Saturday, 6 November 2021

चिंता की बात है !

चिंता की बात है ! 

     सभीप्रकार के प्राकृतिक संकटों के आने के एक दिन पहले तकउनके विषय में किसी वैज्ञानिकों को कुछ पता नहीं होता है और संकट बीत जाने के बाद उससे संबंधित वैज्ञानिकों  के अनुसंधानों की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती है ऐसी परिस्थिति में उस प्रकार के अनुसंधानों की आवश्यकता है क्या है जो बीते सौ दो सौ वर्षों में अपनी उपयोगिता ही ही नहीं सिद्ध कर सके ?प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिकों का यह ढुलमुल रवैया अत्यंत चिंताजनक है | महामारी हो या मौसम किसी क्षेत्र में वैज्ञानिकों की कोई सार्थक भूमिका क्यों नहीं दिखाई पड़ रही है | प्राकृतिक आपदा आने से पहले वे उसके विषय में कुछ भी बता पाने में  कभी सफल नहीं  हुए हैं और प्राकृतिक आपदाएँ जब बीत जाती हैं तब वही वैज्ञानिक लोग  महामारी या  मौसम से संबंधित प्राकृतिक आपदाओं के विषय में भविष्य से संबंधित तरह तरह की डरावनी अफवाहें फैलाने लगते हैं | जो गलत है वैज्ञानिक अनुसंधानों का यह उद्देश्य तो नहीं ही है | 

    इसलिए प्राकृतिक अनुसंधानों को भी कसौटी पर कसे जाने की आवश्यकता है इसके लिए आवश्यकता इस बात की है कि जिसप्रकार के अनुसंधान जिस वर्ग के जिस प्रकार का संकट कम करने के लिए किए या करवाए जाते हैं या जिस वर्ग की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुख सुविधा पहुँचाने के लिए किए या करवाए जाते हैं | ऐसे अनुसंधान  संकटकाल में उस वर्ग का उससे संबंधित संकट कम करने में कितने प्रतिशत सफल हुए |कितने प्रतिशत उनकी कठिनाइयाँ कम की जा सकीं एवं अनुसंधानों से संबंधित वर्ग को कितनी सुख सुविधा पहुँचाई जा सकी उसके आधार पर उन अनुसंधानों की सफलता और असफलता का मूल्याङ्कन होना चाहिए | जो अनुसंधान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में जितने प्रतिशत सफल होते दिखाई दें उन्हें उतने प्रतिशत ही सफल माना जाना चाहिए | जो अनुसंधान अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में पूरी तरह ही असफल रहे हों ऐसे निरर्थक कार्यों को अनुसंधान की श्रेणी से अलग कर दिया जाना चाहिए और उन अनुसंधानों पर होने वाले व्यर्थ के व्ययभार से जनता की रक्षा की जानी चाहिए क्योंकि जनता के द्वारा टैक्स रूप में सरकारों को दी गई उसके खून पसीने की कमाई अनुसंधान कार्यों पर भी सरकारें खर्च किया करती है | उसके बदले ऐसे अनुसंधानों से जनता को भी कुछ तो मदद मिलनी ही चाहिए | जिनसे कोई मदद नहीं मिलती या मिल सकती है उस प्रकार के अनुसंधानों का बोझ जनता पर थोपा ही क्यों जाए !

       भूकंपों से संबंधित अनुसंधान इतने लंबे समय से चलाए जा रहे हैं उनसे जनता को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी है इस बात की समीक्षा तो होनी चाहिए |वैज्ञानिक अनुसंधानों से भूकंपों को रोकना तो संभव है ही नहीं केवल इनका पूर्वानुमान ही लगाने के लिए बड़े बड़े अनुसंधान चलाए जा रहे हैं | कोई भूकंप कब आएगा इसका पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है और न ही वैज्ञानिकों के द्वारा ऐसे कोई दावे किए ही जा रहे हैं | दूसरी बात भूकंप आते क्यों हैं उसका कारण खोजना सबसे कठिन काम है | कोरोना महामारी के समय एक डेढ़ वर्ष में केवल भारत में एक हजार से अधिक भूकंप आए हैं ऐसा क्यों हुआ किसी को नहीं पता है |  

       2018 अप्रैल मई जून में आने वाले पूर्वोत्तर भारत के हिंसक आँधी तूफानों के विषय में जिन मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी उन्हीं मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा 8 मई 2018 को भीषण आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी कर दी गई ,मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी से भयभीत सरकारों ने दिल्ली और दिल्ली के आसपास के स्कूल कालेज बंद करवा  दिए जबकि हवा का एक झोंका  भी नहीं आया | ऐसे ही अगस्त 2018 में केरल में भीषण बाढ़ आई जिसके विषय में कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था | 

         वायु प्रदूषण के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो दूर आज तक यही नहीं बताया जा सका कि वायु प्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण क्या है ? दीपावली के पटाखों को वायु प्रदुषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताने वाले यह नहीं सोचते कि चीन में तो दीवाली नहीं मनती वहाँ क्यों बढ़ा हुआ है वायु प्रदूषण ! 

       महामारी संक्रमण बढ़ने के लिए जो वैज्ञानिक लोग वायु प्रदूषण को जिम्मेदार बताते हैं वे ये क्यों नहीं सोचते कि जिन देशों प्रदेशों में वायु प्रदूषण नहीं बढ़ता है | वहाँ कोरोना संक्रमण क्यों बढ़ता है ? जो लोग कोरोना नियमों का पालन न करने वाली भीड़ों को कोरोना संक्रमण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताते हैं वे दिल्ली में किसानों का आंदोलन ,महानगरों से मजदूरों का पलायन बिहार बंगाल की चुनावी भीड़ें एवंहरिद्वार कुंभ की भीड़ आखिर वे क्यों भूल जाते हैं | जो लोग  लगाने से कोरोना संक्रमण नियंत्रित  बात पर विश्वास  करते हैं उन्हें यह भी सोचना चाहिए केरल जैसे राज्य जहाँ वायु प्रदूषण सबसे कम रहता है वैक्सीनेशान में भी सबसे आगे रहा इसके बाद भी सबसे अधिक कोरोना संक्रमितों की संख्या वहीँ रही | अमेरिका जैसे देशों  में और दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में चिकित्सा की सर्वोत्तम व्यवस्थाएँ होने के बाद भी कोरोना संक्रमण सबसे अधिक यहीं बढ़ा | जो संपन्न वर्ग जितने अधिक कोरोना नियमों का पालन करता रहा कोरोना से सबसे अधिक वही वर्ग संक्रमित हुआ है | कोरोना महामारी के विषय में वैज्ञानिकों ने कभी कुछ बताया ही नहीं और जब जब जो जो अनुमान या पूर्वानुमान बताए वे सभी गलत निकलते चले गए इसके बाद भी तीसरी लहर की अफवाह फैलाने से वे बाज नहीं आए जिसका कि कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं था  | 

         इसी प्रकार जिन भूकंपों  के आने से पहले उसके विषय में जिन वैज्ञानिकों के द्वारा कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा  सकी होती है एक बार भूकंप आ जाने के बाद वही वैज्ञानिक रोज कोई न कोई भूकंप आने  की भविष्यवाणी कर दिया करते हैं | कुछ समय तक इस प्रकार का क्रम चला करता  है इसके बाद जब कोई भूकंप नहीं आता तो वैज्ञानिक भी शांत हो जाया  करते हैं | ऐसी अफवाहों से वैज्ञानिकों का भले न कुछ बिगड़ता हो किंतु जनता  तो परेशान  होती ही है |

         जिन प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो वैज्ञानिक लोग कभी पूर्वानुमान नहीं लगा पाते उनके घटित होने का कारण नहीं खोज पाते अपनी असफलताओं को भुलाने के लिए वही लोग अफवाहें फैला फैलाकर जनता का तनाव बढ़ाया करते हैं जनता न खाली रहेगी न वो वैज्ञानिकों की असफलताओं के विषय में सोचेगी | इसके अतिरिक्त और दूसरा कोई तर्कसंगत कारण नहीं दिखता है |

      सारी दुनियाँ देख रही है कि कोरोना महामारी में वैज्ञानिकों की ऐसी कोई सार्थक भूमिका दूर दूर तक नहीं दिखाई पड़ी है जिससे प्राकृतिक आपदाओं के समय समाज को कभी कोई मदद मिल सकी हो | कोरोना महामारी के समय जनता आपदा से अकेली जूझती रही | अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों अनुभवों से कुछ अफवाहों के अतिरिक्त और जनता को क्या मदद पहुँचाई जा सकी | 

      कुल मिलाकर मौसम एवं महामारी के विषय में जिस आधुनिक विज्ञान संबंधी अनुसंधानों  पर जनता का पैसा पानी  की तरह बहाया जाता है क्या उस विज्ञान में यह क्षमता ही नहीं है कि उसके द्वारा ऐसे  विषयों में कोई सार्थक अनुसंधान किया जा सके | उन झूठी भविष्यवाणियों को सच की तरह  परोसते  रहना मीडिया की अपनी मजबूरी होती है | 

     कोरोना महामारी को ही लें तो जब तक महामारी है तब तक महामारी के विषय में वैज्ञानिक कुछ भी पता नहीं लगा पा रहे हैं और महामारी समाप्त होने के बाद वो जो जो कुछ बताएंगे भी उस पर विश्वास  किस आधार पर कर लिया जाएगा |क्योंकि महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा जो जो कुछ बोला गया वो संपूर्ण रूप से गलत निकला है |  

    विदेशों में अमेरिका ब्रिटेन जैसे देशों में चिकित्सा व्यवस्थाएँ बहुत अच्छी थीं |वहाँ वैक्सीन भी समय से लगती रही इसके बाद भी लोग बड़ी मात्रा  में संक्रमित होते रहे हैं | 

   भारत में दिल्ली मुंबई में चिकित्सा व्यवस्था देश के अन्य स्थानों की अपेक्षा अधिक उन्नत हैं जबकि सबसे अधिक यहीं के लोग महामारी से अधिक तंग हुए हैं | यहाँ तक कि केरल  में वैक्सीनेशन अन्य प्रदेशों की अपेक्षा अधिक हुआ किंतु केरल सबसे अधिक पीड़ित हुआ आखिर क्यों ?

    कुछ वैज्ञानिक लोग इसका कारण जो लोग जलवायु परिवर्तन को बता रहे उन्हें यह सोचना चाहिए कि जलवायु परिवर्तन क्रमिक  और लगातार चलने वाली व्यवस्था है जबकि प्राकृतिक घटनाएँ तो कभी कभी घटित होती हैं |    

   सच्चाई ये है कि मानसून आने जाने से संबंधित इनकी कोई भविष्यवाणी कभी सही नहीं निकली अब तारीखों में परिवर्तन करके थोड़ा समय इस बहाने काट लिया जाएगा |


    


         


Thursday, 7 October 2021

ऐसी रिसर्चों से कैसे की जा सकती है जनता की मदद !

संशय
16अप्रैल2021-गाँवों में या शहर के निम्न वर्गीय तबके पर कोरोना नियमों का पालन न करने परभी कोरोना महामारी का दुष्प्रभाव बहुत अधिक नहीं पड़ा है जितना कि मध्यवर्ग या फिर उच्च वर्ग पर पड़ रहा है |अमेरिका की कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कोरोना पर की अपनी एक रिसर्च में भी यही स्वीकार किया है | हाल ही में ब्रिटिश जर्नल ऑफ सपोर्ट मेडिसिन में प्रकाशित इस रिसर्च में बताया गया है कि जो लोग शारीरिक श्रम नहीं करते हैं या बेहद कम करते हैं, उनमें कोरोना का संक्रमण घातक साबित हो सकता है रिसर्च से ये बात भी साफ हो गई है कि गांवों में क्यों कोरोना संक्रमण उतना घातक नहीं हुआ है, जितना शहरों में है. दरअसल गांव के लोगों की जीवनशैली शारीरिक श्रम वाली रही है. जिसके चलते कोरोना ग्रामीण इलाकों में ज्यादानुकसान नहीं कर पाया |अमेरिका समेत विकसित देशों में कोरोना का संक्रमण बेकाबू होने की प्रमुख वजह यही हो सकती है. क्योंकि जीवन शैली और तकनीक के चलते यूरोपीय, अमेरिका आदि देशों में लोग ज्यादा शारीरिक श्रमनहीं करते हैं. जिसके कारण वहां संक्रमण बेकाबू भी हुआ है |  

31 जुलाई 2021- किसी पत्रकार ने आईसीएमआर के महामारी विज्ञान और संक्रामक रोग विभाग के हेड डॉ. समीरन पांडा से पूछा -"देश में अगस्त से दिसंबर के बीच तीसरी लहर के आने की भविष्यवाणी की जा रही है। कुछ जानकारों ने उन मॉडलों पर भी सवाल उठाए हैं, जिनके आधार पर ऐसे अनुमान लगाए जा रहे हैं|इस प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. समीरन पांडा ने कहा -"यह भविष्यवाणी की बात नहीं है। यह मॉडलिंग एक्सरसाइज है। मान लीजिए कि हिमाचल प्रदेश में दूसरी लहर के बाद पिछले दिनों बहुत सारे टूरिस्ट चले गए। जिसको हम पॉप्युलेशन डेंसिटी कहते हैं, वहां वह अचानक बढ़ गई, तो उधर संक्रमण फैलने के चांस भी बढ़ गए। यह भविष्यवाणी नहीं है, विज्ञान है। जिस राज्य में पहली या दूसरी लहर में ज्यादा संक्रमण नहीं हुआ, उस राज्य में जरूर जोखिम है।"

28  जुलाई 2021- वैक्सीनेशन में अव्वल रहने के बाद भी केरल में महामारी के नए केस बढ़ने पर सवाल उठ रहे हैं।

लॉकडाउन :
    किसी देश को महामारी के रोकथाम के लिए ज्यादा दिन तक लॉकडाउन में नहीं रखा जा सकता है। लॉकडाउन का उद्देश्य किसी वायरस से निपटने हेतु स्वास्थ्य सेवाओं की तैयारी करना होता है जबकि  भारत में लॉकडाउन को वायरस के उन्मूलन को हथियार मान लिया गया | 
    भारत में कोरोना महामारी को देखते हुए 22 मार्च को जनता कर्फ्यू एवं 24 मार्च को जो लॉकडाउन शुरू किया गया था | उसे क्रमशः धीरे-धीरे कई चरणों में खोला गया था | देश में 1से 30 जून तक अनलॉक 1 \1से 31जुलाई  तक अनलॉक 2 \ 1 से 31 अगस्त तक अनलॉक 3 \ 1 से 30 सितंबर तक अनलॉक 4 \  1से 31 अक्‍टूबर तक अनलॉक-5\  1 नवंबर 2020 से अनलॉक 6 प्रारंभ हो गया था | 
 20 अप्रैल 2021 से पुनः लॉक डाउन लगाना पड़ा !जिसे 1 जून 2021 से खोले जाने की आंशिक प्रक्रिया प्रारंभ की गई थी | 
 चूहे पैदा हो गए !
26 मई 2021ऑस्‍ट्रेलिया में लंबे सूखे के बाद पिछले साल बड़े पैमाने पर बारिश हुई थी। बारिश होने से बड़ी संख्‍या में चूहे पैदा हो गए।अब चूहों का कहर, अब खुद को ही खाने लगे करोड़ों चूहे !करोड़ों की संख्‍या में चूहे घरों, फार्म हाउस, हॉस्पिटल, स्‍कूलों में घुस गए हैं |
कोरोना छूने से फैलता है !
 9 अप्रैल 2020 को पहले कहा जा रहा था कि कोरोना संक्रमितों को छूने से या उनकी स्पर्श की हुई वस्तुओं को छूने से कोरोना संक्रमण बढ़ता है | सीडीसी ने किसी चीज को छूने को लेकर नई गाइडलाइंस जारी की हैं. एक्सपर्ट्स ने पिछले साल एडवाइजरी जारी करके कहा था कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट, सुपरमार्केट और अन्य जगहों पर किसी चीज को न छुएं. अगर छूना भी पड़े तो हाथों को तुरंत सैनिटाइज करें| अगर बात पैसों की करें तो कोरोना वायरस महामारी को रोकने के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक ने सुझाव दिया है कि 'जनता फ़िलहाल नक़दी उपयोग करने से बचे और लेन-देन के लिए भुगतान के डिजिटल साधनों का प्रयोग करे.
      कोरोना छूने से नहीं फैलता है !
13-अप्रैल 2021  नई रिसर्च में पता चला है कि चीजों को छूने से ये खतरा कम है.| वर्जीनिया टेक यूनिवर्सिटीमें एयरबॉर्न डिजीस की एक्सपर्ट लिंसी ने कहा कि हमें इस बारे में बहुत दिनों से मालूम है. लेकिन लोग फिर भी घर और बाहर की चीजों को सैनिटाइज करने में जुटे हैं. जबकि किसी सतह को छूने से कोरोना संक्रमण का खतरा कम है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अब तक सबूत नहीं मिले हैं कि किसी संक्रमित सतह को छूने से कोई बीमार पड़ा | यह छूने से फैलने वाला वायरस नहीं है | 
कोरोना महामारी की अंतरगम्यता :
20-अप्रैल -2020 को पेरिस की सीन नदी और अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है !
20 अप्रैल 2020 को कोरोना वायरस फ्रांस में जब शोध हो रहा था तब गैर पीने योग्य पानी में नए कोरोना वायरस के 'माइनसक्यूल' सूक्ष्म निशान पाए गए !अमेरिका में एक बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के निशान मिले. अब फ्रांस की राजधानी पेरिस में पानी में कोविड पाया गया है.अधिकारी सेलिया ब्लाउज के मुताबिक गैर पीने योग्य पानी में कोरोना के बेहद ही बारीक निशान मिले हैं |
5मई 2020को तंजानिया में बकरी और पपीता फल भी कोरोना पॉजिटिव,!कोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी, पॉपॉ फल और भेड़ से लिए गए थे। सैंपल को जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी और पॉपॉ फल कोरोना पॉजिटिव निकले।
7 मई 2020कोकुत्ते, बिल्ली, बाघ और शेर के कोरोना वायरस से शिकार होने के बाद अब ऊदबिलाव भी इस बीमारी से संक्रमित होने वाले जानवरों की लिस्ट में शामिल हो गया है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, नीदरलैंड्स के एक फर फार्म में दो ऊदबिलाव नए कोरोना वायरस यानी कोविड-19 से संक्रमित पाए गए। डॉक्टर हिचेंस ने कहा कि ऊदबिलाव का कोरोना वायरस से संक्रमित होना हैरान करने वाली बात नहीं है। साल 2003 में जब SARS फैला था, तो कम से कम 16 प्रजातियां इसकी चपेट में आई थीं, जिसमें ऊदबिलाव, बिज्जू , चमगादड़, होर्सशू चमगादड़ की कई प्रजातियां, लाल लोमड़ी, जंगली सूअर, रैकून और पाल्तू बिल्ली व कुत्ते जैसे जानवर शामिल थे।
 तुमकुरू, 30 जून 2020 चरवाहे को हुआ कोरोना वायरस, बकरियों और भेड़ों को सांस लेने में दिक्कत!
17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश ! उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है.| 
28 जुलाई 2020 को कोरोना का शिकार होने वाली ये पालतु जानवर ब्रिटेन के सरे की रहने वाली एक पालतु बिल्ली है.कुछ दिन पहले इस बिल्ली का मालिक कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. इस बात की पूरी संभावना है कि बिल्ली में, उसके मालिक के जरिये कोरोना का संक्रमण फैलाहो |
 13 अगस्त  2020चीन से आई चौंकाने वाली खबर, चिकन में भी कोरोना वायरस!चीन ने फ्रोजन चिकन  के पंख में भी कोविड-19 के होने की पुष्टि की है.
      कोरोना का प्रभाव और लक्षण में भ्रम -
    4 जून 2020 - कोरोना इंसान के शरीर पर किस तरह से कब्जा करता है और किस तरह एक-एक कर अंगों को डैमेज करने का काम करता है, इससे जुड़ी खबरें लगातार साइन्टिस्ट द्वारा दी जा रही हैं। कोरोना वायरस के मरीजों के साथ जो सबसे बड़ी समस्या सामने आ रही है, वह यह है कि इन मरीजों में लक्षण एक-दूसरे से बिल्कुल अलग-अलग नजर आ रहे हैं। हेल्थ एक्सपर्ट्स के अनुसार यदि खांसी-जुकाम-बुखार और सांस लेने में दिक्कत जैसे लक्षणों को छोड़ दिया जाए तो कोविड-19 के मरीजों में किडनी फेल्यॉर, हार्ट अटैक, लिवर का काम ना करना जैसे लक्षण भी देखने को मिल रहे हैं।

वेंटिलेटर
23 अप्रैल 2020 _वेंटिलेटर भी काम नहीं आता !दम घोंट देता है कोरोना, देखते रह जाते हैं डॉक्टर, वेंटिलेटर भी काम नहीं आता !कोरोना वायरस की वजह से मरीजों का दम घुट रहा है. वेंटिलेटर और लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी बेकार साबित हो रहे हैं. डॉक्टर मरीजों को मरते हुए देखते रह जाते हैं. ऐसा हो रहा है दुनिया के कई जगहों पर. लेकिन ये दिक्कत है क्या?
कोरोना रोगियों पर वेंटिलेटर कितना प्रभावी ! 
     23 अप्रैल 2020 -कोरोना वायरस की वजह से मरीजों का दम घुट रहा है. वेंटिलेटर और लाइफ सपोर्ट सिस्टम भी बेकार साबित हो रहे हैं. डॉक्टर मरीजों को मरते हुए देखते रह जाते हैं | न्यूयॉर्क सिटी के बेलेउवे हॉस्पिटल के डॉक्टर रिचर्ड लेवितान ने कहा कि मैं दो दशकों से मेडिकल के छात्रों को वेंटिलेटर्स के बारे में सबकुछ बता रहा हूं.डॉ. रिचर्ड लेवितान ने कहा कि कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों के फेफड़ों में कफ या म्यूकस या फ्लूड भरा होता है. इसके बावजूद उन्हें सांस लेने में दिक्कत नहीं होती है जब तक स्थिति बहुत ज्यादा न बिगड़ जाए !इससे शरीर के अंदर ऑक्सीजन की मात्रा का गिरने या कम हो जाने से शरीर के कई अंग काम करना बंद कर देते हैं. आखिरकार मरीज की मौत हो जाती है | 
   विशेष :अप्रैल 2021 में आक्सीजन न मिलने के कारण ही कितनी अफरा तफरी मच गई जहाँ किसी का कोई बश नहीं चल रहा था | 

प्लाज्मा थेरेपी का निर्णय  कितना सही कितना गलत !
    प्लाज्मा थेरेपी देने से कोरोना मरीजों को लाभ होने की बातें बताई गईं !इसलिए प्लाज्माकरने के लिए प्रोत्साहित किया जाने लगा !प्लाज्मा बैंक बनाए गए !प्लाज्मा ब्लैक में बेचा जाने लगा | प्लाज्मा की तलाश में लोग निजी स्टार पर भाग दौड़ करने लगे | बाद में प्लाज्मा का असर न होने के कारण उसे चलन से बाहर कर  दिया गया !
    21अप्रैल 2020 को दिल्ली के 4 मरीजों को प्लाज्मा दिया गया !दुनिया के कई अन्य देशों में भी इस थेरेपी का इस्तेमाल किया जा रहा है. भारत के अलावा अमेरिका, स्पेन, दक्षिण कोरिया, इटली, टर्की और चीन समेत कई देशों में प्लाज्मा थेरेपी  प्रचलित है | 
21अप्रैल 2020 को प्लाज्मा थेरेपी देने के बाद कोरोना रोगी के ऑक्सीजन लेवल में सुधार आया है।
25अप्रैल 2020 को प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना मरीजों में सुधार के लक्षण दिखे !यह कोविड-19 के इलाज में कारगर हो सकती है ! 
7 अगस्त 2020 -डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने गुरुवार को बताया कि एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई. लेकिन परीक्षण के दौरान प्लाज्मा थेरेपी का कोई फायदा नज़र नहीं आया.!दिल्ली AIIMS के निदेशक डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने बताया कि कोरोना के एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई. उन्होंने कहा कि परीक्षण के दौरान एक समूह को मानक सहयोग उपचार के साथ प्लाज्मा थेरेपी दी गई जबकि दूसरे समूह का मानक इलाज किया गया. दोनों समूहों में मृत्यु दर एक समान रही और रोगियों की हालत में ज्यादा फर्क नहीं दिखा.
19 नवंबर 2020 - आईसीएमआर के मुताबिक प्लाज्मा थेरेपी से विशेष फायदा होता नहीं देखा गया है. आईसीएमआर ने देश के 39 सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कोरोना से संक्रमित मॉडरेट मरीजों पर एक स्टडी की, यह वो मरीज थे जिन्हें प्लाज्मा थेरेपी दी गई थी. 400 से ज्यादा मरीजों पर स्टडी करने के बाद आईसीएमआर ने यह निष्कर्ष निकाला है कि प्लाज्मा थेरेपी मॉडरेट मरीजों पर विशेष फायदा नहीं कर रही है. यह पूरी दुनिया में की गई अब तक की सबसे बड़ी स्टडी है | 
18 मई 2021 केंद्र सरकार ने सोमवार को कोरोना वायरस संक्रमण के उपचार के लिए क्लिनिकल कंसल्टेशन में संशोधन किया और मरीजों के उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपीके उपयोग को क्लिीनिकल मैनेजमेंट के दिशा-निर्देश से हटा दिया. सरकार ने पाया कि कोविड-19 मरीजों के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी गंभीर बीमारी को दूर करने और मौत के मामलों को कम करने में फायदेमंद साबित नहीं हुई.
प्लाज्मा के इस्तेमाल पर रोक के प्रमुख कारण
1- प्लाज्मा के इस्तेमाल से कोरोना मरीजों को गंभीर स्थिति में जाने या मौत से बचाने में न कोई मदद मिल रही थी न कोई साक्ष्य हैं।
2- आईसीएमआर ने कहा जिस चीज से फायदा नहीं है उसे उम्मीद में जारी रखना ठीक नहीं। इससे सिर्फ डर, भय और घबराहट की स्थिति बनती है।
3- बीएमजे जर्नल में प्रकाशित शोध में इसके सार्थक परिणाम नहीं दिखे थे। इसके बाद कई महीने मंथन के बाद ये फैसला लिया गया।
4- लैसेंट पत्रिका में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार ऐसा कोई आंकड़ा या साक्ष्य नहीं है जिससे पता चले कि प्लाज्मा से मौत का खतरा या बीमारी का समय कम होता है।
5- संक्रमण की चपेट में ऐसे लोगों की संख्या अधिक है जो किसी न किसी बीमारी से ग्रसित हैं। ऐसे प्लाज्मा डोनेशन उनके साथ दूसरे के लिए भी खतरनाक है। 
कोरोना वैक्सीन या औषधियॉँ -
 2 अगस्त2020 को डब्ल्यूएचओ नेआगाह​ किया ​कि कोविड-19 की सटीक दवा कभी संभव नहीं है। उसने कहा कि हालात सामान्य होने में अभी वक्त लगेगा। कई देशों को इस पर अपनी रणनीति दोबारा बनानी चाहिए। संगठन ने वैक्सीन की प्रबल उम्मीद के बावजूद कोरोना वायरस की दवा को लेकर ऐसी बातें कही। संयुक्त राष्ट्र की इस स्वास्थ्य संस्था के प्रमुख ने कहा कि कई वैक्सीन क्लीनिकल ट्रायल के तीसरे चरण में हैं। उन्होंने कहा कि फिलहाल कोई अचूक दवा नहीं है और संभवत: ऐसा कभी हो भी नहीं सकता। इस मौके पर टेड्रोस और डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख माइक रियान ने सभी देशों से कोरोना की रोकथाम के लिए मास्क, शारीरिक दूरी, हैंड-वाशिंग और टेस्टिंग जैसे उपायों को सख्ती के साथ लागू करने की अपील की।
महामारी की वैक्सीन पर संशय :
16 अप्रैल 2020-वैज्ञानिकों की तरफ से भी कई रिसर्च किए जा रहे हैं ताकि इसकी वैक्सीन बनाने में मदद मिल सके. लेकिनऑस्ट्रेलिया और ताइवान के शोधकर्ताओं के अनुसार, कोरोना वायरस भारत में अपना स्वरूप बदल रहा है जिसकी वजह से दुनिया भर में वैक्सीन को लेकर की जा रही एक रिसर्च ने भारत समेत पूरी दुनिया को चिंता में डाल रखा है |ताइवान के नेशनल चेंग्गुआ यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन के वी-लुंग वांग और ऑस्ट्रेलिया में मर्डोक विश्वविद्यालय के सहयोगियों ने किया है. शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना वायरस के रूप बदलने पर यह पहली रिपोर्ट है जिससे वैक्सीन की खोज पर खतरा मंडरा सकता है !
 2सितंबर 2020खुद को बार-बार बदल रहा है कोरोना वायरस, ऐसे में कैसे बन पाएगी वैक्सीन, टेंशन में एक्सपर्ट !इस अध्यनन में कई रिसर्च इंसीट्यूट ने भाग लिया था जिसमें संक्रामक रोगों और वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रम में प्रतिरक्षा, मैकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के अनुसंधान संस्थान और मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर, कनाडा के विशेषज्ञ शामिल थे।
   1दिसंबर 2020 -स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण ने बताया आमतौर पर वैक्सीन को बनने में 8 से 10 साल लगते हैं सबसे जल्दी बनने वाली वैक्सीन भी 4 साल में तैयार होती है कोरोना महामारी के प्रभाव को देखते हुए हम 16 से 18 महीने के भीतर इस वैक्सीन को तैयार कर रहे हैं |
 वैक्सीन के ट्रायल असफल हुए !
    24 अप्रैल 2020 कोरोना वायरस के संक्रमण में एक प्रभावी एंटी वायरल ड्रग पहले ही रैंडम क्लिनिकल ट्रायल में फेल हो गई. इसे लेकर दुनिया भर में उम्मीद थी. इस एंटी वायरल ड्रग का नाम रेमडेसिवयर है. चीनी ट्रायल में यह ड्रग नाकाम रही. बताया जाता है कि कुल 237 मरीज़ों में से कुछ को वो ड्रग दी गई और कुछ को प्लेसीबो. एक महीने बाद ड्रग लेने वाले 13.9% मरीज़ों की मौत हो गई जबकि इसकी तुलना में प्लेसीबो लेने वाले 12.8% मरीज़ों की मौत हुई. साइड इफेक्ट के कारण ट्रायल को पहले ही रोक दिया गया |
19 मई 2020-यूके ने इस वायरस की वैक्सीन सितंबर तक बना लेने का दावा किया था लेकिन अब शायद 2021 तक ऐसा ना हो पाए। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने इस वायरस के वैक्सीन का 6 बंदरों पर ट्रायल किया था कुछ दिनों तक इन बंदरों को ओब्सर्व किया गया। फिर वो ट्रायल  फेल हो गया है और सभी बंदरों को कोरोना हो गया है और अब ये इस वायरस को फैला भी रहे हैं। इस वैक्सीन से दुनिया को काफी उम्मीदें थी। 
13 अक्टूबर 2020 - जॉनसन एंड जॉनसन का वैक्सीन ट्रायल फेल हो गया है। दरअसल परीक्षण के दौरान अमेरिका की चिकित्सा उपकरण निर्माता कंपनी जॉनसन एंड जॉनसन की कोरोना वैक्सीन एक मरीज पर रिएक्शन कर गई जिस कारण कंपनी को अपना ट्रायल वहीं रोकना पड़ा।शोध के दौरान एक प्रतिभागी के बीमार होने की वजह से यह कदम उठाया गया है।”
वैक्सीन सफल हुई !
 2 जुलाई 2020-भारत की एक कंपनी ‘भारत बायोटेक’ने इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रीसर्च और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरॉलोजी, पुणे के साथ मिल कर वैक्सीन बनाने की दिशा में एक बड़ी कामयाबी हासिल की है. इस वैक्सीन को नाम दिया गया है ‘कोवैक्सिन’इसका वैक्सीन का प्री-क्लीनिकल ट्रायल कामयाब रहा है और ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से इस वैक्सीन के ह्यूमन ट्रायलकी मंज़ूरी भी मिल गई है. हैदराबाद की जीनोम वैली के बायो-सेफ़्टी लेवल 3 में तैयार हुई इस वैक्सीन का अब जल्द ही पहले और दूसरे चरण का ह्यूमन ट्रायल शुरू हो जाएगा | 
   20 जुलाई 2020-वैक्सीन बनाने की दिशा में चल रहे प्रयासों की बात करें, तो दुनियाभर में कोरोना वायरस की 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं.कुछ देशों में वैक्सीन्स के ह्यूमन ट्रायल पहले और दूसरे चरण में सफल रहे हैं और अब भारत में भी कोवैक्सीन नाम की वैक्सीन का ट्रायल दिल्ली स्थित ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज़ (एम्स) में 20 जुलाई से ही यह ट्रायल शुरू हो जाएगा.शुरू होने जा रहा है | 
30 दिसंबर 2020  ब्रिटेन ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा ब्रिटेन ने सबसे पहले फाइजर की कोरोना वैक्सीन को इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी थी. अब तक करीब सात लाख से अधिक लोगों को फाइजर वैक्सीन की पहली डोज दी जा  चुकी है. इस बीच ऑक्सफोर्ड की कोरोना वैक्सीन को भी ब्रिटेन ने मंजूरी दे दी है. इसका मतलब है कि यह टीका सुरक्षित और प्रभावी दोनों है | 
25 जनवरी 2021-भारत बायोटेक को कोरोना की नेजल स्प्रे वैक्सीन BBV154 के ट्रायल की इजाजत मिली है. जबकि और भी कई देशों में ट्रायल हो रहे हैं और अच्छे नतीजे देखने को मिल रहे हैं |
23 नवंबर 2020 -स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री ने कहा, हम अपने स्वदेशी टीके को विकसित करने कीप्रक्रिया के अंतिम चरण में हैं. हम अगले एक-दो महीनों में तीसरे चरण के परीक्षण को पूरा करने की प्रक्रिया में है| 
11मई 2021-ब्रिटेन के कोरोना टीकाकरण के वास्‍तविक आंकड़ों के विश्‍लेषण से पता चला है कि ऑक्‍सफर्ड- एस्ट्रेजनेका की कोरोना वैक्‍सीन का पहला डोज लगवाने मात्र से इस महामारी से मरने वालों की संख्‍या में 80 फीसदी की कमी आई है। यह वही वैक्‍सीन है जिसे भारत में बड़े पैमाने पर कोविशील्‍ड के नाम से लगाया जा रहा है।

और वैक्सीन बन गई - 
5 मई 2020 :इजरायल के रक्षामंत्री नैफ्टली बेन्‍नेट ने अपने एक बयान में कहा कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्‍टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना लिया है। उन्‍होंने कहा कि हमारी टीम ने कोरोना वायरस को खत्म करने के टीके के विकास को पूरा कर लिया है।
8 मई 2020 :अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन बना ली है | अमेरिकी फार्मास्यूटिकल कंपनी ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली दवा बना ली है। अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस का उपचार करने वाली एंटीवायरल मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।खास बात ये है कि इस दवा को अमेरिका के बाद जापान ने भी मंजूरी दे दी है। जापान में गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा का इस्तेमाल किया जाएगा।
13 जुलाई  2020 - रूस ने दावा किया है कि 'उनके वैज्ञानिकों ने कोरोना वायरस कीपहली वैक्सीन बना ली है !
11 अगस्त 2020-रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन घोषणा की कि कोरोना की वैक्सीन तैयार कर ली गई है. रूस का कहना है कि वैक्सीन को देश में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के लिए नियामक मंजूरी मिल गई है  
22 नवंबर  2020 -चीन ने कोरोना की एक सुपर वैक्सीन बनाने का दावा किया है।
8  दिसंबर 2020 को ब्रिटेन में फ़ाइज़र ने टीकाकरण  शुरू किया है | 
अमेरिका ने फ़ाइज़र-बायोएनटेक कोविड वैक्सीन के आपातकालीन इस्तेमाल की मंज़ूरी दे दी है इसी दिसंबर में फ़ाइज़र वैक्सीन को ब्रिटेन, कनाडा बहरीन और सऊदी अरब ने पहले ही मंज़ूरी दे दी है.|
हृदय रोग-
13 Apr 2020 हृदय रोगों से पीड़ित और स्ट्रोक झेल चुके मरीजों को अधिक है कोरोना वायरस का जोखिम!
उच्च रक्तचाप, मधुमेह या हृदय रोगों से पीड़ित लोगों को संक्रमण होने का अधिक खतरा होता है। इन लोगों में कोरोना वायरस से गंभीर लक्षणों का अनुभव करने के ज्यादा जोखिम भी हैं।
कोरोना महामारी के हार्ट रोगियों पर असर के बिषय में -
    उच्च रक्तचाप, मधुमेह या हृदय रोगों से पीड़ित लोगों को संक्रमण होने का अधिक खतरा होता है। इन लोगों में कोरोना वायरस से गंभीर लक्षणों का अनुभव करने के ज्यादा जोखिम भी हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन और चीन संयुक्त मिशन की रिपोर्ट के अनुसार, इन स्वास्थ्य स्थितियों वाले लोग सामान्य आबादी की तुलना में मृत्यु दर 2-3 गुना अधिक अनुभव कर रहे हैं। एक अध्ययन के आधार पर बताया जा रहा है कि आमतौर पर दिल संबंधी बीमारियां महिलाओं के मुकाबले पुरुषों को ज्यादा होती है। जिसके कारण महिलाएं किसी तरह की जांच आदि नहीं करता ही। लेकिन यह भी सच है कि कोरोना से हार्ट अटैक का खतरा पुरुषों की तुलना में महिलाओं को 9 गुना ज्यादा बढ़ गया है। ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के किए एक शोध से पता लगा है कि ठीक होने के एक महीने के अंदर ही 50% मरीजों को हृदयाघात का सामना करना पड़ रहा है।बीएचयू के प्रोफेसर ओम शंकर बताते हैं कि कोरोना वायरस सीधे तौर पर हृदय की मांसपेशियों पर असर करता है, जिससे हृदय में कमजोरी आ जाती है और गंभीर स्थितियों में हार्ट फेलियर की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके अलावा कोरोना के कुछ मामलों में रक्त के थक्के बनने की समस्या भी देखनी को मिली है। कोरोना संक्रमितों में हृदय की गति के अनियंत्रित होने के मामले भी देखने को मिल रहे हैं। 
      ऐसे अनेकों कारण हो सकते हैं जिनसे कोरोनाकाल में हार्टअटैक के मामले अधिकबढ़ते देखे जा सकते हैं |
   अनुमान के विरुद्ध  हार्टअटैक के मामले 70 प्रतिशत कम हुए !
    02-08-2020 कोरोना काल में 70 प्रतिशत कम हुए हार्ट अटैक !कोरोना के कारण बीते चार महीनों में अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। एम्स से लेकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल, सफदरजंग अस्पताल सहित कई दूसरे अस्पतालों में हार्ट अटैक के मरीजों के मामलों में कमी देखने को मिली है। यहाँ तक कि अमेरिका में भी कोरोना से पहले और कोरोना काल की अवधि में शोध हुआ। शोध में सामने आया कि हार्ट अटैक के मामलों में 48 फीसदी तक की गिरावट दर्ज हुई है।
     राममनोहर लोहिया अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि    आरएमएल अस्पताल में 60-70 फीसदी की गिरावट हार्ट अटैक के मरीजों में देखने को मिली है। सिर्फ 3-4 हार्ट अटैक के मरीज ही अस्पताल पहुंच रहे है। जबकि कोरोना से पहले 15 हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए पहुंचते थे।
      सफदरजंग अस्पताल में भी हार्ट अटैक के मरीजों की संख्या में गिरावट आई है। अस्पताल के एक डॉक्टर के अनुसार, पहले रोजाना दस हार्ट अटैक के मरीज इलाज के लिए आते थे। अब संख्या पांच पर सिमट गई है।   
      एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ.अंबुज रॉय बताते है कि एम्स ही नहीं दूसरे जगहों पर भी हार्ट अटैक के मरीजों में कमी आई है।
  हार्टअटैक के रोगियों की संख्या घटने के वैज्ञानिक कारणों की खोज -
       इसे लेकर चिकित्सकों के अलग-अलग तर्क है। एम्स अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज रॉय बताते है कि  कोरोना के डर से अस्पताल न आना इसकी मुख्य वजह हो सकती है। साथ ही लॉकडाउन में प्रदूषण का स्तर कम होने से भी जीवनशैली पर प्रभाव पड़ा है।  सफदरजंग अस्पताल के एक डॉक्टर साहब ने कहा कि इसका मुख्य कारण कोरोना के डर से अस्पताल इलाज के लिए न आना है। हल्का हार्ट अटैक होने पर मरीज उसे कोरोना के डर से दरकिनार कर रहा है। जब उसे दोबारा तकलीफ महसूस होती है तो हार्ट अटैक होने के बारे में पता चलता है। साथ ही कोरोना के कारण परिवार के सब लोगों का एक साथ रहना भी किसी मरीज हार्ट अटैक के स्तर को अप्रत्यक्ष तौर पर कम करता है। 
     जहाँ तक कोरोना के भय से अस्पताल न आने वाली बात है वो इसलिए तर्कसंगत नहीं लगती है क्योंकि यदि ऐसा  होता तब तो लॉकडाउन खुलने के बाद  हार्टअटैक वाले मरीजों की संख्या में वृद्धिहोनी चाहिए थी जो नहीं हुई है। राममनोहर लोहिया अस्पताल के कार्डियोलॉजी विभाग में कार्यरत एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. तरुण कुमार ने बताया कि लॉकडाउन खुल जाने के बाद भी स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है | 
      कुल मिलकर ऐसा क्यों हुआ इसका कोई निश्चित वैज्ञानिक उत्तर नहीं दिया  जा सका !
कोरोना प्राकृतिक है ?
01मई 2020 को अमेरिका ने अब माना, 'मानवनिर्मित' नहीं है कोविड-19 वायरस, मगर लैब में होती रहेगी जांच !
2 मई 2020 को WHO के आपात स्थितियों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रायन ने कहा है कि WHO को भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है।डॉक्टर माइकल रायन को भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है!
हवा में कोरोना  है या नहीं ? 
  पहले कहा गया था कि हवा में कोरोना नहीं है !कुछ समय बाद कहा जाने लगा कि हवा में संक्रमण विद्यमान है !
 17 अप्रैल 2020 को  32 देशों के 200 वैज्ञाानिकों ने लिखी थी डब्ल्यूएचओ को चिट्ठी !कोरोना वायरस हवा में फैलता है, इसे लेकर 32 देशों के 200 वैज्ञानिकों ने पिछले साल जुलाई में भी डब्ल्यूएचओ को पत्र लिखा था।
28 अप्रैल 2020 को हवा में पाया गया कोरोना का जेनेटिक मटेरियल, कैसे कम होगा जोखिम, वैज्ञानिकों ने दी यह सलाह | वैज्ञानिकों ने हवा में कोरोना वायरस की आनुवंशिक सामग्री की उपस्थिति पता लगाया है। वुहान, चीन में दो अस्पतालों और कुछ सार्वजनिक क्षेत्रों के आसपास के वातावरण की निगरानी करके शोधकर्ताओं ने कोरोना वायरस आरएनए के लिए हॉटस्पॉट का पता लगाया। इन शोधकर्ताओं में वुहान विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक भी शामिल थे। नेचर पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस पदार्थ में किसी को संक्रमित करने की क्षमता है या नहीं, यह फिलहाल स्पष्ट नहीं है।
   रटगर्स यूनिवर्सिटी के माइक्रोबायोलॉजिस्ट गोल्डमैन ने बताया कि किसी सतह से कोरोना संक्रमण फैलने का कोई वैज्ञानिक कारण अभी तक नहीं मिला है. इसकी आशंका बेहद कम है. कोरोना वायरस हवा के जरिए ही शरीर में प्रवेश करता है
कोई की दवा न होने के बाद भी कोरोना से कैसे ठीक हो रहे हैं लोग !
1अप्रैल 2020 - डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर के 204 देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में हैं। आठ लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और अब तक 42000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक डेढ़ लाख लोगों का इलाज करके उन्हें कोरोना मुक्त किया जा चुका है।
   भारत में अब तक कोरोना वायरस संक्रमण के 1397 मामले सामने आ चुके हैं। अब तक 35 लोगों की मौत हो चुकी है और 123 लोगों का इलाज किया जा चुका है या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है।
कैसे हो रहा है इलाज-
अब सवाल यह उठता है कि कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं?कोरोना वायरस के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है। 
विशेषबात : 
    इस लेख  को यहाँ उद्धृत करने का मेरा उद्देश्य यह है कि उस समय की परिस्थिति इस प्रकार की बन चुकी थी  कि महामारी का स्वरूप कितना और विकराल होगा कितने लोग और संक्रमित होंगे कितने लोग और मृत्यु को प्राप्त होंगे !ये किसी को नहीं  पता था !अस्पतालों से लेकर शमशानों तक जाम लगा हुआ था | आक्सीजन  एवं आवश्यक औषधियों के लिए मारामारी हो रही थी महामारी का रौद्र रूप दुनियाँ देख रही थी | चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था | उसी समय की परिस्थिति का वर्णन करता हुआ एक हिंदी के समाचार पत्र में 18 अप्रैल 2021 को प्रकाशित यह अंश है |
                                          " पूरी दुनिया में बढ़ रहा है कोरोना का कहर !
कोरोना के बढ़ते मामलों से विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन भी चिंतित है। संगठन के प्रमुख का कहना है कि इस बार संक्रमण की रफ्तार पहले से तेज है। उन देशों से भी मामले सामने आ रहे हैं जहां पिछली बार कम मामले थे।
   जिनेवा (संयुक्‍त राष्‍ट्र)। पूरी दुनिया में कोरोना का प्रकोप पिछले वर्ष के मुकाबले अधिक तेजी से फैल रहा है। इसको लेकर पूरी दुनिया चिंतित है। विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन की भी इस पर पूरी नजर है। संगठन के प्रमुख टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेससने इन मामलों पर चिंता जताते हुए कहा है कि इस बार उन देशों में भी कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं जहां पर पिछले वर्ष नहीं आए थे या बेहद कम थे। उन्‍होंने पत्रकार वार्ता के दौरान कहा कि पूरी दुनिया में संक्रमण के मामले और मरीजों की मौतों का सिलसिला बढ़ रहा है जो बेहद चिंता का विषय है। हर सप्‍ताह इस महामारी से संक्रमित होने वालों की संख्‍या दोगुना  तेजी से बढ़ रही है। मौजूदा समय में संक्रमण की दर सबसे अधिक है।यूएन एजेंसी प्रमुख के मुताबिक इस महामारी के बदलते स्‍वरूप पर लगातार नजर रखी जा रही है | 
     संयुक्‍त राष्‍ट्र की खबर के मुताबिक संगठन के क्षेत्रीय निदेशक डॉक्टर पूनम खेत्रपाल सिंह ने बुनियादी सार्वजनिक स्वास्थ्य उपायों का मजबूती से पालन करने पर जोर दिया है। उनका कहना है कि तेजी से बदलते वायरस के प्रकारों को समझने का प्रयास निरंतर जारी है और इसमें लगातार हो रहे बदलावों के लिए विभिन्‍न प्रणालियां भी स्‍थापित की गई हैं।
     उन्‍होंने आगाह किया है कि हम जितना इसके संक्रमण को लेकर लापरवाह होंगे उतना ही ये अधिक तेजी से फैलेगा। इसको रोकने के लिए ये बेहद जरूरी है कि नियमों का कड़ाई से पालन किया जाए। उन्‍होंने ये भी कहा कि कोई ये गलतफहमी में न रहे कि वैक्‍सीन इसको रोकने का एकमात्र उपाय नहीं है। इसके लिए दो गज की दूरी और मुंह पर मास्‍क रखना बेहद कारगर दवा है।"सभी स्वास्थ्य उपायों के पूरी तरह से इस्‍तेमाल करने की सलाह दी जा रही है जिससे संक्रमण से होने वाली मौतों के आंकड़ों को कम किया जा सके।"
      विशेष बात  यह है कि बचाव के लिए जो उपाय आदि अपनाने के लिए सलाह दी जा रही है उनसे कोई मदद मिल भी पाती है या नहीं यह देखने वाली बात है |                                                                                                                                                                                                                                                                  --------------------------------------
      भारत में कोरोना संक्रमितों  की  संख्या घटने बढ़ने का कारण  क्या है ?     

     1अप्रैल 2021 को  राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डायरेक्टर राणा अनिल कुमार सिंह ने देश भर में कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर 2 बड़ी बातें कही हैं। डॉक्टर राणा अनिल कुमार सिंह ने कहा है कि लोगों की लापरवाही और उदासीनता के चलते देशभर में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। इसी के साथ उन्होंने यह भी कहा कि लापरवाही के कारण ही वर्तमान में दिल्ली में ऐसे हालात बने हैं।    
      
    30 जनवरी 2021- भारत में कोरोना वायरस का पहला मरीज आज (30 जनवरी) ही के दिन ठीक एक साल पहले मिला था. कोरोना महामारी फैलने के बाद चीन के वुहान से लौटी केरल की केरल की एक छात्रा की रिपोर्ट पॉजिटिव आई थी | उसके बाद 6 मई 2020 तक संक्रमितों की संख्या अचानक बढ़ती देखी जा रही थी | ऐसे ही 8 अगस्त 2020 से 17 सितंबर 2020 तक एवं 11 फरवरी 2021 से 5 मई 2021 तक क्रमशः कोरोना  संक्रमितों की संख्या अचानक  बढ़ने लगने का कारण क्या था ? 
      6 मई 2020 से 8 अगस्त 2020 तक एवं 18  सितंबर  से10 फरवरी 2021 तक कोरोना  संख्या दिनों दिन कम होती जा रही थी इसका कारण क्या था | इसके बाद 2 मई 2021 से फिर कोरोना संक्रमितों की संख्या दिनोंदिन कम होती जा रही थी | यह संख्या अचानक कम होने लगी इसका कारण क्या था वे कारण मनुष्यकृत थे या प्राकृतिक थे ?  
 ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण क्या है और अचानक कम होने का कारण क्या है ?

   जलवायुपरिवर्तन जैसी बातों को यदि जिम्मेदार माना जाए तो जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से इतना बड़ा  बदलाव इतनी जल्दी जल्दी तो होता नहीं है | वायुप्रदूषण और तापमान के स्तर के घटने बढ़ने को यदि कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने का कारण माना जाए तो इनका आपसी कोई  तारतम्य बैठता नहीं है | 
     भारतवर्ष में 2020 की धनतेरस और दीपावली जैसी त्योहारी बाजारों में एवं साप्ताहिक बाजारों में भयंकर भीड़ उमड़ी थी |जिसमें कोरोना नियमों की जमकर धज्जियाँ  उड़ी थीं |दिल्ली  सूरत मुंबई जैसे महानगरों से  श्रमिकों  का पलायन हुआ था उसमें भी किसीप्रकार से कोरोना नियमों का पालन  नहीं किया  जा सका था |किसान आंदोलन एवं बिहार जैसे चुनावी राज्यों की चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ ,कुंभ मेले में उमड़ी भीड़ तथा घनी बस्तियों में छोटी छोटी जगहों में कई कई लोगों के एक साथ रहने खाने  पीने सोने जागने आदि में किसी भी प्रकार से कोरोनानियमों का पालन नहीं किया जा सका है इसके बाद भी ऐसे स्थानों पर कोई कोरोना विस्फोट होते नहीं देखा गया था  | इसका कारण क्या था ?
      इस समय किसी भी प्रकार से कोरोना नियमों का पालन नहीं किया जा रहा था | कोरोना महामारी की रोक थाम के लिए कोई औषधि भी नहीं थी वैक्सीन भी नहीं बनी थी इसके अतिरिक्त भी किसी ऐसी परीक्षित प्रक्रिया का ज्ञान भी नहीं था जिसका पालन  करके कोरोना संक्रमण से अपना बचाव किया जा सकता हो फिर  भी कोरोना संक्रमण के दिनोंदिन कम होनेके लिए जिम्मेदार निश्चित कारण क्या था | 
     दूसरी बात दिल्ली मुंबई में कोई चुनावी रैलियाँ नहीं हो रही थीं कोई कुंभ मेला नहीं था नियमों का पालन करने की  दृष्टि से भी अन्य स्थानों की अपेक्षा महानगरों में जागरूकता अधिक रहती है यहाँ वैक्सीनेशन में भी अधिक सक्रियता देखने को मिली इसके बाद भी अन्य शहरों की अपेक्षा यहाँ संक्रमण अधिक बढ़ते देखा गया इसके कारण क्या हैं ? 
कोई की दवा न होने के बाद भी कोरोना से कैसे ठीक होते रहे है लोग !
     कोरोना वायरस के इलाज के लिए अब तक कोई दवा दुनिया के किसी देश के पास उपलब्ध नहीं है तो फिर लोग ठीक कैसे हो रहे हैं?कोरोना वायरस के इलाज को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि अब तक इसकी कोई दवा उपबल्ध नहीं है। 
     1अप्रैल 2020 - डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, दुनियाभर के 204 देश कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में हैं। आठ लाख से अधिक लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं और अब तक 42000 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक डेढ़ लाख लोगों का इलाज करके उन्हें कोरोना मुक्त किया जा चुका है।विशेषकर भारत में 1अप्रैल 2020 तक कोरोना वायरस संक्रमण के 1397 मामले सामने आ चुके हैं।35लोगों की मौत हो चुकी है और 123 लोगों का इलाज किया जा चुका है या उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है। बिना किसी वैक्सीन या औषधि आदि के इतना बड़ा चमत्कार कैसे संभव हो पाया है | 
             कोरोना संक्रमितों की संख्या में इतनी गिरावट के कारण क्या हैं ?
     6 फरवरी2021 को भारत में कोरोना वायरस के मामलों में  गिरावट क्यों आ रही है , जागरूकता या मौसम है वजह?एक थ्योरी में यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के मामले कम होने के पीछे की वजह मौसम है. भारत की गरम और आर्द्र जलवायु कोरोना वायरस के फैलाव में रुकावट बन रही है | 
     वैज्ञानिकों के एक वर्ग का मानना है कि देश में कोरोना को लेकर लोगों के बीच काफी हद तक जागरूकता आ गई है. अब लोग हाथ धोने और मास्क पहनने जैसी सावधानियों का पालन करने लगे हैं. साथ ही कोरोना संक्रमण जब तेजी से फैल रहा था, उस समय लोगों ने सोशल डिस्टेंसिंग का काफी ध्यान रखा. इसके अलावा एक राज्य से दूसरे राज्य में जाने को लेकर भी कई शर्तें लगाई गई थीं.
       एक थ्योरी में यह भी कहा जा रहा है कि कोरोना संक्रमण के मामले कम होने के पीछे की वजह मौसम है. भारत की गरम और आर्द्र जलवायु कोरोना वायरस के फैलाव में रुकावट बन रही है. कोविड-19 के ग्रोथ के लिए कम तापमान को बेहतर माना जाता है. एक्सपर्ट्स का कहना है कि जहां का वातावरण गरम और आर्द्र है, वहां पर वायरस के फैलाव में कमी आ रही है.
     कुछ एक्सपर्ट्स की यह भी राय है कि आम लोगों में कोरोना के प्रति काफी हद तक इम्युनिटी विकसित हो चुकी है. एक्सपर्ट्स कहते हैं कि भारतीय लोगों ने मलेरिया, डेंगू, टाइफाइड और हेपेटाइटिस जैसी बीमारियों का सामना किया हुआ है. ऐसे में अब ज्यादातर लोगों में कोरोना जैसे वायरस से लड़ने की क्षमता पहले ही विकसीत हो चुकी है. एक रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन देशों में स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत अच्छी नहीं हैं, वहां पर कोरोना संक्रमण के मामले कम दर्ज किए गए हैं | 
     इसीप्रकार से और भी वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर वैज्ञानिकों के द्वारा गढ़ी गई आधारविहीन मनगढ़ंत कुछ किस्से कहानियाँ हैं जिनका कोई तर्कसंगत वैज्ञानिकप्रमाण नहीं है |
       कुछ महीनों पहले जहां एक दिन में 90 हजार से अधिक कोरोना संक्रमित मिलते थे, वहीं अब यह संख्या 10 हजार के नीचे आ गई है. दुनिया भर के एक्सपर्ट्स ने भारत में कोरोना संक्रमण के मामले में आई गिरावट को लेकर कई थ्योरी बताई हैं लेकिन अभी तक किसी ने भी इसका एकदम सटीक जवाब नहीं दिया है. फिलहाल स्थिति यह है कि भारत में कोरोना संक्रमण के मामले क्यों तेजी से गिर रहे हैं, इसका सही जवाब दे पाना संभव नहीं है.यह हैरान करने वाला रहा कि त्योहार के सीजन यानी कि अक्टूबर और नवंबर में भी भारत में कोरोना के मामले गिरते नजर आए. वहीं, राजधानी दिल्ली से लगी सीमाओं पर भारी संख्या में किसान दो महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं, बावजूद इसके कोरोना संक्रमण में तेजी नहीं पाई गई है. ऐसे में इसकी एक वजह बता पाना मुश्किल हो रहा है | 
    ऐसी परिस्थिति में कोरोना संक्रमण घटने और बढ़ने के स्पष्ट कारण खोजे बिना कोरोना संक्रमितों पर जिस भी औषधि या वैक्सीन आदि का प्रयोग किया जाएगा उसके बाद उन्हें कम संक्रमित या स्वस्थ होते देखा जाएगा तो उस औषधि या वैक्सीन आदि के प्रभाव का परीक्षण करना कठिन होगा कि लोगों के कोरोना से कम संक्रमित होने या स्वस्थ होने का कारण किसी औषधि या वैक्सीन आदि के प्रभाव का परिणाम है या लोग प्राकृतिक रूप से ही स्वस्थ होते देखे जा रहे हैं  लोगों के स्वस्थ होने में किसी औषधि या वैक्सीन आदि की भूमिका नहीं है | 
    मुख्य बात यह है कि जिस तीसरी लहर की गुगली उछली गई है वह अभी तक तो केवल मन गढ़ंत और काल्पनिक ही है जब तक घटित  नहीं होती है क्योंकि तीसरी लहर  आएगी या नहीं आएगी इसका पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक कोई वैज्ञानिक विधा विकसित ही नहीं की जा सकीय है ऐसी परिस्थिति में यह अफवाह फैलाने का उद्देश्य एवं आधार क्या है और वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कितना प्रमाणित है यह ध्यान दिया जाना चाहिए |
     19 जून 2021 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने चेतावनी दी कि यदि कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया गया और भीड़-भाड़ नहीं रोकी गई तो अगले छह से आठ सप्ताह में वायरल संक्रमण की अगली लहर देश में दस्तक दे सकती है।
     डॉ.गुलेरिया की बात को ही लिया  जाए तो यदि तीसरी लहर आ जाए तब तो ये होगा कि आधुनिक विज्ञान में भविष्यसंबंधी घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगाने की अद्भुत क्षमता है और यदि तीसरी लहर जैसा कुछ भी न घटित हो तब भी क्रेडिट आधुनिक विज्ञान को ही मिलेगा |उस परिस्थिति में कहा जाएगा कि कोविड नियमों का कड़ाई से पालन किया गया ,बाजारों में भीड़-भाड़ बढ़ने से रोक ली गई | वैक्सीनेशन का कार्य तेज कर दिया गया इन्ही सारे उपायों के द्वारा कोरोना महामारी को प्रारंभ होने से पहले ही समाप्त कर दिया गया |वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जनता के साथ  इस प्रकार की धोखाधड़ी  हमेंशा से होती चली आ रही है | क्षणिक यश लोभ की लालषा में सच्चाई को झुठलाकर बीच में ही बंद कर दिया जाता है और संतोष कर लिया जाता है कि इस बिषय में जितनी खोज कर ली जा चुकी है उतनी ही पर्याप्त है |ऐसी लापरवाही का दंड कोरोना महामारी के रूप में मानव समाज को भोगना पड़ा है | भविष्य में ऐसा न हो इस बिषय में अभी से ध्यान देने की आवश्यकता है | 
     ऐसे प्रकरणों में बहुत बड़े संशय की गुंजाइस यह बनी रहती है कि यदि तीसरी लहर जैसी कोई चीज घटित नहीं हुई या उसका वेग कम रहा तो इस प्राकृतिक घटना का श्रेय औषधि या वैक्सीन आदि बनाने वाले यह कहते हुए लूट लेंगे कि तीसरी लहर को  हमारे प्रयासों से रोका जा सका है और इसी झूठ को च मानकर यह प्रकरण हमेंशा हमेशा के लिए बंद कर दिया जाएगा जो हमेंशा की तरह ही भावी पीढ़ियों के साथ बहुत बड़ा धोखा होगा | ऐसी परिस्थिति में अनुसंधान तो पूरे एवं तर्कसंगत होने चाहिए ताकि कोरोना महामारी की तरह भावी पीढ़ियों को इतना भटकना न पड़े | 
    इसलिए सबसे पहले आवश्यकता यह पता लगाने की है कि कोरोना महामारी पैदा होने का कारण क्या है ?दूसरा कोरोना संक्रमितों की संख्या के अचानक बढ़ने और अचानक कम होने के लिए जिम्मेदार वैज्ञानिक कारण क्या हैं ?वैज्ञानिकों के द्वारा सुझाए गए कोरोना नियमों का अच्छी प्रकार से पालन करने का कोरोना संक्रमितों की संख्या पर क्या असर पड़ता है संक्रमितों पर किसी औषधि  वैक्सीन आदि का क्या असर  पड़ता है | 
   कोरोना संक्रमण की किसी औषधि या  वैक्सीन आदि के निर्माण  प्रक्रिया में सबसे बड़ा भ्रम इस बात का  होता है कि जब प्राकृतिक रूप से कोरोना संक्रमण बढ़ रहा होता है उस समय जो वैक्सीन आदि के ट्रायल हो रहे होते हैं उनका कोई प्रभाव ही नहीं पड़ता है  इसलिए उन्हें निष्फल मान लिया जाता है और जब प्राकृतिक रूप से कोरोना संक्रमण कम हो रहा होता है संक्रमितों की संख्या घटने का कारण प्राकृतिक होता है किंतु उस समय वैक्सीन आदि के जो ट्रायल आदि चल होते हैं भ्रम वश उन्हें इसका श्रेय मिल जाता है और इसी आधी अधूरी अविश्वसनीय प्रक्रिया से वैक्सीन के ट्रायल को सफल मान लिया जाता है |  
    वैक्सीन के प्रभाव के बिषय में भी यही ढुलमुल स्थिति है कहा जा रहा है कि कोई भी वैक्सीन कोरोना वायरस से सौ फीसदी इम्यूनिटी का दावा नहीं करती इसलिए कुछ लोगों को टीका लगवाने के बाद भी वायरस अपनी चपेट में ले सकता है। लेकिन एक्सपर्ट्स का कहना है कि वैक्सीन ले चुके लोग इस बीमारी से गंभीर रूप से प्रभावित नहीं होंगे !
    वैक्सीन लेने के बाद  भी कुछ लोग गंभीर रूप से प्रभावित होते एवं मृत्यु को प्राप्त होते भी देखे जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में भी जो लोग संक्रमित नहीं हुए या जो लोग गंभीर रूप से संक्रमित नहीं हुए या जो लोग गंभीर रूप से संक्रमित होने के बाद भी स्वस्थ होने में सफल हुए ये सब चिकित्सा वैज्ञानिकों की दृष्टि से वैक्सीन की सफलता मान ली जाती है जबकि बिल्कुल ऐसी ही परिस्थिति उन लोगों में भी देखी जाती है जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवाई होती है | ऐसी परिस्थिति में वैक्सीन के वास्तविक प्रभाव का परीक्षण कैसे किया जाए !प्रभाव परीक्षण किए बिना जब कभी दुबारा ऐसी ही परिस्थिति पैदा होगी उस समय उसी विश्वास से इस वैक्सीन का प्रयोग संक्रमण पर अंकुश लगाने के लिए किया जाएगा तब अंकुश इस लिए नहीं लगेगा क्योंकि यह उसकी दवा थी ही नहीं जिसकी मान ली गई थी | ऐसी परिस्थिति में यही कहना पड़ता है कि यह संक्रमण पहले वाला नहीं है इसने स्वरूप बदल लिया है |
                    स्वास्थ्य संबंधी ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से क्या उमींद रखी जाए  !
    महामारी समेत सभी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से मुक्ति दिलाने हेतु हमेंशा वैज्ञानिक अनुसंधान चला करते हैं ऐसे सार्थक अनुसंधानों से उमींद तो ऐसी रखी जानी चाहिए कि महामारी प्रारंभ होने से पहले महामारी जैसी इतनी बड़ी विपदाके बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाना चाहिए था !उन वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्रारंभिक समय में ही महामारी  के बिषय में संपूर्ण जानकारी हासिल कर ली जानी चाहिए थी महामारी  से मुक्ति दिलाने में सक्षम औषधियों उपायों आदि का अंदाजा उसी समय लगा लिया जाना चाहिए था | यदि ऐसा किया जा सका होता तब तो यह मानना उचित था कि इस प्रकार  वैज्ञानिक अनुसंधानों से महामारी जैसे संकट में कुछ मदद मिल सकती है किंतु महामारी जैसी इतने बड़े संकट में जनता को जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद ही न  पहुँचाई जा सकी हो वैज्ञानिक अनुसंधानों की अक्षमता के कारण महामारी से स्वयं जूझने के लिए जनता विवश हो | फिर ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से जनता आखिर क्या उमींद रखे | जनता द्वारा सरकारों को टैक्स रूप में दिए जाने वाले धन का जो भी अंश ऐसे अनुसंधानों  पर खर्च होता है उसे जनता के  पक्ष में सार्थकव्यय कैसे समझा जाए !
      कोरोना महामारी को आए लगभग डेढ़ वर्ष हो गया है |अभी तक कोरोना महामारी के  बिषय में किसी को कुछ भी नहीं पता है | स्वास्थ्य समस्या के समाधान हेतु दायित्वों के निर्वहन की जिम्मेदारी सँभाल रहे ऊँचे ऊँचे पदों पर बैठे लोग जिनके सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता इसी समय है ये अवसर उनके द्वारा आज तक किए गए वैज्ञानिकअनुसंधानों से जनता की मदद करने का है | उनके द्वारा आज तक किए गए वैज्ञानिकअनुसंधान इस लायक नहीं हैं कि महामारी से मुक्ति दिलाने में उनकी भी कोई भूमिका बन सकती हो | इसलिए  जिम्मेदारी सँभाल रहे ऊँचे ऊँचे पदों पर बैठे लोग महामारी का हाहाकार सुनकर चिंतत हैं ,महामारी पर नजर रख रहे हैं , बदलते वायरस के प्रकारों को समझने का प्रयास निरंतरजारी है और इसमें लगातार हो रहे बदलावों के लिए विभिन्‍न प्रणालियां भी स्‍थापित की गई हैं, किंतु यह समय इन कामों के लिए  नहीं है |
विशेषबात :ऐसी रिसर्चों को करके महामारी से अकेली जूझती जनता को किसप्रकार से मदद पहुँचाई जा सकी !ऐसे महत्वपूर्ण समय में जब जनता की मदद करने के लिए कुछ प्रयास तो किए ही जा सकते थे उस समय हमारी वैज्ञानिक ऊर्जा ऐसी निरर्थक रिसर्चों में लगी रही | समय और पैसा बर्बाद करने के अतिरिक्त इसमें है क्या ?7 मई 2021को प्रकाशित  -स्वाद, गंध जाए तो समझो कोरोना का खतरा गंभीर नहीं , जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज में 220 मरीजों पर हुए रिसर्च में यह खुलासा हुआ है।
 26 अप्रैल 2021 :कोरोना वायरस ने इंसान को बता दिया है कि भले ही बहुत तरक्की हो चुकी है लेकिन वायरस के आगे वह हमेशा कमजोर रहा है. यह स्टडी यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना में की गई. असिस्टेंट प्रोफेसर एनार्ड ने बताया कि वायरस ने हमेशा से ही इंसानों को उसके स्तर को याद दिलाया है. वायरस ने इंसानों को बीमार किया और उन्हें मार दिया.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ग्लास्गो के वैज्ञानिकोंका कहना है कि ऐसा लगता है कि सर्दी-ज़ुकाम के लिए ज़िम्मेदार राइनो वायरस कोरोना वायरस को हरा सकता है.|     
                          महामारी पर लीपापोती -
 जिस विज्ञान के बल पर महामारी को पराजित करने के सपने देखे  जा रहे थे महामारी पर विजय प्राप्त करने लायक उनके पास था आखिर वे कैसे कोरोना योद्धा  थे जिन्हें इतनी बड़ी महामारी से लड़ने के लिए भेजा जा रहा था उनके पास कोरोना से लड़ने लायक कोई हथियार नहीं था | कोरोना परिधान ही उनके लिए कवच कुंडल थे जिससे महामारी को पराजित कर पाना तो संभव नहीं था किंतु महामारी के उस परिधान को धारण करके आंशिक रूप से  अपना  बचाव किया जा सकता था उस पर भी इतना अधिक विश्वास कर लेना ठीक नहीं था कि इससे बचाव हो ही जाएगा |   
    कोरोना की चिकित्सा लक्षणों के आधार पर की जा रही थी  सीधे तौर पर महामारी से मुक्ति दिलाने लायक कोई औषधि नहीं थी | जो औषधियाँ अनुमान के आधार पर दी भी गईं कई बार उन औषधियों के दुष्प्रभाव भी सुनने को मिले !खैर जो भी हो उसे तो महामारी से जूझ रहे चिकित्सक ही बेहतर समझ रहे होंगे |
13 मई 2021 डॉ. वीके पॉल ने कहा कि ये आरोप गलत है कि सरकार को कोरोना की दूसरी लहर की जानकारी नहीं थी. हम लगातार लोगों को विभिन्न प्लेटफॉर्म्स से चेतावनी दे रहे थे !हम ये भी बता रहे थे कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर आएगी. देश में अभी सीरो पॉजिटिविटी 20 फीसदी है. 80 फीसदी आबादी अब भी संक्रमण का शिकार हो सकती है | 
13 मई 2021 को हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ. वीके पॉल से पूछा गया कि क्या वायरस अपने उच्चतम स्तर यानी पीक पर पहुंच गया है. तब उन्होंने कहा कि ऐसा कोई मॉडलिंग सिस्टम नहीं है, जिससे ये अंदाजा लगाया जा सके !कोरोना वायरस के अबूझ व्यवहार की वजह से ये बहुत मुश्किल है. ये बात पूरी दुनिया जानती है.| डॉ. पॉल ने बताया कि कोरोना वायरस का उच्चतम स्तर आना बाकी है. क्योंकि ये वायरस कभी भी अपना रौद्र रूप ले सकता है. बस इतनी सी बात हमें पता है | 
14 मई 2021को नीतिआयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल से पूछा गया "क्या सरकार दूसरी लहर की तीव्रता से अंजान थी?"
   इस सवाल के जवाब में डॉ वी.के. पॉल ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है. हम इस मंच से बार-बार चेतावनी देते रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर आएगी |  
14 मई 2021को नीतिआयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल से पूछा गया कि क्या कोरोना का पीक समाप्त हो  गया है ?
इसके जवाब में डॉ. वी.के. पॉल ने कहा -महामारी से जल्द निजात मिलने की कोई संभावना नहीं है. सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वायरस कहीं नहीं गया है और पीक के आगे भी आने की आशंका है. नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल ने कहा कि कोरोना फिर से खतरनाक रूप में सामने आ सकता है, इसलिए तैयारियों को तेज किया जाना चाहिए.
महामारी रोकना क्या वास्तव में संभव था ?
वायरस के स्वरूप बदलने का कारण क्या है ?
जन स्वास्थ्य अभियान के डाक्टर गार्गेया तेलकापल्ली कहते हैं कि वायरस में जीवन होता है इसलिए उसमें बदलाव होना स्वाभाविक है और ये बदलाव या नए क़िस्म की उत्पत्ति भौगोलिक और जलवायु की वजह से भी हो सकती है.इनका कहना  है कि इस तरह के बदलाव इंफ्लुएंज़ा जैसे दूसरे वायरस में भी होते हैं |
शरीर भी  स्वरूप बदल रहे हैं क्यों  ?
    27 जून 2021 को प्रकाशित - पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि वायरस की तरह ही इंसानी शरीर भी प्राकृतिक रूप से अपने को बदल कर वायरस  हराने के योग्य बन रहा है |
09 Sep 2021एम्स के डॉक्टरों ने दो हजार से भी अधिक कोरोना संक्रमित मरीजों पर अध्ययन करने के बाद पता चला कि संस्थान में भर्ती होने के 48 घंटे के भीतर सर्वाधिक 21 फीसदी मौतें दर्ज की गई हैं। करीब 89 मरीजों की हालात इतनी गंभीर थी कि डॉक्टरों को दो दिन का समय भी नहीं मिल पाया।
  लापरवाही से  बढ़ती हैं महामारियाँ -डब्ल्यूएचओ  
    26  दिसंबर 2020 डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस अधनोम ग्रेबेसियस ने कहा कि लोगों को कोविड-19 (COVID-19) महामारी से सीख लेनी चाहिए.  एक लंबे अरसे से दुनिया डर और लापरवाही के चक्र में रहकर ही काम करती रही है.  हम एक महामारी पर पैसे खर्च करते हैं, फिर जब वो खत्म हो जाती है, तो भूल जाते हैं और आने वाले संकट के लिए कोई तैयारी नहीं करते. ये समझना बहुत मुश्किल है कि हमारी सोच ऐसी क्यों हैं, हम आगे के बारे में क्यों नहीं सोच पाते?
 31 जुलाई 2021विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) चीफ अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा है कि कोरोना महामारी तब खत्म होगी, जब दुनिया इसे खत्म करना चाहेगी. यह हमारे हाथों में ही है|उन्होंने कहा कि हमारे पास आवश्यक सभी उपकरण हैं. हम इस बीमारी को रोक सकते हैं. हम इसकी टेस्टिंग कर सकते हैं और फिर इलाज भी कर सकते हैं | 
अगली महामारी के लिए तैयार रहना चाहिए  
   7 सितंबर 2020 को डब्ल्यूएचओ प्रमुख टेड्रोस अधनोम ग्रेबेसियस नेकहा कि दुनिया को अगली महामारी के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहना चाहिए। अपनी बुनियादी स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक से अधिक मजबूत करें और उसमें निवेश करें। 
     ऐसी बातों का अनुपालन करने का अर्थ यह है धनसंग्रह करके स्वास्थ्य सुविधाओं को और अधिक मजबूत किया जाए !कहने का अभिप्राय यह है अस्पतालों  में एडमिट करने के लिए बेड की संख्या बढ़ाई जाए !आवश्यक औषधियों इंजेक्शन आक्सीजन आदि की उपलब्धता सुनिश्चित की जाए !मास्क धारण सैनिटाइजर से बार बार हाथ धोना दो गज दूरी बनाए रखना वैक्सीन लगवाना एवं इम्युनिटी बढ़ाने के लिए उचित खान पान रहन सहन आदि के लिए जन जागरण आदि प्रयास करने जैसी आवश्यक बातों का अनुपालन करना चाहिए | 

     विशेष बात यह है कि इनमें से जितनी भी बातें हैं उनमें अधिकाँश उपाय  एक बार महामारी से संक्रमित हो जाने के बाद के हैं |जो पहले के हैं उनका कितना कुछ असर होता है इसके बिषय में अभी तक कोई निश्चित निराकरण नहीं किया जा सका है  कि इनमें से किसका कितना प्रभाव होगा ,क्योंकि अभी तक जब जब कोरोना संक्रमण बढ़ा है  तब तब  ऐसे उपायों का ऐसा विशेष प्रभाव नहीं पड़ते देखा गया है जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि महामारी पर अंकुंश लगाने के लिए ये उपाय पर्याप्त मान कर बैठ जाया जाए  | 

   इसमें सबसे महत्त्वपूर्ण बात तो यह है कि महामारी के स्वभाव स्वरूप एवं संक्रमण के प्रकार विस्तार प्रसारमाध्यम अंतरगम्यता आदि की पहचान अच्छी तरह किए बिना उस पर अंकुश लगाने के लिए आवश्यक एवं प्रभावी उपायों औषधियों आदि के बिषय में कोई भी निर्णय कैसे लिया जा सकता है | 

     जहाँ तक बात अगली महामारी के लिए तैयार रहने की है तो ऐसे एक जैसे उपाय हमेंशा तो किए नहीं  जा सकते हैं  जब किसी महामारी के आने की संभावना होती है उसके कुछ पहले से ही ऐसे उपाय करना आवश्यक होता है | उसके लिए सबसे पहली तैयारी तो भावी महामारी के प्रारंभ होने के निश्चित समय का पूर्वानुमान लगाने के लिए करनी होगी | उसके बाद महामारी के आने से कुछ समय पहले से उसप्रकार के रोकथाम वाले प्रिवेंटिव उपाय अपनाने पड़ेंगे जो आने वाली महामारी में संक्रमित होने से रक्षा कर सकें |

    प्राकृतिकआपदाएँ हों या महामारियाँ इन्हें जितना नुक्सान करना होता है वह पहले झटके में ही कर देती हैं | इसलिए पहले झटके का पुर्वनुमा लगाना सबसे पहले आवश्यक होता है | महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए अभी तक ऐसी कोई विधा विकसित नहीं की जा सकी है जिसके आधार पर भावी महामारी के बिषय में यही सटीक पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो | सुना जा रहा है कि इस कमी को पूरा करने के लिए सरकार स्वास्थ्य के बिषय में पूर्वानुमान लगाने की दिशा में अनुसंधान किया जाएगा !