राजनीति में नाम का महत्त्व ! केशवमौर्य की हार क्यों ? मौर्य का नाम 'क' अक्षर से प्रारंभ होता है | क अक्षर वाले लोग प्रसन्न रहने रहने वाले, खेलने कूदने शौकीन, शिक्षा कला कॉमेडी आदि में रूचि रखने वाले और इन्हीं क्षेत्रों से संबंधित ऊँचे से ऊँचे पदों तक पहुँचने वाले होते हैं |इन्हें पसंद करने बाले लोग बहुत अधिक होते हैं इन पर विश्वास करने वाले बहुत कम होते हैं | ऐसे लोग अपने गुणों से बहुत लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं -जैसे भगवान् कृष्ण, कपिल शर्मा कॉमेडी में ,कपिलदेव, कीर्तिआजाद खेल की प्रसिद्धि से ,कपिल सिब्बल वकालत की प्रसिद्धि से,करनजौहर फिल्मों से, कुमारविश्वास शिक्षा कविता आदि की प्रसिद्धि से राजनीति में गए अवश्य किंतु अपने बल पर राजनीति करना संभव नहीं हो सका | इसी 'क' अक्षर वाले लोग निष्कपट होने के कारण जो मनमें आता है सो बोल देते हैं | अधिक स्पष्टवादी होने के कारण किसी के अनुशासन में रहना एवं गूढ़ बातों को अधिक समय तक छिपाकर रखना इनके स्वभाव में नहीं होता है| इसीलिए राजनीत कर पाना इनके लिए बहुत कठिन होता है|राजनैतिक गुणों के अभाव में भी कई बार ऐसे लोग अपनी शिक्षा कला आदि गुणों के आधार पर अस्थाई रूप से राजनैतिक पद प्रतिष्ठा कर लेते हैं किंतु उसे सुरक्षित तभी तक रख पाते हैं जब तक किसी राजनैतिक व्यक्ति के अनुशासन में रहते हैं जैसे ही उसका साथ छोड़ते हैं वैसे ही राजनीति में अपने बलपर इनका अपना कोई आस्तित्व नहीं बचता है | ऐसे लोग अपने राजनैतिक संरक्षक को प्रसन्न करने के लिए उसकी इच्छा के अनुरूप उससे अधिक बोलते सुने जाते हैं | महाभारत में कर्ण ने ऐसा ही किया था |ऐसे लोगों के गुणों का उपभोग इनके राजनैतिक संरक्षक लोग ही किया करते हैं | वे ही जब तक चाहते हैं तब अपने लिए इनके गुणात्मक व्यक्तित्व का बलिदान लिया करते हैं अपनी सुविधानुशार जब चाहते हैं | तब उनसे किनारा कर लिया करते हैं ये अपनी राजनैतिक क्षमता के आधार पर उन्हें कभी कोई चुनौती देने की की स्थिति में नहीं होते| | जैसे-कुंभकरण, महाभारत के कर्ण,केशवमौर्य, कीर्तिआजाद,कुमारविश्वास,कन्हैया कुमार,कपिलमिश्रा आदि हैं |यह क अक्षर का ही प्रभाव है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ जी की बनी बनाई सरकार चली गई |
अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी -
अखिलेश का नाम अ अक्षर से है | अ अक्षर से नाम वाले लोग स्वयं को प्रशासक और दूसरे को प्रजा समझते हैं | ऐसे लोग छोटे से छोटे संगठन से लेकर बड़े से बड़े संगठन के प्रमुख बनना ही पसंद करते हैं किसी दूसरे के प्रमुख बनने की संभावना देखते ही वो सब कुछ करते हैं जिससे उसे पीछे किया जा सके |प्राचीन देशों में आर्यावर्त,वर्तमान में अमेरिका,सम्राटअशोक ,राजनैतिक दलों में आम आदमी पार्टी, भाजपा में अटल जी ,आप में अरविंद केजरीवाल ,विश्व हिंदूपरिषद में अशोक सिंघल जी ,अमितशाहजी ,उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ, दिल्ली में आदेश गुप्ता | राजस्थानकाँग्रेस में अशोक गहलोत पंजाब में अमरिंदर सिंह ,दिल्ली काँग्रेस ,में अनिल चौधरी अजय माकन ,अरविंदर सिंह ,उत्तर प्रदेश काँग्रेस में अजयकुमार लल्लू,बसपा में 'आकाश 'आनंद कुमार,तृणमूल काँग्रेस में अभिषेक बनर्जी,महाराष्ट्र शिवसेना में आदित्य ठाकरे , मनसे में अमित ठाकरे ,प्रसपा में आदित्य यादव,आम आदमी पार्टी के हिमाचल प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी आदि हैं | इसी प्रकार से अमिताभ बच्चन,अजित डोभाल आदि अपने अपने क्षेत्रों प्रमुख हैं |
ऐसी परिस्थिति में अ अक्षर का कोई मजबूत समाधान खोजे बिना सपा को सत्ता में आने की आशा नहीं करनी चाहिए |
अ अक्षर
वाले के मित्रवर्ण का कोई व्यक्ति यदि प्रमुख पद पर पहुँच भी जाए तो अ अक्षर
वाले उसके बराबर की हैसियत रखकर ही उसका सहयोग करते हैं | जिसके महत्वपूर्ण परिणाम निकलते देखे जाते हैं -जैसे- अटल जी -लालकृष्ण जी, अमितशाह जी -नरेंद्रमोदीजी,अरविंदकेजरीवालजी -मनीषसिसोदियाजी,मुलायमसिंह जी के साथअमर सिंह और आजम खान आदि के संबंध एक दूसरे के लिए सहयोगी रहे हैं |
कई बार सरकारों की छवि बनाने बिगाड़ने में सक्षम ऊँचे पदों पर बैठे अफसरों का अपने मंत्रियों मुख्य मंत्रियों या प्रधानमंत्रियों आदि के साथ नामजनित तालमेल नहीं बन पाता है या फिर एक दूसरे का विरोधी होता है ऐसे अफसर अपनी ही सरकारों की छवि बिगाड़ा करते हैं जिसकी कीमत सरकारों या राजनैतिक दलों को चुकानी पड़ती है |
अपर्णा यादव जो अ अक्षर वाले अखिलेश को नहीं पचा सकीं वे अ अक्षर वाले आदित्यनाथ को कब तक सह पाएँगी और अ अक्षर वाले अमितशाह आदित्यनाथ को कब तक सह पाएँगे !
इस वर्ण वैषम्य के कारण दिल्ली भाजपा इतने वर्षों से सत्ता से दूर है | काँग्रेस इस स्थिति तक पहुँच गई है | ऐसे ही कई अन्य राजनैतिक या गैर राजनैतिक संगठन सरकारें संस्थाएँ आंदोलन कंपनियाँ परिवार संबंध वैवाहिक जीवन आदि बिखरते देखे जा रहे हैं |