Wednesday 4 April 2018

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 चिकित्सा शास्त्र में समय का महत्त्व - 
             मनोरोग ,तनाव  से मुक्ति पाने का सबसे बड़ा ग्रन्थ है गीता !
      अवसाद या तनाव दिनों दिन बढ़ते देखा जा रहा है छोटे से बड़े तक जवान से बूढ़े तक गरीब से रईस तक पढ़े लिखे से अनपढ़ तक स्त्री से पुरुष तक हर किसी को तनाव हो रहा है असहनशीलता इतनी कि व्यक्ति छोटी छोटी बातों पर हत्या या आत्महत्या करते देखा जाता है !
     तनाव के कारणों को चिन्हित नहीं किया जा पा रहा है कुछ लोग खान पान को दोष दे रहे हैं कुछ ग्लोबल वार्मिंग को कुछ  उत्तेजक फिल्मों को कुछ घटती सहन शक्ति को कुछ तामसिक खानपान को दोषी ठहरा रहे हैं उसी हिसाब के अपने अपने तरह के उपायों की सलाहें दी जा रही हैं किंतु उनका असर कुछ विशेष होता तो  नहीं दिख रहा है !सत्संगों या कथा प्रवचनों में जाने वालों की भारी भीड़ें बढ़ती दिख रही हैं | धर्म के नाम पर अकूत धन संपत्ति दान दी जा रही है मंदिरों की भीड़ें बढ़ती जा रही हैं धार्मिक समारोहों में भारी जन समूह इकट्ठा हो रहा है  तीर्थ स्थलों तथा तीर्थ यात्राओं में जाने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है| योग सिखाने वालों की संख्या बढ़ाई जा रही है शिक्षा के साथ योग को जोड़ा जा रहा है सरकारी विभागों को भी योग के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है !
       इतना सबकुछ होने के बाद भी मानसिक तनाव दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है छोटे छोटे बच्चे तनावग्रस्त होकर आत्महत्या करते देखे जा रहे हैं केवल अशिक्षित ही नहीं अपितु शिक्षित लोग भी आप खोते जा रहे हैं बड़े बड़े अधिकारी नेता सम्पत्तिवान आदि सक्षम लोग भी कर रहे हैं आत्मह्त्या गरीबी अभावों अशिक्षा आदि में यदि ऐसा होते देखा जाए तब तो बात समझ में आती है किन्तु जब ऐसे लोग आत्महत्या करते हैं तो विषय वास्तव में चिंतनीय हो जाता है |प्रेम संबंधों में जो जिसे चाहता है वो उसे न मिले तो तनाव हत्या आत्म हत्या आदि और मिल जाए तब भी तनाव हत्या आत्महत्या जैसे जघन्य प्रकरण देखे सुने जाते हैं आखिर तब क्यों ऐसा होता है | इसीप्रकार से निरंतर संघर्षों से जूझने वाले अदम्य साहसी सैनिकों के वर्ग में भी ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण कुछ दुर्घटनाएँ देखी सुनी जाती रही हैं विपरीत परिस्थितियों से जूझने में उनकी किसी और से तुलना ही नहीं की जा सकती है सभी प्रकार के तनावों पर विजय पाना ऐसे लोगों का सहज स्वभाव होता है | जब ऐसे वर्ग के भी कुछ लोग धैर्य खोकर आत्म हत्या की ओर प्रेरित होने लगते हैं तब चिंता बढ़ जाना स्वाभाविक ही है |             ये ऐसा उलझा हुआ विषय है जो सरकार से लेकर  समाज सुधारकों तक सभी के लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है !सरकार को स्वास्थ्य संबंधी ऐसे सभी प्रकरणों में चिकित्सकों की ओर ही ताकना पड़ता है स्वाभाविक भी है सक्षम चिकित्सकवर्ग  स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में बड़े बड़े मानक स्थापित करता जा रहा है स्वास्थ्य रक्षा के क्षेत्र में असंभव एवं अविश्वसनीय से दिखने लगने वाले कई बड़े विषयों पर विजय पाकर उन्होंने करोड़ों लोगों को असमय में  मरने से बचा लिया है न केवल स्वस्थ किया है अपितु कई अक्षम अंगों को सक्षम बनाने में महारथ हासिल किया है !ऐसे लोगों की प्रशंसा करके अपनी लेखनी पवित्र करना हमारा सहज सौभाग्य है | तनाव जैसे मनोरोगों पर विजय पाने के लिए भी उन्होंने अनेकों प्रयत्न किए हैं यहाँ तक कि तनावों से सम्बंध रखने वाले मस्तिष्क के हार्डवेयर में भारी बदलाव करने की क्षमता तो हासिल कर ली है किंतु सॉफ्टवेयर अर्थात मन  को पकड़ पाना अभी तक  असंभव बना हुआ है !  मस्तिष्क का हार्डवेयर तो चिकित्सकों के हाथ में आ गया है किंतु सॉफ्टवेयर अभी तक रहस्य बना हुआ है तनाव चूँकि मन का विषय है और आधुनिक चिकित्सा पद्धति में 'मन' की मान्यता नहीं है और न ही मन को जाँचने की मशीन आदि कोई प्रक्रिया ही है फिर भी मनोरोग मनोचिकित्सा  मनोचिकित्सक आदि शब्द हवा में तैर रहे हैं संभव है कि स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी वे कुछ सहयोग कर पा रहे हों किंतु मन की न कोई जाँच है और न ही दवा फिर मनोरोगों पर नियंत्रण कर पाना कैसे संभव है फिर भी काउंसलिंग आदि करके तनाव घटाने के प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु उनका असर न केवल अपर्याप्त है अपितु तीर तुक्का ही साबित हो रहा है इस क्षेत्र में विश्वसनीय प्रगति के चिन्ह दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रहे हैं|

वैदिक विज्ञान और मानसिक तनाव !
          
       वैदिकविज्ञान से संबंधित शोधकार्य में निरंतर लगे हुए मुझे लगभग बीस वर्ष हो गए ! तनाव का समाधान खोजने का मैंने निरंतर प्रयास किया इस विषय में योग आयुर्वेदादि चिकित्सा संबंधी विविध आयामों का अध्ययन करने के बाद मुझे भगवान् कृष्ण जी की गीता में कही हुई वो बात याद आई जिसमें उन्होंने कहा है कि" हे अर्जुन तुम्हारा अधिकार केवल कर्म में है इसलिए तुम केवल कर्म की ओर देखो फल की ओर नहीं !"
                              "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन !"
निरंतर चिंतन के बाद मुझे लगा कि यही वो महान सूत्र है जिसके उपदेश मात्र से श्रीकृष्ण जी ने अर्जुन का मानसिक तनाव समाप्त किया था !क्योंकि अर्जुन भी तो बार बार फल पर जा रहे थे कि यदि युद्ध हुआ तो उसका परिणाम ऐसा ऐसा होगा उस परिणाम अर्थात युद्ध के फल को सोच कर ही तो तनाव ग्रस्त हो गए थे अर्जुन !इसीलिए भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का ध्यान उस युद्ध फल से हटा दिया और अर्जुन को तनाव मुक्त कर दिया !
     गीता के इस वाक्य में भी छिपा है जीवन के समस्त तनाव के मुक्ति का सार !मैंने भी अनुभव किया  वर्तमान समाज भी तो इसी बीमारी का शिकार है वह भी तो औरों की देखा देखी में जो काम शुरू भी नहीं किया है उससे संबंधित फल के बारे में पहले ही विचार करने लगता है तनाव तो उसी बात का होता है और वहीँ से शुरू हो जाता है | 
        वर्तमान समय में कर्मवाद हावी होता चला जा रहा है जिसमें हर किसी को यही समझाया जा रहा है कि लक्ष्य कितना भी बड़ा क्यों न हो प्रयास और परिश्रम के बल पर  उसे पाया जा सकता है !इसलिए लक्ष्य हासिल हुआ सा मानकर लोग प्रयास करने पर जोर दे रहे हैं !शिक्षा संबंधी काउंसलिंग हो या कैरियर काउंसलिंग हर तरफ एक ही बात है मेहनत करके बड़े से बड़े लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है | मानसिक तनावों की जड़ में हैं ऐसे गैर जिम्मेदार वाक्य और विचार ! ऐसे ही छद्म वाक्यों के बलपर माता पिता अपनी महत्वाकाँक्षाएँ अपने बच्चों पर थोप देते हैं कई कई ट्यूशन लगा देते हैं !बड़े बड़े इंतजाम कर देते हैं किंतु ऐसी परिस्थितियों से जूझना तो बच्चे को ही पड़ता है !सभी बच्चों की धारण करने की शक्ति एक जैसी नहीं होती इसलिए जो बच्चे बौद्धिक दृष्टि से कमजोर होते हैं ऐसे बच्चों के लिए माता पिता की महत्वाकाँक्षाएँ बोझ बन जाती हैं इनके लिए शिक्षा संबंधी सारे तामझाम बोझ सिद्ध होते चले जाते हैं और बच्चा बचपन से ही तनाव करने का आदती  हो जाता है | इसी प्रकार से  कैरियर काउंसलिंग करने वाले लोग हों या अपने धंधे व्यापार में सफल हो चुके लोग या  अभिभावकगण अथवा परिजन सब लोग अपनी अपनी सफलता की कहानियाँ सुना सुनाकर काउंसलिंग  देना शुरू कर देते हैं जो जिस काम में सफल हो गया वो उस क्षेत्र का अपने को गुरू समझने लगता है इसी आत्मविश्वास के साथ लोग एक दूसरे को उपदेश देने लगते हैं किन्तु शारीरिक मानसिक आर्थिक व्यापारिक आदि परिस्थितियाँ  सबकी अलग अलग होती हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति अपने अनुभवों को किसी दूसरे पर बलपूर्वक थोप नहीं सकता है अनुभवदान करने के लिए हर कोई स्वतन्त्र है किंतु ग्रहण करने की क्षमता हर किसी की अलग अलग होती है और हर कोई आपने अपने अनुशार ही ग्रहण कर पाता है किंतु जो लोग इस सच्चाई को नहीं समझते हैं  उनका अनावश्यक दबाव असफल व्यक्ति को जलील करने जैसा लगता है जिससे उसका तनाव  बढ़ने लगता है धीरे धीरे ऐसे लोग एकांत सेवन करने लगते हैं और हीं भावना का शिकार हो जाते  हैं इसलिए किसी को कितना भी क्यों न समझाया जाए किंतु उसे मानसिक रूप से कभी अकेला नहीं पड़ने देना चाहिए !
       जो व्यक्ति लक्ष्य तो  बहुत बड़ा बना लेता है और उसी परिश्रम से  उसे पाने के लिए न केवल प्रयास करने लगता है अपितु इसके लिए पागल हो उठता है इसी पागलपन से पैदा हुए तनाव में तमाम प्रकार के अपराध कर बैठता है | प्रेमिका को प्रसन्न करने के लिए या अपनी सुख सविधाओं के लिए रचे गए काल्पनिक लक्ष्य को पाने के लिए व्यक्ति अपराध करने लगता है घूसखोरी भ्रष्टाचार लूट घसोट अपहरण हत्या आदि ऐसे ही काल्पनिक लक्ष्यों की पूर्ति के लिए किए जाने वाले विषैले आचरण होते हैं जो अपनी महत्वाकाँक्षाओं की पूर्ति के लिए हमेंशा औरों की बलि दिया करते हैं ये अपना तनाव घटाने के लिए न केवल औरों के लिए तनाव तैयार किया करते हैं अपितु समाज में आपराधिक वातावरण तैयार किया  करते हैं | 
         ऐसे काल्पनिक लक्ष्य निर्माण में फिल्मों की बहुत बड़ी भूमिका  होती  है उसके डायलॉग काल्पनिक होते हैं  आचार व्यवहार काल्पनिक होते हैं नाते रिस्तेदार आदि सारे सगे संबंधी भी काल्पनिक होते हैं उनमें दिखाई जाने वाली संपन्नता या गरीबी आदि सब कुछ काल्पनिक होता है सफलता असफलता आदि सबकुछ काल्पनिक ही होती है !किन्तु उस फ़िल्म या सीरियल में गढ़ी गई कहानी चूँकि काल्पनिक होती है इसलिए उसे तो कैसे भी कहीं भी तोड़ा मोड़ा या मरोड़ा जा  सकता है किंतु जब उसे वास्तविक जीवन में उतारने की बारी आती है तो वहाँ वैसा  कर पाना संभव नहीं होता है इसीलिए तो फिल्मी जीवन जीने वाले अभिनेता अभिनेत्रियों के पास बहुत सारा धन होने के बाद भी अपना जीवन अव्यवस्थित तनावग्रस्त विवाह विच्छेद आदि होता है ऐसे लोगों के निजी जीवन में फिल्मी वातावरण का बहुत असर होता है इसलिए फिल्मों में तो कुछ भी हो सकता है किंतु वास्तविक जीवन में वो सब कुछ संभव नहीं है !इसलिए ऐसे लोगों का या फिल्मों का अधिक अनुशरण करने वाले लोग सहज तनाव से ग्रसित रहते हैं | 
      कुल मिलाकर वर्तमान प्रगति पद्धतियों में दूसरों को देख देखकर बड़े बड़े लक्ष्य लोग बना लेते हैं और फिर उन्हें पाने के लिए पूर्ण प्रयास करते हैं ऐसा ही कैरियर काउंसलर से लेकर बड़े बड़े विचारक समझाते  भी हैं किंतु यदि मनचाहा फल न मिला तब होता है तनाव या अवसाद या अपराध !
            हमारे प्रयास लक्ष्य तक पहुँचें इसमें भाग्य सबसे बड़ा रोड़ा होता है !

        भाग्य को बहुत लोग भले न मानते हों या इसे अंधविश्वास मानते हों किंतु जावन में भाग्य की बहुत बड़ी भूमिका होती है  हमारे लक्ष्य और प्रयास के बीच में भाग्य सबसे बड़ी कड़ी है इस कड़ी को नकार देने का मतलब होता है तनाव !संसार की सभी सुंदर चीजें पहनना खाना ओढ़ना बिछाना, संपत्ति संचय करना, मकान व्यवसाय आदि बनाना बढ़ाना ,सुन्दर एवं अच्छे स्त्री पुरुष से विवाह करना, सामाजिक राजनैतिक आदि पद प्रतिष्ठा प्राप्त करना इस संसार में किसे अच्छा नहीं लगता है अर्थात सबको अच्छा लगता है सभी लोग अपनी अपनी परिस्थितियों में अच्छे अच्छे सुख साधनों के  लिए प्रयत्नशील भी रहते हैं किंतु उन उन क्षेत्रों में अत्यंत प्रयास करने के बाद भी वे सफल उतने उतने ही होते हैं जिस विषय में जितना उनके भाग्य में निर्धारित होता है किन्तु प्रयास करते समय हमें एक बात हमेंशा याद रखनी चाहिए कि समुद्र में बहुत जल होने के बाद भी उसमें जो जितना बड़ा बर्तन डुबोएगा उसे जल मिलेगा !ये बर्तन ही अपना अपना भाग्य है और संसार ही समुद्र है जिसमें सारे सुख विद्यमान हैं किंतु जैसे बर्तन से अधिक समुद्र से कोई जल नहीं भर सकता है उसी प्रकार से इस संसार में भाग्य से अधिक किसी को सुख नहीं मिल सकता है |सभी सुखों के विषय में अलग अलग सीमाएँ निर्धारित हैं जैसे भाग्य के द्वारा निश्चित की गई सीमा से अधिक मीठा खाने वाले के शरीर में मधुमेह हो जाता है !ऐसे सभी सुखों के विषय में सभी की भाग्य लिमिट अलग अलग होती है जिसे क्रास करते ही उस विषय से संबंधित बीमारियाँ  हैरानियाँ परेशानियाँ या तनाव आदि बढ़ने लगते हैं | हर विद्यार्थी के विद्याध्ययन की या हर व्यक्ति की कमाई की अलग अलग क्षमता का कारण अबका अपना अपना भाग्य ही है इसलिए काउंसलिंग के द्वारा किसी को भाग्य से अधिक पढ़ने के लिए या कमाने के लिए बाध्य कितना भी कर लिया जाए किंतु वो सीमा लाँघ पाना उसके बश में नहीं होता है अपितु उसका तनाव जरूर बढ़ जाता है |
      यदि प्रयास न किया जाए तो भाग्य प्रदत्त जो हमारे संभावित सुख हैं शायद वो भी उतने न मिलें इसलिए भाग्य को फलित करने के लिए प्रयास करना बहुत आवश्यक है !  
     जीवन में भाग्य की बहुत अहम् भूमिका है लक्ष्य तो हर कोई बना लेता है और प्रयास भी करने लगता है किंतु लक्ष्य तक पहुँचने के लिए हर किसी को भाग्य की कसौटी पर खरा उतरना होता है इस परीक्षा में पास होने के बाद सारे साधन अनुकूल मिलते चले जाते हैं | सरसों को मिस कर तेल निकालने की प्रक्रिया हर किसी को पता है अब कोई यदि तेल पाने का लक्ष्य बना ले और मिसना उसे आता हो और उसके लिए वो  तैयार भी हो किंतु उसके हाथ में सरसों आएगा या कुछ और ये तो भाग्य के अनुशार ही निश्चित होगा !यदि किसी के हाथ में बालू आ जाए तो उसे मिसते रहने से तेल तो नहीं निकल जाएगा !ऐसे में ऊँचा लक्ष्य बनाकर उसके लिए भारी भरकम प्रयास करने वालों को अपने मन के किसी कोने में इतना तो बना कर चलना ही चाहिए कि भाग्य में यदि न बड़ा हुआ तो नहीं मिलेगा कोई बात नहीं कम से कम ये तो पछतावा नहीं रहेगा कि हम जो पाना चाहते थे उसके लिए हमने कोई प्रयास ही नहीं किया है !अपने प्रयास बल पर प्रसन्न होकर तनाव को पराजित कर देना चाहिए !
     भाग्य तो  कोई छन्ने वो महत्वपूर्ण वस्तुतः तेल निकालने का प्रयास किया जाएगा तो तेल निकलेगा ही किन्तु ये भी तो याद रखा जाना चाहिए कि सरसों और तिल आदि में तेल होता है तभी तो निकलता है | 
    "जो लोग समझते या समझाते हैं कि बड़ा लक्ष्य बनाओ कभी न कभी तो सफलता मिलेगी ही !"ऐसे वाक्य केवल किसी को प्रोत्साहित करने के लिए बोले जा सकते हैं किंतु ऐसे वाक्यों पर भरोसा करने वाले लोग अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्राण प्रण से न्यौछावर हो जाते हैं किंतु जब सफलता नहीं मिलती है तब सफलता अवश्य मिलने वाली पूर्व में कही गई बात को याद कर कर के तनाव में हो जाता है वो व्यक्ति !आईएएस जैसी अत्यंत परिश्रमी परीक्षाओं की तयारी करने वाले कितने छात्र ऐसे हैं जो असफल होने पर तनाव ग्रस्त हो जाते हैं आत्मघात  कर बैठते हैं या फिर निराश होकर बाबा बन जाते हैं !
        चिकित्सा के क्षेत्र में भी यही परिस्थिति है रोगी चिकित्सा के लिए सर्वोत्तम साधन खोजते हैं चिकित्सक भी उसकी चिकित्सा के लिए सर्वोत्तम प्रयास करते हैं किंतु परिणाम देते समय भाग्य सामने आकर खड़ा हो जाता है और फैसला सुनाते समय किसी को स्वास्थ्य लाभ देता है किसी को अस्वस्थ रहने देता है और किसी को मृत्यु का आदेश देकर चला जाता है रोगी विवश चिकित्सक विवश सब को सिर झुकाकर स्वीकार कर लेना होता है भाग्य की इस अघोषित अदालत में न कोई प्रश्न  न उत्तर न मज़बूरी सहने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं होता है !
        जंगलों में आदिवासियों में या जहाँ आधुनिक चिकित्सा के कोई साधन नहीं हैं छोटी बड़ी बीमारियाँ तो उन्हें भी  होती हैं किंतु बिना चिकित्सा के भी प्रबल भाग्य उनकी भी रक्षा कर लेता है भाग्य हमारे प्रयासों चिकित्सा साधनों आदि का घमंड तोड़ देता है भाग्य का प्रबलपक्ष !
          इसी प्रकार से जीवन के अनेकों क्षेत्रों में हम अपने मनचाहे लक्ष्य बना लिया करते हैं और उसे पाने के लिए यथा संभव परिश्रम भी करते हैं किन्तु कई बार लक्ष्य इतने बड़े होते हैं जो हमारी परिस्थितियों से बहुत बड़े होते हैं इसलिए प्रयास करने पर भी वे हासिल नहीं हो पाते हैं तो तनाव होता है !कई बार जो सजावटी या बाजारू लड़के लड़कियाँ जो सजधज कर बाजारों में घूमते फिरते बात व्यवहार करते तो ठीक लगते हैं किंतु वे घर गृहस्थी बसाने लायक नहीं होते वो बाजार में ही सुशोभित होते हैं किंतु जो लोग उनके साथ विवाह कर लेते हैं उन्हें तनाव इसलिए होता है कि वे बाजारू भावना बदलने का प्रयास करने लगते हैं किन्तु हवा भरी हुई  रबड़ की गेंद को पानी के अंदर दबाकर कब तक रखा जा सकता है जब मौका मिलेगा तब ऊपर आ जाएगी यही तो तनाव है !
        बाजार में अपरिचित कोई सुन्दर लड़की हँसती खेलती अपनी मस्ती में चली जा रही थी !किसी लड़के ने उसे देखा !उससे मिलने का प्रयास करने लगा फिर बात करने की भावना जगी फिर उससे प्रेम करने का मन हुआ फिर उसे पत्नी बनाने की इच्छा होने लगी और सोचने लगा कि इतनी सुन्दर लड़की जब हमारी पत्नी बनेगी हमारे माता पिता की सेवा करेगी हमारे घर का काम काज करेगी हमारे साथ समर्पण पूर्वक पत्नी बन कर रहेगी !इस पूरे प्रकरण में जिस लड़की को देखा है और जिसे अपनी पत्नी बनाना है जिसके लिए इतने सारे सपने सजाए बैठा है उसकी इच्छा इसमें कहीं सम्मिलित ही नहीं है ऐसी परिस्थिति में होता है तनाव !
      किसी माता के दो बेटे थे एक का विवाह घर वालों की सहमति से हुआ था दूसरे ने लवमैरिज किया था किंतु लवमैरिज वाले जोड़े का तनाव बना रहता था !उस लड़के की माँ एक दिन किसी साधक के पास गई और उससे अपनी पीड़ा बताई कि बड़ी बहू तो बहू की तरह रहती है सबका सम्मान करती है सबसे शिष्टाचार से बात करती है किंतु छोटी ने लव मैरिज की है वो ऐसा कुछ भी नहीं करती और न ही अपने पति का सम्मान करती है तो साधक ने समझाया कि तुम्हारी बड़ी बहू तो सबकी सहमति से से आई है इसलिए सबका सम्मान करती है और छोटी बहू अपनी मर्जी से आई ही इसलिए किसी के सम्मान से उसका क्या लेना देना !या यूँ कह लें कि बड़ी बहू पत्नी जबकि छोटी पार्टनर !ऐसे में दोनों की तुलना कैसे की जा सकती है ऐसी परिस्थिति में होता है तनाव !
       हमारी माँ से बहन से बेटी से कोई अश्लील बर्ताव करे तो हमें न केवल बुरा लग जाता है कई  बार तो हम अपनी शक्ति के अनुशार उससे बदला लेने लग जाते हैं !किंतु जब हम अपनी युवा अवस्था की मौज मस्ती में होते हैं तो हम तो किसी की माँ को माँ नहीं समझते किसी की बहन को नहीं समझते किसी की बेटी को बेटी नहीं समझते हम तो सबके प्रति केवल अश्लील भावना रखते हैं और आशा रखते हैं कि वो हमारे इन दोषों को प्रेम समझकर पवित्र मान ले और पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप मान ले !इस प्रकार से कर्म भी मैंने स्वयं कर लिया और फल भी स्वयं सुनिश्चित कर लिया !किंतु इसमें केवल हम हैं और हमारी भावनाएँ उसकी सहमति तो कहीं नहीं है जिसके संबंध में हमने इतनी सारी योजनाएँ बना डाली हैं अपने जीवन के विषय में उसकी भी कुछ योजनाएँ होंगी उसके लिए वो भी कुछ प्रयास कर रहा होगा !ऐसे में कर्तव्य के फलों में टकराहट न हो अन्यथा तनाव हो जाएगा !इसलिए हमें केवल प्रयास करना चाहिए परिणाम पर ध्यान नहीं देना चाहिए !
         जीवन के किसी भी क्षेत्र में आगे लिए  भाग्य की बहुत बड़ी भूमिका होती है जो हमारे भाग्य में नहीं बड़ा होता है वो हमें बहुत प्रयास करने के बाद भी नहीं मिल पाता है हम जितना धन कमा लेने का लक्ष्य बना  प्रायः करते हैं किंतु उसमें असफल हो जाते हैं तो तनाव होता है हमें याद रखना चाहिए कि हम प्रयास करके केवल अपने भाग्य को केस कर सकते हैं किंतु भाग्य को बदल नहीं सकते हैं |
      जो लोग धन बल से किसी अन्य प्रकार से प्रभावित करके किसी सुन्दर लड़के या लड़की से विवाह कर लेते हैं और उस लडके या लड़की के भाग्य में पति या पत्नी का सुख सौ प्रतिशत बड़ा हुआ है जबकि अपने भाग्य में साठ  प्रतिशत ही  वैवाहिक सुख बदा है ऐसे समय अपने जीवन साथी को बाकि का चालीस प्रतिशत वैवाहिक सुख किसी और से अरेंज करना पड़ेगा !जबकि सामाजिक दृष्टि से उन्हें अवध सम्बन्ध माना जाता है इसलिए ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर तनाव तो होगा ही !
     जो चीज हमारे भाग्य  में नहीं बदी होती है उसे हम कैसे प्राप्त कर सकते हैं और प्राप्त करके भी सुरक्षित कैसे रख  सकते हैं और यदि रख भी लें तो उसका सुख कैसे भोग सकते हैं !दशरथ जी के भाग्य में पुत्र सुख नहीं बदा था तो यज्ञ के प्रसाद से पुत्र पा तो लिए किंतु उनका सुख नहीं मिल पाया और उन्हीं के लिए तड़फते हुए उन्हें प्राण छोड़ने पड़े !
      संसार में ऐसे जितने भी प्रकार के सुखों के साधन हम प्रयास पूर्वक पा लेते हैं वो यदि हमारे भाग्य में भी बदे  होते हैं तभी हमें सुख दे पाते हैं अन्यथा दुःख ही देते हैं इसी लिए चोरी लूट आदि करने वाले कितने लोग उस पैसे से सुखी हो सके इसलिए ऐसे सुख के साधन और अधिक तनावप्रद होते हैं |
       वस्तुतः मनचाहा लक्ष्य तो लोग बना लेते हैं और उसे पाने के लिए प्रयास भी करने लगते हैं किंतु प्रयास के अनुशार यदि परिणाम न मिला तो तनाव !परिणाम मिले कैसे क्योंकि प्रयास और परिणाम के बीच फँसा हुआ है भाग्य अर्थात समय जिसकी परवाह जो लोग नहीं करते हैं वे अवसाद के शिकार होते चले जाते हैं !कुल मिलाकर प्रयास और परिणाम के बीच में फँसे हुए भाग्य के आस्तित्व को न मानने के कारण होता है तनाव !भाग्य को न मानने से या नकार देने से हमारे जीवन में भाग्य की भूमिका समाप्त तो नहीं हो जाती है वो  अपना प्रभाव दिखाते रहती है हम अपने प्रयासों से उसे नकारते रहते हैं किंतु हमारे नकार देने मात्र से भाग्य की भूमिका समाप्त तो नहीं हो जाती है वो अपना फैसला सुना देती है हम मनमसोस कर रह जाया करते हैं !
    इसीलिए तो भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है उसका फल तुम्हें कैसा मिले इसके विषय में तुम्हे कोई भूमिका नहीं है संभव है वैसा हो जाए जैसा तुम चाहते हो तब तुम अपनी पीठ थपथपा सकते हो कि मैंने जो जैसा चाहा वो वैसा कर लिया या उसे हासिल कर लिया किंतु संभावना ऐसी भी होती है कि जैसा तुम चाह रहे थे या जिसके लिए तुमने प्रयास किया है परिणाम उसके बिल्कुल विपरीत चला गया तब तुम ये तो नहीं मान सकते कि यही प्राप्त करने के लिए मैंने प्रयास किया था इसलिए ऐसा हुआ !कुल मिलाकर परिणाम प्रदान करने वाली शक्ति इतनी बलवती है कि वो हमारे संकल्पों की परवाह नहीं करती है फैसला सुना दिया करती है !
     किसी रोगी की चिकित्सा करने पर वो स्वस्थ हो जाए तो अपने किए हुए सारे प्रयास ही सफल हुए हैं ऐसा लगने लगता है किंतु उसके स्वस्थ न होने पर या विपरीत परिणाम आने पर इस बात का अनुमान आसानी से लग जाता है कि हमारे प्रयासों की हैसियत क्या है ?
     इसका मतलब ये कतई नहीं है कि हमें प्रयास नहीं करना चाहिए !यदि हम प्रयास नहीं करेंगे तब तो जो हमारे भाग्य में सुख या सुख के साधन बदे होते हैं वे भी नहीं मिलेंगे इसलिए प्रयास तो करने चाहिए किंतु परिणामों से चिपकना नहीं चाहिए तो तनाव नहीं होगा !
    अवसाद का पूर्वानुमान -
         जीवन में पूर्वानुमान की बहुत बड़ी भूमिका है किसी भी विषय में पूर्वानुमान लगाकर उन अनुमानों के आधार पर अपना आचार व्यवहार निश्चित किया जा सकता है  संभावित कठिनाइयों से सावधान होकर चला जा सकता है और संभावित अच्छाइयों को और अधिक से अधिक कैस किया जा सकता है !जीवन के प्रति सतर्क लोग निरंतर ऐसा अभ्यास करते आए हैं |
       पूर्वानुमान लगाने के लिए भी यदि कोई आधार लेकर चला जाए तब तो पूर्वानुमान प्रभावी होते हैं अन्यथा तीर तुक्का ही बनकर रह जाते हैं | पूर्वानुमानों का आधार न होने पर केवल तुक्का ही लगाए जाते हैं जहाँ लग गया वहाँ तो ठीक है और जहाँ नहीं लगा वहाँ खाली चला जाता है !किसी नदी को पार करने के लिए कोई घुसा हो और नदी की चौड़ाई 100 फिट हो तो अगर पचास फिट चलने पर नदी की गहराई 20 फिट प्रतीत हो तो इससे ये अनुमान तो नहीं लगाया जा सकता है कि 50 फिट और चलने से नदी की गहराई चालीस फिट हो जाएगी !इसलिए जिसका हम पूर्वानुमान लगाते हैं उसके सिद्धांतों को भी ध्यान रखा जाना चाहिए !   
      पूर्वानुमान की परंपरा का भारत में बहुत पुराना इतिहास है यह प्राचीन भारत की सनातनी संस्कृति का अभिन्न अंश रहा है इसके लिए लोग तरह तरह के संकेतों का सहारा हमेंशा से ही लेते रहे हैं पशु पक्षियों आदि अनेकों प्रकार के जीव जंतुओं के आचार व्यवहार बोलियों स्वभाव परिवर्तनों आदि को देख सुन कर जीवन या प्रकृति से जुड़े अनेकों प्रकार के पूर्वानुमान लगा लिया करते थे !इसी प्रकार से वृक्षों ,बनस्पतियों सहित समस्त प्राकृतिक बदलावों के आधार पर पूर्वानुमान लगा लिए जाते थे !स्त्री पुरुषों के शारीरिक अंगों के आधार पर उनके जीवन से सम्बंधित विकास और ह्रास का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे किस क्षेत्र में किसका कितना हानि लाभ संभव है जान लिया करते थे !यहाँ तक कि शारीरिक लक्षणों के आधार पर निकट भविष्य में संभावित बीमारियों  या जीवन मृत्यु से सम्बंधित पूर्वानुमान लगा लिया करते थे ! स्वर शास्त्र के आधार पर नासिका में चलने वाली इड़ा पिंगला आदि नाड़ियों के द्वारा अपने विषय में औरों के विषय में एवं प्रकृति से सम्बन्धित अनेकों विषयों का अत्यंत सटीक  पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |स्वप्न में देखे जाने वाले प्रसंगों का अध्ययन करके अनेकों प्रकार के पूर्वानुमान लगाए जाते रहे रहे हैं !शरीर के अंगों के फड़कने के आधार पर या छींकने के आधार पर लगाए जाने वाले पूर्वानुमान भी अत्यंत प्रभावी होते देखे जाते रहे हैं |घरों की बनावट के आधार पर घरों से सम्बंधित पूर्वानुमान वास्तुशास्त्र के रूप में हमेंशा से विश्वसनीय माने जाते रहे हैं |इसी प्रकार से पूर्वानुमानों के विषय में देश के विभिन्न  भागों एवं परम्पराओं में जीवन एवं प्रकृति से सम्बंधित अनेकों प्रकार की पद्धतियाँ विभिन्न देशों एवं संस्कृतियों में देखने सुनने को मिलती रही हैं |इनमें यदि सच्चाई न होती तो ये इतने लंबे समय तक कैसे टिक पातीं !इसलिए इनकी सच्चाई विश्वसनीय है !
        पूर्वानुमानों के इसी क्रम में भारतीय वैदिक विज्ञान का प्रमुख ज्योतिषशास्त्र तो पूर्वानुमानों का अथाह समुद्र है जीवन एवं प्रकृति के प्रत्येक पक्ष से सम्बंधित पूर्वानुमानों की विस्तृत पद्धति है ज्योतिषशास्त्र !इसके आधार पर न केवल मनुष्य जीवन से जुड़े अपितु प्रकृति की सामान्य जानकारी से लेकर विस्तृत खगोल विज्ञान तक से संबंधित एक एक मिनट का पूर्वानुमान सटीक घटित होता है| ग्रहण से संबंधित पूर्वानुमान तो सारे संसार के सामने प्रत्यक्ष  ही हैं !
        ज्योतिषशास्त्र के आधार पर पूर्वानुमानों से संबंधित ज्योतिषशास्त्र का फलित नामक एक महान उपयोगी सिद्धांत है जिसके द्वारा आकाशीय ग्रह नक्षत्रों की गति युति आदि के आधार पर सुनिश्चित सटीक सिद्धांत हैं जिनके आधार पर अनुसंधान करके पृथ्वी पर चराचर जगत में घटित हो रही घटनाओं का महीनों पहले और कुछ मामलों में तो वर्षों पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !
       किसी स्त्री पुरुष के जन्म लेते ही उसके जीवन से संबंधित सुख और दुःख का सहज पूर्वानुमान लगाया जा सकता है साथ ही  जाना जा सकता है रोग मनोरोग हानि लाभ आदि किसके जीवन में किसके द्वारा किस उम्र में कितने समय के लिए घटित होगा !किसी से मित्रता शत्रुता आदि संबंध  कब तक चलेंगे !किस नाम वाले  पुरुष को किस नाम वाले स्त्री पुरुष के साथ निर्वाह करने के लिए कैसे चलना होगा और उसके लिए क्या क्या और किस प्रकार के समझौते करने होंगे ! माता पिता भाई बहनों संतान आदि से संबंधित सुख दुःख जीवन के किस भाग में कितने दिनों के लिए रहेगा !वैवाहिक जीवन के विषय में किस स्त्री पुरुष का किस स्त्री पुरुष के साथ किस प्रकार से निर्वाह हो पाएगा किसको किसके साथ कितने दिन क्या क्या सहकर वैवाहिक जीवन की रक्षा करने का प्रयत्न करना होगा !अपने या जीवन साथी के निजी जीवन में घटित होने वाले सुखों  दुःखों का एक दूसरे के जीवन से सीधा संबंध भले न होता हो किंतु जीवन साथी की अपने घर की समस्याओ या अन्य निजी समस्याओं एवं रोगों मनोरोगों आदि के कारण एक दूसरे के प्रति उत्पन्न होने वाले भ्रम भी वैवाहिक जीवन में बाधक होते हैं नो किसके जीवन में किस उम्र में कितने समय के लिए होंगे इसका पूर्वानुमान भी जन्म के साथ या विवाह का निश्चय  होने के साथ ही लगा लेने की प्रक्रिया इस शास्त्र में है !ऐसी सभी बातों का पूर्वानुमान लगाकर जीवन को सुखद बनाया जा सकता है |
     वर्ष में वैसे तो ऋतुएँ 6 होती हैं किंतु वर्षा गर्मी और सर्दी आदि तीन प्रकार के मौसम देखने सुनने सहने को मिलते हैं ये क्रमशः वात  पित्त और कफ से संबंधित माने जाते हैं !पुरुषों की भी यही तीन प्रकृति होती हैं भोजन सामग्री की भी यही तीन प्रकृति होती हैं !स्थानों की भी यही तीन प्रकृति होती हैं और समय की भी यही तीन प्रकृति होती हैं और किसी  पुरुष के निजी जीवन में घटित होने वाले समय की भी यही तीन प्रकृति होती हैं इसका निर्णय उसके जीवन में चलने वाली दशाओं के आधार पर लिया जाता है!
     ऐसी परिस्थिति में जिस स्त्री पुरुष की वात  पित्त और कफ के क्रमानुशार जिस दोष से संबंधित जितने समय के लिए दशा चल रही होती है उसे उतने वर्षों या महीनों तक उस प्रकार के मौसम में उस दोष से संबंधित स्थानों में रहने से बचना चाहिए उस प्रकार के खान पान से बचना चाहिए !
        किसी के शरीर की कफ प्रकृति हो और उसका दशा काल भी कफ प्रकृति का हो और मौसम भी कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी का हो तो ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित रोगों की संभावना उतने समय तक अधिक रहेगी !ऐसा पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसलिए उतने समय तक के लिए ऐसे लोगों को कफ प्रकृति  अर्थात सर्दी से संबंधित मौसम में विशेष सतर्कता बरतनी चाहिए एवं कफ को बढ़ाने वाले भोजन से बचना चाहिए !कफ प्रवृत्ति से संबंधित जलीय या बर्फीले आदि शीतल प्रकृति के स्थानों पर रहने जाने आदि से बचना चाहिए !सेना आदि से संबंधित लोगों की तैनाती करने के लिए स्थान चुनते समय इन बातों के आधार पर स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाकर ही निश्चय किया जाना चाहिए !इसी प्रकार सर्दी के अलावा अन्य दोषों के विषय में भी सैनिकों से लेकर सभी के विषय में पूर्वानुमान किया जा सकता है |
       सेना से संबंधित लोगों की भर्ती के समय स्वास्थ्य जाँच प्रक्रिया के साथ साथ इस विषय को भी शामिल किया जाना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य की जाँच वर्तमान शारीरिक स्थिति के आधार होती है उसी के आधार पर फिटनेस सर्टिफिकेट आदि बनता है !किंतु  शरीर की प्रकृति ,रहने के स्थान, ऋतु (मौसम),भोजन की सामग्री,और अपना दशाकाल हमेंशा बदलता रहता है उसके आधार पर स्वास्थ्य के भी बनने  बिगड़ने की संभावनाएँ बनी रहती हैं जिनका पूर्वानुमान लगाकर सैनिकों की भर्ती प्रक्रिया के साथ ही यह निश्चय किया जा सकता है कि किस समय किस प्रकार के लिए कौन कितना अनुकूल रहेगा !
       समय के अनुशार ही पूर्वानुमान लगाकर यह जाना जा सकता है कि किस व्यक्ति को जीवन के किस भाग में कितने समय के लिए कैसा तनाव होगा !ऐसे संभावित तनावग्रस्त लोगों को एकांत स्थान या प्रतिकूल परिस्थितियों से बचाया जाना चाहिए उनके साथ सहयोगात्मक वर्ताव करके उनके उस तनावी समय को पार करने में मदद की जानी चाहिए !विशेष कर सैनिकों के विषय में ऐसे पूर्वानुमानों की सहायता से उनके तनाव को  घटाने में मदद मिल सकती है ऐसे सैनिकों की तैनाती विशेष संवेदनशील जगहों में नहीं की जानी चाहिए जब मन और तन स्वस्थ नहीं होगा तो उस सैनिक के साथ किसी भी प्रकार की अनहोनी घटित हो सकती है जो सैनिक के बहुमूल्य जीवन के लिए तो चिंतनीय होगी ही साथ ही उसका अपना अच्छा समय न होने के कारण उसे कोई विजय मिलेगी या सम्मान मिलेगा या प्रसन्नता मिलेगी इसकी कल्पना नहीं की जानी चाहिए !वैसे भी जिन सैनिकों के स्वास्थ्य के लिए जितना समय प्रतिकूल हो उन्हें उतने समय के लिए संदिग्ध जगहों पर तैनात किए जाने से बचा जाना चाहिए !
        चिकित्सा के क्षेत्र में भी ऐसे पूर्वानुमानों की बहुत बड़ी भूमिका है कोई व्यक्ति जब किसी बीमारी या दुर्घटना से चोट चपेट खाकर  किसी चिकित्सक के पास पहुँचता है तो उस समय वो बीमारी बहुत साधारण सी लग रही होती है इसलिए चिकित्सक गण भी ऐसे लोगों के इलाज के लिए साधारण प्रक्रिया का ही प्रयोग करते हैं किंतु ऐसे लोगों का अपना समय यदि खराब चल रहा हो तो छोटी छोटी बीमारियाँ अचानक बढ़कर बहुत बड़ा स्वरूप ले लेती हैं उन पर दवाओं का भी अधिक असर नहीं होने पाता है इसलिए ऐसे समयों में पूर्वानुमान पूर्वक चिकित्सा करने से महत्वपूर्ण लाभ होते देखा जाता है |
       अपराधियों के  विषय में ऐसे लोगों को पहचानने में किस प्रकार के अपराध में किसकी कितनी भूमिका हो सकती है कितने समय तक कौन किस प्रकार का अपराध कर
तक उसे उस प्रकार का जीवन भोगना ही पड़ता है 
       

पर इस बात के विषय में है 

 समय का बहुत बड़ा महत्त्व है समय को समझे बिना पूर्वानुमान लगाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है वर्षा विज्ञान से लेकर सारा प्रकृति विज्ञान ही पूर्वानुमान पर आधारित है चिकित्सा विज्ञान ,रोग विज्ञान ,मनोरोगविज्ञान, रोजगार विज्ञान ,परिवार विज्ञान,व्यवहार विज्ञान, विवाह विज्ञान, नाम विज्ञान आदि सभी विषयों में पूर्वानुमान की सुविधा होती तो कितना अच्छा होता !
वर्षा बाढ़ आँधी चक्रवात आदि के पूर्वानुमान की सटीक प्रक्रिया है !

    


समय ही धरती पर ही हमारे सभी प्रकार के प्रयासों से संबंधित सुनियोजित राजपथ हैं जैसे किसी भी गाड़ी को चलाने या उत्तम गति देने के लिए उस गाड़ी का स्वस्थ होकर दौड़ने लायक होना जितना आवश्यक है उतना ही आवश्यक है उस राजपथ का उत्तम होना |

        वर्तमान जीवन शैली में प्रयास और परिणाम तो हैं किंतु पथ का चिंतन गायब है जबकि पथ ही सबकुछ है




राजपथ का अध्याय बिल्कुल  गायब है तो है


      वर्तमान समय में हमारे 


हमारे प्रयासों  के राज पथ की परवाह किए बिना जिस पर हमारे प्रयासों  आवश्यक होना  ना और परिणामों 



     चिकित्सा के लिए औषधीय पद्धति से कम आवश्यक नहीं है समय के महत्त्व की समझ विकसित करना !  समय के संचरण को पहचानने वाले प्राचीन काल के वैद्य लोग किसी रोगी की चिकित्सा प्रारंभ करने से पहले ही उस रोगी के समय का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे यदि रोगी ठीक होने लायक होता था तभी उसकी औषधि करते अन्यथा टाल दिया करते थे !क्योंकि औषधि कितनी भी अच्छी क्यों न हो किंतु लाभ तब तक नहीं करती है जब तक कि रोगी का अपना समय साथ नहीं देता है !जिस रोगी का अपना समय ही बुरा होता है उसके लिए अच्छी से अच्छी औषधि एवं अच्छे से अच्छे चिकित्सक और अत्यंत सघन चिकित्सा प्रक्रिया भी निष्प्रभावी सिद्ध हो जाती है तभी तो बड़े बड़े धनवान एवं सुविधा संपन्न लोगों को भी कई बार अल्प आयु में भी मरते  देखा जाता है !दूसरी बात कई रोगी ऐसे होते हैं कि जिनका अपना समय अच्छा होता है वे गरीब होते हैं गाँवों या जंगलों में रहने वाले होते हैं उनके पास चिकित्सा की कोई सुविधा नहीं होती है न धन होता है न अच्छे चिकित्सक और न ही अच्छी औषधि फिर भी वे बड़े बड़े रोगों को पराजित करके स्वस्थ होते देखे जाते हैं केवल उनका समय ठीक होता है इसीलिए तो !जंगलों में पशु या मनुष्य एक दूसरे से झगड़ कर एक दूसरे को घायल कर देते हैं किंतु ऐसे घायलों या बीमारों में से अनेकों को बिना किसी औषधि के भी स्वस्थ होते देखा जाता है !यहाँ तक कि उनके घावों को  भी  भरते देखा  जाता  है |

         कई बार बड़े बड़े विद्वान चिकित्सक लोग भी किसी रोगी को स्वस्थ करनेके लिए अपनी पूर्ण ताकत झोंक देते हैं किंतु उनका अपना समय अच्छा नहीं होता है इसलिए उस रोगी के स्वस्थ होने का श्रेय उनको नहीं मिल पाता है उसी रोगी को उनसे बहुत कम योग्यता रखने वाला कोई दूसरा चिकित्सक साधारण सी दवा दे देता है तो वो उसी से स्वस्थ हो जाता है और उस चिकित्सक को रोगी के रोग मुक्त करने का श्रेय मिल जाता है क्योंकि उस चिकित्सक का वो समय उसके अपने लिए अच्छा होता है |

      जिन चिकित्सकों का अपना समय अच्छा चल रहा होता है उनके पास रोगी भी वही पहुँचते हैं जिनका स्वयं का समय भी अच्छा होता है इसलिए उन्हें हर हाल में स्वस्थ होना ही होता है किन्तु उन्हें रोगमुक्त करवाने का श्रेय उन चिकित्सकों को मिल जाता है | जिन रोगियों का समय अच्छा नहीं होता है वो ऐसे चिकित्सकों तक पहुँच ही नहीं पाते हैं कभी उनका समय नहीं मिलता कभी रोगी ऐसे चिकित्सकों के पास खुद समय से नहीं पहुँच पाते हैं और कभी चिकित्सक को अचानक कहीं जाना पड़ा जाता है कई बार चिकित्सक स्वयं किसी समस्या का शिकार हो जाते हैं किंतु ऐसे रोगियों को देखने का संयोग उन्हें नहीं मिल पाता है रोगी का समय तो खराब था ही उसकी आयु भी पूरी हो ही चुकी थी उसे मरना ही था इसलिए जब ऐसे रोगियों की मृत्यु हो जाती है तो उसके अपयश से वो चिकित्सक बच जाता है और रोगी के परिजन फिर भी यह सोचा करते हैं कि वो एक बार देख लेते तो शायद सुधार हो सकता था !इस प्रकार से ऐसे चिकित्सकों को अपनी भूमिका न निभा पाने के बाद भी उसका यश मिल जाया करता है क्योंकि उनका अपना समय अच्छा होता है |

        बहुत अच्छे चिकित्सक भी किसी को बहुत अच्छी दवा दे सकते हैं किंतु किस रोगी पर किस दवा का कैसा परिणाम होगा इसके विषय में कोई गारंटी नहीं दे सकते !क्योंकि दवा आदि चिकित्सा प्रक्रिया तो चिकित्सक के हाथ में होती है इसलिए किसी रोगी को रोगमुक्त करने हेतु उसमें वो अच्छे से अच्छे प्रयास कर सकता है किंतु रोगी का स्वस्थ होना न होना ये रोगी के अपने समय के अनुशार निश्चित होता है इसलिए उस चिकित्सा का किस रोगी पर कैसा परिणाम होगा ये उस रोगी के अपने अच्छे बुरे समय के अनुशार फलित होता है !

      एक जैसे कुछ रोगियों के शरीरों में एक जैसा रोग होने पर एक जैसे चिकित्सक उन सबकी चिकित्सा एक जैसी चिकित्सापद्धति  से करते हैं और सभी रोगियों पर एक जैसी औषधियों का प्रयोग करते हैं किंतु उस एक जैसी चिकित्सा पद्धति का अलग अलग रोगियों पर अलग अलग असर होते  देखा जाता है जिसके परिणाम स्वरूप कुछ रोगी स्वस्थ हो जाते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं ! जब रोगी एक जैसे चिकित्सा एक जैसी तो परिणाम अलग अलग होने का कारण उन सभी रोगियों का अपना अपना समय ही तो होता है !

     रोगियों की अच्छी से अच्छी  चिकित्सा चलते रहने पर भी कुछ  रोगी स्वस्थ हो जाते हैं और कुछ मर जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में स्वस्थ होने वाले रोगियों का श्रेय (क्रेडिट)यदि चिकित्सापद्धति चिकित्सकों औषधियों आदि को दे भी दिया जाए तो जो रोगी चिकित्सा के बाद भी अस्वस्थ बने रहते हैं या मर जाते हैं तो उनकी जिम्मेदारी भी किसी को तो लेनी ही पड़ेगी !मर जाने वाले रोगियों के लिए कुदरत समय या भाग्य को यदि जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है तो जो स्वस्थ हो जाते हैं उसका भी श्रेय तो कुदरत समय और भाग्य को ही मिलना चाहिए ? दोनों प्रकार की परिस्थितियों के लिए या तो कुदरत जिम्मेदार या फिर चिकित्सा पद्धति !अच्छे परिणामों का श्रेय स्वयं लेना और बुरे परिणामों के लिए कुदरत को कोसने की नीति ठीक नहीं है | ऐसी ढुलमुल बातें विज्ञान की श्रेणी में  कैसे रखी जा सकती हैं | 

      ऐसी परिस्थितियों में सबसे बड़ा प्रश्न ये पैदा होता है कि यदि एक जैसे चिकित्सक एक जैसी चिकित्सा प्रक्रिया का पालन करते हुए एक जैसे रोगियों पर किसी एक औषधि का प्रयोग  करते हैं तो उनमें से कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ अस्वस्थ बने रहते हैं और कुछ मर जाते हैं !ऐसे तीन प्रकार के परिणाम मिलने पर जो स्वस्थ हुए उन्हें ही चिकित्सा का फल क्यों मान लिया जाए !चिकित्सा काल में भी जो अस्वस्थ बने रहे या जो मर गए उन पर चिकित्सा का प्रभाव कुछ हुआ ही नहीं या हुआ तो किस प्रकार का हुआ !इस बात का निश्चय कैसे किया जाए   ऐसे अलग अलग परिणामों को यदि रोगियों और चिकित्सकों के अपने अपने समय के अनुशार न देखा जाए तो किसी अन्य प्रकार के वर्गीकरण के माध्यम से इस अंतर को कैसे समझा जा सकता है |

     इसका सीधा सा मतलब है कि जिनका समय ठीक था उन्हें तो स्वस्थ होना ही था जिनका समय ठीक नहीं था उन्हें अस्वस्थ रहना या मरना ही था यदि जैसा होना था वैसा ही हो गया तो चिकित्सा पद्धति की अपनी भूमिका किस प्रकार की रही और यदि चिकित्सा पद्धति ने भी समय के सामने ही आत्म समर्पण कर ही दिया तो फिर चिकित्सा प्रक्रिया का अपना प्रभाव  कैसे कहाँ और कितना सिद्ध हुआ !          सामूहिक बीमारियाँ या महामारियाँ फैलने के प्रकरण में समय की बहुत बड़ी भूमिका होती है जब समय खराब होता है तब सामूहिक महामारियाँ फैलती हैं समय ख़राब कब होता है इसका ज्ञान ज्योतिष शास्त्र  से होता है !ग्रहस्थिति खराब होने के कारण जो सामूहिक रोग फैलते हैं उन रोगों को समाप्त कर देने वाली एक से एक प्रभावी औषधियों का निर्माण यदि ऐसे समय किया जाए तो  उस समय ग्रहों के दुष्प्रभाव के कारण  वे ही औषधियाँ उतने समय के लिए  वीर्यविहीन हो जाती हैं !इसलिए ऐसे समयों में उन औषधियों से रोग मुक्ति की आशा नहीं की जानी चाहिए !इसलिए चरकसंहिता में स्पष्ट कहा गया है कि ग्रहों के अनिष्टकारक योग को आता देख कर रोगों का पूर्वानुमान पूर्वक औषधियों का संग्रह पहले ही कर लेना चाहिए जिससे महामारियों पर नियंत्रण पाया जा सके ! इसलिए भावी रोगों का पूर्वानुमान लगाने के लिए अच्छे बुरे समय को समझना होगा जिसके लिए आवश्यक है ज्योतिष विज्ञान !

    किसी रोगी के लिए सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण चिकित्सा होती है या उसका अपना समय ?साधन विहीन गरीब या जंगलों में रहने वाले रोगी या घायल लोग या पशु पक्षियों को देखा जाता है कि वे तो बिना चिकित्सा के भी स्वस्थ होते देखे जाते हैं | बाक़ी सभी साधनों से सम्पन्न बड़े लोगों की सघन चिकित्सा व्यवस्था होने पर भी मृत्यु होते देखी जाती है ऐसी परिस्थितियाँ समय के महत्त्व को सिद्ध करती हैं |

        कई कम उम्र के बच्चों को भी बड़े बड़े रोग होते देखे जाते हैं और कई बूढ़े लोगों को भी स्वस्थ देखा जाता है कई बहुत सात्विकता और संयम पूर्वक जीवन जीने वाले लोगों के भी शरीरों में बहुत बड़े बड़े रोग होते देखा जाता है तो कई अत्यंत असंयमित जीवन जीने वाले लोग भी आजीवन स्वस्थ रहते देखे जाते हैं  ऐसी दोनों ही परिस्थितियाँ पैदा होने  का कारण उन दोनों का अपना अपना  समय ही तो है |

     किसी व्यक्ति को कोई रोग होगा या नहीं होगा और होगा तो किस उम्र में होगा कितना बड़ा रोग होगा और कितने समय के लिए होगा ! रोग के बढ़ने की सीमा कहाँ तक होगी !ऐसी बातों का पूर्वानुमान लगाकर संभावित समय में छोटी छोटी बीमारियों को भी बहुत बड़े बड़े रोगों की तरह गंभीरता से लेकर चिकित्सा संबंधी प्रयासों में अत्यंत सतर्कता बरती जा सकती है !

     रोगों के  पूर्वानुमान की पद्धति यदि चिकित्सा के क्षेत्र में भी होती तो कई रोगों को पैदा होने से पहले ही रोका जा सकता था !पैदा हो चुके कुछ रोगों को अधिक बढ़ने से रोका जा सकता था !समय के अनुशार सतर्क चिकित्सा एवं पथ्य परहेज की गंभीरता से संभावित कई बड़े रोग भी  नियंत्रित रखे जा सकते थे |

        सामूहिक रूप से पैदा होने वाले रोगों के विरुद्ध समय रहते जन जागरूकता अभियान चलाए जा सकते थे और चिकित्सकीय व्यवस्थाओं को विस्तारित किया जा सकता था एवं उपयोगी औषधियों का संग्रह किया जा सकता था ! चरक संहिता में इस विधा के स्पष्ट संकेत मिलते हैं !

       मनोरोग होने या बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लग जाने से समय से पूर्व अपने को उस तरह की परिस्थितियों  के सहने योग्य बनाया जा सकता है विवादों से बचाया अथवा उन्हें टाला जा सकता है दुविधा या रिस्क पूर्ण कार्यों व्यवसायों संपर्कों से अपने को अलग रखा जा सकता है |

  आयुर्वेद के शीर्ष ग्रन्थ चरकसंहिता में महर्षि कहते हैं

      समय और चिकित्सा रोगी के लिए दोनों आवश्यक है किंतु इन दोनों में रोगी के लिए वास्तव में अधिक महत्त्व  समय का या चिकित्सा का यह अंतर खोजने के लिए मैंने अपना शोधकार्य प्रारम्भ किया तो देखा कि जब तक जिसका समय अच्छा होता है तब तक उसे कोई बड़ी बीमारी नहीं होती और यदि किसी कारण से  हो भी जाए तो उसे अच्छे डॉक्टर आसानी से मिल जाते हैं अच्छी दवाएँ मिल जाती हैं चिकित्सा के लिए  धन का इंतजाम भी आसानी से हो जाता है और दवा का असर भी आशा से अधिक होने लगता है इसी विचार से मैंने महत्वपूर्ण है क्या किसी रोगी के लिए समय अधिक महत्वपूर्ण है या चिकित्सा ?

    पिछले 20 वर्षों से चिकित्सा के क्षेत्र में वैदिक विज्ञान ज्योतिष एवं आयुर्वेद के महत्त्वपूर्ण ग्रंथों के अध्ययन एवं अनुभवों से पता लगा कि रोगों के निदान तथा रोगों के पूर्वानुमान  के साथ साथ प्रिवेंटिव चिकित्सा एवं मनोरोगों के विषय में लोगों के स्वभावों को समझने में ज्योतिष की बड़ी भूमिका सिद्ध हो सकती है ।कई बार किसी को कोई छोटी बीमारी चोट या फुंसी प्रारंभ होती है और बाद में वो भयंकर रूप ले लेती है।इसी प्रकार कई अन्य बीमारियाँ होती हैं जो प्रारंभ में छोटी बीमारी दिखने के कारण चिकित्सा में लापरवाही कर दी जाती है और बाद में नियंत्रण से बाहर हो जाती हैं ऐसी परिस्थिति में किसी भी छोटी बड़ी बीमारी का पूर्वानुमान ज्योतिष के द्वारा प्रारम्भ में ही लगा लिया जा सकता है और उसी समय चिकित्सा में सतर्कता बरत लेने से बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है ।

      आयुर्वेद के बड़े ग्रंथों में  भी समय का महत्त्व समझने के लिए ज्योतिष का उपयोग किया गया है ।     आयुर्वेद का उद्देश्य शरीर को निरोग बनाना एवं आयु की रक्षा करना है जीवनके लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । ' चिकित्सा शास्त्र में समय  का विशेष महत्त्व  है ।

    आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का अपना समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता है और कुछ को नहीं भी होता है उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम अलग अलग होते देखा जाता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी किन्हीं एक जैसे दो रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !

      जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सब बिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !

     जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है । इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं ये समय का ही प्रभाव है ।

         

    'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना अधूरा है चिकित्साशास्त्र !


        सुश्रुत संहिता में भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि आयुर्वेद का उद्देश्य है रोगियों की रोग से मुक्ति और स्वस्थ पुरुषों के स्वास्थ्य की रक्षा !अर्थात रोगों के पूर्वानुमान के आधार पर द्वारा भविष्य में होने वाले रोगों की रोक थाम ! 'स्वस्थस्यरक्षणंच'आदि आदि ! किंतु भविष्य में होने वाले रोगों का पूर्वानुमान लगाकर रोग होने से पूर्व सतर्कता कैसे वरती जाए !अर्थात 'समयशास्त्र' (ज्योतिष) के बिना ऐसे पूर्वानुमानों की कल्पना कैसे की जा सकती है ! इसके लिए भगवान धन्वंतरि कहते हैं कि इस आयुर्वेद में ज्योतिष आदि शास्त्रों से संबंधित विषयों का वर्णन जगह जगह जो आवश्यकतानुसार आया हैउसे ज्योतिष आदि शास्त्रों  से  ही पढ़ना  और समझना चाहिए !क्योंकि एक शास्त्र में ही सभी शास्त्रों का समावेश करना असंभव है ।'अन्य शस्त्रोपपन्नानां चार्थानां' आदि ! दूसरी बात उन्होंने कही है कि किसी भी विषय में किसी एक शास्त्र को पढ़कर शास्त्र के निश्चय को नहीं जाना जा सकता इसके लिए जिस चिकित्सक ने बहुत से शास्त्र पढ़े हों वही  चिकित्सक शास्त्र के निश्चय को समझ सकता है ।

                     " तस्मात् बहुश्रुतः शास्त्रं विजानीयात्चिकित्सकः ||"

                                                                                        -सुश्रुत संहिता

            'आयुर्वेद ' में दो शब्द  होते हैं 'आयु' और 'वेद' ! 'आयु ' का अर्थ है शरीर और प्राण का संबंध !

    'शरीर प्राणयोरेवं संयोगादायुरुच्यते !' 'वेद' का अर्थ है 'जानो ' अर्थात शरीर और प्राणों के संबंध को समझो ! ये है आयुर्वेद शब्द का अर्थ ।  प्राणों की चर्चा पूरे आयुर्वेद में अनेकों स्थलों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर देखी जा सकती है चूँकि आयु की दृष्टि से शरीर सबसे कमजोर कड़ी है ये इतना नाजुक है कि कभी भी कहीं भी कैसे भी बीमार आराम नष्ट  आदि कुछ भी हो सकता है इसलिए प्रत्यक्ष तौर पर शरीर की चिंता ही सबसे ज्यादा दिखती है !यहाँ प्राणों की भूमिका बड़ी होते हुए उसकी चर्चा कुछ कम और शरीर की चर्चा अधिक की गई है !फिर भी जीवन के लिए हितकर  द्रव्य,गुण और कर्मों के उचित  मात्रा  में सेवन से आरोग्य मिलता है एवं अनुचित सेवन से मिलती हैं बीमारियाँ ! यही हितकर और अहितकर द्रव्य गुण और  कर्मों के सेवन और त्याग का विधान आयुर्वेद में किया गया है । '

                                   चिकित्सा शास्त्र में समयशास्त्र का महत्त्व

         आरोग्य लाभ के लिए हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करने का विधान करता है आयुर्वेद ये सत्य है किंतु हितकर द्रव्य गुण और  कर्मों का सेवन करके भी स्वास्थ्य लाभ तभी होता है जब  रोगी का समय भी रोगी के अनुकूल हो !अन्यथा अच्छी से अच्छी औषधि लेने पर भी अपेक्षित लाभ नहीं होता है । कई बार एक चिकित्सक एक जैसी बीमारी के लिए एक जैसे कई रोगियों का उपचार एक साथ करता है किंतु उसमें कुछ को लाभ होता कुछ को नहीं भी होता हो उसी दवा के कुछ को साइड इफेक्ट होते भी देखे जाते हैं !ये परिणाम में अंतर होने का कारण  उन रोगियों का अपना अपना समय है अर्थात चिकित्सक एक चिकित्सा एक जैसी किंतु रोगियों के अपने अपने समय के अनुसार ही औषधियों का परिणाम होता है कई बार एक जैसी औषधि होते हुए भी दो एक जैसे रोगियों पर परस्पर विरोधी परिणाम देखने को मिलते हैं !

         जिस व्यक्ति का जो समय अच्छा होता है उसमें उसे बड़े रोग नहीं होते हैं आयुर्वेद की भाषा में उसे साध्य रोगी माना जाता है ऐसे रोगियों को तो ठीक होना ही होता है उसकी चिकित्सा  हो या न हो चिकित्सा करने पर जो घाव 10 दिन में भर जाएगा !चिकित्सा न होने से महीने भर में भरेगा बस !यही कारण  है कि जिन लोगों को गरीबी या संसाधनों के अभाव में चिकित्सा सुविधा नहीं मिल पाती है जैसे जंगल में रहने वाले बहुत से आदिवासी लोग या पशु पक्षी आदि भी बीमार होते हैं या लड़ते झगड़ते हैं चोट लग जाती है बड़े बड़े घाव हो जाते हैं फिर भी जिन जिन का समय अच्छा होता है वो सबबिना चिकित्सा के भी समय के साथ साथ धीरे धीरे स्वस्थ हो जाते हैं !

           जिसका जब समय मध्यम होता है ऐसे समय होने वाले रोग कुछ कठिन होते हैं ऐसे समय से पीड़ित रोगियों को कठिन रोग होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में कष्टसाध्य रोगी माना जाता है इन्हें सतर्क चिकित्सा से आयु पर्यंत यथा संभव के  सुरक्षित किया जा सकता है अर्थात आयु अवशेष होने के कारण मरते नहीं हैं और सतर्क चिकित्सा के कारण घसिटते नहीं हैं अस्वस्थ होते हुए भी औषधियों के बल पर काफी ठीक जीवन बिता लिया करते हैं किंतु जब तक समय अच्छा नहीं होता तब तक पूरी तरह स्वस्थ नहीं हो पाते हैं !कई बार वह मध्यम समय बीतने के बाद कुछ रोगियों का अच्छा समय भी आ जाता है जिसमें वे पूरी तरह स्वस्थ होते देखे जाते हैं ऐसे समय वो जिन जिन औषधियों उपचारों या चिकित्सकों के संपर्क में होते हैं अपने स्वस्थ होने का श्रेय उन्हें देने लगते हैं कई कोई इलाज नहीं कर रहे होते हैं वो भगवान को श्रेय देने लगते हैं !

               इसी प्रकार से जिनका जो समय ख़राब होता हैं उन्हें ऐसे समय में जो रोग होते हैं वे किसी भी प्रकार की चिकित्सा से ठीक न होने के लिए ही होते हैं इन्हें आयुर्वेद की भाषा में 'असाध्य रोग' कहा जाता है !ये चिकित्सकों चिकित्सापद्धतियों एवं औषधियों के लिए चुनौती होते हैं । ऐसे रोगियों पर योग आयुर्वेद आदि किसी भी विधा का कोई असर नहीं होता है ऐसे समय में गरीब और साधन विहीन लोगों की तो छोड़िए बड़े बड़े राजा महराजा तथा सेठ साहूकार आदि धनी वर्ग के लोग जिनके पास चिकित्सा के लिए उपलब्ध बड़ी बड़ी व्यवस्थाएँ हो सकती हैं किंतु उनका भी वैभव काम नहीं आता है और उन्हें भी गम्भीर बीमारियों से बचाया नहीं जा पाता है !ऐसे समय कई बार प्रारम्भ में दिखाई पड़ने वाली छोटी छोटी बीमारियाँ   इलाज चलते रहने पर भी बड़े से बड़े रूप में बदलती चली जाती हैं छोटी छोटी सी फुंसियाँ कैंसर का रूप ले लेती हैं ।

             ऐसी परिस्थिति में इस बात पर विश्वास  किया जाना चाहिए कि जिस रोगी का जब जैसा अच्छा बुरा समय होता है तब तैसी बीमारियाँ होती हैं और उस पर औषधियों का असर भी उसके समय के अनुसार ही होता है । जिसका समय ठीक होता है ऐसे रोगी का इलाज करने पर उसे आसानी से रोग से मुक्ति मिल जाती है इसलिए ऐसे डॉक्टरों को आसानी से यश लाभ हो जाता है !

             इसलिए चिकित्सा में सबसे अधिक महत्त्व रोगी के समय का होता है जिसका समय अच्छा होता है ऐसे लोगों पर रोग भी छोटे होते हैं इलाज का असर भी जलदी होता है इसके साथ साथ ऐसे लोग यदि किसी दुर्घना का भी शिकार हों तो अन्य लोगों की अपेक्षा इन्हें चोट कम आती है या फिर बिलकुल नहीं आती है एक कर पर चार लोग बैठे हों तो और एक्सीडेंट हों टी कई बार देखा जाता है कि तीन लोग नहीं बचे किंतु एक को खरोंच भी नहीं आती है क्योंकि उसका समय अच्छा चल  रहा होता है ।

     भूतविद्या -आयुर्वेद के 6 अंगों में से चौथे अंग का नाम है भूत विद्या !इसी भूत विद्या के अंतर्गत महर्षि सुश्रुत कहते हैं कि देव असुर गन्धर्व यक्ष राक्षस पिटर पिशाच नाग ग्रह आदि के आवेश से दूषित मन वालों की  शांति कर्म ही भूत विद्या है । इसमें ग्रहों का वर्णन भी आया है !

           जिनका समय मध्यम होता है ऐसे लोग इस तरह के विकारों से  तब तक ग्रस्त रहते हैं जब तक  समय मध्यम रहता है ऐसे रोगी इन आवेशों के  कारण ही अचानक कभी बहुत बीमार हो जाते हैं और कभी ठीक हो जाते हैं जाँच होती है तो इनकी छाया हट जाती है और फिर पीड़ित करने लगती है ऐसे में जाँच रिपोर्टों में कुछ आता नहीं है और बीमारी बढ़ती चली जाती है दूसरी बात ऐसे लोग जहाँ जहाँ इलाज के लिए जाते हैं वहाँ वहाँ इन्हें एक बार एक दो बार फायदा मिल जाता है फिर वहीँ पहुँच जाते हैं इसीलिए ऐसे लोगों का चिकित्सा की सभी पद्धतियों पर भरोसा जमता चला जाता है किंतु पूरा लाभ कहीं से नहीं होता है यहाँ तक कि तांत्रिकों आदि पर भी ऐसी परिस्थिति में ही लोग भरोसा करने लगते हैं !जबकि सारा दोष इनके समय की खराबी का होता है ।

           समय स्वयं ही  सबसे बड़ी औषधि है -

           किसी को कोई बीमारी हो जाए और उसे कितनी भी अच्छी दवा क्यों न दे दी जाए किंतु लोग समय से ही स्वस्थ होते देखे जाते हैं चिकित्सा न होने पर स्वस्थ होने मेंसमय कुछ अधिक लगता है और चिकित्सा होने पर  समय कुछ कम लग जाता है ।विशेष बात ये भी है कि औषधि किसी को कितनी भी अच्छी क्यों न दे दी जाए किंतु ठीक वही होते हैं जिन्हें ठीक होना होता है यदि  ऐसा न होता तो बड़े बड़े राजा महाराजा सेठ साहूकार आदि सुविधा सम्पन्न बड़े बड़े धनी लोग हमेंशा हमेंशा के लिए स्वस्थ अर्थात अमर हो जाते !इससे सिद्ध होता है कि जीवनरक्षा की दृष्टि से चिकित्सा बहुत कुछ है किंतु सबकुछ नहीं है ।इसमें समय की भी बहुत बड़ी भूमिका है इसलिए समय का भी अध्ययन किया जाना चाहिए ।

    महामारी आदि सामूहिक बीमारियाँ होने के कारण -

            जब अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकार से समय दूषित हो जाता है उससे  ऋतुओं में विकार आने लगते हैं और समय में विकार आते ही देश और समाज पर उसका दुष्प्रभाव दिखने लगता है इससे वायु प्रदूषित होने लगती है और वायु प्रदूषित  होते ही जल दूषित होने लगता है और जब इन चारों चीजों में प्रदूषण फैलने लगता है तब विभिन्न प्रकृति वाले स्त्री पुरुषों को एक समय में एक जैसा  रोग हो जाता है । यथा -"वायुरुदकं देशः  काल इति "-चरक संहिता

         वायु से जल और जल से देश और देश से काल अर्थात समय सबसे अधिक बलवान होता है !

      " वाताज्जलं जलाद्देशं देषात्कालं स्वभावतः "-चरक संहिता

     महामारियाँ फैलते समय बनौषधियाँ भी गुणहीन हो जाती हैं !

         इसीलिए समय के विपरीत होने पर प्रकृति में दिखने वाले उत्पातों के फल जब प्रकट होते हैं तो सामूहिक रूप से बीमारियाँ फैलने लगती हैं कई बार तो यही बीमारियाँ महामारियों तक का रूप ले जाती हैं !जब नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रहों के विकारों के फल स्वरूप फल स्वरूप समाज में महामारियाँ फैलती हैं तो इनमें लाभ करने वालीबनौषधियाँ भी ग्रह विकारों के दुष्प्रभावों से इतना प्रभावित होती हैं कि महामारियों में लाभ करने वाले गुणों से हीन  हो जाती हैं अर्थात वो बनौषधियाँ अपने जिन गुणों के कारण जिन रोगों से मुक्ति दिलाने में सक्षम होने के कारण प्रसिद्ध होती हैं किंतु महामारी फैलते समय उन औषधियों से भी उन गुणों का लोप हो जाता है ।इसलिए  ऐसी महामारियाँ फैलने का समय आने से पहले यदि बनौषधियों  का संग्रह कर लिया जाए तो वो बनौषधियाँ  महामारी फैलने के समय भी बीमारियों से लड़ने में सक्षम होती हैं क्योंकि प्राकृतिक उत्पातों का समय प्रारम्भ होने से पहले ही उनका संग्रह कर लिया जा चुका होता है ।

             यहाँ सबसे बड़ा प्रश्न ये है कि महामारी फैलने से पहले ये पता कैसे चले ?

            कब महामारी फैलने वाली है और बिना पता चले ऐसे किन किन बनौषधियों  का कितना संग्रह किया जा सकता है !इसका उत्तर देते समय चरक संहिता में कहा गया है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय आषाढ़ के महीने में गंगा के किनारे बनों में घूमते हुए अपने शिष्य पुनर्वसु से बोले "देखो -स्वाभाविक अवस्था में स्थित अश्विनी आदि नक्षत्र चन्द्र सूर्य आदि ग्रह ऋतुओं में विकार करने वाले देखे जाते हैं इस समय शीघ्र ही पृथ्वी भी औषधियों के रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव को यथावत उत्पन्न न करेगी इससे रोगों का होना अवश्यंभावी है अतएव जनपद विनाश से पूर्व भूमि के रस रहित होने से पूर्व औषधियों के रस,वीर्य,विपाक और प्रभाव के नष्ट होने से पूर्व बनौषधियों का संग्रह कर लो समय अाने पर हम इनके रस वीर्य विपाक तथा प्रभाव का उपयोग करेंगे !इससे जनपद नाशक विकारों को रोकने में कुछ कठिनाई नहीं होगी !"यथा -

      " दृश्यंते हि खलु सौम्य नक्षत्र ग्रह चंद्रसूर्यानिलानलानां दिशां च प्रकृति भूतानामृतु  वैकारिकाः भावाः "-चरक संहिता        

     मेरे कहने का आशय  यह है कि भगवान पुनर्वसुआत्रेय जी को  'समय शास्त्र (ज्योतिष)'का ज्ञान होने के कारण ही तो पता लग पाया कि आगे जनपद विद्ध्वंस  होने जैसी परिस्थिति पैदा  होने वाली है तभी संबंधित बीमारियों में लाभ करने वाली बनौषधियों के संग्रह के विषय में वे निर्णय ले सके ! सुश्रुत संहिता में तो ऐसे खराब ग्रह योगों को काटने के लिए प्रायश्चित्त एवं ग्रहों की शांति करने का विधान कहा गया है -

                                                प्रायश्चित्तं प्रशमनं चिकित्सा शांतिकर्म  च  ।

                                                                                                       -  सुश्रुतसंहिता        

    इसलिए चिकित्सा शास्त्र के लिए बहुत आवश्यक है 'समय शास्त्र (ज्योतिष)' का अध्ययन ! इसके बिना चिकित्सा शास्त्र  का सम्यक निर्वाह कर पाना कठिन ही नहीं अपितु असम्भव भी है ।

    मनोरोग -

      सुश्रुत संहिता में शारीरिक रोगों के लिए तो औषधियाँ बताई गई हैं  किंतु मनोरोग के लिए किसी औषधि का वर्णन न करते हुए उन्होंने कहा कि इसके लिए शब्द स्पर्श रूप रस गंध आदि का सुखकारी प्रयोग करना चाहिए !

        यथा -  "मानसानां तु शब्दादिरिष्टो वर्गः सुखावहः |'

         कुल मिलाकर विश्व की किसी  भी चिकित्सा पद्धति में मनोरोगियों को स्वस्थ करने की कोई दवा नहीं होती नींद लाने के लिए दी जाने वाली औषधियाँ  मनोरोग की दवा नहीं अपितु नशा  हैं उन्हें मनोरोग की दवा नहीं कहा जा सकता है ! अब बात आती है  काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा की !

        काउंसलिंग अर्थात परामर्श चिकित्सा -

            काउंसलिंग के नाम पर चिकित्सावैज्ञानिक मनोरोगी को जो बातें समझाते हैं उनमें उस मनोरोगी के लिए कुछ नया और कुछ अलग से नहीं होता है क्योंकि स्वभावों के अध्ययन के लिए उनके पास कोई ठोस आधार नहीं हैं और बिना उनके किसी को कैसे समझा सकते हैं आप !कुछ मनोरोगियों पर किए गए कुछ अनुभव कुछ अन्य लोगों पर अप्लाई किए जा रहे होते हैं किंतु ये विधा कारगर है ही नहीं  हर किसी की परिस्थिति मनस्थिति सहनशीलता स्वभाव साधन और समस्याएँ आदि अलग अलग होती हैं उसी हिसाब से स्वभावों के अध्ययन की भी कोई तो प्रक्रिया होनी चाहिए !इस विषय में मैं ऐसे कुछ समझदार लोगों से मिला भी उनसे चर्चा की किंतु वे कहने को तो मनोचिकित्सक  थे किंतु मनोचिकित्सा के   विषय में  बिलकुल कोरे और खोखले थे !मैंने उनसे पूछा कि मन के आप चिकित्सक है तो मन होता क्या है तो उन्होंने कई बार हमें जो समझाया उसमें मन बुद्धि आत्मा विवेक आदि सबका घालमेल था किंतु मनोचिकित्सा की ये प्रक्रिया ठीक है ही नहीं क्योंकि इसके लिए हमें मन बुद्धि आत्मा आदि को अलग अलग समझना पड़ेगा और चोट कहाँ है ये खोजना होगा तब वहाँ लगाया जा सकता है प्रेरक विचारों का मलहम ! इसलिए ऐसी आधुनिक काउंसलिंग से केवल सहारा दे दे कर मनोरोगी का  कुछ समय तो  पास किया जा सकता है बस इससे ज्यादा कुछ नहीं !

     'समयशास्त्र' (ज्योतिष) -के द्वारा मनोचिकित्सा के क्षेत्र में किसी मनोरोगी का विश्लेषण करने के लिए उसके जन्म समय तारीख़ महीना वर्ष आदि पर रिसर्च कर के सबसे पहले उस मनोरोगी का स्थाई स्वभाव खोजना होता है इसके बाद उसी से उसका वर्तमान स्वाभाव निकालना होता है फिर देखना होता है कि रोगी का दिग्गज फँसा कहाँ है ये सारी चीजें समय शास्त्रीय स्वभाव विज्ञान के आधार पर तैयार करके इसके बाद मनोरोगी से करनी होती है बात और उससे पूछना कम और बिना  बताना ज्यादा होता है उसमें उसे बताना पड़ता है कि आप अमुक वर्ष के अमुक महीने से इस इस प्रकार की समस्या से जूझ रहे हैं उसमें कितनी गलती आपकी है और कितनी किसी और की ये सब अपनी आपसे बताना होता है उसके द्वारा दिया गया डिटेल यदि सही है तो ये प्रायः साठ से सत्तर प्रतिशत तक सही निकल आता है जो रोगी और उसके घरवालों ने बताया नहीं होता है इस कारण मनोरोगी को इन बातों पर भरोसा होने लगता है इसलिए उसका मन मानने को तैयार हो जाता है फिर वो जानना चाहता है कि ये तनाव घटेगा कब और घटेगा या नहीं !ऐसे समय इसी विद्या से इसका उत्तर खोजना होता है यदि घटने लायक संभावना निकट भविष्य में है तब तो वो बता दी जाती है और विश्वास दिलाने के लिए रोगी से कह  दिया जाता है कि मैं आपके बीते हुए जीवन से अनजान था मेरा बताया हुआ आपका पास्ट जितना सही है उतने प्रतिशत फ्यूचर भी सही निकलेगा !इस बात से रोगी को बड़ा भरोसा मिल जाता है और वह इसी सहारे बताया हुआ समय बिता लेता है !

     दूसरी बात इससे विपरीत अर्थात निकट भविष्य में या भविष्य में जैसा वो चाहता है वैसा होने की सम्भावना नहीं लगती है तो भी उसके  बीते  हुए समय के बारे में बताकर पहले तो विश्वास में ले लिया जाता है फिर फ्यूचर के विषय  में न बताकर  अपितु  घुमा फिरा कर कुछ ऐसा समझा दिया जाता है जिससे तनाव घटे और वो धीरे धीरे भूले इसके लिए कईबार उसके साथ बैठना होता है । आदि

     इस प्रकार से   मनोचिकित्सा के   विषय में भी  'समयशास्त्र' (ज्योतिष)की बड़ी भूमिका है