Friday, 25 March 2016

राजनेता बनने के लिए करने होते हैं बड़े से बड़े वो सारे पाप जहाँ तक लुक छिप कर करना संभव होता है रही बात भ्रष्टाचार की तो उसे अब गलत नहीं कहा जा सकता क्योंकि अपने देश के लोकतंत्र के तीनों स्तम्भ स्वीकार करते हैं कि विधायिका और कार्यपालिका में  भ्रष्टाचार है  और जनता भी ये मानती है नेता भी ये स्वीकार करते हैं । नेताभी मानते हैं

जूते चप्पल स्याही आदि अपने ऊपर फेंकवाकर नेता बनने वालों पर कसी जाए नकेल !

 देश समाज एवं देश के प्रतीकों के प्रति ऊटपटाँग बोलकर समाज में उत्तेजना भड़काने वाले नेताओं को नहीं मिलनी चाहिए सिक्योरिटी !
     आजकल नेता बनने के लिए कई लोग अपने हमदर्दों से या फिर ठेका या भाड़ा देकर अपने ऊपर जूते चप्पल स्याही आदि हलकी फुल्की चीजें फेंकवाने लगे हैं उन्हें लगने लगा है कि ऐसी ही हरकतें कर के इतने कम समय में यदि कोई मुख्यमंत्री बन सकता है तो मैं क्यों नहीं !
       ऐसे लोगों को चाहिए कि जूते चप्पल चाँटे आदि मार मार कर उन्हें नेता बनाने वाले अपने वालेंटियर्स को कभी नहीं भूलना चाहिए उचित तो ये है कि मंत्री आदि बन जाने के बाद किसी बड़े ग्राउंड में ऐसे अपने वालेंटियर्स के सम्मान के लिए भव्य समारोह करना चाहिए।आपको याद होगा कि अभी कुछ वर्ष पहले एक नेता ने ऐसा किया भी था !एक आम आदमी ने बकायदा अपने वालेंटियर से खुली सभा में चाँटा मरवाकर बाद में उसके घर इस बात के लिए धन्यवाद देने  गया था कि आपके कठिन प्रयास से मीडिया कवरेज बहुत मिली !
     इससे मीडिया कवरेज पूरा मिलता है और नुक्सान कुछ भी होता नहीं है !कुलमिलाकर  जूता और स्याही फेंकने वाले होते हैं नेताओं के अक्सर अपने हमदर्द लोग !आम जनता में इतनी हिम्मत कहाँ होती है वो तो दो चांटे सहकर आ जाते हैं अपने घर !
     कानपुर का एक संस्मरण मुझे याद है बात 1995 की है मेरे परिचित एक दीक्षित जी हैं जो जिला स्तरीय राजनीति में हाथ पैर मारते मारते थक चुके थे कोई जुगत काम नहीं कर रही थी बेचारे राजनीति में कुछ बन नहीं पाए थे !मैंने एक दिन उनसे पूछ दिया कहाँ तक पहुँच पाई आपकी राजनीति ? वो बोले पहुँची तो कहीं नहीं ठहरी हुई है तो हमने कहा क्यों हाथ पैर मारो संपर्क करो लोगों से !तो उन्होंने कहा कि ये सब जितना होना था वो चुका अब तो नेता बनने का डायरेक्ट जुगाड़ करना होगा ,तो मैंने कहा कि वो कैसे होगा तो उन्होंने कहा कि धन और सोर्स है नहीं न कोई खास काबिलियत ही है अब तो राजनीति में सफल होने के लिए लीक से हट कर ही कुछ करना होगा मैंने पूछा  वो क्या ? तो उन्होंने कुछ बिंदु सुझाए - 
  • पहली बात यदि मैं ब्राह्मण न होता तो ब्राह्मणों सवर्णों को गालियाँ दे दे कर नेता बनने की सबसे लोकप्रिय विधा है जिससे बहुत लोग ऊँचे ऊँचे पदों पर पहुँच गए ! 
  • दूसरी बात बड़े बड़े मंचों पर खड़े होकर मीडिया के सामने देश के मान्य महापुरुषों प्रतीकों को गालियाँ दी जाएँ, दूसरे बड़े नेताओं पर चोरी, छिनारा ,भ्रष्टाचार आदि के आरोप लगाए जाएँ ,गालियाँ दी जाएँ महापुरुषों की मूर्तियाँ या देश के प्रतीक तोड़े जाएँ जिससे बड़ी संख्या में लोग आंदोलित हों ! 
  • तीसरी बात किसी सभा में मंच पर अपने ऊपर स्याही या जूता चप्पल आदि कोई भी हलकी फुल्की चीजें फेंकवाई जाएँ जिससे चोट  लगने की  सम्भावना भी न  हो  और प्रसिद्धि भी पूरी मिले इससे एक ही नुक्सान हो सकता है कि सारा अरेंजमेंट मैं करूँ और फेंकने वाले का निशाना चूक गया तो बगल में बैठा कार्यकर्ता नेता बन जाएगा मैं फिर बंचित रह जाऊँगा इस सौभाग्य से ! 
  •  चौथी बात अपने घर में जान से मारने की धमकी जैसे पत्र किसी से लिखवाए भिजवाए जाएँ किंतु पोल खुल गई  तो फजीहत ! 
  •   पाँचवीं बात अपने आगे पीछे  कहीं बम  वम लगवाए जाएँ जो अपने निकलने के पहले या बाद में फूटें किंतु बम लगाने वाला इतना एक्सपर्ट हो तब न !अन्यथा थोड़ी भी टाइमिंग गड़बड़ाई तो क्या होगा पता नहीं ! 
  •  छठी बात किसी दरोगा सिपाही से मिला जाए और उससे टाइ अप किया जाए कि वो यदि किसी चौराहे पर मुझे बेइज्जती कर करके  गिरा गिराकर कर मारे इससे मैं नेता बन जाऊँगा और उसकी तरक्की हो जायेगी !इसी प्रकार से यदि मैं किसी किसी दरोगा को मारूँ तो मैं नेता बन जाऊँगा और उसका ट्राँसफर हो जाएगा ! 
  • सातवीं बात किसी जनप्रिय विंदु को मुद्दा बनाकर खुले आम आमरण अनशन या आत्म हत्या की घोषणा की जाए किंतु कोई मनाने क्यों आएगा मेरा कोई कद तो है नहीं !
  • किसी बड़े नेता पर बलात्कार का आरोप लगाकर प्रसिद्ध हो जाए और  प्रसिद्ध होने पर राजनीति में कद बढ़ ही जाता है किंतु मैं तो ये भी नहीं कर सकता!क्योंकि मैं महिला नहीं हूँ । 
  • यदि मैं अल्प संख्यक होता तो अपने धर्म स्थल की रात बिरात कोई दीवार तोड़वा देता बाद में बनती तो बन जाती नहीं बनती तो भी क्या किंतु मैं अपने धर्म का मसीह बन बैठता लोग हमें मनाते फिरते चुनाव  लिए किंतु मैं ब्राह्मण हूँ ये भी नहीं कर सकता !

Friday, 11 March 2016

कन्हैया जैसे लोग देश और देश के सैनिकों को बदनाम भले कर लें किंतु देश और सैनिकों का सम्मान नहीं घटा सकते !

    कन्हैया  को हमलावर क्यों न कहा जाए !
   जो  देश विरोधी ताकतों को मजबूत करने एवं आतंकवादियों के आरोपों का  समर्थन करता है और देश के प्रति समर्पित सैनिकों को बदनाम करता है किंतु ऐसे लोगों की हरकतों से भारतवर्ष के नागरिकों के मन में सैनिकों का सम्मान घटाया नहीं जा सकता !कन्हैया ने देश की प्रतिष्ठा पर हमला किया ,देश के सैनिकों के सम्मान पर हमला किया !इसके बाद भी देश भक्त !धिक्कार है तुझे !
नेताओं और पत्रकारों के एक बड़े वर्ग में बढ़ती गिद्धवृत्ति चिंतनीय ! गिद्ध तो मुर्दों का मांस खाते थे किंतु  ये तो जीवितों पर झपटने लगे हैं !भीड़ देखकर नेताओं को कन्हैया में राजनैतिक स्वाद आने लगा है बड़े बड़े कद वाले पद लोलुप नेता कन्हैया को लपक लेने के लालच में अकारण उसकी प्रशंसा के पुल बाँधते  जा रहे हैं ऐसे राजनैतिक गिद्धों से खतरा है देश को ! उन्हें देश का अपमान अपमान नहीं दिख रहा है उन्हें केवल वोट दिख  रहे हैं !
   मोदी सरकार की निंदा करने वाले जिस किसी को भी खोज लाता है विपक्ष ! मीडिया उसी को बना देता है भविष्य का नेता !""कन्हैया भी  दलितों पिछड़ों के  शोषण के नाम पर हो सकता है कि नेता बन जाए !और बन  जाए तो अच्छा है किंतु ध्यान इस बात पर होना चाहिए कि जिस सभा में "भारत तेरे टुकड़े होंगे" के नारे लगे कन्हैया उस सभा का अंग था या नहीं ,उस सभा में अध्यक्षत्वेन  कन्हैया का भाषण हुआ या नहीं !कन्हैया केवल कन्हैया नहीं था वो छात्रसंघ का अध्यक्ष भी था  आखिर उसकी ये जिम्मेदारी क्यों नहीं बनती थी कि उन राष्ट्र द्रोहियों का वहाँ विरोध किया जाता किंतु कन्हैया के ऐसा न करने के पीछे उसका डर था या समर्थन !           
     देश में स्थापित सरकारों को गालियाँ ,प्रतीकों का अपमान !नेताओं की निन्दाकरना ,प्रधानमन्त्री का उपहास उड़ाना ,दबे कुचले गरीब लोगों की हमदर्दी हथियाने जैसी हरकतें ठीक नहीं हैं !अक्सर नेता लोग ऐसे वायदे करके मुकर जाते हैं जनता ठगी सी खड़ी रहती है देखो केजरीवाल जी तमाम सादगी की बातें करके आज बिराज रहे हैं राजभवनों में ! सैलरी ली सुरक्षा ली सैलरी बढ़ा भी ली विज्ञापन के नाम पर सैकड़ों करोड़ खा गए इसके बाद भी सादगी की प्रतिमूर्ति बने घूम रहे हैं ये निर्लज्जता नहीं तो क्या है !
       इसी प्रकार से कुछ लोग सवर्णों को गालियाँ  देकर उन पर शोषण का आरोप लगाकर बड़े बड़े ओहदों पर पहुँच गए लोग !न कुछ लायक लोग नेता मंत्री आदि क्या क्या नहीं बन गए आजादी के बाद आज तक नेता बनने का सबसे पॉपुलर नुस्खा यही रहा है कि सवर्णों को गाली दो और राजनीति में घुस जाओ कई पार्टियों के नेताओं को अक्सर ऐसी हरकतें करते देखा जा सकता है !ऐसे  लोग ये सारे नाटक नौटंकी करके राजनीति में घुस जाते हैं दलितों पिछड़ों का नारा देकर सरकारों में घुस जाते  हैं इसके बाद ग़रीबों के हिस्से हथियाते जाते हैं !कुलमिलाकर नाम दलितों पिछड़ों का सम्पत्ति सारी  अपने नाम सारी सुख सुविधाएँ अपनी ! ऐसे ड्रामे अब बंद होने चाहिए !सवर्ण भी अपने पूर्वजों की निंदा सुनते सुनते अब तंग आ चुके हैं अब अवसर आ चुका है जब ऐसे दलितभक्त नेताओं की सम्पत्तियों की जाँच की माँग उठाई जाए और उन्हीं से पूछा  जाए कि उनकी आमदनी के स्रोत क्या हैं फिर समाज के सामने उन्हें और उनकी दलित भक्ति को बेनकाब किया जाए !
     जिस देश में संविधान सर्वोपरि है और यदि संविधान के दायरे में रहकर ही यदि कोई किसी की मदद करना चाह रहा है तो फिर लड़ना किससे कानून और संविधान पर भरोसा करते हुए सरकार प्रदत्त अधिकार देश के प्रत्येक नागरिक तक पहुँचाए जाएँ ऐसी स्वयं सेवा की भावना समाज में पैदा करनी चाहिए सरकार की कानूनी  सहायता और समाज की स्वयं सेवा का सहयोग पाकर  दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं सबका  विकास किया जा सकता है इसके अलावा उस दिन और किस आजादी के नारे लग रहे थे !
      कन्हैया केवल नाम रख लेने से कोई कन्हैया नहीं हो जाता है उसके काम यदि ऐसे  हैं तो उनकी सराहना कैसे की जाए !देश समाज एवं मानवता की रक्षा के लिए आए थे कन्हैया जबकि कंस ने मानवता पर अत्याचार किया था JNU में उस दिन भी क्या राष्ट्र भक्ति की बातें हुई थीं जो भी भारत के टुकड़ों की बात करता है या देश के कानून के तहत किसी को जो भी सजा दी गई उस सजा के विरुद्ध नारे लगाता है ये देश के संविधान के विरुद्ध  बगावत नहीं तो क्या है !भारत माँ का कोई सपूत ये राष्ट्र विरोधी बातें कैसे सह सकता है वो भी छात्र नेता ही नहीं छात्रसंघ का अध्यक्ष भी हो उसने ऐसे लोगों का विरोध क्यों नहीं किया इसका मतलब इसे उन उपद्रवियों का समर्थन क्यों न माना जाए !वैसे भी कन्हैया कभी कायर या गद्दार नहीं हो सकता जो देश द्रोहियों के मुख से अपने देश के टुकड़े होने वाले नारे सुन कर सह जाए और जो सह जाए वो कन्हैया नहीं कंस हो सकता है !
      जो छात्र है वो नेता नहीं हो सकता और जो नेता है वो छात्र  नहीं हो सकता !क्योंकि नेतागिरी के पथ पर भटके हुए लोग पढ़ कहाँ पाते हैं शिक्षा एक  प्रकार की तपस्या है जो नेतागीरी के साथ नहीं की जा सकती इसलिए छात्र नेता शब्द स्वयं में छलावा है । 
    आजाद भारत का मतलब ही है संविधान प्रदत्त आजादी जो प्रत्येक व्यक्ति को मिलनी चाहिए ये उसका अधिकार है और अधिकारों के प्रति समाज को केवल इतना जागरूक करना है कि अपनी नागरिक आजादी से बंचित न रह जाए किंतु जिस तरह से उस दिन आजादी के नारे लग रहे थे वो संविधान प्रदत्त आजादी के यदि होते उसके लिए तो कानून के दरवाजे खुले थे यदि किसी को कहीं दिक्कत थी तो उसके लिए नारे लगाने के अलावा भी संवैधानिक परिधि में भी तमाम विकल्प थे किंतु वो वातावरण ही राष्ट्रभावना को चुनौती देने या उपहास उड़ाने जैसा था । 
        दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं  के शोषण के गीत गाकर कुछ लोग नेता बन सकते हैं और भी कुछ अयोग्य लोग योग्य स्थानों पर पहुँच सकते हैं कुछ छात्रवृत्ति के रूप में कुछ धन पा सकते हैं कुछ आटा दाल चावल चीनी आदि पा सकते हैं आरक्षण पाकर कुछ लोग उन स्थानों पर हो सकता है कि पहुँच जाएँ जिनके योग्य न होने के कारण उन्हें केवल अपमान ही झेलना पड़े किंतु इतना सब कुछ पाकर भी अपने हिस्से यदि अपमान ही आया तो पेट तो पशु भी भर लेते हैं केवल पेट भरने के लिए इतने सारे नाटक क्यों ?क्या हमारा लक्ष्य बंचित वर्गों में भी प्रतिभा निर्माण नहीं होना चाहिए आरक्षण  और सरकारी सुविधाओं का लालच देकर देश के सबसे बड़ी आवादी वाले वर्ग को विकलांग बनाकर आखिर कब तक रखा जाएगा !
       आज के सौ वर्ष पहले वाले लोग भी  दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं की रक्षा के ही गीत गाते स्वर्ग सिधार गए ,आजादी के बाद आजतक कानून की छत्र छाया में रहकर विकास करने का सम्पूर्ण अवसर मिला इसके बाद भी सुई वहीँ अटकी है सवर्णों ने शोषण किया था किंतु यदि सवर्णों के शोषण के कारण ये लोग पिछड़े होते तो इतने दिन तक सारी  सुविधाएँ पाकर ये पल्लवित हो सकते थे क्योंकि किसी सामान्य सवर्ण वर्ग के  व्यक्ति के साथ यदि कोई हादसा हो जाए जिससे वह बिलकुल कंगाल हो जाए उसके पास कुछ भी न बचा हो सरकार उसे किसी भी प्रकार की मदद न दे तो वो भूखों मर जाएगा क्या ? वह सवर्ण अपनी कर्म पूजा के बलपर यदि अपनी तरक्की कर सकता है तो दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं के शरीरों में ऐसी कौन सी कमजोरी है कि वो इस संघर्ष पथ को नहीं अपना सकते !उन्हें कौन रोकता है । 
        सवर्ण चाहें तो सवर्ण भी अपनी हर समस्या के समाधान के लिए सरकार के दरवाजे पर कटोरा लेकर खड़े हो सकते हैं हो सकता है कि सवर्ण मान कर सरकार उन्हें भीख न दे किंतु कटोरा तो नहीं ही फोड़ देगी इस भावना से सवर्ण लोग भी सरकारी दरवाजों पर जाकर झोली फैला सकते थे किंतु उसे खुश होकर सरकार जितना जो कुछ भी देती वो भीख होती और भीख केवल पेट भरने के लिए होती है क्योंकि भीख देने वाला न मरने देता है और न मोटा होने देता है केवल घुट घुटकर कर जीवन बिताने के लिए ज़िंदा बना रखता है और इस प्रकार से सरकारी कृपा पर जीने वाले लोग कभी स्वाभिमानी नहीं हो सकते !दूसरी बात ऐसे परिस्थिति में स्वदेश में तो अपनी सरकार है यहाँ तो अपने प्रति सरकार की हमदर्दी मिल भी सकती है किंतु विश्व के किसी अन्य देश में तो जो करेगा उसे मिलेगा अन्यथा घर बैठे वहाँ गुजारा कैसे होगा ! इसीलिए सवर्णों में भी गरीब वर्ग है किंतु वो सरकारी दरवाजे का भिखारी नहीं बना अपने सम्मान स्वाभिमान को बचा कर रखा है । 
      ये शोषण ये आरक्षण ये दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं  के शोषण के गीत केवल अपने देश में ही गाए सुने जाते हैं बाकी विश्व तो अपने नागरिकों को संवैधानिक सुविधाएँ देता है और तरक्की के रास्ते पर छोड़ देता है और सब दौड़ने लगते हैं एक दूसरे के साथ कोई थोड़ा आगे चलता है कोई थोड़ा पीछे किन्तु  यहाँ की तरह ऐसा कभी नहीं होता है कि हर छोटी बड़ी बात के लिए सवर्णों पर शोषण के आरोप लगाकर अपने को पीछे कर लिया जाए !किंतु  आपकी तरक्की होने या न होने के लिए आप स्वयं जिम्मेदार हैं न कि सवर्ण !यदि किसी के घर बच्चा न पैदा हो तो दोष पड़ोसी पर कैसे  मढ़ दिया जाए ! ये कहाँ का न्याय है । दबे कुचले दलितों पिछड़ों अल्पसंख्यकों महिलाओं आदि के हितैषी होने  दावा करने वाले लोग ऐसे ही फार्मूले उछालकर देश की आवादी के एक बहुत बड़े वर्ग को स्वाभिमान विहीन बनाते जा रहे हैं उचित तो ये है कि ऐसे जुमले उछालने वाले लोगों से समाज को बचाया जाना चाहिए ।
          जो जाति  समुदाय संप्रदाय या वर्गवाद के नाम पर विकास की बात करे वो ऐसी भेदभावना  से समाज को तोड़ तो सकता है किंतु जोड़ नहीं सकता ! विकास की कोई भी बात जब तक सबके लिए नहीं होगी तब तक कभी भी स्वस्थ समाज का निर्माण नहीं कर सकती है । 
          बड़ी बड़ी रिस्क लेकर जो लोग दिन रात मेहनत करके अपने ब्यापार स्थापित करते  हैं  उस भयंकर संघर्ष में कई लोगों की तो कई कई पीढ़ियाँ खप जाती हैं ऐसे परिश्रमी लोगों के हिस्से से टैक्स रूप में धन लेकर सरकार देश एवं देशवासियों के विकास के लिए योजनाएँ चलाती है अन्यथा वो ब्यापारी वर्ग भी यदि कायरता करने लगे और कह दे कि सरकार हमारा शोषण करके सबको बाँट रही है तो जाओ हम भी नहीं कर सकते काम ,सरकार हमें भी भोजन वस्त्र उपलब्ध करवावे !आप स्वयं सोचिए कि आखिर सरकार कहाँ से लाएगी !इसलिए जो देश का कमाऊ वर्ग है उससे टैक्स लेना और वो टैक्स खाऊ वर्ग में बाँट देना और ऊपर से ये कहना कि इनके पूर्वजों ने हमारा शोषण किया था इसलिए हम पिछड़ गए !ये कितनी मूर्खता पूर्ण बात है हमें सच्चाई क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए कि प्राचीन काल में सभी जातियाँ संख्या और सम्पत्तियों में बराबर थीं । सवर्णों ने अपना सारा ध्यान संपत्तियाँ बढ़ाने पर लगाया और जनसंख्या बढ़ने पर संयम रखा तो उनकी जन संख्या उतनी नहीं बढ़ी किंतु संपत्तियाँ बढ़ती गईं !दूसरी ओर दलितों पिछड़ों  ने संपत्तियाँ बढ़ाने का इरादा ही छोड़ दिया केवल जनसँख्या ही बढ़ाते चले गए तो सवर्णों के अनुपात में संपत्तियाँ तो घटनी ही थीं इन जनसँख्या बढ़ने में सवर्णों का क्या योगदान था आखिर उन्हें क्यों कोसा जा रहा है आज सवर्णों की संपत्तियां देखकर लालच बढ़ रहा है तो क्या करें सवर्ण ।

Wednesday, 9 March 2016

मनुस्मृति में जो लिखा है वो तो जला कर मिटा दोगे किंतु भाग्य में जो लिखा है उसका क्या करोगे !

 मनुस्मृति महानजातिवैज्ञानिक महर्षि मनु की वो अमरकृति है जिसमें पूर्वजों के चेहरे देखकर उसी युग में ये समझ लिया गया था हजारों वर्षों बाद की पीढ़ियों का भविष्य ! लाखों वर्ष पहले ही लिख दिया गया था कि ये मनुस्मृति जलाने की भावना रखने वाले कायर लोग बातें चाहें जितनी बड़ी बड़ी करें किंतु जब मेहनत करने की बात  आएगी तब अपने पूर्वजों की तरह ही साफ साफ कह देंगे कि हमतो आरक्षण के बिना तरक्की नहीं कर सकते।उस दिन भाग्यप्रदत्त  चुनौती स्वीकार करने की इनकी हिम्मत नहीं पड़ेगी !इनमें सवर्णों की तरह आत्म सम्मान की भावना क्यों नहीं होनी चाहिए कि यदि सवर्ण बिना आरक्षण के तरक्की कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते !उसके लिए प्रयास करना चाहिए पहली बार में सवर्ण भी नहीं सफल होते हैं इसलिए आरक्षण के भिखारी बनकर जीने से अच्छा है भाग्य के भाल पर बार बार परिश्रम की चोट करो कर्मवाद कभी बाँझ नहीं हुआ है । 
      इनकी पीढ़ियाँ अपनी असफलताओं का दोष हमेंशा सवर्णों के मत्थे मढ़ती रहेंगी इसी लिए महर्षि मनु ने सवर्णों को हमेंशा  इनसे दूर रहने की सलाह दी थी!उन्हें पता था कि ये गलतियाँ खुद करेंगे और दोष सवर्णों का लगा देंगे !अगर इनकी एक रोटी खा लेंगे तो ये चिल्लाते घूमेंगे कि सवर्ण लोगों ने हमारी रोटी न खाई होती तो हम गरीब नहीं होते !इसीलिए मनु महाराज ने कहा कि बदनाम होने से अच्छा है कि इनका छुआ कुछ भी मत खाओ पियो !इनसे दूर ही रहो उसी में भलाई है !
    उस युग में महर्षि मनु  ने समस्त प्रजा से पूछा विद्याओं का अध्ययन जो करेगा उसे ब्राह्मण कहा जाएगा !जिन्होंने पढने लिखने की हिम्मत बाँध कर हाँ किया वे ब्राह्मण हो गए !दूसरे नंबर पर आया जो रक्षा करेगा उसे क्षत्रिय कहा जाएगा !जिन जिन लोगों ने हिम्मत बाँध कर हाँ की वो लोग क्षत्रिय मान लिए गए !इसके बाद कहा कि व्यापार करेंगे वे बैश्य माने जाएँगे !जिन्होंने साहस करके ये चुनौती स्वीकारी वे वैश्य हो गए !जिन्होंने कोई चुनौती स्वीकार करने की हिम्मत ही नहीं की उनसे कह दिया गया कि कमजोर वर्ग जो कर पावे वो कर लेना देना लोग मान गए !तब से ये बचे खुचे काम करते चले आ रहे हैं । 
  गरीब सवर्ण भी अपने बच्चों को छोटेपर से ही ये तीन बातें बार बार समझाते  रहते  हैं -
  1. बच्चों से साफ कह देता है पढ़ोगे  लिखोगे तो कुछ बनोगे और नहीं भी बने तो भी कमा खाओगे अन्यथा आरक्षण के कारण तुम्हें सरकारी नौकरियाँ मिलना आसान नहीं होगा !
  2. दूसरीबात बच्चों से कहता है कि यदि तुम पढ़े भी नहीं और मेहनत भी करना नहीं सीखा और सोचा कि चोरी बदमाशी लूटपाट  आदि करके रईस बन जाओगे तो याद रखना दलितों को एक बार माफ भी हो जाएगा इन कठोर कानूनों से सवर्णों का बचना मुश्किल होगा !
  3.  तीसरीबात किसी के साथ  गुंडागर्दी मत करना दलितों और महिलाओं से तो बिलकुल ही मत करना इन्हें अफीम समझकर इनसे दूर ही रहना । ना नशेपत्ती की लत मत पड़ने देना। 
    इस सीख से और कुछ होता हो न होता हो सवर्णों के बच्चे अक्सर पढ़ जाते हैं जो नहीं पढ़ पाते वो भी गिड़गिड़ाते रहते हैं सबके सामने !दूसरी ओर दलित लोगों को न कानून से भय होता है और न बेरोजगारी का !सारी  जिम्मेदारी सरकार की !पढ़ें या न पढ़ें नौकरी पक्की !
   दलित लोग सवर्णों को बदनाम न करें सवर्णों ने इनका शोषण तो दूर इनसे एक कौड़ी भी नहीं ली है कभी ! और था ही इनके पास क्या जो कोई शोषण करेगा अपनी दाल रोटी के लिए तो आरक्षण के बिना गुजारा  नहीं होता तो फिर सवर्णों ने इनका शोषण करके ले आखिर क्या लिया होगा इनसे !  दलितों का शोषण न उस युग में हुआ था और न ही इस युग में हो रहा है ये लोग तरक्की न उस युग में कर पा रहे थे और न इस युग में कर पा रहे हैं उस युग में लोगों की कृपा पर गुजर बसर होती रही थी इस युग में सरकारी कृपा आरक्षण आदि के रूप में सहायक हो रही है परंतु किसी के कृपा पूर्वक किए गए अनुग्रह से दिन तो काटे जा सकते हैं किंतु तरक्की,सम्मान और स्वाभिमान नहीं बचाया जा सकता वो अपने परिश्रम से ही बचेगा !ये बात तो हमारे दलित बंधुओं को भी समझनी होगी !
     सवर्णों ने उस युग में किसी का शोषण किया  होगा यदि ये कल्पित बात मान भी ली जाए तो आजादी मिलने के बाद से आज तक के 67 वर्ष कम तो नहीं होते विकास करने के लिए !आखिर तब से तो बहुत दुलराए जा रहे हैं दलित !आरक्षण से लेकर सारी सुविधाएँ  दी जा रही हैं दलितों को !और हर पार्टी दलितों मुस्लिमों और महिलाओं का रोना धोना लेकर ही तो उतरती है चुनाओं में ,सवर्णों का तो कोई नाम भी नहीं लेता है और जो लेता भी है वो निंदा ही करता है सवर्णों की !फिर भी सवर्ण न केवल जिंदा हैं अपितु परिश्रम पूर्वक अपनी   तरक्की भी किए जा रहे हैं । इस प्रकार से सवर्ण लोग अपने पूर्वजों की ईमानदार परिश्रम शीलता का परिचय देते जा रहे हैं कि न शोषण उन्होंने किया था न हमने किया है उन्होंने भी परिश्रम पूर्वक कमाया था और हम भी परिश्रम पूर्वक ही  कर रहे हैं अपनी अपनी तरक्की !किंतु जो लोग हमारे पूर्वजों को तरक्की करते देख उस युग में उनसे ईर्ष्या कर रहे थे उन्हीं की संतानें आज हमारी तरक्की पर भी उसी प्रकार का शक कर रही हैं !राजनैतिक दल चुनाव जीतने के लालच में इन्हें वोट बैंक समझ बैठे हैं वो मिला रहे हैं इनकी हाँ में हाँ !किंतु सच्चाई कुछ और ही है इसीलिए अन्ना जी भी कह रहे हैं कि "आरक्षण देश के लिए बड़ा खतरा -अन्ना हजारे"
  बंधुओ ! देश के कुछ लोग मानते हैं कि वे तरक्की कर ही नहीं सकते इभी तो वे उसके लिए कोई प्रयास भी नहीं कर रहे हैं इसीलिए नेता उन्हें तरक्की कराने के नाम पर खुद भोग रहे हैं उनके हिस्से का आरक्षण और जीतते जा रहे हैं चुनाव !किन्तु जो लोग अपने बल पर तरक्की करना चाह रहे हैं उन्हें रोकने के लिए नेताओं ने  आरक्षण का बाँध बना रखा है ! आखिर आरक्षण को आगे करके देश को प्रतिभाविहीन बनाने का षड्यंत्र क्यों ?
    बंधुओ !अन्ना जी का कहना कहाँ तक सही है जानिए आप भी ! 
     आखिर तरक्की के पथ पर बढ़ती सवर्ण प्रतिभाओं के पैर क्यों बाँधे जा रहे हैं आरक्षण की रस्सियों से ! यदि सवर्ण बच्चे देश का गौरव बढ़ाएँ तो वर्तमान राजनेताओं को उनसे घृणा क्यों है देश की प्रतिभाओं को कोसना कहाँ का न्याय है उन्हें पकड़ कर रखना कितना उचित है !
क्या ये सही है ?
    यदि दलितों में दम नहीं है संघर्ष पूर्वक तरक्की करने की और सवर्ण कर लेते हैं तो उनकी प्रतिभा का सम्मान होना चाहिए न कि उन्हें रोकने के लिए आरक्षण की लगाम लगाई जाए !सवर्ण कहीं आगे न बढ़ जाएँ !ऐसी सोच ही गलत है !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
प्रतिभा संपन्न सवर्ण भी देश की संपत्ति हैं उनकी उपेक्षा क्यों की जाए ?
    आरक्षण देश के सवर्णों के लिए खुली चुनौती है चूँकि देश के दलितों पिछड़ों के साथ सवर्णों के पूर्वजों ने जो कल्पित गद्दारी की है उसका दंड सवर्णों को भोगना  ही पड़ेगा !कहने का मतलब ये कि इस दकियानूसी भावना के कारण सवर्णों को विकास के पथ पर आगे बढ़ने से रोका जाता रहेगा!ऐसे अंधविश्वास की उपज है आरक्षण ,संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
संख्या में बहुत कम सवर्णों ने दलितों का शोषण कैसे किया होगा दलितों ने सहा क्यों होगा !इसलिए सवर्णों पर लगाया जाने वाला ये आरोप झूठा है !
    किंतु सवर्णों की संख्या दलितों से हमेंशा कम रही फिर वे दलितों का शोषण कैसे कर सकते थे और वे करते भी तो दलित सह  क्यों लेते !इतने बड़े जूठ की बुनियाद पर टिका है संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
"सवर्णों ने दलितों का शोषण किया था " इस झूठे जुमले की कमाई आखिर कब तक खाई जाएगी ? 
   बंधुओ !नक़ल करते हुए पकड़े जाने के कारण फेल हो जाने वाले विद्यार्थी जैसे अपने असफल होने का सारा दोष परीक्षा हाल में साथ बैठे विद्यार्थी पर मढ़ देते हैं ऐसी ही हरकत का शिकार हुए हैं सवर्ण !अन्यथा ऐसे विद्यार्थियों को दूसरे साल की परीक्षा में तो पास होना चाहिए था किंतु साठ साल से आरक्षण लेने के बाद भी फेल फिर भी दोषी हैं सवर्ण ! धिक्कार है ऐसी गिरी हुई सोच को !आखिर जिम्मेदार लोगों को अपनी कमी क्यों नहीं स्वीकार करनी चाहिए !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
 'दालित्य' बीमारी के लिए पेनकिलर है आरक्षण !क्यों न खोजा  जाए इसका स्थाई इलाज !
    बंधुओ ! दलितों में ऐसी क्या बीमारी है कि वे सवर्णों की अपेक्षा कमजोर ही रहते हैं कितना भी आरक्षण रूपी घी पिला लो ! इसीलिए ये लोग अपनी तरक्की स्वयं नहीं कर सकते जबकि सवर्णवर्ग के गरीब लोग भी अपनी तरक्की स्वयं करते हैं साठ वर्ष आरक्षण भोगने के बाद भी यदि ये पिछड़े ही रहे तो अब आरक्षण की समीक्षा हो साथ ही सरकार को इस विषय पर विश्व के वैज्ञानिकों को आमंत्रित करके स्वतंत्र रिसर्च करवाना चाहिए और पता लगाना चाहिए कि वास्तव में इनमें बीमारी क्या है ?और उसका इलाज क्या  होना चाहिए अन्यथा विश्व के विकसित देश कहीं बोझ समझ कर इनका प्रवेश ही अपने यहाँ न बंद कर दें !इसलिए समय से इस बीमारी का प्रापर इलाज होना चाहिए अन्यथा आरक्षण रूपी पेनकिलर देकर टाली गई बीमारी कहीं नासूर न बन जाए !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण की आड़ में बढ़ा है भ्रष्टाचार !कौड़ी कौड़ी के नेता करोड़पति हो गए !
      दलितों के अधिकारों के लिए हो हुल्लड़ मचाने वाले नेताओं की संपत्ति की जाँच किसी सक्षम एजेंसी से करवानी चाहिए कि जब ये दलित हितैषी लोग राजनीति में आए थे तब इनके पास संपत्ति कितनी  थी उसके बाद इन्होंने ऐसा क्या धंधा व्यापार किया अर्थात इनकी आय के स्रोत क्या रहे जो आज अरबों खरबों की संपत्ति उनके पास बनी कैसे !कहीं ये दलितों के नाम पर हुल्लड़ मचा मचा कर अपने घरों को ही तो नहीं भरते रहे !और यदि ऐसा है तो उनसे छीन कर दलितों के हक़ दलितों को दिलाए  जाने  चाहिए !इसी प्रकार से आरक्षण के नाम पर दलितों के हमदर्द नेता आगे भी कर सकते हैं धोखाधड़ी !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण दलितों की क्षमता पर सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह  !
     जो दलित वर्ग अपने बल पर अपना घरबार नहीं चला सकते अपनी रसोई और परिवार चलाने के लिए आरक्षण माँगा करते हैं ऐसे लोगों की क्षमता पर प्रश्न उठने स्वाभाविक हैं लोग सोच सकते हैं कि इन्हें चुनाव लड़ाने का क्या औचित्य !यदि ये जीत भी जाएँगे तो अपने दायित्व का सम्यक निर्वाह कर पाएँगे इस पर भरोसा कैसे किया जाए !जो घर नहीं चला सकते वे विधान सभा लोक सभा अपना दायित्व कैसे निबाह पाएँगे !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण किसी भीख से कहाँ अलग है और भिक्षुक का सम्मान कहाँ रह जाता है !
     आरक्षण दान तो है नहीं जो हमेंशा चलता रहे !ये तो बिना माँगे मिले तो सहयोग और माँगने पर मिले तो भिक्षा !किंतु सहयोग हो या भिक्षा लेने की भी तो कोई सीमा होनी चाहिए अन्यथा रोज रोज मुख उठाए सरकार के  दरवाजे पर खड़े रहोगे तो सम्मान नहीं रह जाता !इस प्रकार से आरक्षण जितने दिन आगे बढ़ाया जा रहा है उतने दिन दलितों का सम्मान दाँव पर लगाया  जा रहा है !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
दलितों को आत्म सम्मान के लिए जागरूक क्यों न किया जाए !
     सुना है कि दलितों को पहले कभी वेद नहीं पढ़ने दिए गए इसलिए उनका विकास नहीं हो सका या उन्हें अछूत माना जाता रहा इसलिए उनका विकास नहीं हो सका !इस विषय में दलित बंधुओं से मेरा विनम्र निवेदन है कि अब आप वेद पढ़िए और कीजिए अपना विकास साथ ही सवर्णों को अछूत घोषित कर दीजिए और मत रखिए सवर्णों से अपनी रोटी बेटी के संबंध !आखिर कुछ स्वाभिमान तो अपना भी होना चाहिए ।मित्रो !किसी भी प्रकार का आरक्षण स्वाभिमान नहीं रहने देता है ,संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
आरक्षण को चुनावजीतने का साधन क्यों बनाया जाए ?
     बंधुओ !  जो नेता लोग किसी लायक नहीं होते बिलकुल कामचोर मक्कार लोग भी चुनाव जीतने के लिए सवर्णों को गालियाँ देना शुरू कर देते हैं और दलितों की हमदर्दी दिखाते हुए सवर्णों से लड़ने को तैयार दिखते हैं किंतु अपनी राजनैतिक पार्टियों में या सरकारों में दलितों को कोई सम्मान मिलने लायक या निर्णायक पद कभी नहीं देते हैं और चुनाव जीतने के बाद दलितों के हित  के नाम पर जो भी संपत्ति पास करवा पाते हैं वो सब अपने एवं अपने नाते रिश्तेदारों में बाँट लेते हैं ऐसे कामचोर मक्कार नेताओं के निठल्ले लड़के तक बिना कुछ किए धरे करोड़ों अरबों पति हो जाते हैं और दलित जहाँ के तहाँ बने रहते हैं !संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !
      किसी को दलित क्यों कहा जाए ?
  आनाज के किसी दाने के दो टुकड़े हो जाएँ तो वो 'दाल' कहे जाते हैं किंतु जब उसी दाने के छोटे छोटे बहुत टुकड़े कर दिए जाएँ तो उन्हें 'दलिया' कहा जाता है इसी 'दलिया' को 'दलित' कहा जाता है !बंधुओ !क्या ये सही है कि किसी हँसते खेलते स्वस्थ शरीरों वाले किसी परिश्रमी वर्ग को दलित कहा जाए !ऐसा कहने के पीछे का भाव क्या रहा होगा !दलिया का मतलब कुचला हुआ आनाज या टुकड़े किया हुआ आनाज !
   भारत के एक सम्मानित वर्ग को ऐसे अशुभ सूचक नामों से बुलाया जाए उसकी ऐसी पहचान बनाई जाए ये कहाँ का न्याय है !मेरी समझ में तो ये समस्त मनुष्य जाति  का अपमान है कि उसे जीते जी टुकड़ों में विभाजित बता दिया जाए !ऐसे कल्पित दालित्य को आरक्षण का आधार बनाया जाना वास्तव में देश के लिए खतरा है !

   अन्ना हजारे जैसे बड़े समाज सुधारक को भी अब लगने लगा है कि आजादी के समय गरीब तबके को आगे लाने के लिए आरक्षण की आवश्यकता थी किंतु आरक्षण की भूमिका अब समाप्त हो गई है इतने दिन तक आरक्षण के सहयोग से जिन्हें आगे बढ़ना था वे बढ़ गए किंतु जो लोग आरक्षण का भोग करने की भावना से इसे आजीवन बनाए  रखना चाहते हैं वो ठीक नहीं हैं संभवतः इसी कारण से आरक्षण देश के लिए खतरा है !

Sunday, 6 March 2016

मोदी विरोध का इनाम ,केजरीवाल बुलाए गए पाकिस्तान ! जो जितना बड़ा मोदीविरोधी , पाकिस्तान का वो उतना करीबी !!

     मोदी विरोधियों के संग्रहालय हैं केजरीवाल जी ! PM की निंदा करने में सर्वोपरि केजरीवाल जी को एक बड़ी कामयाबी हाथ लगी कि उनकी इसी काबिलियत के लिए उन्हें पाकिस्तान से बुलावा आया है !
    कराँची के साहित्य सम्मेलन में बुलाए गए केजरीवाल जी क्या साहित्यकार हैं ?या गला बहुत सुरीला है !अगर मुख्यमंत्री समझ कर बुलाए गए होते तो इतने प्रदेशों के और भी तो मुख्यमंत्री थे किन्तु मोदी निंदा जैसी काबिलियत के बल पर ही तो जा रहे हैं पाकिस्तान ! 
     बंधुओ !केजरीवाल जी भारत के राजनेताओं  को पहले भ्रष्ट लुटेरे बेईमान गद्दार आदि और क्या क्या नहीं कहा करते थे किंतु जब से मुख्यमंत्री बने हैं तब से उन दोष दुर्गुणों की निंदा सुनी है किसी ने क्या ?अब वो सारे दोष ही गुण लगने लगें हैं क्योंकि कहावत है -"जहाँ अपना संतोष वहाँ गधा मारने से कौन दोष !" दुर्गुण भी यदि अपने हों तो कितने प्यारे लगते हैं केजरीवाल जी !
    पहले जिस सिक्योरिटी ,राजनैतिक भ्रष्टाचार, सुख सुविधा पूर्ण बिलासी जीवन की यही केजरीवाल निंदा किया करते थे अब उन सारे दोष दुर्गुणों के भण्डार हैं दिल्लीनरेश !इसलिए अब गाली दें तो किसको दें सब अपने हैं !पहले जिन नेताओं की निंदा किया करते थे अब उन नेताओं से स्तर ऊपर जा चुका है इसलिए अब केवल भारतीय PM की निंदा करते हैं बस !केजरीवाल जी के मुख से किसी ने कभी पाकिस्तान या वहाँ के PM की निंदा सुनी है क्या ? ये केवल भारत के नेताओं की निंदा करते हैं उन्हें ही भ्रष्ट लुटेरे बेईमान गद्दार आदि सब कुछ कहते हैं !ऐसे लोगों को निमंत्रण क्या निमंत्रणपत्रों  के बंडल भेज देगा पाकिस्तान !भारत में भी  उसे कोई अपना तो दिखा !
        दिल्ली सरकार में केजरीवाल जी मुख्यमंत्री जरूर हैं किंतु उनके पास किसी मंत्रालय का कोई  काम नहीं है और बिना  काम की सैलरी लेना भ्रष्टाचार नहीं है क्या ?उन्हें पार्टी ने PM की निंदा करने के काम पर लगाया है CM शीला जी की निंदा करके CM बन गए तो पार्टी को लगता है कि PM की निंदा करते करते PM भी बन सकते हैं । इस चक्कर में जहाँ जहाँ मोदी विरोध की सम्भावनाएँ होती हैं वहाँ बिना  बुलाए पहुँच जाते हैं पाकिस्तान से तो बोलावा आया है वहाँ कम से कम अपने मन की बात तो कह लेंगे ! 
     मोदी विरोधियों की ठेकेदारी सँभाले केजरीवाल जी  से ही नीतीश कुमार जी ने भी सीखे थे मोदी विरोधी गुर ,अपनी मोदी विरोधी काबिलियत पर ही तो लालू प्रसाद के मंच पर भी केजरीवाल को मिल सकी थी जगह !अन्यथा क्या केजरीवाल को मुख लगाते लालूप्रसाद ! न केवल इतना केजरीवाल जब लालू प्रसाद के मंच पर पहुँचे तो लालू प्रसाद ने केजरीवाल को गले  लगा लिया था अन्यथा और कौन सा ऐसा गुण था इनमें कि लालू प्रसाद इन्हें घास डालते !   
         मोदी जी चैन से बैठते नहीं हैं कुछ न कुछ करते ही रहते हैं किंतु केजरीवाल कुछ करते नहीं जब खांसी ठीक होती है तो बस वही मोदी जी की निंदा किया करते हैं!
  पहले की सरकारों में आम जनता को तो पता ही नहीं लगता था कि मालिक लोग देश के विषय में क्या फैसला ले रहे हैं !अब मोदी जी कहाँ जा रहे हैं किस काम के लिए जा रहे हैं किससे किससे मिलना है क्या क्या बात करनी है इसके बाद किस किस से मिलकर क्या बात हुई उससे क्या लाभ हानि होने की संभावना है आदि बातों का हिसाब किताब वो जनता तक पहुँचाते हैं जनता की भावनाओं से इतना जुड़ते हैं कि जनता के सुख दुःख में जनता के साथ इतना घुलमिलकर रहते हैं कि तुरंत न केवल जनभावनाओं के अनुशार एक्टिव हो जाते हैं अपितु इतनी शीघ्र प्रतिक्रिया देकर समाज को बता देते हैं देशवासियो ! तुम घबड़ाना नहीं हम तुम्हारे साथ हैं तुम्हारी पीड़ा हम तक पहुँच चुकी है तुम जैसा चाह रहे हो वैसा ही होगा तुम्हारा मोदी वैसा ही कर रहा है काम प्रारम्भ हो चुका है कश्मीर की बाढ़ हो या नेपाल का भूकंप या बिहार का तूफान या कुछ और देश को आश्वस्त कर देते हैं कि देश वासियों तुम चैन से सो जाओ तुम्हारी भावनाओं का आदर करती हुई मोदी सरकार की सारी मशीनरी वैसा करना प्रारम्भ कर चुकी है जैसा तुम लोग करवाना चाह रहे हो ! देश वासियों की इच्छाओं का सम्मान इस सरकार की रगों में है अन्यथा इसके पहले किसी प्रधानमंत्री ने जन भावनाओं का आदर करते हुए अपना कोट नीलाम नहीं किया है किंतु मोदी जी ने किया है ऐसे समर्पणों का सम्मान करना हमें भी सीखना होगा !जो अभी तक की सरकारों में होता नहीं देखा गया है । 
     केजरीवाल को तो पुलिस के बहाने केंद्र सरकार को ही बदनाम करने में मजा आता है और वही वो कर भी रहे हैं !जनता उनकी इस प्रवृत्ति से तंग आ चुकी है उनके किसी भी आचार  व्यवहार से आम आदमियत दूर दूर तक नहीं झलक रही है और न ही कानून व्यवस्था में ही कोई बदलाव आया है ऑटो वाले तक मीटर से जाने को तैयार नहीं होते हैं  फिर भी केजरीवाल जी का नारा है "वो हमें परेशान करते रहे ,हम काम करते रहे "किंतु पता ये नहीं चल पा रहा है कि केंद्र सरकार को बदनाम करने के अलावा केजरीवाल जी काम क्या करते रहे ! पानी शुद्ध नहीं हैं सरकारी आफिस हों या स्कूल पहले के जैसे ही चल रहे हैं परिवर्तन आखिर हुआ कहाँ है अगर किसी एक आदमी की बचपन से आने वाली खाँसी ठीक हो गई तो इसका मतलब ये तो कतई नहीं है कि दिल्ली ठीक हो गई ! स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट कितना भी बढ़ा लिया गया हो किन्तु खाँसी दिल्ली में नहीं ठीक हो सकी इसका मतलब दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाएँ विश्वसनीय नहीं थीं तब तो बहार जाकर कराया गया इलाज !
  इसलिए उनका अब ये नारा होना चाहिए था कि देश विदेश में घूम घूम कर"मोदी जी काम करते रहे फिर भी हम उन्हें बदनाम करते रहे !"
     केंद्र सरकार को बदनाम करने के लिए बाकायदा बजट पास किया गया ! आखिर इससे जनता का क्या लाभ हुआ क्या इससे जनहित के जरूरी काम नहीं किए जा सकते थे !