किसी बुरे व्यक्ति से बदला लेने के लिए मत सोचो !यदि वो गलत है तो स्वतः नष्ट हो जाएगा !सढ़े हुए फल क्या डाली में लगे रह सकते हैं !
रिश्ते अवसर वाद से नहीं चलते वे तो भरोसे से चलते हैं !
Jyotish jaanch Sevaa
'ज्योतिष सेवा संवाद'
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान के संस्थापक एवं समयवैज्ञानिक हैं !
आपको समय से पहले और भाग्य से अधिक कुछ मिलेगा नहीं ,किंतु आपके जीवन में किस कार्य के पूरा होने का समय कब आएगा !उस समय भाग्य किस प्रयास में कितनी सफलता देगा !यह जानने के लिए आप हमारे यहाँ संपर्क करें !
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राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान के अनुसंधान कार्य !
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान के अनुसंधानों की कठिनाइयाँ !
अनुसंधानों में सहयोग के लिए निवेदन !
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ !
Prachin Vigyan Kaise Kam Karta Tha?
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
खोज रहा है ऐसी समस्याओं के समाधान
वर्तमान समय में विज्ञान उन्नतशिखर पर है,जिसके द्वारा सुख सुविधाओं के साधन तो विकसित किए जा सके हैं किंतु प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से हो रही जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं हो पा रहा है |वर्तमान समय का उन्नत विज्ञान उस उँचाई पर नहीं पहुँच पा रहा है, जहाँ ऐसी समस्याओं का निर्माण होता है |समस्याओं के समाधान भी उसी उँचाई पर संभव हैं | किसी बड़े बाँध से काफी अधिक मात्रा में जल छोड़ा जा रहा हो तो उससे बाढ़ आनी निश्चित है|जिससे जनधन का नुक्सान हो सकता है | यदि इस नुक्सान से समाज की सुरक्षा की जानी है तो इस पानी छोड़े जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना सबसे पहले आवश्यक है |नदी के इतने तेज बहाव से होने वाले जनधन के नुक्सान को तत्काल की तैयारियों के बलपर सुरक्षित किया जाना संभव नहीं हो पाता है |
इतनी अधिक मात्रा में पानी आ रहा है ये पहले से पता न हो तो अचानक बाढ़ आएगी ही उससे जनधन का नुक्सान भी उतना होगा ही जितना होना है |जल के इतने तेज बहाव को कैसे रोक लिया जाएगा | उसके साथ बहे जा रहे जनधन को कैसे पकड़ लिया जाएगा और कितना सुरक्षित बचा लिया जाएगा |
जिस प्रकार से किसी गाँव में घुसकर उपद्रव मचा रहे हाथी के आगे पीछे कुत्ते भौंकते भले रहें किंतु उस हाथी के उपद्रवों को रोकना उन कुत्तों के वश में नहीं होता है | ये जानते हुए भी कुत्ते उस हाथी के आगे पीछे भौंकते रहते हैं और हाथी नुक्सान करता रहता है |जिस प्रकार से कुत्तों के भौंकने से हाथियों के उपद्रवों को तुरंत की तैयारियों के बल पर रोका जाना संभव नहीं होता है | उसी प्रकार से मनुष्यों के द्वारा की गई तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को घटाया जाना संभव नहीं होता है | पहले से सही पूर्वानुमान लगाए बिना ऐसी आपदाओं से जनधन को सुरक्षित किया जाना संभव नहीं होता है | जिस प्रकार से हाथी को गाँव छोड़कर कभी तो जाना ही होता है |इसलिए जब वो हाथी अपने आपसे गॉंव छोड़कर चला जाता है | हाथी के जाने को यदि कुत्तों के भौंकने का परिणाम मानने की गलती की जाती रही तो हाथियों के ऐसे उपद्रवों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहा जाना चाहिए |
ऐसे अनुसंधानों से क्या हो पाएँगे समस्याओं के समाधान !
मौसम संबंधी जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमेंशा अनुसंधान होते रहते हैं !उन अनुसंधानों का आधार यदि सही हो और अनुसंधानों में सही वैज्ञानिक प्रक्रिया का परिपालन किया जाए तो मौसम मानसून एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में तो सही पूर्वानुमान लगाया ही जा सकता है | इसके साथ ही साथ महामारी जैसी घटनाओं से भी समाज की सुरक्षा करनी में इतनी कठिनाई नहीं होती |जैसे अनुसंधान होंगे वैसे परिणाम निकलेंगे ! ऐसी रिसर्चों से सच्चाई कैसे सामने लाई जा सकती है |
एक बार कुछ दृष्टिहीन (अंधे) लोगों को रिसर्च करने की जिम्मेदारी सौंपी गई | उन्हें पता लगाना था कि "हाथी कैसा होता है !" उन दृष्टिहीन लोगों ने हाथी को कभी देखा नहीं था और न ही उसके विषय में कभी कुछ सुना था |ऐसे लोगों के बीच हाथी को लाकर खड़ा किया गया | उन्होंने अपनी अपनी सुविधा के अनुसार हाथी का स्पर्श किया | उनमें से जिसका हाथ हाथी के जिस अंग पर पड़ा उसे लगा कि हाथी वैसा ही होता है | जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा उसने लिखा कि हाथी खंभे जैसा होता है !पेट पर जिसका हाथ पड़ा उसने लिखा कि हाथी पहाड़ जैसा होता है |इसी प्रकार से उनके अनुभवों से एक शोधप्रबंध (थीसिस)लिख तो दिया गया किंतु उसे पढ़कर यह जानना संभव नहीं हो पाया कि "हाथी कैसा होता है !"
इसलिए उन्हीं लोगों को रिसर्च करने के लिए एक और अवसर दिया गया | उन्होंने फिर अपनी अपनी सुविधानुसार हाथी को स्पर्श किया |अबकी बार उनके हाथ पहली बार से अलग कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अबकी उनके अनुभव भी पहले की अपेक्षा अलग हुए |इसलिए पहले के शोध प्रबंध से इस शोधप्रबंध की विषयवस्तु में बहुत अंतर आ गया |
पहली बार जिसका हाथ हाथी के पैर पर पड़ा था | इसलिए उसे लगा था कि हाथी खंभे जैसा होता है | अबकी बार उसका हाथ हाथी की पूँछ पर पड़ा तो उसे लगा कि हाथी सर्प जैसा होता है| ऐसे ही सभी के हाथ हाथी के कुछ दूसरे अंगों पर पड़े | इसलिए अब उन सभी के अनुभव बदल चुके थे | पहली बार पेट पर हाथ पड़ने से जिसने पहले हाथी को पहाड़ जैसा माना था | उसके हाथ में अबकी बार हाथी की सूँड लगी | इसलिए अबकी बार उन्होंने हाथी को अजगर जैसा बताया |
इस प्रकार से उन सभी के अनुभव बदलते देख कर उनसे पूछा गया कि हाथी को आपने पहले तो पहाड़ जैसा बताया था, किंतु अबकी बार आपने हाथी को अजगर जैसा बताया है | इन दो प्रकार के उत्तरों में अंतर आने का कारण क्या है ? अपनी अनुसंधान क्षमता की कमी स्वीकार करने के बजाए उन्होंने कहा कि हाथी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | इसलिए " हाथी कैसा होता है " अनुसंधानों के द्वारा यह पता लगाया जाना संभव ही नहीं है | इस प्रकार से "हाथी कैसा होता है |" यह पता लगाने के लिए शोधप्रबंध तो दो तैयार हो गए किंतु यह पता नहीं लगाया जा सका कि "हाथी कैसा होता है |"
इसी प्रकार से वर्षा आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में अनुसंधानों के नामपर शोध प्रबंध तो न जाने कितने तैयार किए जा चुके होंगे किंतु किसी भी घटना के स्वभाव के आधार पर उसे सही सही समझना एवं उसके विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में ऐसी स्थिति हमेंशा से देखी जाती रही है | महामारी के विषय में अपनी वैज्ञानिक क्षमताओं से समाज पहली बार परिचित हुआ है | इन्हीं अनुसंधानों के घमंड से जो लोग भारत के जिस प्राचीन विज्ञान को अंधविश्वास बताया करते हैं | उन्हीं के सामने भारत की उसी प्राचीन वैज्ञानिक क्षमता को प्रस्तुत कर रहा हूँ जिससे ये अनुमान लगाया जा सकता है कि इससे संबंधित अनुसंधान मौसम एवं महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए कितने सहायक हो सकते हैं |
अनुसंधानों की उपलब्धियाँ
वर्षा के विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा पा रहा है | भूकंप बाढ़ बज्रपात चक्रवात जैसी किसी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाना भी नहीं संभव हो पा रहा है ! यद्यपि वर्षा और तूफानों को कुछ पहले देखने के लिए उपग्रहों रडारों से मदद मिल जाती है किंतु अभी तक ऐसा कोई विज्ञान सामने नहीं लाया जा सका है | जिसके द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझा जा सके और उसके आधार पर ऐसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके |
महामारी संबंधी अनुसंधानों की भी यही स्थिति है | पड़ोसी देशों के साथ भारत
को तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु
हुई थी | उससे बहुत बड़ी संख्या में लोग केवल कोरोना महामारी में मृत्यु को
प्राप्त हुए हैं |जिसको समझने के लिए अभी तक कोई विज्ञान ही नहीं है |
प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाने के लिए कुछ नहीं किया जा सका है|ऐसी प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए अभीतक कोई विज्ञान नहीं है | ऐसी स्थिति में प्राकृतिक आपदाओं महामारियों आदि से मनुष्यजीवन को सुरक्षित बचाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक तैयारी नहीं है |
इसी प्रकार से लोगों के बढ़ते तनाव को कम करना,टूटते विवाहों को बचाना,बिखरते परिवारों को सुरक्षित बचाना,संबंधों में बढ़ती दूरियों को कम करने जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए अभी तक कोई विज्ञान नहीं है |
मनुष्यों के लिए सुख सुविधा के साधन भले खोज लिए गए हों किंतु ऐसी आपदाओं से मनुष्यों के जीवन को सुरक्षित बचाना संभव नहीं हो पा रहा है | मनुष्य ही यदि सुरक्षित नहीं बचेंगे तो उन सुख सुविधाओं का क्या होगा
!जो मनुष्यों को सुखी करने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा बनाई गई हैं |मनुष्यों के जीवन को सुरक्षित किए बिना उन अनुसंधानों के उद्देश्यों
की पूर्ति नहीं हो पा रही है |
ज्योतिष एक बहुत बडा विज्ञान है।हर क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण योगदान
है।आकाश के वर्षा आँधी तूफान से लेकर पाताल की परिस्थितियों का
वर्णन,सामाजिक विप्लव से लेकर सामाजिक महामारी आदि का भी इससे पता लगाया जा
सकता है।
व्यक्ति गत जीवन से जुड़ी छोटी से लेकर बड़ी से बड़ी तक सभी बातों से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी,बीमारी तथा भविष्य में होने वाली बीमारियों का भी ज्योतिष से पता लगाया जा सकता है।
ऐसी परिस्थिति में महामारी जैसी आपदाओं के समय लोगों को संक्रमित होने से कैसे बचाया जाए | महामारी मुक्त समाज की स्थापना करने के लिए क्या किया जाए !समाज में बढ़ते अपराधों,उन्मादों,ब्यभिचारों,भ्रष्टाचारों को घटाने के लिए किस प्रकार से प्रयत्न किए जाएँ | ऐसी सभी चिंताओं की चुनौती स्वीकार करने के लिए 'राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान' कृतसंकल्प है | भारत के प्राचीनविज्ञान के आधार पर अनुसंधानपूर्वक ऐसी सभी संभावित समस्याओं के पूर्वानुमान लगाकर उनके पैदा होने से पहले ही उनके समाधान आगे से आगे खोजे जा रहे हैं |
भारत का प्राचीनविज्ञान और कृषि अनुसंधान !
प्राचीनकाल में मौसम की जानकारी के लिए वायुमंडल के अध्ययन का सूक्ष्म अनुभव था | उस
अनुभव को सूत्रों में बॉंधकर उन्हें सिद्धांत रूप दे देना ये बहुत बड़ा काम
किया जाता था ।
उदाहरण के रूप में शुक्रवार को यदि आकाश में बादल दिखाई पड़ जाएँ और वो शनिवार को भी बने
रहें तो समझ लेना चाहिए कि पानी जरूर बरसेगा।
ऐसे ही यदि पूरब दिशा में बिजली चमकती हो और उत्तरदिशा में हवा चलने लगे तो समझ लेना चाहिए कि वर्षा अवश्य होगी।
इसी प्रकार वायुमंडल के अध्ययन के और बहुत सारे सूक्ष्म अनुभव भी हैं
| जिनसे यह पता चलता है कि इस सप्ताह ,महीने या वर्ष में कहॉं कितना पानी
बरसेगा।आँधी,तूफान,ओले,पाला,कोहरा,ठंड,गर्मी आदि कब कहॉं और कितनी पड़ेगी?
किस वर्ष कौन फसल कितनी होगी ? कौन फसल प्रकृति के प्रकोप के कारण कितनी
मारी जाएगी इसका भी आकलन इसी वायुमंडल से कर पाना संभव है।
भारत का प्राचीनविज्ञान और स्वास्थ्य संबंधी अनुसंधान !
वायुमंडल में किस तरह का वातावरण बनने पर किस प्रकार की बीमारी या
महामारी आदि फैलने की संभावना बन सकती है इसके भी काफी मजबूत सूत्र प्राचीन
विज्ञान में मिलते हैं।
आयुर्वेद में इस
प्रकार के प्राचीन वैज्ञानिक विवेचन का स्पष्ट विवरण है। वहॉं एक प्रसंग
में स्पष्ट समझाया गया है कोई महामारी या सामूहिक बीमारी फैलने से पहले
वायु मंडल में एक अजीब सा परिवर्तन आ जाता है जैसे जिसप्रकार की बीमारी
होनी होती है उसे रोकने में सक्षम जो बनौषधियॉं अर्थात जंगली जड़ी बूटियॉं
होती थीं सबसे पहले वो या तो सूखने लगती थीं या उनमें कोई कीड़ा लग जाता था
या किसी अन्य प्रकार से वे नष्ट होने लगती थीं। इस प्रकार का प्राकृतिक
उत्पात जहॉं जहॉं दिखाई पड़ता था वहॉं वहॉं उस प्रकार की बीमारी या महामारी
होने या बढ़ने की संभावना विशेष होती है।इसमें बनौषधियों में बीमारी रोकने
का जो विशेष गुण होता है। वह बीमारी पैदा होने से पहले ही नष्ट हो जाता
है। इस दुष्प्रभाव से ही महामारी फैलने पर वह दवा लाभ नहीं करने लगती है।
अतएव बनस्पतियों में परिवर्तन आता देखकर उस युग के कुशल स्वास्थ्य
वैज्ञानिक बड़ी मात्रा में बनौषधियों का संग्रह कर लेते थे।जहॉं की
बनौषधियॉं रोगी न हुई हों वहॉं की तथा बीमारी से पूर्व संग्रह की गई
औषधियॉं उस बीमारी से निपटने में पूर्णतः सक्षम होती थीं। उन्हीं के बल पर
उस युग के कुशल स्वास्थ्य वैज्ञानिक उन महामारियों पर विजय पा लिया करते
थे।
चिकित्सा शास्त्र आत्मा ,मन और शरीर इन तीन रूपों में स्वास्थ्य को देखता है।इस शरीर से जन्म जन्मांतर के कर्म संबंधों को स्वीकार करता है अच्छी बुरी परिस्थिति भी जीवन में हमें इसी कारण भोगनी पड़ती है।बड़ी एवं लंबे समय तक चलने वाली स्वास्थ्य संबंधी परेशानियॉं भी इसी प्रकार से घटित होती हैं।ऐसी परिस्थितियों में पहली बात बीमारियों का पता लगा पाना कठिन होता है और यदि पता लग भी जाए तो उन पर दवा असर नहीं करती या बहुत देर से करती है।यहॉ कुशल ज्योतिषी परिश्रम पूर्वक कारण और निवारण दोनों ढूँढ़ सकता है जिसका पालन करने के बाद दवा का प्रभाव होना प्रारंभ होगा।
चिकित्सा शास्त्रऔर भूत प्रेत
आयुर्वेद
और ज्योतिष दोनों ही भूत प्रेत दोष भी मानते हैं इसीलिए आयुर्वेद के
कई ग्रंथों में भूत प्रेत हटाने के मंत्र भी मिलते हैं।चूँकि ये हमारी
प्राचीन चिकित्सा पद्धति है | इसलिए इसे भूल जाना भी उचित नहीं होगा।कुछ
परिस्थितियॉं ऐसी पैदा हो जाती हैं जब कोई व्यक्ति भ्रमित हो जाता है ऐसे
में उसे यह बात समझ में नहीं आती है कि वह व्यक्ति क्या करे कहॉं जाए?जो
चिकित्सा क्षेत्र की तरह पारदर्शी एवं जवाब देय हो।
किसी की जन्मपत्री में शनि राहु केतु आदि की परस्पर दशा अंतर दशा हो कुंडली
में कष्ट प्रद स्थलों में होने के कारण उस व्यक्ति के पेट में लंबे समय से
दर्द चल रहा होता है | दवा फायदा नहीं कर रही होती है | ऐसे समय ज्योतिषी उसे शनि राहु आदि का
मंत्र जप करने को बताता है | तांत्रिक उसे भूत प्रेत दोष बताता है| चिकित्सक उसे बीमारी
बताता है | इस प्रकार से तीनों उसे स्वस्थ करने का दावा कर रहे होते हैं | अब वो व्यक्ति किस पर
विश्वास करे?यद्यपि धनवान लोग तो ज्योतिषी ,तांत्रिक और चिकित्सक तीनों के
बताए उपाय कर लेंगे किंतु गरीब आदमी कहॉं जाए?
यदि वो किसी तांत्रिक के पास जाए तो वो कितने बहम डालेगा कितना लूटेगा क्या करेगा कुछ पता नहीं ऐसा तांत्रिक पढ़ा
लिखा अर्थात इन विद्याओं को जानता भी है कि नहीं उसे कैसे पता चले ?यही
स्थिति ज्योतिष में भी होती है।वो जिसके पास भी जाएगा वो हो सकता है कि
पहले वाले से ज्यादा पैसे मॉंगे और ज्यादा बहम डाले | अब उसके पास चिकित्सा
की तरह पारदर्शिता रखने वाला जवाबदेय कोई दूसरा विकल्प नहीं होता है।चिकित्सा
में एक एक बीमारी के कई कई छोटे बड़े डाक्टर एवं एक से बढ़कर एक अस्पताल मिल
जाते हैं | वो कानूनी दृष्टि से भी जवाबदेय होते हैं किंतु ज्योतिष और तंत्र
के क्षेत्र में इस प्रकार की सुविधा नहीं पाई जाती है। आज की तो ये स्थिति है कि जिसे जो मन आवे सो बके,जिससे जितने पैसे चाहे लूटे,अपने नाम के साथ
जो चाहे सो डिग्री लगावे,और अपनी प्रशंसा में जितना चाहे उतना झूठ बोले या किसी
ओर से बोलवावे।
इसीलिए ऐसे समय हमारा 'राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान' न केवल यह निर्णय करके देगा कि उस रोगी की बीमारी ज्योतिषी,तांत्रिक या चिकित्सक किससे ठीक होगी | शास्त्रीय एवं कानूनी पारदर्शिता रखते हुए उसे उचित खर्च में उचित सलाह दी जाएगी |
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान के उद्देश्य-
ऋषि मुनियों के स्वाध्याय, साधना, परिश्रम से प्राप्त हुए अपने शास्त्रीय ज्ञानामृत से समाज को लाभान्वित होने का अवसर उपलब्ध करवाया जाए | उससे हर जाति, वर्ग समुदाय, संप्रदाय लाभान्वित हो। बिखरते परिवार राष्ट्र समाज फिर से एक दूसरे के साथ पूर्ण विश्वास पूर्वक जुड़ सकें। इससे परिवार, राष्ट्र, समाज फिर से खुशहाल हो सकेगा और अपना एवं अपने परिवार का पेट भरने के लिए प्राच्य विद्याओं के बहाने अपने सरल समाज को फँसने फँसाने का यह घृणित खेल बंद होना चाहिए |
हमारी
सनातन संस्कृति अत्यंत प्राचीन है यहॉं जन्म से मृत्यु तक हर कुछ कैसे
कैसे करना है। ये सब पहले ही लिखकर रख दिया गया है | उसी के अनुशार हमारे
सारे संस्कार एवं त्योहार आदि मनाए जाते हैं।आज शास्त्रीय घुसपैठियों के
कारण विद्वानों की शिक्षा का उचित सम्मान न होने से उनकी शास्त्रों से
रुचि घट रही है |वे बड़े बड़े कठिन ग्रंथ प्रायः पंडित पुजारी तो पढ़ना ही नहीं चाहते हैं । उनका काम विवाह पद्धति,गरुड़पुराण,सत्यनारायण
व्रतकथा और पंचांग इन चार किताबों से चल जा रहा है |इसलिए वो क्यों पढ़ें
धर्मशास्त्र के भारी भरकम ग्रंथ ?
इन विषयों के जो वास्तविक विद्वान हैं | एक तो उनकी संख्या बहुत कम है | दूसरे
उनकी इस विशेषज्ञता के विषय में समाज को समझावे कौन?ऐसे विद्वानों से
संपर्क करके और उनके धर्मशास्त्रीय ज्ञान का समाजहित में प्रचार प्रसार
करने के लिए 'राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान' प्रयासरत है।जिससे आम आदमी उनके धर्मशास्त्रीय ज्ञान
का लाभ ले सकेगा।
वेद,
पुराण, उपनिषद,योग,रामायण,वास्तु,हस्तरेखा आदि जो भी प्राचीन विद्याओं से
संबंधित प्रश्न हैं उनके प्रमाणित उत्तर देने के लिए संस्थान की ओर से व्यवस्था की गई है। ऐसे सभी
बड़े ग्रंथों को अपने पास रखना या पढ़ पाना या पढ़कर समझ पाना आम आदमी के लिए
संभव नहीं हो पाता है | वह ऐसे विषयों के विद्वान कहॉं ढूँढ़े? ऐसे में उसे कुछ गलत सही पता
है | वही बकने बोलने लगता है | ऐसे लोगों के लिए भी संस्थान की ओर से व्यवस्था की
गई है।जिससे लोगों को बहुत महॅंगे एवं भारी भरकम ग्रंथ रखने की आवश्यकता नहीं
पड़ती है | वो संस्थान के नंबरों पर फोन करके मॉंग सकते हैं संबंधित बिषय की
जानकारी ।
कई बार लोग एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान से उचित परामर्श ले सकते हैं।
शास्त्रीय विद्वानों से विशेष आग्रहः-
सभी शास्त्रज्ञानी गुणवानों, सदाचारियों, मुनि महात्माओं, योगियों, ज्योतिषियों, साधकों तांत्रिकों आदि से निवेदन है कि यदि आपका शास्त्रीय स्वाध्याय है या आप किसी भी शास्त्रीय विषय में अपने आपको हर प्रकार के प्रश्नोत्तर के लिए सक्षम समझते हैं तो कृपा करके अपने पत्र व्यवहार का पता तथा फोन नंबर आदि उपलब्ध कराएँ, और हमारे विद्वज्जनों के समुदाय में सम्मिलित होकर अलंकृत करें संस्थान को।आप अपने घर में ही रहकर पत्र व्यवहार या फोन के माध्यम से यह परोपकार कर सकते हैं,ताकि आपकी योग्यता से समाज को लाभान्वित कराने का पुण्य भागी बनने का सौभाग्य हमें प्राप्त हो सके । याद रखना आपका अपना राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान संपर्क सूत्र की प्रतीक्षा में है।
धर्म भक्त धनवानों से विशेष आग्रहः-
धर्म को लेकर चारों तरफ एक दूसरे को बरगलाने का दुखद वातावरण बना हुआ है। हर कोई बिना परिश्रम किए हुए सुख सुविधा पूर्ण जीवन जीने के लिए धर्म का दुरुपयोग कर लेना चाहता है । जिसके लिए टी.वी. आदि सभी प्रकार के विज्ञापनों में वह वर्ग अंधाधुंध धन झोंक रहा है| स्वाभाविक है कि वो इसी धार्मिक धंधे से ही निकालना चाहेगा। इसी धर्म की आड़ में धन इकट्ठा करने के लिए वह कितना भी बड़ा कपटकार्य करने को तैयार है।यदि आपको भी धर्म के विषय में सोचते हैं तो दीजिए अपना बहुमूल्य सहयोग ।
शास्त्रीय विद्वानों के पास न विज्ञापनों में खर्च करने
के लिए अनाप सनाप धन है और न ही धोखाधड़ी पूर्वक वो समाज को नोचना ही चाहते हैं | यदि
चाहें तो वो भी उन्हीं लोगों की तरह
निर्ममतापूर्वक धर्म को धंधा बना सकते हैं, किंतु वो शास्त्रीय साधक हैं इसलिए उनकी धर्म पर असीम
आस्था है | वे धर्म को धंधा नहीं बनाना चाहते हैं तथापि जीवनयापन का साधन भी वो अपनी विद्या
से ही बनाना चाहते हैं | यह उनका नैतिक अधिकार भी है | आखिर जिस प्राचीन विद्या
के अध्ययन में उन्होंने लगभग बारह वर्ष लगाए हैं | अब वो अपनी रोजी रोटी के लिए यदि
व्यवसाय आदि करेंगे तो उनकी योग्यता का समाज हित में उपयोग नहीं हो सकेगा। अतः
समाज हित में उनकी योग्यता का लाभ उठाने के लिए राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध
संस्थान ऐसे विद्वानों को एक मंच
पर उपलब्ध कराकर उनकी योग्यता का लाभ समाज को दिलाना चाहता है। जिसके लिए उन्हें आजीविका के
लिए आर्थिक सहयोग करना आवश्यक होगा।
अतः इसके अलावा भी संस्थान ने ऐसी सभी प्रकार
की अपनी गतिविधियाँ निस्वार्थ रूप से संचालित
करने के लिए जो सदस्यता शुल्क रखी है उसे भी मुक्त किया जा सके इसके लिए सभी धर्म एवं
शास्त्र प्रेमी सज्जनों से धनात्मक सहयोग की अपेक्षा है। यदि आप सहयोग करना या किसी और
को प्रेरित करना चाहें तो हमारे यहॉं
आपका सादर स्वागत है। इसके साथ ही इस व्यवस्था को और अधिक बेहतर बनाने के लिए आपके न केवल
सुझाव अपितु सभी प्रकार के सहयोग सादर आमंत्रित हैं।यदि आप संस्थान कार्यों के प्रचार प्रसार
से लेकर किसी भी प्रकार से सहयोग या समय
देना चाहें तो यह संस्थान के लिए सौभाग्य की बात होगी।
प्रायः धार्मिक समाज अभी
तक इतना एवं न जाने कितने बार विविध रूपों में ठगा जा चुका है कि अब वह धर्म के मामले में किसी
का विश्वास नहीं कर पा रहा है हर किसी से डरने लगा है।संस्थान की गतिविधियों एवं
आश्वासनों को भी वह उसी दृष्टि से देख रहा है अतः वह संस्थान के संपर्क में
भी आने से डरता है इसलिए सदस्यता शुल्क माफ करने का बिचार है ताकि उसे सभी
प्रकार से भय मुक्त किया जा सके।
संपर्क योजना -
आप धर्म एवं ज्योतिष विज्ञान से संबंधित प्रश्नों का ऑनलाइन तथा डाक द्वारा भी लिखित और प्रमाणित उत्तर प्राप्त कर सकते हैं।जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क के रूप में देनी होगी, जो शास्त्र से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना और सही जानकारी देना।विशेष बात यह है कि यदि आप चाहें तो आपके प्रश्न के उत्तर में दी गई जानकारी शास्त्रीय प्रमाणों के साथ लिखित रूप में भी दी जाएगी। जो कानूनी आवश्यकता पड़ने पर भी प्रमाण के रूप में प्रस्तुत की जा सकेगी।
निजी जीवन से जुड़ी ज्योतिष, कुंडली , वास्तु आदिके विषय में जानकारी मॉंगने के लिए उसे निर्धारित शुल्क चुकानी होती है |आपके द्वारा शुल्क रूप में जमा की गई धन राशि किसी भी
परिस्थिति में वापस नहीं की जाएगी।
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प्राचीन विद्याओं की उपेक्षा क्यों ?
आज लगभग सारे सामाजिक झगड़े प्राचीन विद्याओं से जुड़े होते हैं, किंतु इन
विषयों पर ध्यान बिल्कुल नहीं दिया जाता है | ऐसे कैसे काम चलेगा? आप स्वयं सोचिए
धर्म से जुड़ी हर बात को अंध विश्वास कहने का तो आज फैशन सा बन गया है।तंत्र
मंत्र के नाम पर यदि समाज में कहीं कुछ अपराध हो ही रहे हों तो इन्हें
स्वतंत्र अपराध ही मानना चाहिए इसमें तंत्र मंत्र का क्या दोष? तंत्र मंत्र
का तो प्राचीन विद्याओं में बड़ा गौरवपूर्ण स्थान रहा है। उस अत्यंत पवित्र
शब्द का आज गाली की तरह प्रयोग किया जा रहा है।
इसी प्रकार ज्योतिष की स्थिति है इस शास्त्र के नाम पर कुछ बिना पढ़े
लिखे लोगों ने ज्योतिष एवं वास्तु के नाम पर मन चाहे आडंबर फैला रखे हैं
वो जिसके लिए जो चाहें सो कहें बकें या बहम डालें जिस पर कहीं कोई रोक टोक
नहीं है। ज्योतिष की फर्जी डिग्रियॉं अपने नाम के साथ लगाकर कोई भी
व्यक्ति टी.वी. पर बैठकर या वैसे समाज को मन चाहे ढंग से जब तक चाहे बेवकूफ
बनाता रहे है | कोई देखने सुनने रोकने टोकने वाला?आखिर मेडिकल की तरह के
कठोर नियम ज्योतिष में क्यों नहीं लागू किए जा सकते हैं?
योग के नाम पर योगासनों का ड्रामा जम कर चला अरबों रुपए का कारोबार हो रहा
है| क्या किसी ने जानने की कोशिश की है कि ऐसे कार्यक्रम करने वालों के
दावों में सच्चाई कितनी होती है?और होती भी है कि नहीं। इसकी जॉंच करने
कराने का काम किसका था ?
इसी प्रकार आरक्षण के नाम पर चल रहे खिलवाड़ का जिम्मेदार आखिर कौन
है?तथाकथित दलित जातियों का कब किसने कहॉं कैसे कितना शोषण किया था।उसमें
दलितों की कितनी भागीदारी थी इसकी भी जॉंच होनी चाहिए थी,क्योंकि सवर्णों
की अपेक्षा दलितों की जन संख्या अधिक थी तो यदि कोई शोषण करना भी चाह रहा
था तो किसी ने सहा क्यों?आदि बातों की जॉंच होनी चाहिए थी।
इसी प्रकार जो परंपरा से हमारे साधुसंतों की श्रेणी में नहीं आते हैं | वे
भी साधुसंतई एवं कथा कीर्तन के नाम पर कोई कुछ भी करें कैसे भी पैसे इकट्ठा
करके फिर उन पैसों से कुछ भी करें सब कुछ करने के बाद है कोई रोकटोक?
अन्य धर्मों में भी वही स्थिति है।वहॉं भी कहीं कोई रोक टोक नहीं है इसका
सीधा मतलब क्या यह नहीं है कि धर्म का नाम लेकर कोई कुछ भी कर सकता है।
मेरा विशेष निवेदन मात्र इतना है कि ऐसे किसी भी विषय में किसीप्रकार से
किसी एक अज्ञानी लोभी के द्वारा लोभ वश किए गए किसी अपराध में सारा धर्म
एवं धार्मिक गतिविधि को अंध विश्वास कह कर बार बार ललकारा जाने लगता है
जो ठीक नहीं है।
आखिर सरकारी खजाने से इन विद्याओं के प्रशिक्षण के लिए जो विश्व विद्यालय
चलाए जा रहे हैं | वो भी अंध विश्वास है क्या?और यदि नहीं तो ऐसे आरोप लगाने
वालों के विरुद्ध भी तो कोई कार्यवाही होनी चाहिए।साथ ही ऐसे विशयों में
अयोग्य लोगों को लेकर मीडिया में बहस चलाने वाले लोगों पर भी सरकारी
नियंत्रण होना चाहिए।किसी भी बहस में यदि किसी अधिकृत संस्थान के चिकित्सक
वैज्ञानिक आदि बुलाए जा सकते हैं तो अधिकृत प्राच्यविद्या विज्ञ क्यों
नहीं? आखिर ये दोष किसका है?और नियंत्रण कौन करेगा?
ज्योतिषविद्यालय ऑनलाइन !
तनाव से मुक्ति पाने के लिए ज्योतिष सीखिए ! 'ज्योतिष एक काम अनेक !'
ज्योतिष से आप स्वयं लाभ उठावें और दूसरों को भी लाभान्वित करें ! दूसरे विषयों को पढ़ने के बाद भी आपको महीनों वर्षों तक नौकरी के लिए धक्के खाने पड़ेंगे! ज्योतिष पढ़ने के तुरंत बाद आप ज्योतिष का कार्य शुरू कर सकते हैं |जिससे आप धन कमाने के साथ साथ प्रसिद्ध हो सकते हैं |
डॉक्टर बनें या ज्योतिषी - डॉक्टर बनने में बहुत पैसे खर्च करने होंगे,किंतु ज्योतिषी बनने में उससे बहुत कम पैसे खर्च होंगे !दूसरी बात बहुत पैसे खर्च करके आप किसी एक रोग के डॉक्टर बन सकेंगे,जिन्हें वो रोग होगा आप केवल उन्हीं लोगों के बीच पॉपुलर हो सकते हैं, किंतु ज्योतिष पढ़कर तो आप सभी की जरूरत बन सकते हैं ,क्योंकि ज्योतिष की आवश्यकता तो सभी को सभी कामों के लिए पड़ती है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए आप उपयोगी बन सकते हैं !यदि आप चाहते हैं कि आपको बहुत लोग जानें !आप बहुत लोगों के काम आवें और बहुत लोग आपका सम्मान करें तो आप हमारे यहाँ से ज्योतिष पढ़ें !
डॉक्टर तो रोग होने के विषय में रोगी होने के बाद बता पाते हैं ,जबकि ज्योतिषी तो रोग होने से पहले ही सावधान कर सकते हैं कि कब किसे किस प्रकार का रोग होने की संभावना है |यदि किसी को अपने स्वास्थ्य की चिंता लगी रहती है तो ज्योतिष के द्वारा पता लगाना संभव है कि कोई रोग होने वाला है भी या नहीं !बेकार में ही चिंता किए जा रहे हैं !
रोगी होने के बाद यदि आपको लगता है कि हम स्वस्थ होंगे या नहीं होंगे तो कब यह चिंता आपको परेशान कर रही है तो ज्योतिष के द्वारा ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजकर चिंता मुक्त हुआ जा सकता है | आप पता लगा सकते हैं कि आपको किस समय कैसा रोग हो सकता है ?
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ! (RPS)
संस्थान के बारे में : राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान दिल्ली स्थित एक अनुसंधान संस्थान है |इसकी स्थापना वैसे तो सन 1992 में हो गई थी,किंतु पंजीकृत सन 2012 में हुआ था |हमारे संस्थान का उद्देश्य समस्यामुक्त सुखशांति युक्त स्वस्थ समाज का निर्माण करना है|इसी लक्ष्य को लेकर अनुसंधानकार्य किए जा रहे हैं | इसमें आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के साथ साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करना होता है |प्रकृति में वर्तमान समय में घटित हो रही कोई एक प्राकृतिक घटना भविष्य में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना के विषय में सूचना दे रही होती है | इसलिए भावी अनुसंधानों के लिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का संग्रह करके रखना होता है | प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजने हेतु अनुसंधान किया जाता है | इसके साथ ही साथ आकस्मिक रूप घटित होने वाली भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए भी अनुसंधान कार्य किया जा रहा है | गणितविज्ञान के साथ ही साथ समय समय पर उभरने वाले प्राकृतिक संकेतों के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाता है कि भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं को टालना या इनके वेग को कम किया जाना संभव नहीं है|इसलिए ऐसी आपदाओं से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाकर रखने हेतु सफल अनुसंधान करने के लिए हमारा संस्थान कृत संकल्प है |
सही पूर्वानुमानों को खोजने के लिए किए जा रहे हैं अनुसंधान -
सृष्टि के प्रारंभिक काल की यदि कल्पना की जाए तो उस समय मनुष्य प्रकृति की प्रत्येक घटना से अपरिचित रहा होगा | उस समय उसे सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के आने जाने का क्रम एवं उनके रहने का समय प्रभाव आदि जब पता नहीं रहता रहा होगा | ऋतु संबंधी घटनाओं से परिचित न होने के कारण उस समय सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ भी किसी आपदा से कम नहीं लगती रही होंगी, अब वही सर्दी गर्मी आदि ऋतुएँ आती हैं अपना अपना प्रभाव भी छोड़ती हैं,लेकिन उनसे किसी को भय नहीं होता है ,क्योंकि लोगों को उनके आने के विषय में पहले से पता होता है |
इसी प्रकार से भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी जो घटनाएँ अचानक घटित हुई सी लगती हैं |उनमें नुक्सान भी अधिक होता है | इसीलिए उनसे हमेंशा डर लगा रहता है कि ऐसी घटनाएँ न जाने कब घटित होने लगें |यदि इनके घटित होने के विषय में पहले से पता लगाया जाना संभव हो जाए कि कब कौन घटना घटित होगी ,तो ऐसी घटनाओं के विषय में लोगों का डर तो बहुत कम हो ही जाएगा | इसके साथ ही ऐसी घटनाओं में जनधन की हानि भी बहुत कम होगी |
पूर्वानुमान पता लगते ही शुरू होगा समाधान !
सृष्टि के प्रारंभिक काल में पहले से जानकारी के अभाव में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं लगती होंगी !ऋतुजनित ऐसी घटनाओं के समय में भी ऋतुओं का प्रभाव सहना बड़ा कठिन होता होगा | अधिक सर्दी गर्मी वर्षात से पीड़ित बहुत लोग रोगी होकर मृत्यु का शिकार हो जाते होंगे | सर्दी गर्मी वर्षात के आने जाने का क्रम एवं उनके रहने का समय प्रभाव आदि जबसे पता लगा तब से उन्हीं ऋतुओं के प्रभाव से लोग उस प्रकार से रोगी नहीं होते हैं | ऋतुओं के प्रभाव से बचाव की तैयारियाँ आगे से आगे करके रख लिया करते हैं |अब वही सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ आती हैं अपना अपना प्रभाव भी छोड़ती हैं,लेकिन उनसे किसी को भय इसलिए नहीं होता है ,क्योंकि लोगों को उनके आने के विषय में पहले से पता होता है | जिनसे बचाव की तैयारियाँ उन्होंने पहले से ही करके रख ली होती हैं | जिससे भीषण सर्दी ,गर्मी एवं वर्षा आदि के दुष्प्रभावों से यथा संभव बचाव हो जाता है |
ऐसे ही भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी जो घटनाओं
के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना यदि संभव हो जाए और उसी के अनुशार बचाव
के लिए पहले से तैयारियाँ करके रख ली जाएँ तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से भी
जनधन का उतना नुक्सान नहीं होगा जितना अभी होता है |
विज्ञान के अभाव में बढ़ती जा रही हैं समस्याएँ
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं से बचाव के लिए जो तैयारियाँ पहले से करके रखनी होती हैं या जो जो अग्रिम सावधानियाँ बरतनी होती हैं | ये सब करने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता होने की आवश्यकता होती है |
किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिसके द्वारा भविष्य को देखना संभव हो | इसके बिना भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को देखा जाना कैसे संभव है |भविष्य में झाँकने ऐसा विज्ञान कोई विज्ञान ही नहीं है जिससे पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो |प्राचीन काल में गणित विज्ञान के द्वारा बहुत सारी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | उसी गणित विज्ञान एवं कुछ अन्य प्राकृतिकसंकेतों के आधार पर पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे यहॉंअनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं |
आवश्यक गणित का प्रबंध भी संस्थान में ही है !
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना यदि संभव भी हो जाए तो भी प्राचीन गणित विज्ञान के इतने सुयोग्य विद्वानों की बहुत कमी है |जो ऐसी सटीक गणित करने में सक्षम हों जिससे प्राकृतिक आपदाओं या घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो | संस्कृत और ज्योतिष की निरंतर उपेक्षा होने के कारण कोई अपने बच्चे को ऐसे विषय पढ़ाना ही नहीं चाहता है | ऐसी स्थिति में गणित ज्योतिष जैसे विषयों के विद्वान कहाँ से लाए जाएँ !संस्कृत विश्व विद्यालयों में ऐसे विषयों के अध्यापन के लिए नियुक्त शिक्षकों में से किसी के द्वारा कोई ऐसा अनुसंधान नहीं किया जा सका जिससे पिछले दस वर्षों में घटित हुई भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी किसी घटना के विषय में कोई पूर्वानुमान बताया जा सका हो |ऐसी स्थिति में वहाँ से पढ़लिखकर ऐसे गणितवैज्ञानिक कैसे तैयार किए जा सकते हैं जो भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज की मदद करने में सक्षम होंगे |
ऐसी परिस्थिति में प्रकृत्तिक घटनाओं के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाने हेतु अनुसंधानों के लिए आवश्यक गणित संबंधी कार्य भी यथा संभव संस्थान में किए जा रहे हैं |इस गणित के आधार पर लगाए जा रहे पूर्वानुमान सही घटित हो रहे हैं |
प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाया जाना संभव है क्या ?
प्राकृतिक आपदाएँ और मनुष्यजीवन की समस्याओं से संबंधित अनुसंधान -
जीवन को लेकर बहुत ऐसे प्रश्न उठते हैं जिनका उत्तर मिलना बहुत कठिन होता
है | ऐसे ही जीवन में बहुत सारी ऐसी समस्याएँ होती हैं जिनका समाधान निकाला
जाना बहुत कठिन होता है | मनुष्यजीवन को सुखी स्वस्थ सुख सुविधा युक्त समस्यामुक्त रखने का लक्ष्य
लेकर हमारे संस्थान में विविध प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं |
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने में जो लोग घायल या रोगी होते हैं या जिनकी मृत्यु होती है |उनके साथ ऐसा होना ही होता है ,या प्रयत्न पूर्वक इनकी चपेट में आने से बचा भी जा सकता है | उनके घायल होने,रोगी होने या उनकी मृत्यु होने को मनुष्यकृत प्रयत्नों से टाला जाना कितना संभव है ! ऐसी घटनाओं में जिनकी मृत्यु होती है उस मृत्यु के लिए ऐसी घटनाएँ जिम्मेदार होती हैं या वह मनुष्य जिसकी मृत्यु हुई होती है अथवा उसकी मृत्यु का समय ही पूरा हो चुका होता है |यह पता करने के लिए भी हमारे यहॉं अनुसंधान किया जाता है |
जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है |उन
समस्याओं का तनाव उस व्यक्ति को होना निश्चित होता है या प्रयत्न पूर्वक
उससे बचा भी जा सकता है ?ऐसे ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जिस लक्ष्य
की लालषा से प्रयत्न प्रारंभ किया जाता है | उसमें यदि सफलता नहीं मिलती है
तो तनाव होता ही है | ऐसे समय में उस व्यक्ति को तनाव मिलना ही
था या सफलता न मिलने के कारण तनाव मिला है !वह व्यक्ति यदि चाहता तो ऐसे
तनाव से बचा जाना संभव था क्या ?यह खोजने के लिए भी हमारे यहॉँ अनुसंधान
किए जाते हैं |
कुछ लोग अस्वस्थ होते हैं समय से चिकित्सा न मिल पाने के बाद उनकी मृत्यु हो जाती है | सामान्य रूप से इसका कारण समय से चिकित्सा न मिल पाने को माना जाता है,किंतु समय से चिकित्सा होने पर क्या मृत्यु को टालना संभव हो जाता ?ऐसे प्रश्नों के उत्तर भी अनुसंधान पूर्वक खोजे जा रहे हैं |
जीवन में बहुत लोगों के साथ संबंध बनाकर जीना पड़ता है समय समय पर कुछ संबंध बनते बिगड़ते रहते हैं | ऐसा होने का कारण क्या है |ऐसे संबंधों को बिगड़ने से रोका जा सकता है क्या या कि उन्हें बिगड़ना ही होता है |यह पता करने के लिए अनुसंधानों को आगे बढ़ाया जा रहा है !
संस्थान के उद्देश्य :
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे संकटपूर्ण समय में समाज
को सुरक्षित बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है |इनमें में जन धन का नुक्सान बिल्कुल न हो या कम से कम हो, इसके लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पता लगाना आवश्यक
होता है | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं
के विषय में पहले से पता लगाने के लिए ऐसा कोई सक्षम भविष्यविज्ञान हो |
जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को पहले से देख लेने की कोई
वैज्ञानिक प्रक्रिया हो !हमारा लक्ष्य प्राचीन विज्ञान संबंधी अपने
अनुसंधानों के द्वारा उस वैज्ञानिक पद्धति को खोजना है जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव हो सके |
संस्थान के कार्य :
विगत तीस वर्षों से संस्थान के तत्वावधान में भूकंप आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे
विषयों में जो अनुसंधान किए जाते रहे हैं | उनके द्वारा प्राप्त अनुभवों
के आधार पर ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे
हैं | उनमें से वर्षा होने के विषय में लगाए जाने वाले दीर्घावधि
मध्यावधि पूर्वानुमान प्रायः सही निकलने लगे हैं | चक्रवात आँधी तूफ़ान आदि
के विषय में भी लगाए गए पूर्वानुमान भी प्रायः सही होते देखे जा रहे हैं |ऐसी
सभी प्रकार के पूर्वानुमान प्रमाणित रूप से घटना घटित होने से काफी पहले
ही स्काईमेट, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं पीएमओ की मेल पर भेजे दिए जाते रहे हैं |पीएमओ की मेल पर अभी भी भेजे जा रहे हैं जो साक्ष्य रूप में मेल पर विद्यमान हैं |
कोरोना महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में हमारे संस्थान के द्वारा लगाए
जाते रहे पूर्वानुमान संपूर्ण रूप से सही निकलते देखे गए हैं | महामारी का
विस्तार, प्रसारमाध्यम, अंतर्गम्यता आदि के विषय में लगाए गए अनुमान भी
सही निकले हैं | ये सभी पीएमओ की मेल पर अभी भी विद्यमान हैं |
भविष्य की कार्य योजना : भविष्य में भूकंप आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे विषयों में और अधिक गंभीरता से अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है|जिससे भूकंप जैसी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को समझना तथा ऐसी घटनाओं के घटित होने के वास्तविक कारण खोजना एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो सके | वर्षा कहाँ होगी कितनी होगी इस विषय में और अभी स्पष्टता लाए जाने की आवश्यकता है |आँधीतूफ़ान चक्रवात आदि के विषय में अनुसंधानों के द्वारा स्थान पता लगाए जाने पर कार्य चल रहा है कि ऐसी घटनाएँ कब कहाँ से शुरू हो सकती हैं उस स्थान के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने की आवश्यकता है |
राजेश्वरीविद्यालय :
परतंत्रता के समय आक्रांताओं के द्वारा बहुत सारा साहित्य नष्टकर दिया गया था |इससे संबंधित विद्वानों की संख्या भी धीरे धीरे समाप्त होती चली गई | इस सबके बाद भी कुछ ऐसे विद्वान बच गए जो इसप्रकार के अनुसंधान करने में सक्षम थे,किंतु उन्होंने अपनी विद्या किसी को देना उचित नहीं समझा !उसे गुप्त रखते रखते अपने साथ लेते चले गए |अब बहुत कम ऐसे विद्वान बचे होंगे जो प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों में मदद करने की क्षमता रखते होंगे !उन्हें खोजकर उनके ज्ञान विज्ञान को उनसे प्राप्त किया जाना बहुत बड़ा कार्य है |जिसे अत्यंत साधनापूर्वक किया जाना आवश्यक है | जहाँ कहीं से उस विद्या की छोटी सी चिंगारी भी मिल जाए उसे ही तपस्या पूर्वक आग के बहुत बड़े ढेर में बदलना है | यह बहुत बड़ी तपस्या का कार्य है जिसे अत्यंत समर्पण पूर्वक किया जाना है |
इतने बड़े कार्य को करने के लिए सुयोग्य समर्पित एवं तपस्वी विद्वानों की
आवश्यकता है | जिन्हें बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी | उन्हें संस्थान
के द्वारा पहले से किए जा रहे अनुसंधानों को न केवल और अधिक विस्तार देना
है अपितु इसे भविष्य में सदियों तक चलाने के लिए उस प्रकार की अनुसंधान
सामग्री संग्रहीत करनी है |इसके लिए अनुसंधान में आवश्यक आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के ऐसे सक्षम विद्वान तैयार करना है | जो गणित विज्ञान के द्वारा तो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों ही इसके साथ ही साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा
होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करने में
सक्षम हों | इसकेसाथ ही शास्त्र में वर्णित प्रयोगों का प्रयोग पूर्वक
परीक्षण करने में सक्षम हों | ऐसे विद्वान तैयार करने के लिए राजेश्वरीविद्यालय की स्थापना करने का उद्देश्य है |
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !
भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाएँ हों या महामारियाँ ये सब अचानक घटित होने लगती हैं |ऐसी आपदाएँ घटित होते ही तुरंत नुक्सान हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है |
ऐसी परिस्थिति में आपदाएँ घटित होने एवं नुक्सान होने के बीच में समय इतना नहीं मिल पाता है कि संभावित प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें या बचाव के लिए आवश्यक सतर्कता बरती जा सके !
इसलिए आवश्यकता ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की है | जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले सरकार एवं समाज को यह जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने वाली है |जिससे घटना घटित होने से पहले सरकार आपदा प्रबंधन संबंधी व्यवस्थाओं को तैयार कर ले एवं ऐसे आवश्यक संसाधन जुटाना प्रारंभ कर दे जिससे उस प्रकार की आपदा से नुक्सान कम से कम हो ऐसा सुनिश्चित किया जा सके | इसके साथ ही साथ ऐसे पूर्वानुमान पाकर समाज भी अपने स्तर से सावधानी बरतनी प्रारंभ कर दे |यदि ऐसा संभव हो तब तो प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता है अन्यथा ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की जनहित में उपयोगिता ही क्या बचती है |
वर्षा संबंधी प्राकृतिक अनुसंधान !- भारत कृषि प्रधान देश है! कृषि कार्यों एवं फसलयोजनाओं के लिए वर्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है | यद्यपि वर्षा की आवश्यकता तो सभी फसलों को होती है किंतु धान जैसी कुछ फसलों के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है और मक्का जैसी कुछ फसलों के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है|ऐसी परिस्थिति में धान जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों को किसान लोग नीची जमीनों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान ऊँची जमीनों पर बोते हैं |
इसी प्रकार से किसी वर्ष की वर्षाऋतु में वर्षा बहुत अधिक होती है जबकि किसी वर्ष की वर्षा ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है | इसलिए जिस वर्ष में वर्षा अधिक होने की संभावना होती है उस वर्ष किसान लोग धान जैसी अधिक अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें अधिक खेतों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान कम खेतों में बोते हैं |
धान जैसी फसलों में पहले बीज बोकर थोड़ी जगह में बेड़ तैयार की जाती है निर्धारित समय बाद उन पौधों की रोपाई पूरे खेत में करनी होती है उस समय अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए किसान लोग इस प्रकार की योजना पहले से बनाकर चलते हैं ताकि धान की रोपाई के समय तक मानसून आ चुका हो जिससे पानी की कमी न पड़े | इसके लिए किसानों को सही सटीक मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | इसके लिए मानसून आने के विषय में सही तारीखों का पता लगना जरूरी माना जाता है |
मार्च अप्रैल में फसलें तैयार होने पर किसान लोग वर्ष भर के लिए आवश्यक आनाज एवं भूसा आदि संग्रहीत करके बाकी बचा हुआ आनाज भूसा आदि बेच लिया करते हैं |जिससे उनकी आर्थिक आवश्यकताओं पूर्ति हो जाती है |इसके लिए उन्हें मार्च अप्रैल में ही वर्षा ऋतु में होने वाली संभावित बारिश का पूर्वानुमान पता करने की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि खरीफ की फसल पर इसका प्रभाव पड़ता है | मार्च अप्रैल में किसानों को आनाज एवं भूसा आदि का संग्रह करके बाकी बचे हुए अनाज भूसा आदि की बिक्री के लिए किसानों को खरीफ की फसल की उपज को ध्यान में रखकर चलना होता है |इसके लिए वर्षा ऋतु संबंधी सटीक मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
तापमान संबंधी पूर्वानुमान -
तापमान ऋतुओं के हिसाब से घटता बढ़ता रहता है उसका तो समाज को अभ्यास है |उसके आधार पर ही समाज ने अपना अपना जीवन व्यवस्थित कर रखा है किंतु जब तापमान बढ़ने और कम होने की प्रक्रिया असंतुलित होने लगती है तापमान ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए अस्वाभाविक रूप से घटने या बढ़ने लगता है | उससे मनुष्यों को तरह तरह के रोग होने लगते हैं | फसलों वृक्षों बनस्पतियों आदि में अनेकों प्रकार के विकार पैदा होने लगते हैं जिससे उपज प्रभावित होती है |अतएव समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा है कि ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए तापमान कब अचानक बढ़ने या कम होने लगेगा इसका पूर्वानुमान समाज को पहले से पता होने चाहिए ताकि समाज उसी हिसाब से अपने कार्यों एवं जीवन को व्यवस्थित कर सके |
वायुप्रदूषण संबंधी अनुमान पूर्वानुमान- मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल
के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका
जीवित रहना असम्भव है।इसलिए वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।वायु
प्रदूषण बढ़ने से दमा, सर्दी-खाँसी, अँधापन, त्वचा रोग आदि अनेकों प्रकार
की बीमारियाँ पैदा होने लगती हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे प्रदूषण
मुक्त शुद्ध वायु मिले किंतु यह कैसे संभव है इसके लिए समाज को क्या
अपनाना एवं क्या छोड़ना पड़ेगा और क्या करना होगा | इसके विषय में सही एवं
सटीक जानकारी अनुसंधान पूर्वक समाज को उपलब्ध करवाई जाए |इसके साथ ही साथ
यदि वायु प्रदूषण घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो तो
समाज को वह उपलब्ध करवाया जाए | समाज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी
अपेक्षा करता है |
महामारी संबंधी अनुमान पूर्वानुमान - लोगों को महामारियों से डर लगना स्वाभाविक ही है| महामारियों के समय का वातावरण बहुत भयावह होता है जो हर किसी को सहना ही होता है |भारी मात्रा में जन धन की हानि होते देखी जाती है |महामारी काल में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह निष्प्रभावी होती है | ऐसे समय में रोग और रोग के लक्षण पता न होने के कारण चिकित्सा करना भी संभव नहीं होता है |
ऐसे कठिन समय में वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं से जनता यह अपेक्षा रखती हैकि महामारी प्रारंभ होने से पहले उसे महामारी के विषय में अनुमानों पूर्वानुमानों से उसे अवगत कराया जाए कि इतने वर्षों या महीनों के बाद महामारी प्रारंभ होने की संभावना है | इससे महामारी आने के समय तक समाज अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुशार अपने लिए आवश्यक वस्तुओं का संग्रह कर सकता है | संभावित रोगों से बचाव के लिए आहार विहार रहन सहन खान पान में आवश्यक संयम का पालन करके अपने बचाव के लिए प्रयत्न किया जा सकता है |
इसीप्रकार से महामारी के विषय में सरकारों को यदि अनुमान पूर्वानुमान आदि समय रहते पता चल जाए तो सरकारें बचाव के लिए यथा संभव संसाधन जुटा सकती हैं चिकित्सा की दृष्टि से आवश्यक प्रबंधन कर सकती हैं | जीवन यापन के लिए आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में संग्रह करके रखा जा सकता है |
ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों से जीवन संबंधी अपेक्षाएँ -
मानव जीवन से संबंधित कुछ ऐसी अत्यंत कठिन समस्याएँ हैं जो न कही जा सकती हैं और न सही जा पाती हैं | ऐसी समस्याओं का समाधान निकालना वैज्ञानिकों के बश में होता तब तो कोई बात ही नहीं थी | जिस प्रकार से स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सरकारों ने चिकित्सालय खोल रखे हैं लोग वहाँ जाकर अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान पा लिया करते हैं |इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान सफल हैं |
स्वास्थ्य से ही संबंधित कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिनका वैज्ञानिकों के
द्वारा न समाधान किया जा रहा है और न ही मना किया जा रहा है कि इनका समाधान
निकालना हमारे बश की बात नहीं है |वैज्ञानिकों आवश्यकता पड़ने पर वैज्ञानिक लोग अपनी असफलता छिपाने के लिए ऊटपटाँगवैज्ञानिकों मनगढंत मनगढंत कहानियाँ सुना दिया करते हैं |इनका समाधान आधुनिक विज्ञान से होना संभव होता तो अब तक हो जाता |भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाओं एवं महामारियों के विषय में एक ओर वैज्ञानिक लोग अनुसंधान किया ही करते हैं
वहीं दूसरी ओर ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होने लगती हैं | जिनके
विषय में उन वैज्ञानिकों को कुछ पता ही नहीं होता है | ऐसे अनुसंधानों से
उस समाज को क्या लाभ होता है जिसके खून पसीने की कमाई से दिए गए टैक्स का
पैसा ऐसे अनुसंधानों के नाम पर खर्च किया जाता है | ऐसे अनुसंधान न हों तो
क्या नुक्सान हो जाएगा | यद्यपि ये सरकार और वैज्ञानिकों का आपसी विषय है
|
ऐसी आपदाएँ घटित होते ही उस समाज का नुक्सान तो तुरंत हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है | वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की उपयोगिता क्या है |
इसीलिए राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का लक्ष्य भारतवर्ष के प्राचीनविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा ऐसे लोगों को सुरक्षित बचाना है|जो सभी तरफ से निराश हताश होकर अपने जीवन को बोझ समझने लगे हैं | ऐसे लोगों को सुरक्षित बचाकर उनके निराश हताश जीवन के खोए हुए आनंद को वापस लाने के लिए प्रभावी प्रयत्न करना है |
1. मनुष्य अपने
जीवन में अक्सर पराजित और परेशान होता रहता है और जब जब ऐसा होता है तब तब
मनुष्यों का परेशान होना स्वाभाविक ही है | प्रत्येक मनुष्य सफल होने के
लिए बार बार
प्रयत्न करता है जो सफल हो जाता है उसका प्रयत्न तो दिखाई पड़ता है जो
प्रयास करने पर भी सफल नहीं होता है उसके प्रयास पर लोग विश्वास नहीं करते
जबकि वह कई बार प्रयास करने के बाद भी लगातार असफल होता जाता है | ऐसी
परिस्थिति में वो गंभीर मानसिक पीड़ा से गुजर रहा होता है|निरंतर असफल होते
रहने के बाद उसका दिमागी तनाव बढ़ता है इससे उसे नींद
आनी कम होती है|उसके बाद भूख लगने में कमी आती है | पेट की गंदी गैस सीने
में चढ़ती है | उससे घबराहट होती है|यही गंदी गैस जब सिर पर चढ़ती है तो
सिर चकराने लगता है आँखों में अँधेरा दिखने लगता है | उल्टी लगने लगती
है|बालों और त्वचा में रूखापन होने लगता है|शुगर बीपी जैसे रोग पनपने लगते
हैं|कई बार हृदयरोग या हृदयघात जैसी गंभीर घटनाएँ घटित होती देखी जाती हैं|निरंतर असफल होते रहने वाले
व्यक्ति का जब शरीर भी साथ नहीं देने लगता है तब वह निराश हो जाता है |ऐसे
हैरान परेशान कुछ लोग कभी कभी असफलता से आहत होकर आत्महत्या या सपरिवार
आत्महत्या जैसे दुर्भाग्यपूर्ण कठोर कदम उठाते देखे जाते हैं |बहुत लोग ऐसी
दुर्भाग्य पूर्ण परिस्थिति को धैर्य पूर्वक सह तो जाते हैं किंतु निराश हताश मन उन्हें किसी लायक नहीं रहने देता है |
ऐसी परिस्थिति में जिस असफलता के कारण ऐसी परिस्थिति पैदा हुई उसके लिए वह व्यक्ति कितना दोषी है सफलता के लिए जिसने निरंतर प्रयत्न किए इसके बाद भी उसे सफलता नहीं मिली इसका कारण क्या है ? महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है