Saturday, 12 March 2022

अ अक्षर प्रशासक स्वभाव

 राजनीति में नाम का महत्त्व !    केशवमौर्य की हार क्यों ?    मौर्य का नाम 'क' अक्षर से प्रारंभ होता है | क अक्षर वाले लोग प्रसन्न रहने रहने वाले, खेलने कूदने शौकीन, शिक्षा कला कॉमेडी आदि में रूचि रखने वाले और इन्हीं क्षेत्रों से संबंधित ऊँचे से ऊँचे पदों तक पहुँचने वाले होते हैं |इन्हें पसंद करने बाले लोग बहुत अधिक होते हैं इन पर विश्वास करने वाले बहुत कम होते हैं | ऐसे लोग अपने गुणों से बहुत लोगों को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं -जैसे भगवान् कृष्ण, कपिल शर्मा कॉमेडी में ,कपिलदेव, कीर्तिआजाद खेल की प्रसिद्धि से ,कपिल सिब्बल वकालत की प्रसिद्धि से,करनजौहर फिल्मों से, कुमारविश्वास शिक्षा कविता आदि की प्रसिद्धि से राजनीति में गए  अवश्य किंतु अपने बल पर राजनीति करना संभव नहीं हो सका |     इसी 'क' अक्षर वाले लोग निष्कपट होने के कारण जो मनमें आता है सो बोल देते हैं | अधिक स्पष्टवादी होने के कारण किसी के अनुशासन  में रहना एवं गूढ़ बातों को अधिक समय तक छिपाकर रखना इनके स्वभाव में नहीं  होता है| इसीलिए राजनीत कर पाना इनके लिए बहुत कठिन होता है|राजनैतिक गुणों के अभाव में भी कई बार ऐसे लोग अपनी शिक्षा कला आदि गुणों के आधार पर अस्थाई रूप से राजनैतिक पद प्रतिष्ठा कर लेते हैं किंतु उसे सुरक्षित तभी तक रख पाते हैं जब तक किसी राजनैतिक व्यक्ति के अनुशासन में रहते हैं जैसे ही उसका साथ छोड़ते हैं वैसे ही राजनीति में अपने बलपर इनका अपना कोई आस्तित्व नहीं बचता है | ऐसे लोग अपने राजनैतिक संरक्षक को प्रसन्न करने के लिए उसकी इच्छा के अनुरूप उससे अधिक बोलते सुने जाते हैं | महाभारत में कर्ण ने ऐसा ही किया था |ऐसे लोगों के गुणों का उपभोग इनके राजनैतिक संरक्षक लोग ही किया करते हैं | वे ही जब तक चाहते हैं तब अपने लिए इनके गुणात्मक व्यक्तित्व का बलिदान लिया करते हैं अपनी सुविधानुशार जब चाहते हैं | तब उनसे किनारा कर लिया करते हैं ये अपनी राजनैतिक क्षमता के आधार पर उन्हें कभी कोई चुनौती देने की की स्थिति में नहीं होते| | जैसे-कुंभकरण, महाभारत के कर्ण,केशवमौर्य, कीर्तिआजाद,कुमारविश्वास,कन्हैया कुमार,कपिलमिश्रा आदि हैं |यह क अक्षर का ही प्रभाव है कि मध्य प्रदेश में कमलनाथ जी की बनी बनाई सरकार चली गई | 

   अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी -

     अखिलेश का नाम अ अक्षर से है | अ अक्षर से नाम वाले लोग स्वयं को प्रशासक और दूसरे को प्रजा समझते हैं | ऐसे लोग छोटे से छोटे संगठन से लेकर बड़े से बड़े संगठन के प्रमुख बनना ही पसंद करते हैं किसी दूसरे के प्रमुख बनने की संभावना देखते ही वो सब कुछ करते हैं जिससे उसे पीछे किया जा सके |प्राचीन देशों में आर्यावर्त,वर्तमान में अमेरिका,सम्राटअशोक ,राजनैतिक दलों में आम आदमी पार्टी, भाजपा में अटल जी ,आप में अरविंद केजरीवाल ,विश्व हिंदूपरिषद  में अशोक सिंघल जी ,अमितशाहजी ,उत्तर प्रदेश में आदित्यनाथ,  दिल्ली में आदेश गुप्ता | राजस्थानकाँग्रेस में अशोक गहलोत  पंजाब में अमरिंदर सिंह  ,दिल्ली काँग्रेस ,में अनिल चौधरी अजय माकन ,अरविंदर सिंह ,उत्तर प्रदेश काँग्रेस में अजयकुमार लल्लू,बसपा  में 'आकाश 'आनंद कुमार,तृणमूल काँग्रेस में  अभिषेक बनर्जी,महाराष्ट्र शिवसेना में आदित्य ठाकरे , मनसे में अमित ठाकरे ,प्रसपा में आदित्य यादव,आम आदमी पार्टी के हिमाचल प्रदेश अध्यक्ष अनूप केसरी आदि हैं |  इसी प्रकार से अमिताभ बच्चन,अजित डोभाल  आदि अपने अपने क्षेत्रों  प्रमुख हैं |       

     अ अक्षर प्रशासक स्वभाव  का  होता है किंतु किसी एक परिवार संस्थान संगठन  सरकार में   बराबरी के कई लोग जब  अ अक्षर वाले हो  जाते हैं तब वहाँ विवाद पैदा होने लगता है |आम आदमी पार्टी में तेरह लोग अ अक्षर वाले आमने सामने आ गए थे अंजलीधमानियाँ,आदर्श शास्त्री,आनंदकिशोर ,आशुतोष और आशीष खेतान जैसे अ अक्षर वाले उन तेरहों लोगों को पार्टी से बाहर करते ही पार्टी में सब कुछ सामान्य हो गया |
   इसी प्रकार दिल्ली में अ अक्षर वाले अरविंद केजरीवाल सरकार की उपराज्यपाल अ अक्षर वाले अनिल बैजल जी से  अधिकार को लेकर तकरार चला ही करती है | ऐसे ही दिल्ली में अ अक्षर वाले अरविंद केजरीवाल सरकार में जब तक  पुलिसकमिश्नर  पद पर अलोक कुमार वर्मा एवं अमूल्य पटनायक  रहे  तब तक  आपसी आरोपों  प्रत्यारोपों का दौर चलता ही रहा और सरकार की छबि बिगड़ती रही  | यह परिस्थिति कुछ दिन उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने भी झेली है अन्य सरकारों में भी ऐसा होता रहता है उसका सरकारी काम काज की गुणवत्ता पर उसी प्रकार का प्रभाव पड़ता है | 
     कई परिवारों में इस बात के कारण ही कलह रहता है जिसका उन्हें पता नहीं होता है | मुलायमसिंह का नाम म अक्षर से प्रारंभ होता है इसलिए उन्हें परिवार में किसी से चुनौती नहीं मिली | पार्टी में जब अखिलेश का नेतृत्व आया तो परिवार की उस पीढ़ी में अपर्णा यादव सहित कई लोगों का नाम अ अक्षर से प्रारंभ होता है स्वयं शिवपाल के दोनों बच्चों का नाम अ अक्षर से आदित्य यादव और अनुभा यादव है | रामगोपाल के बेटे अक्षय यादव  हैं |अ अक्षर के कारण इनकी महत्वाकाँक्षा अखिलेश की तरह ही होनी स्वाभाविक है वे स्वयं तो प्रयास करेंगे ही अपने अभिभावकों को भी प्रेरित करेंगे कि वे अखिलेश की टाँगखिंचाई करते रहें | ऐसे ही  परिवार में अपर्णा यादव सहित कुछ अन्य नाम भी  अक्षर से  हैं उनका भी ऐसा ही रुख रहेगा | इसीप्रकार से आजम खान एवं उनके बेटे अब्दुल्ला आजम खान एवं अदीब खान इन तीनों के मुख से निकला कोई भी राजनैतिक शब्द अखिलेश के लिए समस्या पैदा करता रहेगा | इस प्रकार की परिस्थिति में अखिलेश के नेतृत्व में पार्टी का आगे बढ़ पाना काफी चुनौती पूर्ण है |
    म अक्षर होने के कारण मुलायम सिंह का नेतृत्व  सबको स्वीकार्य था क्योंकि म अक्षर को म अक्षर वाला कोई दूसरा चुनौती देने वाला था ही नहीं फिर भी अमर सिंह आजम खान  दोनों के नाम अ अक्षर से रहे हैं इसलिए दोनों आपस में टकराते रहे हैं किंतु मुलायम सिंह जी दोनों को संभाल लेते रहे हैं किंतु  अक्षर वाले  अखिलेश  को नेतृत्व मिला तब  तीन अ अक्षर वाले शीर्ष पर हो गए  तो तीनों टकरा गए  परिणाम स्वरूप अमर सिंह बाहर किए गए  और आजम  अल्प संख्यक चेहरा रहे  इसलिए  उनके रूठने पर उन्हें मना लिया जाता रहा  |उनके साथ रहने से अखिलेश को नुक्सान हुआ है | 
 
   ऐसे ही बालठाकरे  परिवार  में सब कुछ ठीक चलता रहा किंतु उद्धव के पुत्र आदित्य ठाकरे एवं  राज ठाकरे के पुत्र   अमित ठाकरे  दोनों ही एक दूसरे को अपने से  आगे  नहीं  देख सकते थे | इसलिए  साथ साथ वाली बात बिगड़ गई और दोनों अलग अलग हो गए |

    ऐसी परिस्थिति में अ अक्षर का कोई मजबूत समाधान खोजे बिना सपा को सत्ता में आने की आशा नहीं करनी चाहिए |

   अक्षर वाले के मित्रवर्ण का कोई व्यक्ति यदि प्रमुख पद पर पहुँच भी जाए तो अक्षर वाले उसके बराबर की हैसियत रखकर ही उसका सहयोग करते हैं | जिसके महत्वपूर्ण परिणाम  निकलते देखे जाते हैं -जैसे- अटल जी -लालकृष्ण जी, अमितशाह जी -नरेंद्रमोदीजी,अरविंदकेजरीवालजी -मनीषसिसोदियाजी,मुलायमसिंह जी के साथअमर सिंह और आजम खान आदि के संबंध एक दूसरे के लिए सहयोगी रहे हैं |

     कई बार सरकारों की छवि बनाने बिगाड़ने में सक्षम ऊँचे पदों पर बैठे अफसरों का अपने मंत्रियों मुख्य मंत्रियों या प्रधानमंत्रियों आदि के साथ नामजनित तालमेल नहीं बन पाता है  या  फिर एक दूसरे का विरोधी होता  है ऐसे अफसर अपनी ही सरकारों की छवि बिगाड़ा करते हैं जिसकी कीमत सरकारों या राजनैतिक दलों को चुकानी पड़ती है |  

   अपर्णा यादव जो अ अक्षर वाले अखिलेश को नहीं पचा सकीं वे अ अक्षर वाले आदित्यनाथ को कब तक सह पाएँगी और अ अक्षर वाले अमितशाह आदित्यनाथ को कब तक सह पाएँगे !

  इस वर्ण वैषम्य के कारण दिल्ली भाजपा इतने वर्षों से सत्ता से दूर है | काँग्रेस इस स्थिति तक पहुँच गई है | ऐसे ही कई अन्य राजनैतिक या गैर राजनैतिक संगठन सरकारें संस्थाएँ आंदोलन कंपनियाँ परिवार संबंध वैवाहिक जीवन आदि बिखरते देखे जा रहे हैं |