नहीं पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी भुगत रहे हैं। पशुओं और पेड़-पौधेां की 11000 प्रजातियाँ या तो समाप्त हो चुकी हैं या समाप्त होने के कगार पर पहुँच गयी हैं। प्रतिवर्ष ग्लोबल वार्मिंग में 15 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो जाता है।
    ‘वर्ल्ड वॉच इंस्टीट्यूट’ की एक रिपोर्ट के अनुसार धरती का तापमान लगातार बढ़ने से समुद्र का जलस्तर धीरे-धीरे ऊँचा उठ रहा है। पिछले 50 वर्षों में अंटार्कटिक प्रायद्वीप का 8000 वर्ग किलोमीटर का बर्फ का क्षेत्रफल पिघलकर पानी बन चुका है। पिछले 100 वर्षों के दौरान समुद्र का जलस्तर लगभग 18 सेंटीमीटर ऊँचा उठा है। इस समय यह स्तर प्रतिवर्ष 0.1 से 0.3 सेंटीमीटर के हिसाब से बढ़ रहा है। समुद्र जलस्तर यदि इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो अगले 100 वर्षों में दुनिया के 50 प्रतिशत समुद्रतटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।
  पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह बढ़ता रहा तो भारत में बर्फ पिघलने के कारण गोवा के आस-पास समुद्र का जलस्तर 46 से 58 सेमी, तक बढ़ जाएगा। परिणामस्वरूप गोवा और आंध्रप्रदेश के समुद्र के किनारे के 5 से 10 प्रतिशत क्षेत्र डूब जायेंगे।
    समस्त विश्व में वर्ष 1998 को सबसे गर्म एवं वर्ष 2000 को द्वितीय गर्म वर्ष आँका गया है। पश्चिमी अमेरिका की वर्ष 2002 की आग पिछले 50 वर्षों में किसी भी वनक्षेत्र में लगी आग से ज्यादा भयंकर थी। बढ़ते तापमान के चलते सात मिलियन एकड़ का वन क्षेत्र आग में झुलस गया।
     आज हमारी धरती तापयुग के जिस मुहाने पर खड़ी है, उस विभीषिका का अनुमान काफी पहले से ही किया जाने लगा था। इस तरह की आशंका सर्वप्रथम बीसवीं सदी के प्रारंभ में आर्हीनियस एवं थामस सी. चेम्बरलीन नामक दो वैज्ञानिकों ने की थी। किन्तु दुर्भाग्यवश इसका अध्ययन 1958 से ही शुरू हो पाया। तब से कार्बन डाइऑक्साइड की सघनता को विधिवत रिकॉर्ड रखा जाने लगा। भूमंडल के गरमाने के ठोस सबूत 1988 से मिलने शुरू हुए। नासा के गोडार्ड इंस्टीट्यूट ऑफ स्पेस स्टीज के जेम्स ई.हेन्सन ने 1960 से लेकर 20वीं सदी के अन्त तक के आंकड़ों से निष्कर्ष निकाला है कि इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।"
     'इन दोनों लेखों में मुझे जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात लगी वो ये कि 20 वीं सदी के प्रारंभ में ग्लोबलवार्मिंग की आशंका हुई 1958 ईस्वी में इसके विषय में अध्ययन प्रारंभ हो पाया तब से कार्बन डाइऑक्साइड की सघनता को विधिवत रिकॉर्ड रखा जाने लगा किंतु भूमंडल के गरमाने के ठोस सबूत 1988 से मिलने शुरू हुए।जिसके आधार पर 1960 से लेकर 20वीं सदी के अन्त तक के आंकड़ों से निष्कर्ष निकाल लिया गया कि इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।"
    इसके आधार पर ये निष्कर्ष निकाल लिया गया कि "धरती का तापमान लगातार बढ़ने से समुद्र का जलस्तर धीरे-धीरे ऊँचा उठ रहा है। पिछले 50 वर्षों में अंटार्कटिक प्रायद्वीप का 8000 वर्ग किलोमीटर का बर्फ का क्षेत्रफल पिघलकर पानी बन चुका है। पिछले 100 वर्षों के दौरान समुद्र का जलस्तर लगभग 18 सेंटीमीटर ऊँचा उठा है। इस समय यह स्तर प्रतिवर्ष 0.1 से 0.3 सेंटीमीटर के हिसाब से बढ़ रहा है। समुद्र जलस्तर यदि इसी रफ्तार से बढ़ता रहा तो अगले 100 वर्षों में दुनिया के 50 प्रतिशत समुद्रतटीय क्षेत्र डूब जायेंगे।"
     पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के एक सर्वेक्षण के अनुसार -"अगर ग्लोबल वार्मिंग इसी तरह बढ़ता रहा तो भारत में बर्फ पिघलने के कारण गोवा के आस-पास समुद्र का जलस्तर 46 से 58 सेमी, तक बढ़ जाएगा। परिणामस्वरूप गोवा और आंध्रप्रदेश के समुद्र के किनारे के 5 से 10 प्रतिशत क्षेत्र डूब जायेंगे।"
     इसके अलावा यह भी माना गया-"समस्त विश्व में वर्ष 1998 को सबसे गर्म एवं वर्ष 2000 को द्वितीय गर्म वर्ष आंका गया है। पश्चिमी अमेरिका की वर्ष 2002 की आग पिछले 50 वर्षों में किसी भी वनक्षेत्र में लगी आग से ज्यादा भयंकर थी। बढ़ते तापमान के चलते सात मिलियन एकड़ का वन क्षेत्र आग में झुलस गया।"
     इस विषय में समयवैज्ञानिक होने के नाते मेरी सलाह केवल इतनी है कि ग्लोबलवार्मिंग जैसे विषयों में अभी तक वैज्ञानिकों के द्वारा कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किए जा सके हैं कुछ थोथे काल्पनिक आँकड़ों के आधार पर इतनी बड़ी बड़ी बातें फेंकी जा रही हैं जिसमें विज्ञान जैसा तो कुछ है ही नहीं सामान्य तर्क करने पर भी कुछ साक्ष्य सामने नहीं रखे जा सकते हैं !
      विचारणीय विषय यह है कि इस ब्रह्माण्ड की आयु अरबों वर्ष की है तब से ये सृष्टि ऐसी ही चली आ रही है आज तक इसका बाल भी बाँका नहीं हुआ है !दूसरी ओर 1958 में जिन वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग का अध्ययन क्या प्रारंभ किया !उन्हें भूमंडल के गरमाने के ठोस सबूत 1988 से मिलने शुरू हुए।जिसके आधार पर उन्होंने 1960 से लेकर 20वीं सदी के अन्त तक के आंकड़ों से निष्कर्ष निकाल लिया कि इस बीच धरती का औसत तापमान 0.5 से 0.7 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है।"क्या ये जल्दबाजी नहीं है !
      अरबों वर्ष से चली आ रही सृष्टि के स्वभाव को समझना इस अत्यंत छोटे से काल खंड में कैसे संभव है !इसी में आशंका हुई इसी में अध्ययन भी शरू हो गया और इसी में आंकड़े भी जुटा लिए गए और निष्कर्ष भी निकाल लिया गया तथा उसके आधार  पर इतनी बड़ी बड़ी डरावनी भविष्यवाणियाँ भी कर दी गईं !मैं समयवैज्ञानिक होने के नाते यह कह सकता हूँ कि ऐसी घटनाओं का सीधा संबंध समय से है इसलिए समय संबंधी विषयों की व्याख्या करते समय इतना उतावलापन ठीक नहीं है उसके आधारपर किसी ठोस निष्कर्ष पर पहुँचे बिना डरावनी भविष्यवाणियाँ करना तो कतई ठीक नहीं है जैसा कि अक्सर देखने सुनने को मिला करता है !जो गलत है !
    इस विषय में हमारा दूसरा बिचार यह भी है कि " सृष्टि का स्वभाव जैसा करोड़ों अरबों वर्षों से चला आ रहा है वैसा ही आज भी है समय के साथ साथ होने वाले छुट पुट परिवर्तनों के होते रहने पर उनका आपसी तारतम्य प्रकृति स्वयं साथ साथ बैठाती चल रही है ये तो हमेंशा से चला आ रहा है!फिर ये सोचना कि गर्मी बढ़ने से  बर्फ पिघलना शुरू हो जाएगा ऐसा निश्चय कैसे मान लिया जाए !हो न हो समय के प्रभाव से ग्लोबल वार्मिंग यदि बढ़े भी तो समय का असर बर्फ पर भी पड़े और बर्फ के स्वभाव में भी बदलाव आवे इस कारण उतनी गर्मी सहने की सामर्थ्य उसमें स्वतः ही पैदा हो जाए !
     प्रकृति यदि किसी को अंधा बनाती है तो उसकी बाकी इन्द्रियों की सामर्थ्य अधिक बढ़ते देखी जाती है इसीलिए ऐसे लोग सारे काम बहुत अच्छे ढंग से करते देखे जाते हैं ऐसे ही अन्य अंगों के अभाव में भी देखा जाता है !
      इसी प्रकार से जो लोग बहुत ठंडे प्रदेशों में रहते रहे हों और अचानक किसी गर्म प्रदेश में रहने चले जाएँ तो रोगी हो जाएँगे किंतु कुछ वर्ष तक वहाँ वैसी ही परिस्थिति में रहते रहें तो उनका शरीर भी उस परिस्थिति को  सहने का अभ्यासी हो जाएगा और वो उसमें आनंदित रहने लगेगा !परिस्थितियों के अनुशार प्रकृति के सभी अंगों में एक समान क्रमिक परिवर्तन होते देखे जाते हैं !प्रकृति स्वयं संतुलन बैठाती चलती है !
      इसलिए ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने के विषय में ये कहना कि "वायुमण्डलीय तापमान में बढ़ रहे असंतुलन का खामियाजा मनुष्य ही नहीं पेड़-पौधे और पशु-पक्षी भी भुगत रहे हैं। पशुओं और पेड़-पौधेां की 11000 प्रजातियाँ या तो समाप्त हो चुकी हैं या समाप्त होने के कगार पर पहुँच गयी हैं। प्रतिवर्ष ग्लोबल वार्मिंग में 15 मिलियन हेक्टेयर वन क्षेत्र नष्ट हो जाता है।" ये तथ्यपरक तर्कसंगत एवं विश्वास करने योग्य नहीं माना जा सकता है !  
     इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि -"समस्त विश्व में वर्ष 1998 को सबसे गर्म एवं वर्ष 2000 को द्वितीय गर्म वर्ष आंका गया है। पश्चिमी अमेरिका की वर्ष 2002 की आग पिछले 50 वर्षों में किसी भी वनक्षेत्र में लगी आग से ज्यादा भयंकर थी। बढ़ते तापमान के चलते सात मिलियन एकड़ का वन क्षेत्र आग में झुलस गया।"
      यदि ऐसा होता तो वर्ष 1998 और वर्ष 2000 ही सबसे गर्म क्यों होता वो गर्मी तो क्रमिक रूप से बढ़ती जानी  चाहिए थी !दूसरी बात वो केवल अमेरिका के बन क्षेत्र में ही क्यों लगती और भी जहाँ कहीं बन क्षेत्र हैं उनमें भी लगती उतनी भयंकर न लगती तो कुछ कम ज्यादा लगती किंतु सब जगह ऐसा होता हुआ तो नहीं देखा गया !इसलिए जो घटना ग्लोबलरूप में घटी ही नहीं उसे ग्लोबलवार्मिंग का परिणाम कैसे माना जा सकता है !
      दूसरी बात यदि अमेरिका के किसी क्षेत्र में आग लग जाती है तो उसका कारण यदि ग्लोबलवार्मिंग को माना जा सकता है तो जब उसी अमेरिका में तापमान इतना अधिक गिर जाता है कि सभी जगह बर्फ जम जाती है तो उस पर ग्लोबल वार्मिंग का असर होते क्यों नहीं दिखाई पड़ता है!इसलिए कहा जा सकता है कि इस प्रकार की ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिकल्पना ही आधार विहीन और अविश्वसनीय तथ्यों पर आधारित है !
       यहाँ विशेष बात ये है कि प्रकृति में होने वाले सभी प्रकार के प्राकृतिक परिवर्तनों में भी एक क्रमिक लय होती है !जैसे प्रातःकाल सबेरा होता है तब सूर्य का प्रकाश और तेज कम होता है उसके बाद दोपहर तक क्रमशः बढ़ता जाता है और दोपहर के बाद क्रमशः घटता चला जाता है !ये नियम है और हमेंशा से यही होता चला आ रहा है और यही क्रम आगे भी चलता रहेगा !ऐसा ही होगा ये निश्चय है !प्रकृति के नियम से जो परिचित हैं उन्हें ऐसा विश्वास भी है और यही सच्चाई है !
      प्रकृति के इस नियम से अपरिचित कोई भी वैज्ञानिक वर्तमान ग्लोबल वार्मिंग पद्धति से इसी बात पर यदि रिसर्च करने को उतावला हो और वह प्रातः 10 ,11और 12 बजे के तापमान के सैंपल उठाकर उनका परीक्षण करके निष्कर्ष निकालना चाह ले तो तापमान क्रमशः बढ़ता दिखाई देगा!10 बजे से 11बजे का तापमान अधिक होगा और 11 बजे से 12 बजे का तापमान अधिक होगा !इसके आधार पर ग्लोबल वार्मिंग पद्धति से अनुमान लगाया जाए तब तो दिन के 12 बजे की अपेक्षा 13, 14 ,15 बजे से लेकर रात्रि में 24 बजे तक तापमान इतना अधिक बढ़ जाएगा कि दिन 12 बजे की अपेक्षा रात्रि 24 बजे का तापमान तो दो गुणा हो जाएगा !इसके बाद अगले दिन का तापमान तो और अधिक हो जाएगा जैसे जैसे समय आगे बढ़ते जाएगा वैसे वैसे तापमान भी बढ़ता चला जाएगा ! इस परिस्थिति का अध्ययन भी यदि आधुनिक ग्लोबल वार्मिंग प्रक्रिया से किया जाए तब तो महीने दो महीने में ही महाप्रलय होने की भविष्यवाणी की जा सकती है !जो ग्लोबलवार्मिंग की तरह ही गलत होगी !
     जिस प्रकार से दिन के तापमान के बढ़ने घटने के क्रम को समझना है तो किसी संपूर्ण दिन के तापमान का डेटा जुटाना होगा उसके आधार पर ये जाना जा सकेगा कि दिन और रात का तापमान कब कितना बढ़ता है और कब कितना घटता है !यदि कुछ दिनों के तापमान के डेटा का संग्रह किया जाए तो इसमें कुछ और नए अनुभव मिलेंगे !किसी दिन बादल होगा किसी दिन वर्षा होगी किसी दिन हवा चल रही होगी ऐसी तीनों परिस्थितियों का असर तापमान के बढ़ने घटने पर पड़ना स्वाभाविक ही है !यही डेटा यदि एक वर्ष का लिया जाए तो उसमें सर्दी गर्मी और वर्षात जैसी ऋतुएँ भी आएँगी जाएँगी तापमान पर उनका भी असर पड़ेगा ऐसी परिस्थिति में जितने लंबे समय तक के डेटा का संग्रह किया जाएगा उसके आधार पर अध्ययन करने और निष्कर्ष  निकालने में उतनी अधिक सुविधा होगी !
       यहाँ तो करोड़ों अरबों वर्ष पहले से चले आ रहे सृष्टि क्रम को समझे बिना 1958 में ग्लोबल वार्मिंग जैसे विषयों पर अध्ययन शुरू किया गया और 1988 से भूमंडल के गरमाने के सबूत मिलने शुरू हुए और दो हजार पहुँचते पहुँचते निष्कर्ष निकाल लिया गया कि भूमंडल के गरम हो रहा है इससे होने वाले काल्पनिक विनाश की लगे हाथ भविष्यवाणी भी कर दी गई !जहाँ जहाँ आग लगी या गर्मी बढ़ी उन्हें उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर दिया गया !प्रकृति संबंधी अनुसंधानों के विषय में इतना उतावलापन और गंभीरता का इतना अभाव !
      करोड़ों अरबों वर्ष पहले बनी सृष्टि जो तबसे अभी तक उसी स्वरूप में चली आ रही है प्रकृति में समय के साथ साथ अनेकों प्रकार के छोटे बड़े बदलाव भी होते रहे हैं  सूर्य चंद्र और हवा का प्रभाव न्यूनाधिक होने से प्रकृति में तमाम प्रकार की घटनाएँ घटित होती रही हैं सूर्य का प्रभाव बढ़ा तो गर्मी बढ़ी और चंद्र का प्रभाव बढ़ने से ठंढक बढ़ती है !इसके अलावा भी ठंडी तब बढ़ पाती है जब गर्मी का प्रभाव घटता है इसी प्रकार से गर्मी तब बढ़ पाती है जब ठंढी का प्रभाव बढ़ता है !अकेले गर्मी नहीं बढ़ सकती है तो फिर ग्लोबल वार्मिंग के नाम से केवल गर्मी बढ़ी तो प्रश्न ये भी उठता है कि ठंडी घटने का कारण क्या है !कहीं ऐसा तो नहीं कि कुछ क्षेत्रों में सर्दी की ऋतु में होने वाली भीषण वर्फवारी के माध्यम से प्रकृति स्वतः तापमान घटाकर संतुलन बनाने का प्रयास कर रही हो !जो वैसे भी प्रकृति समय समय पर किया करती है !गर्मी की ऋतु में बढ़े हुए तापमान को वर्षा ऋतु शांत करती है उसके बाद सर्दी बढ़ती जाती है तो प्रकृति ग्रीष्म ऋतु के माध्यम से सर्दी के वेग को शांत कर लेती है !इस प्रकार से सुधार और संतुलन बनाने की व्यवस्था प्रकृति में ही विद्यमान है उसी हिसाब से प्रकृति का चक्र बना हुआ है !ऐसी परिस्थिति में ग्लोबल वार्मिंग आदि को नियंत्रित करने की व्यवस्था प्रकृति में नहीं होगी ऐसा सोचना अज्ञान जनक है !दूसरी बात यह सोचना कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई परिस्थिति यदि पैदा भी हो रही हो तो उसका कारण मनुष्य आदि समस्त जीव जंतुओं के द्वारा किया गया कोई प्रयास होगा ये सबसे बढ़ा भ्रम है उससे भी बड़ा भ्रम यह है कि तथा कथित ग्लोबल वार्मिंग जैसी परिस्थिति को मनुष्यकृत प्रयासों से नियंत्रित किया जा सकता है !प्रकृति के रुख को मोड़ पाना मनुष्यों के बश की बात नहीं है !सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का कारण और निवारण कोई न कोई प्राकृतिक घटना ही कर सकती है !कहावत है कि हाथी की लात केवल हाथी ही सह सकता है दूसरा कोई नहीं !प्राकृतिक परिस्थितियाँ असीम शक्तिशाली होती हैं उन पर अंकुश कोई मनुष्य कैसे लगा सकता है !
       इसलिए यदि आधिनिक वैज्ञानिकों को लगता ही है कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई घटना घटित हो ही रही है तो उन्हें बिना समय गँवाए इसका कारण प्राकृतिक परिस्थितियों में ही खोजना चाहिए !कई बार ये कारण इतने गूढ़ होते हैं कि दिखाई नहीं पड़ते हैं और आसानी से समझ में नहीं आते हैं !आदि काल में चंद्र और सूर्य ग्रहण जब घटित हुए होंगे तो इनके घटित होने का कारण देख पाना मनुष्य के बश की बात नहीं है !क्योंकि चंद्रग्रहण में सूर्य और चंद्र के बीच वो पृथ्वी होती है जिस पर मनुष्य रह रहा होता है इतनी बड़ी कल्पना वो कैसे कर सकता था कि इसी सीध में इसके नीचे सूर्य होगा उससे उत्पन्न परछाया ही हमें चंद्र में ग्रहण रूप में दिखाई पद रही है !
     इसी प्रकार से सूर्य ग्रहण में उस ग्रहण के घटित होने का मुख्य कारण चंद्र कहीं दिखाई नहीं पड़ रहा होता है फिर भी पूर्वजों ने न केवल उस ग्रहण के कारण को खोजा अपितु ग्रहणों के पूर्वानुमान सैकड़ों वर्ष पहले लगा लेने की सफलता भी हासिल की !वो वास्तव में वैज्ञानिक थे तथा उनके अनुसंधान को वास्तव में अनुसंधान मानने में गर्व होता है !   


प्राकृतिक विषयों की दृष्टि में आधुनिकविज्ञान अभी भी एक छोटा सा शिशु है !

      आधुनिक विज्ञान के पास मौसम के विषय में बातें बड़ी बड़ी हैं किंतु हाथ पल्ले है कुछ नहीं ! प्रकृति के स्वभाव के विषय में सारी मनगढंत जानकारी है किसी विषय में कुछ भी मानकर उसी के आधार पर भविष्यवाणी करना प्रारंभ कर दिया जाता है !
       अतीत में हुए हजारों वर्षों के परिवर्तनों का न तो कोई संग्रह ही है जिसके आधार पर वर्तमान में हो रहे परिवर्तनों की सीमाओं को समझने की बौद्धिक सामर्थ्य विकसित की  जा सके !प्रकृति से सम्बंधित अनुसंधानों के लिए अत्यंत लंबे समय के अनुभवों का संग्रह आवश्यक होता है उसके बिना प्रकृति को समझ पाना ही किसी के बश की बात नहीं है !
     वस्तुतः प्रकृति में होने वाले दीर्घकालीन परिवर्तनों की दृष्टि से आधुनिक विज्ञान अभी भी अत्यंत छोटा शिशु है जैसे छोटा बच्चा ज्ञान एवं अनुभव से विहीन होने के कारण छोटी छोटी चीजें देखकर डर जाता है  रोने चिल्लाने लगता है !क्योंकि इस दुनियाँ में दिखाई देने वाला उसके लिए सबकुछ नया ही होता है हर चीज को अपने अज्ञान की दृष्टि से देखने की उसकी आदत होती है वो वही देखता है वही समझता है और उसी तरह के उसके बचपने के बात व्यवहार अनुभव और कुतर्क आदि होते हैं !इसी प्रकार से हमारा आधुनिक विज्ञान प्राकृतिक अनुभवों जानकारियों की दृष्टि से अत्यंत छोटा शिशु है समय के अतिविराट कालखंड की दृष्टि से अभी उसकी उम्र सौ दो सौ वर्ष मात्र है प्रकृति में घटित होने वाली प्रत्येक घटना हर चीज उसके लिए नई होती है इसलिए प्रकृति की प्रत्येक घटना देखकर उसे आश्चर्य होता है इसलिए मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में अपने काल्पनिक विचार देने से उसे बचना चाहिए !
      मौसम विभाग के प्रति समाज की उस प्रकार की धारणा है जैसे छोटा सा शिशु तुतला तुतलाकर जब थोड़ा बहुत बोलना शुरू करता है तो लोग उसे सुन सुन कर प्रसन्न हो जाते हैं उन्हें लगता है कि चलो कुछ बोला  तो सही बोला या गलत बोला वो तो बाद की बात है अभी तो उसके बोलने की खुशी है !ठीक यही स्थिति आधुनिकवैज्ञानिकों के द्वारा प्रकृति और मौसम के विषय में तरह तरह से सुनाई जाने वाली मन गढंत कहानियों के विषय में है उनके द्वारा की जाने वाली मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के विषय में भी यही भावना है ! 
      वस्तुतः मौसम विभाग की स्थापना का उद्देश्य मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना था !चूँकि पूर्वानुमान लगा पाना मौसम विभाग के बश की बात नहीं है इसलिए मौसम पूर्वानुमान संबंधी भविष्यवाणियाँ तो मंदिरों के पुजारियों की तरह गोलमोल  किया करते हैं किंतु भविष्यवाणियों के विषय में मनगढंत कहानियाँ विस्तार पूर्वक सुनाया करते हैं !पश्चिमी विक्षोभ या उत्तरी विक्षोभ से जनता को क्या लेना देना !कहाँ कितने सेंटीमीटर वारिश हुई इससे समाज का क्या लेना देना !सर्दी गर्मी वर्षा वायु प्रदूषण आदि ने कब कितने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा ऐसी बातें बताने का क्या उद्देश्य हो सकता है और इनके सुनने से जनता का क्या लाभ होगा !अर्थात ये जनता के किस काम की हैं ऐसी कपोल कल्पित कहानियाँ !
     यही कारण है कि आधुनिक वैज्ञानिकों के द्वारा वर्षा के विषय में की जाने वाली अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं !13 वर्षों के लिए बताए गए वर्षा संबंधी दीर्घकालिक पूर्वानुमानों में 8 वर्ष के गलत निकल गए !वैसे भी अक्सर वर्षा होते देखकर वो लोग उसी में 24,48 और 72 घंटे जोड़ जोड़कर वर्षा होने की भविष्यवाणियाँ करते जाते हैं उसके बाद भी वर्षा होती रही तो उसके आगे भी 24,48 और 72 घंटे जोड़जोड़कर वर्षा होते रहने की भविष्यवाणियाँ करते चले जाते हैं !यदि ये भविष्यवाणियाँ पूरी तरह से  गलत होती रहें तो भी ये ऐसे वैज्ञानिकों की न तो कोई जवाबदेही होती है और  न ही कोई  जिम्मेदारी !क्योंकि बच्चा बोल रहा है इसकी सबको ख़ुशी होती है !बच्चा समझ रहा है कि वो भविष्यवाणियाँ कर लेने लगा है ये उसकी गलतफहमी हो सकती है !
    मौसम विभाग की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह -
   मौसम संबंधी पूर्वानुमान उपलब्ध करवाना मौसम विभाग की जिम्मेदारी होती  है यदि मौसम विभाग ऐसा करने में सक्षम नहीं है तो सरकार को पूर्वानुमान उपलब्ध करवाने की कोई वैकल्पिक विधि खोजनी चाहिए !    
     
      सं 2016 के मई जून में आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक हुईं यहाँ तक कि बिहार सरकार को दिन में हवन न करने और चूल्हा न जलाने की अपील करनी पड़ी ट्रेनों से पानी सप्लाई इतिहास में पहली बार करवाई गई !इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ इसके जवाब में मौसम विभाग ने पहले रिसर्च करने की बात कही और बाद में इसका कारण भी ग्लोबल वार्मिंग  बताकर उससे भी पीछा छोड़ा लिया गया !



     भूकंप  


इसी प्रकार से आँधी तूफ़ान आने पर आँधी तूफ़ान और अधिक आने की भविष्यवाणियाँ करने लग जाते हैं !भूकंप आया तो और अधिक भूकंप आने की भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !वायु प्रदूषण बढ़ा तो और अधिक वायु प्रदूषण बढ़ने की भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !




तब तो ऐसी बातों पर भरोसा किया जा सकता था !किंतु ऐसा न हो पाने के कारण यह तर्क एक काल्पनिक कहानी की तरह ही रह गया जो हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है !जिसमें तर्कसिद्ध न होने के कारण सच होने की संभावनाएँ अत्यंत कम हैं !
      समय वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसे विषयों पर अनुसंधान करने के बाद मेरा दृढ़ विश्वास है कि भूकंपों से संबंधित अभीतक जो भी अनुसंधान हुए हैं उनके परिणाम स्वरूप कुछ कल्पित कथा कहानियों के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगा जिस पर विश्वास किया जा सके !संभवतः इसीलिए अनुसंधानकर्ता भी मानते हैं कि भूकंपों के विषय में अभी तक वे दृढ़ता पूर्वक कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं हैं !ऐसे अनुसंधानों से अभी तक तो पैसे और समय की बर्बादी के अलावा और कुछ भी हासिल नहीं हुआ है !
    इसलिए ऐसे अनुसंधान कर्ताओं के द्वारा भूकंपों के विषय में गढ़ी गई सभी प्रकार की बातों में विज्ञान कहीं नहीं दिखता ! इसलिए ये विश्वसनीय नहीं लगतीं !
    

माना जा सकता !क्योंकि भूकंप पर अनुसंधान करने वाले लोग अभी तक विश्वास पूर्वक ये बताने की स्थिति में नहीं हैं कि भूकंप आने के कारण क्या हैं उनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए अनुसंधान कहाँ किया जाए क्या किया जाए किस प्रकार किया जाए !उस युग के लोगों ने जिस समय विज्ञान के बल पर ग्रहण जैसी घटनाएँ जिनका अन्वेषण असंभव सा था उसे खोज डाला और इस अत्यंत विकसित विज्ञान के युग में जब सभी संसाधन विद्यमान हैं तब भी भूकंपों का कारण और पूर्वानुमान सैकड़ों वर्षों में भी नहीं खोज पाए और ग्लोबलवार्मिंग जैसी कहानियाँ गढ़ने में धन और समय बर्बाद होता रहा ! 

   ऐसे ही सन 2018 में आए भीषण आँधी तूफानों के विषय में किया गया था !कुछ दिन बाद अखवारों में छपा कि मौसम विभाग इस विषय में रिसर्च करने की बात कह रहा है कि 2018 में आँधी तूफ़ान की घटनाएँ इतनी अधिक क्यों घटीं !किंतु प्राकृतिक घटनाओं के विषय में रिसर्च करने लायक आधुनिक विज्ञान में कुछ  है ही नहीं इसलिए कह दिया गया कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण आँधी तूफ़ान की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हुईं !
  5. विशेषकर किसानों को किसी भी फसल के लिए महीने दो महीने पहले फसल योजना बनानी पड़ती है!इसलिए उन्हें इतने पहले के सही मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है !ये दीर्घकालिक मौसम पूर्वानुमान की श्रेणी में आते हैं ऐसे पूर्वानुमान सही होने का अनुपात अत्यंत कम है किंतु मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा कहा हुआ मान कर किसान उन पर भरोसा कर लिया करते हैं उनके गलत निकल जाने से किसानों का नुक्सान होता है जिन्हें न सह पाने के कारण भी किसानों की आत्महत्या जैसी दुर्घटनाएँ देखने को मिलती हैं !
      इसी प्रकार से जहाँ सूखा या अकाल पड़ना होता है उसके विषय में भी पूर्वानुमान लगाने और उनके सही घटित होने के उदाहरण देखने को नहीं मिल पा रहे हैं !
       ऐसी परिस्थिति में बीते 144 वर्षों में मौसमी लोगों के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियाँ यदि किसानों के काम नहीं आ सकीं ,बाढ़ ग्रस्त और सूखाग्रस्त लोगों के काम नहीं आ सकी तो बीते 144 वर्षों में वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों के लिए जो भी धन राशि खर्च की गई वो निरर्थक सिद्ध हुई !जनता जिसका धन खर्च होता है उसे इससे क्या मिला !
     विशेष बात यह है कि मौसमी लोगों के द्वारा जो ये बताया जाता है कि वहाँ इतने सेंटीमीटर की बारिश हुई या वहाँ इतनी अधिक या इतनी कम वारिश हुई जिसने इतने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा ऐसी बातें जनता के लिए कैसे क्या और कितनी उपयोगी हैं !इसके अलावा उत्तरी विक्षोभ या दक्षिणी विक्षोभ सक्रिय होने के कारण वर्षा हो रही है या होगी आदि !ऐसी बातों से जनता को क्या लेना देना क्योंकि जनता अपने खून पसीने की गाढ़ी कमाई का पैसा मौसमी लोगों पर इसलिए खर्च नहीं करती है कि वो उसे विक्षोभ की जानकारी दें अथवा कहाँ कितनी बारिश हुई ये बतावें अपितु इसलिए खर्च करती है कि मौसमी लोग उसे साफ साफ शब्दों में यह बतावें कि कब कहाँ कितनी बारिश होगी !
       ऐसी परिस्थिति में शंका होनी स्वाभाविक है कि जिन मौसमी लोगों की मौसम संबंधी रिसर्च देश के प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में काम नहीं आ सकी उन मौसमी लोगों की रिसर्च से देश के किसानों को कितनी आशा करनी चाहिए !कुल मिलाकर मौसमी लोगों की भविष्यवाणियों से कृषि और किसान कैसे लाभान्वित हो सकते हैं !

   आँधी तूफ़ान एवं चक्रवातों पर मौसमी लोगों की भूमिका पर प्रश्न चिन्ह !
    1864 में अचानक आए चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई भारी क्षति के बाद ही ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाकर उनसे होने वाली जनधन की हानि को कम करने के लिए 1875 में भारतीय मौसम विभाग की स्थापना की गई तब से लेकर सन 2018 तक मौसमी लोगों के द्वारा मौसम पर रिसर्च किया जाता रहा जिस पर देश की जनता की खून पसीने की गाढ़ी कमाई से प्राप्त टैक्स में भारी धनराशि खर्च की जाती रही ऐसा होते करते लगभग 143 वर्ष बीत गए रिसर्च अभी भी जारी है !जिससे किसी को कोई आपत्ति नहीं है !
     अब प्रश्न ये उठता है कि ऐसी रिसर्चों से पिछले 143 वर्षों में रिसर्ची लोगों ने आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि का पूर्वानुमान लगाने में अभी तक कितनी सफलता हासिल की है यह जानने की उत्सुकता तो हर किसी में रहती ही है !वही हमारी भी है उसी दृष्टि से एक बार बिचार करने की आवश्यकता है !
     आँधी तूफ़ान एवं चक्रवातों आदि से संबंधित कुछ न कुछ घटनाएँ तो हमेंशा घटित होती रहती ही हैं इसके विषय में मौसमी लोग क्या पूर्वानुमान लगाते हैं सामान्यतः किसी का ध्यान उधर नहीं जाता है किंतु जब ऐसी घटनाओं की अति होने लगती है तब चिंता होनी स्वाभाविक है !


 विज्ञान -

   इस भौतिक जगत में जो कुछ भी घटित हो रहा है, उसका क्रमबद्ध अध्ययन ही विज्ञान है। हम अपने चारों ओर की सृष्टि का ज्ञान अपनी ज्ञानेन्द्रियों द्वारा कर सकते हैं, परन्तु इस भौतिक जगत में कुछ ऐसी अत्यन्त सूक्ष्म क्रियाएँ हैं जिनका ज्ञान हम सीधे अपनी इन्द्रियों से नहीं कर सकते। इसके हमें अत्यन्त सूक्ष्मग्राही यन्त्रों का उपयोग करना पड़ सकता है।किंतु जिसका अनुमान हम  इन्द्रियों से न कर पाएँ और यंत्रों से भी न कर पाएँ वो कैसा विज्ञान ! 
   क्रमबद्ध एवं विशिष्ट ज्ञान को विज्ञान कहते हैं।विज्ञान से आशय ऐसे ज्ञान से है, जो यथार्थ हो,जिसका परीक्षण और प्रयोग किया जा सके तथा जिसके बारे में भविष्यवाणी संभव हो। इसके सिद्धान्त और नियम सार्वदेशिक और सार्वकालिक होते हैं तथा इनका विशद विवेचन सम्भव है। 
  विज्ञान वह व्यवस्थित ज्ञान या विद्या है जो विचार, अवलोकन, अध्ययन और प्रयोग से मिलती है, जो किसी अध्ययन के विषय की प्रकृति या सिद्धान्तों को जानने के लिये किये जाते हैं। विज्ञान शब्द का प्रयोग ज्ञान की ऐसी शाखा के लिये भी करते हैं, जो तथ्य, सिद्धान्त और तरीकों को प्रयोग और परिकल्पना से स्थापित और व्यवस्थित करती है। विज्ञान 'ज्ञान-भण्डार' के बजाय वैज्ञानिक विधि विज्ञान की असली कसौटी है।
      जहाँ तक बात प्राकृतिक विज्ञान की है तो मानव आदिकाल से ही अपने चारों ओर घटित प्राकृतिक दृश्यों, घटनाओं आदि को देखता रहा है। आकाश का नीला दिखाई देना, उगते व डूबते सूर्य का लाल दिखाई देना, बादल में बिजली चमकना व कड़कना, समुद्र में ज्वार–भाटा आना, वर्षा के बाद इन्द्रधनुष का दिखायी देना आदि प्राकृतिक घटनाओं को जानने के लिए इनकी खोज अपनी बुद्धि ,तर्कपूर्ण अनुमान एवं प्रयोगों के द्वारा की जाती रही होगी !इस प्रकार से अध्ययन से निष्कर्ष निकाला गया होगा कि हर घटना किसी प्रकृति अर्थात स्वभाव के अनुसार ही होती है इसकी सुव्यवस्थित जानकारी को प्राकृतिक विज्ञान कहते हैं। 
     विशेष बात ये है कि वर्षा आँधी तूफान भूकंप आदि विषय में अभी तक जितना जो कुछ भी कहा सुना या बताया जाता है उसमें अभी तक वैज्ञानिक दृष्टिकोण के दर्शन नहीं होते हैं !

     जो विधा अपनी भूकंप अनुसंधान प्रक्रिया को अभी तक विज्ञान सिद्ध नहीं कर पाई !उसे विज्ञान के रूप में प्रमाणित कैसे माना जा सकता है !क्योंकि जैसे चिकित्सा को  विज्ञान तब माना गया जब  वो चिकित्सा करने में सक्षम है इसी प्रकार से अन्य क्षेत्रों में भी विज्ञान की कसौटी तो यही होनी चाहिए !जो प्रक्रिया जिस विषय को समझ पाने में अभी तक पूर्णतः असफल रही हो उसे उस विषय का विज्ञान कैसे माना जा सकता है !वर्षा,आँधी तूफान एवं भूकंप जैसी घटनाओं का अधययन करने वाले लोगों का अभी तक वैज्ञानिक सिद्ध होना बाकी है ! सिद्धांततः जो जिस विषय से संबंधित अपने ज्ञान को वैज्ञानिक पारदर्शी  विधि से प्रमाणित नहीं कर सकता है वो उस विषय का वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है !       
                   समयविज्ञान और  जलवायु परिवर्तन 
       इसमें जलवायु परिवर्तन तो समय से संबंधित घटना है जैसे जैसे समय बीतता जाता है वैसे वैसे संसार की प्रत्येक वस्तु में परिवर्तन आते जाते हैं!कोई बच्चा जन्म लेता है जवान होता है बूढ़ा होता है फिर ख़त्म हो जाता है इसी प्रकार से कोई पेड़ उगता है बड़ा होता है फूलता है फलता है इसके बाद सूख जाता है समाप्त हो जाता है !इस प्रकार से बच्चे में और वृक्ष में जो भी बदलाव आते हैं इन बदलावों को कोई विज्ञान रोक नहीं सकता है ये तो होने ही हैं हमेंशा से होते ही रहे हैं और हमेंशा तक होते ही रहेंगे!उनका कारण समय है समय बीतता गया और बदलाव होते चले गए ये बदलाव प्रयास पूर्वक भी रोके नहीं जा सकते हैं!इसी प्रकार से ऋतुएँ बदलती रहती हैं कुछ महीनों तक सर्दी होती है फिर क्रमशः सर्दी घटती और गर्मी बढ़ती चली जाती है धीरे धीरे कुओं नदियों तालाबों झीलों आदि का पानी सूखता चला जाता है! पेड़ पौधे मुरझाने लग जाते हैं! इसके बाद वर्षा ऋतु आती है उसमें पानी बरसने लगता है कुओं नदियों तालाबों झीलों आदि में पुनः पानी भर जाता है पृथ्वी की प्यास तृप्त हो जाती है पेड़ पौधे फिर हरे भरे हो उठते हैं !ये क्रम हमेंशा से चलता चला आ रहा है और हमेंशा तक चलता रहेगा !ऋतुओं को न तो कोई बुलाने जाता है और न ही कोई बिदा करने जाता है ऋतुओं में ये परिवर्तन समय के साथ साथ होते चलते हैं !ऐसे ही कोई व्यक्ति एक समय में स्वस्थ होता है फिर अस्वस्थ हो जाता है वही फिर स्वस्थ हो जाता है ! इस प्रकार से समय बीतता जा रहा है और समय के साथ साथ घटनाएँ घटित होती चली जाती हैं !कोई व्यक्ति आज सुखी होता है कल दुखी हो जाता है फिर सुखी हो जाता है ये भी समय के साथ साथ होने वाले बदलाव हैं !ऐसे ही संबंधों के विषय में है !एक समय में जो संबंध सुख दे रहे होते हैं वही संबंध उन्हीं लोगों को दूसरे समय में दुःख देने लगते हैं !कोई नई से नई वस्तु लाकर घर में रख दी जाए उसका उपयोग किया जाए या न किया जाए किंतु उसमें धीरे धीरे बिकार आने लगते हैं और वो ख़राब होने लगती है उसमें समय कम या ज्यादा लगे किंतु समय के साथ साथ उसमें विकार आने ही लगते हैं ! 
       संसार में ऐसी अनेकों प्रकार की अवस्थाएँ परिस्थितियाँ आकार प्रकार आदि हैं जो समय के साथ साथ बनते बिगड़ते देखे जा सकते हैं समय बीतता जा रहा है सभी में सभी जगहों पर परिवर्तन होते जा रहे हैं
     इन परिवर्तनों को देखकर ही हमें इस बात का अंदाजा लगता है कि समय बीत रहा है !ये बदलाव समय के बीतने की सूचना दे रहे होते हैं!इसलिए परिवर्तन का कारण समय का स्वभाव है समय का असर प्रत्येक व्यक्ति वस्तु परिस्थिति आदि पर पड़ता जा रहा है और सब में बदलाव होते जा रहे हैं !ऐसे बदलाव कोई आज से नहीं हैं अपितु जब से सृष्टि का उदय हुआ है उसके पहले से और जब तक सृष्टि रहेगी उसके बाद तक समय के कारण ब्रह्मांड की प्रत्येक वस्तु में बदलाव तो होते ही रहेंगे !क्योंकि सृष्टि का बनना बिगड़ना आदि प्रलय पर्यंत सब जितना जो कुछ भी देखा सुना या कल्पना की जा सकती है उस सब में होने वाले परिवर्तनों का कारण समय ही है !इसलिए  इस सृष्टि में जब जीवन का पदार्पण ही नहीं हुआ था तब भी ऐसे परिवर्तन होते रहते थे !
    ऐसी परिस्थिति में जलवायुपरिवर्तन यदि हो भी रहा है तो वो समय प्रेरित है उसमें जीवधारियों का कोई योगदान नहीं हो सकता है!           





चिकित्सा विज्ञान को ही लें स्वास्थ्य संबंधी अधिकाँश रहस्यों को उद्धाटित करने में सक्षम ज्ञान को चिकित्सा विज्ञान कहा जाता है इस विषय की समझ रखने वाले डॉक्टर लोग स्वास्थ्य की समझ रखने के कारण ही तो चिकित्सा वैज्ञानिक माने जाते हैं एक से एक बड़े रोगों और उनके लक्षणों को खोजने में सफलता पाई है उनकी औषधियाँ आप्रेशन विधियाँ आदि एक से एक अच्छे अनुसंधान उन्होंने किए हैं !कई रोगियों के रोग लक्षणों का अध्ययन करके वे उनके और अधिक बढ़ने या घटने की भविष्यवाणी करते देखे जाते हैं जो प्रायः सही होती हैं !कई बार किसी को होने वाले संभावित रोगों का पता लगाकर प्रिवेंटिव चिकित्सा के द्वारा उन पर नियंत्रण कर लेते हैं शरीर की प्रत्येक प्रक्रिया से वे सुपरिचित होते हैं क्या खाने से किस प्रकार के रोग होते हैं और क्या खाने से किस प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है !कहाँ और कैसे रहने से किस प्रकार के रोग होते हैं !ऐसे ही स्वास्थ्य पर बदलते मौसम का असर पड़ने से किस किस प्रकार के रोग होने की संभावना रहती है इसकी उन्हें केवल समझ ही नहीं है अपितु  ग दूर भागते हैं
  प्रकृति को समझना सबसे टेढ़ी खीर है

         भूकंपविज्ञान के नाम से प्रचारित जो विषय भूकंपों के घटित होने के कारणों को खोजने में सक्षम नहीं है उससे संबंधित पूर्वानुमान खोजने में सक्षम नहीं है इसलिए ऐसे किसी विषय को भूकंप विज्ञान नहीं माना जा सकता है !इसी प्रकार से जो भूकंप आने के लिए जिम्मेदार कारणों को खोजने में एवं उसके पूर्वानुमानों को खोजने में सफल नहीं हो सके इसलिए ऐसे असफल लोगों को भूकंप वैज्ञानिक किस योग्यता के कारण माना जाना चाहिए !इसी प्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण एवं उससे संबंधित पूर्वानुमान लगाने में सफलता न प्राप्त कर पाने वाले विषय को वायु प्रदूषण का विज्ञान कैसे माना जा सकता है !